प्रस्थिति का अर्थ | what is status in hindiसामाजिक व्यवस्था के अंतर्गत किसी व्यक्ति को एक समय विशेष में जो स्थान प्राप्त होता है उसे ही प्रस्थिति कहा जाता है। Show
प्रस्थिति की परिभाषाएंइलियट एवं मैरिल के अनुसार- “इलियट जी का कहना है कि प्रस्थिति व्यक्ति का वह पद है, जो किसी समूह में अपने लिंग, आयु, परिवार, वर्ग, व्यवसाय, विवाह अथवा प्रयाशों आदि के कारण प्राप्त करता है।” ऑगबर्न तथा निमकॉफ के अनुसार- “प्रस्थिति की सबसे सरल परिभाषा यह है कि यह समूह में व्यक्ति के पद का प्रतिनिधित्व करती हैं।” लिण्टन के अनुसार- “सामाजिक व्यवस्था के अंतर्गत किसी व्यक्ति को एक समय विशेष में जो स्थान प्राप्त होता है, उसे उस व्यक्ति की सामाजिक प्रस्थिति कहा जाता है।” प्रस्थिति की विशेषताएं1. प्रत्येक समाज में एक प्रस्थिति और उससे संबंधित भूमिका का निर्धारण उस समाज के सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं मूल्यों द्वारा होता है। संस्कृति यह तय करती है कि किसने किसे कौन सी प्रस्थिति प्रदान की जाएगी और वह क्या भूमिका निभाएगा? 2. प्रस्थिति की अवधारणा को दूसरे व्यक्तियों के संदर्भ में समझा जा सकता है। एक व्यक्ति की प्रस्थिति का संबंध अन्य व्यक्तियों की प्रस्थितियों से होता है जो उनसे प्रभावित भी होते हैं। उदाहरण के लिए प्राचार्य की प्रस्थिति को प्राध्यापकों एवं छात्रों की प्रस्थिति के संदर्भ में ही समझा जा सकता है। 3. एक ही प्रस्थिति का निर्वाह अलग-अलग व्यक्तियों द्वारा अपने-अपने ढंग से किया जाता है। प्रधानमंत्री के रूप में पंडित नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री एवं मेरारजी देसाई द्वारा समान ढंग से भूमिकाओं का निर्वाह नहीं किया गया। 4. प्रत्येक स्थिति व्यक्तियों के संपूर्ण सामाजिक पद का केवल एक भाग ही होता है। व्यक्ति समाज में एक साथ अनेक प्रस्थिति प्राप्त करता है और विभिन्न अवसरों पर उनके अनुरूप में अपनी भूमिका निभाता है। उदाहरण के लिए एक ही व्यक्ति डॉक्टर, पिता, पति एवं पुत्र के रूप में विभिन्न प्रस्थिति धारण करता है। और उनका निर्वाह अवसर आने पर उन्हीं के अनुरूप करता है। 5. प्रस्थिति के आधार पर संपूर्ण समाज विभिन्न परिस्थितियों समूहों में बटा होता है इन प्रस्थिति के आधार पर आप किसी समाज की विशेषताओं को ज्ञात कर सकते हैं। 6. प्रत्येक परिस्थिति के साथ एक विशेष मूल्य एवं प्रतिष्ठा जुड़ी होती है जो संस्कृति द्वारा निर्धारित होती है जैसे- पश्चिमी देशों में भारत की अपेक्षा स्त्री की प्रतिष्ठा ऊंची है। 7. एक व्यक्ति एक ही समय में कई प्रस्थिति को धारण करता है, किंतु वह सभी का निर्वाह समान योग्यता एवं कुशलता के साथ नहीं कर पाता। एक व्यक्ति अच्छा खिलाड़ी हो सकता है किंतु वह एक असफल व्यापारी और लापरवाह पति भी हो सकता है। 8. समाज में पूछ एवं निम्न स्थितियों के कारण ही सामाजिक संस्करण तथा विभेदीकरण पैदा होता है जो उदग्र या क्षैतिज के रूप में हो सकता है। 