Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 15 सूरदास के पद Textbook Exercise Questions and Answers. Show
Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 15 सूरदास के पदHBSE 8th Class Hindi सूरदास के पद Textbook Questions and Answersपदों से Surdas Ke Pad Solution HBSE 8th Class Hindi प्रश्न 1. Surdas Ke Pad Class 8 Question Answer HBSE Hindi प्रश्न 2. Chapter 15 Hindi Class 8 HBSE प्रश्न 3. Class 8 Hindi Surdas Ke Pad HBSE प्रश्न 4. Class 8 Surdas Ke Pad HBSE Hindi प्रश्न 5. Hindi Class 8 Chapter 15 HBSE प्रश्न 6. अनुमान और कल्पना Ch 15 Hindi Class 8 HBSE प्रश्न
1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. मुझे उसके सामने ही खूब बुरा-भला कहा गया। मुझसे साइकिल छीन लेने की धमकी भी दी गई। भाषा की बात प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. विपरीतार्थक: पाठ से दोनों प्रकार के शब्दों को खोज कर लिखिए। विलोम अर्थवाले शब्द: सूरदास के पद पदों की सप्रसंग व्याख्या 1. मैया, कबहिं बढ़ेगी चोटी? शब्दार्थ: ‘प्रसंग: व्याख्या: विशेष:
2.
ते लाल मेरौ माखन खायौ। शब्दार्थ: प्रसंग: व्याख्या: विशेष:
सूरदास के पद Summary in Hindiसूरदास के पद पाठ का सार जीवन-परिचय: प्रसिद्ध है कि वे जब गऊघाट पर रहते थे तब एक दिन महाप्रभु वल्लभाचार्य से उनकी भेंट हुई। सूर ने अपना एक भजन बड़ी तन्मयता से गाकर महाप्रभु को सुनाया, जिसे सुनकर वे बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने सूरदास को अपना शिष्य बना लिया। वल्लभाचार्य के आदेश से ही सूरदास ने कृष्ण-लीला का गान किया। उनके अनुरोध पर ही सूरदास श्रीनाथ के मंदिर में आकर भजन-कीर्तन करने लगे। वे निकट के गाँव पारसोली में रहते थे। वहीं से नित्यप्रति श्रीनाथजी के मंदिर में आकर भजन गाते और चले जाते। उन्होंने मृत्युकाल तक इस नियम का पालन किया। 1583 ई. में पारसोली में ही उनका देहांत हुआ। रचनाएँ: साहित्यिक विशेषताएँ: श्रृंगार वर्णन: Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 14 अकबरी लोटा Textbook Exercise Questions and Answers. Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 14 अकबरी लोटाHBSE 8th Class Hindi अकबरी लोटा Textbook Questions and Answersकहानी की बात अकबरी लोटा HBSE 8th Class प्रश्न 1.
पाठ 14 अकबरी लोटा के प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 2. Akbari Lota Class 8 Summary In Hindi HBSE प्रश्न 3. Akbari Lota Class 8 HBSE प्रश्न 4. Class 8 Hindi Akbari Lota HBSE प्रश्न 5. अनुमान और कल्पना Akbari Lota HBSE 8th Class प्रश्न 1. Akbari Lota Question Answer In Hindi HBSE 8th Class प्रश्न 2. Akbari Lota Class 8 Question Answer In Hindi HBSE प्रश्न 3.
क्या होता यदि 1.
अंग्रेज लोटा न खरीदता ? पता कीजिए 1. “अपने वेग में उल्का को लजाता हुआ वह आँखों से ओझल हो गया।” 2. “इस कहानी में आपने दो चीजों के बारे में मजेदार कहानियाँ पढ़ी-अकबरी लोटे की कहानी और जहाँगीरी अंडे की कहानी।” 3. अपने घर या कक्षा की किसी पुरानी चीज के बारे में ऐसी ही कोई मजेदार कहानी बनाइए। 4. बिलवासी जी ने जिस तरीके से रुपयों का प्रबंध किया, वह सही था या गलत ? भाषा की बात 1. इस कहानी में लेखक ने जगह-जगह पर सीधी-सी बात कहने के बजाय रोचक मुहावरों, उदाहरणों आदि के द्वारा कहकर अपनी बात को और अधिक मजेदार/रोचक बना दिया है। कहानी में से वे वाक्य चुनकर लिखिए जो आपको सबसे अधिक मजेदार लगे।
2. इस कहानी में लेखक ने अनेक मुहावरों का प्रयोग किया है। कहानी में से पांच मुहावरे चुनकर उनका प्रयोग करते हुए वाक्य लिखिए।
HBSE 8th Class Hindi अकबरी लोटा Important Questions and AnswersAkbari Lota Summary In Hindi HBSE 8th Class प्रश्न 1. साहब बिलवासी जी को धन्यवाद देते हुए बैठ गए और लाला झाऊलाल की ओर इशारा करके बोले-“आप इस शख्स को जानते हैं ?” प्रश्न 2. प्रश्न 3. अकबरी लोटा गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न 1. लाला झाऊलाल को खाने-पीने की कमी नहीं थी। काशी के ठठेरी बाज़ार में मकान था। नीचे की दुकानों से एक सौ रुपए मासिक के करीब किराया उतर आता था। अच्छा खाते थे, अच्छा पहनते. थे, पर ढाई सौ रुपए तो एक साथ आँख सेंकने के लिए भी न मिलते थे। इसलिए जब उनकी पत्नी ने एक दिन एकाएक ढाई सौ रुपए की मांग पेश की, तब उनका जी एक बार ज़ोर से सनसनाया और फिर बैठ गया। उनकी यह दशा
देखकर पत्नी ने कहा-“डरिए मत, आप देने में असमर्थ हों, तो मैं अपने भाई से माँग लूँ?” 2. लाला झाऊलाल ने देखा कि इस भीड़ में प्रधान पात्र एक अंग्रेज है, जो नखशिख से भीगा हुआ है और जो अपने एक पैर को हाथ से सहलाता हुआ दूसरे पैर पर नाच रहा है। उसी के पास अपराधी लोटे को भी देखकर लाला झाऊलाल जी ने फौरन दो और दो जोड़कर स्थिति को समझ लिया। गिरने के पूर्व लोटा एक दुकान के सायबान से टकराया। वहाँ टकराकर उस दुकान पर खड़े उस अंग्रेज को उसने सांगोपांग स्नान कराया और फिर उसी के बूट पर आ गिरा। उस अंग्रेज को जब मालूम हुआ कि लाला झाऊलाल ही उस लोटे के मालिक हैं, तब उसने केवल एक काम किया। अपने मुँह को खोलकर खुला छोड़ दिया। लाला झाऊलाल को आज ही यह मालूम हुआ कि अंग्रेजी भाषा में गालियों का ऐसा प्रकांड कोष है। 3. “जी, जनाब। सोलहवीं शताब्दी की बात है। बादशाह हुमायूँ शेरशाह से हारकर भागा था और सिंध के रेगिस्तान में मारा-मारा फिर रहा था। एक अवसर पर प्यास से उसकी जान निकल रही थी। उस समय एक ब्राह्मण
ने इसी लोटे से पानी पिलाकर उसकी जान बचाई थी। हुमायूँ के बाद अकबर ने उस ब्राह्मण का पता लगाकर उससे इस लोटे को ले लिया और इसके बदले में उसे इसी प्रकार के दस सोने के लोटे प्रदान किए। यह लोटा सम्राट अकबर को बहुत प्यारा था। इसी से इसका नाम अकबरी लोटा पड़ा। वह बराबर इसी से वजू करता था। सन् 57 तक इसके शाही घराने में रहने का पता है। पर इसके बाद लापता हो गया। कलकत्ता के म्यूजियम में इसका प्लास्टर का मॉडल रखा हुआ है। पता नहीं यह लोटा इस आदमी के पास कैसे आया? म्यूजियम वालों को पता चले, तो फैंसी दाम देकर
खरीद ले जाएँ। अकबरी लोटा Summary in Hindiअकबरी लोटा पाठ का सार लाला झाऊलाल अच्छे खाते-पीते व्यक्ति थे। काशी के ठठेरी बाजार में उनका मकान था। नीचे की दुकानों से 100 रुपए मासिक किराया आ जाता था। एक दिन उनकी पत्नी ने अचानक 250 रुपए माँग लिए। साथ ही धमकी भी दे दी कि यदि आप न दे सकें तो मैं अपने भाई से ले लूँगी। लाला झाऊलाल को पत्नी का अपने भाई से रुपए लेना अपमानजनक लगा। उन्होंने एक सप्ताह में रुपए दे देने का वादा कर दिया। जब चार दिन ऐसे ही बीत गए तो उन्हें रुपयों के प्रबंध की चिंता सताने लगी। पाँचवें दिन उन्होंने पं. बिलवासी मिश्र को अपनी बिपदा सुनाई। वे बोले-“मेरे पास हैं तो नहीं, पर मैं कहीं से मांग-जाँचकर लाने की कोशिश करूँगा और कल शाम को तुमसे मकान पर मिलूंगा।” आज हफ्ते का अंतिम दिन था। लाला झाऊलाल इसी उधेड़-बुन में छत पर टहल रहे थे। नौकर को पानी के लिए आवाज देने पर पत्नी पानी लेकर आई, पर वह गिलास लाना भूल गई। वह एक बेढंगी सूरत वाले लोटे में पानी लाई थी। लाला झाऊलाल को यह लोटा सदा से नापसंद था। लाला अपना गुस्सा पीकर पानी पीने लगे, अभी वे एक-दो बूट ही पी पाए होंगे कि उनके हाथ से लोटा छूट गया। तिमजिले मकान से पानी से भरा लोटा नीचे एक अंग्रेज के पैर पर जा गिरा। वह पैर को हाथ से सहला ही रहा था कि वहाँ पं. बिलवासी मिश्र आ प्रकट हुए। उन्होंने अपने ढंग से स्थिति को संभालने की कोशिश की। उन्होंने अंग्रेज को आराम से एक कुर्सी पर बिठाया। अंग्रेज गाली बक रहा था। बिलवासी मिश्र ने अंग्रेज को पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने की सलाह दी। जब वह चलने को तैयार हो गया तो बिलवासी मिश्र ने एक चालाकी चली। उन्होंने उस लोटे को 50 रुपए में खरीदने की इच्छा जताई। साहब ने इस रद्दी लोटे के 50 रुपए अधिक बताए। पूछने पर बिलवासी मिश्र ने कहा-“यह एक ऐतिहासिक लोटा है। मुझे पूरा विश्वास है कि यह प्रसिद्ध अकबरी लोटा है। इसकी तलाश में संसार भर के म्यूजियम परेशान हैं।” यह बात सुनकर अंग्रेज हैरान रह गया। बिलवासी मिश्र ने उसकी जिज्ञासा को बढ़ाते हुए कहा-16वीं शताब्दी की बात है। हुमायूँ की प्यास एक ब्राह्मण ने इसी लोटे से बुझाई थी। बाद में अकबर ने दस सोने के लोटे देकर इसे ब्राह्मण से प्राप्त कर लिया। वह इसी लोटे से वजू करता था। सन् 57 तक यह लोटा शाही घराने में रहा, फिर लापता हो गया। इस विवरण ने अंग्रेज के मन में लोटे को पाने की इच्छा जागृत कर दी। अंग्रेज को पुरानी ऐतिहासिक चीजों के संग्रह का शौक था। वह उस समय भी कुछ पुरानी मूर्तियाँ खरीद रहा था। उसने लोटे को खरीदने पर अपना हक जताया। बिलवासी और अंग्रेज में लोटे की कीमत पर शर्त लग गई। बिलवासी ने 250 रुपए के नोट लाला झाऊलाल के आगे फेंक दिए तो अंग्रेज ने 500 रुपए का प्रस्ताव रखा। आखिर में लोटा अंग्रेज को मिल गया। अब अंग्रेज को संतोष हुआ कि वह मेजर डगलस के जहाँगीरी अंडे का अच्छा जवाब दे सकेगा। मेजर डगलस इस जहाँगीरी अंडे को पारसाल दिल्ली में एक मुसलमान सज्जन से 300 रुपए में खरीदकर ले गए थे। अंग्रेज रुपए देकर झाऊलाल से 500 रुपए में लोटा लेकर चला गया। लाला झाऊलाल की समस्या का हल हो चुका था। उनका चेहरा प्रसन्न था। बिलवासी तुरंत घर लौट आए क्योंकि वे चुपके से पत्नी की संदूक का ताला खोलकर 250 रुपए निकाल कर लाए थे। घर लौटकर उन्होंने अपने रुपए वहीं ठिकाने पर रखकर चैन की साँस ली। अकबरी लोटा शब्दार्थ असमर्थ – समर्थ (योग्य) न होना (Incapable), प्रतिष्ठा = इज्जत (Respect), साख = इज्जत (Prestige), विपदा – मुसीबत (Trouble), बेढंगी = टेढ़ा-मेढ़ा (Shapeless), ओझल = गायब (Disappear), आकर्षण = खिंचाव (Attraction), काशीवास का संदेश = मौत की खबर (Death News), सांगोपांग = पूरे शरीर सहित (With Full body), कोष • खजाना (Treasure), डेंजरस – खतरनाक (Dangerous), ल्यूनाटिक = पागल (Mad), क्रिमिनल – मुजरिम (Criminal), इजाज़त = अनुमति (Permission), लापता – गायब (Lost), संग्रह = एकत्रित करना (Collection), बिल्लौर – काँच (Glass), अंतर्धान – गायब (Disappear)। Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 12 सुदामा चरित Textbook Exercise Questions and Answers. Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 12 सुदामा चरितHBSE 8th Class Hindi सुदामा चरित Textbook Questions and Answersकविता से Sudama Charit Question Answer HBSE 8th Class प्रश्न 1. पाठ 12 सुदामा चरित के
