राम सेतु पुल कहां पर है - raam setu pul kahaan par hai

Ram Setu: रामायण काल में भारत और लंका के बीच हजारों साल पहले समुद्र पर एक विशाल सेतु (पुल) बनाया गया था. इस सेतु का निर्माण भगवान श्रीराम की सेना ने किया. इसके जरिए ही सेना समुद्र को पार कर राक्षसराज रावण को दंडित करने पहुंची थी. ग्रंथों में तो इसका उल्‍लेख है ही, अपितु अब आधुनिक युग के अनुसंधानकर्ताओं ने यह माना है कि आज भारत और श्रीलंका के बीच जो एडम्स ब्रिज है, वो हजारों साल पुराना सेतु है.

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पृथ्वी की उथल-पुथल से कालांतर में लंका और भारत भूमि के बीच दूरी कम होती चली गई और अब बमुश्किल दोनों में 100 किमी का फासला होगा. हालांकि, दोनों के बीच सेतु के अवशेष आज भी मौजूद हैं, जिसे रामसेतु कहते हैं. धर्मग्रंथों में उल्‍लेख है कि लंका पहुंचने के लिए श्रीराम सेना को समुद्र पर 100 योजन लंबा और 10 योजन चौड़ा सेतु बनाना पड़ा. सेतु के निर्माण में नल-नील नाम के वानर-वीरों की अहम भूमिका रही, उन्‍हें यह श्राप था कि उनके हाथ का पत्‍थर कभी डूबेगा नहीं.

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समस्‍त वानर उन्‍हें पत्‍थर लाकर देते रहे और वे दोनों भाई आगे बढ़ते हुए पत्‍थर पानी में फेंकते गए. पहले दिन 14 योजन तक पत्‍थर फेंके गए, दूसरे दिन 20 योजन, तीसरे दिन 21 योजन, चौथे दिन 22 योजन और पांचवें दिन 23 योजन का कार्य पूरा किया गया. इस प्रकार, 100 योजन का काम 5 दिन में पूरा हो गया था. उसके बाद सबसे पहले श्रीराम और उनके प्रमुख गण उस पर चले.

स्पेशल डेस्क: मोदी सरकार ने करोड़ों भारतीयों की भावनाओं की कद्र करते हुए सुप्रीम में कहा है कि राम सेतु से छेड़छाड़ नहीं की जाएगी, बल्कि वैकल्पिक रास्ते की तलाश की जाएगी।  यूनियन मिनिस्ट्री ऑफ शिपिंग ने हलफनामा दायर किया और सेतुसमुद्रम नहर परियोजना के खिलाफ दायर याचिका को खत्म करने की अपील की। बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने ही इस प्रोजेक्ट के खिलाफ कोर्ट में याचिका दायर की थी। सिर्फ आस्था नहीं है राम सेतु...

क्या है सेतु समुद्रम प्रोजेक्ट?
- यूपीए सरकार के वक्त 2005 में इस प्रोजेक्ट का ऐलान किया गया था। शुरुआत में इस प्रोजेक्ट की लागत करीब ढाई हजार करोड़ थी, जो कि अब 4 हजार करोड़ तक बढ़ गई है। इसके तहत बड़े जहाजों के आने-जाने के लिए करीब 83 किलोमीटर लंबे दो चैनल बनाए जाने थे। इसके जरिए जहाजों के आने-जाने में लगने वाला वक्त 30 घंटे तक कम हो जाएगा। इन चैनल्स में से एक राम सेतु जिसे एडम्स ब्रिज भी कहा जाता है, से गुजरना था। अभी श्रीलंका और भारत के बीच इस रास्ते पर समुद्र की गहराई कम होने की वजह से जहाजों को लंबे रास्ते से जाना पड़ता है।

कहां है राम सेतु ? 
भारत के दक्षिणपूर्व में रामेश्वरम और श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच चूने की उथली चट्टानों की चेन है, इसे भारत में रामसेतु और दुनिया में एडम्स ब्रिज (आदम का पुल) के नाम से जाना जाता है। इस पुल की लंबाई करीब 30 मील (48 किमी) है। यह ढांचा मन्नार की खाड़ी और पॉक स्ट्रेट को एक दूसरे से अलग करता है। 

