राष्ट्रवाद के विकास में निम्नलिखित में से कौन सा तत्व सहायक रहा? - raashtravaad ke vikaas mein nimnalikhit mein se kaun sa tatv sahaayak raha?

Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 7 राष्ट्रवाद Important Questions and Answers. 

RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 7 राष्ट्रवाद

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1. 
दिल्ली में आयोजित होने वाली गणतन्त्र दिवस परेड प्रतीक है
(क) राष्ट्रवाद का 
(ख) उदारवाद का
(ग) समानता का 
(घ) समाजवाद का। 
उत्तर:
(क) राष्ट्रवाद का 

राष्ट्रवाद के विकास में निम्नलिखित में से कौन सा तत्व सहायक रहा? - raashtravaad ke vikaas mein nimnalikhit mein se kaun sa tatv sahaayak raha?
 

प्रश्न 2. 
कुर्यों द्वारा निम्न में से किस देश में पृथकतावादी आन्दोलन चलाया जा रहा है
(क) स्पेन में
(ख) इराक में
(ग) भारत में 
(घ) श्रीलंका में। 
उत्तर:
(ख) इराक में

प्रश्न 3.
निम्न में राष्ट्रवाद को प्रेरणा देने वाला तत्व नहीं है
(क) भू-क्षेत्र
(ख) साझे विश्वास 
(ग) इतिहास 
(घ) साम्प्रदायिकता।
उत्तर:
(घ) साम्प्रदायिकता।

प्रश्न 4.
डिस्कवरी ऑफ इंडिया' नामक पुस्तक के लेखक हैं
(क) महात्मा गाँधी
(ख) पं. जवाहरलाल नेहरू 
(ग) चन्द्रशेखर आजाद
(घ) रवीन्द्र नाथ ठाकुर। 
उत्तर:
(ख) पं. जवाहरलाल नेहरू 

प्रश्न 5. 
निम्न में से देशभक्ति की समालोचना करने वाले प्रमुख विचारक थे
(क) पं. जवाहरलाल नेहरू 
(ख) रवीन्द्रनाथ टैगोर 
(ग) महात्मा गाँधी 
(घ) लोकमान्य तिलक 
उत्तर:
(ख) रवीन्द्रनाथ टैगोर 

निम्न में से सत्य अथवा असत्य कथन बताइए.
(क) राष्ट्रवाद की धारणा के केवल फायदे हैं, इसके कोई नुकसान नहीं होते। 
(ख) भू-क्षेत्र राष्ट्रवाद की धारणा को प्रेरणा देने वाला कारक है। 
(ग) राष्ट्रवाद प्रत्येक सीमा से परे होता है। 
(घ) राष्ट्र समाज के अन्य समुदायों से भिन्न एक काल्पनिक समुदाय होता है। 
उत्तर:
(क) असत्य
(ख) सत्य
(ग) असत्य
(घ) सत्य।

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न (उत्तर सीमा-20 शब्द)

प्रश्न 1. 
राष्ट्रवाद का अध्ययन करना क्यों जरूरी होता है ?
उत्तर:
राष्ट्रवाद का अध्ययन करना जरूरी होता है क्योंकि यह पूरी दुनिया में विभिन्न देशों से सम्बन्धित मामलों (वैश्विक मामलों) में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 

प्रश्न 2. 
राष्ट्रवाद के प्रति आम समझ के अनुसार 'राष्ट्रवाद' क्या है ?
अथवा 
राष्ट्रवाद शब्द के प्रति आम समझ क्या है?
उत्तर:
राष्ट्रवाद के प्रति आम धारणा के अनुसार राष्ट्रवाद देशभक्ति, राष्ट्रीय झंडे के प्रति निष्ठा व देश के लिए त्याग और बलिदान की भावनाओं का सामूहिक रूप है।

प्रश्न 3. 
आधुनिक जर्मनी और इटली के एकीकरण में किस धारणा का सर्वाधिक योगदान रहा ? 
उत्तर:
आधुनिक जर्मनी और इटली के एकीकरण में 'राष्ट्रवाद' की धारणा का प्रमुख योगदान रहा।

प्रश्न 4. 
यूरोप में 20वीं सदी के आरम्भ में ऑस्ट्रिया और हंगरी जैसे साम्राज्यों का विघटन किस धारणा के कारण हुआ ?
उत्तर:
यूरोप में 20वीं सदी के आरम्भ में ऑस्ट्रिया और हंगरी जैसे साम्राज्यों का विघटन राष्ट्रवादी धारणा के कारण हुआ। 

प्रश्न 5.
19वीं तथा 20वीं शताब्दी में राष्ट्रवाद ने कैसे राज्यों की स्थापना का मार्ग दिखाया ?
उत्तर:
19वीं, 20वीं सदी में राष्ट्रवाद ने छोटी-छोटी रियासतों के एकीकरण से बड़े व शक्तिशाली राष्ट्र-राज्यों की स्थापना का मार्ग दिखाया।

प्रश्न 6. 
20वीं सदी के मध्य से प्रारम्भ हुए दो राष्ट्रवादी संघर्षों के नाम बताइए जोकि वर्तमान राष्ट्रों के विभाजन की बात कर रहे हैं।
उत्तर:
20वीं सदी के मध्य से प्रारम्भ हुए ऐसे दो संघर्षों के उदाहरण हैं

  1. इराक में कुर्दो का राष्ट्रवादी संघर्ष व 
  2. स्पेन में बास्कवासियों का राष्ट्रवादी संघर्ष।

प्रश्न 7. 
राष्ट्र किस प्रकार का समुदाय होता है ?
उत्तर:
राष्ट्र एक प्रकार का काल्पनिक' समुदाय होता है। यह अपने सदस्यों के सामूहिक विश्वास, आकांक्षाओं और कल्पनाओं के सहारे एक सूत्र में बंधा होता है।

प्रश्न 8. 
राष्ट्र के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाने वाले किन्हीं दो तत्वों के नाम बताइए।
उत्तर:
राष्ट्र के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाने वाले दो प्रमुख तत्व हैं

  1. साझा विश्वास और
  2. इतिहास।

राष्ट्रवाद के विकास में निम्नलिखित में से कौन सा तत्व सहायक रहा? - raashtravaad ke vikaas mein nimnalikhit mein se kaun sa tatv sahaayak raha?

