राजस्थान में 18 57 की क्रांति के प्रमुख केंद्र कौन कौन से थे? - raajasthaan mein 18 57 kee kraanti ke pramukh kendr kaun kaun se the?

अग्रेजों की अधीनता स्वीकार करने वाली प्रथम रियासत - करौली(1817)

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सम्पूर्ण भारत में 562 देशी रियासते थी तथा राजस्थान में 19 देशी रियासत थी।

1857 की क्रान्ति के समय ए.जी.जी. - सर जार्ज पैट्रिक लारेन्स(राजस्थान, ए. जी. जी. का मुख्यालय - अजमेर में)

राजपुताना का पहला ए. जी. जी. - जनरल लाॅकेट

1857 की क्रान्ति का तत्कालीन कारण - चर्बी वाले कारतुस

1857 की क्रान्ति में रायफल ब्राउन बेस के स्थान पर चर्बी वाले कारतुस राॅयल एनफिल्ड नामक कारतुस का प्रयोग करते है।

1857 की क्रान्ति का प्रतिक चिन्ह - कमल का फुल व रोटी

31 मई 1857 विद्रोह की योजना बनाई

नाम -दिल्ली चलो

नेतृत्व - बहादुरशाह जफर(अंतिम मुगल शासक)

10 मई 1857 को मेरठ के सैनिक ने विद्रोह कर दिया जिसे यह समय से पहले शुरूआत होने पर इसकी असफलता का मुख्य कारण था।

राजस्थान में 1857 की क्रान्ति में छः सैनिक छावनी थी।

  1. नसीराबाद - अजमेर
  2. ब्यावर - अजमेर
  3. नीमच - मध्यप्रदेश
  4. देवली - टोंक
  5. खैरवाड़ा - उदयपुर
  6. एरिनपुरा - पाली

खैरवाड़ा व ब्यावर सैनिक छावनीयों ने इस सैनिक विद्रोह में भाग नहीं लिया।

1857 की राजस्थान में क्रान्ति

राजस्थान में क्रान्ति का प्रारम्भ नसीराबाद में 28 मई 1857 को सैनिक विद्रोह से होता है।

1. नसीराबाद - 28 मई 1857 (अजमेर)

नेतृत्व - 15 वीं बंगाल नेटिव इन्फेन्ट्री

न्यूबरो नामक एक अंग्रेज सैनिक अधिकारी की हत्या कर दि और दिल्ली के ओर चले।

2. नीमच - 3 जुन 1857 (मध्यप्रदेश)

नेतृत्व - हीरा सिंह

3. देवली - 4 जुन 1857 (टोंक)

देवली और नीमच के सैनिक टोंक पहुंचते है और टोंक की सेना ने विद्रोह किया इससे राजकीय सेना का सैनिक मीर आलम खां के नेतृत्व में टोंक के नवाब वजीर अली के खिलाफ विद्रोह किया। और टोंक, देवली व नीमच के तीनों की संयुक्त सेना दिल्ली चली गई।

4. एरिनपुरा - 21 अगस्त 1857 (पाली)

जोधपुर लीजन टुकड़ी ने एरिनपुरा में विद्रोह किया और इसका नेतृत्व - मोती खां, तिलकराम, शीतल प्रसाद जोधपुर लीजन के सैनिको ने "चलो दिल्ली मारो फिरंगी" का नारा दिया।

आउवा(पाली) - जोधपुर रियासत का एक ठिकाना था।

इसमें ठिकानेदार ठाकुर कुशाल सिंह ने भी विद्रोह किया। गुलर, आसोप, आलनियावास(आस-पास की जागीर) इनके जागीरदार ने भी इस विद्रोह में शामिल होते है।

बिथौड़ा का युद्ध - 8 सितम्बर 1857(पाली)

क्रान्तिकारीयों की सेना का सेनापति ठाकुर कुशाल सिंह और अंग्रेजों की तरफ से कैप्टन हीथकोट के मध्य हुआ और इसमें क्रांतिकारीयों की विजय होती है।

चेलावास का युद्ध - 18 सितम्बर 1857(पाली)