राम सेतु को लेकर क्या है मान्यता ?
-हिंदू मान्यताओं के मुताबिक ये ढांचा रामायण में वर्णित वो पुल है जिसे भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई के लिए बनाया था। कहा जाता है कि  राम की सेना में नल और नील नाम के दो वारन थे, जिन्होंने इस पुल का निर्माण किया था

सिर्फ आस्था नहीं है राम सेतु 

- बाल्मिकी रामायण में रामसेतु का जिक्र है। रामायण के अनुसार भगवान राम सीता को लेने के लिए लंका जा रहे थे, बीच में समुद्र था, तब राम की वानर सेना ने पानी में पत्थर डाल-डालकर राम सेतु का निर्माण किया।     

- इतिहासकार और पुरातत्वविदों के मुताबिक- इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कोरल और सिलिका पत्थर जब गरम होता है तो उसमें हवा कैद हो जाती है जिससे वो हल्का हो जाता है और तैरने लगता है. ऐसे पत्थर को चुनकर ये पुल बनाया गया।
इतिहासकारों की मानें तो साल 1480 में आए एक तूफान में ये पुल काफी टूट गया. उससे पहले तक भारत और श्रीलंका के बीच लोग पैदल और वाहन के जरिए इस पुल का इस्तेमाल करते रहे थे।

-अमेरिका के साइंस चैनल ने तथ्यों के साथ ये दावा किया है कि भारत और श्रीलंका के बीच मौजूद रामसेतु- प्राकृतिक नहीं बल्कि मानव निर्मित है यानी इसे किसी इंसान ने बनाया था. अमेरिका के वैज्ञानिकों को इस बात के प्रमाण मिले हैं कि रामसेतु के पत्थर करीब 7000 साल पुराने हैं। 

दुनिया भर में कुछ ही ऐसी ऐतिहासिक संरचनाएं हैं जो धार्मिक और ऐतिहासिक सिद्धांतों को लिंक करती हैं। ऐसा ही एक निर्माण राम सेतु है, जिसे एडम्स ब्रिज के नाम से भी जाना जाता है। हाल ही में, केंद्र सरकार ने राम सेतु की संरचना का स्टडी करने और राम सेतु की आयु और इसके बनने की प्रक्रिया जानने के लिए पानी के अंदर खोज और शोध करने की मंजूरी दी है। यह अध्ययन यह समझने में भी मदद करेगा कि क्या यह संरचना रामायण काल जितनी पुरानी है। साथ ही, राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक बनाने की मांग की जा रही है, हालांकि यह मामला विचाराधीन है। इसके साथ ही यह जानना और दिलचस्प हो जाता है कि क्या भारतीय पौराणिक कथाओं को आधुनिक समय की संरचनाओं से लिंक करने की संभावनाएं हैं।

राम सेतु भारत के तमिलनाडु में पंबन द्वीप या रामेश्वरम द्वीप और श्रीलंका में मन्नार द्वीप के बीच प्राकृतिक खनिज (मिनरल) शोलों की एक श्रृंखला है। पुल का हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार बहुत महत्व है और रामायण में इसका उल्लेख है। राम सेतु वैज्ञानिकों को भी हैरान कर देता है और इसकी आयु पता करने के लिए अध्ययन किए जा रहे हैं।

इसके अलावा, एक आगामी भारतीय फिल्म राम सेतु पर आधारित होगी। कहानी एक पुरातत्वविद के इर्द-गिर्द घूमती है जो यह पता लगाने की कोशिश कर रहा है कि राम सेतु मिथक है या सच्चाई।

यहां हम राम सेतु के बारे में वो सारी दिलचस्प बातें बताएंगे जो आपको जाननी चाहिए।

 

राम सेतु पुल कहां पर है - raam setu pul kahaan par hai

 