प्रश्न 9. 
किसी विशेष भू-भाग पर लम्बे समय तक रहने से लोगों को राष्ट्रवाद के सम्बन्ध में किस बात का बोध होता है ?
उत्तर:
किसी विशेष भू-भाग पर लम्बे समय तक रहने से लोगों में एक सामूहिक पहचान की भावना पैदा होती है। यह भावना उन्हें राष्ट्र के निर्माण के लिए प्रेरित करती है।

प्रश्न 10. 
लोकतंत्र की कौन-सी बात राष्ट्र के निर्माण का अत्यधिक आवश्यक आधार होती है ?
उत्तर:
लोकतन्त्र में कुछ राजनीतिक मूल्यों और आदर्शों के लिए साझी प्रतिबद्धता ही वह महत्वपूर्ण बात है जो राष्ट्र के निर्माण का अति आवश्यक आधार होती है।

प्रश्न 11. 
लोकतांत्रिक राष्ट्र अपनी सामूहिक पहचान किस आधार पर बनाते हैं ? 
उत्तर:
लोकतांत्रिक राष्ट्र अपनी सामूहिक पहचान साझे राजनीतिक आदर्शों के आधार पर निर्मित करते हैं। 

प्रश्न 12. 
राष्ट्रों के लिए आत्म-निर्णय के अधिकार का क्या मतलब होता है ?
उत्तर:
राष्ट्रों के लिए आत्म-निर्णय के अधिकार का मतलब होता है, राष्ट्रों को अपने आप शासन करने और अपने भविष्य को तय करने का अधिकार होना।

प्रश्न 13. 
राष्ट्र अपने आत्म-निर्णय के दावे में अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय से क्या माँग करता है ?
उत्तर:
राष्ट्र अपने आत्म-निर्णय के दावे में दुनिया के विभिन्न देशों से यह माँग करता है कि दुनिया के विभिन्न देशों द्वारा उसके राज्य के दर्जे को मान्यता दी जाए तथा राष्ट्र के रूप में उसे स्वीकार किया जाए।

प्रश्न 14. 
आधुनिक बास्क में राष्ट्रवादी आन्दोलन की शुरुआत कब हुई ?
उत्तर:
आधुनिक बास्क में राष्ट्रवादी आन्दोलन की शुरुआत तब हुई जब 19वीं सदी के अन्त में स्पेनी शासकों ने उसकी विशिष्ट राजनीतिक-प्रशासनिक व्यवस्था को समाप्त करने की कोशिश की। 

प्रश्न 15. 
स्पेन के बास्क में राष्ट्रवादी आन्दोलन के नेताओं की क्या लालसा है ?
अथवा 
बास्क राष्ट्रवादी आन्दोलन के नेता क्या चाहते हैं?
उत्तर:
स्पेन के बास्क में राष्ट्रवादी आन्दोलन के नेता यह चाहते हैं कि बास्क स्पेन से अलग होकर एक स्वतंत्र देश बन जाए।

प्रश्न 16. 
'एक संस्कृति-एक राज्य' की माँग का क्या आशय है ?
उत्तर:
'एक संस्कृति- एक राज्य' की माँग का आशय यह है कि एक समान संस्कृति को साझा करने वाले लोगों को एक अलग राज्य के रूप में मान्यता दी जाए।

प्रश्न 17. 
किस राष्ट्र-राज्य के लिए अपने सदस्यों की निष्ठा प्राप्त करना मुश्किल होता है ?
उत्तर:
जो राष्ट्र-राज्य अपने शासन में अल्पसंख्यक समूहों के अधिकारों और सांस्कृतिक पहचान का सम्मान नहीं करता उसके लिए अपने सदस्यों की निष्ठा प्राप्त करना मुश्किल होता है।

प्रश्न 18. 
लोकतांत्रिक राष्ट्रों में अल्पसंख्यक समूहों को भी अधिकार क्यों दिए जाते हैं ?
उत्तर:
लोकतांत्रिक राष्ट्रों में अल्पसंख्यक समूहों को अधिकार इसलिए दिये जाते हैं क्योंकि राष्ट्र को उन्हें राष्ट्रीय समुदाय के अंग के रूप में मान्यता देनी होती है।

प्रश्न 19. 
वर्तमान राष्ट्र-राज्यों को पृथक राष्ट्र की माँग करने वाले संघर्षों से निपटने के लिए किन गुणों का सहारा लेना चाहिए ?
उत्तर:
वर्तमान राष्ट्र-राज्यों को पृथक राष्ट्र की माँग करने वाले संघर्षों से निपटने के लिए उदारता, धैर्य एवं सहनशीलता जैसे गुणों का सहारा लेना चाहिए।

प्रश्न 20. 
राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार को आमतौर पर किस रूप में समझा जाता था ?
उसर:
राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अधिकार को आमतौर पर इस रूप में समझा जाता था कि इसमें राष्ट्रीयताओं के लिए स्वतन्त्र राज्य का अधिकार भी शामिल है।

प्रश्न 21. 
क्या हमें राष्ट्रवाद के असहिष्णु और एकजातीय स्वरूपों के साथ कोई सहानुभूति बरतनी चाहिए?
उत्तर:
नहीं, हमें राष्ट्रवाद के असहिष्णु और एकजातीय स्वरूपों के साथ कोई सहानुभूति नहीं बरतनी चाहिए क्योंकि यह राज्य को विघटित करने वाली नाजायज माँगें हैं।

लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (SA,) (उत्तर सीमा-40 शब्द)

प्रश्न 1. 
आमतौर पर किन विविधताओं को राष्ट्रवाद से जोड़ा जाता है ?
उत्तर:
आमतौर पर यदि जनता की राय ली जाए तो हम इस सिलसिले में देशभक्ति, राष्ट्रीय ध्वज, देश के लिए बलिदान जैसी बातें सुनते हैं। इसी प्रकार राष्ट्रीय उत्सवों और इनमें दिखाई जाने वाली विविधताओं को भी राष्ट्रवाद के रूप में देखा जाता है। आमतौर पर कई लोग इन्हीं विविधताओं को राष्ट्रवाद से जोड़ते हैं। लेकिन वास्तव में राष्ट्रवाद का सम्बन्ध केवल इतना ही नहीं होता। 

प्रश्न 2. 
19वीं, 20वीं सदी में राष्ट्रवाद एक प्रभावी राजनीतिक सिद्धान्त के रूप में उभरा, कैसे ?
अथवा 
"पिछली शताब्दियों के दौरान राष्ट्रवाद एक ऐसे सम्मोहक राजनीतिक सिद्धांत के रूप में उभरा है जिसने इतिहास रचने में योगदान दिया है।" इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
19वीं, 20वीं सदी में राष्ट्रवाद एक ऐसा राजनीतिक सिद्धान्त बनकर उभरा था, जिसने एक तरफ जनता को जोड़ा तो दूसरी तरफ उसे विभाजित भी किया। इसने अत्याचारी शासन से मुक्ति दिलाने में मदद की तो इसके साथ ही यह विरोध, कटुता और युद्धों का कारण भी रहा है। इस प्रकार राष्ट्रवाद को 19वीं, 20वीं सदी का दोनों ही रूपों में एक प्रभावी सिद्धान्त माना जा सकता है।

राष्ट्रवाद के विकास में निम्नलिखित में से कौन सा तत्व सहायक रहा? - raashtravaad ke vikaas mein nimnalikhit mein se kaun sa tatv sahaayak raha?