इसमे कुशाल सिंह व ए. जी. जी. जार्ज पैट्रिक लारेन्स के मध्य युद्ध होता है और कुशाल सिंह की विजय होती है।

उपनाम - गौरों व कालों का युद्ध

जोधपुर के पालिटिकल एजेट मेंक मेसन का सिर काटकर आउवा के किले के मुख्य दरवाजे पर लटका दिया। 20 जनवरी 1858 को बिग्रेडयर होम्स के नेतृत्व में अंग्रेज सेना आउवा पर आक्रमण कर देती है। पृथ्वी सिंह(छोटा भाई) को किले की जिम्मेदारी सौंप कर कुशाल सिंह मेवाड़ चला गया।

कुशाल सिंह कोठरिया(सलुम्बर) मेवाड़ में शरण लेता है। इस समय मेवाड़ का ठाकुर जोधासिंह था। इस युद्ध में अंग्रेजों की विजय होती है।

कुशाल सिंह की कुलदेवी सुगाली माता(10 सिर व 54 हाथ) थी।

बिग्रेडियर होम्स सुगाली माता की मुर्ति को उठाकर अजमेर ले जाता है वर्तमान में यह अजमेर संग्रहालय में सुरक्षित है।

अगस्त 1860 में कुशाल सिंह आत्मसमर्पण कर दिया। कुशाल सिंह के विद्रोह की जांच के लिए मेजर टेलर आयोग का गठन किया।

साक्ष्यों के अभाव में कुशाल सिंह को रिहा कर दिया जाता है।

कोटा - 15 अक्टुबर 1857

क्रांती के समय कोटा के महाराजा रामसिंह प्र्रथम थे।

कोटा में विद्रोह कोटा की राजकीय सेना व आम जनता ने किया।

नेतृत्व - लाला जयदयाल, मेहराव खां

इस समय कोटा का पाॅलिटिक्स एजेन्ट मेजर बर्टन था। क्रांतिकारीयों ने मेजर बर्टन और उसके दो पुत्रों व एक अंग्रेज की हत्या कर दि।

1857 की क्रांति में कोटा रियासत सबसे अधिक प्रभावित होती है।

मेजर जनरल रार्बट्स के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना कोटा पर आक्रमण करती है। अधिकांश क्रांतिकारी मारे गये। और अंग्रेजों की विजय होती है।

लाला जयदयाल व मेहराब खां को फांसी दि गई।

जयपुर

1857 की क्रांती के समय जयपुर का महाराजा सवाई रामसिंह -2 था। विद्रोह की योजना बनाने वाले बजारत खां व शादुल्ला खां ने जयपुर में षड़यंत्र रचा लेकिन समय से पूर्व पता चलने पर इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।

रामसिंह -2 को सितार-ए-हिन्द की उपाधि प्रदान की।

1857 की क्रांति का परिणाम

भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी का शासन समाप्त कर दिया जाता है और भारत का शासन ब्रिटिश ताज या ब्रिटीश सरकार के अधिन चला जाता है।

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  • 1857 की क्रांति राजस्थान की रियासतों ने मराठों के आक्रमण से मुक्ति पाने तथा अपने राज्यों की सीमाओं को सुरक्षित करने के लिए 1818 ई. में अंग्रेजों के साथ संधियाँ सम्पन्न की। धीरे-धीरे अंग्रेजों ने राज्यों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना प्रारंभ कर दिया।
  • लॉर्ड डलहौजी ने राज्य की विलय की नीति के तहत सर्वप्रथम 1848 ई. में सतारा को तथा उसके बाद 1856 ई. तक नागपुर, झांसी, बरार, अवध आदि रियासतों का विलय ब्रिटिश साम्राज्य में कर लिया।
  • अंग्रजों द्वारा परम्परागत रीति-रिवाजों काे समाप्त करने, इसाई धर्म के प्रचार करने तथा सामाजिक सुधार करने के प्रयासों ने यहाँ के जनमानस को भी नाराज कर दिया।
  • इस प्रकार रियासतों के राजाओं तथा यहाँ की जनता में ब्रिटिश साम्राज्य के विरोध में लहर चल पड़ी।
  • चर्बी लगे कारतूसों के प्रयोग को 1857 की क्रांति का तात्कालीक कारण माना जाता है।
  • 1857 में ब्राउन बैस के स्थान पर ‘एनफील्ड रायफल’ का प्रयोग शुरू हुआ। इस रायफल के बारे में भारतीय सैनिकों में यह अफवाह फैली कि इनमें लगने वाले कारतूसों में गाय तथा सूअर की चर्बी लगी होती है।
  • कारतूस का प्रयोग करने से पूर्व उसके खोल को मुंह से उतारना पड़ता था जिससे हिंदू तथा मुस्लिमों का धर्म भ्रष्ट होता है। परिणाम स्वरूप 1857 का विद्रोह प्रारंभ हुआ।