9. समाज में कुछ प्रस्थिति होती हैं जो एक व्यक्ति को समाज स्वयं प्रदान करता है और दूसरी ओर कुछ प्रस्थिति व्यक्ति अपनी योग्यता एवं प्रयत्नों के द्वारा अर्जित करता है। प्रस्थितियों के प्रकार1. प्रदत प्रस्थिति— समाज में कुछ स्थितियां ऐसी होती हैं जो व्यक्ति के गुण पर ध्यान दिए बिना उसको सोता ही प्राप्त हो जाती है। यह परिस्थितियां व्यक्ति को किसी परिवार विशेष में जन्म लेने वापर रंपरा आदि के कारण प्राप्त होती है। और बच्चे को उस समय प्रदान कर दी जाती है जबकि उसके व्यक्तित्व के बारे में समाज कुछ नहीं जानता। समाज में परिस्थितियां पहले से ही मौजूद होती है जो नवीन जन्म लेने वाले प्राणी को प्रदान कर दी जाती है। विश्व के सभी समाजों में परिस्थितियां पाई जाती है। वेदर परिस्थितियां हर व्यक्ति का अपना कोई नियंत्रण नहीं होता; जैसे स्त्री या पुरुष होना, बालक या युवा होना, सुंदर व बदसूरत होना, लंबा बाद छोटा होना। लिंगभेद, नातेदारी, प्रजाति, जातिवाद एवं अवैध संतान परिवार में बच्चों की कुल संख्या गोद लेने माता पिता की मृत्यु तथा विवाह विच्छेद आदि की इच्छा का कोई ध्यान नहीं रखते हुए उसको एक प्रस्थिति प्रदान करते हैं। प्रदत्त प्रस्थिति के निर्धारण के आधारकिसी भी व्यक्ति की प्रस्थिति का निर्धारण अनेक आधारों पर होता है प्रदत प्रस्थिति निर्धारण के कुछ प्रमुख आधार इस प्रकार से हैं_
2. अर्जित प्रस्थिति— दूसरी ओर समाज में कुछ प्राइस स्थितियां ऐसी भी होती है जिन्हें व्यक्ति अपने गुण योग्यता एवं क्षमता के आधार पर प्राप्त करता है यह अर्जित प्रस्थिति कहलती हैं। हर्टन एवं हण्ट के अनुसार— “एक सामाजिक पद जिसे व्यक्ति अपनी इच्छा एवं प्रतिस्पर्धा के द्वारा प्राप्त करता है, अर्जित प्रस्थिति के नाम से जाना जाता है।” शिक्षा व्यवस्था, संपत्ति, संचय, विवाह, श्रम विभाजन आदि का संबंध अर्जित प्रस्थितियों से ही है। आधुनिक समाज में जहां जन्म के स्थान पर व्यक्ति के गुणों को अधिक महत्व दिया जाता है वहां अर्जित प्रस्थिति अधिक पाई जाती है। अर्जित प्रस्थिति के निर्धारण के आधार
प्रदत और अर्जित प्रस्थिति में अंतरपरिस्थिति मानव जीवन से जुड़ा एक सम्मानित पद है। वर्तमान समय में वृद्ध एवं अर्जित दोनों प्रकार की परिस्थितियों समाज में बनी हुई हैं, सैद्धांतिक परिस्थितियों में तो दोनों परिस्थितियां एक दूसरे के विपरीत व विरोधी प्रवृत्ति की प्रतीक होती हैं, किंतु दोनों में संबंध भी पाया जाता है। संक्षेप में, प्रदत्त प्रस्थिति और अर्जित प्रस्थिति में इस प्रकार के अंतर पाए जाते हैं। 1. जन्म के आधार पर- व्यक्ति को प्रदत्त प्रस्थिति जन्म से प्राप्त होती है, किंतु अर्जित प्रस्थिति को जन्म का कोई महत्व नहीं रहता। क्योंकि अर्जित प्रस्थिति किसी भी उम्र में प्राप्त कर सकता है। 2. प्रकृति के आधार पर- प्रद्युत परिस्थिति की प्रकृति स्थायित्व होती है अर्थात अधिकांश यही स्थाई होती है। जबकि अर्जित प्रस्थिति व्यक्ति की क्षमताओं गुणों पर आश्रित होती है, अतः इसकी प्रकृति अस्थाई होती है, आस्था क्षमताओं व गुणों की समाप्ति पर यह नष्ट हो सकती है। 