रीति की परिभाषा दीजिए तथा विभिन्न विद्वानों द्वारा माने गये रीति के प्रकारों की - reeti kee paribhaasha deejie tatha vibhinn vidvaanon dvaara maane gaye reeti ke prakaaron kee

रीति की परिभाषा :- आचार्य वामन ने रीति की परिभाषा देते हुए कहा-‘विशिष्ट पद रचना रीति’ अर्थात् विशेष प्रकार की पदरचना को रीति कहते हैं।’

संस्कृत साहित्य में रीति शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम आचार्य वामन ने किया था। संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य की आत्मा पर विचार करते समय रीति-सम्प्रदाय का प्रवर्तन आचार्य वामन ने किया।

विवेचना :-  उत्तर मध्यकाल को रीति काल नाम से सम्बोधित करने वालों में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, हजारी प्रसाद द्विवेदी, डॉ. नगेन्द्र आदि प्रमुख हैं। सर्वप्रथम आचार्य शुक्ल ने हिन्दी साहित्य का इतिहास नामक ग्रंथ में उत्तर मध्यकाल को रीति काल नाम प्रदान किया।

बाद में हजारीप्रसाद द्विवेदी, डॉ.नगेन्द्र आदि विद्वानों ने भी इसी नाम का समर्थन किया। ‘रीति काल’ नामकरण की सार्थकता पर विचार करने से पूर्व ‘रीति’ शब्द का अर्थ समझ लेना उचित रहेगा।

“रीति’ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग नवीं शताब्दी में आचार्य वामन ने किया । वामन रीति सिद्धान्त के प्रतिष्ठापक आचार्य हैं। उन्होंने रीतिरात्मा काव्यस्य’ कहकर रीति को काव्य की आत्मा कहा था।

रीति को परिभाषित करते हुए उन्होंने लिखा था- ‘विशिष्टपद रचना रीतिः । अर्थात् विशेष प्रकार से की गई पदों की संरचना रीति है।

हिन्दी के रीति’ शब्द का इस अर्थ से कोई सीधा संबंध प्रतीत नहीं होता । हिन्दी में सामान्यतः ‘रीति’ शब्द का इस अर्थ प्रणाली, तरीका अथवा ढंग किया जाता है किन्तु यह अर्थ भी ‘रीति काल’ शब्द में प्रयुक्त ‘रीति’ के व्यापक अर्थ के अनुरूप नहीं है।

संस्कृत में रीति शब्द का एक भिन्न अर्थ में भी प्रयोग हुआ हे । भोज ने रीति के लिए पंथ शब्द का प्रयोग किया। उन्होंने ‘रीगतो धातु से रीति शब्द की व्युत्पत्ति मानते हुए रीति शब्द को ‘पंथ’ या काव्यमार्ग’ का पर्याय बताया।

इस प्रकार संस्कृत में रीति शब्द दो अर्थों में प्रयुक्त होता रहा है- प्रथम, काव्यात्मा तथा विशिष्ट पदरचना के अर्थ में और द्वितीय, काव्य-रचना पद्धति के रूप में।

हिन्दी में रीति का दोनों अर्थों में प्रयोग हुआ। हिन्दी-आचार्यों ने रीति सिद्धान्त का विवेचन तो किया ही, साथ ही रीति शब्द को काव्य-रचना -पद्धति तथा काव्य-रचना के निर्देशक शास्त्र के रूप में भी ग्रहण किया।

हिन्दी के कतिपय कवियों ने रीति शब्द का प्रयोग पंथ के अर्थ में भी किया

रीति सुभाषा कविन की बरनत बुध अनुसार (चिंतामणि)।

सुकविन हूँ की कुछ कृपा समुझि कविन को पंथ (भूषण)

काव्य की रीति सिखी सुकविह्न सों (दास)

अरु कछु मुक्तक रीति लखि, कहत एक उल्लास (दास)

ताहीं को रति कहत है, रस ग्रंथन की रीति (पद्माकर)

रीति काल में रीति शब्द अकेला प्रयुक्त नहीं हुआ है अपितु कवित्त रीति, छंद रीति, कवि पंथ, मुक्तक रीति आदि रूपों में विशेषण युक्त होकर प्रयुक्त हुआ।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने रीति’ शब्द का आविष्कार नहीं किया अपितु इस शब्द को शास्त्रीय और वैज्ञानिक विधान दिया । 

शुक्ल जी से पूर्व भी रीति शब्द का प्रयोग होता रहा है । शुक्ल जी ने रीति को केवल शैली’ के अर्थ में ही नहीं अपितु एक दृष्टिकोण के अर्थ में स्वीकार किया।