प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 2. सुदामा चरित कविता का सारांश Class 8 HBSE प्रश्न 3. (ख) सुदामा की पत्नी ने कृष्ण को मेंट के लिए थोड़े से चावल भिजवाए थे। सुदामा संकोचवश उन्हें कृष्ण को दे नहीं पा रहे थे। कृष्ण इसे चोरी की प्रवृत्ति बता रहे थे। (ग) इस उपालंभ के पीछे यह पौराणिक कथा है कृष्ण और सुदामा गुरु संदीपन के आश्रम में पढ़ते थे। जब वे लकड़ी एकत्रित करने के लिए वन में जाते थे तब गुरुमाता उन्हें खाने के लिए चने देती थीं। सुदामा चालाकी से कृष्ण के हिस्से के चने भी स्वयं खा जाते थे। कृष्ण उसी चोरी की प्रवृत्ति की ओर संकेत कर रहे हैं। Sudama Charit Class 8 Summary HBSE प्रश्न 4. 1. क्या कृष्ण का प्रसन्ता प्रकट करना, उठकर मिलना, आदर देना, यह सब दिखावटी था ? 2. अरे, यह कृष्ण मुझे क्या देता, वह तो कभी स्वयं घर-घर दही माँगता फिरता था। 3. मैं तो आ ही नहीं रहा था, यह तो उसने (पत्नी ने) जबरदस्ती भेजा। अब धन एकत्र कर ले। सुदामा कृष्ण के व्यवहार से इसलिए खीझ रहे थे क्योंकि उन्होंने विदा करते समय कुछ भी नहीं दिया था। सुदामा को लग रहा था कि उनका आना व्यर्थ ही गया। वे माँगे हुए चावल भी हाथ से निकल गए अर्थात् जो अपनी जेब में था, वह भी गवा आए। Sudama Charit Class 8 Solutions HBSE प्रश्न 5. Sudama Charit Summary HBSE 8th Class प्रश्न 6. कविता से आगे 1. द्रुपद और द्रोणाचार्य भी सहपाठी थे इनकी मित्रता और शत्रुता की कथा महाभारत से खोजकर सुदामा के कथानक से तुलना कीजिए। 2. उच्च पद पर पहुँचकर या अधिक समृल होकर व्यक्ति अपने निर्धन माता-पिता, भाई-बशुओं से नज़र ५. जे लग जाता है, ऐसे लोगों के लिए ‘सुदामा चारत’
कैसी चुनौती खड़ी करता है ? लिखिए। अनुमान और कल्पना 1. अनुमान कीजिए यदि आपका कोई अभिन्न मित्र आपसे बहुत वर्षों बाद मिलने आए तो आप को कैसा अनुभव होगा? 2. कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति। भाषा की बात “पानी परात को हाथ छुयो नहि, नैनन के जल सो पग धोए” कविता से अतिशयोक्ति अलंकार का एक उदाहरण : एक अन्य उदाहरण: कुछ करने को 1. इस कविता को एकांकी में बदलिए और उसका अभिनय कीजिए। HBSE 8th Class Hindi सुदामा चरित Important Questions and Answersसुदामा चरित प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 1. Sudama Charit Question Answers HBSE 8th Class प्रश्न 2. सुदामा चरित कविता का सारांश HBSE 8th Class प्रश्न 3. Summary Of Sudama Charit HBSE 8th Class प्रश्न 4. सुदामा चरित काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या 1. सीस पगा न झगा तन में, प्रभु! जाने को आहि बसै केहि ग्रामा। शब्दार्थ : प्रसंग: व्याख्या: विशेष :
2. ऐसे बेहाल बिवाइन सों, पग कंटक जाल लगे पुनि जोए। शब्दार्थ : प्रसंग: व्याख्या: विशेष :
3. कछु भाभी हमको दियो, सो तुम काहे न देता शब्दार्थ : प्रसंग: व्याख्या: कृष्ण अपने मित्र सुदामा को संदीपन गुरु के आश्रम की बात का स्मरण कराते हुए कहते हैं कि जब हम-तुम साथ-साथ पढ़ते थे, तब भी गुरुमाता ने हम दोनों के लिए चने चबाने को दिए थे। तुम सारे चने स्वयं चबा गए थे और मुझे मेरे हिस्से के चने भी नहीं दिए थे। कृष्ण ने मुस्कराकर कहा कि लगता है कि चोरी की तुम्हारी पुरानी आदत अभी तक नहीं गई है, तुम इस कला में प्रवीण हो। तुम अभी-भी चावलों की पोटली को बगल में अपने लिए ही दबा रहे हो। अमृत से सने इन चावलों को खोलते क्यों नहीं हो? तुम्हारी पिछली आदत अभी तक गई नहीं है। तुम भाभी के भेजे चावलों के साथ भी वैसा ही व्यवहार कर रहे हो। विशेष :
4. वह पुलकनि, वह उठि मिलनि, वह आवर की बात। शब्दार्थ : प्रसंग: व्याख्या: सुदामा कृष्ण के बचपन का स्मरण करके सोचते हैं कि यह वही कृष्ण है जो थोड़े से दही माँगने के लिए घर-घर हाथ फैलाता फिरता था, मला वह मुझे क्या देगा? मैं तो पहले ही इस माखनचोर को जानता था पर उसकी पत्नी ने ही जिद करके भेजा था। अब जाकर उससे कहूँगा बहुत धन मिल गया है अब इसे संभालकर रखो। वास्तव में सुदामा बहुत खिन्न थे क्योंकि वे यहाँ आना नहीं चाहते थे। अब हालत यह थी कि जो चावल वे माँग कर लाए थे वह भी कृष्ण ने ले लिए थे। बदले में खाली हाथ वापसी हुई। विशेष:
5. वैसोई राज समाज बने, गज-बाजि घने मन संभ्रम छायो। शब्दार्थ : प्रसंग: व्याख्या: वास्तव में उनकी झोंपड़ी के स्थान पर श्रीकृष्ण के प्रताप से भव्य महल दिखाई दे रहे थे। उनका पूरा गाँव ही अलौकिक आभा से चकाचौंध हो रहा था, जिनके कारण सुदामा भ्रमित हो रहे थे। श्रीकृष्ण ने उनकी अप्रत्यक्ष रूप से सहायता की थी। विशेष:
6. के वह टूटी-सी छानी हती, कह कंचन के अब धाम सुहावत। शब्दार्थ : प्रसंग: व्याख्या: पहले कठोर धरती पर रात काटनी पड़ती थी, कहाँ अब सुकोमल सेज पर नींद नहीं आती है कहाँ पहले तो यह हालत थी कि उन्हें खाने के लिए घटियां किस्म के चावल भी उपलब्ध नहीं थे और कहाँ अब प्रभु के प्रताप से उन्हें खाने को दाख (किशमिश-मुनक्का) उपलब्ध हैं। फिर भी वे अच्छे नहीं लगते। विशेष:
सुदामा चरित Summary in Hindiसुदामा चरित पाठ का सार ‘सुदामा चरित’ नरोत्तमदास द्वारा रचित अत्यंत प्रसिद्ध काव्य है। श्रीकृष्ण और सुदामा संदीपन गुरु के आश्रम में सहपाठी रहे थे। कृष्ण तो आगे चलकर द्वारकाधीश बन गए, पर सुदामा की आर्थिक दशा अत्यंत खराब रही। यहाँ तक कि उन्हें खाने-पीने की चीतों तक का अभाव झेलना पड़ रहा था। इस विपन्नावस्था से उबरने के लिए सुदामा की पत्नी ने कहा कि जाकर अपने मित्र कृष्ण से मदद क्यों नहीं मांगते? सुदामा को भारी संकोच हो रहा था, पर पत्नी के बहुत आग्रह पर वे तैयार हो गए। पत्नी ने भेंट स्वरूप कृष्ण को देने के लिए कुछ चावल पोटली में बाँधकर दे दिए। सुदामा पैदल चलते-चलते द्वारका तक जा पहुँचे। उनके नंगे पैरों में काँटे लगे थे। पहनने को पूरे वस्त्र तक न थे। जब द्वार पर उन्होंने कृष्ण (दीनदयाल) का धाम पूछा तो द्वारपाल को बहुत आश्चर्य हुआ। द्वारपाल ने उसे गरीब, ब्राह्मण की दीन दशा का वर्णन कृष्ण के सम्मुख कर कहा और बताया कि वह अपना नाम सुदामा बता रहा है। यह सुनते ही कृष्ण सारा कामकाज छोड़कर सुदामा को लेने जा पहुंचे। वे सुदामा की दुर्दशा देखकर अत्यंत व्याकुल हुए। उन्होंने अपने अश्रुजल से उनके पैरों को धोकर स्वागत-सम्मान किया। फिर वे हंसी-ठिठोली की मुद्रा में आ गए और पूछने लगे कि भाभी ने जो भेंट मेरे लिए भिजवाई है, उसे तुम देते क्यों नहीं हो। उसे अभी तक तुमने बगल में ही दबा रखा है। लगता है अभी तक तुम्हारी बचपन की चोरी की आदत गई नहीं है। तब भी तुम गुरुमाता द्वारा दिए गए मेरे हिस्से के चने भी चबा जाते थे। सुदामा काफी समय तक द्वारका में ठहरने के बाद अपने घर लौटे तो कृष्ण ने प्रत्यक्ष रूप से उन्हें कुछ नहीं दिया। इस दशा से सुदामा खीझ रहे थे। उन्हें लगता था कि यह कृष्ण तो कभी थोड़ा-सा दही पाने के लिए हाथ फैलाया करता था, भला यह मुझे क्या देगा? गाँव-घर लौटकर सुदामा आश्चर्यचकित हो गए। कृष्ण ने उनके पूरे गाँव तथा उनके घर की दशा परिवर्तित कर दी थी। अब तो वहाँ भी द्वारका जैसा वैभव झलकता था। यह सब काम कृष्ण ने गुप्त रीति से किया था। पहले तो सुदामा को कुछ भ्रम हुआ पर शीघ्र ही वे नई जिंदगी में रम गए। अब उन्हें राजसी ठाठ भोगने को मिल रहे थे, गरीबी का कहीं नामोनिशान तक न था। Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 11 जब सिनेमा ने बोलना सीखा Textbook Exercise Questions and Answers. Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 11 जब सिनेमा ने बोलना सीखाHBSE 8th Class Hindi जब सिनेमा ने बोलना सीखा Textbook Questions and Answersपाठ से पाठ 11 जब सिनेमा ने बोलना सीखा प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 1.
जब सिनेमा ने बोलना सीखा Questions And Answers HBSE 8th Class प्रश्न 2. Jab Cinema Ne Bolna Sikha HBSE 8th Class प्रश्न 3. जब सिनेमा ने बोलना सीखा प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 4. पाठ से आगे 1. मूक सिनेमा में संवाद नहीं होते, उसमें दैहिक अभिनय की प्रधानता होती है। पर, जब सिनेमा बोलने लगी अनेक परिवर्तन हुए। उन परिवर्तनों को अभिनेता, दर्शक और कुछ तकनीकी दृष्टि से पाठ का आधार लेकर खोजें। साथ ही अपनी कल्पना का भी सहयोग लें। तकनीकी दृष्टि से भी फिल्मों में काफी सुधार आए। अब गीत-संगीत का महत्त्व बढ़ चला। हिंदी-उर्दू भाषाओं का महत्त्व बढ़ गया। फिल्में ज्यादा आकर्षक बनने लगीं। 2. डब फिल्में किसे कहते हैं? कभी-कभी डब फिल्मों में अभिनेता के मुँह खोलने और आवाज में अंतर आ जाता है। इसका कारण क्या हो सकता है?
