शुष्क और अर्ध शुष्क प्रदेश में अनाच्छादन के कारकों मुख्यतः पवन एवं सीमित मात्रा में जल के द्वारा विभिन्न प्रकार की स्थलाकृतियों का निर्माण होता है, जिसे मरुस्थलीय या शुष्क स्थलाकृतियां कहते हैं। Show डेविस के अनुसार पवन ही मरुस्थलीय प्रदेश में अपरदन के मुख्य दूत हैं, यह यांत्रिक ऋतुक्षरण से उत्पन्न चट्टानी कणों का अपवाहन करता है, जो क्रमशः सतह को समतल बनाता है। सतह को समतल बनाने की क्रिया अधारतल तक होती है। वायु अपरदन का आधारभूत जलस्तर होता है। अतः भूमिगत जलस्तर को प्राप्त करने के क्रम में मरुस्थल के मध्य बेसिननुमा आकृति का विकास होता है। कहीं-कहीं झील भी दृष्टिगत होने लगती है, और यह झील अंत: प्रवाह को जन्म देती है। मिस्र और लीबिया में ऐसी अनेक स्थलाकृति और जल प्रवाह देखने को मिलते हैं। लेकिन मरुस्थलीय प्रदेशों में आकस्मिक वर्षा के कारण जलीय प्रवाहतंत्र भी विकसित होता है। यद्यपि ये अल्पकालिक होते हैं, लेकिन आर्द्र प्रदेश के समान ही अपरदन चक्र की क्रिया प्रारंभ हो जाती है। सामान्यतः मरुस्थलीय प्रदेश की झील ऐसे प्रदेश के लिए अधारताल का कार्य करती है, क्योंकि यह क्रिया आकस्मिक तथा यत्र तत्र होती है, लेकिन डेविस सहित कई अन्य स्थलाकृतिक वैज्ञानिकों का मानना है, कि बहते हुए जल स्थलाकृतियां अपरदन चक्र के नियमों के अनुरूप विकसित होती हैं, और अंतिम स्थलाकृतियां के रूप में पेडिप्लेन का विकास होता है। एल.सी. किंग ने इस संदर्भ में पेडिप्लेनेशन चक्र दिया। अतः मरुस्थलीय प्रदेश की स्थलाकृतियों का अध्ययन अपरदन दूतों के अनुसार दो समूह में किया जा सकता है।
वायु द्वारा विकसित स्थल आकृतियांअपरदन के अन्य कारकों की तरह वायु भी अपरदन, परिवहन एवं निक्षेपण कार्यों द्वारा विभिन्न स्थलाकृतियों का निर्माण करती है, जो निम्न प्रकार है। अपरदनात्मक स्थलाकृतियां :
समप्राय मैदान के समान ही इसके मध्य कहीं-कहीं कठोर चट्टानी तीव्र ढाल पाए जाते हैं, जिसे इन्सेलबर्ग कहा गया। यह स्थलाकृति कुछ समानता लिए सहारा में कहीं कहीं दृष्टिगत होती है। निक्षेपात्मक स्थलाकृति :
शुष्क प्रदेशों में जल द्वारा विकसित स्तलाकृतियां मरुस्थलीय प्रदेश में अपरदन चक्र की क्रिया का विचार सर्वप्रथम डेविस ने 1905 में दिया था। अतः आर्द्र प्रदेशों की तरह ही यहां भी युवावस्था में निक्षेप से संबंधित स्थलाकृतियों का विकास होता है। इसी प्रकार का विचार एल.सी. किंग ने भी दिया था लेकिन मरुस्थलीय प्रदेशों में वर्षा की अल्पकालीन एवं आकस्मिता के कारण स्थलाकृति विकास की प्रक्रिया आर्द्र प्रदेशों की तुलना में भिन्न होती है। कुछ प्रमुख भिन्नताएं इस प्रकार हैं।
जल की क्रिया द्वारा निम्न स्थलाकृतियों का विकास होता है।