प्रश्न 3. 
राष्ट्रवाद ने किस प्रकार बड़े साम्राज्यों का विघटन किया ?
उत्तर:
राष्ट्रवाद ने 20वीं सदी के आरम्भ में बड़े-बड़े साम्राज्यों में शामिल विभिन्न राष्ट्रों में स्वाधीनता आन्दोलन की लहर चला दी। धीरे-धीरे यह लहर पूरे विश्व में फैल गयी। इस प्रकार बड़े-बड़े साम्राज्यों, जैसे-ऑस्ट्रिया, हंगरी, ब्रिटेन आदि के लिए अपने राष्ट्रों पर कब्जा बनाए रखना मुश्किल हो गया। इन साम्राज्यों का विघटन राष्ट्रवादी भावना व आन्दोलनों के चलते प्रारम्भ हो गया।

प्रश्न 4. 
राष्ट्रवाद से पराधीन राष्ट्रों को क्या लाभ प्राप्त हुआ ?
उत्तर:
राष्ट्रवाद की तीव्र भावना ने पराधीन राष्ट्रों को विदेशी ताकतों के खिलाफ पूरी शक्ति के साथ संघर्ष के लिए प्रेरित किया। इससे पराधीन राष्ट्र स्वतन्त्र हुए। इन नए राष्ट्रों के लोगों ने एक नई राजनीतिक पहचान प्राप्त की। यह पहचान एक स्वतन्त्र राष्ट्र-राज्य की सदस्यता पर आधारित थी। इस प्रकार राष्ट्रवाद ने पराधीन राष्ट्रों को आत्मनिर्भर व स्वतन्त्र बनाकर महत्वपूर्ण लाभ पहुँचाया।

प्रश्न 5. 
1960 के दशक से राष्ट्रवाद, राष्ट्र-राज्यों के लिए किस प्रकार एक चुनौती बन गया ?
उत्तर:
1960 के दशक से अनेक राष्ट्र-राज्यों में कई समूहों और क्षेत्रों ने राष्ट्रवादी माँगें उठाना प्रारम्भ कर दिया। इन माँगों में एक पृथक राज्य की मांग भी शामिल थी। आज इस माँग के चलते दुनिया के अनेक भागों में राष्ट्रवादी संघर्ष चल रहे हैं। ये संघर्ष, हिंसा और रक्तपात का रास्ता भी अपनाते हैं। इस प्रकार अपने इस विकृत रूप में राष्ट्रवाद राष्ट्र-राज्यों के लिए एक चुनौती बन गया। 

प्रश्न 6. 
'राष्ट्र' की परिवार से क्या भिन्नताएँ हैं ?
अथवा 
राष्ट्र, परिवार से किस रूप में भिन्न है? बताइए।
उत्तर:
ष्ट्र को कई बार परिवार के समान समझ लिया जाता है परन्तु यह पूरी तरह भिन्न है। परिवार में सदस्यों का एक-दूसरे से प्रत्यक्ष सम्बन्ध होता है। परिवार में प्रत्येक सदस्य दूसरे सदस्यों के व्यक्तित्व और चरित्र के बारे में व्यक्तिगत जानकारी रखता है जबकि राष्ट्र के मामले में हम देखते हैं कि इसके सदस्य एक दूसरे से काफी हद तक अपरिचित होते हैं। अत: 'राष्ट्र' और परिवार में काफी भिन्नताएँ हैं।

प्रश्न 7. 
क्या राष्ट्र को जनजातीय, जातीय या अन्य सगोत्रीय समूहों के समान माना जा सकता है?
उत्तर:
नहीं, राष्ट्र को जनजातीय, जातीय या अन्य सगोत्रीय समूहों के समान नहीं माना जा सकता है। इसका कारण यह है कि इन समूहों में 'विवाह' और 'वंश परम्परा' सदस्यों को आपस में जोड़ती है। जबकि राष्ट्र के मामले में यह बात लागू नहीं होती। हमें राष्ट्र के सदस्यों से वंश या विवाह के आधार पर सम्बन्ध खोजने की जरूरत नहीं पड़ती।

प्रश्न 8. 
आम लोगों की धारणा के अनुसार राष्ट्र का निर्माण किन समूहों द्वारा होता है ?
उत्तर:
आम लोगों की धारणा के अनुसार राष्ट्रों का निर्माण ऐसे समूहों द्वारा किया जाता है जो कुल (वंश), भाषा, धर्म या फिर जातीयता जैसी निश्चित पहचान के सहभागी होते हैं। लेकिन वास्तव में राष्ट्र में ऐसे किसी भी निश्चित विशिष्ट गुण का अभाव होता है। राष्ट्रों के निर्माण में कुल, भाषा, धर्म या जाति के आधार पर सहभागी होना जरूरी नहीं होता।

प्रश्न 9. 
राजनीतिक सिद्धान्त की दृष्टि से 'राष्ट्र' क्या है?
उत्तर:
राजनीतिक सिद्धान्त के तहत हम यह मानते हैं कि राष्ट्र लोगों का कल्पना पर आधारित एक 'समुदाय' होता है। यह समुदाय अपने सदस्यों के सामूहिक विश्वास, आकांक्षाओं और कल्पनाओं के सहारे ही एक सूत्र में बंधा होता है। राष्ट्र कुछ विशेष मान्यताओं पर आधारित होता है। ये मान्यताएँ लोगों द्वारा अपनी राजनीतिक व सामुदायिक पहचान बनाने के लिए अपनायी जाती

प्रश्न 10. 
राष्ट्र के निर्माण में साझे विश्वास का अर्थ स्पष्ट करें।
उत्तर:
राष्ट्र के निर्माण में साझे विश्वास की बड़ी भूमिका होती है। इसका अर्थ होता है कि लोग अपने बेहतर राजनीतिक व सामाजिक जीवन तथा पहचान के लिए कुछ बातों को सामूहिक तौर पर जरूरी मानते हैं तथा इन पर विश्वास करते हैं। इस प्रकार समाज में एक साझा विश्वास पैदा हो जाता है। यह विश्वास सभी लोगों को राष्ट्र के निर्माण, विकास व रक्षा के लिए प्रेरित करता है।

प्रश्न 11. 
राष्ट्रवाद को इतिहास किस प्रकार प्रेरणा प्रदान करता है ?
उत्तर:
इतिहास राष्ट्रवाद को प्रेरणा देने वाला प्रमुख तत्व है। जो लोग अपने को एक राष्ट्र मानते हैं, उनके भीतर अपने बारे में अधिकांश तौर पर ऐतिहासिक पहचान की भावना होती है। ये लोग देश की स्थायी पहचान का खाका प्रस्तुत करने के लिए साझी स्मृतियों, ऐतिहासिक अभिलेखों की रचना के माध्यम से अपने लिए इतिहास बोध निर्मित करते हैं। इस प्रकार इतिहास राष्ट्रवाद को प्रेरणा प्रदान करने वाला तत्व बन जाता है।

प्रश्न 12. 
पं. जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक 'डिस्कवरी ऑफ इंडिया' में किस प्रकार भारतीय राष्ट्रवाद को इतिहास से जोड़ा है ?
उत्तर:
पं. जवाहरलाल नेहरू ने अपनी पुस्तक 'डिस्कवरी ऑफ इण्डिया' में लिखा है "हालांकि बाहरी रूप में लोगों में विविधता और अनगिनत विभिन्नताएँ थीं, लेकिन हर जगह एकात्मकता की वह जबरदस्त छाप थी जिसने हमें युगों तक साथ जोड़े रखा, चाहे हमें जो भी राजनीतिक भविष्य या दुर्भाग्य झेलना पड़ा हो।" इस प्रकार पं. नेहरू ने बहुत ही बेहतर ढंग से भारतीय राष्ट्रवाद को इतिहास से प्रेरणा प्रदान की।