1857 की क्रांति के कारण

  • 29 मार्च, 1857 को बैरकपुर छावनी की 34वीं रेजीमेंट के सैनिक मंगल पाण्डे ने चर्बी लगे कारतूस का प्रयोग करने से मना कर दिया तथा उस पर दबाव डाले जाने के कारण उसने लेफ्टिनेट बाग तथा जनरल हयूसन की हत्या कर दी।
  • 1857 के स्वतंत्रता संग्राम की शुरूआत 10 मई, 1857 को मेरठ छावनी से हुई। अंतिम मुगल शासक बहादुरशाह जफर को 1857 की क्रांति का नेता चुना गया।  
  • क्रांति के प्रतीक के रूप में ‘कमल’ तथा ‘रोटी’ को चुना गया।

राजस्थान में 1857 की क्रांति की शुरूआत

  • 1857 के विद्रोह के समय राजस्थान में 6 ब्रिटिश छावनियां थी।
  • नसीराबाद (अजमेर)
  • नीमच (मध्यप्रदेश)
  • ब्यावर (अजमेर)
  • एरिनपुरा (जोधपुर)
  • खैरवाड़ा (उदयपुर)
  • देवली (टाेंक)
    • इस समय के पॉलिटिकल एजेंट
  • मारवाड़ – मैकमोसन 
  • मेवाड़ – मेजर शाॅवर्स
  • जयपुर – कर्नल ईडन
  • कोटा – मेजर बर्टन  
    • इस समय भारत का गर्वनर जनरल लाॅर्ड कैनिंग तथा राजस्थान का ए.जी.जी पैट्रिक लॉरेंस था।

नसीराबाद में विद्रोह (28 मई, 1857)

  • अजमेर में 15 वीं बंगाल नेटिव इंफेंट्री तैनात थी जो उस समय मेरठ से आई थी।
  • पैट्रिक लॉरेंस ने इस इंफेंट्री को नसीराबाद भेज दिया तथा अजमेर की सुरक्षा के लिए दो मेर रेजीमेंट टुकड़ियों को बुला लिया गया।
  • 15वीं बंगाल इंफेंट्री को अजमेर से हटाये जाने के कारण इनमें असंतोष बढ़ने लगा तथा 28 मई, 1857 को इस टूकड़ी के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया।
  • इस सैनिक टूकड़ी का साथ 30वीं बंगाल नेटिव इंफेंट्री के सैनिकों ने भी दिया।
  • इन सैनिकों ने मेजर स्पोटिस वुड तथा न्यूबरी नामक अंग्रेज अधिकारियों की हत्या कर दी तथा छावनी को लूटते हुए दिल्ली की ओर रवाना हुए।
  • 18 जून, 1857 को दिल्ली पहुँचकर इन्होंने अंग्रेजी सेना पर आक्रमण कर उसे पराजित किया।

नीमच में विद्राेह (3 जून, 1857)

