माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 15 सूरदास के पद Textbook Exercise Questions and Answers.

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Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 15 सूरदास के पद

HBSE 8th Class Hindi सूरदास के पद Textbook Questions and Answers

पदों से

Surdas Ke Pad Solution HBSE 8th Class Hindi प्रश्न 1.
बालक श्रीकृष्ण किस लोभ के कारण दूध पीने के लिए तैयार हुए?
उत्तर:
बालक श्रीकृष्ण इस लोभ के कारण दूध पीने के लिए तैयार हुए कि उनके बालों की चोटी भी भाई बलदेव के समान लंबी और मोटी हो जाएगी। वह भी नागिन के समान लहराने लगेगी।

Surdas Ke Pad Class 8 Question Answer HBSE Hindi प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण अपनी चोटी के विषय में क्या-क्या सोच रहे थे?
उत्तर:
श्रीकृष्ण अपनी चोटी के विषय में यह सोच रहे थे कि उनकी चोटी भी लंबी और मोटी हो जाएगी। वह भी नागिन के समान लहराती दिखाई देने लगेगी।

Chapter 15 Hindi Class 8 HBSE  प्रश्न 3.
दूध की तुलना में श्रीकृष्ण कौन-से खाद्य पदार्थ को अधिक पसंद करते हैं?
उत्तर:
दूध की तुलना में श्रीकृष्ण माखन-रोटी को अधिक पसंद करते हैं।

माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

Class 8 Hindi Surdas Ke Pad HBSE प्रश्न 4.
‘तैं ही पूत अनोखा जायौ’-पंक्तियों में गबालन के मन के कौन-से भाव मुखरित हो रहे हैं?
उत्तर:
इस पंक्ति में ग्वालन के मन में ईर्ष्या भाव और उपालभ के भाव मुखरित हो रहे हैं। वह माता यशोदा को उलाहने भरे स्वर में यह बात कह रही है।

Class 8 Surdas Ke Pad HBSE Hindi प्रश्न 5.
मक्खन चुराते और खाते समय श्रीकृष्णा थोड़ा-सा मक्खन बिखरा क्यों देते हैं?
उत्तर:
मक्खन चुराते और खाते समय श्रीकृष्ण थोड़ा-सा मक्खन बिखरा देते हैं क्योंकि वे इसे अपने सखाओं को देते हैं और वह जल्दबाजी में गिर जाता है।

Hindi Class 8 Chapter 15 HBSE प्रश्न 6.
दोनों पदों में से आपको कौन-सा पद अधिक अच्छा लगा और क्यों?
उत्तर:
दोनों पदों में हमें पहला पद अधिक अच्छा लगा क्योंकि इसमें वात्सल्य रस का अच्छा परिपाक हुआ है। इसमें बाल कृष्ण की बाल-सुलभ चेष्टाओं का मनोहारी चित्रण हुआ है।

अनुमान और कल्पना

Ch 15 Hindi Class 8 HBSE प्रश्न 1.
दूसरे पद को पढ़कर बताइए कि आपके अनुसार उस समय श्रीकृष्ण की उम्र क्या रही होगी?
उत्तर:
दूसरे पद को पढ़कर लगता है कि उस समय श्रीकृष्ण की उम्र लगभग 8-9 वर्ष रही होगी। इतनी उम्र का बालक ही चारपाई पर चढ़कर छींके से मक्खन उतार सकता है।

प्रश्न 2.
ऐसा हुआ हो कभी कि माँ के मना करने पर भी घर में उपलब्ध किसी स्वादिष्ट वस्तु को आपने चुपके-चुपके थोड़ा बहुत खा लिया हो। चोरी पकड़े जाने पर ‘कोई बहाना भी बनाया हो। अपनी आप बीती की तुलना श्रीकृष्ण की बाल लीला से कीजिए।
उत्तर:
एक बार मैं घर रखी मिठाई चुपके से खा रहा था कि माँ आ गई और मेरी चोरी पकड़ी गई। मैंने बहाना बनाया कि मैं तो बस चखकर देख रहा था कि यह खराब तो नहीं हुई। श्रीकृष्ण तो माखन चुराकर भाग ही जाते थे। कभी कोई गोपी पकड़ भी लेती थी।

प्रश्न 3.
किसी ऐसी घटना के विषय में लिखिए जब किसी ने आपकी शिकायत की हो और फिर आपके किसी अभिभावक (माता-पिता, बड़ा भाई-बहिन इत्यादि) ने भआपसे उत्तर माँगा हो।
उत्सर:
एक बार मैंने पड़ोसी के बच्चे को साइकिल से गिरा दिया। उसके घुटने में चोट लग गई। उसकी माँ शिकायत लेकर हमारे घर आई तो मेरे मम्मी-पापा ने डटकर मेरी ‘क्लास’ ली।

मुझे उसके सामने ही खूब बुरा-भला कहा गया। मुझसे साइकिल छीन लेने की धमकी भी दी गई।

माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

भाषा की बात

प्रश्न 1.
श्रीकृष्ण गोपियों का माखन चुरा-चुराकर -खाते थे इसलिए उन्हें माखन चुरानेवाला भी कहा गया है। इसके लिए एक शब्द दीजिए।
उत्तर:
माखनचोर।

प्रश्न 2.
श्रीकृष्ण के लिए पाँच पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर:
पीतांबर, माधव, नंदलला, गोवर्धनधारी, यशोदापुत्र।

प्रश्न 3.
कुछ शब्न परस्पर मिलते-जुलते अर्थ वाले होते हैं उन्हें पर्यायवाची कहते हैं और कुछ विपरीत अर्थ वाले भी समानार्थी शब्द पर्यायवाची कहे जाते हैं और विपरीतार्थक शब्द विलोम, जैसे:
पर्यायवाची:
चंद्रमा – शशि, इंदु, राका
मधुका – भ्रमर, भौंरा, मधुप
सूर्य – रवि, भानु, दिनकर

विपरीतार्थक:
दिन – रात
श्वेत – श्याम
शीत – उष्ण

पाठ से दोनों प्रकार के शब्दों को खोज कर लिखिए।
उत्तर:
मिलते-जुलते अर्थवाले शब्द:
काढ़त-गुहत
चोटी-बेनी

विलोम अर्थवाले शब्द:
लंबी x छोटी
हानि x लाभ
बढ़ेगी x घटेगी
तेरो x मेरो
दिवस x रात

माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

सूरदास के पद पदों की सप्रसंग व्याख्या

1. मैया, कबहिं बढ़ेगी चोटी?
कितनी बार मोहिं दूध पियत भई, यह अजहूँ है छोटी।
तू जो कहति बल की बेनी ज्यौं, है है लॉबी-मोटी।
काढ़त-गुहत न्हवावत जैहै, नागिनी सी भुइँ लोटी।
काचौ दूध पियावति पचि-पचि, देति न माखन-रोटी।
सूरज चिरजीवी दोउ भैया, हरि-हलधर की जोटी।

शब्दार्थ:
कबहिं – कब (When), अजहूँ – अभी तक (Till now), बल = बलदेव (Brother of Krishna), बेनी – चोटी (a braid of hair), नागिन – साँपिन (Snake), काचौ = कच्चा (not boiled), पचि-पचि = कोशिश करके भी (with effort), जोटी = जोड़ी (Pair)|

‘प्रसंग:
प्रस्तुत पद हमारी पाठ्यपुस्तक वसंत भाग-3 में संकलित ‘सूरदास के पद’ से अवतरित है। बाल कृष्ण को दूध पिलाने के लिए उसे चोटी बढ़ने का लालच देती है लेकिन बालक को नहीं लगता कि चोटी कुछ बढ़ी है।

व्याख्या:
बाल कृष्ण अपनी माँ से पूछते हैं कि मैया मेरी चोटी कब बढ़ेगी? मैं कितने समय से दूध पी रहा हूँ यह अभी भी छोटी की छोटी ही है। हे माँ! तू तो कहती थी कि तेरी चोटी भी भाई बलदेव की भाँति लंबी मोटी हो जाएगी। इसे काढ़ते समय, Dथते समय, नहाते समय यह नागिन के समान लोटती दिखाई देगी। इस चोटी का लालच देकर तू मुझे कच्चा दूध पिलाती है। बहुत पचने पर अर्थात् आग्रह करने पर भी माखन-रोटी नहीं देती, जबकि मैं माखन-रोटी ही खाना चाहता हूँ।
कवि सूरदास कहते हैं कि हरि (कृष्ण) और बलदेव की जोड़ी चिरंजीव रहे।

विशेष:

  1. बाल सुलभ चेष्टाओं का मनोहारी अंकन हुआ है।
  2. वात्सल्य रस का परिपाक है।
  3. ब्रजभाषा का प्रयोग है।
  4. ‘नागिन-सी’ में उपमा अलंकार है।

2. ते लाल मेरौ माखन खायौ।
दुपहर दिवस जानि घर सूनो ढूंढि, ढंढोरि आप ही आयौ।
खोलि किवारि, पैठि मंदिर में, दूध दही सब सखनि खवायौ।
ऊखल चढ़ि, सीके को लीन्हों, अनभावत भुइँ मैं ढरकायो।
दिन प्रति हानि होति गोरस की यह ढोटा कौनै ढंग लायौ।
सूर स्याम कौं हटकि न राखै, तूं ही पूत अनोखौ जायौ।

शब्दार्थ:
दिवस = दिन (Day), पैठि – बैठकर; घुसकर (enter), काढ़ि – निकालकर (draw), ढरकायौ – लुढ़का दिया flow), हटकि – ताकत से (forcibly), पूत = बेटा (son), जायौ – पैदा किया (gave birth)|

प्रसंग:
प्रस्तुत पद कृष्ण भक्त कवि सूरदास द्वारा रचित है। बालक कृष्ण ने अपने सखाओं के साथ एक गोपी के घर में घुसकर उसका माखन खा लिया। वह इसकी शिकायत लेकर माता यशोदा के पास आती है।

व्याख्या:
गोपी माता यशोदा को उलाहने भरे स्वर में कहती है-तेरे लाल (कृष्ण) ने मेरा माखन खा लिया है। दुपहर के समय दिन में घर को सूना जानकर, ढूंढ-ढाँढ कर आप ही घर में घुस आया। उसने घर के किवाड़ खोलकर सभी सखाओं (दोस्तों) को भी दूध-दही-माखन खिलाया। यद्यपि माखन छींके पर रखा हुआ था, पर कृष्ण अखल पर चढ़ गया और उसने कुछ माखन तो खाया और कुछ लुढ़का दिया अर्थात् फैला दिया। इस प्रकार दिन-प्रतिदिन गोरस (दूध) की हानि हो रही है, यह शैतान बालक अनोखे करतब कर रहा है। माता यशोदा! क्या तूने किसी अनोखे बेटे को जन्म दिया है जो उसे तनिक भी हड़का कर नहीं रखती।

विशेष:

  1. उपालंभ का प्रयोग है।
  2. ब्रजभाषा अपनाई गई है।

माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

सूरदास के पद Summary in Hindi

सूरदास के पद पाठ का सार

जीवन-परिचय:
महाकवि सूरदास के जन्मस्थान एवं काल के बारे में अनेक मत हैं। अधिकांश साहित्यकारों का मत है कि 1478 ई. में महाकवि सूरदास का जन्म आगरा और मथुरा के बीच स्थित रूनकता नामक गाँव में हुआ था। अन्य कुछ लोग वल्लभगढ़ के निकट सीही नामक ग्राम को उनका जन्मस्थान बताते हैं। सूरदास ने अपने विषय में कहीं कुछ नहीं लिखा है। कहा जाता है सूरदास जन्मांध थे; किंतु उनके पदों में रूप-रंग का अद्भुत वर्णन तथा कृष्ण के जीवन की विविध लीलाओं का सूक्ष्म चित्रण देखकर इस बात पर सहसा विश्वास नहीं होता।

प्रसिद्ध है कि वे जब गऊघाट पर रहते थे तब एक दिन महाप्रभु वल्लभाचार्य से उनकी भेंट हुई। सूर ने अपना एक भजन बड़ी तन्मयता से गाकर महाप्रभु को सुनाया, जिसे सुनकर वे बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने सूरदास को अपना शिष्य बना लिया। वल्लभाचार्य के आदेश से ही सूरदास ने कृष्ण-लीला का गान किया। उनके अनुरोध पर ही सूरदास श्रीनाथ के मंदिर में आकर भजन-कीर्तन करने लगे। वे निकट के गाँव पारसोली में रहते थे। वहीं से नित्यप्रति श्रीनाथजी के मंदिर में आकर भजन गाते और चले जाते। उन्होंने मृत्युकाल तक इस नियम का पालन किया। 1583 ई. में पारसोली में ही उनका देहांत हुआ।

रचनाएँ:
भक्त सूरदास द्वारा रचित तीन काव्य-ग्रंथ मिलते हैं-(1) सूरसागर, (2) सूर सारावली, (3) साहित्य-लहरी। इनमें ‘सूरसागर’ ही उनकी कीर्ति का अक्षय भंडार है। ‘श्रीमद्भागवत’ के आधार पर रचे गए इस ग्रंथ में रचे गए पदों की संख्या सवा लाख बताई जाती है किंतु अब लगभग 5 हजार पद ही उपलब्ध हैं। ‘सूर सारावली’ में वृहत् होली गीत के रूप में रचित 1107 पद हैं। इसमें आद्यांत एक ही छंद का प्रयोग है। ‘साहित्य लहरी’ में रस, अलंकार, नायिका-भेद को प्रतिपादित करने वाले 118 पद हैं।

साहित्यिक विशेषताएँ:
सूरदास वात्सल्य, प्रेम और सौंदर्य के अमर कवि हैं। उनके काव्य के मुख्य विषय हैं-विनय और आत्मनिवेदन, बाल-वर्णन, गोपी-कला, मुरली-माधुरी और गोपी विरह।।

श्रृंगार वर्णन:
सूर का श्रृंगार वर्णन बड़ा सुंदर बन पड़ा है। उनका संयोग शृंगार वर्णन भी आकर्षक रूप लिए हुए है। राधा-कृष्ण के प्रथम मिलन का वर्णन करते हुए सूर ने लिखा है
“बूझत स्याम कौन तु गौरी।”

Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 14 अकबरी लोटा Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 14 अकबरी लोटा

HBSE 8th Class Hindi अकबरी लोटा Textbook Questions and Answers

कहानी की बात

अकबरी लोटा HBSE 8th Class प्रश्न 1.
“लाला ने लोटा ले लिया, बोले कुछ नहीं, अपनी पत्नी का अदब मानते थे।”
लाला झाऊलाल को बेढंगा लोटा बिलकुल पसंद नहीं था। फिर भी उन्होंने चुपचाप लोटा ले लिया। आपके विचार से वे चुप क्यों रहे ? अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
लाला झाऊलाल की पत्नी ने उन्हें उस लोटे में पानी दिया जिसे वे बिलकुल पसंद नहीं करते थे। इसके बावजूद वे कुछ बोले नहीं, चुपचाप वह लोटा ले लिया।
हमारे विचार से इसका कारण यह था

  • वे पत्नी का अदब मानते थे।
  • कानून निकालने पर पत्नी और कुछ बुरा कर सकती थी।
  • उस समय वे चिंताग्रस्त अवस्था में थे अतः उन्होंने कुछ न कहकर चुप रहना ही बेहतर समझा।

पाठ 14 अकबरी लोटा के प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 2.
“लाला झाऊलाल ने फौरन दो और दो जोड़कर स्थिति को समझ लिया।”
आपके विचार से लाला झाऊलाल ने कौन-कौन-सी बातें समझ ली होंगी?
उत्तर:
लोटा गिरने पर गली में मचे शोर को सनकर लाला झाऊलाल दौड़कर नीचे उतरे। उनके आँगन में भीड़ घुस आई थी। लाला झाऊलाल एक चतुर व्यक्ति थे। उन्होंने लोटे के पानी से भीगे अंग्रेज को देखा, उसे अपना पैर सहलाते देखा तो सारी स्थिति को भाँप गए। उन्होंने समस्या का आगा-पीछा सब सोच-विचार लिया। उन्होंने समझ लिया कि अब चुप रहना ही बेहतर है वर्ना समस्या और उग्र हो जाएगी।

Akbari Lota Class 8 Summary In Hindi HBSE प्रश्न 3.
अंग्रेज के सामने बिलवासी जी ने झाऊलाल को पहचानने तक से क्यों इंकार कर दिया था? आपके विचार से बिलवासी जी ऐसा अजीब व्यवहार क्यों कर रहे थे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब अंग्रेज ने झाऊलाल की ओर इशारा करते हुए बिलवासी मिश्र से पूछा कि क्या आप इस शख्स को जानते हैं तब बिलवासी ने उन्हें पहनानने से साफ इंकार कर दिया था। हमारे विचार से बिलवासी जी ऐसा अजीब व्यवहार करके अंग्रेज की सहानुभूति पाने का प्रयास कर रहे थे। झाऊलाल को पहचानकर वे उनकी मुसीबत को और नहीं बढ़ाना चाहते थे। वे एक तीर से दो निशाने कर रहे थे। इसमें वे सफल भी रहे।

माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

Akbari Lota Class 8 HBSE प्रश्न 4.
बिलवासी जी ने रुपयों का प्रबंध कहाँ से किया था ? लिखिए।
उत्तर:
बिलवासी जी ने रुपयों का प्रबंध अपनी पत्नी के संदूक से चोरी करके निकाल कर किया था। यद्यपि चाबी उसकी पत्नी की सोने की चेन में बँधी रहती थी, पर उन्होंने चुपचाप उसे उतार कर ताली से संदूक खोल लिया था और रुपए निकाल लिए थे। बाद में वे रुपए चुपचाप वहीं रख भी दिए।

Class 8 Hindi Akbari Lota HBSE प्रश्न 5.
आपके विचार से अंग्रेज ने वह पुराना लोटा क्यों खरीद लिया? आपस में चर्चा करके वास्तविक कारण की खोज कीजिए और लिखिए।
उत्तर:
अंग्रेज पुरानी ऐतिहासिक महत्त्व की चीजें खरीदने के शौकीन होते हैं। उस अंग्रेज का एक पड़ोसी मेजर डगलस पुरानी चीजों में उससे बाजी मारने का दावा करता रहता था। उसने एक दिन एक जहाँगीरी अंडा दिखाकर कहा था कि वह इसे दिल्ली से 300 रुपए में लाया है। वह अंग्रेज इसका बदला देना चाहता था। अत: उसने 500 रुपए देकर अकबरी लोटा खरीद लिया। वास्तव में वह लोटा अकबरी था ही नहीं, बिलवासी ने उसे मूर्ख बनाया था। इस लोटे को दिखाकर वह मेजर डगलस को नीचा दिखाना चाहता था।

अनुमान और कल्पना

Akbari Lota HBSE 8th Class प्रश्न 1.
“इस भेव को मेरे सिवाए मेरा ईश्वर ही जानता है। आप उसी से पूछ लीजिए। मैं नहीं बताऊँगा।”
बिलवासी जी ने यह बात किसे और क्यों कही ? लिखिए।
उत्तर:
बिलवासी ने यह बात लाला झाकलाल को इसलिए कही क्योंकि उन्होंने बिलवासी जी से यह पूछा था कि जब आपके पास रुपए थे ही नहीं तब आप 250 रुपए घर से कैसे ले आए।
बिलवासी इस रहस्य को उनके सामने खोलना नहीं चाहते थे।