प्रश्न 13. 
"इस बात में कोई आश्चर्य नहीं कि लोग स्वयं को एक राष्ट्र के रूप में देखते हैं, एक गृहभूमि की बात करते हैं।" स्पष्ट कीजिए।।
उत्तर:
किसी विशेष भू-क्षेत्र में लम्बे समय तक साथ-साथ रहना और उससे जुड़ी साझे अतीत की यादें लोगों को एक सामूहिक पहचान का बोध देती हैं। ये उन्हें एक होने का अहसास भी देती हैं। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि इस बात में कोई आश्चर्य नहीं कि लोग स्वयं को एक राष्ट्र के रूप में देखते हैं, एक गृहभूमि की बात करते हैं। वास्तव में यह एक स्थान पर रहते हुए लोगों की स्वाभाविक प्रतिक्रिया होती है।

प्रश्न 14. 
वे कौन-सी शर्ते हैं, जिनके आधार पर लोग साथ-साथ आना और एक राष्ट्र के रूप में रहना चाहते हैं ?
उत्तर:
किसी भी राष्ट्र के सदस्यों की इस बारे में एक साझा दृष्टि होती है कि वे किस तरह का राज्य बनाना चाहते हैं। बाकी बातों के अलावा वे लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और उदारवाद जैसे राजनीतिक मूल्यों व सिद्धान्तों को स्वीकार करते हैं। वास्तव में ये ही वे शर्ते हैं जिनके आधार पर लोग साथ-साथ आना और एक राष्ट्र के रूप में साथ रहना चाहते हैं।

प्रश्न 15. 
राष्ट्र के मजबूत होने में लोगों के दायित्व किस प्रकार महत्वपूर्ण होते हैं ?
उत्तर:
एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक मूल्यों और आदर्शों के लिए साझी प्रतिबद्धता ही किसी राजनीतिक समुदाय या राष्ट्र का सर्वाधिक वांछित आधार होता है। इसके अन्तर्गत राजनीतिक समुदाय के सदस्य कुछ निश्चित दायित्वों से बंधे होते हैं। ये दायित्व सभी लोगों में नागरिकों के रूप में अधिकारों को पहचान लेने से पैदा होते हैं। यदि राष्ट्र के नागरिक दूसरे नागरिकों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को जान और मान लेते हैं तो राष्ट्र निश्चित तौर पर मजबूत होता है।

राष्ट्रवाद के विकास में निम्नलिखित में से कौन सा तत्व सहायक रहा? - raashtravaad ke vikaas mein nimnalikhit mein se kaun sa tatv sahaayak raha?

प्रश्न 16. 
स्पेन में बास्क राष्ट्रवादी अलग राज्य की मांग के लिए क्या दलीलें (तक) देते हैं ?
उत्तर:
स्पेन में बास्क राष्ट्रवादियों की अलग राज्य की मांग के सम्बन्ध में प्रमुख दलीलें (तर्क) है कि उनकी संस्कृति स्पेन की संस्कृति से अलग है। उनकी अपनी भाषा है, जो स्पेनी भाषा से बिल्कुल नहीं मिलती। बास्क क्षेत्र की पहाड़ी भू-संरचना उसे शेष स्पेन से भौगोलिक तौर पर अलग करती है। इन दलीलों के आधार पर बास्क के राष्ट्रवादी 'बास्क' को स्पेन से अलग एक स्वतन्त्र राष्ट्र बनाए जाने की बात करते हैं।

प्रश्न 17. 
यदि हम 'एक संस्कृति-एक राज्य के विचार को त्यागते है तो हमारे लिए क्या जरूरी हो जाता है ?
उत्तर:
यदि हम 'एक संस्कृति एक राज्य के विचार को त्यागते हैं तो हमारे लिए यह जरूरी हो जाता है कि हम ऐसे तरीकों के बारे में सोचें जिसमें विभिन्न संस्कृतियों और समुदायों को एक ही देश में सुरक्षा दी जा सके। एक ही देश में विभिन्न संस्कृतियों के प्रचार-प्रसार की स्थितियों को निश्चित करना भी हमारे लिए जरूरी हो जाता है। उदाहरण के लिए भारतीय संविधान में धर्म, भाषा एवं संस्कृति को सुरक्षा प्रदान की गई है। 

लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (SA) (उत्तर सीमा-100 शब्द)

प्रश्न 1. 
"राष्ट्रवाद अपने उदय व विकास के क्रम में कई घरणों से गुजरा है।" विवेचना कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रवाद का उदय 19वीं सदी की प्रमुख घटना थी। यह 20वीं सदी तक अपने विकासक्रम में कई चरणों से गुजरा है। उदाहरण के लिए : 19वीं सदी के यूरोप में इसने कई छोटी-छोटी रियासतों के एकीकरण से बड़े-बड़े राष्ट्र- राज्यों की स्थापना का मार्ग दिखाया। आज के जर्मनी, इटली इत्यादि शक्तिशाली राष्ट्र-राज्यों का गठन और एकीकरण इसी धारणा की देन है। लैटिन अमेरिका में भी बड़ी संख्या में नए राज्य स्थापित किए गए थे। लेकिन दूसरी ओर राष्ट्रवाद बड़े-बड़े साम्राज्यों के पतन में भी हिस्सेदार रहा है। यूरोप में 20वीं सदी के आरम्भ में आस्ट्रिया और हंगरी जैसे विशाल साम्राज्य तथा एशिया और अफ्रीका में ब्रिटिश, फ्रांसीसी, डच और पुर्तगाली साम्राज्यों के विघटन में भी राष्ट्रवाद ही मूल कारण था। भारत तथा अन्य पूर्व उपनिवेशों के औपनिवेशिक शासन से स्वतन्त्र होने के संघर्ष भी राष्ट्रवादी संघर्ष ही थे। इस प्रकार हम देखते हैं कि राष्ट्रवाद अपने उदय व विकास के क्रम में कई चरणों से गुजरा है।

प्रश्न 2. 
"राष्ट्र जनता का कोई आकस्मिक समूह नहीं है।" इस कथन की व्याख्या करें।
उत्तर:
राष्ट्र समाज में पाए जाने वाले विभिन्न समूहों की भाँति ही जनता का कोई अचानक बनाया गया समूह नहीं है। लेकिन यह मानव समाज में पाए जाने वाले समूहों अथवा समुदायों से अलग है। राष्ट्र का निर्माण रातों रात नहीं होता है। राष्ट्र एक लम्बी विकास प्रक्रिया का परिणाम होते हैं। राष्ट्र के निर्माण के लिए लोगों में पहले एक साझा विश्वास पैदा होता है। यह विश्वास अचानक एक या दो दिन में नहीं बल्कि लम्बे समय तक एक स्थान पर साथ रहने के कारण उत्पन्न होता है। इसी विश्वास के आधार पर लोग एक राजनीतिक पहचान की कल्पना करते हैं। इस कल्पना में कई राजनीतिक आदर्श शामिल होते हैं। इस प्रकार इन्हीं कल्पनाओं को पूरा करने के लिए एक राष्ट्र व राष्ट्रीयता की भावना उत्पन्न होती है। यह भावना राष्ट्र की माँग प्रस्तुत करती है। इस प्रकार राष्ट्र एक काल्पनिक समुदाय के रूप में अस्तित्व में आता है। अतः निःसन्देह राष्ट्र जनता द्वारा अचानक बनाया गया समुदाय नहीं है।

