राजा प्रसेनजित की चिंता का कारण क्या था? - raaja prasenajit kee chinta ka kaaran kya tha?

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प्रश्न-अभ्यास

अनुभव विस्तार

प्रश्न 1.
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
(क) सही जोड़ी बनाइए
(अ) मगध की राजधानी – 1. श्रावस्ती
(ब) कोसल की राजधानी – 2. राजगृह
(स) महात्मा बुद्ध का शिष्य – 3. अंगुलिमाल
(द) डाकू का नाम – 4. प्रसेनजित
उत्तर-
(अ) 2,
(ब) 5,
(स) 4,
(द) 3

(ख) दिए गए विकल्पों से सही शब्द चुनकर रिक्त स्थानों की पूरि कीजिए।
(अ) महात्मा बुद्ध ने ……………… को धीरज बँधाया। (राजा, प्रजा)
(ब) अंगुलिमाल ……………. डाकू था। (सीधा-सादा, भयंकर)
(स) महात्मा बुद्ध ने अँगुलिमाल डाकू से ………………. कहा। (प्रेमपूर्वक, शान्तिपूर्वक)
उत्तर-
(अ) राजा,
(ब) भयंकर,
(स) प्रेमपूर्वक।

प्रश्न 2.
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
(अ) राजा प्रसेनजित क्यों चिंतित थे?
(ब) महात्मा बुद्ध ने डाकू को कैसे पहचाना?
(स) ‘ठहर जा’ किसने किससे कहा था?
(द) महात्मा बुद्ध के चेहरे पर सदैव मुस्कान क्यों रहती थी?
उत्तर-
(अ) राजा प्रसेनजित डाकू अँगुलिमाल के अत्याचार से चिंतित थे।
(ब) महात्मा बुद्ध ने डाकू को उसके भयंकर रूप से पहचाना।
(स) ‘ठहरा जा’ डाकू अँगुलिमाल ने महात्मा बुद्ध से कहा था।
(द) महात्मा बुद्ध के चेहरे पर सदैव मुस्कान अपने ज्ञान से रहती थी।

राजा प्रसेनजित की चिंता का कारण क्या था? - raaja prasenajit kee chinta ka kaaran kya tha?

प्रश्न 3.
लघु उत्तरीय प्रश्न
(अ) डाकू का नाम अंगुलिमाल क्यों पड़ा?
उत्तर-
(अ) अंगुलिमाल ने हजार आदमियों की हत्या करने की प्रतिज्ञा कर रखी थी। परंतु वह कितने आदमी मार चुका, इसका हिसाब रखना उसके लिए कठिन काम था। इसके लिए उसने एक युक्ति निकाली। वह जब भी किसी का वध करता तो उसकी एक अँगुली काट लेता। इस प्रकार उसके पास अँगुलियों की एक माला-सी बनती जा रही थी जिसे वह गले में डाले रहता। इसी कारण उसका नाम ‘अँगुलिमाल’ पड़ गया था।

(ब) पहरेदार के रोकने पर भी महात्मा बुद्ध जंगल में क्यों प्रवेश कर गए?
उत्तर-
(ब) पहरेदार के रोकने पर भी महत्मा बुद्ध जंगल में प्रवेश कर गए। यह इसलिए कि

  • उनका हृदय संसार के कष्टों को देखकर दुखी था।
  • उन्हें आत्मज्ञान हो गया। फलस्वरूप उन्हें किसी की चिंता नहीं थी और न उन्हें कोई डर ही था।

(स) महात्मा बुद्ध जंगल में जाते समय क्या विचार कर रहे थे?
उत्तर-
(स) महात्मा बुद्ध जंगल में जाते समय विचार कर रहे थे

“आदमी आदमी को क्यों मारता है? जीव, जीव को देखकर प्रसन्न क्यों नहीं होता?

(द) अँगुलिमाल का हृदय-परिवर्तन कैसे हुआ?
उत्तर-
(द) महात्मा बुद्ध ने अँगुलिमाल को शान्ति, दया और प्रेम का उपदेश दिया। इससे उसकी आँखें खुल गईं। उसके मन का अंधकार दूर हो गया। उसने अँगुलियों की माला तोड़ दी और कटार फेंक दी। उसने हिंसा का जीवन हमेशा के लिए छोड़ दिया। इस तरह उसका हृदय-परिवर्तन हुआ और वह महात्मा बुद्ध का शिष्य बन गया।

राजा प्रसेनजित की चिंता का कारण क्या था? - raaja prasenajit kee chinta ka kaaran kya tha?

भाषा की बात

प्रश्न 1.
बोलिए और लिखिएप्रतिभा, त्रस्त, त्राहि-त्राहि, युक्ति, निशस्त्र।
उत्तर-
प्रतिभा, त्रस्त, त्राहि-त्राहि, युक्ति, निशस्त्र।

प्रश्न 2.
सही वर्तनी पर गोला लगाइए
(अ) परसेनजित, प्रसेनजित, प्रसेनजत।
(ब) वर्तमान, वरतमान, वतर्मान।
उत्तर-
(अ) प्रसेनजित,
(स) वर्तमान।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिएधीरज, सावधान, चीख-पुकार, चिंता, दृष्टि, प्रेमपूर्वक
उत्तर-
वाक्य-प्रयोग
शब्द – वाक्य
धीर- हमें विपत्ति में धीरज रखना चाहिए।
सावधान – सावधान होकर पढ़ो।
चीख-पुकार – दुर्घटना में चीख-पुकार होती है।
चिंता – महँगाई ने गरीबों की चिंता बढ़ा दी।
दृष्टि – हमें दया की दृष्टि रखनी चाहिए।
प्रेमपूर्वक – प्रेमपूर्वक रहने में ही आनंद है।