यह काम फिल्म बनने के बाद किया जाता है।
अनुमान और कल्पना 1. किसी मूक
सिनेमा में बिना आवाज के ठहाकेदार हँसी कैसी दिखेगी? अभिनय करके अनुभव कीजिए। 2. मूक फिल्म देखने का एक उपाय यह है कि आप टेलीविजन की आवाज़ बंद करके फिल्म देखें। उसकी कहानी को समझने का प्रयास करें और अनुमान लगाएँ कि फिल्म में संवाद और दृश्य की हिस्सेदारी कितनी है? भाषा की बात 1. ‘सवाक्’ शब्द वाक के पहले ‘स’ लगाने से बना है। ‘स’ उपसर्ग से कई शब्द बनते हैं। निम्नलिखित शब्दों के साथ ‘स’ का उपसर्ग की भाँति प्रयोग करके शब्द बनाएँ और शब्दार्थ में होनेवाले परिवर्तन को बताएँ। : हित, परिवार, विनय,
चित्र, बल, सम्मान। 2. उपसर्ग और प्रत्यय दोनों ही शब्दांश होते हैं। वाक्य
में इनका अकेला प्रयोग नहीं होता। दोनों में अंतर केवल इतना होता है कि उपसर्ग किसी भी शब्द में पहले लगता है और प्रत्यय बाद में। हिन्दी के सामान्य उपसर्ग इस प्रकार हैं – अ / अन, नि, दु, क / कु, स / सु. अध, बिन औं आदि।
इस प्रकार के 15-15 उदाहरण खोजकर लिखिए और अपने सहपाठियों को दिखाइए। अन्य उपसर्ग
प्रत्ययों के उदाहरण: आक – तैराक HBSE 8th Class Hindi जब सिनेमा ने बोलना सीखा Important Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. केवल पढ़ने के लिए कंप्यूटर गाएगा गीत हिंदी फिल्मों में गीतों का आगमन आलम आरा (1931) से हुआ और तब से वे अब तक लोकप्रिय सिनेमा का अनिवार्य अंग बने हुए हैं। प्रारंभ से अभिनेताओं को अपने गीत खुद गाने पड़ते थे जो उसी समय रिकॉर्ड किए जाते थे। बाद में जब यह महसूस किया गया कि हर अभिनेता या अभिनेत्री अच्छा गायक भी हो यह जरूरी नहीं तो पार्श्व गायन की प्रथा शुरू हुई और उससे गायन और भी परिष्कृत हुआ। इस बीच रिकॉर्डिंग की तकनीक में भी बहुत सुधार हुआ और उससे भी गायन की शैली में परिवर्तन हुआ। सिनेमा जैसे लोकप्रिय माध्यम में गीत के बोलों का महत्त्व ज्यादा होता है क्योंकि उन्हीं के माध्यम से किसी धुन का भावनात्मक प्रभाव पैदा होता है। फिल्म संगीत का उद्गम इस सदी के प्रारंभिक वर्षों में शास्त्रीय संगीत के अलावा, कव्वाली, भजन, कीर्तन तथा लोक-संगीत के वातावरण में हुआ। लोक-नाट्य तथा पेशेवर टूरिंग थिएटर कंपनियों का प्रभाव भी शुरू के फिल्मी गीतों पर था। कि उन दिनों माइक्रोफोन तथा लाउडस्पीकर जैसी चीजें नहीं थी, खुली हुई ऊँची स्पष्ट आवाज में गाना सबसे बड़ा और अनिवार्य गुण होता था। गायक को दूर-दूर तक बैठी भीड़ तक अपनी आवाज पहुँचानी होती थी। प्रारंभिक फिल्मों पर थिएटर का असर था, प्रारंभिक बोलती फिल्मों के लिए गायक भी थियेटर से आए। यह थिएटर परंपरागत रूप से पुरुषों का था, जिसमें महिला पात्रों की भूमिकाएँ भी पुरुष ही करते थे। लेकिन सिनेमा कि कहीं अधिक यथार्थवादी माध्यम है, उसमें यह चीज नहीं चल सकती थी। अत: जो गायिकाएँ फिल्मों के लिए आई वे स्वाभाविक ही भिन्न क्षेत्र की थीं। ये उस पेशेवर गायिकाओं के वर्ग से आई जो महफिलों में और शादियों या सालगिरहों पर मुजरे पेश करती थीं। इस शैली को फिल्म संगीत का पहला चरण कहा जा सकता है। ये गायिकाएँ जरा नाक में बैठी आवाज में गाती थीं। गीतों के बोल भी वे जरा बनावटी ढंग से चबा कर, अदा करती थीं। जल्दी ही गायिकाओं ने सुकून देनेवाली शैली में गाना शुरू कर दिया। नई शैली का उदाहरण काननबाला का गाया ‘जबाब बना गीत,’ ‘दुनिया ये दुनिया तूफानमेल’ था। फिल्मी गायन के इस दूसरे दौर में ऐसी बहुत प्रतिभाएं सामने आईं, जिन्होंने अपनी आवाज को माइक्रोफोन के अनुकूल स्वाभाविक पिच (सुर) पर ढालने में सफलता पाई। शमशाद बेगम, सुरैया, नूरजहाँ तथा कुंदनलाल सहगल इनमें शामिल थे। सहगल के साथ ही फिल्मी गायन का दूसरा दौर समाप्त हुआ। माइक्रोफोन के उपयुक्त नई आवाजें आई। मोहम्मद रफी, मुकेश, हेमंत कुमार, मन्नाडे, किशोर कुमार, तलत महमूद सभी मूलतः गायक थे। लता मंगेशकर के साथ गायिकाओं के क्षेत्र में नए युग की शुरुआत हुई। उनके कंठ की ताजगी और आकर्षण ने गायकी के प्रतिमानों को ही बदल दिया। इनके अतिरिक्त आशा भोसले, गीता दत्त, सुमन कल्याणपुर आदि गायिकाओं ने अपनी खास शैली विकसित की। भविष्य में क्या होगा? क्या हमारे लोकप्रिय सिनेमा पर गीत अब भी पहले की तरह हावी बने रहेंगे? क्या नित नए उपकरणों के आने के बाद आवाज के सुरीलेपन की जरूरत उतनी नहीं रह जाएगी? और किसे पता किसी दिन कंप्यूटर ऐसी आवाज बना कर रख दे जो किसी भी मानवीय आवाज़ से ज्यादा मुकम्मल हो! जब सिनेमा ने बोलना सीखा गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न 1. पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ बनानेवाले फिल्मकार थे अर्देशिर एम.ईरानी। अर्देशिर ने 1929 में हॉलीवुड की एक बोलती फिल्म ‘शो बोट’ देखी और उनके मन में बोलती फिल्म बनाने की इच्छा जगी। पारसी रंगमंच के एक लोकप्रिय नाटक को आधार बनाकर उन्होंने अपनी फिल्म की पटकथा बनाई। इस नाटक के कई गाने ज्यों के त्यों फिल्म में ले लिए गए। एक इंटरव्यू में अर्देशिर ने उस वक्त कहा था-‘हमारे पास कोई संवाद लेखक नहीं था, गीतकार नहीं था, संगीतकार नहीं था। ‘इन सबकी शुरुआत होनी थी। अर्देशिर ने फिल्म में गानों के लिए स्वयं की धुनें चुनीं। फिल्म के संगीत में महज तीन वाद्य-तबला; हारमोनियम और वायलिन का इस्तेमाल किया गया। आलम आरा में संगीतकार या गीतकार में स्वतंत्र रूप से किसी का नाम नहीं डाला गया। इस फिल्म में पहला पार्श्वगायक बने डब्लू, एम. खाना पहला गाना था-‘दे दे खुदा के
नाम पर प्यारे, अगर देने की ताकत है।’ 2. जब पहली बार सिनेमा ने बोलना सीख लिया, सिनेमा में काम करने के लिए पढ़े-लिखे अभिनेता-अभिनेत्रियों की जरूरत भी शुरू हुई, क्योंकि अब संवाद भी बोलने थे, सिर्फ अभिनय से काम नहीं चलनेवाला था। मूक फिल्मों के दौर में तो पहलवान जैसे शरीरवाले, स्टंट करनेवाले और उछल-कूद करनेवाले अभिनेताओं से काम चल जाया करता था। अब उन्हें संवाद बोलना था और गायन की प्रतिभा की कद्र भी होने लगी थी। इसलिए ‘आलम आरा’ के बाद आरंभिक ‘सवाक्’ दौर की फिल्मों में कई
‘गायक-अभिनेता’ बड़े पर्दे पर नजर आने लगे। हिंदी-उर्दू भाषाओं का महत्त्व बढ़ा। सिनेमा में देह और तकनीक की भाषा की जगह जन प्रचलित बोलचाल की भाषाओं का दाखिला हुआ। सिनेमा ज्यादा देसी हुआ। एक तरह की नई आजादी थी। जिससे आगे चलकर हमारे दैनिक और सार्वजनिक जीवन का प्रतिबिंब फिल्मों में बेहतर होकर उभरने लगा। जब सिनेमा ने बोलना सीखा Summary in Hindiजब सिनेमा ने बोलना सीखा पाठ का सार यह सिनेमा के बारे में है। 14 मार्च, 1931 की तारीख ऐतिहासिक थी क्योंकि इस दिन भारत की पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ प्रदर्शित हुई थी। इससे पहले मूक फिल्में बनती थीं। पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ को बनाने वाले फिल्मकार थे-अर्दशिर एम. ईरानी। उन्होंने 1929 में हॉलीवड की एक बोलती फिल्म ‘शो बोट’ देखी थी। तभी से उनके मन में भी बोलती फिल्म बनाने की इच्छा जागी। उन्होंने पारसी रंगमंच के एक लोकप्रिय नाटक को आधार बनाकर पटकथा लिखी। उनके पास कोई संवाद लेखक, गीतकार और संगीतकार नहीं था। अत: नाटक के कई गाने ज्यों के त्यों फिल्म में ले लिए गए। गानों की धुनें उन्होंने स्वयं चुनीं। संगीत में केवल तीन वाद्य-तबला, हारमोनियम और वायलिन का प्रयोग किया गया। फिल्म के पहले पार्श्वगायक बने-डब्ल्यू. एम. खान। पहला गाना था-‘दे-दे खुदा के नाम पर प्यारे, अगर देने की ताकत है।’ फिल्म की शूटिंग रात में करनी पड़ती थी। अतः कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था करनी पड़ी। आर्देशिर की कंपनी ने भारतीय सिनेमा के लिए 150 मूक और लगभग 100 बोलती फिल्में बनाई। ‘आलम आरा’ फिल्म ‘अरेबियन नाइट्स’ जैसी फैंटेसी थी। इसमें गीत, संगीत तथा नृत्य के अनोखे संयोजन थे। फिल्म की नायिका जुबैदा थी और नायक थे-विट्ठल। वे उस दौर के सर्वाधिक पारिश्रमिक पाने वाले स्टार थे। विट्ठल को उर्दू बोलने में मुश्किल आ रही थी अत: उनकी जगह मेहबूब को नायक बनाया गया। इस पर विट्ठल ने मुकदमा कर दिया। उनका मुकदमा मोहम्मद अली जिन्ना ने लड़ा। उनके कारण विटुल मुकदमा जीत गए और पहली बोलती फिल्म के नायक बने। मराठी और हिंदी फिल्मों में वे लंबे समय तक नायक और स्टंटमैन के रूप में सक्रिय रहे। आलम आरा में सोहराब मोदी, पृथ्वीराज कपूर, याकूब और जगदीश सेठी जैसे अभिनेता भी थे। यह फिल्म 14 मार्च, 1931 को मुंबई के मैजेस्टिक सिनेमा में प्रदर्शित हुई। यह फिल्म आठ सप्ताह तक हाउसफुल चली। यह फिल्म 10 हजार फुट लंबी थी भौर इसे चार महीनों की कड़ी मेहनत से तैयार किया गया था। अन्य सामाजिक विषयों पर भी सवाक फिल्में बननी शुरू हुई। ऐसी ही एक फिल्म थी-‘खुदा की शान’। इसका एक पात्र महात्मा गाँधी जैसा था अतः ब्रिटिश सरकार को चुभा। बोलती फिल्मों में संवाद बोलने के लिए पढ़े-लिखे कलाकारों की आवश्यकता हुई। उस दौर की फिल्मों में कई ‘गायक अभिनेता’ बड़े पर्दे पर नजर आने लगे। अभिनेताओं और अभिनेत्रियों की लोकप्रियता का असर दर्शकों पर खूब पड़ रहा था। ‘माधुरी’ फिल्म की नायिका सुलोचना का हेयर स्टाइल उस दौर की औरतों में खूब लोकप्रिय हुआ। ‘आलमआरा’ को भारत के अलावा श्रीलंका, बर्मा तथा पश्चिमी एशिया द्वारा भी पसंद किया गया। जब सिनेमा ने बोलना सीखा शब्दार्थ सजीव – जानदार (living, alive), शिखर – सबसे ऊंचे स्थान (peak), मूक – गूंगा (dumb), सवाक – बोलती हुई (talking). लोकप्रिय – प्रसिद्ध (populary, महज- केवल (only), पार्श्वगायक – पीछे से गाने वाले (playback singer), साउंड – आवाज (sound). कृत्रिम – बनावटी (artificial), व्यवस्था – इंतजाम (arrangement), प्रकाश – रोशनी (light). सर्वाधिक – सबसे अधिक (most), पारिश्रमिक – मेहनताना (remuneration), चर्चित – जिसकी चर्चा हो (popular), स्तंभ- खंभा, प्रमुख आधार (pillar), विनम्र – कोम.न, दयालु (humble), खिताब – सम्मान (honour), केश सज्जा – बालों की सजावट (hair dressing). Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 9 कबीर की साखियाँ Textbook Exercise Questions and Answers. Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 9 कबीर की साखियाँHBSE 8th Class Hindi कबीर की साखियाँ Textbook Questions and Answersपाठ से कबीर की साखियाँ Class 8 HBSE प्रश्न 1. HBSE 8th Class Hindi Chapter 9 कबीर की साखियाँ प्रश्न 2. कबीर की साखियाँ Chapter 9 HBSE 8th Class Hindi प्रश्न 3. प्रश्न 4. पाठ से आगे 1. “या आपा को डारि दे, दया करै सब कोया” ऐसी बानी बोलिए मनका आपा खोय। 2. आपके विचार में ‘आपा’ और ‘आत्मविश्वास’ में तथा ‘आपा’ और ‘उत्साह’ में क्या कोई अंतर हो सकता है? स्पष्ट करें। 3. सभी मनुष्य एक ही प्रकार से देखते-सुनते हैं पर एकसमान विचार नहीं रसते। सभी अपनी-अपनी मनोवृत्तियों के अनुसार कार्य करते हैं। पाठ में आई कबीर की किस साखी से उपर्युक्त पंक्तियों के भाव मिलते हैं एकसमान होने के लिए आवश्यक क्या है? लिखिए । समान भावार्थ के दोहों की तुलना करें। 2 जात पात पूछै नाहिं कोई
4. कबीर के दोहों को साखी क्यों कहा जाता है, ज्ञात कीजिए। भाषा की बात बोलचाल की क्षेत्रीय विशेषताओं के कारण शब्दों के उच्चारण में परिवर्तन होता है। जैसे-वाणी शब्द बानी बन जाती है, मन से मनवा, मनुवा आदि हो जाता है। उच्चारण के परिवर्तन से वर्तनी भी बदल जाती है। नीचे कुछ शब्द दिए जा रहे हैं उनका वह रूप लिखिए जिससे आपका परिचय हो। कबीर की साखियाँ साखियों (दोहे) की सप्रसंग व्याख्या 1. जाति न पूछौ साधु की, जो पूछो तो ज्ञाना प्रसंग: व्याख्या: विशेष:
2 आवत गारी एक है, उलटत होड़ अमोका प्रसंग : प्रस्तुत साखी कबीरदास द्वारा रचिा हैं। व्याख्या: विशेष:
3. माला तो कर में फिर, जीभि फिरै मुख माहि। प्रसंग: व्याख्या: विशेष:
4. ‘कबीर’ घास न नीदिए, जो पाऊँ तलि होइ। प्रसंग: प्रस्तुत साखी ज्ञानमार्गी कवि कबीरदास प रचित है। व्याख्या: विशेष:
4. जग में बैरी कोइ नहिं, जो मन सीतल होय। प्रसंग: प्रस्तुत साखी निर्गुणधारा के प्रतिनिधि कवि कबीरदास द्वारा रचित है। व्याख्या: विशेष:
कबीर की साखियाँ कवि-परिचय जीवन-परिचय-कबीरदास ज्ञानमागी शाखा के प्रमुख एवं प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। कबीर का जन्म 1390 में काशी में हुआ। कहा जाता है कि इनका जन्म एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था और वह लोक-लाज के डर से इन्हें लहरतारा नामक तालाब के निकट छोड़ आई थी। वहाँ से ले जाकर नीमा और नीरू जलाहा दंपत्ति ने इसका पालन-पोषण किया। इस प्रकार हिंदू-मुसलमान दोनों के संस्कार इनके जीवन में विद्यमान हैं। कबीर अनपढ़ थे। उन्होंने स्वयं कहा है मसि कागद छुऔ नहि, कलम गहि नहिं हाथ। इनके परिवार के बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं है। कहा जाता है कि इनकी पत्नी का नाम लोई था जिससे कमाल और कमाली दो संतानें थीं। रामानंद इनके गुरु थे। कबीर की मृत्यु 1495 ई० में मगहर में हुई। रचनाएँ-कबीर की रचनाओं के संकलन ‘बीजक’ के तीन अंग हैं-सबद, साखी और रमैनी। साहित्यिक विशेषताएँ-कबीर के काव्य का विषय कुरीतियों, सामाजिक एवं धार्मिक बुराइयों का खंडन करता था। उन्होंने समाज में फैले हुए ढोंग, आडंबरों, जाति-पाति के भेदभाव पर कड़े प्रहार किए हैं। उन्होंने कहा है जाति-पाँति पूछे न कोई, हरि को भजे सो हरि को होड़ी। कबीर ने ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु की आवश्यकता पर बल दिया है। उन्होंने गुरु को गोविंद से भी बड़ा बताया है। कबीर ने अपने काव्य में रहस्यवादी भावना का समावेश किया है। भाषा-शैली-कबीर की भाषा-शैली ने सामान्य जन को प्रभावित किया है। उनकी भाषाः पंचमेल खिचड़ी है जिसे साहित्यकार सधुक्कड़ी के नाम से पुकारते हैं। इस भाषा में पूर्वी हिंदी, ब्रज, अवधी, राजस्थानी, पंजाबी आदि भाषाओं का मिश्रण है। Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 10 कामचोर Textbook Exercise Questions and Answers. Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 10 कामचोरHBSE 8th Class Hindi कामचोर Textbook Questions and Answersकहानी से कामचोर’ कहानी के प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 1. कामचोर पाठ के
प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 2.
