नाटक क्या होता है यह कहानी से किस प्रकार? - naatak kya hota hai yah kahaanee se kis prakaar?

• कविता के किन प्रमुख घटको का ध्यान रखना चाहिए?
कविता भाषा में होती है इसलिए भाषा का सम्यक ज्ञान जरूरी है भाषा शब्दों से बनती है शब्दों का एक विन्यास होता है जिसे वाक्य कहा जाता है भाषा प्रचलित एवं सहज हो पर संरचना ऐसी कि पाठक को नई लगे कविता में संकेतो का बड़ा महत्व होता है इसलिए चिह्नों (, !,।) यहाँ तक कि दो पंक्तियों के बीच का खाली स्थान भी कुछ कह रहा होता है वाक्य-गठन की जो विशिष्ट प्रणालियाँ होती हैं, उन्हें शैली कहा जाता है इसलिए विभिन्न काव्य-शैलियों का ज्ञान भी जरुरी है। शब्दों का चयन, उसका गठन और भावानुसार लयात्मक अनुशासन वे तत्व हैं जो जीवन के अनुशासन की लिए जरुरी हैं।
• कहानी लेखन में कथानक के पत्रों का संबंध स्पष्ट कीजिए।
देशकाल, स्थान और परिवेश के बाद कथानक के पत्रों पर विचार करना चाहिए। हर पात्र का अपना स्वरूप, स्वभाव और उद्देश्य होता है। कहानी में वह विकसित भी होता है या अपना स्वरूप भी बदलता है। कहानीकार के सामने पत्रों का स्वरूप जितकारण पत्नारों का अध्ययन कहानी की एक बहुत महत्त्वपूर्ण और बुनियादी शर्त है। इसके स्पष्ट होगा उतनी ही आसानी उसे पत्रों का चरित्र-चित्रण करने और उसके संवाद लिखने में होगी। इसके अंतगर्त पात्रो के अंत संबंध पर भी विचार किया जाना चाहिए। कौन-से पात्र की किस किस परिस्थिति में क्या प्रतिक्रिया होगी, यह भी कहानीकार को पता होना चाहिए।
• नाटक लेखन की कार्य अवस्थाएँ किस प्रकार होती हैं?
नाटक में आरंभ से लेकर अंत तक पाँच कार्य अवास्थाए होती हैं, आरंभ, यत्न, प्राप्त्याशा, नियताप्ति और फलागम आरंभ-कथानक का आरंभ होता है और फलप्राप्ति की इच्छा जाग्रत होती है।
आरंभ – इसमें किसी भी तरह के नाटक की शुरुआत की जाती हैं।
यत्न – इसमें फलप्राप्ति की इच्छा को पूर्ण करने के लिए प्रयत्न किए जाते हैं।
प्राप्त्याशा – इसमें फलप्राप्ति की आशा उत्पन्न होती है।
नियताप्ति – इसमें फलप्राप्ति की इच्छा निश्चित रूप ले लेती है।
फलागम आरंभ – इसमें फलप्राप्ति हो जाती है।
• कहानी का नाट्य- रूपांतरण करते समय किन महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए? कहानी का नाट्य रूपांतर करते समय इन महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान देना चाहिये-
1. कहानी एक ही जगह पर स्थित होनी चाहिये।
2. कहानी में संवाद नहीं होते और नाट्य संवाद के आधार पर आगे बढता है। इसलिये कहानी मे संवाद का समावेश करना जरूरी है।
3. कहानी का नाट्य रूपांतर करने से पहले उसका कथानक बनाना बहुत जरूरी है।
4. नाट्य मे हर एक पत्र का विकास, कहानी जैसे आगे बढती है, वैसे होता है इसलिये कहानी का नाट्य रूपांतर करते वक्त पात्र का विवरण करना बहुत जरूरी होता है।
5. एक व्यक्ति कहानी लिख सकता है, पर जब नाट्य रूपांतर कि बात आती है, तो हर एक समूह या टीम कि जरूरत होती है।
कहानी, नाटक व कविता में अंतर
साहित्य की कई सारी विधाएं हैं। जिनके अंतर्गत साहित्यकार अपने विचारों को प्रस्तुत करते हैं. कुछ प्रमुख विधाएं हैं – नाटक, एकांकी, उपन्यास, कहानी, आलोचना, निबंध, संस्मरण, रेखाचित्र, आत्मकथा, जीवनी, डायरी, यात्रावृत्त, रिपोर्ताज, कविता आदि. हिंदी साहित्य की दो शैलियाँ हैं – गद्य और पद्य. कहानी और नाटक गद्य की विधाएं हैं. कविता, पद्य की विधा है. आज हम यहाँ कहानी, नाटक, कविता के बारे में जानेंगे कि इनकी क्या विशेषताएं हैं और क्यों ये एक दूसरे से आपस में भिन्न हैं.