  • नीमच छावनी मध्यप्रदेश में स्थित थी लेकिन इस छावनी पर नियंत्रण कार्य मेवाड़ का पॉलिटिकल एजेंट शॉवर्स करता था।
  • कर्नल एबोट ने यहाँ पर विद्रोह हाेने के भय से नीमच छावनी के सैनिकों को वफादारी की शपथ दिलवाई।
  • मोहम्मद अली बेग ने प्रतिवाद करते हुए कहा कि “क्या अंग्रेजों ने अपनी शपथ का पालन किया?, क्या आपने अवध को नहीं हड़प लिया? इसलिए भारतीय भी अपनी शपथ का पालन करने के लिए बाध्य नहीं है।
  • 3 जून, 1857 को नीमच के सैनिकों ने मोहम्मद अली बेग तथा हीरासिंह के नेतृत्व में विद्राेह कर दिया तथा छावनी को लूटते हुए देवली आगरा के रास्ते दिल्ली की ओर प्रस्थान किया।
  • मेजर शाॅवर्स अपनी सेना सहित विद्रोहियों का पीछा करते हुए शाहपुरा पहुँचा था लेकिन यहाँ के शासक ने अंग्रेजों के लिए दुर्ग का दरवाजा नहीं खोला।

डूंगला गाँव

  • क्रांतिकारियों ने नीमच से बचकर भागे 40 अंग्रेज अधिकारियों तथा उनके परिवारजनों को डूंगला गाँव (चित्ताैड़गढ़) में रूगाराम किसान के घर में बंधक बना लिया था।
  • मेजर शाॅवर्स ने इन अंग्रेजों को यहाँ से मुक्त करवाया तथा उदयपुर पहुँचाया जहाँ महाराणा स्वरूपसिंह ने इन्हें पिछोला झील के जगमंदिर में शरण दी।
  • इनकी देखभाल की जिम्मेदारी गोकुल चंद मेहता नामक व्यक्ति को दी गई।

आउवा में विद्रोह

  • अंग्रेजों द्वारा 1835 में गठितजोधपुर लीजन’ टूकड़ी को एरिनपुरा छावनी में रखा गया।  
  • इस जोधपुर लीजन की पूर्बिया सैनिकों की टूकड़ी आबू में थी जिसे नसीराबाद तथा नीमच में विद्रोह की सूचना मिलने पर इनमें विद्रोह की भावना जाग्रत हुई।  
  • 23 अगस्त, 1857 को ये सैनिक एरिनपुरा आये तथा दफेदार मोती खाँ, सूबेदार शीतलप्रसाद, तिलक राम के नेतृत्व में विद्रोह कर दिया।
  • इन सैनिकों ने छावनी को लूटा तथा ‘चलो दिल्ली मारो फिरंगी’ का नारा लगाते हुए दिल्ली की ओर चल पड़े।
  • जब क्रांतिकारी सैनिक आउवा पहुँचे तो यहाँ के ठाकुर कुशालसिंह ने क्रांतिकारियों का नेतृत्व करना स्वीकार किया।
  • जब यह सूचना ए.जी.जी. लॉरेंस को मिली तो उसने मारवाड़ शासक तख्तसिंह को क्रांतिकारियों को कूचलने के लिए सेना भेजने को कहा।

बिथौड़ा का युद्ध (8 सितम्बर, 1857)

  • बिथौड़ा (पाली) नामक स्थान पर मारवाड़ के महाराजा तख्तसिंह के सेनापति ओनाड़सिंह व अंग्रेज अधिकारी हीथकोट ने क्रांतिकारियों पर आक्रमण किया।
  • इस युद्ध में ओनाड़सिंह तथा हीथकोठ मारे गये जबकि कुशालसिंह चम्पावत के नेतृत्व में क्रांतिकारियों की विजय हुई।

चेलावास/काला-गोरा का युद्ध (18 सितंबर, 1857)