प्रश्न 3. 
राष्ट्र में सदस्य सीधे तौर पर अन्य सदस्यों को कभी नहीं जान पाते हैं, फिर भी राष्ट्रों का अस्तित्व है, क्यों?
उत्तर:
राष्ट्र में सदस्य सीधे तौर पर अन्य सदस्यों को कभी नहीं जान पाते हैं, फिर भी राष्ट्रों का अस्तित्व है, इसके निम्नलिखित कारण हैं
(i) लोगों में सामुदायिक पहचान कायम करने की भावना-भले ही एक राष्ट्र के लोग आपस में एक-दूसरे को सीधे तौर पर न मिल पाते हों फिर भी उनमें अपने क्षेत्र, संस्कृति इत्यादि के आधार पर एक सामूहिक पहचान बनाने की सामान्य भावना होती है। यह भावना लोगों को एक कर देती है और इसी कारण राष्ट्र अस्तित्व में बने रहते हैं।

(ii) सामान्य राजनीतिक सिद्धान्तों पर सहमति-प्रत्येक राष्ट्र के अधिकांश सदस्य कुछ सामान्य राजनीतिक मूल्यों व आदर्शों, जैसे-लोकतंत्र, स्वतन्त्रता, समानता, धर्मनिरपेक्षता इत्यादि के मामले पर सामान्यतया सहमत होते हैं। इस सहमति का निर्माण सामूहिक तौर पर एक-दूसरे को जाने बिना ही हो जाता है। यह सहमति भी राष्ट्रों को अनिवार्य रूप से अस्तित्व में बनाए रखती है। इस प्रकार उपर्युक्त कारणों से लोगों के एक-दूसरे को सीधे तौर पर न जानने के बावजूद राष्ट्र अस्तित्व में बने रहते हैं। 

प्रश्न 4.
किन मायनों में राष्ट्र की तुलना एक टीम से की जा सकती है ?
उत्तर:
राष्ट्र विश्वास के जरिये बनता है। राष्ट्र पहाड़, नदी या भवनों की तरह नहीं होते, जिन्हें हम देख सकते हैं और जिनका स्पर्श महसूस कर सकते हैं। किसी समाज के लोगों को राष्ट्र की संज्ञा देना उनके शारीरिक लक्षणों या आचरण पर टिप्पणी करना नहीं है। यह समूह के भविष्य के लिए सामूहिक पहचान और दृष्टि का प्रमाण है, जो स्वतन्त्र राजनीतिक अस्तित्व का आकांक्षी है। इस मायने में राष्ट्र की तुलना किसी टीम से की जा सकती है। जब हम टीम की बात करते हैं तो हमारा आशय लोगों के ऐसे समूह से है, जो एक साथ काम करते हों और इससे भी ज्यादा जरूरी है कि वे स्वयं को एक समूह मानते हों। यदि वे अपने बारे में इस तरह नहीं सोचते तो एक टीम की उनकी हैसियत खत्म हो जाएगी। इन्हीं मान्यताओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि एक राष्ट्र का अस्तित्व तभी कायम रहता है, जब उसके सदस्यों को यह विश्वास हो कि वे एक-दूसरे के साथ हैं।

प्रश्न 5.
राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने वाले किन्हीं दो तत्वों का संक्षेप में वर्णन कीजिए। 
उत्तर:
राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने वाले तत्व-राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने वाले दो प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं
(i) इतिहास-जो लोग अपने को एक राष्ट्र के रूप में मानते हैं उनके भीतर अपने बारे में स्थायी ऐतिहासिक पहचान की भावना होती है। लोग देश की स्थायी पहचान का नमूना प्रस्तुत करने के लिए साझी यादों, कहानियों और ऐतिहासिक अभिलेखों की रचना करते हैं। लोग इनके जरिये अपने लिए एक इतिहास बोध निर्मित करते हैं। इस प्रकार स्पष्ट रूप से इतिहास राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने वाला प्रमुख तत्व है।

(ii) भू-क्षेत्र-कई राष्ट्रों की पहचान एक खास भौगोलिक क्षेत्र से जुड़ी हुई होती है। किसी विशेष भू-क्षेत्र पर लम्बे समय तक साथ-साथ रहना और उससे जुड़ी साझे अतीत की यादें लोगों को एक सामूहिक पहचान की समझ व अहसास प्रदान करती हैं। इसी कारण लोग स्वयं को एक राष्ट्र के रूप में देखने लगते हैं और एक गृहभूमि की बात करते हैं। इस प्रकार 'भू-क्षेत्र' भी राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने वाला महत्वपूर्ण तत्व प्रतीत होता है।

प्रश्न 6. 
साझे राजनीतिक आदर्श क्या हैं ? ये राष्ट्रवाद के विकास के लिए किस प्रकार उपयोगी होते हैं ?
उत्तर:
साझे राजनीतिक आदर्श समाज में भिन्न-भिन्न प्रकार के लोग रहते हैं। इनकी आवश्यकताएँ, हित व संस्कृतियाँ भी अलग-अलग होती हैं। परन्तु ये सभी लोग कुछ सामान्य राजनीतिक मूल्यों, जैसे-लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, उदारवाद इत्यादि पर समान रूप से सहमत होते हैं। इन राजनीतिक मूल्यों को ही उस समाज के साझे राजनीतिक आदर्श माना जाता है। राष्ट्रवाद के विकास में उपयोगिता–साझे राजनीतिक आदर्शों की राष्ट्रवाद के विकास में बहुत उपयोगिता होती है। राष्ट्र के सदस्यों की इनके बारे में साझा व समान दृष्टि होती है।

वे इस बात पर भी सहमत होते हैं कि वे किस तरह का राज्य बनाना चाहते हैं ? बाकी बातों के अलावा वे लोकतंत्र, स्वतन्त्रता, समानता, धर्मनिरपेक्षता इत्यादि सिद्धान्तों को समान रूप से स्वीकार करते हैं। इस प्रकार साझा राजनीतिक आदर्श ही वे शर्ते हैं जिनके आधार पर वे साथ-साथ आना और रहना चाहते हैं। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि यह विचार राष्ट्र के रूप में उनकी राजनीतिक पहचान को बताते हैं। इस प्रकार राष्ट्रवाद के विकास में साझा राजनीतिक आदर्श बहुत ही उपयोगी प्रतीत होते हैं।

राष्ट्रवाद के विकास में निम्नलिखित में से कौन सा तत्व सहायक रहा? - raashtravaad ke vikaas mein nimnalikhit mein se kaun sa tatv sahaayak raha?