राम सेतु: सिद्ध तथ्य

  • राम सेतु या एडम्स ब्रिज पुल जैसी एक संरचना है, जो तमिलनाडु में पंबन द्वीप को श्रीलंका के मन्नार द्वीप से जोड़ती है।
  • पुल की कुल लंबाई करीब 50 किलोमीटर है। राम सेतु मन्नार की खाड़ी को पाक स्ट्रेट से अलग भी करता है। रेत के कुछ तट सूखे हैं। इस संरचना के चारों ओर का समुद्र बहुत उथला है, जिसकी गहराई तीन फीट से लेकर 30 फीट तक है।
  • कई वैज्ञानिक रिपोर्टों के अनुसार, राम सेतु 1480 तक पूरी तरह से समुद्र तल से ऊपर था, लेकिन यहाँ एक चक्रवात आने से यह क्षतिग्रस्त हो गया था। 15वीं शताब्दी तक जब ये गहरा नहीं हुआ था, इसे पैदल ही पार किया जा सकता था।

 

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  • भूगर्भीय प्रमाण से साबित होता है कि राम सेतु भूतकाल में भारत और श्रीलंका के बीच एक भूमि आधारित लिंक था।
  • ऐसे अध्ययन हैं जिनसे पता चलता है कि राम सेतु चूना पत्थर (लाइमस्टोन) के शोलों से बना है और कोरल रीफ की एक लम्बी शृंखला है। इस बात के भी प्रमाण हैं कि यह रामेश्वरम में तैरते पत्थरों से बना है और ऐसे सिद्धांत हैं जो मानते हैं कि ज्वालामुखी के पत्थर पानी पर तैरते हैं।
  • चूंकि कोरल रीफ के पास समुद्र का पानी बहुत उथला है, इसलिए जहाजों का आवागमन असंभव है, जिसके कारण जहाजों को श्रीलंका तक पहुंचने के लिए गोल चक्कर वाले रास्ते अपनाने पड़ते हैं।
  • श्रीलंका में पम्बन द्वीप से मन्नार द्वीप तक एक शॉर्टकट रास्ता बनाने के लिए सेतुसमुद्रम परियोजना प्रस्तावित की गई थी। हालांकि, पर्यावरणविदों का कहना है कि सेतुसमुद्रम परियोजना से हजारों साल पुराने प्राकृतिक चट्टान नष्ट हो सकते हैं। सेतुसमुद्रम परियोजना को पंबन पास को गहरा करके क्रियान्वित करने की योजना थी, ताकि रामसेतु को भी संरक्षित किया जा सके। लेकिन यह परियोजना अभी भी ठप पड़ी है।
  • समुद्र विज्ञान के शोध से पता चलता है कि राम सेतु 7,000 साल पुराना है। यह शोध मन्नार द्वीप और धनुषकोडी के पास समुद्र तटों की कार्बन डेटिंग से मेल खाता है।

 

राम सेतु की तस्वीरें 

राम सेतु की ये तस्वीरें देखें।

 

राम सेतु पुल कहां पर है - raam setu pul kahaan par hai

 

राम सेतु पुल कहां पर है - raam setu pul kahaan par hai
राम सेतु का हवाई दृश्य.

स्रोत: विकिमीडिया

 

राम सेतु पुल कहां पर है - raam setu pul kahaan par hai
रामसेतु की नासा सैटेलाइट की तस्वीरें.

 

राम सेतु: धार्मिक महत्व

वाल्मीकि के महाकाव्य रामायण में राम सेतु का पहली बार उल्लेख किया गया था। माना जाता है कि राम सेतु का निर्माण भगवान राम की वानर सेना ने नल की देखरेख में किया था। राम सेतु का निर्माण इसलिए किया गया था ताकि भगवान राम अपनी पत्नी सीता को बचाने के लिए लंका पहुंच सकें। कथा के अनुसार, पुल को तैरते हुए पत्थरों का इस्तेमाल करके बनाया गया था, जिस पर भगवान राम का नाम खुदा हुआ था, जिसकी वजह से यह डूबता नहीं था। भगवान राम ने भारत से लंका तक रास्ते के लिए समुद्र से प्रार्थना की थी, ताकि वे वहां जा सकें और सीता को लंका के राजा रावण के कब्जे से छुड़ा सकें।