Akbari Lota Question Answer In Hindi HBSE 8th Class प्रश्न 2.
“उस दिन रात्रि में बिलवासी जी को देर तक नींद नहीं आई।”
समस्या झाऊलाल की थी और नींद बिलवासी की उड़ी तो क्यों ? लिखिए
उत्तर:
बिलवासी जी अपनी पत्नी के सो जाने की प्रतीक्षा कर रहे थे ताकि वे सोई पत्नी के गले से सोने की वह सिगड़ी निकाल सकें, जिसमें एक ताली बँधी हुई थी। वे ताला खोलकर पत्नी के रूपयों को उसके संदूक में वैसे ही चुपचाप रख देना चाहते थे जैसे वे निकाले थे। यहाँ समस्या झाऊलाल की नहीं बिलवासी की थी।

माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

Akbari Lota Class 8 Question Answer In Hindi HBSE प्रश्न 3.
“लेकिन मुझे इसी जिंदगी में चाहिए।”
“अजी इसी सप्ताह में ले लेना।”
“सप्ताह से आपका तात्पर्य सात दिन से है या सात वर्ष से ?
झाऊलाल और उनकी पत्नी के बीच की इस बातचीत से पता चलता है। लिखिए।
उत्तर :
झाऊलाल और उनकी पत्नी के बीच इस बातचीत से ये बातें मालूम होती हैं

  • पत्नी को अपने पति के वायदे पर विश्वास न था।
  • पत्नी अपने पति की टालू प्रवृत्ति से भलीभांति परिचित थी।
  • पत्नी पति पर हावी थी।
  • वह तर्कशील थी।

क्या होता यदि

1. अंग्रेज लोटा न खरीदता ?
2. यदि अंग्रेज पुलिस को बुला लेता?
3. जब बिलवासी अपनी पत्नी के गले से चाबी निकाल रहे थे, तभी उनकी पत्नी जाग जाती?
उत्तर:
1. यदि लोटा अंग्रेज न खरीदता तो झाऊलाल को अचानक 500 रुपए की प्राप्ति नहीं होती।
2. झाऊलाल के लिए एक मुसीबत खड़ी हो जाती।
3. तब बिलवासी मिश्र की पोल खुल जाती और उन्हें पत्नी के सम्मुख शर्मिंदा होना पड़ता।

पता कीजिए

1. “अपने वेग में उल्का को लजाता हुआ वह आँखों से ओझल हो गया।”
उल्का क्या होती है ? उल्का और ग्रहों में कौन-कौन-सी समानताएँ और अंतर होते हैं ?
उत्तर:
उल्का आकाश में आग का गोला होती है। उल्का चमकती और आग के समान प्रतीत होती है। उल्का और ग्रह दोनों ही आकाशीय पिंड हैं। ये दोनों ही एक समान पदार्थों से बने हैं। उल्का तेज चमक के साथ पृथ्वी की ओर नीचे जाकर जल जाती है। ग्रह अपनी जगह स्थिर रहकर सूर्य की परिक्रमा करते हैं।

2. “इस कहानी में आपने दो चीजों के बारे में मजेदार कहानियाँ पढ़ी-अकबरी लोटे की कहानी और जहाँगीरी अंडे की कहानी।”
आपके विचार से ये कहानियाँ सच्ची हैं या काल्पनिक?
उत्तर:
हमारे विचार से ये कहानियाँ काल्पनिक हैं।

3. अपने घर या कक्षा की किसी पुरानी चीज के बारे में ऐसी ही कोई मजेदार कहानी बनाइए।
उत्तर:
यह काम विद्यार्थी स्वयं करें।

4. बिलवासी जी ने जिस तरीके से रुपयों का प्रबंध किया, वह सही था या गलत ?
उत्तर:
नैतिक दृष्टि से तो वह तरीका गलत था क्योंकि किसी अनजान व्यक्ति को मूर्ख बनाया गया था। पर उन्होंने अपनी समझ बुद्धि से समस्या का समाधान खोज निकाला था।

माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

भाषा की बात

1. इस कहानी में लेखक ने जगह-जगह पर सीधी-सी बात कहने के बजाय रोचक मुहावरों, उदाहरणों आदि के द्वारा कहकर अपनी बात को और अधिक मजेदार/रोचक बना दिया है। कहानी में से वे वाक्य चुनकर लिखिए जो आपको सबसे अधिक मजेदार लगे।
उत्तर:
रोचक वाक्य

  • ढाई सौ रुपए तो एक साथ आँख सेंकने के लिए भी न मिलते थे।
  • अब जो एक काम पड़ा तो चारों खाने चित्त हो रहे।
  • उनकी स्त्री उन्हें डामनफांसी न कर देगी-केवल जरा-सा हँस देगी।
  • कुछ ऐसी गढ़न थी उस लोटे की कि उसका बाप डमरू, माँ चिलम रही हो।

2. इस कहानी में लेखक ने अनेक मुहावरों का प्रयोग किया है। कहानी में से पांच मुहावरे चुनकर उनका प्रयोग करते हुए वाक्य लिखिए।
उत्तर:

  • आँख सेंकना-इतने रुपयों में भला क्या आँख सिकेगी?
  • चारों खानों चित होना-मैं ऐसा मजा चखाऊँगा कि चारों खानों चित हो जाओगे।
  • डींगें सुनना-तुम्हारी डींगें सुनते-सुनते मेरे कान पक गए
  • कान पक जाना-तुम्हारी शेखी भरी बातें सुनकर मेरे कान पक गए हैं।
  • चैन की नींद सोना-मैं इस समस्या का हल करके ही चैन की नींद सो पाऊँगा।

HBSE 8th Class Hindi अकबरी लोटा Important Questions and Answers

Akbari Lota Summary In Hindi HBSE 8th Class प्रश्न 1.
पं. बिलवासी मिश्र कहाँ आते दिखाई पड़े? उन्होंने आते ही क्या किया? उन्होंने अंग्रेज के साथ किस प्रकार सहानुभूति प्रकट की?
उत्तर:
पं. बिलवासी मित्र भीड़ को चीरते हुए आँगन में आते दिखाई पड़े। उन्होंने आते ही पहला काम यह किया कि उस अंग्रेज को छोड़कर और जितने आदमी आँगन में घुस आए थे, सबको बाहर निकाल दिया। फिर आँगन में कुर्सी रखकर उन्होंने साहब से कहा-“आपके पैर में शायद कुछ चोट आ गई है। अब आप ।आराम से कुर्सी पर बैठ जाइए।”

साहब बिलवासी जी को धन्यवाद देते हुए बैठ गए और लाला झाऊलाल की ओर इशारा करके बोले-“आप इस शख्स को जानते हैं ?”
“बिलकुल नहीं। और मैं ऐसे आदमी को जानना भी नहीं चाहता, जो निरीह राह चलतों पर लोटे के वार करे।”

माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

प्रश्न 2.
समय बीतते देखकर लाला झाऊलाल ने अपनी विपदा किसे सुनाई? उसने क्या उत्तर दिया?
उत्तर:
चार दिन बीतने के बाद पाँचवें दिन घबराकर लाला झाऊलाल ने पं. बिलवासी मिश्र को अपनी विपदा सुनाई। संयोग कुछ ऐसा बिगडा था कि बिलवासी जी भी उस समय बिलकुल खुक्ख थे। उन्होंने कहा-” मेरे पास हैं तो नहीं, पर मैं कहीं से मांग-जाँचकर लाने की कोशिश करूँगा और अगर मिल गए तो कल शाम को तुमसे मकान पर मिलूँगा।”

प्रश्न 3.
लाला जी ने नापसंद लोटे को पत्नी से क्यों ले लिया? उन्होंने क्या बात सोची?
उत्तर:
लाला ने लोटा ले लिया, बोले कुछ नहीं, अपनी पत्नी का अदब मानते थे। मानना ही चाहिए। इसी को सभ्यता कहते हैं। जो पति अपनी पत्नी का न हुआ, वह पति कैसा? फिर उन्होंने यह भी सोचा कि लोटे में पानी दे, तब भी गनीमत है, अभी अगर यूँ कर देता हूँ तो बाल्टी में भोजन मिलेगा। तब क्या करना बाकी रह जाएगा?

अकबरी लोटा गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. लाला झाऊलाल को खाने-पीने की कमी नहीं थी। काशी के ठठेरी बाज़ार में मकान था। नीचे की दुकानों से एक सौ रुपए मासिक के करीब किराया उतर आता था। अच्छा खाते थे, अच्छा पहनते. थे, पर ढाई सौ रुपए तो एक साथ आँख सेंकने के लिए भी न मिलते थे।

इसलिए जब उनकी पत्नी ने एक दिन एकाएक ढाई सौ रुपए की मांग पेश की, तब उनका जी एक बार ज़ोर से सनसनाया और फिर बैठ गया। उनकी यह दशा देखकर पत्नी ने कहा-“डरिए मत, आप देने में असमर्थ हों, तो मैं अपने भाई से माँग लूँ?”
प्रश्न :
1. लाला झाऊलाल की आर्थिक स्थिति कैसी थी?
2. उन्हें 250 रुपए की आवश्यकता क्यों पड़ गई?
3. रुपए की माँग सुनकर उनकी क्या दशा हुई?
4. उनकी दशा देखकर पत्नी ने क्या ताना मारा?
उत्तर:
1. लाला झाऊलाल एक अच्छे खाते-पीते व्यक्ति थे। काशी के ठठेरी बाजार में उनका मकान था और मकान के नीचे दुकानें थी जिनसे 100 रुपए मासिक किराया आ जाता था। वे अच्छा खाते थे, अच्छा पहनते थे।
2. एक दिन उनकी पत्नी ने अचानक उनके सामने 250 रुपए की माँग पेश कर दी। इसी की पूर्ति के लिए उन्हें 250 रुपए की आवश्यकता थी।
3. अचानक इतने रुपयों की माँग सुनकर उनका जी सनसना गया और फिर बैठ गया।
4. उनकी घबराहट की दशा देखकर पत्नी ने ताना मारा-डरिए ।मत, आप देने में असमर्थ हों, तो मैं अपने भाई से माँग लूँ।

2. लाला झाऊलाल ने देखा कि इस भीड़ में प्रधान पात्र एक अंग्रेज है, जो नखशिख से भीगा हुआ है और जो अपने एक पैर को हाथ से सहलाता हुआ दूसरे पैर पर नाच रहा है। उसी के पास अपराधी लोटे को भी देखकर लाला झाऊलाल जी ने फौरन दो और दो जोड़कर स्थिति को समझ लिया।

गिरने के पूर्व लोटा एक दुकान के सायबान से टकराया। वहाँ टकराकर उस दुकान पर खड़े उस अंग्रेज को उसने सांगोपांग स्नान कराया और फिर उसी के बूट पर आ गिरा। उस अंग्रेज को जब मालूम हुआ कि लाला झाऊलाल ही उस लोटे के मालिक हैं, तब उसने केवल एक काम किया। अपने मुँह को खोलकर खुला छोड़ दिया। लाला झाऊलाल को आज ही यह मालूम हुआ कि अंग्रेजी भाषा में गालियों का ऐसा प्रकांड कोष है।
प्रश्न :
1. लाला झाऊलाल ने क्या देखा ?
2. लाला झाऊलाल ने क्या समझ लिया ?
3. लोटे के गिरने के बाद क्या हुआ?
4. लाला झाऊलाल को क्या मालूम हुआ ?
उत्तर:
1. लाला झाऊलाल ने देखा कि भीड़ में एक अंग्रेज सिर से नाखून तक भीगा हुआ है तथा अपने हाथ से अपने पैर को सहला रहा है। वह दूसरे पैर पर नाच रहा था।
2. लाला झाऊलाल ने सारे दृश्य को देखकर पूरी स्थिति को भली प्रकार समझ लिया।
3. लोटा ऊपर से गिरकर पहले दुकान के सायबान से टकराया, फिर उसने अंग्रेज को पूर्ण स्नान कराया, बाद में उसके बूट पर जा गिरा।
4. अंग्रेज लोटे के मालिक लाला झाऊलाल को मुँह खोलकर गालियाँ दे रहा था। उन्हें सुनकर उन्हें मालूम हुआ कि अंग्रेजी भाषा में भी गालियों का इतना प्रचंड खजाना है।

माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

3. “जी, जनाब। सोलहवीं शताब्दी की बात है। बादशाह हुमायूँ शेरशाह से हारकर भागा था और सिंध के रेगिस्तान में मारा-मारा फिर रहा था। एक अवसर पर प्यास से उसकी जान निकल रही थी। उस समय एक ब्राह्मण ने इसी लोटे से पानी पिलाकर उसकी जान बचाई थी। हुमायूँ के बाद अकबर ने उस ब्राह्मण का पता लगाकर उससे इस लोटे को ले लिया और इसके बदले में उसे इसी प्रकार के दस सोने के लोटे प्रदान किए। यह लोटा सम्राट अकबर को बहुत प्यारा था। इसी से इसका नाम अकबरी लोटा पड़ा। वह बराबर इसी से वजू करता था। सन् 57 तक इसके शाही घराने में रहने का पता है। पर इसके बाद लापता हो गया। कलकत्ता के म्यूजियम में इसका प्लास्टर का मॉडल रखा हुआ है। पता नहीं यह लोटा इस आदमी के पास कैसे आया? म्यूजियम वालों को पता चले, तो फैंसी दाम देकर खरीद ले जाएँ।
प्रश्न :
1. 16वीं शताब्दी में क्या हुआ था?
2. हुमायूँ की जान कैसे बची थी?
3. बाद में लोटा किसके पास पहुंचा और वहाँ कब तक रहा?
4. बाद में इस लोटे का क्या हुआ?
उत्तर :
1. 16वीं शताब्दी में बादशाह हुमायूँ शेरशाह से हारकर सिंध के रेगिस्तान में मारा-मारा फिर रहा था।
2. हुमायूँ की प्यास से जान निकल रही थी कि एक ब्राह्मण ने इस लोटे से पानी पिलाकर उसकी जान बचाई थी।
3. बाद में हुमायूँ के बेटे अकबर ने उस ब्राह्मण का पता लगाया। उसे सोने के दस लोटे देकर इस लोटे को ले लिया। वह इसी लोटे से वजू (मुसलमानों में हाथ-पैर धोने की क्रिया) करता था। सन् 57 तक यह लोटा उसके पास रहा।
4. बाद में यह लोटा शाही घराने से गायब हो गया। कलकत्ता (कोलकाता) के म्यूजियम में इसका प्लास्टर का मॉडल रखा हुआ है। म्यूजियम वाले इसे तलाश रहे हैं।

अकबरी लोटा Summary in Hindi

अकबरी लोटा पाठ का सार

लाला झाऊलाल अच्छे खाते-पीते व्यक्ति थे। काशी के ठठेरी बाजार में उनका मकान था। नीचे की दुकानों से 100 रुपए मासिक किराया आ जाता था। एक दिन उनकी पत्नी ने अचानक 250 रुपए माँग लिए। साथ ही धमकी भी दे दी कि यदि आप न दे सकें तो मैं अपने भाई से ले लूँगी। लाला झाऊलाल को पत्नी का अपने भाई से रुपए लेना अपमानजनक लगा। उन्होंने एक सप्ताह में रुपए दे देने का वादा कर दिया। जब चार दिन ऐसे ही बीत गए तो उन्हें रुपयों के प्रबंध की चिंता सताने लगी।

पाँचवें दिन उन्होंने पं. बिलवासी मिश्र को अपनी बिपदा सुनाई। वे बोले-“मेरे पास हैं तो नहीं, पर मैं कहीं से मांग-जाँचकर लाने की कोशिश करूँगा और कल शाम को तुमसे मकान पर मिलूंगा।” आज हफ्ते का अंतिम दिन था। लाला झाऊलाल इसी उधेड़-बुन में छत पर टहल रहे थे। नौकर को पानी के लिए आवाज देने पर पत्नी पानी लेकर आई, पर वह गिलास लाना भूल गई। वह एक बेढंगी सूरत वाले लोटे में पानी लाई थी। लाला झाऊलाल को यह लोटा सदा से नापसंद था। लाला अपना गुस्सा पीकर पानी पीने लगे, अभी वे एक-दो बूट ही पी पाए होंगे कि उनके हाथ से लोटा छूट गया। तिमजिले मकान से पानी से भरा लोटा नीचे एक अंग्रेज के पैर पर जा गिरा।

वह पैर को हाथ से सहला ही रहा था कि वहाँ पं. बिलवासी मिश्र आ प्रकट हुए। उन्होंने अपने ढंग से स्थिति को संभालने की कोशिश की। उन्होंने अंग्रेज को आराम से एक कुर्सी पर बिठाया। अंग्रेज गाली बक रहा था। बिलवासी मिश्र ने अंग्रेज को पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने की सलाह दी। जब वह चलने को तैयार हो गया तो बिलवासी मिश्र ने एक चालाकी चली। उन्होंने उस लोटे को 50 रुपए में खरीदने की इच्छा जताई। साहब ने इस रद्दी लोटे के 50 रुपए अधिक बताए। पूछने पर बिलवासी मिश्र ने कहा-“यह एक ऐतिहासिक लोटा है। मुझे पूरा विश्वास है कि यह प्रसिद्ध अकबरी लोटा है। इसकी तलाश में संसार भर के म्यूजियम परेशान हैं।”

यह बात सुनकर अंग्रेज हैरान रह गया। बिलवासी मिश्र ने उसकी जिज्ञासा को बढ़ाते हुए कहा-16वीं शताब्दी की बात है। हुमायूँ की प्यास एक ब्राह्मण ने इसी लोटे से बुझाई थी। बाद में अकबर ने दस सोने के लोटे देकर इसे ब्राह्मण से प्राप्त कर लिया। वह इसी लोटे से वजू करता था। सन् 57 तक यह लोटा शाही घराने में रहा, फिर लापता हो गया। इस विवरण ने अंग्रेज के मन में लोटे को पाने की इच्छा जागृत कर दी। अंग्रेज को पुरानी ऐतिहासिक चीजों के संग्रह का शौक था।

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वह उस समय भी कुछ पुरानी मूर्तियाँ खरीद रहा था। उसने लोटे को खरीदने पर अपना हक जताया। बिलवासी और अंग्रेज में लोटे की कीमत पर शर्त लग गई। बिलवासी ने 250 रुपए के नोट लाला झाऊलाल के आगे फेंक दिए तो अंग्रेज ने 500 रुपए का प्रस्ताव रखा। आखिर में लोटा अंग्रेज को मिल गया। अब अंग्रेज को संतोष हुआ कि वह मेजर डगलस के जहाँगीरी अंडे का अच्छा जवाब दे सकेगा।

