पश्चिम दिशा के स्वामी कौन है - pashchim disha ke svaamee kaun hai

जानिए किस दिशा के कौन हैं दिग्पाल और क्या किस दिशा का महत्व

ज्योतिष डेस्क, अमर उजाला Published by: Shashi Shashi Updated Fri, 07 May 2021 03:31 PM IST

ज्यादातर लोगों को केवल पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण इन चार दिशाओं के बारे में ही पता होता है लेकिन इसके अलावा भी उत्तर-पश्चिम के मध्य का स्थान (वायव्य कोण) उत्तर और पूर्व के मध्य का स्थान (ईशान कोण) दक्षिण-पूर्व के मध्य का स्थान (आग्नेय कोण) दक्षिण-पश्चिम के मध्य का स्थान (नैऋत्य कोण) होती है, इस तरह से आठ दिशाएं हो जाती हैं साथ ही में आकाश और पाताल को दो दिशाएं माना गया है। इस प्रकार कुल मिलाकर दस दिशाएं मानी गई हैं। वास्तु शास्त्र में हर दिशा अपना एक अलग महत्व माना गया है, क्योंकि हर दिशा के अलग दिग्पाल और स्वामी ग्रह होते हैं। इसी कारण हर दिशा का अलग प्रभाव होता है। आइए जानते हैं कि किस दिशा का क्या महत्व होता है और किस दिशा के कौन हैं दिग्पाल।

ईशान दिशा

उत्तर और पूर्व दिशा के मध्य स्थान को ईशान कोण कहा जाता है। इस दिशा के आधिपत्य देव यानी दिग्पाल भगवान शिव हैं। शिव जी को ईशान भी कहा जाता है इसलिए भी इस दिशा को ईशान कोण कहा जाता है। इस दिशा के स्वामी ग्रह बृहस्पति ग्रह है। वास्तु शास्त्र के अनुसार इस दिशा में खिड़कियां और दरवाजे बनवाया जाना बहुत शुभ रहता है। इस स्थान को बहुत ही पवित्र माना गया है। इस दिशा में कूड़ा-करकट और भारी सामान नहीं रखना चाहिए। इस स्थान को एक दम साफ सुथरा और खाली रखना चाहिए। इस दिशा में किसी भी प्रकार का दोष होने पर धन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है साथ ही सौभाग्य में भी कमी आती है।

पूर्व दिशा

पूर्व दिशा के दिग्पाल यानी देवता इंद्र देव हैं तथा इस दिशा के स्वामी भगवान सूर्य नारायण हैं। पूर्व दिशा को पितृ स्थान का द्योतक माना जाता है। वास्तु के अनुसार इस दिशा को खुला हुआ रखना चाहिए। इस दिशा में सीढ़ियां और घर के बुजुर्गो का कमरा नहीं बनवाया जाना चाहिए साथ ही इस दिशा में किसी भी तरह से कोई अवरोध नहीं होना चाहिए।

वायव्य दिशा

उत्तर-पश्चिम के मध्य स्थान को वायव्य दिशा या कोण कहा जाता है। इस दिशा पर वायुदेव का आधिपत्य है तो वहीं इस दिशा के स्वामी ग्रह चंद्रमा हैं। इस दिशा में वायु तत्व प्रधान है। इस दिशा को हल्का और खाली रखना चाहिए। इसका संबंध परिवार के सदस्यों पड़ोसियों और रिश्तेदारों से होता है। यह दिशा साफ सुथरी और दोष रहित होने पर संबंधों में मधुरता एवं मजबूती बनी रहती है। इसी प्रकार यदि इस दिशा में दोष हो तो रिश्तों में कड़वाहट आने लगती है।

पश्चिम दिशा

पश्चिम दिशा के देवता वरुण देव हैं और इसके स्वामी ग्रह शनि हैं। इस स्थान को न ज्यादा खुला और न ज्यादा बंद रखना चाहिए। इस दिशा को पूरी तरह रिक्त भी नहीं रखना चाहिए। पश्चिम में भारी निर्माण किया जा सकता है। इस दिशा में किसी भी तरह का दोष होने पर गृहस्थ जीवन सुखमय नहीं रहता है। इसके साथ ही आपके व्यपारिक संबंधों में परेशानी आती है। यदि इस दिशा में आपका मुख्य द्वार बना हो तो वास्तु के उपाय करने चाहिए। द्वार को अच्छी तरह से सजाकर रखना चाहिए।

पश्चिम दिशा में किसका वास होता है?

इनकी प्रसन्नता से धन, सफलता, खुशियाँ व शांति प्राप्ति होती है। - दक्षिण-पश्चिम दिशा के देवता निरती हैं जिन्हे दैत्यों का स्वामी कहा जाता है। जिससे आत्मशुद्धता और रिश्तों में सहयोग तथा मजबूती एव आयु प्रभावित होती है। - पश्चिम दिशा के देवता वरूण देव हैं जिन्हें जलतत्व का स्वामी कहा जाता है।

दक्षिण पश्चिम दिशा के स्वामी कौन हैं?

नैऋत्य कोण वास्तु अनुसार घर के दक्षिण-पश्चिम दिशा के देव निरती हैं. इस दिशा का तत्व पृथ्वी है. ऐसे में आप नैऋत्य कोण में मिट्टी से बनी वस्तुओं को रखें. बता दें कि नैऋत्य कोण का स्वामी ग्रह राहु है.

दक्षिण दिशा के देवता कौन है?

- दक्षिण दिशा के देवता यमराज हैं जो मृत्यु देने के कार्य को अंजाम देते हैं। जिन्हें धर्मराज भी कहा जाता है। इनकी प्रसन्नता से धन, सफलता, खुशियाँ व शांति प्राप्ति होती है।

देवताओं का स्थान कौन सी दिशा में होना चाहिए?

ईशान दिशा : पूर्व और उत्तर दिशाएं जहां पर मिलती हैं उस स्थान को ईशान दिशा कहते हैं। इस दिशा के स्वामी ग्रह बृहस्पति और केतु माने गए हैं। पूर्व दिशा : जब सूर्य उत्तरायण होता है तो वह ईशान से ही निकलता है, पूर्व से नहीं। इस दिशा के देवता इंद्र और स्वामी सूर्य हैं।