  • बिथौड़ा युद्ध में पराजय के बाद राजस्थान ए.जी.जी. पैट्रिक लॉरेंस तथा मारवाड़ के पॉलिटिकल एजेंट मैकमोसन के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना ने क्रांतिकारियों पर आक्रमण किया जिसमें कुशालसिंह चम्पावत के नेतृत्व में क्रांतिकारियों की जीत हुई।
  • इस युद्ध में मैकमोसन मारा गया जिसका सिर काटकर आउवा के किले पर लटकाया गया।
  • 10 अक्टूबर, 1857 को जोधपुर लीजन के कुछ क्रांतिकारी आसोपा के ठाकुर शिवनाथ सिंह के नेतृत्व में दिल्ली रवाना हुए लेकिन नारनौल नामक स्थान पर ब्रिग्रेडियर गेरार्ड के नेतृत्व वाली सेना ने 16 नवम्बर, 1857 को इन्हें पराजित किया।
  • भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड कैनिंग ने कर्नल होम्स के नेतृत्व में सेना आउवा भेजी।
  • 20 जनवरी, 1858 को अंग्रेजी सेना तथा क्रांतिकारियों के मध्य युद्ध हुआ जिसमें अंग्रेजी सेना की विजय हुई तथा ठाकुर कुशालसिंह किले का भार छोटे भाई पृथ्वीसिंह को सौपंकर मेवाड़ चले गये।
  • अंग्रेजों ने आउवा में लूटपाट की तथा आउवा के ठाकुरों की कुलदेवी सुगाली माता की मूर्ति को अजमेर ले गए (सुगाली माता को 1857 की क्रांति की देवी भी कहा जाता है।)
  • कुशालसिंह ने मेवाड़ के कोठारिया ठिकाने के रावत जोधसिंह के यहाँ शरण ली।
  • 8 अगस्त, 1860 को उन्होंने अंग्रेजों के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया।
  • मेजर टेलर की अध्यक्षता में इनके खिलाफ जाँच के लिए एक कमीशन नियुक्त किया गया।
  • 10 नवम्बर, 1860 को कुशालसिंह को बिना शर्त रिहा कर दिया गया।

कोटा में विद्रोह

  • 1857 के विद्रोह में कोटा का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान रहा।
  • यहाँ पर अंग्रेजों के विरूद्ध संघर्ष राजकीय सेना तथा आम जनता द्वारा किया गया।
  • कोटा का पॉलिटिकल एजेंट मेजर बर्टन था जो नीमच के विद्रोह को शांत कर अक्टूबर, 1857 में कोटा पहुँचा।
  • 15 अक्टूबर, 1857 को जयदयाल, मेहराब खान तथा हरदयाल के नेतृत्व में कोटा में विद्रोह प्रारंभ हुआ।
  • विद्रोहियों ने मेजर बर्टन, उसके दो पुत्रों तथा डॉक्टर सैडलर की हत्या की दी तथा मेजर बर्टन का सिर काटकर सारे शहर में घुमाया गया।
  • विद्रोहियों ने कोटा महाराव रामसिंह द्वितीय को महल में नजरबंद कर दिया तथा राज्य के तोपखाने पर अधिकार कर लिया।
  • इस प्रकार सम्पूर्ण कोटा रियासत को क्रांतिकारियों ने अपने अधीन कर लिया।
  • मेजर जनरल राॅबर्टस के नेतृत्व में अंग्रेजी सेना कोटा पहुँची तथा क्रांतिकारियों को पराजित कर 30 मार्च, 1858 को कोटा पर अधिकार कर लिया।
  • कोटा को क्रांतिकारियों से मुक्त करवाने हेतु करौली शासक मदनपाल ने भी सेना भेजी थी।
  • इस प्रकार 6 माह बाद महराव को कोटा राज्य पुन: प्राप्त हुआ।
  • जयदयाल तथा मेहराबखान को फांसी दे दी गई। कोटा में सर्वाधिक व्यापक तथा भीषण संघर्ष हुआ।
  • राजस्थान में अन्य कहीं भी इतना सुनियोजित संघर्ष नहीं हुआ।
  • मेजर बर्टन की हत्या में कोटा महाराव के शामिल हाेने की जाँच करने के लिए लॉर्ड रॉबर्ट की अध्यक्षता में आयोग का गठन हुआ।
  • जिसने महाराव को निर्दोष बताया।