मेजर डगलस इस जहाँगीरी अंडे को पारसाल दिल्ली में एक मुसलमान सज्जन से 300 रुपए में खरीदकर ले गए थे। अंग्रेज रुपए देकर झाऊलाल से 500 रुपए में लोटा लेकर चला गया। लाला झाऊलाल की समस्या का हल हो चुका था। उनका चेहरा प्रसन्न था। बिलवासी तुरंत घर लौट आए क्योंकि वे चुपके से पत्नी की संदूक का ताला खोलकर 250 रुपए निकाल कर लाए थे। घर लौटकर उन्होंने अपने रुपए वहीं ठिकाने पर रखकर चैन की साँस ली।

अकबरी लोटा शब्दार्थ

असमर्थ – समर्थ (योग्य) न होना (Incapable), प्रतिष्ठा = इज्जत (Respect), साख = इज्जत (Prestige), विपदा – मुसीबत (Trouble), बेढंगी = टेढ़ा-मेढ़ा (Shapeless), ओझल = गायब (Disappear), आकर्षण = खिंचाव (Attraction), काशीवास का संदेश = मौत की खबर (Death News), सांगोपांग = पूरे शरीर सहित (With Full body), कोष • खजाना (Treasure), डेंजरस – खतरनाक (Dangerous), ल्यूनाटिक = पागल (Mad), क्रिमिनल – मुजरिम (Criminal), इजाज़त = अनुमति (Permission), लापता – गायब (Lost), संग्रह = एकत्रित करना (Collection), बिल्लौर – काँच (Glass), अंतर्धान – गायब (Disappear)।

Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 12 सुदामा चरित Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 12 सुदामा चरित

HBSE 8th Class Hindi सुदामा चरित Textbook Questions and Answers

कविता से

Sudama Charit Question Answer HBSE 8th Class प्रश्न 1.
सुदामा की वीनवशा वेखकर श्रीकृष्ण की क्या मनोदशा हुई? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
जब श्रीकृष्ण ने अपने बालसखा सुदामा को दीनदशा में देखा तो वे व्याकुल हो गए। सुदामा के पैरों में काँटों के जाल लगे हुए थे। कृष्ण अपने मित्र की दुर्दशा देखकर रोने लगे। उनकी आँखों से इतने आँसू निकले कि सुदामा के पैर धुल गए।

पाठ 12 सुदामा चरित के प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 2.
“पानी परात को हाथ छुऔ नहि, नैनन के जल सों पग योए।” पंक्ति में वर्णित भाव का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
अतिथि के चरण धोने के लिए पानी मँगाया जाता है। सुदामा के पैर भी धूल में सने थे तथा उनमें काँटे लगे थे। उन्हें धोने के लिए परात में पानी मैंगवाया गया। कृष्णा अपने मित्र की धुरी दशा को देखकर इतने व्याकुल हुए कि उनकी आँखों से आंसू निकल आए। वे इतने भावुक हो गए कि उनकी अश्रुधारा ने ही सुदामा के चरणों को धो दिया। उन्होंने परात के पानी को हुआ तक नहीं। इसकी आवश्यकता ही नहीं रह गई थी।

सुदामा चरित कविता का सारांश Class 8 HBSE प्रश्न 3.
“चोरी की बान में हौ जू प्रवीने।”
(क) उपर्युक्त पंक्ति कौन, किससे कह रहा है?
(ख) इस कथम की पृष्ठभूमि स्पष्ट कीजिए।
(ग) इस उपालंभ (शिकायत) के पीछे कौन-सी पौराणिक कथा है?
उत्तर:
(क) उपर्युक्त पंक्ति कृष्ण सुदामा से कह रहे हैं।

(ख) सुदामा की पत्नी ने कृष्ण को मेंट के लिए थोड़े से चावल भिजवाए थे। सुदामा संकोचवश उन्हें कृष्ण को दे नहीं पा रहे थे। कृष्ण इसे चोरी की प्रवृत्ति बता रहे थे।

(ग) इस उपालंभ के पीछे यह पौराणिक कथा है कृष्ण और सुदामा गुरु संदीपन के आश्रम में पढ़ते थे। जब वे लकड़ी एकत्रित करने के लिए वन में जाते थे तब गुरुमाता उन्हें खाने के लिए चने देती थीं। सुदामा चालाकी से कृष्ण के हिस्से के चने भी स्वयं खा जाते थे। कृष्ण उसी चोरी की प्रवृत्ति की ओर संकेत कर रहे हैं।

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Sudama Charit Class 8 Summary HBSE प्रश्न 4.
द्वारका से खाली हाथ लौटते समय सुदामा मार्ग में क्या-क्या सोचते जा रहे थे? वह कृष्ण के व्यवहार से क्यों खीझ रहे बे? सुदामा के मन की बुविधा को अपने शब्दों में प्रकट कीजिए।
उत्तर:
द्वारका से खाली हाथ लौटते समय सुदामा मार्ग में यह सोचते जा रहे थे

1. क्या कृष्ण का प्रसन्ता प्रकट करना, उठकर मिलना, आदर देना, यह सब दिखावटी था ?

2. अरे, यह कृष्ण मुझे क्या देता, वह तो कभी स्वयं घर-घर दही माँगता फिरता था।

3. मैं तो आ ही नहीं रहा था, यह तो उसने (पत्नी ने) जबरदस्ती भेजा। अब धन एकत्र कर ले। सुदामा कृष्ण के व्यवहार से इसलिए खीझ रहे थे क्योंकि उन्होंने विदा करते समय कुछ भी नहीं दिया था। सुदामा को लग रहा था कि उनका आना व्यर्थ ही गया। वे माँगे हुए चावल भी हाथ से निकल गए अर्थात् जो अपनी जेब में था, वह भी गवा आए।

Sudama Charit Class 8 Solutions HBSE प्रश्न 5.
अपने गाँव लौटकर जब सुदामा अपनी झोंपड़ी नहीं खोज पाए तो उनके मन में क्या-क्या विचार आए? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब सुदामा द्वारका से अपने गाँव लौटे तो वहाँ वे अपनी झोंपड़ी नहीं खोज पाए, क्योंकि उसके स्थान पर कृष्ण के कारीगरों ने भव्य भवन बना दिया था। सुदामा के मन में यह ख्याल आया कि कहीं भूलकर वे पुनः द्वारका ही तो नहीं आ गए हैं।

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Sudama Charit Summary HBSE 8th Class प्रश्न 6.
निर्धनता के बाद मिलनेवाली संपन्नता का चित्रण कविता की अंतिम पंक्तियों में वर्णित है। उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
कविता की अंतिम चार पंक्तियों में मृदामा की निर्धनता के बाद मिली संपन्नता का चित्रण हुआ है। पहले तो सुदामा के पास घास-फूस की टूटी-सी झोपड़ी थी और अब कृष्ण की कृपा से स्वर्ण-महल रहने को मिल गए।
सुदामा पहले नंगे पैर रहते थे. अब द्वार पर हाथी खाई रहते हैं।
पहले कठोर भूमि पर सोना पड़ता था, अब बिस्तर प्राप्त है।
निर्धनता के दिनों में खाने के लिए समां चावल तक नहीं मिलते थे अब खाने को मेवे मिल हैं।

कविता से आगे

1. द्रुपद और द्रोणाचार्य भी सहपाठी थे इनकी मित्रता और शत्रुता की कथा महाभारत से खोजकर सुदामा के कथानक से तुलना कीजिए।
उत्तर:
दुपद और द्रोणाचार्य भी सहपाठी व द्रुपद राजा पर द्रोणाचार्य गरीब ही बने रहे।

2. उच्च पद पर पहुँचकर या अधिक समृल होकर व्यक्ति अपने निर्धन माता-पिता, भाई-बशुओं से नज़र ५. जे लग जाता है, ऐसे लोगों के लिए ‘सुदामा चारत’ कैसी चुनौती खड़ी करता है ? लिखिए।
उत्तर:
ऐसे लोगों के लिए ‘सुदामा चरित’ बहुत बड़ी चुनौती खड़ा करता है। हमें धन-दौलत पाकर अपने निर्धन माता-पिता या भाई-बंधुओं को भुला नहीं देना चाहिए। हमें उनका सम्मान करना चाहिए तथा आर्थिक मदद करनी चाहिए।

अनुमान और कल्पना

1. अनुमान कीजिए यदि आपका कोई अभिन्न मित्र आपसे बहुत वर्षों बाद मिलने आए तो आप को कैसा अनुभव होगा?
उत्तर:
यदि हमारा कोई अभिन्न मित्र हमसे मिलने बहुत वर्षों बाद आए तो हमें बहुत प्रसन्नता होगी। हम उससे बड़े उत्साहपूर्वक मिलेंगे, उसका आदर-सत्कार करेंगे। उसे अपने साथ ठहरने का निमंत्रण देंगे। विदा के समय उसे उपहार भी देंगे। शीघ्र ही पुन: मिलने को वचन भी देंगे।

2. कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति।
विपति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत।।
इस दोहे में रहीम ने सच्चे मित्र की पहचान बताई है। इस दोहे से ‘सुदामा चरित’ की समानता किस प्रकार दिखती है, लिखिए।
उत्तर:
इस दोहे में बताया गया है कि धन-दौलत के लिए तो अनेक लोग मित्र बन जाते हैं पर जो विपत्ति की कसौटी पर खरा उतरता है, वही मच्चा मित्र होता है। ‘सुदामा चरित’ में कृष्ण सुदामा की विपत्ति के समय मदद करके मित्रता की कसौटी पर खरे उतरते हैं।

भाषा की बात

“पानी परात को हाथ छुयो नहि, नैनन के जल सो पग धोए”
उत्तर:
ऊपर लिखी गई पंक्ति को ध्यान से पदिए। इसमें बात को बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर चित्रित किया गया है। जब किसी बात को इतना बड़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है तो वहाँ पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है। आप भी कविता में से एक अतिशयोक्ति अलंकार का उदाहरण छौटए।

कविता से अतिशयोक्ति अलंकार का एक उदाहरण :
कै वह टूटी-सी छानी हुती, कहँ कंचन के अब धाम सुहावत

एक अन्य उदाहरण:
हनुमान की पूँछ में लगन न पाई आग। लंका सिगरी जल गई, गए निसाचर भाग।।

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कुछ करने को

1. इस कविता को एकांकी में बदलिए और उसका अभिनय कीजिए।
2. कविता में के उचित सस्वर वाचन का अभ्यास कीजिए।
3. ‘मित्रता’ संबंधी दोहों का संकलन कीजिए।
उत्तर:
ये तीनों काम विद्यार्थी स्वयं करें।

HBSE 8th Class Hindi सुदामा चरित Important Questions and Answers

सुदामा चरित प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 1.
‘पानी परात को हाथ छुयो नहि, नैनन के जल सों पग धोए’ पंक्ति में कृष्ण की किन चारित्रिक विशेषताओं को उजागर किया गया है?
उत्तर:
इस पंक्ति में कृष्ण की करुणा भावना, परदुखकारता तथा भावुक दशा को उजागर किया गया है। कृष्ण अपने बाल सखा की दुर्दशा को सहन नहीं कर पाए थे। वे उनकी दशा के लिए स्वयं को भी दोषी मान रहे थे।

Sudama Charit Question Answers HBSE 8th Class  प्रश्न 2.
अपने गाँव लौटने पर सुदामा के भ्रमित होने का कारण क्या था?
उत्तर:
जब सुदामा अपने गाँव से गए थे तब वहाँ उनकी टूटी-फूटी झोपड़ी खड़ी थी, पर जब वे द्वारका से लौटे तो उन्हें वह झोपड़ी कहीं भी दिखाई नहीं दी। उसके स्थान पर विशाल महल खड़ा था। पूरे गाँव की दशा बदली हुई थी। इस स्थिति को देखकर सुदामा को भ्रम हुआ कि वह कहीं मार्ग भूलकर पुन: द्वारका ही तो नहीं आ गया है क्योंकि वहाँ तो द्वारका जैसा ही दृश्य उपस्थित

सुदामा चरित कविता का सारांश HBSE 8th Class प्रश्न 3.
सुदामा ने कभी श्रीकृष्ण को दया का सागर कहा है तो कभी उनके प्रति खीझ का भाव प्रकट किया है। इन दो भिन्न प्रतिक्रियाओं के पीछे क्या कारण था?
उत्तर:
जब कृष्ण ने सुदामा का भाव-विहल होकर स्वागत किया था तब सुदामा को लगा था कि श्रीकृष्ण तो दया के सागर लेकिन जब कृष्ण ने सुदामा को खाली हाथ ही विदा कर दिया तब उनके मन में कृष्ण के प्रति खीझ का भाव उत्पन्न हो गया।

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Summary Of Sudama Charit HBSE 8th Class प्रश्न 4.
सुदामा श्रीकृष्ण को पोटली क्यों नहीं दे रहे था?
उत्तर:
उस पोटली में केवल एक मुट्ठी चावल बँधे थे। अपने धनी मित्र कृष्ण को यह तुच्छ भेंट देने में सुदामा को बहुत संकोच हो रहा था। यही कारण था कि उन्होंने पोटली को बगल में दबा रखा था. पर कृष्ण की नज़र उस पर पड़ ही गई।

सुदामा चरित काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. सीस पगा न झगा तन में, प्रभु! जाने को आहि बसै केहि ग्रामा।
योती फटी-सी लटी दुपटी, अरु पाँय उपानह को नहिं सामा।।
द्वार खड़ो द्विज दुर्बल एक, रह्यो चकिसो वसुधा अभिरामा।
पूछत दीनदयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा।।

शब्दार्थ :
सीस – सिर (Head), पगा – पगड़ी (Turban), झगा – कुरता (Kurta), तन – शरीर (Body), ग्रामा = गाँव (Willage), पाय = पैर (Feet), उपानह – जूती (Shoes), द्वार = दरवाजा (Door), द्विज – ब्राह्मण (Brahmin), दुर्बल = कमजोर (Weak), चकिसी – हैरान-सा (Surprised), वसुधा = धरती (Earth), अभिरामा – सुंदर (Beautiful).

प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश नरोत्तमदास द्वारा रचित काव्य ‘सुदामा चरित’ से अवतरित है। श्रीकृष्ण के बचपन के मित्र सुदामा अपनी पत्नी के आग्रह पर कुछ आर्थिक सहायता पाने की आशा में उनकी नगरी द्वारका पैदल जा पहुंचे। वे उनके महल के सम्मुख खड़े थे, तब द्वारपाल ने महल के अंदर जाकर श्रीकृष्ण को बताया

व्याख्या:
हे प्रभु! बाहर महल के द्वार पर एक गरीब-सा व्यक्ति खड़ा हुआ है। उसके सिर पर न तो पगड़ी है और न शरीर पर कोई कुर्ता है। पता नहीं वह किस गाँव से चलकर यहाँ तक आया है। उसने फटी-सी छोटी-सी धोती पहन रखी है, उसके पैरों में जूतियां तक नहीं हैं। दरवाजे पर खड़ा वह गरीब कमजोर-सा ब्राह्मण हैरान होकर पृथ्वी और महल के सौंदर्य को निहार रहा है। वह चकित सी अवस्था में है। वह दीनदयाल अर्थात् आपका निवास स्थान पूछ रहा है और अपना नाम सुदामा बता रहा है।
इस प्रकार द्वारपाल ने सुदामा की दीन दशा का यथार्थं अंकन कृष्ण के सम्मुख कर दिया।

विशेष :

  1. सुदामा की निर्धनावस्था का ज्ञान होता है।
  2. चित्रात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।
  3. ‘द्विज दुर्बल’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
  4. ब्रजभाषा का प्रयोग है।
  5. सवैया छंद अपनाया गया है।

माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

2. ऐसे बेहाल बिवाइन सों, पग कंटक जाल लगे पुनि जोए।
हाय! महादुख पायो सखा, तुम आए इतै न कितै दिन खोए।
देखि सुदामा की दीन दसा, करुना करिकै करुनानिधि रोए।
पानी परात को हाथ छुयो नहि, नैनन के जल सा पग धोए।

शब्दार्थ :
बेहाल – बुरहाल (Bad condition), पग – पैर (Feet), कंटक – काँटे (Thorns), सखा – मित्र (Friend), दीन बसा – बुरी दशा (Bad condition), नैनन – आँखों (Eyes).

प्रसंग:
प्रस्तुत सवैया नरोत्तमदास द्वारा रचित ‘सुदामा चरित’ से अवतरित है। जब कृष्ण को पता चला कि द्वार पर उनके बचपन के सखा सुदामा खड़े हैं तब वे दौड़े गए और उन्हें आदर सहित अंदर लिवा लाए। कृष्ण अपने मित्र सुदामा की दुर्दशा देखकर बहुत दुखी हुए।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण ने सुदामा के पैरों की ओर नजर डाली तो देखा कि उनके पैरों में काँटों के जाल लगे हुए हैं। सुदामा नंगे पैर थे। उनके पैरों में बिवाइयाँ फटी हुई थीं। उनका हाल बेहाल था। कृष्ण ने अत्यंत व्याकुल होकर कहा-हे मित्र! तुमने इतना महादुख पाया। तुम इतने दिन तक यहाँ क्यों नहीं चले आए। क्यों इतना कष्ट भोगते रहे? सुदामा की बुरी हालत देखकर करुणा के निधान श्रीकृष्ण रोने लगे। उन्होंने सुदामा के पैरों को धोने के लिए परात में पानी मँगाया, पर उस पानी को उन्होंने छुआ तक नहीं। अपने नेत्रों से बहने वाले आँसुओं के जल से ही उन्होंने मित्र सुदामा के पैर धो दिए, अर्थात् कृष्ण की आँखों से निकली अश्रुधारा से मित्र सुदामा के पैर धुल गए।

विशेष :

  1. कृष्ण के करुणानिधान रूप का वर्णन हुआ है।
  2. अनेक स्थलों पर अनुप्रास अलंकार की छटा है। जैसे बेहाल विवाइन, दीन दसा, करुना करिकै करुनानिधि, पानी परात आदि में।
  3. अंतिम पंक्ति में अतिशयोक्ति अलंकार का प्रयोग है क्योंकि बात को बढ़ा-चढ़ा कर कहा गया है।
  4. ब्रज भाषा का प्रयोग है।
  5. सवैया छंद है।
  6. मार्मिकता का समावेश है।

3. कछु भाभी हमको दियो, सो तुम काहे न देता
चाँपि पोटरी काँख में, रहे कहो केहि हेतु॥
आगे चना गुरुमातु दए ते, लए तुम चाबि हमें नहिं दीने।
स्याम कयो मुसकाय सुवामा सों, “चोरी की बान में हौ जू प्रवीने॥
पोटरि काँख में चाँपि रहे तुम, खोलत नाहिं सुधा रस भीने।
पाछिलि बानि अजौ न तजो तुम, तैसई भाभी के तंदुल कीन्हें।”

शब्दार्थ :
कछु = कुछ (Something), काहे – क्यों (Why), चापि – दबाकर (To hide), कांख = बगल (Armpit), बान – भादत (Tendency), प्रवीने – प्रवीण, कुशल (Expert). सुधारस – अमृतरस (Nectar), पाछिलि – पिछली (PreviOus), बानि – आदत (Habit), तंदुल – चावल (Rice).