प्रश्न 7. 
राष्ट्रीय आत्म-निर्णय की माँग से सम्बन्धित स्पेन में बास्क के राष्ट्रवादी आन्दोलन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
राष्ट्रीय आत्म-निर्णय की माँग आज दुनिया के विभिन्न भागों में उठ रही है। इसी तरह का एक ज्वलन्त मामला स्पेन में 'बास्क' के राष्ट्रवादी आन्दोलन का है। 'बास्क' स्पेन का एक पहाड़ी और समृद्ध क्षेत्र है। इस क्षेत्र को स्पेन की सरकार ने स्पेन राज्यसंघ के अन्तर्गत 'स्वायत्त' क्षेत्र का दर्जा दे रखा है। 'बास्क' के राष्ट्रवादी आन्दोलनकारी इस स्वायत्तता से सन्तुष्ट नहीं हैं। वे 'बास्क' को स्पेन से पृथक एक स्वतन्त्र राष्ट्र बनाने की माँग कर रहे हैं।

बास्क राष्ट्रवादियों का कहना है कि उनकी संस्कृति स्पेन की सामान्य संस्कृति से बहुत अलग है। उनकी अपनी भाषा है, वह भी स्पेनी भाषा से बिल्कुल भिन्न है। रोमन काल से अब तक बास्क क्षेत्र ने स्पेनी शासकों के साथ अपनी स्वायत्तता का कभी समर्पण नहीं किया है। 20वीं सदी में स्पेनी तानाशाह फ्रेंको की दमनात्मक नीतियों ने बास्क के राष्ट्रवादी आन्दोलन को और भड़का दिया। हालांकि बाद में लोकतांत्रिक सरकार ने बास्क को उसकी स्वायत्तता लौटाकर समस्या का समाधान किया। परन्तु अब भी 'बास्क' में राष्ट्रवादी आन्दोलनकारी पृथक राज्य की माँग में लगे हुए हैं।

प्रश्न 8. 
क्या संस्कृतियों के आधार पर राष्ट्रों का निर्माण करने से पृथक राज्य की माँगें समाप्त हो सकती हैं? यदि नहीं तो उचित कारणों को समझाइए।
उत्तर:
19वीं सदी में यूरोप में एक संस्कृति-एक राष्ट्र' के दावे सामने आए। अत: पहले विश्वयुद्ध के बाद राज्यों की दुबारा व्यवस्था में इस विचार को अपनाया गया। परन्तु यह भी अलग राज्य की माँगों को रोकने में सफल नहीं हुआ। वर्साय की सन्धि में बहुत से छोटे और नव-स्वतन्त्र राज्यों का गठन हुआ लेकिन इससे भी आत्म-निर्णय की उठने वाली माँगों को समाप्त न किया जा सका। इसी प्रकार 'एक संस्कृति एक राज्य' की माँगों को सन्तुष्ट करने के लिए राज्यों की सीमाओं में बदलाव भी किए गए।

इससे सीमाओं के एक ओर से दूसरी ओर बहुत बड़ी जनसंख्या का विस्थापन हुआ। इसके परिणामस्वरूप लाखों लोगों के घर उजड़ गए और उस जगह से उन्हें बाहर धकेल दिया गया जहाँ पीढ़ियों से उनका घर था। बहुत सारे लोग साम्प्रदायिक हिंसा का शिकार बने। इस प्रकार हम स्पष्ट रूप से कह सकते हैं कि संस्कृतियों के आधार पर राष्ट्रों का निर्माण करने से पृथक राज्य की माँग समाप्त होना निश्चित नहीं है।

प्रश्न 9. 
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने किस प्रकार मानवता को राष्ट्रवाद से ऊँचा बताया है ?
उत्तर:
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने भारतीय स्वाधीनता आन्दोलन के समय उठी राष्ट्रवादी भावनाओं की समालोचना की। ऐसा करते हुए उन्होंने कहा कि-"राष्ट्रवाद हमारी अन्तिम आध्यात्मिक मंजिल नहीं हो सकता। मेरी शरणस्थली तो 'मानवता' है। मैं हीरों की कीमत पर शीशा नहीं खरीदूंगा और मैं जब तक जीवित हूँ, देशभक्ति को मानवता पर कदापि विजयी नहीं होने दूंगा।" इस प्रकार उन्होंने मानवता को ही अन्तिम लक्ष्य बताया।

उनके विचारों में राष्ट्रवाद स्वाधीनता प्राप्त करने का साधन है। यह राष्ट्र को संगठित बनाए रखता है। परन्तु राष्ट्रवाद मानवता के खिलाफ किसी भी परिस्थिति में नहीं होना चाहिए। उन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन का विरोध इसलिए किया था कि इसमें मानवीय सम्बन्धों की गरिमा बरकरार रखने की गुंजाइश नहीं थी। इस प्रकार उनका मानना था कि राष्ट्रवाद से भी बड़ा और वास्तविक लक्ष्य हमारे लिए 'मानवता' की प्राप्ति और रक्षा करना है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर के इन विचारों को ब्रिटिश सभ्यता में भी स्थान प्राप्त हुआ।

दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर (उत्तर सीमा-150 शब्द)

प्रश्न 1. 
राष्ट्रवाद से आप क्या समझते हैं ? राष्ट्रवाद के विभिन्न रूपों की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
राष्ट्रवाद से आशय-राष्ट्रवाद वह राजनीतिक विचार एवं धारणा है, जिसमें कुछ साझा राजनीतिक आदर्शों के आधार पर नागरिकों से राष्ट्र के प्रति निष्ठा व समर्पण की माँग की जाती है। राष्ट्रवाद एक राष्ट्र के रूप में लोगों को संगठित करने वाली प्रमुख धारणा है। राष्ट्रवाद का उदय 19वीं, 20वीं सदी में एक महत्वपूर्ण एवं प्रभावी धारणा के रूप में हुआ था। राष्ट्रवाद के विभिन्न रूप-राष्ट्रवाद ऐसी धारणा है जिसके कई रूप दिखाई पड़ते हैं। राष्ट्रवाद के निम्नलिखित रूपों की विवेचना की जा सकती है
(i) राष्ट्रवाद राष्ट्र-राज्यों के निर्माणक तत्व के रूप में इस रूप में राष्ट्रवाद वह महत्वपूर्ण प्रभावी विचार है जिसने छोटी-छोटी रियासतों में विभक्त राष्ट्रों को विशाल व शक्तिशाली राष्ट्र-राज्यों के रूप में संगठित किया। उदाहरण के लिए-जर्मनी व इटली का एकीकरण राष्ट्रवाद के इसी रूप को दर्शाता है।