धौलपुर में विद्रोह

  • राव रामचंद्र तथा हीरालाल के नेतृत्व में ग्वालियर व इन्दौर के क्रांतिकारी सैनिकों ने स्थानीय सैनिकों के साथ मिलकर विद्रोह किया तथा धौलपुर रियासत पर अधिकार कर लिया।
  • दिसम्बर, 1857 तक धौलपुर पर क्रांतिकारियों का अधिकार रहा। अंत में पटियाला के शासक ने अपनी सेना भेजकर धौलपुर को क्रांतिकारियों से मुक्त करवाया।

टोंक में विद्रोह

  • 1857 के विद्रोह के समय टोंक का नवाब वजीरूदौला था जिसने अंग्रेजों का साथ दिया। यहाँ हुए विद्राेह में मीर आलम खाँ ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • तात्या टोपे के टाेंक आने पर क्रांतिकारी उनके साथ हो गये तथा अमीरगढ़ के किले के निकट नवाब की सेना को पराजित कर क्रांतिकारियों ने तोपखाने पर अधिकार कर लिया।
  • जयपुर के पॉलिटिकल एजेंट ईडन ने टोंक को क्रांतिकारियों से मुक्त करवाया।

तात्या टाेपे का राजस्थान आगमन

  • तात्या टोपे का मूल नाम रामचंद्र पांडुरंग था जो 1857 की क्रांति में ग्वालियर का विद्रोही नेता था।
  • तात्या टोपे सर्वप्रथम 8 अगस्त, 1857 को भीलवाड़ा आया।
  • 9 अगस्त, 1857 को कुआड़ा नामक स्थान पर जनरल रॉबर्टस की सेना ने तात्या टोपे को पराजित किया।
  • कोठारिया के ठाकुर जोधसिंह ने तात्या टोपे को रसद सामग्री उपलब्ध करवाई।
  • तात्या टोपे सेना सहित झालावाड़ पहुँचा जहाँ के शासक पृथ्वीसिंह ने उनके विरूद्ध सेना भेजी जो क्रांतिकारियों से पराजित हुई। क्रांतिकारियों ने झालावाड़ पर अधिकार कर लिया।
  • तात्या टोपे वापस ग्वालियर चले गये। तात्या टोपे पुन: मेवाड़ आये तथा 11 दिसम्बर, 1857 को बांसवाड़ा पर अधिकार कर लिया।
  • यहाँ से तात्या टोपे प्रतापगढ़ पहुँचे जहाँ मेजर रॉक की सेना ने उन्हें पराजित किया।
  • नरवर के जागीरदार मानसिंह नरूका की सहायता से अंग्रेजों ने नरवर के जंगलों में तात्या टोपे को पकड़ लिया तथा 18 अप्रैल, 1859 को तात्या टोपे को सिप्री (शिवपुरी) में फांसी दे दी गई।

डूंगजी-जवाहरजी (सीकर)

  • 1857 के संग्राम के समय सीकर क्षेत्र में काका-भतीजा डूंगजी-जवाहरजी प्रसिद्ध देशभक्त हुए।
  • इन्होंने छापामार लड़ाइयों से अंग्रेजों को परेशान किया तथा ये धनी लोगों से धन लूटकर गरीबों में बाटंते थे। इन्हाेंने कई बार अंग्रेज छावनियों को भी लूटा।
  • अंग्रेजों द्वारा डूंगजी को आगरा के किले में कैद कर लिया गया था जिन्हें जवाहर जी ने लोटिया जाट तथा करणिया मीणा की सहायता से छुड़वाया।
  • बीकानेर में अंग्रेजी सेना ने डूंगजी-जवाहरजी को घेर लिया जिसके पश्चात डूंगजी जैसलमेर तथा जवाहरजी भागकर बीकानेर चले गये।