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि नरोत्तमदास द्वारा रचित काव्य ‘सुदामा चरित’ से अवतरित हैं। कृष्ण के मित्र सुदामा द्वारका जा पहुंचते हैं। वहाँ कृष्ण उनका काफी सम्मान करते हैं। वे मित्र को अपने बराबर बिठाते हैं। इसके पश्चात् कृष्ण हँसी-ठिठोली के मूड में आ जाते हैं।

व्याख्या:
कृष्ण सुदामा से पूछते हैं-हमारी भाभी ने हमारे लिए जो उपहार भिजवाया है, उसे तुम मुझे देते क्यों नहीं हो? उपहार की पोटली को तुम बगल में दबाए हुए हो। भला तुम ऐसा क्यों कर रहे हो?

कृष्ण अपने मित्र सुदामा को संदीपन गुरु के आश्रम की बात का स्मरण कराते हुए कहते हैं कि जब हम-तुम साथ-साथ पढ़ते थे, तब भी गुरुमाता ने हम दोनों के लिए चने चबाने को दिए थे। तुम सारे चने स्वयं चबा गए थे और मुझे मेरे हिस्से के चने भी नहीं दिए थे। कृष्ण ने मुस्कराकर कहा कि लगता है कि चोरी की तुम्हारी पुरानी आदत अभी तक नहीं गई है, तुम इस कला में प्रवीण हो। तुम अभी-भी चावलों की पोटली को बगल में अपने लिए ही दबा रहे हो। अमृत से सने इन चावलों को खोलते क्यों नहीं हो? तुम्हारी पिछली आदत अभी तक गई नहीं है। तुम भाभी के भेजे चावलों के साथ भी वैसा ही व्यवहार कर रहे हो।

विशेष :

  1. इन पंक्तियों में कृष्ण की हास्य-वृत्ति और सुदामा का संकोच अभिव्यक्त हो रहा है।
  2. ब्रजभाषा का प्रयोग है।

माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

4. वह पुलकनि, वह उठि मिलनि, वह आवर की बात।
वह पठवनि गोपाल की, कछू न जानी जात।।
कहा भयो जो अब भयो हरि को राज-समाज।
घर-घर कर ओड़त फिरे, तनक वही के काज।
हाँ आवत नहीं हुतौ, वाही पठयो डेलि॥
अब कहिहाँ समुझाय कै, बहु धन घरौ सकेलि।।

शब्दार्थ :
पुलकनि = प्रसन्नता (Happiness), आदर – सम्मान (Respect), पठवनि – विदाई (Departure), कर ओड़त फिरे – हाथ फैलाता फिरता था (To beg), तनक – थोड़ा (Small), काज – लिए (For), बहुधन घरो सकेलि = इकट्ठा करो, संभालकर रखो।

प्रसंग:
प्रस्तुत काव्य-पक्तियाँ नरोत्तमदास द्वारा रचित काव्य ‘सुदामा-चरित’ से अवतरित हैं। कृष्ण ने सुदामा का आदर-सत्कार तो बहुत किया, पर विदाई के समय खाली हाथ ही लौटा दिया। सुदामा कृष्ण के इस व्यवहार से खिन्न थे। वे रास्ते में सोचते जा रहे थे:

व्याख्या:
जब मैं कृष्ण के यहाँ पहुंचा था तब तो उन्होंने बड़ी प्रसन्नता दिखाई थी, वे उठकर गले मिले थे और मुझे बहुत आदर दिया था। पर विदाई के अवसर पर इस तरह खाली हाथ भिजवाने की बात कुछ समझ नहीं आती। वास्तव में कृष्ण ने सुदामा को उनके दो मुद्री चावल खाते ही दो लोकों की संपदा दे डाली थी जिससे सुदामा बिल्कुल अनजान थे।

सुदामा कृष्ण के बचपन का स्मरण करके सोचते हैं कि यह वही कृष्ण है जो थोड़े से दही माँगने के लिए घर-घर हाथ फैलाता फिरता था, मला वह मुझे क्या देगा? मैं तो पहले ही इस माखनचोर को जानता था पर उसकी पत्नी ने ही जिद करके भेजा था। अब जाकर उससे कहूँगा बहुत धन मिल गया है अब इसे संभालकर रखो। वास्तव में सुदामा बहुत खिन्न थे क्योंकि वे यहाँ आना नहीं चाहते थे। अब हालत यह थी कि जो चावल वे माँग कर लाए थे वह भी कृष्ण ने ले लिए थे। बदले में खाली हाथ वापसी हुई।

विशेष:

  1. सुदामा की खीझ प्रकट हुई है। वे कृष्ण के प्रेम के वास्तविक रूप को समझ नहीं पाए।
  2. ‘घर-घर’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
  3. ‘धन धरौ’ में अनुप्रास अलंकार है।
  4. अजभाषा का प्रयोग है।

5. वैसोई राज समाज बने, गज-बाजि घने मन संभ्रम छायो।
कैधों पर्यो कहूँ मारग भूलि, कि फेरि के मैं अब द्वारका आयो॥
भौन बिलोकिबे को मन लोचत, सोचत ही सब गाँव मझायो।
पूँछत पाँडे फिरे सब सों पर, झोपरी को कहूँ खोज न पायो।

शब्दार्थ :
वैसोई – वैसा ही (Like that), गज = हाथी (Elephant), बाजि – घोड़ा (Horse), संभ्रम – शंका, घबराहट (Doubt), कैयो – या तो, अथवा (Or), मारग – मार्ग, रास्ता (Path), भौन = भवन (Palace), बिलोकिबे को – देखने को (To see), लोचत – लालायित (Very eager), गाँव मझायो – गाँव भर छान मारा (Wandered in Village), झोंपरी = झोपड़ी (Hut)

प्रसंग:
प्रस्तुत सवैया कवि नरोत्तमदास द्वारा रचित काव्य ‘सुदामा चरित’ से अवतरित है। अपने मित्र कृष्ण से भेंट करके सुदामा खाली हाथ अपने गाँव-घर लौट आते हैं। कृष्ण ने प्रत्यक्षतः तो सुदामा को कुछ नहीं दिया पर वास्तव में उन्होंने सुदामा का अपार संपदा दे दी थी जिसे देखकर सुदामा चकरा गए।

व्याख्या:
सुदामा ने अपने गांव में जाकर देखा कि वहाँ द्वारका जैसा ही ठाठ-बाट है, वैसा ही राज-समाज है। वहाँ उसी प्रकार के हाथी-घोड़े थे, जैसे द्वारका में थे। इससे उनके मन में भ्रम छा गया। सुदामा को लग रहा था कि वे भूलकर फिर से द्वारका ही लौट आए हैं। वे शायद रास्ता भूल गए हैं। वहाँ भी द्वारका जैसे भव्य महल बने हुए थे। सुदामा के मन में उन भवनों को देखने का तालच आ रहा था। यही सोचकर वह गाँव के बीच में चला गया। वहाँ जाकर सुदामा पांडे ने सभी से पूछा पर वे अपनी झोपड़ी को खोज नहीं पाए।

वास्तव में उनकी झोंपड़ी के स्थान पर श्रीकृष्ण के प्रताप से भव्य महल दिखाई दे रहे थे। उनका पूरा गाँव ही अलौकिक आभा से चकाचौंध हो रहा था, जिनके कारण सुदामा भ्रमित हो रहे थे। श्रीकृष्ण ने उनकी अप्रत्यक्ष रूप से सहायता की थी।

विशेष:

  1. सच्चा मित्र गुप्त रूप से सहायता करता है और कृष्ण ने भी ऐसा ही किया था।
  2. ब्रजभाषा का प्रयोग है।
  3. सवैया छंद अपनाया गया है।

6. के वह टूटी-सी छानी हती, कह कंचन के अब धाम सुहावत।
के पग में पनही न हती, कहँ लै गजराजहु ठाढ़े महावत।
भूमि कठोर पै रात कटै, कह कोमल सेज पर नींद न आवत।
कै जुरतों नहिं कोदो-सवाँ, कहँ प्रभु के परताप ते दाख न भावत॥

शब्दार्थ :
छानी – टूटा-फूटा छप्पर (Hut). कंचन – सोना (Gold), धाम – बड़ा घर (Big house), पग – पैर (Feet), पनही – जूती (Shoes), गजराजहु = हाथी (Elephant), कोदो-सवाँ – सस्ते चावल (Rice), परताप = प्रताप (Kind), दाख = मुनक्का, किशमिश (Dry Fruit).

प्रसंग:
प्रस्तुत सवैया नरोत्तमदास द्वारा रचित काव्य ‘सुदामा चरित’ से लिया गया है। कृष्ण की कृपा से सुदामा की गरीबी मिट गई। अब उन्हें खाने-पीने, रहने की सुविधाएं भरपूर मात्रा में प्राप्त होने लगी। उनकी परिवर्तित दशा का वर्णन इस सवैये में हुआ है।

व्याख्या:
कवि बताता है कि कहाँ तो सुदामा के पास टूटी-फूटी-सी फूस की झोपड़ी थी और कहाँ अब स्वर्ण-महल सुशोभित हो रहे हैं। पहले तो सुदामा के पैरों में जूतियां तक नहीं होती थीं और कहाँ अब उनके महल के द्वार पर महावत के साथ हाथी खड़े रहते हैं अर्थात् सवारी के साधन उपलब्ध हैं, पैदल चलना ही नहीं पड़ता।

पहले कठोर धरती पर रात काटनी पड़ती थी, कहाँ अब सुकोमल सेज पर नींद नहीं आती है कहाँ पहले तो यह हालत थी कि उन्हें खाने के लिए घटियां किस्म के चावल भी उपलब्ध नहीं थे और कहाँ अब प्रभु के प्रताप से उन्हें खाने को दाख (किशमिश-मुनक्का) उपलब्ध हैं। फिर भी वे अच्छे नहीं लगते।

विशेष:

  1. कृष्ण की कृपा से सुदामा की दशा में चमत्कारी परिवर्तन लक्षित होता है।
  2. ब्रजभाषा का प्रयोग है।

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सुदामा चरित Summary in Hindi

सुदामा चरित पाठ का सार

‘सुदामा चरित’ नरोत्तमदास द्वारा रचित अत्यंत प्रसिद्ध काव्य है। श्रीकृष्ण और सुदामा संदीपन गुरु के आश्रम में सहपाठी रहे थे। कृष्ण तो आगे चलकर द्वारकाधीश बन गए, पर सुदामा की आर्थिक दशा अत्यंत खराब रही। यहाँ तक कि उन्हें खाने-पीने की चीतों तक का अभाव झेलना पड़ रहा था। इस विपन्नावस्था से उबरने के लिए सुदामा की पत्नी ने कहा कि जाकर अपने मित्र कृष्ण से मदद क्यों नहीं मांगते? सुदामा को भारी संकोच हो रहा था, पर पत्नी के बहुत आग्रह पर वे तैयार हो गए। पत्नी ने भेंट स्वरूप कृष्ण को देने के लिए कुछ चावल पोटली में बाँधकर दे दिए।

सुदामा पैदल चलते-चलते द्वारका तक जा पहुँचे। उनके नंगे पैरों में काँटे लगे थे। पहनने को पूरे वस्त्र तक न थे। जब द्वार पर उन्होंने कृष्ण (दीनदयाल) का धाम पूछा तो द्वारपाल को बहुत आश्चर्य हुआ। द्वारपाल ने उसे गरीब, ब्राह्मण की दीन दशा का वर्णन कृष्ण के सम्मुख कर कहा और बताया कि वह अपना नाम सुदामा बता रहा है। यह सुनते ही कृष्ण सारा कामकाज छोड़कर सुदामा को लेने जा पहुंचे। वे सुदामा की दुर्दशा देखकर अत्यंत व्याकुल हुए। उन्होंने अपने अश्रुजल से उनके पैरों को धोकर स्वागत-सम्मान किया।

फिर वे हंसी-ठिठोली की मुद्रा में आ गए और पूछने लगे कि भाभी ने जो भेंट मेरे लिए भिजवाई है, उसे तुम देते क्यों नहीं हो। उसे अभी तक तुमने बगल में ही दबा रखा है। लगता है अभी तक तुम्हारी बचपन की चोरी की आदत गई नहीं है। तब भी तुम गुरुमाता द्वारा दिए गए मेरे हिस्से के चने भी चबा जाते थे।

सुदामा काफी समय तक द्वारका में ठहरने के बाद अपने घर लौटे तो कृष्ण ने प्रत्यक्ष रूप से उन्हें कुछ नहीं दिया। इस दशा से सुदामा खीझ रहे थे। उन्हें लगता था कि यह कृष्ण तो कभी थोड़ा-सा दही पाने के लिए हाथ फैलाया करता था, भला यह मुझे क्या देगा?

गाँव-घर लौटकर सुदामा आश्चर्यचकित हो गए। कृष्ण ने उनके पूरे गाँव तथा उनके घर की दशा परिवर्तित कर दी थी। अब तो वहाँ भी द्वारका जैसा वैभव झलकता था। यह सब काम कृष्ण ने गुप्त रीति से किया था। पहले तो सुदामा को कुछ भ्रम हुआ पर शीघ्र ही वे नई जिंदगी में रम गए। अब उन्हें राजसी ठाठ भोगने को मिल रहे थे, गरीबी का कहीं नामोनिशान तक न था।

Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 11 जब सिनेमा ने बोलना सीखा Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 11 जब सिनेमा ने बोलना सीखा

HBSE 8th Class Hindi जब सिनेमा ने बोलना सीखा Textbook Questions and Answers

पाठ से

पाठ 11 जब सिनेमा ने बोलना सीखा प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 1.
जब पहली बोलती फिल्म प्रदर्शित हुई तो उसके पोस्टरों पर कौन-से वाक्य छापे गए? उस फिल्म में कितने चेहरे थे? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब पहली बोलती फिल्म ‘आलमआरा’ प्रदर्शित हुई तब उसके पोस्टरों में निम्नलिखित वाक्य छापे गए

  • ये सभी सजीव हैं, साँस ले रहे हैं, शत-प्रतिशत बोल रहे हैं।
  • अठहत्तर मुर्दा इंसान जिंदा हो गए।
  • उनको बोलते, बातें करते देखो।
  • हाँ, पोस्टर पड़कर बताया जा सकता है कि फिल्म में 78 चेहरे थे।

जब सिनेमा ने बोलना सीखा Questions And Answers HBSE 8th Class प्रश्न 2.
पहला बोलता सिनेमा बनाने के लिए फिल्मकार अवेशिर एम. ईरानी को प्रेरणा कहाँ से मिली? उन्होंने ‘आलमआरा’ फिल्म के लिए आधार कहाँ से लिया?विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
पहला बोलता सिनेमा बनाने के लिए फिल्मकार अदेशिर एम. ईरानी को प्रेरणा 1929 में देखी एक हॉलीवुड की बोलती फिल्म ‘शो बेट’ से मिली। इस फिल्म को देखने के बाद उन्होंने भी बोलती फिल्म बनाने का निश्चय किया। उन्होंने अपनी पहली बोलती फिल्म ‘आलमआरा’ के लिए पारसी रंगमंच के एक लोकप्रिय नाटक को आधार बनाया। इसके आधार पर ही फिल्म की पटकथा तैयार की गई। नाटक के कई गाने ज्यों के त्यों ले लिए गए।

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Jab Cinema Ne Bolna Sikha HBSE 8th Class प्रश्न 3.
विट्रल का चयन ‘आलमआरा’ के नायक के रूप में हुआ लेकिन हटाया क्यों गया? विट्ठल ने पुनः नायक होने के लिए क्या किया?विचार प्रकट कीजिए।
उत्तर:
‘आलमआरा’ फिल्म के लिए नायक के रूप में विट्ठल का चयन हुआ था। वे उस दौर के सर्वाधिक पारिश्रमिक पाने वाले स्टार थे। पर विट्ठल को उर्दू बोलने में मुश्किलें आती थीं। उनकी इस कमी के कारण उन्हें नायक से हटाकर मेहबूब को नायक बना दिया। इससे विट्ठल नाराज हो गए। उन्होंने अपना हक पाने के लिए मुकदमा कर दिया। उनका मुकदमा उस दौर के मशहूर वकील मोहम्मद अली जिन्ना ने लडा। इस मुकदमे में विट्ठल जीत गए और भारत की पहली सवाक् फिल्म के नायक बन गए।

जब सिनेमा ने बोलना सीखा प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 4.
पहली सवाक् फिल्म के निर्माता-निदेशक अर्देशिर को जब सम्मानित किया गया, तब सम्मानकर्ताओं ने उनके लिए क्या कहा था?अर्देशिर ने क्या कहा और इस प्रसंग में लेखक ने क्या टिप्पणी की है?लिखिए
उत्तर:
पहली सवाकू फिल्म ‘आलमआरा’ के निर्माता-निर्देशक अर्देशिर को 1956 में फिल्म प्रदर्शन के पच्चीस वर्ष पूरे होने पर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर सम्मानकर्ताओं ने उन्हें ‘भारतीय सवाक फिल्मों का पिता’ कहा। इस पर अर्देशिर ने विनम्रतावश कहा-“मुझे इतना बड़ा खिताब देने की जरूरत नहीं है। मैंने तो देश के लिए अपने हिस्से का जरूरी योगदान दिया है।”
इस प्रसंग पर लेखक की टिप्पणी यह थी कि निर्माता-निर्देशक बहुत अधिक विनम्र थे।

पाठ से आगे

1. मूक सिनेमा में संवाद नहीं होते, उसमें दैहिक अभिनय की प्रधानता होती है। पर, जब सिनेमा बोलने लगी अनेक परिवर्तन हुए। उन परिवर्तनों को अभिनेता, दर्शक और कुछ तकनीकी दृष्टि से पाठ का आधार लेकर खोजें। साथ ही अपनी कल्पना का भी सहयोग लें।
उत्तर:
मूक सिनेमा में केवल अंगों का संचालन होता है. मुँह से कुछ नहीं बोला जाता अतः संवाद नहीं होते।
अभिनेताओं में यह परिवर्तन आया कि उनका पढ़ा-लिखा होना जरूरी हो गया, क्योंकि अब उन्हें संवाद भी बोलने पड़ते थे।
दर्शकों पर भी अभिनेताओं और अभिनेत्रियों की लोकप्रियता का खूब असर पड़ने लगा। औरतें अभिनेत्रियों की केश-सज्जा और वेशभूषा की नकल करने लगी।

तकनीकी दृष्टि से भी फिल्मों में काफी सुधार आए। अब गीत-संगीत का महत्त्व बढ़ चला। हिंदी-उर्दू भाषाओं का महत्त्व बढ़ गया। फिल्में ज्यादा आकर्षक बनने लगीं।

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2. डब फिल्में किसे कहते हैं? कभी-कभी डब फिल्मों में अभिनेता के मुँह खोलने और आवाज में अंतर आ जाता है। इसका कारण क्या हो सकता है?
उत्तर:
डब फिल्में उन फिल्मों को कहते हैं जिनमें अभिनय तो कोई करता है, पर उसके संवाद दूसरे के द्वारा बाद में बुलवा कर डब किए जाते हैं। ऐसा दो स्थितियों में किया जाता है