बिन्दुओं के माध्यम से कहानी, नाटक व कविता में अंतर
कहानी एक बैठक में ख़तम हो सकती है लेकिन नाटक एक अभिनय पर आधारित होता है. कविता छोटी और बड़ी हो सकती है. कविता लयबद्ध होती है.
कहानी में कथानक होता है, नाटक की कोई कथावस्तु हो सकती है व पात्रों का चरित्र – चित्रण व संवाद होता है. कविता की सौन्दर्यता रस, अलंकार व छंदों के द्वारा बढ़ाई जाती है.
नाटक में किसी कहानी को अभिनय से प्रदर्शित किया जा सकता है और कहानी में जीवन की झलक हो सकती है. कविता प्रकृति या किसी घटना से प्रेरित होकर लिखी जाती है और यह भाव प्रधान होती है.
कहानी के छः तत्व माने गये हैं – कथावस्तु, चरित्र-चित्रण, संवाद, देशकाल या वातावरण, उद्देश्य, शैली. नाटक के तत्व हैं कथावस्तु, नेता (नायक), अभिनय, रस और वृत्ति. कविता के सौन्दर्य तत्व हैं – भाव – सौन्दर्य, विचार – सौन्दर्य, नाद – सौन्दर्य, अप्रस्तुत योजना का सौन्दर्य.
कहानी गद्य की ही एक विधा है. नाटक का निर्माण “नट” शब्द से हुआ है जिसका आशय है – सात्त्विक भावों का अभिनय.कविता पद्यात्मक होती है. कविता की कई विधाएं हैं, जैसे – गीत, दोहा, भजन, छंद आदि. दोहा में दो पद होते हैं.
नाटक का रंगमंचीय होना आवश्यक है. कहानी से हमें अंत में कोई शिक्षा या प्रेरणा मिलती है, इससे मनोरंजन तो होता ही है व जीवन जीने के लिए प्रेरणा भी मिलती है. कविता का उद्देश्य सौन्दर्य की अनुभूति द्वारा आनंद की प्राप्ति है.
कहानी के लिये कथावस्तु का होना अनिवार्य है क्योंकि इसके अभाव में कहानी की रचना की कल्पना भी नहीं की जा सकती. नाटक की भाषा शैली होती है. कविता में भावनाओं की प्रधानता होती है. कविता के द्वारा कार्य – प्रवृत्ति का वेग उत्पन्न होता है.
कहानी का संचालन उसके पात्रों के द्वारा किया जाता है और पात्रों के गुण-दोष ही उनका ‘चरित्र चित्रण’ कहलाता है. नाटक में पात्रों का विशेष महत्त्व है. मुख्य पात्र (नायक) कला का अधिकारी होता है. कविता में जीवन के अनुभव को काव्य रूप में दिखाया जाता है.
नाटक में स्वाभाविकता और सजीवता को दर्शाने के लिए देशकाल और वातावरण का उचित ध्यान रखा जाता है. कहानी में वास्तविकता दर्शाने के लिये देशकाल और वातावरण का प्रयोग किया जाता है. प्रकृति या व्यापक-विशेष को कविता इस प्रकार प्रदर्शित करती है कि हमारे सामने सब सजीव लगता है.
कहानी, नाटक व कविता बनाती साहित्य को श्रेष्ठ |
कविता, नाटक और कहानी में भिन्नताएं होते हुए भी ये समाज का दर्पण हैं. एक कवि, नाटककार और कहानीकार अपनी प्रतिभा को अपनी लेखनी के माध्यम से किसी न किसी रूप में अंकित करता है. कविता, नाटक और कहानी आपस में भिन्न होते हुए भी साहित्यकार द्वारा लिखी हुई बातों को उनके कहानी, कविता और नाटक में उन्हें अमरता प्रदान करते हैं. साहित्य
में व्याप्त इतनी सारी विभिन्नताएं ही साहित्य को श्रेष्ठ बनाती हैं.

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नाटक क्या होता है ये कहानी से किस प्रकार भिन्न है?

पारम्परिक सन्दर्भ में, नाटक, काव्य का एक रूप है (दृश्यकाव्य)। जो रचना श्रवण द्वारा ही नहीं अपितु दृष्टि द्वारा भी दर्शकों के हृदय में रसानुभूति कराती है उसे नाटक या दृश्य-काव्य कहते हैं। नाटक में श्रव्य काव्य से अधिक रमणीयता होती है। श्रव्य काव्य होने के कारण यह लोक चेतना से अपेक्षाकृत अधिक घनिष्ठ रूप से संबद्ध है।

नाटक कितने प्रकार का होता है?

नाटक चार प्रकार के होते हैं, वे हैं कॉमेडी, ट्रेजेडी, ट्रेजिकोमेडी और मेलोड्रामा। इन शैलियों की उत्पत्ति अलग-अलग समय में हुई है, लेकिन उनमें से प्रत्येक की अपनी विशेषताएं हैं

कहानी का नाटक क्या होता है?

जैसे कि मैंने ऊपर आपको बताया कि, अपनी सोच, स्वप्न किसी व्यक्ति के साथ सांझा करना कहानी कहलाता है। उसी कहानी को जब कुछ कलाकार मिलकर किसी रंगमंच पर अपने आव-भाव व गुणों के साथ श्रोताओं के सामने दर्शाऐं, तो उसे नाटक कहते हैं। नाटक हमेशा कहानी से जुड़ा रहता है।

नाटक किसे कहते हैं इसके कितने तत्व हैं?

नाटक "नट" शब्द से निर्मित है जिसका आशय हैं--- सात्त्विक भावों का अभिनय। नाटक दृश्य काव्य के अंतर्गत आता है । इसका प्रदर्शन रंगमंच पर होता हैं। भारतेंदु हरिशचन्द्र ने नाटक के लक्षण देते हुए लिखा है-- "नाटक शब्द का अर्थ नट लोगों की क्रिया हैं