राधा को पुस्तक दी i प्रयुक्त कारक बताएं - raadha ko pustak dee i prayukt kaarak bataen

Contents

  • 1 कारक (Karak), की परिभाषा भेद और उदाहरण – Case In Hindi Grammar Examples
    • 1.1 कारक के भेद (Kinds of Case)
    • 1.2 कर्म कारक तथा संप्रदान कारक में अंतर
    • 1.3 करण कारक तथा अपादान कारक में अंतर

राधा को पुस्तक दी i प्रयुक्त कारक बताएं - raadha ko pustak dee i prayukt kaarak bataen

हमें एक ऐसी व्यावहारिक व्याकरण की पुस्तक की आवश्यकता महसूस हुई जो विद्यार्थियों को हिंदी भाषा का शुद्ध लिखना, पढ़ना, बोलना एवं व्यवहार करना सिखा सके। ‘हिंदी व्याकरण‘ हमने व्याकरण के सिद्धांतों, नियमों व उपनियमों को व्याख्या के माध्यम से अधिकाधिक स्पष्ट, सरल तथा सुबोधक बनाने का प्रयास किया है।

कारक (Karak), की परिभाषा भेद और उदाहरण – Case In Hindi Grammar Examples

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप और कार्य से उसका संबंध वाक्य में क्रिया से जाना जाता है, उसे ‘कारक’ कहते हैं; जैसे- तुम मेज़ से काग़ज़ निकालकर और कुर्सी पर बैठकर कलम से अपने पिता को पत्र लिखो। इस वाक्य में मेज़ (से) कुर्सी (पर), कलम (से), पिता (को) आदि संज्ञा शब्दों के साथ आए विभक्ति चिह्न, इन संज्ञा शब्दों का संबंध क्रिया ‘लिखो’ से जोड़ रहे हैं। अन्य शब्दों का संबंध क्रिया से जोड़ने वाले ये विभक्ति चिह्न ‘कारक’ कहलाते हैं। इन कारक चिह्नों को ‘परसर्ग’ भी कहा जाता है।

कारक के भेद (Kinds of Case)

हिंदी में कारक आठ प्रकार के हैं :

क्र०सं० 1.
कारक:
परसर्ग:
पहचान:
उदाहरण:
वाक्य-प्रयोग:
– कर्ता (क्रिया को करने वाला)
– शून्य, ने
– कौन?, किसने?
– रोहित, रोहित ने
– रोहित पतंग उड़ा रहा है।, रोहित ने पतंग उड़ाई।
क्र०सं० 2.
कारक:
परसर्ग:
पहचान:
उदाहरण:
वाक्य-प्रयोग:
– कर्म (जिस पर क्रिया का फल पड़े)
– शून्य, को
– क्या?, किसको?
– कहानी पुत्र को
– सोनिया कहानी पढ़ती है।, पिता ने पुत्र को बुलाया।
क्र०सं० 3.
कारक:
परसर्ग:
पहचान:
उदाहरण:
वाक्य-प्रयोग:
– करण (क्रिया करने का साधन)
– से, के द्वारा, द्वारा
– क्या?, किससे?, किसके द्वारा
– कार से ब्रश के द्वारा पेन द्वारा
– रोहन कार से बाजार जाता है।, गौतम ब्रश के द्वारा चित्रकारी करता है।, मैं पेन द्वारा लिखती हूँ।
क्र०सं० 4.
कारक:
परसर्ग:
पहचान:
उदाहरण:
वाक्य-प्रयोग:
– संप्रदान (जिसके लिए क्रिया की जाए)
– के लिए, को, के अर्थ, किस निमित्त
– किसके लिए?, किसको?, किस अर्थ, के निमित्त
– माँ के लिए मीना को जीने के अर्थ परोपकार के निमित्त
– जसिका माँ के लिए फल लाई।, मोहित ने मीना को पुस्तक दी।, जीने के अर्थ कब समझोगे|, परोपकार सदकार्य करो।
क्र०सं० 5.
कारक:
परसर्ग:
पहचान:
उदाहरण:
वाक्य-प्रयोग:
– अपादान (जिससे अलगाव हो)
– से
– किससे
– पेड़ से
– पेड़ से फल गिरा।
क्र०सं० 6.
कारक:
परसर्ग:
पहचान:
उदाहरण:
वाक्य-प्रयोग:
– संबंध (वाक्य में अन्य पदों से संबंध दर्शाने वाला)
– का, के, की, रा, रे, री, ना, ने, नी
– किसका?, किसके?, किसकी?
– रीता का, मेरी बहन. अपना
– रीता का भाई कल हमारे घर आएगा।, मेरी बहन डॉक्टर है।, अपना काम करो।
क्र०सं० 7.
कारक:
परसर्ग:
पहचान:
उदाहरण:
वाक्य-प्रयोग:
– अधिकरण (क्रिया का आधार)
– में, पर
– किसमें?, किस पर
– कक्ष में, कुर्सी पर।
– संगोष्ठी कक्ष में संगोष्ठी चल रही है।, कुर्सी पर कपड़े पड़े हैं।
क्र०सं० 8.
कारक:
परसर्ग:
पहचान:
उदाहरण:
वाक्य-प्रयोग:
– संबोधन
– हे, अरे
– ……………..
– हे ईश्वर
– हे ईश्वर! दया करो।

