प्रदोष व्रत का उद्यापन कैसे करना चाहिए - pradosh vrat ka udyaapan kaise karana chaahie

Pradosh Vrat 2019: कैसे करें प्रदोष व्रत का उद्यापन, जानें इसका पौराणिक महत्‍व

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Pradosh Vrat 2019: हिन्दू धर्म के अनुसार, प्रदोष व्रत कलियुग में अति मंगलकारी और शिव कृपा प्रदान करनेवाला होता है. हर महीने की त्रयोदशी तिथि में सायं काल को प्रदोष काल कहा जाता है. ऐसी मान्यता है कि प्रदोष के समय महादेव कैलाश पर्वत के रजत भवन में इस समय नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं. जो भी व्‍यक्ति अपना कल्याण चाहते हों यह व्रत रख सकते हैं. प्रदोष व्रत को करने से हर प्रकार का दोष मिट जाता है. भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित इस व्रत को प्रत्येक महीने के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष को रखा जाता है.Also Read - Pradosh Vrat 2022: कब है रवि प्रदोष व्रत? जानें इस दिन से जुड़ी कथा

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प्रदोष व्रत का उद्यापन

इस व्रत को ग्यारह या फिर 26 त्रयोदशियों तक रखने के बाद व्रत का उद्यापन करना चाहिए.

– व्रत का उद्यापन त्रयोदशी तिथि पर ही करना चाहिए.

– उद्यापन से एक दिन पूर्व श्री गणेश का पूजन किया जाता है. पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है.

– प्रात: जल्दी उठकर मंडप बनाकर, मंडप को वस्त्रों और रंगोली से सजाकर तैयार किया जाता है.

– ‘ऊँ उमा सहित शिवाय नम:’ मंत्र का एक माला यानी 108 बार जाप करते हुए हवन किया जाता है.

– हवन में आहूति के लिए खीर का प्रयोग किया जाता है.

– हवन समाप्त होने के बाद भगवान भोलेनाथ की आरती की जाती है और शान्ति पाठ किया जाता है.

– अंत: में दो ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है और अपने सामर्थ्य अनुसार दान दक्षिणा देकर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है.

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प्रदोष व्रत का पौराणिक महत्‍व

प्रदोष व्रत के महात्म्य को गंगा के तट पर किसी समय वेदों के ज्ञाता और भगवान के भक्त सूतजी ने शौनकादि ऋषियों को सुनाया था. सूतजी ने कहा है कि कलियुग में जब मनुष्य धर्म के आचरण से हटकर अधर्म की राह पर जा रहा होगा. हर तरफ अन्याय और अनाचार का बोलबाला होगा. मानव अपने कर्तव्य से विमुख होकर नीच कर्म में संलग्न होगा. उस समय प्रदोष व्रत ऐसा व्रत होगा जो मानव को शिव की कृपा का पात्र बनाएगा और नीच गति से मुक्त होकर मनुष्य उत्तम लोकको प्राप्त होगा.

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सूत जी ने शौनकादि ऋषियों को यह भी कहा कि प्रदोष व्रत से पुण्य से कलियुग में मनुष्य के सभी प्रकार के कष्ट और पाप नष्ट हो जाएंगे. यह व्रत अति कल्याणकारी है इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को अभीष्ट की प्राप्ति होगी. इस व्रत में अलग अलग दिन के प्रदोष व्रत से क्या लाभ मिलता है यह भी सूत जी ने बताया. सूत जी ने शौनकादि ऋषियों को बताया कि इस व्रत के महात्मय को सर्वप्रथम भगवान शंकर ने माता सती को सुनाया था. मुझे यही कथा और महात्मय महर्षि वेदव्यास जी ने सुनाया और यह उत्तम व्रत महात्म्य मैंने आपको सुनाया है.

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प्रदोष व्रत विधानसूत जी ने कहा है प्रत्येक पक्ष की त्रयोदशी के व्रत को प्रदोष व्रत कहते हैं. सूर्यास्त के पश्चात रात्रि के आने से पूर्व का समय प्रदोष काल कहलाता है. इस व्रत में महादेव भोले शंकर की पूजा की जाती है. इस व्रत में व्रती को निर्जल रहकर व्रत रखना होता है. प्रात: काल स्नान करके भगवान शिव की बेल पत्र, गंगाजल अक्षत धूप दीप सहित पूजा करें. संध्या काल में पुन: स्नान करके इसी प्रकार से शिव जी की पूजा करना चाहिए. इस प्रकार प्रदोष व्रत करने से व्रती को पुण्य मिलता है.

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Published Date: February 16, 2019 12:03 PM IST

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Updated Date: November 26, 2019 6:10 PM IST

प्रदोष व्रत की उद्यापन विधि क्या है?

उद्यापन से एक दिन पूर्व श्री गणेश का पूजन किया जाता है. पूर्व रात्रि में कीर्तन करते हुए जागरण किया जाता है. – प्रात: जल्दी उठकर मंडप बनाकर, मंडप को वस्त्रों और रंगोली से सजाकर तैयार किया जाता है. – 'ऊँ उमा सहित शिवाय नम:' मंत्र का एक माला यानी 108 बार जाप करते हुए हवन किया जाता है.

प्रदोष व्रत का उद्यापन कब करना चाहिए 2022?

मान्यता है कि जो व्यक्ति प्रदोष व्रत रखता है उसे सौ गौ दान करने का फल प्राप्त होता है। जो लोग भी इस व्रत को करते हैं उन्हें या तो 11 त्रयोदशी या पूरा साल की त्रयोदशी को पूरा कर उद्यापन करना चाहिए

प्रदोष व्रत कितने साल तक करना चाहिए?

नोट : रवि प्रदोष, सोम प्रदोष व शनि प्रदोष के व्रत को पूर्ण करने से अतिशीघ्र कार्यसिद्धि होकर अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है। सर्वकार्य सिद्धि हेतु शास्त्रों में कहा गया है कि यदि कोई भी 11 अथवा एक वर्ष के समस्त त्रयोदशी के व्रत करता है तो उसकी समस्त मनोकामनाएं अवश्य और शीघ्रता से पूर्ण होती है।

प्रदोष व्रत कितना करना चाहिए?

हर माह में प्रदोष व्रत दो बार आता है- एक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को और दूसरा शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को। माना जाता है कि इस दिन संध्या के समय विधिवत तरीके से भगवान शिव और मां पार्वती की पूजा अर्चना करने से विशेष आशीर्वाद की प्राप्ति होती है।