3. महत्व के आधार पर- प्रदत्त प्रस्थितियों का महत्व परंपरागत समाजों में अधिक होता है, आधुनिक समाजों में अर्जित प्रस्थिति अधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। 4. सांस्कृतिक आधार पर- प्रदत्त परिस्थितियों में समाज के मूल्य और विश्वास तथा भावनाएं जुड़ी होती है, अर्जित प्रस्थिति में इन सब बातों का कोई महत्व नहीं होता। 5. प्रतिस्पर्धा के आधार पर- प्रदत प्रस्थिति में किसी भी प्रकार की प्रतिस्पर्धा को स्थान नहीं दिया जाता, क्यों किया तो कुछ निश्चित आधारों पर व्यक्ति को बिना परिश्रम के प्राप्त हो जाती है, जबकि अर्जित प्रस्थिति प्राप्त करने हेतु व्यक्ति को प्रतिस्पर्धा में विजेता होना पड़ता है, जो कि बिना परिश्रम और मेहनत के प्राप्त नहीं किया जा सकता। अर्थात अर्जित प्रस्थिति प्राप्त करने में प्रतिस्पर्धा होती है। 6. सुरक्षा के आधार पर- प्रदत परिस्थिति की प्रकृति स्थाई होती है, अतः यह व्यक्ति में सुरक्षा की भावना प्रदान करती है। लेकिन अर्जित प्रस्थिति व्यक्ति को सुरक्षा की भावना प्रदान नहीं करती क्योंकि अर्जित प्रस्थिति की प्रकृति अस्थाई होती है। 7. अधिकार के आधार पर- प्रदत्त प्रस्थिति के मुख्य आधार जन्म, लिंग, आयु, जाति, नातेदारी व संपत्ति प्रमुख हैं, जबकि अर्जित प्रस्थिति के आधार पर शिक्षा, व्यवसाय, खेलकूद की योग्यता, सहस, वीरता तथा अन्य अधिकार प्रमुख हैं। इन्हे भी पढ़ें-
प्रस्थिति और भूमिका में क्या अंतर है?प्रस्थिति एक समाजशास्त्रीय अवधारणा है यह एक सामाजिक सांस्कृतिक तथ्य है जबकि भूमिका सामाजिक मनोविज्ञान का विषय एवं प्रघटना हैं । प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका दूसरे व्यक्ति से भिन्न होती है । इसका एक कारण यह भी है कि समूह एवं संगठन के विकास के साथ-साथ उसके पदाधिकारियों के कार्यों एवं दायित्वों में भी परिवर्तन आ जाता है।
प्रस्थिति का क्या अर्थ है?प्रस्थिति या स्थिति का अर्थ, एक समय विशेष में, किसी विशेष स्थान मे, किसी विशेष व्यवस्था के अन्दर जो व्यक्ति को एक स्थान मिला होता है व उसकी स्थिति या प्रस्थिति या पद हैं।
भूमिका से आप क्या समझते हैं?इलियट तथा मेरिल के अनुसार " भूमिका वह कार्य है जिसे वह (व्यक्ति) प्रत्येक स्थिति के लिए करता हैं। सार्जेण्ट अनुसार " किसी व्यक्ति का कार्य सामाजिक व्यवहार का वह प्रतिमान अथवा प्रारूप है, जो कि उसे एक परिस्थिति विशेष मे अपने समूह के सदस्यों की मांगों व प्रत्याशाओं के अनुरूप प्रतीत होता हैं।
प्रस्थिति कितने प्रकार की होती है?दूसरे शब्दों में किसी सामाजिक प्रणाली के अन्तर्गत किसी निर्धारित समय में व्यक्ति का दर्जा होता है, उसे ही हम सामाजिक प्रस्थिति कहते हैं प्रस्थिति के प्रकार अथवा वर्गीकरण-समाज में व्यक्ति को प्रस्थिति को लिण्टन महोदय ने दो वर्गों में विभाजित किया है, जो है-1) प्रदत्त प्रस्थिति तथा (2 ) अर्जित प्रस्थिति।
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