1. कर्ता कारक (Subjective Case)-क्रिया के करने वाले को व्याकरण में कर्ता कहते हैं। यह विशेष रूप से संज्ञा या सर्वनाम ही होता है और इसका सीधा संबंध क्रिया से होता है।

“संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के करने वाले का बोध हो, उसे कर्ता कारक कहते हैं।” जैसे:
राधा ने पत्र लिखा।, श्याम खेलता है।

इन दोनों वाक्यों में हम देखते हैं कि राधा और श्याम दोनों ही क्रमशः लिखने और खेलने की क्रिया से जुड़े हैं, लेकिन राधा के साथ ‘ने’ विभक्ति का प्रयोग हुआ है और श्याम के साथ कोई विभक्ति नहीं है। विशेष रूप से जब वाक्य में भूतकाल की सकर्मक क्रिया होती है, तो ‘ने’ परसर्ग का प्रयोग होता है अन्यथा कर्ता कारक का प्रयोग विभक्ति के बिना ही किया जाता है।

2. कर्म कारक (Objective Case)-क्रिया का प्रभाव पड़ने वाले रूप को ‘कर्म कारक’ कहा जाता है। कर्म केवल सकर्मक क्रिया के साथ ही आता है। इसका परसर्ग’को’ है। परसर्ग’को’ का प्रयोग विशेष रूप से प्राणीवाचक संज्ञा के साथ ही होता है, लेकिन कभी-कभी बल देने के लिए अपवाद स्वरूप अप्राणीवाचक पदार्थों के साथ भी इसका प्रयोग होता है। इस प्रकार :

“संज्ञा या सर्वनाम के उस रूप को कर्म कारक कहते हैं, जिसपर क्रिया का प्रभाव पड़ता है।”

परसर्ग सहित :
माँ ने बेटे को समझाया।, राधा ने नौकर को बुलाया।

परसर्ग रहित:
मैंने कल बंदर देखा।, सुधा ने चिड़ियाघर में पक्षी देखे।

अप्राणीवाचक बिना परसर्ग के :
वह पत्र लिखता है।, वह पुस्तक पढ़ रहा है।

अप्राणीवाचक परसर्ग के साथ :
मेज़ को सही जगह पर रख दो।, पेड़ को मत काटो।

कभी-कभी एक ही वाक्य में दो कर्म भी पाए जाते हैं :
शशी ने रमा को पुस्तक दी।, माँ बच्चे को खाना खिला रही है।