शुक्लजी का मत था कि जिसने रीति ग्रंथ की रचना की हो केवल वही रीति कवि नहीं है अपितु जिसका काव्य के प्रति दृष्टिकोण रीतिबद्ध हो वह भी रीति कवि है।

रीति के व्यापक अर्थ को स्वीकार कर लेने पर इस युग को ‘रीति काल’ नाम से सम्बोधित करने में कोई बाधा नहीं रहती।

इस युग के साहित्य का एक बड़ा अंश काव्य-शस्त्र के सैद्धान्तिक विवेचन से सम्बन्धित है, और शेष उसी पर आधारित काव्य है, अतः ऐसे काव्य को रीतिबद्ध और रीतिसिद्ध काव्य कहा जा सकता है। तीसरी प्रकार का काव्य ऐसा है जो न लक्षण ग्रंथों के निर्देशानुसार लिखा गया है और न काव्य-शस्त्र का विवेचन करने वाला है।

इस वर्ग के काव्य को रीति मुक्त काव्य कहा जा सकता है। इस प्रकार रीति काल एक व्यापक एवं समर्थ नामकरण है, जिसमें इस युग की अधिकांश प्रवृत्तियों का समावेश हो जाता है।

केशव, चिंतामणि, देव आदि का काव्यांग-विवेचन रीतिबद्ध धारा का, बिहारी, सेनापति आदि का काव्यशास्त्रानुरूप नायिका-वर्णन, अलंकार-वर्णन आदि रीतिसिद्ध काव्य धारा का तथा घननान्द, आलम आदि कवियों का काव्य रीतिमुक्त काव्यधारा का प्रतीक है।

इस प्रकार हम देखते हैं कि ‘रीति’ इस युग की व्यापक प्रवृत्ति थी। वस्तुतः इस काल की कविता एक रीति विशेष में, एक धारा विशेष में बद्ध थी। चाहे काव्य-शास्त्र विवेचन हो, चाहे शृंगार-वर्णन, सभी की एक निश्चत पद्धति थी, सभी एक रीति-विशेष से लिखे जाते थे।

अतः इस युग के काव्य को रीति काल नाम से सम्बोधित करना सर्वाधिक उपयुक्त है। डॉ. भागीरथ मिश्र ने रीति काल नाम की सार्थकता पर अपने विचार व्यक्त करते हुए लिखा है- “कलाकाल कहने से कवियों की रसिकता की उपेक्षा होती है, शृंगारकाल कहने से वीर रस और राज-प्रशंसा की।

रीति काल कहने से प्रायः कोई भी महत्वपूर्ण वस्तुगत विशेषता उपेक्षित नहीं होती और प्रमुख प्रवृत्ति सामने आ जाती है। वह युग रीति-पद्धति का था । यह धारणा वास्तविक रूप से सही है।”

रीति कितने प्रकार के होते हैं?

आचार्य वामन ने रीति के तीन भेद तय किये हैं– वैदर्भी रीति, गौडी रीति, पाञ्चाली रीति। आचार्य दण्डी केवल दो ही भेद मानते हैं, वे पाञ्चाली का समर्थन नहीं करते। दण्डी, 'रीति' के स्थान पर 'मार्ग' शब्द का प्रयोग करते हैं। परवर्ती आचार्यो ने रीति के तीन से भी अधिक भेद स्थापित किये हैं

रीति से आप क्या समझते हैं?

रीति की परिभाषा :- आचार्य वामन ने रीति की परिभाषा देते हुए कहा-'विशिष्ट पद रचना रीति' अर्थात् विशेष प्रकार की पदरचना को रीति कहते हैं। ' संस्कृत साहित्य में रीति शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम आचार्य वामन ने किया था। संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य की आत्मा पर विचार करते समय रीति-सम्प्रदाय का प्रवर्तन आचार्य वामन ने किया।

रीतिकाल को कितने भागों में विभाजित किया गया है?

आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने रीतिकाल को 'श्रृंगारकाल' नाम देते हुए उसे तीन वर्गां में विभाजित किया- 1. रीतिबद्ध 2. रीति सिद्ध 3. रीतिमुक्त।

रीतिरात्मा काव्यस्य यह किसकी परिभाषा है?

आचार्य. वामन की है। उनके अनुसार काव्य का नित्य धर्म माधुर्य, प्रसाद और ओज आदि गुण ही है तथा इन्ही गुणों पर आधारित रीतियाँ ही काव्य की अंतरात्मा है।