(ii) राष्ट्रवाद राष्ट्रों की स्वाधीनता का मार्ग दिखाने वाले विचार के रूप में इस रूप में राष्ट्रवाद वह विचार या धारणा है जिसने पराधीन राष्ट्रों को अपनी स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए नई ऊर्जा व उत्साह से भर दिया। 20वीं सदी में एशिया व अफ्रीका में अधिकांश देशों के औपनिवेशिक शासन से मुक्ति का प्रमुख आधार 'राष्ट्रवाद' ही था। उदाहरण के लिए भारतीय स्वाधीनता, भारतीय राष्ट्रवाद की ही देन है।

(iii) राष्ट्रवाद साम्राज्यों का विघटन करने वाली धारणा के रूप में इस रूप में राष्ट्रवाद वह धारणा है जिसने 19वीं, 20वीं सदी में बड़े-बड़े साम्राज्यों के विघटन का मार्ग दिखाया। इन साम्राज्यों में शामिल राष्ट्रों में राष्ट्रवाद की तीव्र आंधी चली और इसमें बड़े-बड़े साम्राज्य धराशायी हो गये।

प्रश्न 2. 
राष्ट्रीय 'आत्म-निर्णय' की धारणा के विविध पक्षों को विस्तार से समझाइए।
उत्तर:
19वीं, 20वीं सदी में राष्ट्रवाद के साथ ही राष्ट्रीय आत्म-निर्णय की माँग ने भी जोर पकड़ा। राष्ट्रीय आत्म-निर्णय के अन्तर्गत अपना शासन व प्रशासन स्वयं चलाने की माँग की जाती है। इस माँग के दो प्रमुख पक्ष निम्नलिखित हैं
(i) राष्ट्रों के निर्माण व उन्हें आत्म-निर्भर बनाने वाले हक के रूप में इस रूप में राष्ट्रीय आत्म-निर्णय का अधिकार वह अधिकार है जो यह दावा करता है कि अन्य सामाजिक समूहों से अलग एक राष्ट्र को अपना शासन अपने आप करने और अपने भविष्य को तय करने का अधिकार होना चाहिए। इस रूप में आत्म-निर्णय के अधिकार ने राष्ट्रों को स्वाधीनता दिलाने का मार्ग दिखाया। इसी अधिकार की माँग ने पराधीन राष्ट्रों में स्वाधीनता की माँग को बल प्रदान किया। उदाहरण के लिए भारत में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध ऐसी ही माँगें उठाई गईं। इन मांगों ने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन को दिशा प्रदान की। इसी माँग के चलते हमें स्वाधीनता का हक मिला।

(ii) राष्ट्रों के विघटन को बढ़ावा देने वाले तत्व के रूप में--आत्म-निर्णय के सिद्धान्त का दूसरा पक्ष यह भी है कि इसने राष्ट्र-राज्यों के सामने राष्ट्र के विघटन की अनेक मांगों के रूप में नई चुनौतियाँ भी प्रस्तुत की है। 1960 के दशक से विभिन्न राष्ट्र-राज्यों में कई संस्कृतियों, भाषा, क्षेत्रों इत्यादि की रक्षा के दावे के आधार पर स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में आत्म-निर्णय की मांगें प्रस्तुत की जा रही हैं। इस प्रकार राष्ट्रीय आत्म-निर्णय की माँग के दो पक्ष है-एक और तो यह राष्ट्रों की आत्मनिर्भरता व स्वाधीनता का प्रतीक है तो दूसरी ओर यह राष्ट्रों के भीतर हिंसक संघर्षों व अलगाव की भावना को भी बढ़ावा देता है।

राष्ट्रवाद के विकास में निम्नलिखित में से कौन सा तत्व सहायक रहा? - raashtravaad ke vikaas mein nimnalikhit mein se kaun sa tatv sahaayak raha?

प्रश्न 3. 
राष्ट्रवाद से होने वाले लाभ तथा हानियों का विस्तार से वर्णन करें।
उत्तर:
19वीं, 20वीं सदी में पूरी दुनिया के जनमानस को सर्वाधिक प्रभावित करने वाली धारणा 'राष्ट्रवाद' है। इससे एक ओर तो हमें कई महत्वपूर्ण लाभ प्राप्त हुए वहीं दूसरी ओर इसकी हानियाँ भी सामने आयीं। अतः राष्ट्रवाद के निम्नलिखित लाभ व हानियों का वर्णन किया जा सकता है
लाभ
(i) लोगों को स्वाधीन व आत्म-निर्भर बनाना-राष्ट्रवाद की भावना से प्रेरित होकर ही लोग अपने लिए स्वाधीनता व आत्मनिर्भरता की स्थिति प्राप्त कर पाते हैं। यह भावना व्यक्तियों को साझा राजनीतिक आदर्शों पर सहमत करती है। इन आदर्शों की प्राप्ति इनका लक्ष्य बन जाता है। इस प्रकार वे स्वयं को एक नई राजनीतिक पहचान एक राष्ट्र के रूप में दिला पाते हैं।

(ii) देश के प्रति निष्ठा का विकास-राष्ट्रवाद नागरिकों में देश के प्रति अपनी राष्ट्रीयता की रक्षा के लिए निष्ठा बनाए रखने के भाव का विकास करता है। हम देखते हैं कि युद्ध अथवा संकट की स्थिति में हम सब कुछ भूलकर अपने आप को केवल भारतीय मानने लगते हैं। इस प्रकार राष्ट्रवाद देश के प्रति लोगों में निष्ठा उत्पन्न करता है।
हानियाँ

(i) मानवता के लिए खतरा उत्पन्न करना-राष्ट्रवाद के कारण कई बार मानवता खतरे में पड़ जाती है। ऐसा तब होता है जब एक राष्ट्र के लोग अपनी सर्वोच्चता स्थापित करना चाहते हैं। उदाहरण के लिए-हमें दो-दो विश्वयुद्धों का सामना करना पड़ा। यह विश्वयुद्ध राष्ट्रवाद की तीव्र भावना के कारण ही लड़े गये। इन युद्धों में आक्रामक राष्ट्रवाद लाखों लोगों के संहार का कारण बना। अतः राष्ट्रवाद अपने चरम पर मानवता के लिए खतरा बन जाता है।

(ii) अन्तर्राष्ट्रीय भाईचारे व शान्ति को खतरा-राष्ट्रवाद कई बार आक्रामक रूप धारण कर लेता है। यह अन्तर्राष्ट्रीय भाईचारे व शान्ति को खतरे में डाल देता है। राष्ट्रवादी भावना से प्रेरित प्रत्येक राष्ट्र केवल अपनी उन्नति, अपने विकास को निश्चित करना चाहता है। ऐसे में राष्ट्रों के बीच कटुता और स्वार्थपूर्ण सम्बन्ध उत्पन्न होने लगते हैं। यह अन्तर्राष्ट्रीय भाईचारे व शान्ति के लिए खतरनाक स्थिति है।