विशेष :
1. वाक्य में मुख्य तथा गौण कर्म हो तो ‘को’ गौण कर्म के साथ आता है; जैसे :
लड़के ने गधे को पत्थर मारा।

2. जो प्रेरणार्थक क्रियाएँ अकर्मक क्रियाओं से बनती हैं। उनके कर्म के साथ प्रायः ‘को’ आता है; जैसे :
मोटर चलती है।, ड्राइवर मोटर को चलाता है।
लड़का गिरता है।, कुत्ता लड़के को गिराता है।

3. गतिवाचक क्रियाओं का प्रयोग करते समय स्थानदर्शक कर्म के साथ ‘को’ नहीं आता; जैसे :
सेठ जी आज मुंबई गए।, स्वाति कॉलेज जा रही है।

4. ‘चाहिए’ क्रिया का प्रयोग करते समय कर्ता के साथ ही ‘को’ प्रत्यय आता है; जैसे :
विद्याथयों को पढ़ाई करनी चाहिए।

5. विशिष्ट प्रयोग में भी ‘को’ का उपयोग किया जाता है; जैसे :
बरसात आने को है।, बोलने को तो वह बोल गया।

3. करण कारक (Instrumental Case)-करण का अर्थ ‘साधन’ होता है अर्थात् जिसके द्वारा कार्य किया जाए। इसका सीधा संबंध क्रिया के साथ होता है।

“संज्ञा या सर्वनाम के उस रूप को करण कारक कहते हैं, जिससे क्रिया के साधन का बोध हो।” इसका परसर्ग ‘से’, ‘के द्वारा’ है। कभी-कभी इसका प्रयोग परसर्ग के बिना भी होता है।

‘से’ परसर्ग  मैं गेंद से खेलता हूँ।, मैंने गिलास से पानी पिया।
‘के द्वारा’ परसर्ग  मुझे पत्र द्वारा सूचना प्राप्त हुई।, उसने चाकू के द्वारा खरबूज़ा काटा।
परसर्ग रहित  मैं कानों सुनी बात कह रहा हूँ।, मैंने आँखों देखी बात कही है।, अकाल में हजारों गरीब भूखों मरे।, बच्चों के हाथों काम करा लेना आसान नहीं है।

साधन के सिवा करण कारक के अर्थ में ‘से’ का प्रयोग निम्नलिखित रूपों में भी होता है:
(अ)

1. रीति या पद्धति  बेटा! ध्यान से अध्ययन करो। क्रम से आओ।
2. विकार  बेचारे की क्या हालत हो गई?
3. कारण  अध्ययन करने से अच्छे गुण मिलते हैं।
4. दशा या स्थिति  कर्ण स्वभाव से ही दानवीर था।
5. मूल्य  सोना किस दाम से बेचा जाता था?
6. साहित्य  आम खाने से काम पेड़ गिनने से क्या फायदा?

(आ) शरीर का दोष दिखलाने के लिए करण कारक ‘से’ का प्रयोग किया जाता है; जैसे :
रणजीत सिंह एक आँख से अंधा था।, बेचारा एक पैर से लँगड़ा हो गया।

(इ) कर्मवाच्य और भाववाच्य में कर्ता के साथ करण कारक ‘से’ का प्रयोग किया जाता है; जैसे :
जानकी से गाय देखी गई।, रोगी से चला नहीं जाता।

(ई) पूछना, करना, बोलना, कहना, प्रार्थना करना (प्यार, नफरत, इंकार तथा बात करना), ढंकना और माँगना इन क्रियाओं का प्रयोग करते समय ‘से’ का प्रयोग किया जाता है; जैसे :
माँ से पूछकर बाहर जाओ।, पिता जी से पैसे मांगो।, देश से प्यार करना हमारा कर्तव्य है।