रामायण के अनुसार, 7वीं शताब्दी ईसा पूर्व से तीसरी शताब्दी सीई तक राम सेतु का निर्माण भगवान राम ने लंका जाने के लिए भगवान हनुमान के नेतृत्व में वानरों की सेना की मदद से किया था।

 

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राम सेतु, जिसे एडम्स ब्रिज, नल सेतु और सेतु बांदा भी कहा जाता है, रामायण का एकमात्र पुरातात्विक और ऐतिहासिक प्रमाण है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, राम सेतु एक पवित्र स्थल है। इसलिए इस पर कोई पुल नहीं बनाया जाना चाहिए।

 

राम सेतु पुल कहां पर है - raam setu pul kahaan par hai

 

हिंदू धर्म में बड़ी मान्यता है कि रामायण में उल्लेखित लंका वर्तमान का श्रीलंका है और राम सेतु भगवान राम द्वारा बनाया गया था। हालाँकि, पहली सहस्राब्दी के संस्कृत स्रोतों के अनुसार, दोनों के बीच एक अंतर है और इस मान्यता को ख़ास तौर से दक्षिण भारत के चोल वंश के शासन के दौरान व्यापक रूप से बढ़ावा दिया गया था, जिसने आर्यचक्रवर्ती राजवंश द्वारा संयुक्त रूप से कब्जाने से पहले द्वीप पर हमला किया था। आर्यचक्रवर्ती राजवंश ने जाफना में राम सेतु के संरक्षक होने का दावा किया था। कई विद्वानों के अनुसार, ऑरिजिनल लंका वर्तमान के मध्य प्रदेश के पूर्वी हिस्से में था।

 

राम सेतु के बारे में रहस्यमयी तथ्य

राम सेतु मानव निर्मित पुल है या नहीं, इस पर बहस कई दशकों से चल रही है। हालाँकि, पुल के बारे में कई अन्य रहस्यमयी तथ्य हैं:

  • राम सेतु को एडम्स ब्रिज या नल सेतु भी कहा जाता है। एडम्स ब्रिज नाम की उत्पत्ति एक इस्लामिक टेक्स्ट से हुई है जिसमें श्रीलंका में एडम्स पीक होने का जिक्र है। इसे नल सेतु भी कहा जाता है क्योंकि नल वो आर्किटेक्ट थे जिन्होंने रामायण में पुल को डिजाइन किया था।
  • समुद्र तटों की कार्बन डेटिंग और समुद्र संबंधी अध्ययनों से एक टाइमफ्रेम का पता चलता है जो रामायण काल से मेल खाता है।

 

क्या सच में राम सेतु मानव निर्मित है?

राम सेतु की वास्तविक प्रकृति को समझने के लिए बहुत सारे अध्ययन और शोध हैं हुए हैं और कई अन्य हो भी रहे हैं। हाल ही में, वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टिट्यूट में जीआईएस और रिमोट सेंसिंग विश्लेषक के रूप में काम करने वाले राज भगत पलानीचामी ने भारत और श्रीलंका के बीच संरचनाओं को समझाते हुए सैटेलाइट एनिमेशन को ट्वीट किया।

 

#Thread:

Since many had asked this, Writing a short thread on the formation between India and Sri Lanka

Usually many get deceived by “static” satellite images and believe that the Tombolo section as permanent relics of a man made bridge. pic.twitter.com/TEzvgwqnTc

— Raj Bhagat P #Mapper4Life (@rajbhagatt) July 7, 2020

 

Deeper ocean currents don’t enter the section between Sri Lanka and India because of the Cont Shelf. The sea surface in this section is dominated by longshore currents in two directions – one from Gulf of Mannar and other from Palk strait and they are in opposite directions pic.twitter.com/TyyDmklhSL

— Raj Bhagat P #Mapper4Life (@rajbhagatt) July 7, 2020

 

Longshore currents bring a lot of sediments. And at the meeting point of the currents they settle and form these islands. Notice in the satellite images below how these islands change a lot owing to current direction, tides, etc. This is just a short term timelapse (<4 years) pic.twitter.com/pkMJuVHcm5