  • किसी दूसरी भाषा की फिल्म को अन्य भाषा में डब करके प्रदर्शित करने के लिए।
  • किसी अभिनेता को दूसरे अभिनेता की आवाज देने के लिए।

यह काम फिल्म बनने के बाद किया जाता है।

  • जब एक कलाकार दुसरे कलाकार को बोलते देखकर उसे अपनी आवाज में दोहराता है तब मूल अभिनेता के मुख खोलने तथा डब करने वाली आवाज में कई बार थोड़ा अंतर रह जाता है। दो भिन्न भाषाओं में यह स्थिति अधिक उपस्थित हो जाती है।

अनुमान और कल्पना

1. किसी मूक सिनेमा में बिना आवाज के ठहाकेदार हँसी कैसी दिखेगी? अभिनय करके अनुभव कीजिए।
उत्तर:
मूक सिनेमा में बिना आवाज़ के ठहाकेदार हँसी केवल मुँह के खुलने से ही प्रकट होगी। खिलखिलाहट को आवाज तो सुनाई नहीं देगी।
विद्यार्थी ठहाकेदार हँसी, का अभिनय करके इस स्थिति का अनुभव करें।

2. मूक फिल्म देखने का एक उपाय यह है कि आप टेलीविजन की आवाज़ बंद करके फिल्म देखें। उसकी कहानी को समझने का प्रयास करें और अनुमान लगाएँ कि फिल्म में संवाद और दृश्य की हिस्सेदारी कितनी है?
उत्तर:
विद्यार्थी टेलीविजन पर फिल्म देखते समय आवाज (Volume) को बंद कर दें। तभी पर्दे पर फिल्म का केवल मूक अभिनय दिखाई देगा। आपका पूरा ध्यान फिल्म की कहानी और अभिनय पर केंद्रित रहना चाहिए।
इससे आप फिल्म में संवाद और दृश्य की हिस्सेदारी को भली प्रकार समझ सकेंगे।

भाषा की बात

1. ‘सवाक्’ शब्द वाक के पहले ‘स’ लगाने से बना है। ‘स’ उपसर्ग से कई शब्द बनते हैं। निम्नलिखित शब्दों के साथ ‘स’ का उपसर्ग की भाँति प्रयोग करके शब्द बनाएँ और शब्दार्थ में होनेवाले परिवर्तन को बताएँ। : हित, परिवार, विनय, चित्र, बल, सम्मान।
उत्तर :
स + हित – सहित (हित सहित, साथ)
स + परिवार – सपरिवार (परिवार सहित)
स + विनय – सविनय (विनयपूर्वक)
स + चित्र – सचित्र (चित्र सहित)
स + सम्मान = सम्मान (सम्मान संहित)

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2. उपसर्ग और प्रत्यय दोनों ही शब्दांश होते हैं। वाक्य में इनका अकेला प्रयोग नहीं होता। दोनों में अंतर केवल इतना होता है कि उपसर्ग किसी भी शब्द में पहले लगता है और प्रत्यय बाद में। हिन्दी के सामान्य उपसर्ग इस प्रकार हैं – अ / अन, नि, दु, क / कु, स / सु. अध, बिन औं आदि।
पाठ में आए उपसर्ग और प्रत्यय युक्त शब्दों के कुछ, उदाहरण नीचे दिए जा रहे हैं-

मूल शब्द उपसर्ग प्रत्यय शब्द
वाक् सवाक्
लोचना सु सुलोचना
फिल्म कार फिल्मकार
कामयाब कामयाबी

इस प्रकार के 15-15 उदाहरण खोजकर लिखिए और अपने सहपाठियों को दिखाइए।

अन्य उपसर्ग

उपसर्ग अर्थ उपसर्ग के योग से बने शब्द
अति बहुत अधिक अत्यंत, अत्युत्तम, अत्याचार।
अधि अधिक, श्रेष्ठ अधिकार, अधिमास, अध्यक्ष, अधिशुल्क, अधिभार, अधिकार।
अनु पीछे, समान, प्रत्येक अमुज, अनुकरण, अनुचर, अनुशासन, अनुभव, अनुकूल, अनुरोध, अनुवाद।
अप बुरो, नीचे, विरुद्ध अपयश, अपकार, अपमान, अपशब्द, अपव्यय, अपकर्ष।
अभि सामने, पास अभिमुख, अभिमान, अभ्यास, अभियान, अभिभाषण, अभ्यागत।
अव बुरा, हीन, नीचे अवगुण, अवनत, अवसान, अवसर, अवनति, अवकाश, अवमूल्यन, अवज्ञा।
तक, ऊपर, पूर्ण आजन्म, आजीवन, आरक्षण, आगमन, आकर्षण, आदान।
उत् ऊपर, श्रेष्ठ उत्थान, उत्कर्ष, उच्चारण, उन्नति, उत्सर्ग, उत्तम।
उप समीप, गौण, नीचे उपवन, उपकार, उपदेश, उपस्थित, उपग्रह, उपमंत्री, उपवाक्य, उपनाम, उपप्रधान।
दुस्/दुर् कठिन, बुरा दुस्साहस, दुस्साध्य, दुस्वर, दुर्दिन, दुर्घटना, दुर्दशा, दुर्गुण, दुराचार, दुर्लभ।
निस्/निर निषेध निश्चल, निष्काम, निस्संदेह. निर्जन, निरपराध, निर्दोष।
नि रहित निपूता, निडर, निकम्मा. निवास, नियुक्ति, निषेधा
परा उल्टा, पीछे पराजय, पराभव, पराक्रम, परामर्श, पराधीन।
परि चारों ओर परिचय, परिणाम, परिवर्तन, परिक्रमा, परिधि, पर्यटन।
प्र अधिक प्रबल, प्रसिद्धि प्रयत्न, प्रगति, प्रचार, प्रस्थान, प्राचार्य, प्रभाव, प्राध्यापक।
प्रति विरुद्ध प्रतिकूल, प्रतिध्वनि, प्रत्यक्ष, प्रतिष्ठा, प्रतिनिधि, प्रतिकार, प्रतिदिन, प्रतिवर्ष।
वि विशेष, उल्टा वियोग, विदेश, विनय, विजय, विनाश, विज्ञान, विपक्ष, विमुख।
सम् (सं) अच्छा, सामने सम्मान, सम्मेलन, संशोधन, संपूर्ण, संयम, संगम, संकल्प, संतोष, सम्मुख, सम्मति।

प्रत्ययों के उदाहरण:

आक – तैराक
दार – देनदार, होनहार
नी – ओड़नी, सूंपनी
आई – पढ़ाई, लिखाई
इया – डिब्बा > डिबिया, खाट > खटिया, दुख > दुखिया, बेटी > बिटिया।
ई – घंटा > घंटी, पहाड़ > पहाड़ी, रस्सा > रस्सी।
डा/री – मुख > मुखड़ा, कोठा > कोठरी।
पन/पा – लड़का > लड़कपन, बच्चा > बचपन, बूढा > बुढ़ापा।
ई – चोर > चोरी, खेत > खेती, दोस्त > दोस्ती, दुश्मन > दुश्मनी।
ता/त्व – मनुष्य > मनुष्यत्व, मानव मानवता।
एरा – साँप > सपेरा, चित्र > चितेरा।
आर – सोना > सुनार, लोहा > लुहार।
वाला – इक्का > इक्केवाला, ताँगा > ताँगेवाला।
वान – गाड़ी > गाड़ीदान, कोच > कोचवान।
कार – कला > कलाकार, फन > फनकार।
क – लिपि > लिपिक, लेख> लेखक।
गर – जादू > आदूगर, सौदा > सौदागर।
दारा – जर्मी > जमींदार, दुकान > दुकानदार।
हारा – लकड़ी > लकड़हारा।
पन/पा – काला > कालापन, मोटा > मोटापा।
ता/त्व – लघु > लधुता/लघुत्व, अपना > अपनत्व।
गरीब > गरीबी, खुश > खुशी, बुद्धिमान > बुद्धिमानी।
आस – मीठा > मिठास, खट्टा > खटास।
आई – अच्छा > अच्छाई, बुरा > बुराई।
ई – गुलाब > गुलाबी, ऊन > ऊनी।
ईला – रस > रसीला, जहर > जहरीला, बर्फ > बर्फीला।
ईन – नमक > नमकीन, रंग > रंगीन, शौक > शौकीन।
आ – भूख > भूखा, प्यास > प्यासा।

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HBSE 8th Class Hindi जब सिनेमा ने बोलना सीखा Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
भारतीय सिनेमा का जनक किसे माना जाता है?
उत्तर:
भारतीय सिनेमा का जनक दादा साहब फाल्के को माना जाता है। सवाक् सिनेमा के जनक थे-अर्देशिर ईरानी।

प्रश्न 2.
‘आलमआरा’ कब और कहाँ पहली बार प्रदर्शित की गई? इस फिल्म का क्या हाल रहा?
उत्तर:
‘आलमआरा’ फिल्म 14 मार्च, 1931 को मुंबई के ‘मजेस्टिक’ सिनेमा में प्रदर्शित हुई। फिल्म 8 सप्ताह तक ‘हाउसफुल’ चली और भीड़ इतनी उमड़ती थी कि पुलिस के लिए नियंत्रण । करना मुश्किल हो जाया करता था। समीक्षकों ने इसे ‘भड़कीली फैंटेसी’ फिल्म करार दिया था, मगर दर्शकों के लिए यह फिल्म एक अनोखा अनुभव थी। यह फिल्म 10 हजार फुट लंबी थी और इसे चार महीनों की कड़ी मेहनत से तैयार किया गया था।

प्रश्न 3.
‘आलमआरा’ फिल्म में कौन-कौन-से कलाकारों ने काम किया?
उत्तर:
‘आलमआरा’ फिल्म की नायिका जुबैदा थी और नायक थे-विट्ठल। इनके अलावा सोहराब मोदी, पृथ्वीराज कपूर और जगदीश सेठी आदि अभिनेता भी मौजूद थे। आगे चलकर वे फिल्मोद्योग के प्रमुख अभिनेता बने।

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केवल पढ़ने के लिए

कंप्यूटर गाएगा गीत हिंदी फिल्मों में गीतों का आगमन आलम आरा (1931) से हुआ और तब से वे अब तक लोकप्रिय सिनेमा का अनिवार्य अंग बने हुए हैं। प्रारंभ से अभिनेताओं को अपने गीत खुद गाने पड़ते थे जो उसी समय रिकॉर्ड किए जाते थे। बाद में जब यह महसूस किया गया कि हर अभिनेता या अभिनेत्री अच्छा गायक भी हो यह जरूरी नहीं तो पार्श्व गायन की प्रथा शुरू हुई और उससे गायन और भी परिष्कृत हुआ। इस बीच रिकॉर्डिंग की तकनीक में भी बहुत सुधार हुआ और उससे भी गायन की शैली में परिवर्तन हुआ। सिनेमा जैसे लोकप्रिय माध्यम में गीत के बोलों का महत्त्व ज्यादा होता है क्योंकि उन्हीं के माध्यम से किसी धुन का भावनात्मक प्रभाव पैदा होता है।

फिल्म संगीत का उद्गम इस सदी के प्रारंभिक वर्षों में शास्त्रीय संगीत के अलावा, कव्वाली, भजन, कीर्तन तथा लोक-संगीत के वातावरण में हुआ। लोक-नाट्य तथा पेशेवर टूरिंग थिएटर कंपनियों का प्रभाव भी शुरू के फिल्मी गीतों पर था। कि उन दिनों माइक्रोफोन तथा लाउडस्पीकर जैसी चीजें नहीं थी, खुली हुई ऊँची स्पष्ट आवाज में गाना सबसे बड़ा और अनिवार्य गुण होता था। गायक को दूर-दूर तक बैठी भीड़ तक अपनी आवाज पहुँचानी होती थी। प्रारंभिक फिल्मों पर थिएटर का असर था, प्रारंभिक बोलती फिल्मों के लिए गायक भी थियेटर से आए। यह थिएटर परंपरागत रूप से पुरुषों का था, जिसमें महिला पात्रों की भूमिकाएँ भी पुरुष ही करते थे। लेकिन सिनेमा कि कहीं अधिक यथार्थवादी माध्यम है, उसमें यह चीज नहीं चल सकती थी। अत: जो गायिकाएँ फिल्मों के लिए आई वे स्वाभाविक ही भिन्न क्षेत्र की थीं। ये उस पेशेवर गायिकाओं के वर्ग से आई जो महफिलों में और शादियों या सालगिरहों पर मुजरे पेश करती थीं।

इस शैली को फिल्म संगीत का पहला चरण कहा जा सकता है। ये गायिकाएँ जरा नाक में बैठी आवाज में गाती थीं। गीतों के बोल भी वे जरा बनावटी ढंग से चबा कर, अदा करती थीं। जल्दी ही गायिकाओं ने सुकून देनेवाली शैली में गाना शुरू कर दिया। नई शैली का उदाहरण काननबाला का गाया ‘जबाब बना गीत,’ ‘दुनिया ये दुनिया तूफानमेल’ था।

फिल्मी गायन के इस दूसरे दौर में ऐसी बहुत प्रतिभाएं सामने आईं, जिन्होंने अपनी आवाज को माइक्रोफोन के अनुकूल स्वाभाविक पिच (सुर) पर ढालने में सफलता पाई। शमशाद बेगम, सुरैया, नूरजहाँ तथा कुंदनलाल सहगल इनमें शामिल थे।

सहगल के साथ ही फिल्मी गायन का दूसरा दौर समाप्त हुआ। माइक्रोफोन के उपयुक्त नई आवाजें आई। मोहम्मद रफी, मुकेश, हेमंत कुमार, मन्नाडे, किशोर कुमार, तलत महमूद सभी मूलतः गायक थे। लता मंगेशकर के साथ गायिकाओं के क्षेत्र में नए युग की शुरुआत हुई। उनके कंठ की ताजगी और आकर्षण ने गायकी के प्रतिमानों को ही बदल दिया। इनके अतिरिक्त आशा भोसले, गीता दत्त, सुमन कल्याणपुर आदि गायिकाओं ने अपनी खास शैली विकसित की।

भविष्य में क्या होगा? क्या हमारे लोकप्रिय सिनेमा पर गीत अब भी पहले की तरह हावी बने रहेंगे? क्या नित नए उपकरणों के आने के बाद आवाज के सुरीलेपन की जरूरत उतनी नहीं रह जाएगी? और किसे पता किसी दिन कंप्यूटर ऐसी आवाज बना कर रख दे जो किसी भी मानवीय आवाज़ से ज्यादा मुकम्मल हो!

जब सिनेमा ने बोलना सीखा गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ बनानेवाले फिल्मकार थे अर्देशिर एम.ईरानी। अर्देशिर ने 1929 में हॉलीवुड की एक बोलती फिल्म ‘शो बोट’ देखी और उनके मन में बोलती फिल्म बनाने की इच्छा जगी। पारसी रंगमंच के एक लोकप्रिय नाटक को आधार बनाकर उन्होंने अपनी फिल्म की पटकथा बनाई। इस नाटक के कई गाने ज्यों के त्यों फिल्म में ले लिए गए। एक इंटरव्यू में अर्देशिर ने उस वक्त कहा था-‘हमारे पास कोई संवाद लेखक नहीं था, गीतकार नहीं था, संगीतकार नहीं था।

‘इन सबकी शुरुआत होनी थी। अर्देशिर ने फिल्म में गानों के लिए स्वयं की धुनें चुनीं। फिल्म के संगीत में महज तीन वाद्य-तबला; हारमोनियम और वायलिन का इस्तेमाल किया गया। आलम आरा में संगीतकार या गीतकार में स्वतंत्र रूप से किसी का नाम नहीं डाला गया। इस फिल्म में पहला पार्श्वगायक बने डब्लू, एम. खाना पहला गाना था-‘दे दे खुदा के नाम पर प्यारे, अगर देने की ताकत है।’
प्रश्न:
1. पहली बोलती फिल्म कौन-सी थी और उसे किसने बनाया
2. उनके मन में बोलती फिल्म बनाने की इच्छा क्यों जागी?
3. इस फिल्म में गीत-संगीत की क्या दशा थी?
4. इस फिल्म में किन-किन वाद्यों का प्रयोग किया गया?
5. पहले पार्श्वगायक कौन बने तथा उनका पहला गाना कौन-सा था?
उत्तर :
1. पहली बोलती फिल्म थी-‘आलम आरा।’ इस फिल्म को फिल्मकार अर्देशिर एम. ईरानी ने बनाया था।
2. अर्देशिर ने 1929 में हॉलीवुड की एक बोलती फिल्म ‘शो बोट’ देखी थी। उसको देखकर ही उनके मन में अपनी बोलती फिल्म बनाने की इच्छा जागी।।
3. इस फिल्म के लिए उनके पास कोई गीतकार या संगीतकार नहीं थे।
4. फिल्म में केवल तीन वाद्य तबला, हारमोनियम और वायलिन का इस्तेमाल किया गया था।
5. डब्लू. एम. खान पहले पार्श्वगायक बने। उनका पहला गाना था-दे दे खुदा के मा- पर प्यारे, अगर देने की ताकत है।

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2. जब पहली बार सिनेमा ने बोलना सीख लिया, सिनेमा में काम करने के लिए पढ़े-लिखे अभिनेता-अभिनेत्रियों की जरूरत भी शुरू हुई, क्योंकि अब संवाद भी बोलने थे, सिर्फ अभिनय से काम नहीं चलनेवाला था। मूक फिल्मों के दौर में तो पहलवान जैसे शरीरवाले, स्टंट करनेवाले और उछल-कूद करनेवाले अभिनेताओं से काम चल जाया करता था।

अब उन्हें संवाद बोलना था और गायन की प्रतिभा की कद्र भी होने लगी थी। इसलिए ‘आलम आरा’ के बाद आरंभिक ‘सवाक्’ दौर की फिल्मों में कई ‘गायक-अभिनेता’ बड़े पर्दे पर नजर आने लगे। हिंदी-उर्दू भाषाओं का महत्त्व बढ़ा। सिनेमा में देह और तकनीक की भाषा की जगह जन प्रचलित बोलचाल की भाषाओं का दाखिला हुआ। सिनेमा ज्यादा देसी हुआ। एक तरह की नई आजादी थी। जिससे आगे चलकर हमारे दैनिक और सार्वजनिक जीवन का प्रतिबिंब फिल्मों में बेहतर होकर उभरने लगा।
प्रश्न:
1. बोलती फिल्मों के लिए किस प्रकार के कलाकारों की आवश्यकता हुई?
2. मूक फिल्मों में कैसे कलाकारों से काम चल जाया करता था?
3. फिल्मों से भाषाओं पर क्या प्रभाव पड़ा?
4. सवाक् फिल्मों में कैसे अभिनेता पर्दे पर नजर आने लगे?
5. फिल्मों में क्या बात उभरने लगी?
उत्तर :
1. बोलती फिल्मों के लिए पढ़े-लिखे कलाकारों की आवश्यकता हुई क्योंकि अब उन्हें संवाद बोलने थे।
2. मूक फिल्मों में पहलवान जैसे शरीर वाले, स्टंट करने वाले और उछल-कूद करने वाले अभिनेताओं से काम चल जाता था।
3. सवाक् फिल्मों से हिंदी-उर्दू भाषाओं का महत्त्व बढ़ गया। अब जन प्रचलित भाषाओं का दाखिला हुआ।
4. सवाक् फिल्मों में गायक अभिनेता बड़े पर्दे पर नजर आने लगे। – 5. फिल्मों में हमारे दैनिक और सार्वजनिक जीवन का प्रतिबिंब बेहतर होकर नसर आने लगा।

