परसों की प्रसिद्धि का क्या कारण था और लेखक वहां क्यों जाना चाहता था? - parason kee prasiddhi ka kya kaaran tha aur lekhak vahaan kyon jaana chaahata tha?

पसोवा की प्रसिद्धि का क्या कारण था और लेखक वहाँ क्यों जाना चाहता था?

पसोवा में जैन धर्म के तीर्थस्थल विद्यमान थे। उसकी प्रसिद्धि में इन तीर्थस्थलों का मुख्य हाथ था। यहाँ हर वर्ष जैन समुदाय का एक बहुत बड़ा मेला लगता था। जैन श्रद्धालु हज़ारों की संख्या में यहाँ आते थे। प्राचीन समय से ही इस मेले का महत्व रहा है। इसके अतिरिक्त यहाँ एक पहाड़ी थी, जिसमें बुद्धदेव द्वारा रोज़ व्यायाम किया जाता था। उस पहाड़ी में एक नाग भी रहा करता था। यह भी कहा जाता था कि सम्राट अशोक ने उसके समीप ही एक स्तूप बनवाया था, जिसमें बुद्धदेव के नख और बाल रखे गए हैं। यह सोचकर लेखक ने वहाँ जाने का निर्णय लिया ताकि उसे पुरातत्व से संबंधित वस्तु तथा जैसे मूर्ति, सिक्के आदि सामग्री मिल जाए। उसकी इस लालसा ने उसे पसोवा जाने के लिए विवश कर दिया।

Concept: गद्य भाग

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पसोवा की प्रसिद्धि का क्या कारण था और लेखक वहा क्यों जाना चाहता था?

पसोवा की प्रसिद्धि का क्या कारण था और लेखक वहाँ क्यों जाना चाहता था? उत्तर: पसोवा में जैन धर्म का तीर्थ स्थल है। यहाँ पर जैन समुदाय का बहुत बड़ा मेला लगता था। यह भी कहा जाता था कि सम्राट अशोक द्वारा यहाँ पर स्तूप बनवाया गया था

मूर्ति गायब होने पर लोग लेखक को क्यों दोष देते थे?

उत्तर लेखक को मूर्ति पुराने सिक्के और शिलालेखों को इकट्ठा करने का शौक था। लेखक पुरातत्व महत्व की वस्तु को देखते ही अपने साथ ले जाता था । उसकी इस आदत से सभी Page 4 परिचित थे। अतः कहीं भी मूर्ति गायब हो जाती थी तो लोग लेखक का ही नाम लेते थे

गांव वालों ने उपवास क्यों रखा और उसे कब तोड़ा?

जब लेखक उनके गाँव के पास से गुज़रा, तो उसने पुरानी मूर्ति जानकर उसे अपने साथ ले गया। मूर्ति न पाकर गाँव वाले दुखी हो गए। उन्होंने तय किया कि जब तक शिव की मूर्ति वापस नहीं आएगी, वे न कुछ खाएँगे और न कुछ पिएँगे। इस तरह सभी ने उपवास करना आरंभ कर दिया।

दो रुपए में प्राप्त बोधिसत्व की मूर्ति पर दस हज़ार रुपए क्यों न्यौछावर किए जा रहे थे?

अतः दो रुपए में प्राप्त मूर्ति पर एक फ्राँसीसी व्यक्ति द्वारा दस हजार रुपए न्यौछावर किए जा रहे थे। उसे निराशा हाथ लगी क्योंकि लेखक भी मूर्ति के महत्व से परिचित था। वह उसे देश से बाहर नहीं जाने देना चाहता था। अतः उसने भी मूर्ति पर दस हजार न्यौछावर कर दिया और उस व्यक्ति को लौटा दिया।