पाठ 10 कामचोर के प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 3. इसका परिणाम यह निकला कि सब बच्चों को कतार में खड़ा करके हिदायत दे दी गई-“अगर किसी बच्चे ने घर की किसी चीज को हाथ लगाया तो बस, रात का खाना बंद हो जाएगा।” और बच्चे काम करने से बच गए। कामचोर class 8 HBSE प्रश्न 4. प्रश्न 5. कहानी से आगे प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. अनुमान और कल्पना 1. घरेलू नौकरों को हटाने की बात किन-किन परिस्थितियों में उठ सकती है? विचार कीजिए।
2. कहानी में एक समृद्ध परिवार के ऊधमी बच्चों का चित्रण है। आपके अनुमान से उनकी आदत क्यों बिगड़ी होगी? उन्हें ठीक ढंग से रहने के लिए आप क्या-क्या सुझाव देना चाहेंगे?
3. किसी सफल व्यक्ति की जीवनी से उसके विद्यार्थी जीवन की दिनचर्या के बारे में पढ़ें और सुव्यवस्थित कार्यशैली पर एक लेख लिखें। भाषा की बात “धुली-येधुली बालटी लेकर आठ हाथ चार थनों पर पिल पड़े।” धुली शब्द से पहले ‘बे’ लगाकर ‘बेधुली’ बना है। जिसका अर्थ हुआ ‘बिना धुली’। ‘के’ एक उपसर्ग है। ‘बे’ उपसर्ग से बनने वाले कुछ और शब्द हैं- HBSE 8th Class Hindi कामचोर Important Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न 2. एक मुर्गी दाल की पतीली में छपाक मारकर भागी और सीधी जाकर मोरी में इस तेजी से फिसली कि सारी कीचड़ मौसीजी के मुंह पर पड़ी जो बैठी हुई हाथ-मुँह धो रही थीं। इधर सारी मुर्गियाँ बेनकेल का ऊँट बनी चारों तरफ़ दौड़ रही थीं। एक भी मुर्गी दड़बे में जाने को राजी न थी। प्रश्न 3. कामचोर गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न 1. इतने में भेड़ें सूप को भूलकर तरकारीवाली की टोकरी पर टूट पड़ी। वह दालाम में बैठी मटर की फलियाँ तोल-तोल कर रसोइए को दे रही थी। वह अपनी तरकारी का बचाव करने के लिए सीना तान कर उठ
गई। आपने कभी भेड़ों को मारा होगा, तो अच्छी तरह देखा होगा कि बस, ऐसा लगता है, जैसे सई के तकिए को कूट रहे हों। भेड़ को चोट ही नहीं लगती। बिलकुल यह समझकर कि आप उससे मजाक कर रहे हैं। वह आप ही पर चढ़ बैठेगी। जरा-सी देर में भेड़ों ने तरकारी छिलकों समेत अपने पेट की कड़ाही में झोंक दी। 2. तय हुआ कि मैंस की अगाड़ी-पिछाड़ी बांध दी जाए और फिर काबू में लाकर दूध दुह लिया जाए। बस, झूले की रस्सी उतारकर मैंस के पैर बांध दिए गए। पिछले वो पैर चाचा जी की चारपाई के पायों से बाँध, अगले दो पैरों को बाँधने की कोशिश जारी थी कि मैंस चौकन्नी हो गई। छूटकर जो भागी तो पहले
चाचा जी समझे कि शायद कोई | सपना देख रहे हैं। फिर जब चारपाई पानी के दम से टकराई कामचोर Summary in Hindiकामचोर पाठ का सार घर में काफी बहस के बाद यह तय हुआ कि नौकरों की छुट्टी कर दी जाए। घर के बच्चे इतने मोटे हैं और कोई काम खुद नहीं करते। ये तो हिलकर पानी तक नहीं पीते। ये कामचोर हो गए हैं। बच्चों को कहा गया कि तुम सिवाय कधम मचाने के कुछ महीं करते। बच्चों में हिल-हिलकर पानी पीने के प्रयास में मटकों, सुराहियों को इधर-उधर लुढ़का दिया। उन्हें फरमान हुआ-ओ काम नहीं करेगा, उसे रात का खाना हरगिज़ नहीं मिलेगा। बच्चों ने अपने लिए काम पूछा तो बताया गया-दरी को साफ करो, आँगन का कूड़ा हटाओ, पेड़ों में पानी दो। बच्चे काम पर जुट गए। फर्शी दरी को चारों कोनों से पकड़कर झटकना शुरू कर दिया। सारा घर धूल से अट गया। खाँसते-खाँसते सब बेदम हो गए। जब झाड़ लगाने का फैसला हुआ तब झाड़ तो एक थी अतः झगड़े में झाड़ के पुर्जे उड़ गए। कहा गया कि पहले थोड़ा पानी छिड़कना चाहिए था। जब पानी छिड़का गया तो सारी धूल कीचड़ बन गई। अब निश्चय किया गया कि पेड़ों को पानी दिया जाए अतः सभी बच्चे कोई-न-कोई बरतन लेकर नल पर टूट पड़े। वहाँ खूब धक्का-मुक्की हुई। बच्चे कीचड़ से लथपथ हो गए। अब बच्चे समझ गए कि सफाई और पेड़ों को पानी देने का काम उनके वश की बात नहीं है। उन्होंने सोचा कम-से-कम मुर्गियाँ ही बंद कर दें। अत: वे शाम से ही बाँस, छड़ी लेकर मुर्गियों को हाँकने लगे-‘चल दड़बे, दड़बे’ मुर्गियाँ इधर-उधर कूदने लगीं। दो मुर्गिर्चा खीर के प्यालों से दौड़ती-फड़फड़ाती निकल गई। बाद में पता चला कि प्याले खाली हैं और सारी खीर दीदी के कामदानी के दुपट्टे और ताजे धुले सिर पर लगी है। एक बड़ा-सा मुर्गा अम्मा के खुले पानदान में कूद पड़ा और कत्थे-चूने में पंजे सानकर नानी अम्मा की सफेद चादर पर छापा मारकर चला गया। एक मुर्गी दाल की पतीली में छपाक मारकर भागी और मोरी की कीचड़ को मौसीजी के मुंह पर फेंक गई। कोई भी मुर्गी दड़बे में जाने को तैयार न थी। किसी को सूझी कि जो भेड़ें आई हुई हैं उन्हें दाना खिला दिया जाए। दिनभर की भूखी भेड़ें दाने सूप पर झपट पड़ी। वे तख्तों पर चढ़ गई। तश्त पर बानी दीदी का दुपट्टा फैला हुआ था। भेड़ों ने सब गड़बड़ कर दिया। हज्जन माँ एक पलंग पर दुपट्टे से मुंह ढंक कर सो रही थी। उन पर भेड़ें जा दौड़ी तो दुपट्टे में उलझी चिल्लाने लगीं ‘मारो-मारो’। इसके बाद भे. तरकारी वाली की टोकरी पर टूट पड़ीं। तरकारीवाली ने अपना बचाव करने के लिए भेड़ों को मारा, पर भला उन्हें चोट कहाँ लगने वाली थी। ऐसा लगता था कि रुई के तकिए कूटे जा रहे हों। भेड़ों ने सारी तरकारी अपने पैरों में उतार दी। अब मैंस का दूध निकालने का काम पूरा करने का सोचा गया। भैस बाल्टी को लात मारकर दूर जा खड़ी हुई। अब भैस के अगले-पिछले पैरों को बाँधने की बात सोची गई। झूले की रस्सी से बांधकर चाचा की चारपाई से पायों बाँध दिए गए। अगले पैर बाँधते समय मैंस चौकन्नी हो गई और छूटकर भागी तो चाचा की चारपाई पानी के इम से जा टकराई। फिर बछड़ा खोला गया। उसे देखकर मैंस ने अपने खुरों को ब्रेक लगा दिए। बछड़ा अपने काम में जुट गया। दूध इधर-उधर बिखर गया। सारे घर में कोहराम-सा मच गया था। अब अम्मा ने चुनौती दे डाली-“या तो बच्चा राज कायम कर लो या मुझे ही रख लो। नहीं तो मैं चली मायके।” अब अम्मा ने अपना फैसला पलटकर कहा- “अगर किसी बच्चे ने घर की किसी चीज को हाथ लगाया तो बस, रात का खाना बंद हो जाएगा।” अब बच्चों ने भी निश्चय कर लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए, वे हिलकर पानी भी नहीं पिएँगे। कामचोर शब्चार्थ वबैल = दबने वाले, कमजोर Weak), हरगिज कदापि (Seldom), फरमान राजाज्ञा (Order), तनख्याह = वेतन (Salary), हवाला = उद्धरण (Reference), धुऔधधार = ताबड़तोड़, लगातार (Continuous), कुमुक = फौजी टुकड़ी (Force), धींगामुस्ती जबर्दस्ती, धक्का-मुक्की (Forcefully), लश्टम-पश्टम जैसे-तैसे जल्दी में (In hurry), बेनकेल काबू से बाहर (Out of control). Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 8 यह सबसे कठिन समय नहीं Textbook Exercise Questions and Answers. Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 8 यह सबसे कठिन समय नहींHBSE 8th Class Hindi यह सबसे कठिन समय नहीं Textbook Questions and Answersपाठ से यह सबसे कठिन समय नहीं Summary In Hindi HBSE 8th Class प्रश्न 1.
यह
सबसे कठिन समय नहीं है कविता का सार HBSE 8th Class प्रश्न 2. Class 8 Hindi Yeh Sabse Kathin Samay Nahi Summary HBSE प्रश्न 3.
Class 8 Hindi Chapter 8 HBSE प्रश्न 4.
कविता से आगे यह सबसे कठिन समय नहीं HBSE 8th Class प्रश्न 1. यह सबसे कठिन समय नहीं के प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 2. अनुमान और कल्पना अंतरिक्ष के पार की दुनिया से क्या सचमुच कोई बस आती है जिससे खतरों के बाद भी बचे हुए लोगों की खबर मिलती है ?
