मथुरा भारत का प्राचीन नगर है। यहां पर से 500 ईसा पूर्व के प्राचीन अवशेष मिले हैं, जिससे इसकी प्राचीनता सिद्ध होती है। उस काल में शूरसेन देश की यह राजधानी हुआ करती थी। पौराणिक साहित्य में मथुरा को अनेक नामों से संबोधित किया गया है जैसे- शूरसेन नगरी, मधुपुरी, मधुनगरी, मधुरा आदि। उग्रसेन और कंस मथुरा के शासक थे जिस पर अंधकों के उत्तराधिकारी राज्य करते थे। Show मथुरा यमुना नदी के तट पर बसा एक सुंदर शहर है। मथुरा जिला उत्तरप्रदेश की पश्चिमी सीमा पर स्थित है। इसके पूर्व में जिला एटा, उत्तर में जिला अलीगढ़, दक्षिण-पूर्व में जिला आगरा, दक्षिण-पश्चिम में राजस्थान एवं पश्चिम-उत्तर में हरियाणा राज्य स्थित हैं। मथुरा, आगरा मण्डल का उत्तर-पश्चिमी जिला है। मथुरा जिले में चार तहसीलें हैं- मांट, छाता, महावन और मथुरा तथा 10 विकास खण्ड हैं- नन्दगांव, छाता, चौमुहां, गोवर्धन, मथुरा, फरह, नौहझील, मांट, राया और बल्देव हैं। श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ था। पिता का नाम वासुदेव और माता का नाम देवकी। दोनों को ही कंस ने कारागार में डाल दिया था। उस काल में मथुरा का राजा कंस था, जो श्रीकृष्ण का मामा था। कंस को आकाशवाणी द्वारा पता चला कि उसकी मृत्यु उसकी ही बहन देवकी की आठवीं संतान के हाथों होगी। इसी डर के चलते कंस ने अपनी बहन और जीजा को आजीवन कारागार में डाल दिया था। जन्मभूमि का इतिहास : जहां भगवान कृष्ण का जन्म हुआ पहले वह कारागार हुआ करता था। यहां पहला मंदिर 80-57 ईसा पूर्व बनाया गया था। इस संबंध में महाक्षत्रप सौदास के समय के एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि किसी 'वसु' नामक व्यक्ति ने यह मंदिर बनाया था। इसके बहुत काल के बाद दूसरा मंदिर सन् 800 में विक्रमादित्य के काल में बनवाया गया था, जबकि बौद्ध और जैन धर्म उन्नति कर रहे थे। इस भव्य मंदिर को सन् 1017-18 ई. में महमूद गजनवी ने तोड़ दिया था। बाद में इसे महाराजा विजयपाल देव के शासन में सन् 1150 ई. में जज्ज नामक किसी व्यक्ति ने बनवाया। यह मंदिर पहले की अपेक्षा और भी विशाल था, जिसे 16वीं शताब्दी के आरंभ में सिकंदर लोदी ने नष्ट करवा डाला। ओरछा के शासक राजा वीरसिंह जू देव बुन्देला ने पुन: इस खंडहर पड़े स्थान पर एक भव्य और पहले की अपेक्षा विशाल मंदिर बनवाया। इसके संबंध में कहा जाता है कि यह इतना ऊंचा और विशाल था कि यह आगरा से दिखाई देता था। लेकिन इसे भी मुस्लिम शासकों ने सन् 1669 ईस्वी में नष्ट कर इसकी भवन सामग्री से जन्मभूमि के आधे हिस्से पर एक भव्य ईदगाह बनवा दी गई, जो कि आज भी विद्यमान है। इस ईदगाह के पीछे ही महामना पंडित मदनमोहन मालवीयजी की प्रेरणा से पुन: एक मंदिर स्थापित किया गया है, लेकिन अब यह विवादित क्षेत्र बन चुका है क्योंकि जन्मभूमि के आधे हिस्से पर ईदगाह है और आधे पर मंदिर। मथुरा परिक्रमा : मथुरा परिक्रमा में होते हैं कृष्ण से जुड़े प्रत्येक स्थलों के दर्शन। माना जाता है कि यह परिक्रमा चौरासी कोस की है जिसके मार्ग में अलीगढ़, भरतपुर, गुड़गांव, फरीदाबाद की सीमा लगती है, लेकिन इसका अस्सी फीसदी हिस्सा मथुरा जिले में ही है। मथुरा के अन्य मंदिर : मथुरा में जन्मभूमि के बाद देखने के लिए और भी दर्शनीय स्थल है :- जैसे विश्राम घाट की ओर जाने वाले रास्ते पर द्वारकाधीश का प्राचीन मंदिर, विश्राम घाट, पागल बाबा का मंदिर, इस्कॉन मंदिर, यमुना नदी के अन्य घाट, कंस का किला, योग माया का स्थान, बलदाऊजी का मंदिर, भक्त ध्रुव की तपोस्थली, रमण