— Raj Bhagat P #Mapper4Life (@rajbhagatt) July 7, 2020

 

The sediment deposition is a gradual process and has been happening over long time. In the last 30 years, we can notice the changes in the Pamban Island near Dhanushkodi where the islands in deeper section had been volatile whereas sand closer to Pamban have been consolidating pic.twitter.com/ENrBSm9Del

— Raj Bhagat P #Mapper4Life (@rajbhagatt) July 7, 2020

 

The sediment accretion and erosion is not limited to the section between Rameshwaram and Mannar, deposition has been happening close to the group of islands between Thoothukudi and Mandapam. There is also a spit formation in Kodikarai which has formed Muthupet salt marshes pic.twitter.com/NSLRgqMQJB

— Raj Bhagat P #Mapper4Life (@rajbhagatt) July 7, 2020

 

What these tell is that these formations are caused by the sea n are not manmade. The desc/location of bridge as mentioned in epics don’t match this either

The future of this Tombolo is dependent on Sea level, Currents etc. It might either consolidate in future or might be lost!

— Raj Bhagat P #Mapper4Life (@rajbhagatt) July 7, 2020

 

राम सेतु को एडम्स ब्रिज क्यों कहा जाता है?

राम सेतु का पहली बार उल्लेख इब्न खोरदाद्बेह की ‘बुक ऑफ रोड्स एंड किंगडम्स’ (सी. 850) में हुआ था, जिसमें इसे ‘सेट बांधई’ या ‘समुद्र का पुल’ कहा गया है। अन्य स्रोत एडम के संदर्भ में इस पुल का वर्णन करते हैं, जो कि ईडन गार्डन से अपने निष्कासन के बाद इस पुल के द्वारा श्रीलंका से भारत आए। इस वजह से इस पुल को एडम्स ब्रिज के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा एक ब्रिटिश कार्टोग्राफर ने 1804 में सबसे पहला नक्शा तैयार किया था जिसमें इस क्षेत्र को एडम्स ब्रिज के नाम से बोला गया है।

यह एक अब्राहमिक मिथक के संदर्भ में था जिसके अनुसार एडम ने एक पहाड़ पर जाने के लिए पुल का इस्तेमाल किया था जिसकी पहचान अंग्रेजों ने श्रीलंका में एडम्स पीक के रूप में की थी। यहाँ एडम ने लगभग 1,000 वर्षों तक एक पैर पर तपस्या की जिससे एक खोखला निशान पड़ गया जो पदचिह्न जैसा दिखता था।

 

राम सेतु अभियान

रामेश्वरम और श्रीलंका को जोड़ने वाली चूना पत्थर की शोल श्रृंखला का पता लगाने के लिए वैज्ञानिकों और पुरातत्वविदों द्वारा मार्च 2021 में राम सेतु अभियान चलाया गया था। अभियान का उद्देश्य चूना पत्थर की चट्टानों की विशेषताओं, इसके भूगर्भीय परिवर्तन और आठ किलोमीटर के इस पुल की विभिन्न अन्य विशेषताओं को समझना है।

पिछले कुछ वर्षों में भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद को कई प्रस्ताव भेजे गए थे। हालाँकि, यह पहली बार है कि प्रस्ताव को स्वीकार किया गया है और अभियान को बोर्ड से पर्याप्त फंड मिली है। परियोजना का उद्देश्य यह पता लगाना है कि राम सेतु मानव निर्मित है या नहीं जिससे लंबे समय से चली आ रही पौराणिक बहस हल हो जाएगी।

 

एएसआई ने राम सेतु पर आगे की शोध को हरी झंडी दी

2007 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने कहा था कि राम सेतु सिर्फ एक प्राकृतिक निर्माण था। भारत सरकार ने एएसआई के हवाले से सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर किया था जिसमें कहा गया था कि भगवान राम द्वारा बनाए गए ढांचे का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है।