प्रश्न 4. 
राष्ट्रवाद पर रवीन्द्रनाथ ठाकुर (टैगोर) द्वारा प्रस्तुत समालोचना पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
उत्तर:
राष्ट्रवाद पर रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा प्रस्तुत समालोचना-रवीन्द्रनाथ ठाकुर (टैगोर) ने भारतीय राष्ट्रवाद व स्वाधीनता आन्दोलन की बेहद गहरी व भावपूर्ण समालोचना प्रस्तुत की। अपनी इस समालोचना में उनका कहना था-"राष्ट्रवाद हमारी अन्तिम आध्यात्मिक मंजिल नहीं है। मेरी शरणस्थली तो मानवता है। मैं हीरों की कीमत पर शीशा नहीं खरीदूंगा और मैं जब तक जीवित हूँ देशभक्ति को मानवता पर कदापि विजयी नहीं होने दूंगा।" वास्तविकता में रवीन्द्रनाथ ठाकुर भारत में औपनिवेशिक शासन के विरोधी थे और भारत की स्वाधीनता के अधिकार का भी दावा करते थे।

उनका दावा इस बात पर आधारित था कि ब्रिटिश प्रशासन में 'मानवीय सम्बन्धों की गरिमा' बरकरार रखने की कोई गुंजाइश नहीं है। रवीन्द्रनाथ ठाकुर पश्चिमी साम्राज्यवाद का विरोध करने और पश्चिमी सभ्यता का अन्धा विरोध करने में फर्क करते थे। उनका मानना था कि भारतीयों को अपनी संस्कृति और विरासत में गहरी आस्था होनी ही चाहिए लेकिन उन्हें बाहरी दुनिया. से मुक्त भाव से (स्वतन्त्र रूप से) सीखने और लाभान्वित होने का विरोध नहीं करना चाहिए। रवीन्द्रनाथ ठाकुर जिसे 'देशभक्ति' कहते थे, उसकी समालोचना उनके लेखन का स्थायी विषय था।

वे देश के स्वाधीनता आन्दोलन में मौजूद राष्ट्रवाद की संकुचित भावना के कटु आलोचक थे। उन्हें भय था कि जिसे भारतीय परम्परा के रूप में हम प्रचारित कर रहे हैं उसके पक्ष में पश्चिमी सभ्यता को खारिज करने वाला विचार यहीं तक सीमित नहीं रहेगा। उनका मानना था कि यह विचार आसानी से अपने देश में मौजूद ईसाई, यहूदी, पारसी, इस्लाम सहित अनेक विदेशी प्रभावों के खिलाफ आक्रामक भी हो सकता है। इस प्रकार रवीन्द्रनाथ ठाकुर की राष्ट्रवाद पर समालोचना का सारांश यह निकलता है कि हमें मानवता की रक्षा हर हाल में करनी चाहिए और राष्ट्रवाद के नाम पर मानवता को कुर्बान नहीं करना चाहिए।

विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्नोतर

प्रश्न 1. 
आधुनिक राज्य है
(अ) राष्ट्रीय राज्य 
(ब) अन्तर्राष्ट्रीय राज्य 
(स) क्षेत्रीय राज्य 
(द) संघीय राज्य
उत्तर:
(अ) राष्ट्रीय राज्य 

प्रश्न 2. 
बालवादियों के अनुसार राज्य का प्रमुख कार्य है
(अ) अपने नागरिकों का सामान्य कल्याण करना।
(ब) विविध संघों की गतिविधियों को नियंत्रित करना। 
(स) आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन व वितरण नियंत्रित करना। 
(द) बेरोजगारी भत्ता एवं वृद्धावस्था पेंशन की बढ़ती सामान्य सुरक्षा प्रदान करना। 
उत्तर:
(अ) अपने नागरिकों का सामान्य कल्याण करना।

प्रश्न 3. 
बहुलवादी चिन्तक सामान्यतया राज्य को निम्न एक रूप में व्यक्त करते हैं
(अ) समुदायों का समुदाय
(ब) एक दमनकारी यंत्र 
(स) सर्वशक्तिमान संस्था 
(द) ऐसी संस्था जिसमें सम्प्रभुता अभाज्य रहती है।
उत्तर:
(अ) समुदायों का समुदाय

प्रश्न 4.
राजनीतिक बहुलवाद का अभिप्राय है
(अ) सरकार का समुदायों पर नियंत्रण
(ब) संसद का समुदायों पर नियंत्रण 
(स) सामुदायों की स्वायत्तता
(द) लोगों का सरकार पर नियंत्रण। 
उत्तर:
(स) सामुदायों की स्वायत्तता

राष्ट्रवाद के विकास में निम्नलिखित में से कौन सा तत्व सहायक रहा? - raashtravaad ke vikaas mein nimnalikhit mein se kaun sa tatv sahaayak raha?

प्रश्न 5. 
सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, राष्ट्रवाद का ऐसा रूप है जो राष्ट्र के पुनर्जनन पर मुख्यतः बल देता है- 
(अ) एक पृथक राजनीतिक समुदाय के रूप में 
(ब) एक विशिष्ट सभ्यता के रूप में
(स) एक आधुनिक राज्य के रूप में
(द) एक कृत्रिम तत्व के रूप में। 
उत्तर:
(ब) एक विशिष्ट सभ्यता के रूप में

प्रश्न 6. 
निम्नलिखित में से कौन सा भारत के राष्ट्रवाद के उदय में सहायक नहीं रहा?
(अ) भारतीय प्रेस
(ब) सामाजिक-धार्मिक आन्दोलन 
(स) पश्चिमी शिक्षा
(द) मुस्लिम साम्प्रदायिकता। 
उत्तर:
(द) मुस्लिम साम्प्रदायिकता। 

राष्ट्रवाद के विकास में सहायक तत्व कौन कौन से हैं?

भारतीय राष्ट्रवाद के लिए राजनीतिक एकता:.
पश्चिमी प्रभाव: ... .
नस्लीय संधि: ... .
सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन: ... .
इलबर्ट बिल विवाद: ... .
आर्थिक शोषण:.

राष्ट्रवादी भावना के विकास में निम्नलिखित में से कौन सा तत्व सहायक है?

जातीय एकता – जिमर्न तथा ब्राइस जातीय एकता को राष्ट्रवाद के निर्माण में महत्त्वपूर्ण योगदान मानते हैं। एक ही जाति के लोगों में रीति-रिवाजों, धर्म तथा रहन-सहन की एकरूपता होती है, जिससे राष्ट्रीय भावना विकसित होती है।

राष्ट्रवाद का प्रमुख तत्व क्या है?

राष्ट्रवाद कई चरणों से गुजर चुका है। उदाहरण के लिए, उन्नीसवीं शताब्दी के यूरोप में इसने कई छोटी-छोटी रियासतों के एकीकरण से वृहत्तर राष्ट्र - राज्यों की स्थापना का मार्ग प्रशस्त किया । आज के जर्मनी और इटली का गठन एकीकरण और सुदृढ़ीकरण की इसी प्रक्रिया के जरिए हुआ था ।

राष्ट्रीय चेतना के विकास में मुख्य सहायक कारक क्या थे?

समान मुद्रा प्रणाली, सामान्य प्रशासन, सामान्य कानूनों और न्यायिक संरचना की स्थापना ने भारत के एकीकरण में योगदान दिया जिसने अंततः राष्ट्रीय चेतना के उदय में मदद की।