4. संप्रदान कारक (Dative Case)-संप्रदान का अर्थ ‘देना’ होता है। वाक्य में जिसे कुछ दिया जाए या जिसके लिए कुछ किया जाए, वे शब्द संप्रदान कारक के रूप होते हैं।
“संज्ञा या सर्वनाम के उस रूप को जिससे कुछ दिए जाने या किसी के लिए कुछ किए जाने की क्रिया का बोध हो वे संप्रदान कारक कहलाते हैं।”
इसका परसर्ग-को, के लिए, के वास्ते, के निमित्त, के हेतु, के अर्थ आदि रूपों में है; जैसे :

मैंने राधा को पुस्तक दी। (‘को’ परसर्ग)
मैंने राधा के लिए कपड़े खरीदे। (‘के लिए’ परसर्ग)
गरीबों के वास्ते सभी दान दो। (के वास्ते)
बाढ़ सहायता कोष के निमित्त धन प्रदान करो। (के निमित्त)
परिवार हेतु अपना कर्तव्य पूरा करो। (हेतु)
नौकरी के अर्थ परिश्रम तो करना ही पड़ेगा। (के अर्थ)

5. अपादान कारक (Ablative Case)-संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से पृथक्ता का, दूरी का, तुलना का, निकलने का, डरने का, सीखने का तथा लज्जित होने का बोध हो, उसे ‘अपादान कारक’ कहते हैं; जैसे :

फल पेड़ से गिर पड़ा। (पृथक्ता)
मेरा घर स्कूल से बहुत दूर है। (दूरी)
गंगा हिमालय से निकलती है। (स्रोत)
दिव्या रमा से अच्छा गाती है। (तुलना)
विद्यार्थी गुरु जी से डरते हैं। (डरने)
मैंने माँ से खाना बनाना सीखा। (सीखने)
राधा बड़ों से शर्माती है। (लज्जा)

6. संबंध कारक (Genitive Case)-संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से एक वस्तु का दूसरी वस्तु से संबंध ज्ञात हो, उसे संबंध कारक कहते हैं। इसका परसर्ग-का, के, की; रा, रे, री; ना, ने, नी है।
यह सीता का पुत्र है। यह सुरेश के मित्र का घर है।
यह रमा की सहेली है। कल तुम्हारा पत्र आया था।
वह तुम्हारे घर गया है। उसने तुम्हारी पुस्तक ले ली।

7. अधिकरण कारक (Locative Case)-संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध हो, उसे ‘अधिकरण कारक’ कहते हैं। इसका परसर्ग-‘में’ और ‘पर’ है :
पुस्तकालय में बहुत-सी किताबें हैं। गिलास मेज़ पर रख दो।

स्थान के संदर्भ में:
राम घर पर सो रहा है। शेर वन में पाए जाते हैं।

भाव के संदर्भ में :
तुम्हें अच्छा काम करने पर पुरस्कार मिलेगा। मुख्य अतिथि के सम्मान में यह आयोजन किया गया है।

काल के संदर्भ में :
वह शाम होने पर घर आएगा। वह अपने घर चार घंटे में पहुँचेगा।

8. संबोधन कारक ( Vocative Case)-संज्ञा के जिस रूप से किसी को पुकारने, बुलाने, सुनाने या सावधान करने के भाव का बोध होता है, उसे ‘संबोधन कारक’ कहते हैं।
अरे! बच्चो शोर मत मचाओ। हैलो! क्या हाल है? ऐ!
लड़की कहाँ जा रही हो? अरे भाई! यहाँ तो आओ।
ठहरो! उस तरफ़ ख़तरा है। हे भगवान! कैसी लड़ाई चल रही है।

कर्म कारक तथा संप्रदान कारक में अंतर

माँ ने बेटे को समझाया। (कर्म कारक)
मैंने राधा को पुस्तक दी। (संप्रदान कारक)