जब सिनेमा ने बोलना सीखा Summary in Hindi

जब सिनेमा ने बोलना सीखा पाठ का सार

यह सिनेमा के बारे में है। 14 मार्च, 1931 की तारीख ऐतिहासिक थी क्योंकि इस दिन भारत की पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ प्रदर्शित हुई थी। इससे पहले मूक फिल्में बनती थीं। पहली बोलती फिल्म ‘आलम आरा’ को बनाने वाले फिल्मकार थे-अर्दशिर एम. ईरानी। उन्होंने 1929 में हॉलीवड की एक बोलती फिल्म ‘शो बोट’ देखी थी। तभी से उनके मन में भी बोलती फिल्म बनाने की इच्छा जागी।

उन्होंने पारसी रंगमंच के एक लोकप्रिय नाटक को आधार बनाकर पटकथा लिखी। उनके पास कोई संवाद लेखक, गीतकार और संगीतकार नहीं था। अत: नाटक के कई गाने ज्यों के त्यों फिल्म में ले लिए गए। गानों की धुनें उन्होंने स्वयं चुनीं। संगीत में केवल तीन वाद्य-तबला, हारमोनियम और वायलिन का प्रयोग किया गया।

फिल्म के पहले पार्श्वगायक बने-डब्ल्यू. एम. खान। पहला गाना था-‘दे-दे खुदा के नाम पर प्यारे, अगर देने की ताकत है।’ फिल्म की शूटिंग रात में करनी पड़ती थी। अतः कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था करनी पड़ी। आर्देशिर की कंपनी ने भारतीय सिनेमा के लिए 150 मूक और लगभग 100 बोलती फिल्में बनाई।

‘आलम आरा’ फिल्म ‘अरेबियन नाइट्स’ जैसी फैंटेसी थी। इसमें गीत, संगीत तथा नृत्य के अनोखे संयोजन थे। फिल्म की नायिका जुबैदा थी और नायक थे-विट्ठल। वे उस दौर के सर्वाधिक पारिश्रमिक पाने वाले स्टार थे। विट्ठल को उर्दू बोलने में मुश्किल आ रही थी अत: उनकी जगह मेहबूब को नायक बनाया गया। इस पर विट्ठल ने मुकदमा कर दिया। उनका मुकदमा मोहम्मद अली जिन्ना ने लड़ा। उनके कारण विटुल मुकदमा जीत गए और पहली बोलती फिल्म के नायक बने। मराठी और हिंदी फिल्मों में वे लंबे समय तक नायक और स्टंटमैन के रूप में सक्रिय रहे। आलम आरा में सोहराब मोदी, पृथ्वीराज कपूर, याकूब और जगदीश सेठी जैसे अभिनेता भी थे।

यह फिल्म 14 मार्च, 1931 को मुंबई के मैजेस्टिक सिनेमा में प्रदर्शित हुई। यह फिल्म आठ सप्ताह तक हाउसफुल चली। यह फिल्म 10 हजार फुट लंबी थी भौर इसे चार महीनों की कड़ी मेहनत से तैयार किया गया था। अन्य सामाजिक विषयों पर भी सवाक फिल्में बननी शुरू हुई। ऐसी ही एक फिल्म थी-‘खुदा की शान’।

इसका एक पात्र महात्मा गाँधी जैसा था अतः ब्रिटिश सरकार को चुभा। बोलती फिल्मों में संवाद बोलने के लिए पढ़े-लिखे कलाकारों की आवश्यकता हुई। उस दौर की फिल्मों में कई ‘गायक अभिनेता’ बड़े पर्दे पर नजर आने लगे। अभिनेताओं और अभिनेत्रियों की लोकप्रियता का असर दर्शकों पर खूब पड़ रहा था। ‘माधुरी’ फिल्म की नायिका सुलोचना का हेयर स्टाइल उस दौर की औरतों में खूब लोकप्रिय हुआ। ‘आलमआरा’ को भारत के अलावा श्रीलंका, बर्मा तथा पश्चिमी एशिया द्वारा भी पसंद किया गया।

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जब सिनेमा ने बोलना सीखा शब्दार्थ

सजीव – जानदार (living, alive), शिखर – सबसे ऊंचे स्थान (peak), मूक – गूंगा (dumb), सवाक – बोलती हुई (talking). लोकप्रिय – प्रसिद्ध (populary, महज- केवल (only), पार्श्वगायक – पीछे से गाने वाले (playback singer), साउंड – आवाज (sound). कृत्रिम – बनावटी (artificial), व्यवस्था – इंतजाम (arrangement), प्रकाश – रोशनी (light). सर्वाधिक – सबसे अधिक (most), पारिश्रमिक – मेहनताना (remuneration), चर्चित – जिसकी चर्चा हो (popular), स्तंभ- खंभा, प्रमुख आधार (pillar), विनम्र – कोम.न, दयालु (humble), खिताब – सम्मान (honour), केश सज्जा – बालों की सजावट (hair dressing).

Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 9 कबीर की साखियाँ Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 9 कबीर की साखियाँ

HBSE 8th Class Hindi कबीर की साखियाँ Textbook Questions and Answers

पाठ से

कबीर की साखियाँ Class 8 HBSE प्रश्न 1.
‘तलवार का महत्त्व होता है प्यान का नहीं’-उक्त उदाहरण से कबीर क्या कहना चाहता है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘तलवार का महत्त्व होता है. म्यान का नहीं’ से वीर यह कहना चाहते हैं कि असली चीज़ की काकी आनी चाहिए। दिखावटी वस्तु का कोई महत्त्व नहीं होता। ईशार का भी वास्तविक ज्ञान जरूरी है। डोंग-आडंबर तो म्यान के समान निरर्थक हैं।। असली ब्रह्म को पहचानो और उसी को स्वीकारो।

HBSE 8th Class Hindi Chapter 9 कबीर की साखियाँ प्रश्न 2.
पाठ की तीसरी साखी-जिसकी एक पंक्ति हैं ‘मनवा तो चहुँ विसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहि के द्वारा कबीर क्या कहना चाहते हैं।
उत्तर:
इस साखी के द्वारा कबीर कंवल माता फरकर स्वर की उपासना करने को ढोंग बताते हैं। माला फेरने और मुंह से राम-राम का जाप करना व्यर्थ है। ईश्वर उपासन के लिए मन की एकाग्रता आवश्यक है। इसके बिना ईश्वर-स्मरण नहीं किया जा सकता।

कबीर की साखियाँ Chapter 9 HBSE 8th Class Hindi प्रश्न 3.
कबीर घास की निंदा करने से मना करते हैं। कबीर के दोहे में ‘घास’ का विशेष अर्थ क्या है और कबीर के उक्त दोहे का संदेश क्या है?
उत्तर:
कबीर अपने दोहे में उस घास तक की निंदा करने से मना करते हैं जो हमारे पैरों के तले होती है। कबीर के दोहे में ‘पास’ का विशेष अर्थ है। यहाँ पास दबे-कुचले व्यक्तियों की प्रतीक है। इन लोगों की तुच्छ मानकर निंदा की जाती है, जबकि ऐसा करना सर्वथा अनुचित है। कबीर के दोहे का संदेश यही है कि किसी की निंदा मत करो, विशेषकर छोटे लोगों की।

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प्रश्न 4.
मनुष्य के व्यवहार में ही दूसरों को विरोधी बना लेने वाले दोष होते हैं। किस साखी से यह भावार्थ व्यक्त होता है?
उत्तर:
निम्नलिखित साखी में यह भाव व्यक्त होता है
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन सीतल होय।
यह आपा तूं डाल दे, दया करै सब कोय।।

पाठ से आगे

1. “या आपा को डारि दे, दया करै सब कोया” ऐसी बानी बोलिए मनका आपा खोय।
इन दो पंक्तियों में ‘आपा’ को छोड़ देने या खो देने की बात की गई है। ‘आपा’ किस अर्थ में प्रयुक्त हुआ है? क्या ‘आपा’ स्वार्थ के निकट का अर्थ देता है या घमंड का?
उत्तर :
‘आपा’ अहंकार के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है।
‘आपा’ घमंड का अर्थ देता है।

2. आपके विचार में ‘आपा’ और ‘आत्मविश्वास’ में तथा ‘आपा’ और ‘उत्साह’ में क्या कोई अंतर हो सकता है? स्पष्ट करें।
उत्तर :
आपा और आत्मविश्वास।
आपा में अतिविश्वास होता है जो अहंकार का रूप ले लेता है। आत्मविश्वास एक गुण है। यह अपने पर भरोसा होता है।
आपा और उत्साह : ‘आपा’ में अहं का भाव है तथा उत्साह में किसी काम को करने का जोश होता है।

3. सभी मनुष्य एक ही प्रकार से देखते-सुनते हैं पर एकसमान विचार नहीं रसते। सभी अपनी-अपनी मनोवृत्तियों के अनुसार कार्य करते हैं। पाठ में आई कबीर की किस साखी से उपर्युक्त पंक्तियों के भाव मिलते हैं एकसमान होने के लिए आवश्यक क्या है? लिखिए ।
उत्तर :
साखी
माला तो कर में फिरै, जीभि फिरै मुख माँहि। मनवा तो चहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं।

समान भावार्थ के दोहों की तुलना करें।
1. माला फेरत युग गया, गया न मन का फेर।।
जो तोको काँटा बोये ताहि बोओ तू फूल।
वाको शूल का सूल है ताको फूल का फूल।।

2 जात पात पूछै नाहिं कोई
हरि को भजै सो हरि को होई।

  • माला फेरत… में कबीर ने माला फेरने को व्यर्थ बताया है। इसकी तुलना ‘माला तो कर में…नाहिं’ दोहे से की जा सकती है।
  • ‘जो तोंको…फूल’ वाले दोहे में परोपकार की शिक्षा दी गई है। इसकी तुलना ‘आवतगारी…एक’ से की जा सकती है।
  • ‘जात-पात…होई’ में कबीर जाति-पाति का विरोध करते हैं। इसकी तुलना पहले दोहे ‘जाति न पूछौ…म्यान’ से की जा सकती है।

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4. कबीर के दोहों को साखी क्यों कहा जाता है, ज्ञात कीजिए।
उत्तर :
कबीर के दोहों को साखी इसलिए कहा जाता है क्योंकि इनमें श्रोता को गवाह बनाकर साक्षात् ज्ञान दिया गया है।

भाषा की बात

बोलचाल की क्षेत्रीय विशेषताओं के कारण शब्दों के उच्चारण में परिवर्तन होता है। जैसे-वाणी शब्द बानी बन जाती है, मन से मनवा, मनुवा आदि हो जाता है। उच्चारण के परिवर्तन से वर्तनी भी बदल जाती है। नीचे कुछ शब्द दिए जा रहे हैं उनका वह रूप लिखिए जिससे आपका परिचय हो।
ग्यान, जीभि, पाऊँ, तलि, आँखि, बैरी।
→ ग्यान – ज्ञान
जीभि – जीभ
पाऊँ – पाँव
तलि – तले
आँखि – आँख
बैरी – वैरी (शत्रु)

कबीर की साखियाँ साखियों (दोहे) की सप्रसंग व्याख्या

1. जाति न पूछौ साधु की, जो पूछो तो ज्ञाना
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।

प्रसंग:
प्रस्तुत साखी ज्ञानमार्गी कवि कबीरदास द्वारा रचित है। इस दोहे में कबीरदास द्वारा ज्ञान को महत्त्व दिए जाने का उल्लेख हुआ है। वे जाति-पाति का विरोध भी करते हैं।

व्याख्या:
कबीरदास कहते हैं साधु की सच्ची पहचान करने के लिए उसकी जाति न पूछकर उसका ज्ञान पूछना चाहिए। साधु का ज्ञान ही उसकी असली पहचान है। कबीरदास उदाहरण देकर अपनी बात स्पष्ट करते हैं कि मूल्य तो तलवार का होता है, म्यान का कोई विशेष महत्त्व नहीं होता। हमें वास्तविक वस्तु की पहचान करनी चाहिए। ज्ञान से ही ईश्वर की प्राप्ति होती है।

विशेष:

  1. कबीर का डोंग-आनंबर विरोध उभर कर आया है।
  2. सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग किया गया है।

2 आवत गारी एक है, उलटत होड़ अमोका
कह ‘कबीर’ नहिं उलटिए, वही एक की एका।

प्रसंग : प्रस्तुत साखी कबीरदास द्वारा रचिा हैं।

व्याख्या:
कबीरदास कहते हैं कि जब गाली आती है तब वह एक ही होती है। उसके उलट देने पर वह कई रूप ले लेती है। जवाब देने पर गालियों का सिलसिला चल निकलता है। कबीरदास का कहना है कि माली का उलटकर उत्तर नहीं देना चाहिए। ऐसा करने पर वह एक की एक ही रह जाती है।

विशेष:

  1. नीति संबंधी बात कही गई है।
  2. ‘कह कबीर’ में अनुप्रास अलंकार है।
  3. सधुक्कड़ी भाषा अपनाई गई है।

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3. माला तो कर में फिर, जीभि फिरै मुख माहि।
मनवा तो चहूँ विसि फिर, यह तो सुमिरन नाहिं।

प्रसंग:
प्रस्तुत साखी कबीरदास द्वारा रचित है। कबीर माला फेरने को निरा डोंग बताते हुए इसे निरर्थक बताते हैं।

व्याख्या:
कबीरदास यथार्थ स्थिति का वर्णन करते हुए कहते हैं-प्राय: यह होता है कि लोगों के हाथ में तो माला घूमती रहती है और मुख में जीभ भी घूमती रहती है अर्थात् हाथ से माला फेरकर और मुंह से राम नाम का मौन उच्चारण करके हम ईश्वर-स्मरण का ढोंग करते हैं। इसका कारण यह है कि उस समय भी हमारा मन चारों दिशाओं में घूमता रहता है. अर्थात् हम एकाग्रचित नहीं होते, अत: इसे प्रभु-स्मरण नहीं कहा जा सकता।

विशेष:

  1. कबीर ने माला फेरने को व्यर्थ का ढोंग बताया
  2. मुख माहि’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।

4. ‘कबीर’ घास न नीदिए, जो पाऊँ तलि होइ।
उड़ि पड़े जब ऑखि मैं, खरी बुहेली होइ॥

प्रसंग: प्रस्तुत साखी ज्ञानमार्गी कवि कबीरदास प रचित है।

व्याख्या:
कबीरदास किसी भी तुच्छ व्यक्ति या वस्तु की निंदा करने की मनाही करते हैं। उनका तो यहाँ तक कहना है कि अपने पैरों के नीचे की घास तक की भी निंदा नहीं करनी चाहिए। इस व्यर्थ प्रतीत होने वाली घास का तिनका तक हमें परेशान करने को काफी है। जब यह तिनका उड़कर हमारी आँख में गिर जाता है तब आँख बहुत दुखने लगती है।

विशेष:

  1. कबीर तुच्छ व्यक्ति को भी महत्त्व देना चाहते
  2. सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग है।

4. जग में बैरी कोइ नहिं, जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।।

प्रसंग: प्रस्तुत साखी निर्गुणधारा के प्रतिनिधि कवि कबीरदास द्वारा रचित है।

व्याख्या:
कबीर कहते हैं कि यदि हमारा मन शीतल अर्थात् शांत है तो हमें इस संसार में अपना कोई भी शत्रु प्रतीत नहीं होगा। | हमें आवश्यकता इस बात की है कि हम अपने अहंकार को त्याग दें। हमें सभी के प्रति दया की भावना प्रदर्शित करनी चाहिए।

विशेष:

  1. नीति संबंधी बात कही गई है।
  2. ‘आपा’ अहंकार के लिए प्रयुक्त है।
  3. सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग है।

माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

कबीर की साखियाँ कवि-परिचय

जीवन-परिचय-कबीरदास ज्ञानमागी शाखा के प्रमुख एवं प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। कबीर का जन्म 1390 में काशी में हुआ। कहा जाता है कि इनका जन्म एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से हुआ था और वह लोक-लाज के डर से इन्हें लहरतारा नामक तालाब के निकट छोड़ आई थी। वहाँ से ले जाकर नीमा और नीरू जलाहा दंपत्ति ने इसका पालन-पोषण किया। इस प्रकार हिंदू-मुसलमान दोनों के संस्कार इनके जीवन में विद्यमान हैं। कबीर अनपढ़ थे। उन्होंने स्वयं कहा है

मसि कागद छुऔ नहि, कलम गहि नहिं हाथ। इनके परिवार के बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं है। कहा जाता है कि इनकी पत्नी का नाम लोई था जिससे कमाल और कमाली दो संतानें थीं। रामानंद इनके गुरु थे। कबीर की मृत्यु 1495 ई० में मगहर में हुई।

रचनाएँ-कबीर की रचनाओं के संकलन ‘बीजक’ के तीन अंग हैं-सबद, साखी और रमैनी। साहित्यिक विशेषताएँ-कबीर के काव्य का विषय कुरीतियों, सामाजिक एवं धार्मिक बुराइयों का खंडन करता था। उन्होंने समाज में फैले हुए ढोंग, आडंबरों, जाति-पाति के भेदभाव पर कड़े प्रहार किए हैं। उन्होंने कहा है जाति-पाँति पूछे न कोई, हरि को भजे सो हरि को होड़ी। कबीर ने ईश्वर प्राप्ति के लिए गुरु की आवश्यकता पर बल दिया है। उन्होंने गुरु को गोविंद से भी बड़ा बताया है। कबीर ने अपने काव्य में रहस्यवादी भावना का समावेश किया है।

भाषा-शैली-कबीर की भाषा-शैली ने सामान्य जन को प्रभावित किया है। उनकी भाषाः पंचमेल खिचड़ी है जिसे साहित्यकार सधुक्कड़ी के नाम से पुकारते हैं। इस भाषा में पूर्वी हिंदी, ब्रज, अवधी, राजस्थानी, पंजाबी आदि भाषाओं का मिश्रण है।

Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 10 कामचोर Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 10 कामचोर

HBSE 8th Class Hindi कामचोर Textbook Questions and Answers

कहानी से

कामचोर’ कहानी के प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 1.
कहानी में मोटे-मोटे किस काम के हैं? किन के बारे में और क्यों कहा गया?
उत्तर:
कहानी में मोटे-मोटे घर के बच्चों के बारे में कहा गया। ऐसा इसलिए कहा गया क्योंकि वे कामचोर थे। यहाँ तक कि हिलकर पानी तक नहीं पीते थे। वे निठल्ले थे।

कामचोर पाठ के प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 2.
बच्चों के ऊधम मचाने के कारण घर की क्या दुर्दशा हुई?
उत्तर:
बच्चों ने काम करने के नाम पर जो ऊधम मचाया तससे सारे घर की दुर्दशा हो गई