क्रांति की असफलता के कारण

  • राजा-महाराजाओं द्वारा अंग्रेजों का सहयोग देना राजस्थान की लगभग सभी रियासतों के राजाओं द्वारा अंग्रेजों का भरपूर सहयोग किया गया।
  • बीकानेर महाराजा सरदारसिंह तो अंग्रेजाें की सहायता के लिए अपनी सेना सहित राजस्थान से बाहर भी गये तथा पंजाब के हांसी, सिरसा, हिसार आदि स्थानों पर क्रांतिकारियों को परास्त किया।
  • करौली के महारावल मदनपाल ने कोटा शासक रामसिंह को क्रांतिकारियों से मुक्त करवाया।
  • अलवर के महाराजा विनयसिंह ने आगरा के किले में घिरे अंग्रेज परिवारों की सहायता हेतु सेना भेजी।
  • क्रांतिकारियों के पास धन तथा हथियारों की कमी।
  • रणनीति तथा कुशल सेनानायकों को अभावक्रांति के सभी प्रमुख केन्द्रों पर क्रांति का एक समय पर प्रारंभ न होना।
  • नसीराबाद के क्रांतिकारियों का दिल्ली चले जाना जबकि उन्हें अजमेर जाकर वहाँ के शस्त्रागार पर अधिकार करना चाहिए था।
  • सितम्बर, 1857 को मुगल सम्राट बहादुरशाह जफर को कैद कर अंग्रेजों ने दिल्ली के लाल किले पर अधिकार कर लिया गया जिससे यह क्रांति नेतृत्वहीन हो गई।

1857 की क्रांति में राजस्थान

  • राजस्थान की छ: सैनिक छावनियों में से खैरवाड़ा तथा ब्यावर सैनिक छावनियोें ने क्रांति में भाग नहीं लिया था।
  • 1857 की क्रांति में बीकानेर के अमरसिंह बांठिया, प्रथम राजस्थानी व्यक्ति थे जिन्हें फांसी दी गई।
  • राजस्थान में स्वतंत्रता संग्राम का भामाशाह दामोदर दास राठी को कहा जाता है। भचूंडला (प्रतापगढ़) नामक स्थान पर ‘वीरों का स्मारक स्तंभ’ बना हुआ है।
  • द म्यूटिनी इन राजस्थान’ नामक पुस्तक प्रीचार्ड द्वारा लिखी गई। अंग्रेजों ने निम्बाहेड़ा पर अधिकार कर टोंक निवासी ताराचंद जो निम्बाहेड़ा का मुख्य पटेल था, को ताेप से उड़ा दिया था।
  • धौलपुर में विद्रोह राज्य से बाहर के सैनिकों ने किया था तथा उसे दबाने भी बाहर के सैनिक आये थे। रेबारी समुदाय के लोग मैकमोसन की कब्र पर पूजा अर्चना करते है।
  • जयपुर के महाराजा रामसिंह द्वितीय द्वारा की गई सहायता से प्रसन्न होकर अंग्रेजों ने इन्हें स्थायी रूप से कोटपुतली का परगना प्रदान किया।

राजस्थान में 1857 की क्रांति के प्रमुख केंद्र कौन कौन से हैं?

राजस्थान में 1857 की क्रांति के समय छावनियां -.
एरिनपुरा छावनी.
नसीराबाद छावनी.
नीमच छावनी.
देवली छावनी.
खेरवाड़ा छावनी.
ब्यावर छावनी.

1857 की क्रांति के प्रमुख केंद्र कौन कौन से हैं?

1857-59 के दौरान हुये भारतीय विद्रोह के प्रमुख गुर्जर केन्द्रों: मेरठ, दिल्ली, जबलपुर, कानपुर, लखनऊ, झाँसी, वर्तमान हरियाणा(पंजाब), राजस्थान से]] और ग्वालियर को दर्शाता सन 1912 का नक्शा। विद्रोह का दमन, ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन का अंत, नियंत्रण ब्रिटिश ताज के हाथ में।

1857 की क्रांति की शुरुआत राजस्थान में कहाँ से हुई?

राजस्थान में क्रान्ति का प्रारम्भ नसीराबाद में 28 मई 1857 को सैनिक विद्रोह से होता है। न्यूबरो नामक एक अंग्रेज सैनिक अधिकारी की हत्या कर दि और दिल्ली के ओर चले।

कौन सा स्थल राजस्थान में 18 सो 57 की क्रांति का केंद्र नहीं था?

1857 के विद्रोह के समय राजस्थान में जयपुर विद्रोह का केंद्र नहीं था। 1857 की क्रांति के समय जयपुर का महाराजा सवाई रामसिंह - II था