आपकी राय में यह झूठ है या सच ? यदि झूठ है तो कविता में ऐसा क्यों लिखा गया ? अनुमान लगाइए यदि सच लगता है तो किसी अंतरिक्ष संबंधी विज्ञान कथा के आधार पर कल्पना कीजिए वह बस कैसी होगी, वे बचे हुए लोग खतरों से क्यों घिर गए होंगे? इस संदर्भ को लेकर कोई कथा बना सकें तो बनाइए। केवल पढ़ने के लिए पहाड़ से ऊँचा आदमी तीन सौ साठ फीट लंबा और तीस फीट चौड़ा पहाड़ काटने के लिए कितना वक्त लग सकता है? निश्चित ही टेक्नोलॉजी के इस युग में इस सवाल का जवाब इस बात पर निर्भर करेगा कि आप पहाड का सीना चीरने के लिए किस मशीन का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन अगर यह पूछा जाए कि इसी काम को एक ही शख्स को अंजाम देना हो तो कितना ‘वक्त लगेगा? शायद यह चकरा देनेवाला सवाल होगा लेकिन बिहार के गया जिले के गेलौर गाँव में एक मजदूर परिवार में जन्मे एक शख्स ने इसका जवाब अपने बाजुओं और अपनी मेहनत से दिया। पहाड़ को हिला देनेवाले उन दशरथ मांझी ने राजधानी दिल्ली में 2007 में अंतिम सांस ली। उनका जन्म 1934 में हुआ था। वर्ष 1966 की किसी अलसुबह जब छेनी-हथौड़ा लेकर दशरथ माँझी अपने गांव के पास स्थित पहाड़ के पास पहुंचे तो बहुत कम लोगों को इस बात का पता था कि इस शख्स ने अपने दिल में क्या ठान लिया है। मजदूरी और कभी-कभार इधर-उधर काम करने वाले राहगीरों के लिए ही नहीं, गाँव के लोगों के लिए भी वह एक हँसी के पात्र बन गए थे। जीवन संगिनी फागुनी देवी का समय पर इलाज न करा पाने से उसे खो चुके दशरथ मांझी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। धुन के पक्के दशरथ की अथक मेहनत बाईस साल बाद तब रंग लाई, जब उस पहाड़ से एक रास्ता दूसरे गाँव तक निकल आया। आखिर ऐसी क्या बात हुई कि दशरथ को पहाड़ चीरने की धुन सवार हुई। दरअसल पहाड़ को जब तक चीरा नहीं गया था, तब तक दशरथ के गाँव से सबसे नजदीकी वजीरगंज अस्पताल 90 किलोमीटर पड़ता था। दशरथ की पत्नी की तबीयत खराब होने पर उसे वहाँ ले जाने के दौरान ही उसने दम तोड़ दिया था। उन्हें लगा कि पहाड़ से कोई रास्ता होता तो मैं अपनी पत्नी को वक्त पर अस्पताल ले जाता और उसका इलाज करा पाता। सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की एक कविता है: ‘दुख तुम्हें क्या तोड़ेगा तुम-दुख को तोड़ दो। बस अपनी आँखें औरों के सपनों से जोड़ दो।’ जिंदगी का तीसवाँ वसंत पार कर चुके दशरथ मांझी ने शायद शेष गाँव के निवासियों के मन में दबी इस छोटी-सी । हसरत को अपनी जिंदगी का मिशन बना डाला और अपनी पत्नी की असामयिक मौत से उपजे प्रचंड दुख को एक नयी संकल्प शक्ति में तब्दील कर दिया। पाँच-छह साल तक दशरथ अकेले ही मेहनत करते रहे। धीरे-धीरे और लोग भी जुड़ा चले गए। वहाँ एक दानपात्र भी रखा गया था, जिसमें लोग चंदा डाल देते थे। कई लोग अपने घर से अनाज भी देते थे। आज की तारीख में आप कह सकते हैं कि गेलौर से वजीरगंज जाने की अस्सी किलोमीटर की दूरी को 13 किलोमीटर ला देने वाला यह रास्ता एक श्रमिक के प्यार की निशानी है। एक अंग्रेज पत्रकार ने लिखा : ‘पूअरमैंस ताजमहल’। कुछ साल पहले एक पत्रकार उनसे मिलने गया, तब एक फक्कड़ कबीरपंथी की तरह यायावरी कर रहे दशरथ मांझी ने उन्हें अपनी एक प्रिय कहानी सुनाई थी जो उस चिड़िया के बारे में थी जिसका घोंसला समुद्र बहाकर ले गया था। कहानी उस चिड़िया की प्रचंड जिजीविषा और संकल्प को बयां कर रही थी, जिसके तहत समुद्र द्वारा घोंसला न लौटाने पर चिड़िया ने अकेले ही समंदर का सुखा देने को संकल्प लिया। शुरुआत में उसे पागल करार देने वाली बाकी चिड़ियाँ भी उसके साथ जुड़ गई और फिर विष्णु का वाहन गरुड़ भी इन कोशिशों का हिस्सा बन गया। फिर बीच-बचाव करने के लिए खुद विष्णु को आना पड़ा जिन्होंने समुद्र को धमकाया कि अगर उसने चिड़िया का घोंसला नहीं लौटाया तो पलभर में उसे सुखा दिया जाएगा। तब पत्रकार ने जब उनसे पूछा कि कहानी की चिड़िया क्या आप ही हैं। इसके जवाब में आँखों में शरारत भरी मुस्कान लिए दशरथ मांझी ने बात टाल दी थी। पिछले कुछ सालों से दशरथ माँझी कबीरपंथी साधु बन गए थे और यायावर बने हुए थे, लेकिन कबीर का उनका स्वीकार महज ऊपरी नहीं था। उनके विचारों में भी कबीर जैसी प्रखरता थी। गरीब और मेहनतकशों का ईश्वर पूजा में उलझे रहना और तमाम अंधश्रद्धाओं को शिकार होना उन्हें कचोटता था। वे कहते थे कि जिंदगी भर फाकाकशी करते रहे आदमी की मौत के बाद मृत्युभोज में क्यों अच्छे-अच्छे पकवान खिलाए जाते हैं. इसके लिए लोग कर्जा क्यों लेते हैं? दशरथ मांझी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन क्या वे हमें उन मिथकीय पात्रों की याद दिलाते प्रतीत नहीं होते, जैसे पात्र हमें पुराणों में मिलते हैं, फिर वह चाहे प्रोमेथियस हो या भगीरथ। ऐसी शख्यिसतें, जो मनुष्य की उद्दाम जिजीविषा को प्रतिबिंबित कर रही होती हैं और अपनी कोशिशों से प्रकृति की दानव शक्तियों और इंसानियत के दुश्मनों से लड़ रही होती हैं। अपने जीवन का फलसफा बयान करते हुए उन्होंने एक पत्रकार को शायद इसलिए बताया था कि पहाड़ मुझे उतना ऊँचा कभी नहीं लगा, जितना लोग बताते हैं। मनुष्य से ज्यादा ऊंचा कोई नहीं होता। यह सबसे कठिन समय नहीं काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या 1. नहीं, यह सबसे कठिन समय नहीं ! प्रसंग : व्याख्या : ये सभी बातें इस बात का सबूत हैं कि जीवन अपनी रफ्तार से चल रहा है। इसे सबसे कठिन समय तो नहीं कहा जा सकता। 2. अभी भी कहता है कोई किसी को प्रसंग : व्याख्या : बूढ़ी नानी अभी भी बच्चों को अपनी सदियों पुरानी कहानी सुनाकर खुश कर देती है। बच्चों को अंतरिक्ष पार से आने वाली परी की प्रतीक्षा रहती है। वे उस पार के बच्चों के बारे में जानना चाहते हैं। जब तक लोगों का आपस में इतना प्यार और लगाव बना हुआ है तब तक भला इस दौर को कठिन समय कैसे कहा जा सकता है। हमें आशा का दामन नहीं छोड़ना चाहिए। यह सबसे कठिन समय नहीं Summary in Hindiयह सबसे कठिन समय नहींकविता का सार प्रस्तुत कविता जया जादवानी द्वारा रचित है। कवयित्री का कहना है कि अभी निराशा की कोई बात नहीं है। आज का समय सबसे कठिन समय नहीं है। अभी भी आशा के कई चिह्न शेष हैं। अभी भी चिड़िया की चोंच में तिनका है अर्थात् उसे आश्रय प्राप्त है और वह उड़ने को भी तैयार है। पेड़ से झरती पत्ती को थामने वाला कोई मौजूद है। रेलवे स्टेशनों पर चहल-पहल अभी भी बरकरार है। रेलगाड़ी अपने निश्चित स्थल तक जाती है। अभी तक लोग अपने आगंतुकों की प्रतीक्षा करते हैं। लोग अपनों की चिंता करने वाले अभी भी मौजूद हैं। सूरज छिपने से पहले अपनों को लोग घर के अंदर देखना चाहते हैं। अभी भी बूढ़ी नानी छोटे बच्चों को कहानी-किस्से सुनाती हैं। अभी भी बच्चों को अंतरिक्ष पार की दुनिया लुभाती है। इन सबका होना यह सिद्ध करता है कि आज भी सबसे कठिन समय नहीं आया है। जीवन की आशा अभी भी मौजूद है। Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 7 क्या निराश हुआ जाए Textbook Exercise Questions and Answers. Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 7 क्या निराश हुआ जाएHBSE 8th Class Hindi क्या निराश हुआ जाए Textbook Questions and Answersआपके विचार से पाठ 7 क्या निराश हुआ जाए’ के प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 1. HBSE 8th Class Chapter 7 क्या निराश हुआ जाए प्रश्न 2. दो घटनाएँ: सरकारी सहायता तो काफी विलंब से पहुंची, पर ग्रामीणों ने घायलों को निकाल-निकाल कर निकटवर्ती अस्पतालों तक पहुंचाया। उनके इस काम में उनका कोई लालच न था बल्कि उन्होंने मानवीय दृष्टिकोण से यह काम किया था। उनकी तत्परता से कई लोगों की जान बच सकी। 2. दूसरी घटना दिल्ली के महरौली रोड पर घटी। एक मोटर साइकिल सवार को एक कार ने जबर्दस्त टक्कर मारी और भाग गई। बाइक पर पति-पत्नी सवार थे। वे बेहोश, लहू-लुहान अवस्था में दूर जा गिरे थे। तभी एक जीप आकर रुकी। उसमें से दो-तीन व्यक्ति उतरे और घायलों को जीप में लिटाकर सफदरजंग अस्पताल तक ले गए। उन लोगों ने भी यह काम इंसानियत के वशीभूत होकर किया था। उन्हें किसी प्रकार का लालच न था। प्रश्न 3. तभी बस के कंडक्टर ने बस रुकवाई और उत्तर कर उस ठग के पीछे भागने लगा। काफी दूर जाने के बाद कंडक्टर ने उस ठग को पकड़ लिया। तब तक बस भी उस तक पहुंच चुकी थी। उसने उसे धक्का देकर बस में चढ़ाया और बस को पास के थाने में ले गया। वहाँ उसे पुलिस के हवाले किया तथा पर्स उस महिला को दिलवा दिया। सभी सवारियों ने उसके साहस एवं ईमानदारी की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उसने अपने कर्तव्य का पालन बिना किसी लालच के किया था। पर्दाफाश प्रश्न 1. प्रश्न 2. कारण बताइए निम्नलिखित के संभावित परिणाम क्या-क्या हो सकते हैं ? आपस में चर्चा कीजिए- 1. “सच्चाई केवल भीरू और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है।” …………………… 2. “झूठ और फरेब का रोजगार करनेवाले फल-फूल रहे हैं।” …………………… 3. “हर आवमी दोषी अधिक दिख रहा है, गुणी कम।”? …………………… दो लेखक और बस यात्रा आपने इस लेख
में एक बस की यात्रा के बारे में पड़ा। इससे पहले भी आप एक बस यात्रा के बारे में पड़ चुके हैं। यदि दोनों बस-यात्राओं के लेखक आपस में मिलते, तो एक-दूसरे को कौन-कौन सी बातें बताते ? अपनी कल्पना से उनकी बातचीत लिखिए। दूसरी बस-यात्रा का लेखक: हमारी बस भी रुक-रुक कर चल रही थी। अब सुनसान जगह पर आकर बिल्कुल ही रुक पहली बस-यात्रा का लेखक: हमारी बस का ड्राइवर बड़ा होशियार है। उसने इंजन तक पेट्रोल पहुंचाने का अनोखा उपाय खोज निकाला। दूसरी बस-यात्रा का लेखक: हमारी बस का कंडक्टर बहुत होशियार है। वह बस अड्डे जाकर नई बस ले आया। साथ ही बच्चों के लिए एक लाटे में दूध भी ले आया। सार्थक शीर्षक 1. लेखक ने लेख का शीर्षक ‘क्या निराश हुआ जाए’ क्यों रखा होगा ? क्या आप इससे भी बेहतर शीर्षक सुझा सकते हैं? 2. यदि
‘क्या निराश हुआ जाए’ के बाद कोई विराम चिह्न लगाने के लिए कहा जाए तो आप दिए गए चिह्नों में से कौन-सा चिह्न लगाएंगे ? अपने चुनाव का कारण भी बताइए। -, । .! ? . । = ।…. । 3. “आदर्शों की बातें करना तो बहुत आसान है पर उन पर चलना बहुत कठिन है।” क्या आप इस बात से सहमत । हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए। सपनों का भारत “हमारे महान मनीषियों के सपनों का भारत है और रहेगा।” 2. हमारे सपनों का भारत ऐसा है जिसमें श्रम, ईमानदारी एवं कर्तव्यनिष्ठा को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता हो। मेरे भारत में हेरा-फेरी करने वालों की कोई जगह नहीं होगी। मेरे सपनों के भारत में कृषि, उद्योग, वाणिज्य, शिक्षा, स्वास्थ्य की उन्नत अवस्थाएं होंगी। सभी को सुख-सुविधाएँ पाने का अधिकार होगा। भाषा की बात 1. दो शब्दों के मिलने से समास बनता है। समास का एक प्रकार है- द्वंद्व समास। इसमें दोनों शब्द प्रधान होते हैं। जब दोनों भाग प्रधान होंगे तो एक-दूसरे में द्वंद्व (स्पर्धा, होड़) की संभावना होती है। कोई किसी से पीछे रहना नहीं चाहता, जैसे-चरम और परम = चरम-परम, भीरू और बेबस = भीरू-बेबस। दिन और रात = दिन रात। ‘और’ के साथ आए शब्दों के जोड़े को ‘और’ हटाकर (-) योजक चिह्न भी लगाया जाता है। कभी-कभी एक साथ भी लिखा जाता है। द्वंद्व समास के बारह उदाहरण ढूँढकर लिखिए। 2. पाठ से तीनों प्रकार की संज्ञाओं के उदाहरण खोजकर लिखिए।
HBSE 8th Class Hindi क्या निराश हुआ जाए Important Questions and Answersप्रश्न 1.