वादी – बहते हुए जल द्वारा निर्मित घटियां, जिसकी तली सपाट और चौड़ी एवं ढाल खड़ी एवं तीव्र होती है। यह अपरदन चक्र की प्राथमिक अवस्था की विशेषता है। मरुस्थलों में आकस्मिक वर्षा से उत्पन्न बाढ़ को भी ‘वादी’ कहते हैं। अपरदन चक्र से उत्पन्न अंतिम स्थलाकृति है। दोनों ही शब्दों में का प्रयोग एल.सी. किंग महोदय ने किया है। यह वह सतह है, जिसके आगे अपरदन संभव नहीं है। यह लगभग समतलप्राय विस्तृत मैदान होते हैं, जिसके मध्य कहीं-कहीं कठोर चट्टानी टीले अपशिष्ट रहते हैं, जिन्हें इंसेलवर्ग कहा जाता है। यह मोनेडनाक की तरह होते हैं पर उसकी तुलना में तीव्र ढाल वाले होते हैं। तीव्र ढाल के कारण जल के साथ ही वायु का अपरदन क्रिया का होना है। दक्षिणी कैलीफोर्निया के मरुस्थलीय स्थलाकृति का अध्ययन करते हुए डेविस ने कठोर चट्टानों के ऐसे टीले को ग्रेनाइट गुंबद कहां है। यहां ग्रेनाइट डाइक की अवस्था में होते हैं। अफ्रीका में इन टीलों का अध्ययन पहले बोर्नहोट ने किया था, अतः इन्सेलबर्ग को बोर्नहोट भी कहते हैं। आजा ऊपर के तथ्यों से स्पष्ट है कि आकस्मिक वर्षा के बहते हुए जल द्वारा भी आधारतल के प्राप्ति के लिए अपरदन चक्र की क्रिया होती है। इस क्रम में आर्द्र विशिष्ट अपरदनात्मक और निक्षेपित्मा की स्थलाकृतियों का भी विकास होता है। निम्न में से कौन पवन अपरदन द्वारा नहीं बनता?जैसा कि हम जानते हैं कि हवा कठोर चट्टान की तुलना में नरम चट्टान को तेजी से अपरदन करती है। रेगिस्तान में कुछ कठोर चट्टानें होती है जिसे पवन अपरदन नहीं कर पाता, परिणाम स्वरुप वह आसपास के मैदानों की तुलना में अधिक ऊंची या पर्वत जैसा दीखता है, इसी को इंसर्लबर्ग्स या मोनाडॉक कहते है।
पवन द्वारा निर्मित स्थलाकृति कौन कौन सी है?पवन द्वारा निर्मित स्थलाकृति में बरखान विशेष उल्लेखनीय है जिसका तात्पर्य नव चन्द्राकार एवं चापाकार बालुका स्तूप से है जो पवन प्रवाह की दिशा से अनुप्रस्थीय दिशा में स्थित होता है और इसके शृंग उस दिशा की ओर अनुगमन करते हैं जिसमें पवन बहती है, क्योंकि स्तूप के सिरों पर प्रवाहित किए जाने के लिए थोड़ी रेत की मात्रा होती है ...
मरूस्थलीय क्षेत्र में पवन निक्षेपण से कौन स्थलाकृतियों का निर्माण होता है?मरुस्थलीय प्रदेशों में पवन द्वारा बालू के निक्षेपण से बालू टिब्बों का निर्माण होता है।
अपरदन से निर्मित स्थलाकृति क्या कहलाती है?नदी वेदिकाएँ मुख्ययत: अपरदित स्थलरूप हैं जो नदी द्वारा निक्षेपित बाढ़ मैदानों के लंबवत अपरदन से निर्मित होते हैं। ये प्रारंभिक बाढ़ मैदानों या पुरानी नदी घाटियों के तल के चिह्न होते हैं।
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