रेती आदि। मथुरा-वृंदावन और आसपास के इलाके में भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी के अनगिनत मंदिर हैं, जहां हमेशा श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है. इनमें से कुछ मंदिर एकदम खास हैं, जहां सिर नवाए बगैर कोई जाना नहीं चाहता. यहां मथुरा-वृंदावन के कुछ ऐसे ही मंदिरों की एक झलक पेश की गई है... श्रीकृष्णजन्मभूमि मंदिर मथुरा नगरी के बीचोंबीच ही स्थित है. मान्यता के अनुसार यहीं भगवान गोपाल का जन्म हुआ था. मंदिर अत्यंत प्राचीन है. इसकी सुंदरता देखते ही बनती है. मथुरा के द्वारकाधीश मंदिर की आरती विशेष रूप से दर्शनीय होती है. मंदिर में मुरली मनोहर की सुंदर मूर्ति विराजमान है. मथुरा में पावन यमुना नदी पर कई घाट बने हुए हैं. द्वारकाधीश मंदिर के पास यमुना नदी के घाट पर श्रद्धालु दर्शन-पूजन करते हैं और नौका-विहार का भी आनंद लेते हैं. वृंदावन में बांकेबिहारी मंदिर में श्रद्धालु प्रभु की कृपा पाने आते हैं. दर्शन के लिए भक्तों की भीड़ लगी रहती है. हर कोई प्रभु की एक झलक पाने को लालायित रहता है. भगवान बांकेबिहारी की प्रतिमा भक्तों के सारे संताप हर लेती है. वृंदावन में ही दाऊजी मंदिर है. इसमें श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलरामजी की प्रतिमा विशेष रूप से दर्शनीय है. जो भी वृंदावन आता है, वह निधिवन का दर्शन किए बगैर नहीं लौटता. ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण आज भी रात के वक्त राधारानी के साथ रास रचाने यहां पधारते हैं. रात को निधिवन पूरी तरह से खाली हो जाता है. तब यहां कोई पशु-पक्षी भी नहीं रहते. वृंदावन का प्रेम मंदिर अत्यंत भव्य है. रात के वक्त भी यहां श्रद्धालुओं की भीड़ कम नहीं होती. प्रेम मंदिर की सजावट एकदम खास तरीके से की गई है. रात के वक्त इसका रंग हमेशा बदलता रहता है. वृंदावन के इस्कॉन मंदिर में राधेकृष्ण की प्रतिमा एकदम मनोहारी है. जो भी इन्हें देखता है, मुग्ध हुए बिना नहीं रहता. वृंदावन के इस्कॉन मंदिर में श्रद्धालु झूमते-गाते हुए प्रभु की आराधना करते हैं. यहां विदेशी श्रद्धालुओं की भी अच्छी-खासी तादाद होती है. वृंदावन में दुनिया का सबसे ऊंचा श्रीकृष्ण मंदिर बनने जा रहा है. अगले 5 साल में 300 करोड़ रुपये की लागत से इसका निर्माण होने का अनुमान है. वृंदावन चंद्रोदय मंदिर की ऊंचाई 700 फुट अथवा 210 मीटर होगी. दिल्ली में 72.5 मीटर के कुतुबमीनार से इस इसकी ऊंचाई तीन गुना ज्यादा होगी. ISKCON, बेंगलुरु के श्रद्धालुओं ने इस मंदिर की परिकल्पना की है. वृन्दावन में कौन सी नदी बहती है?यमुना भारत की पवित्र नदियों में से एक है। यह उत्तराखंड के हिमालय में 6387 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यमुनोत्री ग्लेशियर से निकलती है।
मथुरा में कौन कौन सी नदी है?मथुरा यमुना नदी (Yamuna River) के किनारे बसा है। यह भारत के पवित्र नदियों में अपना स्थान रखती है। इस नदी का उद्गम यमुनोत्री से होता है।
गोकुल में कौन सी नदी बहती है?द्वारिकाधीश मंदिर के सेवा अधिकारी पंडित अजय कुमार तैलंग ने बताया कि पांच हजार 240 साल पहले कंस के कारागार के पास यमुना नदी बहती थी। मौजूदा समय में यह नदी 2.5 किमी दूर चक्रतीर्थ घाट के पास चली गई है। यहां से गोकुल तक यमुना नदी करीब 15 किमी का सफर तय करती है।
वृंदावन का दूसरा नाम क्या है?- महामंडलेश्वर नवल गिरी कहते हैं, वृंदावन तो ब्रज का केंद्र है।
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