प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. दूसरा उदाहरण: एक बार लेखक परिवार सहित बस में , कहीं जा रहा था। रात का समय था और रास्ता बहुत खराब था। अचानक एक सुनसान स्थान पर बस खराब हो गई। बस के कंडक्टर ने बस की छत से साइकिल उतारी और कहीं चला गया। यात्री बहुत घबराए। उन्होंने सोचा कि डाकुओं को बुलाने गया है। सभी यात्रियों ने ड्राइवर को बस से नीचे उतार कर पौटने का निश्चय किया। उनका कहना था कि ड्राइवर ने जान-बूझकर बस रोकी है। वह डाकुओं से मिला हुआ है। लेखक ने ड्राइवर को पीटने से तो बचा लिया, पर मन-ही-मन वह भी डरा हुआ था। उसके बच्चे भूखे और प्यासे चिल्ला रहे थे। तभी सामने से एक खाली बस आई जिसमें उनकी बस का कंडक्टर भी था। कंडक्टर ने आते ही कहा: आप लोगों के लिए दूसरी बस ले आया हूँ। पहली बस तो चलने लायक नहीं थी। इस पर सभी ने कंडक्टर को धन्यवाद दिया और ड्राइवर से क्षमा मांगी। ऐसे अनेक उदाहरण जीवन में मिल जाते हैं, इसलिए निराश होने का कारण नहीं। प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. (ख) व्यक्ति-चित्त सब समय आवर्शों द्वारा चालित नहीं होता। (ग) धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता है, कानून को बिया जा सकता है। (घ) महान् भारतवर्ष को पाने की संभावना बनी हुई है, बनी रहेगी। प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. क्या निराश हुआ जाए गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या 1. मेरा मन कभी-कभी बैठ जाता है। समाचार-पत्रों में ठगी, डकैती, चोरी, तस्करी और भ्रष्टाचार के समाचार भरे रहते हैं। आरोप-प्रत्यारोप का कुछ ऐसा वातावरण बन गया है कि लगता है, देश में कोई ईमानदार आदमी ही नहीं रह गया है। हर व्यक्ति संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है। प्रसंग: व्याख्या: इस स्थिति को देखकर ऐसा लगता है कि कोई भी आदमी ईमानदार नहीं रह गया है। सभी बेईमान प्रतीत होते हैं। अब हर आदमी, संदेह के घेरे में है। किसी के प्रति आदर-सम्मान रह ही नहीं गया है। 2. यह सही है कि इन दिनों कुछ ऐसा माहौल बना है कि ईमानदारी से मेहनत करके जीविका चलाने वाले निरीह और भोले-भाले श्रमजीवी पिस रहे हैं और झूठ तथा फरेब का रोजगार करने वाले फल-फूल रहे हैं। ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है, सच्चाई केवल भीरू और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है। ऐसी स्थिति में जीवन के महान मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था ही हिलने लगी है। प्रसंग: व्याख्या: वर्तमान समय में ईमानदारों को मूर्ख समझा जाने लगा है। जो लोग डरपोक और बेबस हैं वे ही सच्चाई के रास्ते पर चल रहे हैं। ऐसा वातावरण लोगों को जीवन मूल्यों से डिगाने में सहायक हो रहा है। अब उन मूल्यों से लोगों का विश्वास ही खत्म होता जा रहा है। यह स्थिति सुखद नहीं है। 3. भारतवर्ष ने कभी भी भौतिक वस्तुओं के संग्रह को बहुत अधिक महत्त्व नहीं दिया है। उसकी दृष्टि से मनुष्य के भीतर जो महान् आंतरिक गुण स्थिर भाव से बैठा हुआ है, वही चरम और परम है। लोभ-मोह, काम-क्रोध आदि विचार मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहते हैं, पर उन्हें प्रधान शक्ति मान लेना और अपने मन तथा बुद्धि को उन्हीं के इशारों पर छोड़ देना बहुत बुरा आचरण है। प्रसंग: व्याख्या: यह सत्य है कि व्यक्ति के अंदर काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि विकार (बुराइयाँ) विद्यमान रहते हैं. पर उन्हें मुख्य ताकत नहीं मान लेना चाहिए। यदि हम अपने मन और बुद्धि को उन्हीं के इशारों पर चलाने लगेंगे तो यह बहुत घटिया बात होगी। हमें तो इन विकारों पर अपना नियंत्रण रखना है। इन्हें अपने ऊपर हावी नहीं होने देना है। 4. दोषों का पर्दाफाश करना बुरी बात नहीं है। बुराई यह मालूम होती है कि किसी के आचरण के गलत पक्ष को उघाटित करके उसमें रस लिया जाता है और दोषोद्घाटन को एकमात्र कर्तव्य मान लिया जाता है। बुराई में रस लेना बुरी बात है, अच्छाई को उतना ही रस लेकर उजागर न करना और भी बुरी बात है। प्रसंग: व्याख्या: 5. कैसे कहूँ कि मनुष्यता एकदम समाप्त हो गई। कैसे कहूँ कि लोगों में दया-माया रह ही नहीं गई। जीवन में न जाने कितनी ऐसी घटनायें हुई हैं जिन्हें मैं भूल नहीं सकता। प्रसंग: व्याख्या: 6. ठगा भी गया हूँ, धोखा भी खाया है, परंतु बहुत कम स्थलों पर विश्वासघात नाम की चीज मिलती है। केवल उन्हीं बातों का हिसाब रखो, जिनमें धोखा खाया है तो जीवन कष्टकर हो जाएगा, परंतु ऐसी घटनाएँ भी बहुत कम नहीं हैं जब लोगों ने अकारण सहायता की है, निराश मन को डाँढस दिया है और हिम्मत बंधाई है। प्रसंग: व्याख्या: भाव यह है कि हमें बुरी बातों को भुलाकर अच्छी बातों को याद रखना चाहिए। इसी से हमारा जीवन सुखमय बन सकेगा। क्या निराश हुआ जाए Summary in Hindiक्या निराश हुआ जाए पाठ का सार हर रोज हम समाचार-पत्रों में ठगी, डकैती, चोरी, तस्करी, भ्रष्टाचार आदि के समाचार पढ़ते हैं। लगता है, देश में कोई ईमानदार आदमी नहीं रहा। परंतु लेखक का मत है कि निराश होने की आवश्यकता नहीं। भारत महान था और रहेगा। एक बड़े आदमी ने लेखक से कहा कि देश में फैली बुराइयों का सबसे बड़ा कारण यह है कि यहाँ जो खून-पसीना एक करके काम करता है, वह भूखों मरता है, धोखे से काम करने, और कुछ काम न करने वाले मौज उड़ाते हैं। हमारे बनाए कानूनों में भी कुछ भूलें हैं। एक ओर शताब्दियों से चली आई भावनाएँ और मर्यादाएँ हैं, दूसरी ओर गरीबों की भलाई के लिए बनाए गए नये-नये कानून हैं। पुरानी मर्यादाओं और नए कानूनों में जब विरोध और टकराव होता है, तो स्थिति बिगड़ती है। संसारी सुखों और बाहरी दिखावे को बहुत अधिक महत्त्व देने से भी भ्रष्टाचार बहुत बढ़ा है। भारत में धन को इतना महत्त्व कभी नहीं दिया गया और रिश्वत, लोभ, मोह आदि को कभी अच्छा नहीं माना गया। यहाँ करोड़ों पिछड़े हुए और कंगाल लोगों की दशा सुधारने के लिए जो प्रयत्न कृषि, दस्तकारी और उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए किए जा रहे हैं, उनसे वास्तविक उद्देश्य पूर्ण नहीं हो रहा। सारा लाभ बीच के अधिकारी (अफसर) और चालाक धूर्त हड़प लेते हैं। . जितने कानून बनते हैं, उतने उनके छिद्र ढूँढकर, उनसे बचने के उपाय सोच लिए जाते हैं। कुछ लोग लोभ-मोह को ही सब कुछ मानने लगे हैं। पुराने अच्छे आदर्शों और संस्कारों को रूढ़िवादी और घिसा-पिटा मानकर उनकी खूब निंदा की गई। इससे भ्रष्टाचार बढ़ गया। उपाय: लेखक का मत है कि केवल कानून बनाने और उसके भय से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं हो सकता। भारत की परंपरा के अनुसार कानून से धर्म को अधिक मान दिया जाना चाहिए। लोग कानून से उतना नहीं डरते, जितना धर्म से डरते हैं। ईमानदारी, दया, सहानुभूति, सत्य, सेवा और भक्ति को अधिक महत्त्व दिया जाए। समाचार पत्रों में जो भ्रष्टाचार के समाचार छपते हैं, उनसे पता चलता है कि लोग तस्करी, रिश्वत, लूटमार आदि से दुःखी और परेशान हैं। लेखक का कहना है कि बुरे कामों व अनुचित तरीकों का भंडाफोड़ करना अच्छी बात है, पर लोग इन बुरी बातों को पढ़ने में स्वाद (मजा) लेते हैं और यह बहुत बुरी बात है। देश में सैकड़ों अच्छी बातें, ईमानदारी और सच्चाई की घटनाएं होती हैं। पर उनकी तरफ कोई ध्यान नहीं देता। एक बार लेखक टिकट खरीदते हुए भूल से दस रुपये की जगह सौ का नोट दे आया। बहुत देर बाद टिकट क्लर्क ने ढूंढते हुए आकर उसके नब्बे रुपये लौटाए। एक बार वह परिवार सहित बस द्वारा कहीं जा रहा था। रात थी, जंगल था, डाकुओं का डर था। बस रुकी । कंडक्टर उसकी छत से साइकिल उतारकर कहीं चला गया। लोगों ने समझा, वह डाकुओं को बुलाने गया है। लोग ड्राइवर को पीटने को उतारू हो गए। लेखक ने ड्राइवर को बचाया। बहुत देर बाद सामने से खाली बस आई। उसी में लेखक वाली बस का कंडक्टर भी था। कंडक्टर ने कहा-यह बस चलने लायक नहीं थी। वह शहर से दूसरी बस लाया है। लेखक ने जीवन में कई बार धोखा खाया, परंतु इसके विपरीत उसे ईमानदार, साहसी और सहारा देने वाले लोग अधिक मिले। इसलिए निराश नहीं होना चाहिए। क्या निराश हुआ जाए शब्दार्थ आरोप = दोष (allegation), गुण = विशेषता (quality), अतीत = पुराना बीता हुआ (past), गह्वर = गुफा, गहराई (cave, deep), आदर्श = अनुकरणीय (Ideal), मनीषियों = चिंतन करने वाले (thinker), माहौल = वातावरण (atmosphere), जीविका = गुजारा (livelihood), श्रमजीवी = मेहनत पर जीने वाले (labourer), मूर्खता = बेवकूफी (foolishness), पर्याय = उसी जैसा (synonym), भीरू = डरपोक (coward), आस्था = विश्वास (belief), त्रुटि = भूल (error), विधि = नियम (rule), निषेध = रोक (prohibited), परीक्षित = जाँचे हुए (tested), हताश = निराश (distress), संग्रह में जोड़ना (collection), आंतरिक = भीतरी (internal), विद्यमान = मौजूद (present), प्रधान शक्ति = मुख्य ताकत (main power), निकृष्ट = घटिया (below standard), आचरण , बर्ताव (behaviour), संयम = काबू से (control), प्रयत्न = कोशिश (effort), दरिद्र = गरीब (poor), अवस्था = हालत (condition), लक्ष्य = ध्येय (aim), विस्तृत = अधिक फैले हुए (wide), विकार = बुराई (bad element), मजाक = हँसी (mockery), उपयोगी = लाभदायक (useful), पर्याप्त = काफी (sufficient), प्रमाण = सबूत (evidence), नष्ट = समाप्त (destroy), पीड़ा = दु:ख (pain), आक्रोश = गुस्सा (anger), पर्दाफाश = कलई खोलना (exposed), उजागर = स्पष्ट (clear), चकित = हैरान (surprise), लुप्त = गायब (disappear),अवांछित = जो चाही न जाएँ (unwanted), निर्जन = जहाँ कोई आदमी न हो (lonely), भयभीत = डरा हुआ (terrorised), व्याकुल = बेचैन (restlessness), विश्वासघात = धोखा (treachery), अकारण = बिना वजह (without reason), ज्योति = रोशनी की लौ (light), संभावना = उम्मीद (possibility), निरीह = असहाय, बेचारा (helpless), मूल्य = जीवन मूल्य आदर्श (values of life), विधि-निषेध = करने न करने के नियम, आलोड़ित = उथल-पुथल, हिलोरें करता हुआ (waving), विकार = बुराई, दोष (demerit), दकियानूसी = पुराने विचारों का (orthodox), प्रतिष्ठा = सम्मान (regard), दोषोद्घाटन = बुराइयाँ उजागर करना, अवांछित = अनचाही (unwanted), कातरमुद्रा = डरा हुआ रूप (frightened), वंचना = धूर्तता, जवाब दे देना = खराब हो जाना, हिसाब बनाना = योजना बनाना (toplan), चेहरे पर हवाइयाँ उड़ना = डर जाना, घबरा जाना (purplexed). Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 6 भगवान के डाकिये Textbook Exercise Questions and Answers. Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 6 भगवान के डाकियेHBSE 8th Class Hindi भगवान के डाकिये Textbook Questions and Answersकविता से भगवान के डाकिए कविता की व्याख्या HBSE 8th Class प्रश्न 1. भगवान के डाकिए प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 2. Bhagwan Ke Dakiye Class 8 HBSE प्रश्न 3. (ख) प्रकृति देश-देश में भेदभाव नहीं करती। एक देश से उठा बादल दूसरे वेश में बरस जाता है। Bhagwan Ke Dakiye Prashn Uttar HBSE 8th Class प्रश्न 4. Bhagwan Ke Dakiye Kavita Ka Saar HBSE 8th Class प्रश्न 5. पाठ से आगे भगवान के डाकिए Summary HBSE 8th Class प्रश्न 1. Bhagwan Ke Dakiye HBSE 8th Class प्रश्न 2. Bhagwan Ke Dakiye HBSE 8th Class प्रश्न 3.
अनुमान और कल्पना डाकिया, इंटरनेट के वल्ड वाइड वेब (डब्ल्यू डब्ल्यू,
डब्ल्यू. www) तथा पक्षी और बादल-इन तीनों संवाववाहकों के विषय में अपनी कल्पना से एक लेख तैयार कीजिए। “चिट्ठियों की अनूठी दुनिया ” पाठ का सहयोग ले सकते हैं।
भगवान के डाकिये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या 1. पक्षी और बादल, शब्दार्थ : महावेश – विशाल देश, महाद्वीप (continents), बाँचते हैं – पढ़ते हैं (Reads)। प्रसंग : व्याख्या : विशेष :
2. हम तो केवल यह आँकते हैं शब्दार्थ : आँकते हैं – अनुमान करते हैं (to guess), सौरभ – सुगंध, खुशबू (fragrant), पाँख – पंख (feathers), दूसरे देश को सुगंध भेजती है = प्रेम-प्यार का संदेश भेजती है (message of love)| प्रसंग : व्याख्या : विशेष :
भगवान के डाकिये Summary in Hindiभगवान के डाकिये कवि-परिचय जीवन-परिचय : 3फिर कुछ समय तक लंगर सिंह कॉलेज में हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे। सन् 1952 में आपको राज्य सभा का सदस्य मनोनीत किया गया। सन् 1964 ई. में भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुए परन्तु सन् 1965 में त्यागपत्र देने पर आपको केंद्रीय सरकार का हिंदी सलाहकार नियुक्त किया गया। भारत सरकार ने दिनकर जी को उनकी उल्लेखनीय सेवाओं के लिए ‘पद्मभूषण’ उपाधि से सम्मानित किया। उन्हें ‘संस्कृति के चार अध्याय’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा ‘उर्वशी’ पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। 19 मई सन् 1974 ई. को दिनकर जी का देहांत हो गया। रचनाएँ : काव्य-रचनाएँ : रेणुका, हुंकार, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, सामधेनी, उर्वशी, रसवंती, परशुराम की प्रतीक्षा, हारे को हरिनाम। साहित्यिक विशेषताएँ : भगवान के डाकिये कविता का सार कवि पक्षी और बादल को भगवान के डाकिए बताता है। जिस प्रकार डाकिए संदेश लाने का काम करते हैं उसी प्रकार पक्षी और बादल भगवान का संदेश हम तक लाते हैं। उनकं लाए संदेश को हम भले ही न समझ पाएँ पर पेड़, पौधे, पानी और पहाड़ उसे भली प्रकार पढ़-समझ लेते हैं। हम तो उल इतना भर आँकते हैं कि एक देश की धरती दूसरे देश को खुशबू भेजती है। पक्षियों के पंखों पर संगध तैरती है। एक देश का भाप दूसरे देश में पानी बनकर गिरता है। प्रकृति के लिए सीमाओं का बंधन नहीं होता। Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 5 चिट्ठियों की अनूठी दुनिया Textbook Exercise Questions and Answers. Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 5 चिट्ठियों की अनूठी दुनियाHBSE 8th Class Hindi चिट्ठियों की अनूठी दुनिया Textbook Questions and Answersपाठ से चिट्ठियों की अनूठी दुनिया HBSE Class 8 प्रश्न 1. चिट्ठियों की अनूठी दुनिया पाठ का सारांश HBSE Class 8 प्रश्न 2.
Chitiyon Ki Anuthi Duniya HBSE Class 8 प्रश्न 3.