2021 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के अंतर्गत आने वाली सरकारी संस्था पुरातत्व के लिए केंद्रीय सलाहकार बोर्ड ने राम सेतु कैसे और कब बनाया गया था, यह पता लगाने के लिए एक शोध परियोजना के प्रस्ताव को मंजूरी दी। इसी साल पानी के नीचे अनुसंधान भी शुरू हो गया।

काउंसिल फॉर साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च (CSIR) और गोवा स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी (NIO) द्वारा किया जा रहा यह शोध राम सेतु के निर्माण के पीछे की पूरी प्रक्रिया पर फोकस कर रहा है। अध्ययन कुछ अन्य तथ्यों को भी देखेगा जैसे कि राम सेतु के आस-पास कोई जलमग्न बस्तियाँ हैं या नहीं।

समुद्र तल से 35-40 मीटर की गहराई पर पड़े सेडीमेंट के नमूने एकत्र करने के लिए अध्ययन में NIO ‘सिंधु साधना’ या ‘सिंधु संकल्प’ के अनुसंधान पोत जहाजों का इस्तेमाल किया जा रहा है। यह शोध भूवैज्ञानिक समय के पैमाने के लिए पुरातात्विक पुरावशेषों और हेर्मोलुमिनेसेंस डेटिंग पर आधारित है। रेडियोमीट्रिक तकनीक का उपयोग उस संरचना की आयु निर्धारित करने के लिए किया जा रहा है जिसमें कोरल या प्यूमिक स्टोन शामिल होने की रिपोर्ट है। कोरल में कैल्शियम कार्बोनेट जैसे खनिज (मिनरल) होते हैं जो इन संरचनाओं की आयु का पता लगाने में मदद करेंगे।

 

सेतुसमुद्रम परियोजना और सुप्रीम कोर्ट 

भारत सरकार ने 2001 में सेतुसमुद्रम परियोजना को मंजूरी दी थी, जो तमिलनाडु में धनुषकोडी के पास समुद्र के तल को खोदकर पाक स्ट्रेट में शिप चैनल बनाने के लिए सैंकड़ों करोड़ की शिपिंग कैनल परियोजना है। यह प्रस्तावित चैनल का लक्ष्य श्रीलंका जाने के लिए यात्रा की दूरी को करीब 400 किलोमीटर कम करना है। चैनल के मौजूदा एलाइनमेंट के लिए राम सेतु के ड्रेजिंग की आवश्यकता है।

राम सेतु को बचाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। कोर्ट ने सरकार से पूछा कि क्या वह सेतुसमुद्रम परियोजना के लिए राम सेतु को हटाना चाहती है। सरकार ने कोर्ट को बताया कि वह राम सेतु को कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगी.

एक अलग याचिका में वरिष्ठ अकादमिक और पूर्व कुलपति (अलगप्पा विश्वविद्यालय) डॉ ए रामासामी ने कहा है कि राम सेतु एक ‘प्राचीन स्मारक’ टैग की वैधानिक आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है और सुप्रीम कोर्ट के पास राम सेतु को ‘राष्ट्रीय स्मारक’ घोषित करने का अधिकार नहीं है। 

डॉ. ए. रामासामी द्रविड़ ऐतिहासिक अनुसंधान केंद्र (डीएचआरसी) के अध्यक्ष हैं। उन्होंने 130 साल पुराने एक जर्मन शोध का हवाला दिया जिसमें निष्कर्ष निकाला गया था कि “राम सेतु मानव निर्मित नहीं है”। रामासामी ने कहा कि जेना विश्वविद्यालय (जर्मनी) के प्रोफेसर डॉ. जॉन्स वाल्थर ने 1891 में राम सेतु या एडम्स ब्रिज पर एक शोध किया था।

सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल परियोजना (SSCP) ने भारत और श्रीलंका के बीच एक शिपिंग कैनाल के निर्माण द्वारा मन्नार की खाड़ी और पाक खाड़ी को जोड़ने का प्रस्ताव दिया था। सेतुसमुद्रम भारत और श्रीलंका के बीच का समुद्र है जिसकी गहराई 10 मीटर से कम है। इस उथले क्षेत्र के कारण भारत के पास अपने पूर्वी और पश्चिमी तट को जोड़ने वाला निर्बाध नेविगेशन चैनल नहीं है। एसएससीपी ने भारत के दो तटों को सीधे जोड़ने का प्रस्ताव दिया, ताकि केप कोमोरिन और चेन्नई के बीच की दूरी कम हो जाए और जहाजों को श्रीलंका का गोल चक्कर लगाने की जरूरत न पड़े। इस प्रकार, सेतुसमुद्रम शिपिंग कैनाल परियोजना के द्वारा एक तट से दूसरे तट तक जाने में लगने वाले समय को भी कम किया जा सकेगा।

 

मध्य प्रदेश में इंजीनियरिंग के छात्रों को राम सेतु के बारे में पढ़ाया जाएगा

मध्य प्रदेश ने राम सेतु पर अध्ययन को शामिल करने के लिए राज्य में स्नातक छात्रों और इंजीनियरिंग के छात्रों के लिए पाठ्यक्रम को संशोधित करने का फैसला किया है।

 

राम सेतु बॉलीवुड फिल्म

राम सेतु एक बॉलीवुड एक्शन-एडवेंचर फिल्म है, जिसका निर्देशन अभिषेक शर्मा कर रहे हैं। फिल्म का निर्माण अक्षय कुमार की मां अरुणा भाटिया और विक्रम मल्होत्रा ने प्रोडक्शन कंपनियों केप ऑफ गुड फिल्म्स, अबुंदंतिया एंटरटेनमेंट, लाइका प्रोडक्शंस और अमेजन प्राइम वीडियो के तहत किया है। फिल्म 25 अक्टूबर 2022 को दिवाली के आसपास सिनेमाघरों में रिलीज हुई थी। राम सेतु की कहानी एक पुरातत्वविद् के इर्द-गिर्द घूमती है, जो राम सेतु की प्रकृति पर रिसर्च करता है और इसके अस्तित्व को साबित करने वाला होता है।

 

राम सेतु बचाओ अभियान

राम सेतु बचाओ अभियान 27 मार्च, 2007 को शुरू किया गया था, जिसे राम सेतु को बचाने के लिए लोकप्रिय रूप से रामनवमी के रूप में मनाया जाता है। यह अभियान संयुक्त रूप से कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा आयोजित किया गया था, जिन्होंने इस अभियान के उद्देश्य का समर्थन किया था। इन संगठनों ने कहा कि सेतुसमुद्रम कैनाल परियोजना के पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं। हालांकि परियोजना का आकलन पहले ही कर लिया गया था, अधिकांश प्रदर्शनकारियों का मानना था कि ऐसा आकलन सुनामी से पहले किया गया था और वर्तमान में यह परियोजना पर्यावरण और समुद्री जीवन पर ज्यादा विनाशकारी असर कर सकता है। इस कैनाल परियोजना का निर्माण इस क्षेत्र में रहने वाले मछुआरों की आजीविका को भी प्रभावित कर सकता है और लोकप्रिय शंख उद्योग को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके अलावा, इन समूहों ने राम सेतु की पवित्रता का भी समर्थन किया और कहा कि एक समृद्ध विरासत और हिंदुओं के लिए भावनात्मक महत्त्व वाली एक पौराणिक संरचना को नष्ट नहीं किया जा सकता है।

राम सेतु बचाओ अभियान के निम्नलिखित दावे थे:

  1. इस अभियान ने एसएससीपी को ड्रेजिंग गतिविधियों से पूरी तरह से वापस लेने और साइट से सभी उपकरणों को हटाने की मांग की।
  2. परामर्श के दूसरे दौर की देखरेख के लिए भारत सरकार द्वारा एक स्वतंत्र आयोग की स्थापना की जानी चाहिए। परामर्श के पिछले दौर में जिन हितधारकों को शामिल नहीं किया गया था, उन्हें शामिल किया जाना चाहिए और उन सभी खतरों, पर्यावरण और आजीविका से संबंधित जोखिमों को बताया जाना चाहिए, जिन्हें परामर्श के पहले दौर में छोड़ दिया गया था।
  3. एसएससीपी को जवाबदेह होना चाहिए और हिंदुओं की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने की जिम्मेदारी लेनी चाहिए। 

 

राम सेतु का अर्थ

राम सेतु हिंदी या संस्कृत शब्द है जिसका मतलब राम का पुल है। यह तमिलनाडु में दक्षिण-पूर्वी तट के पास पंबन द्वीप या रामेश्वरम द्वीप के बीच प्राकृतिक चूना पत्थर के शोलों की एक श्रृंखला है।

 

राम सेतु के पत्थर क्यों तैरते हैं?