प्रश्न 4.
विपरीतार्थी शब्दों की जोड़ी बनाइए-
जन्म – दुखी
सुखी – अशांति
हिंसा – कठिन
सरल – मरण
शांति – अहिंसा
उत्तर-
विपरीतार्थी शब्दों की जोड़ी
जन्म – मरण
सुखी – दुखी
हिंसा – अहिंसा
सरल – कठिन
शांति – अशांति

प्रश्न 5.
समानार्थी शब्द पर गोला लगाइए
(1) पेड़ – वृक्ष, पानी, आग, जंगल
(2) राह – राजा, तरू, रास्ता, हवा
(3) आँख – सागर, नदी, नभ, नेत्र।
उत्तर-
समानार्थी शब्द
(1) पेड़ – वृक्ष
(2) राह – रास्ता
(3) आँख – नेत्र।

राजा प्रसेनजित की चिंता का कारण क्या था? - raaja prasenajit kee chinta ka kaaran kya tha?

प्रश्न 6.
निम्नलिखित पंक्तियों को ध्यान से पढ़िए और संज्ञा, विशेषण और क्रिया छाँटकर तालिका में लिखिए-
महात्मा बुद्ध रुक गए। तुरंत ही घनी झाड़ियाँ चीरती हुई एक विकराल मूर्ति आ खड़ी हुई। ऊँचा कद, काला शरीर, भयानक चेहरा, लाल आँखें, बिखरे बाल, बड़ी-बड़ी मूंछे, लंबी मजबूत भुजाएँ चौड़ा सीना, हाथ में कटार।
उत्तर-

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प्रमुख गद्यांशों की संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्याएँ

1. ‘आदमी आदमी को मारता क्यों है? जीव, जीव को देखकर प्रसन्न क्यों नहीं होता?’ इन्हीं बातों पर विचार करते हुए महात्मा बुद्ध जंगल की राह बढ़े जा रहे थे कि अचानक उन्हें कोई कठोर और भारी आवाज़ सुनाई दी, ‘ठहर जा।’

शब्दार्थ-जीव-प्राणी। राह-रास्ता।

संदर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘सुगम भारती’ (हिंदी सामान्य) भाग-8 के पाठ-3 ‘अहिंसा की विजय’ से ली गई है। इसके लेखक श्री भगवतशरण उपाध्याय हैं।

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में लेखक ने हिंसा के प्रति महात्मा बुद्ध के विचारों पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि

व्याख्या-महात्मा बुद्ध को अँगुलिमाल डाकू के अत्याचारों को सुनकर के बड़ी चिंता हुई। वे बार-बार यह सोचने लगे कि एक आदमी दूसरे से मिलकर रहने की बजाय उसे क्यों कष्ट पहुँचाता है। वह उसे क्यों मारता है? एक प्राणी को दूसरे प्राणी को देखकर प्रसन्न होना चाहिए। लेकिन ऐसा नहीं होता है, क्यों? इस तरह सोचते-विचारते हुए महात्मा बुद्ध अँगुलिमाल डाकू की ओर जंगल में आगे बढ़ रहे थे। उसी समय उन्हें एक भयंकर और भारी आवाज में रोकते हुए कहा, “ठहर जाओ। अब और आगे न बढ़ो।”

  • सांसारिक कष्टों को बड़े ही सटीक रूप में व्यक्त किया गया है।
  • भाषा-शैली आकर्षक है।

राजा प्रसेनजित की चिंता का कारण क्या था? - raaja prasenajit kee chinta ka kaaran kya tha?

2. महात्मा बुद्ध ने उस पर अपनी दृष्टि डाली। उनकी नज़र में भय न था, प्यार था। उन्होंने प्रेमपूर्वक उस भयानक डाकू से कहा- “मैं तो ठहर गया, भला तू कब ठहरेगा?”

शब्दार्थ-दृष्टि-नज़र। भय-डर।

संदर्भ-पूर्ववत्।

प्रसंग-इन पंक्तियों में लेखक ने महात्मा बुद्ध की दया-दृष्टि पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि
व्याख्या-जब अंगुलिमाल डाकू ने महात्मा बुद्ध को अपनी भयंकर और कठोर आवाज़ में रोकते हुए कहा, तब उन्होंने उसे बुरा नहीं माना। उन्होंने तो उसे अपनी दया दृष्टि से ही देखा। दूसरी बात यह कि वे उससे तनिक भी नहीं डरे। इस प्रकार उन्होंने उसे बड़े प्यार से यह प्रश्न किया, “अब तो मैं ठहर गया हूँ, लेकिन अब तुम मुझे यह बतलाओ कि तुम कब ठहरोगे?”

विशेष-

  • यह अंश प्रेरक है।
  • वाक्य प्रभावशाली है।

राजा प्रसेनजित की चिंता का क्या कारण था?

(अ) राजा प्रसेनजित डाकू अँगुलिमाल के अत्याचार से चिंतित थे।

राजा क्यों चिंतित था?

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राजा प्रसेनजित क्यों व्याकुल थे?

निर्वाण की ओर भ गवान बुद्ध के उपदेश सुनकर और अपना निमंत्रण स्वीकार हो जाने के बाद आम्रपाली ने भगवान बुद्ध से विदा माँगी ।

राजा प्रसेनजित किसका शिष्य था?

श्रावस्ती में उस समय राजा प्रसेनजीत का राज्य था। इसी नगर के उत्तर की ओर कुछ ही दूरी पर एक गरीब ब्राह्णाणी अपने माणवक लोक दर्शनीय नामक पुत्र के साथ रहती थी।