Class 8th Vasant Chapter 5 HBSE प्रश्न 4. पाठ 5 चिट्ठियों की अनूठी दुनिया Summary HBSE Class 8 प्रश्न 5. पाठ से आगे चिट्ठियों की अनूठी दुनिया प्रश्न उत्तर HBSE Class 8 प्रश्न 1. चिट्ठियों की अनूठी दुनिया के शब्दार्थ HBSE Class 8 प्रश्न 2. चिट्ठियों की अनूठी दुनिया शब्दार्थ HBSE Class 8 प्रश्न 3. अनुमान और कल्पना 1. रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता ‘भगवान के डाकिए’ आपकी पाठ्यपुस्तक में है। उसके आधार पर पक्षी और बादल को डाकिए की भाँति मानकर अपनी कल्पना से लेख लिखिए। 2. संस्कृत साहित्य के महाकवि कालिदास ने बादल को संवादवाहक बनाकर ‘मेघदूत’ नाम का काव्य लिखा है। ‘मेघदूत’ के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए। 3. पक्षी को संदेशवाहक बनाकर अनेक कविताएँ एवं गीत लिखे गए हैं। एक
गीत है-जा-जा रे कागा विदेशवा, मेरे पिया से कहियो संदेशवा। इस तरह के तीन गीतों का संग्रह कीजिए। प्रशिक्षित पक्षी के गले में पत्र बांधकर निर्धारित स्थान तक पत्र भेजने का उल्लेख मिलता है। मान लीजिए आपको एक पक्षी को संदेश वाहक बनाकर का भेजना हो तो आप वह पत्र किसे भेजना चाहेंगे और उसमें क्या लिखना चाहेंगे? 4. केवल पढ़ने के लिए दी गई रामदरश मिश्र की कविता ‘चिट्ठियाँ’ को ध्यानपूर्वक पढ़िए और विचार कीजिए क्या यह कविता केवल लेटर बॉक्स में पड़ी निर्धारित पते पर जाने के लिए तैयार चिट्ठियों के बारे में है? या रेल के डब्बे बैठी सवारी भी उन्हीं चिट्ठियों की तरह हैं जिनके पास उनके गंतव्य तक की टिकट है पत्र के पते की तरह? और क्या विद्यालय भी एक लेटर बाक्स की भाँति नहीं है जहाँ से उत्तीर्ण होकर विद्यार्थी अनेक क्षेत्रों में चले जाते हैं? अपनी कल्पना को पंख लगाइए और मुक्त मन से इस विषय में विचार-विमर्श
कीजिए। भाषा की बात 1. किसी प्रयोजन विशेष से संबंधित शब्दों के साथ पत्र शब्द जोड़ने से कुछ शब्द बनते हैं जैसे-प्रशस्ति पत्र, समाचार पत्र। – आप ना पत्र के योग से बनने वाले दस शब्द लिखिए 2. ‘व्यापारिक’ शब्द व्यापार शब्द के साथ ‘इक’ प्रत्यय के. योग से बना है। इक प्रत्यय के योग से बनने वाले शब्दों को अपनी पाठ्यपुस्तक से खोजकर लिखिए। 3. दो स्वरों के मेल से होने वाले परिवर्तन को स्वर संधि कहते हैं; जैसे-रवीन्द्र – रवि + इन्द्र। इस संधि में इ+ ई हुई है। इसे दीर्घ संधि कहते हैं। दीर्घ स्वर संधि के और उदाहरण खोजकर लिखिए। मुख्य रूप से
स्वर संधियाँ चार प्रकार की मानी गई हैं-दीर्घ, गुण, वृद्धि और यण। अ + आ = आ आ + अ = आ आ + आ + आ (ख) इ + इ = ई इ + ई = ई ई + इ = ई ई + ई = ई (ग) उ + उ = ऊ उ + ऊ = ऊ ऊ + उ = ऊ ऊ + ऊ = ऊ 2. गुण संधि: ‘अ’ और ‘आ’ से परे यदि हस्व या दीर्घ ‘इ’. ‘उ’ या ‘ऋ’ आएँ तो वे क्रमशः ‘ए’, ‘ओ’ और ‘अर्’
हो जाते हैं- अ + ई = ए आ + इ = ए आ + ई = ए (ख) अ + उ = ओ अ + ऊ = ओ आ + उ = ओ आ + ऊ = ओ (ग) अ + ऋ = अर् आ + ऋ = अर् 3. वृद्धि संधि: ‘अ’ या ‘आ’ से परे ‘ए’ या ‘ऐ’ हों तो दोनों को मिलाकर ‘ऐ’ तथा ‘औ’ या ‘औ’ हों तो उन्हें मिलाकर ‘औ’ हो जाता है। 4. यण संधि: ह्रस्व या दीर्घ ‘इ’, ‘उ’, ‘ऋ’ से परे भिन्न जाति का कोई स्वर आ जाए तो इ-ई को ‘य’, उ-3 को ‘व’ और ‘ऋ’ को ‘र’ हो जाता है। इ + आ = या इ + उ = यु उ + अ = व → मनु + अंतर = मन्वन्तर। HBSE 8th Class Hindi चिट्ठियों की अनूठी दुनिया Important Questions and Answersप्रश्न 1. प्रश्न
2. प्रश्न 3. कहा जाता है कि जैसे ही उन्हें पत्र मिलता था, उसी समय वे उसका जवाब भी लिख देते थे। अपने हाथों से ही ज्यादातर पत्रों का जवाब देते थे। पत्र भेजने वाले लोग उन पत्रों को किसी प्रशस्तिपत्र से कम नहीं मानते हैं और कई लोगों ने तो पत्रों को फ्रेम करा कर रख लिया है। यह है पत्रों का जादू। यही नहीं, पत्रों के आधार पर ही कई भाषाओं में जाने कितनी किताबें लिखी जा चुकी हैं। चिट्ठियों की अनूठी दुनिया गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न 1. पिछली शताब्दी में पत्र लेखन ने एक कला का रूप ले लिया। डाक व्यवस्था के सुधार के साथ पत्रों को सही दिशा देने के लिए विशेष प्रयास किए गए। पत्र संस्कृति विकसित करने के लिए स्कूली पाठ्यक्रमों में पत्र लेखन का विषय भी शामिल किया गया। भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में ये प्रयास चले और विश्व डाक संघ ने अपनी ओर से काफी प्रयास किए। विश्व डाक संघ की ओर से 16 वर्ष से कम आयु वर्ग बच्चों के लिए पत्र लेखन प्रतियोगिताएँ आयोजित करने का सिलसिला सन् 1972 से शुरू किया गया। यह सही है कि खास तौर पर बड़े शहरों और महानगरों में संचार साधनों के तेज विकास तथा अन्य कारणों से पत्रों की आवाजाही प्रभावित हुई है, पर देहाती दुनिया आज भी चिड़ियों से ही चल रही है। फैक्स, ईमेल, टेलीफोन
तथा मोबाइल ने चिनियाँ की तेजी को रोका है, पर व्यापारिक डाक की संख्या लगातार बढ़ रही है। 2. पत्र व्यवहार की परंपरा भारत में बहुत पुरानी है। पर इसका असली विकास आजादी के बाद ही हुआ है। तमाम सरकारी विभागों की तुलना में सबसे ज्यादा गुडविल डाक विभाग की ही है। इसकी एक खास वजह यह भी है कि यह लोगों को जोड़ने का काम करता है। घर-घर तक इसकी पहुँच है। संचार के तमाम उन्नत साधनों के बाद भी चिट्ठी-पत्री की हैसियत बरकरार है। शहरी इलाकों में आलीशान हवेलियाँ हों या फिर झोपड़पट्टियों में रह रहे लोग, दुर्गम जंगलों से घिरे गाँव हों या फिर बर्फबारी के बीच जी रहे पहाड़ों के लोग, समुद्र तट पर रह रहे मछुआरे हों या फिर
रेगिस्तान की ढाँढियों में रह रहे लोग, आज भी खतों का ही सबसे बेसब्री से इंतजार होता है। एक दो नहीं, करोंड़ों लोग खतों और अन्य सेवाओं के लिए रोज भारतीय डाकघरों के दरवाजों तक पहुँचते हैं और इसकी बहु आयामी भूमिका नजर आ रही है। दूर देहात में लाखों गरीब घरों में चूल्हे मनीआर्डर अर्थव्यवस्था से ही जलते हैं। गाँवों या गरीब बस्तियों में चिट्ठी या मनीआर्डर लेकर पहुंचने वाला डांकिया देवदूत के रूप में देखा जाता है। चिट्ठियों की अनूठी दुनिया Summary in Hindiचिट्ठियों की अनूठी दुनिया पाठ का सार पत्रों की दुनिया बड़ी ही अनोखी है। पत्र जो काम कर सकते हैं वह काम संचार का कोई भी साधन नहीं कर सकता। पत्र लिखने . और पढ़ने से बड़ा संतोष मिलता है। अनेक घटनाओं और विवादों की जड़ में पत्र ही होते हैं। मानव-सभ्यता के विकास में पत्रों ने अनूठी भूमिका निभाई है। पत्रों को विविध भाषाओं में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है, जैसे उर्दू में खत, संस्कृत में पत्र, कन्नड में कागद, तेलगु मे उत्तरम, तमिल मे कब्दि कहा जाता है। पत्र लिखना भी एक कला है। दुनिया में रोजाना करोड़ों पत्र इधर से उधर जाते हैं। पिछली शताब्दी में पत्र लिखने ने एक कला का रूप ले लिया। पत्र-लेखन को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया गया। विश्व डाकसंघ की ओर से 16 वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों के लिए पत्र-लेखन प्रतियोगिताओं के आयोजन का सिलसिला 1972 में शुरू हुआ। आजकल फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल के प्रयोग ने चिट्ठियों की तेजी को भले ही रोका है, पर व्यापारिक डाक लगातार बढ़ रही है। अब भी लोग पत्रों का बेसब्री से इंतजार करते हैं। आज देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अपने पुरखों की चिट्ठियों को सहेज और सँजोकर रख रहे हैं। बड़े-बड़े लेखक, पत्रकार, उद्यमी, कवि, प्रशासक, संन्यासी या किसान की पत्र रचनाएँ अनुसंधान का विषय हैं। पंडित नेहरू ने अपनी पुत्री इंदिरा गाँधी को भी पत्र लिखे थे। हम पत्रों को तो सहेजकर रख लेते हैं, पर एस एम एस संदेशों को जल्दी ही भूल जाते हैं। महात्मा गाँधी द्वारा लिखे गए पत्र बहुत बड़ी धरोहर के रूप में सुरक्षित हैं। दुनिया के संग्रहालयों में जानी-मानी हस्तियों के पत्रों के अनूठे संकलन हैं। ये पत्र देश, काल और समाज को जानने-समझने का असली पैमाना हैं। महात्मा गाँधी के पास दुनिया भर से पत्र आते थे। पते के रूप में उन पर केवल महात्मा गाँधी-इंडिया लिखा होता था और वे जहाँ भी होते वहीं पहुँच जाते थे। गाँधीजी के पास दुनिया भर से बड़ी संख्या में पत्र पहुँचते थे। वे उनका जवाब भी भिजवाते थे। वे अपने हाथों से ही अधिकांश पत्रों का जवाब लिखते थे। लिखते-लिखते जब उनका दाहिना हाथ दर्द करने लगता था तब वे बाएँ हाथ से लिखने में जुट जाते थे। पत्र पाने वाले लोग गाँधीजी के पत्रों को प्रशस्तिपत्र से कम नहीं मानते थे। कई लोगों ने तो उन पत्रों को फ्रेम करा लिया था। यह उनके पत्रों को जादू ही तो था। पत्र किसी दस्तावेज से कम नहीं होते। पत्रों से संबंधित कई पुस्तकें मिल जाती हैं। पत्रों के संकलन का काम डाक मंगलमूर्ति ने किया है। पत्रों में प्रेमचंद, नेहरू जी, गाँधी जी तथा रवीन्द्रनाथ टैगोर के पत्र बहत प्रेरक हैं। महात्मा गाँधी और रवीन्द्रनाथ टैगोर के मध्य 1915 से 1941 तक जो पत्राचार हुआ. उनसे नए-नए तथ्यों तथा उनकी मनोदशा का लेखा-जोखा मिलता है। पत्र-व्यवहार की परंपरा भारत में बहुत पुरानी है। पर इसका असली विकास आजादी के बाद ही हुआ। डाक विभाग की पहुंच घर-घर तक है। आज भी लोग खतों का बेसब्री से इंतजार करते हैं। दूर देहात में लाखों गरीब घरों में चूल्हे मनीआर्डर की अर्थव्यवस्था से ही जलते हैं। गाँवों में आज भी डाकिया देवदूत के रूप में देखा जाता है। चिट्ठियों की अनूठी दुनिया शब्दार्थ उपयोगिता = लाभदायी (use), आधुनिकतम = नवीनतम (modern), केंद्रित = टिके होना (centred), तलाशना = ढूंढना (10 search), अहमियत = महत्त्व (importance), प्रयास – कोशिश (Efforts), विकसित = फली-फूली (Developed), व्यापारिक = व्यापार संबंधी (related to bursiness), बेसनी = सन के बिना (restless), मिसाल = उदाहरण (example), पुरखे = पूर्वज (ancestors), संकलन = संग्रह (collection), दिग्गज – बड़ी (Big. great), हस्ती = व्यक्तित्व (personalities), प्रशस्तिपत्र = गुणगान गाने वाला पत्र (letter of praive), दस्तावेज = जरूरी कागज (documents), तथ्यों = सच्चाइयों (facts), मनोदशा = मन की दशा (position of mind), गुडविल = नेकनामी (goodwill), हैसियत = दशा (status), बहुआयामी = अनेक रूपों वाला (malti dimensional), देवदूत = फरिश्ता (angel). Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 4 दीवानों की हस्ती Textbook Exercise Questions and Answers. Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 4 दीवानों की हस्तीHBSE 8th Class Hindi दीवानों की हस्ती Textbook Questions and Answersकविता से दीवानों की हस्ती HBSE 8th Class प्रश्न 1. दीवानों
की हस्ती प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 2. पाठ
4 दीवानों की हस्ती प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 3. कविता से आगे Diwano Ki Hasti Class 8 Vyakhya प्रश्न 1. अनुमान और कल्पना 1. एक पंक्ति में कवि ने यह कहकर अपने अस्तित्व को नकारा है कि “हम दीवानों की क्या हस्ती है आज यहाँ, कल वहाँ चले।” दूसरी पंक्ति में उसने यह कहकर अपने अस्तित्व को महत्त्व दिया है कि
“मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले।” यह फाकामस्ती का उदाहरण है। अभाव में भी खुश रहना फाकामस्ती कही जाती है। कविता में इस प्रकार की अन्य पंक्तियाँ भी हैं, उन्हें ध्यानपूर्वक पढ़िए और अनुमान लगाइए कि कविता में परस्पर विरोधी बातें क्यों की गई हैं? भाषा की बात संतुष्टि के लिए कवि ने ‘छककर’, “जी भरकर’ और ‘खुलकर’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया है। इसी भाव को व्यक्त करने वाले कुछ और शब्द सोचकर लिखिए, जैसे-हँसकर, गाकर।
HBSE 8th Class Hindi दीवानों की हस्ती Important Questions and AnswersDeewano Ki Hasti Kavita Ki Vyakhya HBSE प्रश्न 1. दीवानों की हस्ती Question Answer HBSE 8th Class प्रश्न 2. दिवानो की हस्ती HBSE 8th Class प्रश्न 3. Deewano Ki Hasti Class 8 HBSE प्रश्न 4. Diwano Ki Hasti Class 8 HBSE प्रश्न 5. Deewano Ki Hasti HBSE 8th Class प्रश्न 6. Diwano Ki Hasti Class 8 Bhavarth HBSE प्रश्न 7. प्रश्न 8. दीवानों की हस्ती Summary in Hindiदीवानों की हस्तीपाठ का सार जीवन-परिचय : भगवतीचरण वर्मा का जन्म 30 अगस्त 1903 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के शफीपुर ग्राम में हुआ था। पाँच वर्ष की उम्र में ही पिता का देहान्त हो जाने के कारण छोटी उम्र में ही इनके कंधे पर परिवार का भार आ गया। जीवन संघर्ष में जूझते हुए इन्होंने बी.एल.एल.बी. की शिक्षा प्राप्त की और कानपुर में वकालत करने लगे। लेकिन वकालत में इनका दिल न लगा और ये अधिकांश समय साहित्य-सृजन को देने लगे। आठवीं कक्षा में पढ़ते समय इनकी पहली कविता ‘प्रताप’ में छपी थी। वकालत करते समय तक ये कवि के रूप में विख्यात हो गए थे। कविता से प्रारंभ करके इन्होंने कहानी, उपन्यास, निबन्ध, नाटक आदि बहुत कुछ लिखा। जीविका के लिए उन्होंने रेडियो स्टेशनों में नौकरी की, सिनेमा के लिए कहानियाँ और संवाद लिखे, पत्रों का संपादन एवं प्रकाशन किया। काफी समय तक ये संसद सदस्य भी रहे। इनका देहान्त 1980 में दिल्ली में हुआ। रचनाएँ : भगवती जी के कहानी संग्रह इस प्रकार हैं : ‘दो बाँके’, ‘इन्स्टालमेंट’, ‘राख और चिनगारी’। ‘मोर्चा बन्दी’ नाम से चित्रलेखा, सामर्थ्य और सीमा, रेखा, सबहि बचावत राम गुसाईं, प्रश्न और मरीचिका, पतन, भूले बिसरे चित्र। ‘चित्रलेखा’ उपन्यास पर बनी फिल्म बड़ी प्रसिद्ध हुई थी। इन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिल चुका है। आपने कविताएँ, रेडियो रूपक तथा नाटक भी लिखे हैं। इनकी जिन काव्य-कृतियों ने ख्याति पाई है, इनमें प्रमुख हैं-‘मधुकण’, ‘मानव’, ‘प्रेम संगीत’। विशेषताएँ : वर्मा जी छायावादोत्तर काल के कवि हैं, अतः उनके काव्य पर छायावादी संस्कारों की स्पष्ट छाया है। परंतु वर्मा जी की विशिष्टता इस बात में है कि इन्होंने छायावाद के कल्पना अतिरेक और वायवीय सूक्ष्मता के विरुद्ध ऐसी कविताएँ दीं, जिनका संबंध पृथ्वी के ठोस जीवन से है और जो मर्म को छूती हैं, मात्र चमत्कृत नहीं करतीं। इन कविताओं में कोमलता है, कामना की मोहिनी है, सौन्दर्य की लालसा है। परन्तु इन अलबेले भावों को इस प्रकार व्यक्त किया गया है कि वे तत्काल चेतना को मुग्ध कर देते हैं। आधुनिक कवि होने के कारण वर्मा जी समाजवादी विचारधारा से अछूते नहीं रहे, परंतु उनमें कम्युनिस्ट कट्टरता और भावावेश नहीं है, उनमें भी मानव और समाज के दलित वर्गों के प्रति सहानुभूति उपलब्ध होती है और इस भाव को. इन्होंने अपनी कई मार्मिक कविताओं में व्यक्त किया है। परंतु यह मनोदृष्टि उतनी समाजवाद की आभारी नहीं, जितनी गाँधीवाद की। उनकी कविताएँ ‘ भैसा गाड़ी’, ‘ट्राम’, ‘राजा साहिब का वायुयान’ अपने परिवेश पर यथार्थ-निष्ठ दृष्टि डालती हैं व वह मनोमुद्रा कई बार बेधक व्यंग्य से भरी कविताओं को भी जन्म देती है। दीवानों की हस्ती कविता का सार “दीवानों की हस्ती’ शीर्षक कविता में भगवतीचरण वर्मा ने बताया है कि दीवाने कभी किसी बंधन को स्वीकार नहीं करते। वे एक जगह टिककर नहीं रहते। वे कभी यहाँ तो कभी दूसरी जगह पहुंच जाते हैं। संसार के लोगों के मध्य सुख-दुख को बाँटते चलते हैं। गरीबों के मध्य अपना प्यार लुटाते चलते हैं। उनका जीवन मान-अपमान की भावना से परे होता है। वे तो हँस-हंस कर आगे बढ़ते चले जाते हैं। उन्हें अच्छे मतों की परवाह भी नहीं होती। सब लोग उनके अपने होते हैं। दीवाने अपने बनाए बंधनों में बंधे होते हैं, जिन्हें वे जब चाहे तोड़ देते हैं। उनका जीवन पूरी तरह अपना होता है। दीवानों की हस्ती काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या 1. हम दीवानों की क्या हस्ती, शब्दार्थ : दीवानों = मस्त रहने वाला (Carefree), मस्ती का आलम = मस्ती से भरा संसार (World with joy), उल्लास = खुशी (Joy), आँसू बनकर बह गए – दुःख के आँसू बहने लगे। प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश भगवंतीचरण वर्मा द्वारा रचित कविता ‘दीवानों की हस्ती’ से उद्धत है। मनमौजी स्वभाव वाले, निश्चित रहने वाले व्यक्ति जहाँ भी जाते हैं, मस्तियाँ उनके साथ रहती हैं। इसी बात का वर्णन करते हुए कवि कहता है: व्याख्या : हम मन-मौजी मनुष्यों की कोई हस्ती नहीं है। कोई खास विशेषता या योग्यता भी नहीं है। बस, अपनी मस्ती ही हमारा सब-कुछ है। जब मौज आयी, कहीं भी चल दिए। आज अगर यहाँ हैं, तो कल किसी दूसरे स्थान पर जा सकते हैं। हमारी विशेषता केवल इतनी ही है कि हम अपने पाँवों से धूल उड़ाते हुए जहाँ कहीं भी चले जाते हैं, मस्ती का एक संसार, अपने मनमौजीपन का एक निश्चिंत वातावरण हमारे साथ रहा करता है। हम मस्तों के जीवन में अभी-अभी आनंद और खुशी का भाव है। अगले क्षण वही आनंद आँसू बनकर बहता हुआ भी दिखाई देता है, अर्थात् पल में आनन्द-में मुस्कराना, पल में किसी दुःख से रो देना, इस प्रकार कोई भी भाव स्थिर नही रह पाता। लोग पूछते रह जाते हैं कि तुम लोग कहाँ से आ रहे हो, किधर जा रहे हो, पर हमारे पास इसका कोई उत्तर नहीं होता। भाव यह है कि निश्चिंत रहना, अपने मन की मौज के अनुसार कार्य करना ही सच्चे मस्तों का जीवन है, उनकी हस्ती का परिचय है। काव्य-सौंदर्य:
2. किस ओर चले ? मत यह पूछो, शब्दार्थ : जग = संसार (World), छककर = तृप्त होकर (Satisfied) प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ भगवतीचरण वर्मा की कविता ‘दीवानों की हस्ती’ से अवतरित हैं। इनमें कवि बताता है कि मनमौजी और निश्चिंत रहने वालों का जीवन के प्रति अलग दृष्टिकोण रहता है। वे हर दशा का भोग जी भरकर करते हैं। इन भावों को स्पष्ट करते हुए कवि कहता है: व्याख्या : हम लोग किस ओर जा रहे हैं, यह पता नहीं। बस इतना जानते हैं कि हमें चलते रहना है, हँसते-रोते चलतें जाने का नाम ही जीवन है, अतः हमेशा चलते रहते हैं। सारे संसार से ताने सुनते हैं। बदले में संसार को अपनी मस्ती का दान देते हैं। इस प्रकार हर हाल में चलना, यही हमारे जीवन का क्रम है। मन की मौज में आकर हम लोग दुनियावालों से दो बातें कह लेते हैं। बदले में उनकी बातें चुपचाप सुन भी लेते हैं। बात अच्छी लगी तो जी-भर हँस भी लेते हैं। बात बुरी लगी तो संसार के बुरे व्यवहार पर रो लेते हैं। इस प्रकार जीवन में चाहे सुख आए, चाहे दुःख आए, दोनों के घुट हम खूब जी भरकर एक ही भाव से पी लेते हैं। इसी में हमारी मस्ती है। भाव यह है कि सुख-दुःख, आशा-निराशा में एक सा रह पाना सरल काम नहीं है। कोई मनमौजी स्वभाव वाला व्यक्ति ही ऐसा कर सकता है। सुख-दुख को समान रूप से स्वीकार करते हैं। विशेष:
3. हम भिखमंगों की दुनिया में, शब्दार्थ : भिखमंगों = भिखारियों (Beggars), स्वच्छंद = मुक्त (Free), उर = हृदय (Heart), असफलता = हार (Defeat), मान = आदर (Respect), अपमान = बेइज्जती (Insult)। प्रसंग : ‘दीवानों की हस्ती’ शीर्षक कविता की इन पंक्तियों में बताया गया है कि मनमौजी स्वभाव वालों की दुनिया अलग होती है। हार या जीत, प्रत्येक दशा में मनमौजी लोग प्रसन्न रहते हैं, इस भाव को प्रकट करते हुए कवि कह रहा है। व्याख्या : यह दुनिया भिखारियों जैसी है। वह केवल लेना ही जानती है, देना नहीं। अतः हम इसको समझकर भी अपना प्यार सबके लिए स्वतंत्रतापूर्वक लुटाते हैं। बदले में कुछ भी न चाहकर अपने रास्ते पर चल देते हैं। हाँ, हम अपने जैसा मस्तमौला दुनिया को नहीं बना पाए, इस असफलता का भार हमारे मन पर अवश्य रह जाता है। फिर भी अपनी हार की चिंता न करके हम अपने रास्ते पर निश्चिंत बढ़ जाते हैं। कवि का भाव यह है कि हर हाल में प्रसन्न रहना और अपने दिमाग पर बोझ न पड़ने देना चाहिए। यही मस्ती का वास्तविक जीवन है। काव्य-सौन्दर्य : दुनिया स्वार्थी है। स्वार्थ ही ईर्ष्या-द्वेष तथा विषाद का कारण है। दीवाने स्वार्थ से ऊपर उठ चुके हैं। उनके अनुकरण करने पर जीवन प्रेममय बन जाएगा। मान-अपमान की विशेष चिंता नहीं करनी चाहिए। ‘एक निशानी-सी उर पर’ में उपमा अलंकार है। ‘प्राणों की बाजी हार चले’ मुहावरे का भी सुंदर प्रयोग हुआ है। 4. अब अपना और पराया क्या ? शब्दार्थ : नतमस्तक = सिर झुकाना (To blow head), अभिशाप = बुराई (Bad), वरदान = आशीर्वाद (Blessing), दृगों = आँखों (Eyes)। प्रसंग : मस्त लोग अपने को दुःख देने वालों को भी शाप .. नहीं देते, इन भावों को प्रकट करते हुए कवि कह रहा है : व्याख्या : दुनिया ने हमारे साथ भला व्यवहार किया या बुरा व्यवहार किया, हम लोग उनको याद नहीं रखते। सभी को समान मानकर एक ही भाव से भुला देते हैं। इस प्रकार अपना मस्ती-भरा जीवन बिताने के बाद, अब यहाँ. से (इस दुनिया से) जाने के समय हमारे लिए अपने-पराए का कोई भेद-भाव नहीं रह गया। हमारी तो यही शुभकामना है- हमारे … पीछे यहाँ रहने वाले हमेशा आबाद रहें, प्रसन्न रहें। हमने संसार के बंधनों में अपने-आपको खुद ही बाँधा था। आज खुद ही उन बंधनों को तोड़कर जा रहे हैं। भाव यह है कि हम मनमौजी जीवों के लिए किसी बात का कोई बंधन नहीं। हम चाहते हैं कि दुनिया हमारी तरह ही मस्ती से जीवन काट ले। विशेष:
माँ यशोदा ने कच्चा दूध पिलाने के लिए क्या क्या लालच दिया?तब एक दिन माता यशोदा ने प्रलोभन दिया कि कान्हा ! तू नित्य कच्चा दूध पिया कर, इससे तेरी चोटी दाऊ (बलराम) जैसी मोटी व लंबी हो जाएगी। मैया के कहने पर कान्हा दूध पीने लगे। अधिक समय बीतने पर श्रीकृष्ण अपने बालपन के कारण माता से अनुनय-विनय करते हैं कि तुम्हारे कहने पर मैंने दूध पिया पर फिर भी मेरी चोटी नहीं बढ़ रही।
कृष्ण माता यशोदा से क्या इच्छा प्रकट करता है?माता यशोदा ने बताई अपनी इच्छा
तब उन्होंने कृष्ण से कहा कि लल्ला मुझे केवल एक चीज का पछतावा है, जिसको मैंने आजतक किसी को नहीं बताया। मैं तुम्हारे किसी भी विवाह में शामिल नहीं हो सकी। तब कृष्ण ने कहा मैय्या तुम्हारी यह इच्छा जरूर पूरी होगी। इसके बाद भगवान कृष्ण ने माता यशोदा को गोलोक भेज दिया।
माँ यशोदा कृष्ण को कौन सा दूध पिलाती हैं?(घ) माता यशोदा बालक कृष्ण को किस तरह दूध पिलाती है ? उत्तर : माता यशोदा बालक कृष्ण को गोद में उठा लेकर और आँचलसे ढककर दूध पिलाती है।
श्री कृष्ण कच्चा दूध कैसे पीते थे *?This is Expert Verified Answer
बालक श्रीकृष्ण अपनी चोटी को बढ़ाने के लालच में दूध पीने को तैयार हुए थे। माता यशोदा बालक कृष्ण से यह कहती थी कि जितना अधिक तुम दूध पियोगे उतने ही तुम्हारी चोटी लंबी होगी। यह बांधते और निकालते समय अत्यंत घनी लगेगी एवं स्नान करते समय समय नागिन की भांति पृथ्वी पर लोटने लगेगी ।
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