कई वैज्ञानिकों ने तैरते हुए पत्थरों के पीछे के रहस्य पर शोध किया और इसे सुलझाने की कोशिश की। अध्ययनों से साबित होता है कि तैरते पत्थरों के पीछे विज्ञान है। राम सेतु ज्वालामुखियों के तैरते हुए पत्थर से बना है। हालाँकि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान वरुण के आशीर्वाद और उन पत्थरों पर भगवान राम के नाम लिखे होने के कारण पत्थर पानी में नहीं डूबते हैं।

 

क्या हम अब राम सेतु देख सकते हैं?

राम सेतु 1964 तक दिखाई देता था। हालांकि, राम सेतु अब पानी के नीचे है। नासा के सैटेलाइट द्वारा ली गई तस्वीर में उथले पानी वाले इलाकों में सैंडबार पर पत्थर दिखाई देते हैं।

 

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

क्या हम राम सेतु जा सकते हैं?

पर्यटक धनुषकोडी से स्थानीय वैन द्वारा राम सेतु तक जा सकते हैं और पुल में इस्तेमाल किए गए तैरते पत्थरों को देख सकते हैं।

क्या हम राम सेतु पर चल सकते हैं?

हां, यहाँ पानी बहुत उथला है और कोई भी राम सेतु पर कुछ दूरी तक चल सकता है।

राम सेतु कितना लंबा है?

राम सेतु की लंबाई करीब 48 किलोमीटर है।

राम सेतु कितना पुराना है?

मद्रास विश्वविद्यालय और अन्ना विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, राम सेतु का निर्माण 18,400 साल पहले हुआ था। अध्ययन को भारतीय राष्ट्रीय महासागर सूचना सेवा केंद्र (INCOIS) और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा फंड किया गया था। यह अध्ययन मन्नार क्षेत्र की खाड़ी के बारे में पता लगाने के लिए किया गया था, जिस पर 2004 की सुनामी जैसी आपदा का भी प्रभाव नहीं पड़ा था।

रामसेतु का दूसरा नाम क्या है?

राम सेतु के अन्य नाम एडम ब्रिज, नाला सेतु और फलक स्ट्रेट में स्थित सेतु बांध हैं जो तमिलनाडु में पंबन द्वीप और श्रीलंका में मन्नार द्वीप को जोड़ता है।

राम सेतु कहाँ पर स्थित है?

रामसेतु भारत के दक्षिण-पूर्वी तट पर रामेश्वरम और श्रीलंका के उत्तर-पश्चिमी तट के पास मन्नार द्वीप के बीच 48 किलोमीटर की लंबाई में है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार रावण से युद्ध करने के लिए भगवान राम और उनकी सेना द्वारा लंका पहुंचने के लिए समुद्र पर इसे बनाया गया था।

राम सेतु पुल आज भी है क्या?

भगवान श्रीराम ने लंका पहुंचने के लिए वानर सेना से रामसेतु बनवाया था। कहते हैं कि आज भी यह सेतु विद्यमान है परंतु राम सेतु को लेकर भारत में 'सेतुसमुद्रम परियोजना' के तहत जब इस सेतु को तोड़ने का कार्य किया गया तो हिन्दुओं में इसे लेकर रोष उत्पन्न हुआ और फिर विवाद बढ़ता ही गया।

राम सेतु कितने साल पुराना है?

समुद्र विज्ञान के शोध से पता चलता है कि राम सेतु 7,000 साल पुराना है। यह शोध मन्नार द्वीप और धनुषकोडी के पास समुद्र तटों की कार्बन डेटिंग से मेल खाता है।