इन दोनों उदाहरणों में हम देखते हैं कि कर्म की विभक्ति ‘को’, उसे कर्ता द्वारा किए गए कार्य का उपभोक्ता बनाती है अर्थात् कर्ता जो भी व्यापार (कार्य आदि) करता है, उसका फल कर्म को भोगना पड़ता है; जैसे-कर्म के उक्त उदाहरण में ‘माँ’ कर्ता ने जो ‘समझाने’ का कार्य किया है, उसका फल ‘समझाना’ बेटे पर पड़ा अर्थात् बच्चे को समझाया गया। इस वाक्य के अंतर्गत बेटा कर्म है। संप्रदान के उदाहरण में हम पाते हैं कि संप्रदान की विभक्ति ‘को’ कर्ता द्वारा उसे कुछ दिलाती है अर्थात् संप्रदान को तो कर्ता द्वारा कुछ वस्तु दान या उपहार रूप में प्राप्त होती है; जैसे-संप्रदान के उक्त उदाहरण में-‘राधा को’ में कर्ता से कुछ (पुस्तक की) प्राप्ति हुई है। अतः ‘राधा को’ संप्रदान है। यही दोनों में अंतर है।

करण कारक तथा अपादान कारक में अंतर

(क) राजेश गेंद से खेल रहा है।
(ख) फल पेड़ से गिर पड़ा।

प्रथम वाक्य में ‘खेलने’ की क्रिया ‘गेंद’ की सहायता से हो रही है अर्थात् खेलना क्रिया का साधन गेंद है। अतः ‘गेंद से’ करण कारक है, जबकि अपादान के उदाहरण से स्पष्ट है कि ‘पेड़’ तथा ‘फल’ को अपादान की ‘से’ विभक्ति एक-दूसरे से अलग कर रही है अर्थात् यहाँ पेड़ से ‘फल’ का अलग होना जाना जा रहा है। अतः ‘पेड़ से’ अपादान कारक है। इसके अलावा जिस रूप से दूरी का, तुलना का, निकलने का, डरने का, सीखने का तथा लज्जित होने के भाव का बोध होता है, वे सभी अपादान कारक के अंतर्गत आते हैं।

वह शब्द रूप जिससे क्रिया के साधन (जिसकी सहायता से क्रिया हो) का ज्ञान होता है, ‘करण कारक’ कहलाता है और वह शब्द रूप जिससे एक वस्तु का दूसरी वस्तु से अलग होना पाया जाता है, अपादान कारक’ कहलाता है।

यह पुस्तक राम को दे दी कौन सा कारक है?

Answer: यह राम की पुस्तक है वाक्य मे संबंध कारक है. “वाक्य में जिस पद से किसी वस्तु, व्यक्ति या पदार्थ का दूसरे व्यक्ति, वस्तु या पदार्थ से संबंध दिखाई दे या हो, उसे 'संबंध कारक' कहते है।”

कारक का पहचान कैसे करें?

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उनका (संज्ञा या सर्वनाम) सम्बन्ध सूचित हो, उसे (उस रूप को) कारक कहते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि संज्ञा या सर्वनाम के आगे जब 'ने', 'से', 'को' आदि विभक्तियाँ लगती हैं, तब उनका रूप ही कारक कहलाता है।

राधा घर से चल पड़ी इस वाक्य में कौन सा कारक है?

राधा घर से निकली अर्थात घर से अलग हुई और से अलग होने के अर्थ में अपादान कारक उपयोग होता है।

कारक रचना क्या है?

संज्ञा या सर्वनाम के जिस रूप से वाक्य के अन्य शब्दों के साथ उसके सम्बन्ध का बोध होता है, उसे कारक कहते हैं। हिन्दी में आठ कारक होते हैं- कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान, सम्बन्ध, अधिकरण और सम्बोधन। विभक्ति या परसर्ग-जिन प्रत्ययों से कारकों की स्थितियों का बोध होता है, उन्हें विभक्ति या परसर्ग कहते हैं।