  • मटके-सुराहियाँ इधर-उधर लुढ़क गए।
  • सारा घर धूल से अट गया।
  • धूल पर पानी छिड़कने से कीचड़ हो गई।
  • घर के सारे बर्तन अस्त-व्यस्त हो गए।
  • घर में मुर्गियों, भेड़ों को खूब धमा चौकड़ी मचने लगी।
  • मैंस ने भी घर का हुलिया बिगाड़ दिया।

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पाठ 10 कामचोर के प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 3.
‘या तो बच्चा-राज कायम कर लो या मुझे ही रख लो।’ अम्मा ने कब कहा और इसका परिणाम क्या हुआ?
उत्तर:
बच्चों की हरकतों से घर में तूफ़ान उठ खड़ा हुआ था। घर का सारा सामान अस्त-व्यस्त तथा टूट-फूट गया था। बच्चों के पिता ने उन्हें काम करने का फरमान जारी किया था। अम्मा ने इस स्थिति को देखकर चुनौती भरे स्वर में कहा-‘या तो बच्चा-राज कायम कर लो या मुझे ही रख लो। नहीं तो मैं चली मायके।’

इसका परिणाम यह निकला कि सब बच्चों को कतार में खड़ा करके हिदायत दे दी गई-“अगर किसी बच्चे ने घर की किसी चीज को हाथ लगाया तो बस, रात का खाना बंद हो जाएगा।” और बच्चे काम करने से बच गए।

कामचोर class 8 HBSE प्रश्न 4.
‘कामचोर’ कहानी क्या संदेश देती है?
उत्तर:
‘कामचोर’ कहानी हमें यह संदेश देती है कि कोई भी काम करने के लिए समझदारी की आवश्यकता होती है। बिना सोचे-समझे किया गया काम मुसीबत खड़ी कर देता है।

प्रश्न 5.
क्या बच्चों ने उचित निर्णय लिया कि अब चाहे कुछ भी हो जाए, हिलकर पानी भी नहीं पिएंगे?
उत्तर:
नहीं, बच्चों ने यह उचित निर्णय नहीं लिया। उन्हें काम तो करना चाहिए. पर समझदारी के साथ। स्वयं हिलकर पानी भी न पीने का निश्चय उन्हें और भी कामचोर बना देगा।

कहानी से आगे

प्रश्न 1.
घर के सामान्य काम हों या अपना निजी काम, प्रत्येक व्यक्ति को अपनी क्षमता के अनुरूप उन्हें करना | आवश्यक क्यों है?
उत्तर:
यह सही है कि प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक काम अपनी क्षमता के अनुरूप करना चाहिए, तभी उस काम में पूरी सफलता मिलती है। काम चाहे घर का सामान्य काम हो अथवा हमारा निजी काम, सफलता तभी मिलेगी जब हम अपनी क्षमता के अनुरूप करेंगे। क्षमता से बाहर जाकर काम करना सफल नहीं हो पाता।

प्रश्न 2.
भरा-पूरा परिवार कैसे सुखद बन सकता है और कैसे दुखद? ‘कामचोर’ कहानी के आधार पर निर्णय कीजिए।
उत्तर:
‘कामचोर’ कहानी में बताया गया है कि जब हम अपनी क्षमता को ध्यान में न रखकर काम करते हैं तब भरा-पूरा परिवार दुखी हो जाता है क्योंकि काम लाभदायक न होकर हानिकारक हो जाता है। जब सब मिल-जुलकर अपनी क्षमतानुसार काम करते हैं तब भरा-पूरा परिवार सुखद बन जाता है।

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प्रश्न 3.
बड़े होते बच्चे किस प्रकार माता-पिता के सहयोगी हो सकते हैं और किस प्रकार भार? ‘कामचोर’ कहानी के आधार पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
यह सही है कि बड़े होते बच्चे माता-पिता के सहयोगी हो सकते हैं। वे उनके काम-काज में हाथ बँटा सकते हैं। पर वे सहयोगी तभी तक हो सकते हैं जब वे अपनी क्षमता और बुद्धि के अनुसार काम करें। यदि वे अपनी क्षमता को ध्यान में रखे बिना काम करेंगे तो वे माता-पिता के लिए भार बन जाएंगे। इस स्थिति में वे काम को सुधारने की बजाय बिगाड़कर रख देंगे।

प्रश्न 4.
‘कामचोर’ कहानी एकल परिवार की कहानी है या संयुक्त परिवार की? उन दोनों तरह के परिवारों में क्या-क्या अंतर होते हैं।
उत्तर:
यह कहानी संयुक्त परिवार की है। एकल परिवार में व्यक्ति अपना, अपनी पत्नी और अपने बच्चों का ही ध्यान रखता है। संयुक्त परिवार में घर से सभी सदस्य दादा-दादी, चाचा-चाची, ताऊ-ताई, तथा उनके बच्चे एक साथ मिलकर रहते हैं। इसमें सभी को घर के काम करने पड़ते हैं।

अनुमान और कल्पना

1. घरेलू नौकरों को हटाने की बात किन-किन परिस्थितियों में उठ सकती है? विचार कीजिए।
उत्तर:
घरेलू नौकरों को हटाने की बात निम्नलिखित परिस्थितियों में उठ सकती है

  • जब नौकर कामचोर हों।
  • जब घरेलू नौकर आवश्यकता से अधिक हों।
  • जब घर की आर्थिक स्थिति डांवाडोल हो जाए।
  • जब नौकर ढंग से काम न करते हों।
  • जब वे मालिक की आज्ञा का पालन न करते हों।

2. कहानी में एक समृद्ध परिवार के ऊधमी बच्चों का चित्रण है। आपके अनुमान से उनकी आदत क्यों बिगड़ी होगी? उन्हें ठीक ढंग से रहने के लिए आप क्या-क्या सुझाव देना चाहेंगे?
उत्तर:
हमारे अनुमान से इनकी आदत इसलिए बिगड़ी होगी

  • उनके हर काम को घरेलू नौकर कर देते होंगे।
  • उनके माता-पिता उनके प्रति लापरवाह होंगे।
  • उन्हें उचित शिक्षा नहीं मिली होगी।
  • इन्हें ठीक ढंग से रहने के लिए हम ये सुझाव देना चाहेंगे
  • पहले इन बच्चों से छोटे-छोटे काम करवाए जाएं, जिन्हें वे आसानी से कर लें।
  • उन्हें तरीके से काम करना सिखाया जाए।
  • उचित शिक्षा की व्यवस्था की जाए।

3. किसी सफल व्यक्ति की जीवनी से उसके विद्यार्थी जीवन की दिनचर्या के बारे में पढ़ें और सुव्यवस्थित कार्यशैली पर एक लेख लिखें।
→ यह कार्य विद्यार्थी स्वयं करें। वे महात्मा गाँधी की आत्मकथा पढ़ सकते हैं।

माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

भाषा की बात

“धुली-येधुली बालटी लेकर आठ हाथ चार थनों पर पिल पड़े।” धुली शब्द से पहले ‘बे’ लगाकर ‘बेधुली’ बना है। जिसका अर्थ हुआ ‘बिना धुली’। ‘के’ एक उपसर्ग है। ‘बे’ उपसर्ग से बनने वाले कुछ और शब्द हैं-
बेतुका, बेईमान, बेघर, बेचैन, बेहोश आदि। आप भी नीचे लिखे उपसर्गों से बनने वाले शब्द खोजिए-
1. प्रा – ………………………..
2. आ – ………………………..
3. भर – ………………………..
4. बद – ………………………..
उत्तर:
1. प्र – प्रभाव, प्रयोग
2. आ – आजन्म, आमरण
3. भर – भरपेट, भरसक
4. बद – बदनाम, बदशक्ल

HBSE 8th Class Hindi कामचोर Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
झाडू देने पर क्या समस्या सामने आई?
उत्तर:
क्योंकि झाड़ एक थी और लेने वाले उम्मीदवार बहुत, इसलिए झण-भर में झाड़ के पुर्जे उड़ गए। जितनी सीके जिसके हाथ पड़ीं, वह उनसे ही उलटे-सीधे हाथ मारने लगा। अम्मा ने सिर पीट लिया। भई, ये बुजुर्ग काम करने दें तो इन्सान काम करे। जब जरा-जरा सी बात पर लगे तो बस, हो चुका काम!

प्रश्न 2.
मुर्गियों ने क्या तूफ़ान मचाया?
उत्तर:
मुर्गियाँ ऊट-पटौंग इधर-उधर कूदने लगी थीं। दो मुर्गियाँ खीर के प्यालों से, जिन पर आया चांदी के वर्क लगा रही थी. दौडती-फडफडाती हुई निकल गई। सारी खीर दीदी के कामदानी के दुपट्टे और ताजे धुले सिर पर लगी हुई है। एक बड़ा-सा मुर्गा अम्मा के खुले हुए पानदान में कूद पड़ा और कत्थे-चूने में लुथड़े हुए पंजे लेकर नानी अम्मा की सफेद दूध जैसी चादर पर छापे मारता हुआ निकल गया।

एक मुर्गी दाल की पतीली में छपाक मारकर भागी और सीधी जाकर मोरी में इस तेजी से फिसली कि सारी कीचड़ मौसीजी के मुंह पर पड़ी जो बैठी हुई हाथ-मुँह धो रही थीं। इधर सारी मुर्गियाँ बेनकेल का ऊँट बनी चारों तरफ़ दौड़ रही थीं। एक भी मुर्गी दड़बे में जाने को राजी न थी।

प्रश्न 3.
बच्चों की हरकतों से घर की क्या हालत हो गई?
उत्तर:
बच्चों की हरकतों से घर में तूफ़ान उठ खड़ा हुआ। ऐसा लगता था, जैसे सारे घर में मुर्गियाँ, भेड़ें. टूटे हुए तसले, बालटियाँ, लोटे, कटोरे और बच्चे थे। बच्चे बाहर किए गए। मुर्गियाँ बाग में हंकाई गई। मातम-सा मनाती तरकारी वाली के आँसू पौंछे गए और अम्मा आगरा जाने के लिए सामान बाँधने लगी।

कामचोर गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. इतने में भेड़ें सूप को भूलकर तरकारीवाली की टोकरी पर टूट पड़ी। वह दालाम में बैठी मटर की फलियाँ तोल-तोल कर रसोइए को दे रही थी। वह अपनी तरकारी का बचाव करने के लिए सीना तान कर उठ गई। आपने कभी भेड़ों को मारा होगा, तो अच्छी तरह देखा होगा कि बस, ऐसा लगता है, जैसे सई के तकिए को कूट रहे हों। भेड़ को चोट ही नहीं लगती। बिलकुल यह समझकर कि आप उससे मजाक कर रहे हैं। वह आप ही पर चढ़ बैठेगी। जरा-सी देर में भेड़ों ने तरकारी छिलकों समेत अपने पेट की कड़ाही में झोंक दी।
प्रश्न:
1. सूप में क्या था?
2. सूप भूलकर भेड़ें किस पर, क्यों टूट पड़ीं?
3. तरकारीवाली ने बचाव का क्या उपाय किया?
4. भेड़ को चोट क्यों नहीं लगती?
5. भेड़ों ने तरकारी के साथ क्या किया?
उत्तर:
1. सूप में दाने थे। भेड़ें दिनभर की भूखीं थीं अत: वे सभी सूप पर झपट पड़ी थीं।
2. जब मेड़ों ने तरकारियों की भरी टोकरी देखी तो वे सूप को मूलकर उस पर टूट पड़ी।
3. तरकारीवाली अपनी सरकारी का बचाव करने के लिए सीना तान कर उठ खड़ी हो गई। उसने भेड़ों का पीटा भी, पर व्यर्थ रहा।
4. भेड़ के शरीर पर ऊन की मोटी परत होती है अत: उन्हें इंडे की चोट नहीं लगती। उन्हें पीटते समय लगता है कि हम रुई के तकिए को कूट रहे हैं।
5. भेड़ों ने सारी तरकारी छिलकों सहित अपने पेट में उतार ली अर्थात् उन्हें खा गई।

माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

2. तय हुआ कि मैंस की अगाड़ी-पिछाड़ी बांध दी जाए और फिर काबू में लाकर दूध दुह लिया जाए। बस, झूले की रस्सी उतारकर मैंस के पैर बांध दिए गए। पिछले वो पैर चाचा जी की चारपाई के पायों से बाँध, अगले दो पैरों को बाँधने की कोशिश जारी थी कि मैंस चौकन्नी हो गई। छूटकर जो भागी तो पहले चाचा जी समझे कि शायद कोई | सपना देख रहे हैं। फिर जब चारपाई पानी के दम से टकराई
और पानी छलककर गिरा तो समझे कि आंधी-तूफान में फंसे हैं। साथ में भूचाल भी आया हुआ है। फिर जल्दी ही | उन्हें असली बात का पता चल गया और पलंग की दोनों पटियाँ पको, बच्चों को छोड़ देनेवालों को बुरा-भला सुनाने लगे।
प्रश्न:
1. किसने, क्या तय किया?
2. इसके लिए क्या प्रयास किया गया?
3. चाचाजी ने क्या समझा?
4. बाद में उन्हें क्या बात पता चली?
5. उन्होंने किसे चुरा-भला कहा?
उत्तर:
1. बच्चों ने यह किया कि मैंस की अगाड़ी और पिछाड़ी बाँध दी जाए और इस प्रकार उसे काबू में लाकर दूध दुह लिया जाए।
2. इस योजना को पूरा करने के लिए झूले की रस्सी से मैंस के पैर बांध दिए गए। पिछले दो पैरों को चाचाजी की चारपाई से पायों से बांधकर अगले पैरों को बाँधने की कोशिश की गई. पर मैंस चौकन्नी होकर भाग ली।
3. जब चाचाजी की चारपाई आगे भागी तो उन्होंने समझा कि कोई सपना देख रहे हैं।
4. जब उनकी चारपाई पानी के इम से टकराई और पानी छलककर उन पर गिरा तो उन्होंने समझा कि वे किसी आँधी-तूफान में फंस गए हैं साथ में भूचाल भी आया हुआ है।
5. चाचाजी बच्चों को खुला छोड़ देने वालों को बुरा-भला सुनाने लगे।

कामचोर Summary in Hindi

कामचोर पाठ का सार

घर में काफी बहस के बाद यह तय हुआ कि नौकरों की छुट्टी कर दी जाए। घर के बच्चे इतने मोटे हैं और कोई काम खुद नहीं करते। ये तो हिलकर पानी तक नहीं पीते। ये कामचोर हो गए हैं। बच्चों को कहा गया कि तुम सिवाय कधम मचाने के कुछ महीं करते। बच्चों में हिल-हिलकर पानी पीने के प्रयास में मटकों, सुराहियों को इधर-उधर लुढ़का दिया। उन्हें फरमान हुआ-ओ काम नहीं करेगा, उसे रात का खाना हरगिज़ नहीं मिलेगा। बच्चों ने अपने लिए काम पूछा तो बताया गया-दरी को साफ करो, आँगन का कूड़ा हटाओ, पेड़ों में पानी दो।

बच्चे काम पर जुट गए। फर्शी दरी को चारों कोनों से पकड़कर झटकना शुरू कर दिया। सारा घर धूल से अट गया। खाँसते-खाँसते सब बेदम हो गए। जब झाड़ लगाने का फैसला हुआ तब झाड़ तो एक थी अतः झगड़े में झाड़ के पुर्जे उड़ गए। कहा गया कि पहले थोड़ा पानी छिड़कना चाहिए था। जब पानी छिड़का गया तो सारी धूल कीचड़ बन गई। अब निश्चय किया गया कि पेड़ों को पानी दिया जाए अतः सभी बच्चे कोई-न-कोई बरतन लेकर नल पर टूट पड़े। वहाँ खूब धक्का-मुक्की हुई। बच्चे कीचड़ से लथपथ हो गए।

अब बच्चे समझ गए कि सफाई और पेड़ों को पानी देने का काम उनके वश की बात नहीं है। उन्होंने सोचा कम-से-कम मुर्गियाँ ही बंद कर दें। अत: वे शाम से ही बाँस, छड़ी लेकर मुर्गियों को हाँकने लगे-‘चल दड़बे, दड़बे’ मुर्गियाँ इधर-उधर कूदने लगीं। दो मुर्गिर्चा खीर के प्यालों से दौड़ती-फड़फड़ाती निकल गई। बाद में पता चला कि प्याले खाली हैं और सारी खीर दीदी के कामदानी के दुपट्टे और ताजे धुले सिर पर लगी है। एक बड़ा-सा मुर्गा अम्मा के खुले पानदान में कूद पड़ा और कत्थे-चूने में पंजे सानकर नानी अम्मा की सफेद चादर पर छापा मारकर चला गया। एक मुर्गी दाल की पतीली में छपाक मारकर भागी और मोरी की कीचड़ को मौसीजी के मुंह पर फेंक गई। कोई भी मुर्गी दड़बे में जाने को तैयार न थी।

किसी को सूझी कि जो भेड़ें आई हुई हैं उन्हें दाना खिला दिया जाए। दिनभर की भूखी भेड़ें दाने सूप पर झपट पड़ी। वे तख्तों पर चढ़ गई। तश्त पर बानी दीदी का दुपट्टा फैला हुआ था। भेड़ों ने सब गड़बड़ कर दिया। हज्जन माँ एक पलंग पर दुपट्टे से मुंह ढंक कर सो रही थी। उन पर भेड़ें जा दौड़ी तो दुपट्टे में उलझी चिल्लाने लगीं ‘मारो-मारो’। इसके बाद भे. तरकारी वाली की टोकरी पर टूट पड़ीं। तरकारीवाली ने अपना बचाव करने के लिए भेड़ों को मारा, पर भला उन्हें चोट कहाँ लगने वाली थी। ऐसा लगता था कि रुई के तकिए कूटे जा रहे हों। भेड़ों ने सारी तरकारी अपने पैरों में उतार दी।

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अब मैंस का दूध निकालने का काम पूरा करने का सोचा गया। भैस बाल्टी को लात मारकर दूर जा खड़ी हुई। अब भैस के अगले-पिछले पैरों को बाँधने की बात सोची गई। झूले की रस्सी से बांधकर चाचा की चारपाई से पायों बाँध दिए गए। अगले पैर बाँधते समय मैंस चौकन्नी हो गई और छूटकर भागी तो चाचा की चारपाई पानी के इम से जा टकराई। फिर बछड़ा खोला गया। उसे देखकर मैंस ने अपने खुरों को ब्रेक लगा दिए। बछड़ा अपने काम में जुट गया।

दूध इधर-उधर बिखर गया। सारे घर में कोहराम-सा मच गया था। अब अम्मा ने चुनौती दे डाली-“या तो बच्चा राज कायम कर लो या मुझे ही रख लो। नहीं तो मैं चली मायके।” अब अम्मा ने अपना फैसला पलटकर कहा- “अगर किसी बच्चे ने घर की किसी चीज को हाथ लगाया तो बस, रात का खाना बंद हो जाएगा।” अब बच्चों ने भी निश्चय कर लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए, वे हिलकर पानी भी नहीं पिएँगे।

कामचोर शब्चार्थ

वबैल = दबने वाले, कमजोर Weak), हरगिज कदापि (Seldom), फरमान राजाज्ञा (Order), तनख्याह = वेतन (Salary), हवाला = उद्धरण (Reference), धुऔधधार = ताबड़तोड़, लगातार (Continuous), कुमुक = फौजी टुकड़ी (Force), धींगामुस्ती जबर्दस्ती, धक्का-मुक्की (Forcefully), लश्टम-पश्टम जैसे-तैसे जल्दी में (In hurry), बेनकेल काबू से बाहर (Out of control).

Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 8 यह सबसे कठिन समय नहीं Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 8 यह सबसे कठिन समय नहीं

HBSE 8th Class Hindi यह सबसे कठिन समय नहीं Textbook Questions and Answers

पाठ से

यह सबसे कठिन समय नहीं Summary In Hindi HBSE 8th Class प्रश्न 1.
“यह कठिन समय नहीं है” यह बताने के लिए कविता में कौन-कौन से तर्क प्रस्तुत किए गए है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘यह कठिन समय नहीं है’ बताने के लिए कविता में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए गए हैं

  • चिड़िया की चोंच में अभी भी तिनका दबा है।
  • चिड़िया की उड़ान में कोई बाधा नहीं है।
  • स्टेशन पर रेलगाड़ियों का आवागमन जारी है।
  • लोग एक-दूसरे की प्रतीक्षा करते हैं।
  • लोगों को दूसरों की कुशलता की चिंता रहती है।
  • बूढी नानी अभी बच्चों को कहानियाँ सुनाती है।

यह सबसे कठिन समय नहीं है कविता का सार HBSE 8th Class प्रश्न 2.
चिड़िया चोंच में तिनका दबाकर उड़ने की तैयारी में क्यों है ? वह तिनकों का क्या करती होगी ? लिखिए।
उत्तर :
चिड़िया चोंच में तिनका दबाकर उड़ने की तैयारी में इसलिए है ताकि वह उस तिनके को अपने घोंसले तक ले जा सके। वह उस तिनके से अपने घोंसले को मजबूत करती होगी।

माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

Class 8 Hindi Yeh Sabse Kathin Samay Nahi Summary HBSE  प्रश्न 3.
कविता में कई बार ‘अभी भी’ का प्रयोग करके बातें रखी गई हैं। ‘अभी भी’ का प्रयोग करते हुए तीन वाक्य बनाइए और देखिए उनमें लगातार, निरंतर, बिना रुके चलने वाले किसी कार्य का भाव निकल रहा है या नहीं ?
उत्तर :
‘अभी भी’ के प्रयोग वाले वाक्य :
1. अभी भी वर्षा हो रही है।
2. मैं अभी भी पुस्तकें पढ़ता हूँ।
3. पुलिस अभी भी लोगों के चालान करती है।

  • इन तीनों वाक्यों में लगातार, बिना रुके चलने वाले कार्य का भाव निकल रहा है।

Class 8 Hindi Chapter 8 HBSE प्रश्न 4.
“नहीं” और “अभी भी” को एक साथ प्रयोग करके तीन वाक्य लिखिए और देखिए ‘नहीं’ ‘अभी भी’ के पीछे कौन-कौन से भाव छिपे हो सकते
उत्तर :
1. नहीं, अभी भी मैं तुम्हें हरा सकता हूँ।
2. नहीं, अभी भी आतंक का वातावरण बना हुआ है।
3. नहीं, अभी भी तुम सच नहीं बोल रहे हो।

  • ‘नहीं’ के पीछे किसी बात को नकारने के तथा ‘अभी भी’ के पीछे निरंतरता के भाव छिपे हुए हैं।

कविता से आगे

यह सबसे कठिन समय नहीं HBSE 8th Class प्रश्न 1.
घर के बड़े-बूढों द्वारा बच्चों को सुनाई जाने वाली किसी ऐसी कथा की जानकारी प्राप्त कीजिए जिसके आखिरी हिस्से में कठिन परिस्थितियों से जीतने का संदेश हो।
उत्तर :
विद्यार्थी ऐसी कथा की जानकारी प्राप्त करें।

यह सबसे कठिन समय नहीं के प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class  प्रश्न 2.
आप जब भी घर से स्कूल जाते हैं कोई आपकी प्रतीक्षा कर रहा होता है। सूरज डूबने का समय भी आपको खेल के मैदान से घर लौट चलने की सूचना देता है कि घर में कोई आपकी प्रतीक्षा कर रहा है-प्रवीक्षा करने वाले व्यक्ति के विषय में आप क्या सोचते हैं ? अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
सूरज डूबने के समय घर पर हमारी माँ हमारी प्रतीक्षा कर रही होती है। समय पर न लौटने पर वह परेशान हो जाती है। वह हमारी शुभचिंतिका होती है। उसका प्यार दिखावटी नहीं होता। माँ की इच्छा होती है कि उसकी संतान दिन छिपने से पहले घर सकुशल लौट आए।

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अनुमान और कल्पना

अंतरिक्ष के पार की दुनिया से क्या सचमुच कोई बस आती है जिससे खतरों के बाद भी बचे हुए लोगों की खबर मिलती है ? आपकी राय में यह झूठ है या सच ? यदि झूठ है तो कविता में ऐसा क्यों लिखा गया ? अनुमान लगाइए यदि सच लगता है तो किसी अंतरिक्ष संबंधी विज्ञान कथा के आधार पर कल्पना कीजिए वह बस कैसी होगी, वे बचे हुए लोग खतरों से क्यों घिर गए होंगे? इस संदर्भ को लेकर कोई कथा बना सकें तो बनाइए।
उत्तर :
हम जानते हैं कि यह सब झूठ है। यह सब कल्पना पर आधारित है। कविता में ऐसा इसलिए लिखा गया है ताकि कुछ फैंटेसी बनी रहे। कई काल्पनिक बातें हमें आनंद देती हैं। वैसी ही बात अंतरिक्ष के पार की दुनिया के बारे में है।

केवल पढ़ने के लिए

पहाड़ से ऊँचा आदमी तीन सौ साठ फीट लंबा और तीस फीट चौड़ा पहाड़ काटने के लिए कितना वक्त लग सकता है? निश्चित ही टेक्नोलॉजी के इस युग में इस सवाल का जवाब इस बात पर निर्भर करेगा कि आप पहाड का सीना चीरने के लिए किस मशीन का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन अगर यह पूछा जाए कि इसी काम को एक ही शख्स को अंजाम देना हो तो कितना ‘वक्त लगेगा?

शायद यह चकरा देनेवाला सवाल होगा लेकिन बिहार के गया जिले के गेलौर गाँव में एक मजदूर परिवार में जन्मे एक शख्स ने इसका जवाब अपने बाजुओं और अपनी मेहनत से दिया। पहाड़ को हिला देनेवाले उन दशरथ मांझी ने राजधानी दिल्ली में 2007 में अंतिम सांस ली। उनका जन्म 1934 में हुआ था।

वर्ष 1966 की किसी अलसुबह जब छेनी-हथौड़ा लेकर दशरथ माँझी अपने गांव के पास स्थित पहाड़ के पास पहुंचे तो बहुत कम लोगों को इस बात का पता था कि इस शख्स ने अपने दिल में क्या ठान लिया है। मजदूरी और कभी-कभार इधर-उधर काम करने वाले राहगीरों के लिए ही नहीं, गाँव के लोगों के लिए भी वह एक हँसी के पात्र बन गए थे।

जीवन संगिनी फागुनी देवी का समय पर इलाज न करा पाने से उसे खो चुके दशरथ मांझी को इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। धुन के पक्के दशरथ की अथक मेहनत बाईस साल बाद तब रंग लाई, जब उस पहाड़ से एक रास्ता दूसरे गाँव तक निकल आया।

आखिर ऐसी क्या बात हुई कि दशरथ को पहाड़ चीरने की धुन सवार हुई। दरअसल पहाड़ को जब तक चीरा नहीं गया था, तब तक दशरथ के गाँव से सबसे नजदीकी वजीरगंज अस्पताल 90 किलोमीटर पड़ता था। दशरथ की पत्नी की तबीयत खराब होने पर उसे वहाँ ले जाने के दौरान ही उसने दम तोड़ दिया था। उन्हें लगा कि पहाड़ से कोई रास्ता होता तो मैं अपनी पत्नी को वक्त पर अस्पताल ले जाता और उसका इलाज करा पाता। सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की एक कविता है: ‘दुख तुम्हें क्या तोड़ेगा तुम-दुख को तोड़ दो। बस अपनी आँखें औरों के सपनों से जोड़ दो।’

जिंदगी का तीसवाँ वसंत पार कर चुके दशरथ मांझी ने शायद शेष गाँव के निवासियों के मन में दबी इस छोटी-सी । हसरत को अपनी जिंदगी का मिशन बना डाला और अपनी पत्नी की असामयिक मौत से उपजे प्रचंड दुख को एक नयी संकल्प शक्ति में तब्दील कर दिया। पाँच-छह साल तक दशरथ अकेले ही मेहनत करते रहे। धीरे-धीरे और लोग भी जुड़ा चले गए। वहाँ एक दानपात्र भी रखा गया था, जिसमें लोग चंदा डाल देते थे। कई लोग अपने घर से अनाज भी देते थे।

आज की तारीख में आप कह सकते हैं कि गेलौर से वजीरगंज जाने की अस्सी किलोमीटर की दूरी को 13 किलोमीटर ला देने वाला यह रास्ता एक श्रमिक के प्यार की निशानी है। एक अंग्रेज पत्रकार ने लिखा : ‘पूअरमैंस ताजमहल’।

कुछ साल पहले एक पत्रकार उनसे मिलने गया, तब एक फक्कड़ कबीरपंथी की तरह यायावरी कर रहे दशरथ मांझी ने उन्हें अपनी एक प्रिय कहानी सुनाई थी जो उस चिड़िया के बारे में थी जिसका घोंसला समुद्र बहाकर ले गया था। कहानी उस चिड़िया की प्रचंड जिजीविषा और संकल्प को बयां कर रही थी, जिसके तहत समुद्र द्वारा घोंसला न लौटाने पर चिड़िया ने अकेले ही समंदर का सुखा देने को संकल्प लिया। शुरुआत में उसे पागल करार देने वाली बाकी चिड़ियाँ भी उसके साथ जुड़ गई और फिर विष्णु का वाहन गरुड़ भी इन कोशिशों का हिस्सा बन गया।

फिर बीच-बचाव करने के लिए खुद विष्णु को आना पड़ा जिन्होंने समुद्र को धमकाया कि अगर उसने चिड़िया का घोंसला नहीं लौटाया तो पलभर में उसे सुखा दिया जाएगा। तब पत्रकार ने जब उनसे पूछा कि कहानी की चिड़िया क्या आप ही हैं। इसके जवाब में आँखों में शरारत भरी मुस्कान लिए दशरथ मांझी ने बात टाल दी थी।

पिछले कुछ सालों से दशरथ माँझी कबीरपंथी साधु बन गए थे और यायावर बने हुए थे, लेकिन कबीर का उनका स्वीकार महज ऊपरी नहीं था। उनके विचारों में भी कबीर जैसी प्रखरता थी। गरीब और मेहनतकशों का ईश्वर पूजा में उलझे रहना और तमाम अंधश्रद्धाओं को शिकार होना उन्हें कचोटता था। वे कहते थे कि जिंदगी भर फाकाकशी करते रहे आदमी की मौत के बाद मृत्युभोज में क्यों अच्छे-अच्छे पकवान खिलाए जाते हैं. इसके लिए लोग कर्जा क्यों लेते हैं?

दशरथ मांझी हमारे बीच नहीं हैं लेकिन क्या वे हमें उन मिथकीय पात्रों की याद दिलाते प्रतीत नहीं होते, जैसे पात्र हमें पुराणों में मिलते हैं, फिर वह चाहे प्रोमेथियस हो या भगीरथ। ऐसी शख्यिसतें, जो मनुष्य की उद्दाम जिजीविषा को प्रतिबिंबित कर रही होती हैं और अपनी कोशिशों से प्रकृति की दानव शक्तियों और इंसानियत के दुश्मनों से लड़ रही होती हैं।

अपने जीवन का फलसफा बयान करते हुए उन्होंने एक पत्रकार को शायद इसलिए बताया था कि पहाड़ मुझे उतना ऊँचा कभी नहीं लगा, जितना लोग बताते हैं। मनुष्य से ज्यादा ऊंचा कोई नहीं होता।

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यह सबसे कठिन समय नहीं काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. नहीं, यह सबसे कठिन समय नहीं !
अभी भी दबा है चिड़िया की
चोंच में तिनका
और वह उड़ने की तैयारी में है !
अभी भी झरती हुई पत्ती
थामने को बैठा है हाथ एक
अभी भी भीड़ है स्टेशन पर
अभी भी एक रेलगाड़ी जाती है गंतव्य तक,
जहाँ कोई कर रहा होगा प्रतीक्षा

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘वसंत भाग-3’ में संकलित कविता ‘यह सबसे कठिन समय नहीं’ से अवतरित है। इसकी रचयिता जया जादवानी हैं।

व्याख्या :
कवयित्री आशावादी है। वह वर्तमान समय को कोसती नहीं है। उसके अनुसार आज का समय सबसे कठिन समय नहीं है। कठिन समय वह होता है जब पशु-पक्षियों तक को आश्रय का अभाव हो जाता है। अभी तक चिड़ियों की चोंच में तिनका मौजूद है अर्थात् उसे भोजन और आश्रय मिल रहा है। चिड़िया स्वच्छंदता पूर्वक विचरण करने को भी तत्पर है। हाथ पेड़-पौधों से झरती पत्तियों को थामने को तैयार रहता है। स्टेशन पर होने वाली भीड़ में कोई कमी नहीं है। वहाँ रेलगाड़ियों का आना-जाना निरंतर होता रहता है। रेलगाड़ी को जहाँ तक जाना होता है, वह वहाँ तक जाती है और उसकी प्रतीक्षा करने वाले लोग भी मौजूद हैं।

ये सभी बातें इस बात का सबूत हैं कि जीवन अपनी रफ्तार से चल रहा है। इसे सबसे कठिन समय तो नहीं कहा जा सकता।

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2. अभी भी कहता है कोई किसी को
जल्दी आ जाओ कि अब
सूरज डूबने का वक्त हो गया
अभी कहा जाता है
उस कथा का आखिरी हिस्सा
जो बूढ़ी नानी सुना रही सदियों से
दुनिया के तमाम बच्चों को
अभी आती है एक बस
अंतरिक्ष के पार की दुनिया से
लाएगी बचे हुए लोगों की खबर!
नहीं, यह सबसे कठिन समय नहीं।

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्यांश जया जादवानी की कविता ‘यह सबसे कठिन समय नहीं है’ से अवतरित है। कवयित्री आशावादी है।

व्याख्या :
कवयित्री का कहना है कि आज के समय को सबसे कठिन समय नहीं कहा जा सकता। अभी भी लोगों के दिलों में एक-दूसरे के लिए प्रेम और चिंता की भावना विद्यमान है। अभी भी हमारे शुभचिंतक चाहते हैं कि हम सूरज छिपने से पहले घर पहुंच जाएँ। रात को देर होने पर उन्हें बेचैनी होती है।

बूढ़ी नानी अभी भी बच्चों को अपनी सदियों पुरानी कहानी सुनाकर खुश कर देती है। बच्चों को अंतरिक्ष पार से आने वाली परी की प्रतीक्षा रहती है। वे उस पार के बच्चों के बारे में जानना चाहते हैं। जब तक लोगों का आपस में इतना प्यार और लगाव बना हुआ है तब तक भला इस दौर को कठिन समय कैसे कहा जा सकता है। हमें आशा का दामन नहीं छोड़ना चाहिए।

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यह सबसे कठिन समय नहीं Summary in Hindi

यह सबसे कठिन समय नहींकविता का सार

प्रस्तुत कविता जया जादवानी द्वारा रचित है। कवयित्री का कहना है कि अभी निराशा की कोई बात नहीं है। आज का समय सबसे कठिन समय नहीं है। अभी भी आशा के कई चिह्न शेष हैं। अभी भी चिड़िया की चोंच में तिनका है अर्थात् उसे आश्रय प्राप्त है और वह उड़ने को भी तैयार है। पेड़ से झरती पत्ती को थामने वाला कोई मौजूद है। रेलवे स्टेशनों पर चहल-पहल अभी भी बरकरार है। रेलगाड़ी अपने निश्चित स्थल तक जाती है।

अभी तक लोग अपने आगंतुकों की प्रतीक्षा करते हैं। लोग अपनों की चिंता करने वाले अभी भी मौजूद हैं। सूरज छिपने से पहले अपनों को लोग घर के अंदर देखना चाहते हैं। अभी भी बूढ़ी नानी छोटे बच्चों को कहानी-किस्से सुनाती हैं। अभी भी बच्चों को अंतरिक्ष पार की दुनिया लुभाती है। इन सबका होना यह सिद्ध करता है कि आज भी सबसे कठिन समय नहीं आया है। जीवन की आशा अभी भी मौजूद है।

Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 7 क्या निराश हुआ जाए Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 7 क्या निराश हुआ जाए

HBSE 8th Class Hindi क्या निराश हुआ जाए Textbook Questions and Answers

आपके विचार से

पाठ 7 क्या निराश हुआ जाए’ के प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 1.
लेखक ने स्वीकार किया है कि लोगों ने उन्हें भी धोखा दिया है, फिर भी वह निराश नहीं है। आपके विचार से इस बात का क्या कारण हो सकता है?
उत्तर:
लेखक इस तथ्य को स्वीकार करता है कि लोगों ने कई अवसरों पर उसे भी धोखा दिया है, पर वह इसी को सभी पर लागू नहीं करना चाहता। स्थिति चिंताजनक अवश्य है, पर निराश होकर बैठ जाने वाली नहीं है। जैसी स्थिति है, उसे बहुत बढ़ा-चढ़ाकर दर्शाया जाता है। लेखक आशावादी है, वह कुछ बुरे लोगों के आधार पर भविष्य को अंधकारमय नहीं देखता। अभी भी उसका विश्वास जीवन के महान मूल्यों में बना हुआ है। यही कारण है कि वह निराश नहीं है।

HBSE 8th Class Chapter 7 क्या निराश हुआ जाए प्रश्न 2.
समाचारपत्रों, पत्रिकाओं और टेलीविजन पर आपने ऐसी अनेक घटनाएं देखी-सुनी होंगी जिनमें लोगों ने बिना किसी लालच के दूसरों की सहायता की हो या ईमानदारी से काम किया हो। ऐसे समाचार तथा लेख एकत्रित करें और कम से कम दो घटनाओं पर अपनी टिप्पणी लिखें।
उत्तर:
विद्यार्थी इस प्रकार के समाचार तथा लेख एकत्रित

दो घटनाएँ:
1. पिछले दिनों एक रेलगाड़ी दूसरी खड़ी रेलगाड़ी से बल्लभगढ़ (हरियाणा) के निकट जा टकराई थी। इस टक्कर में शुरू के चार डिब्बे बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए थे। यद्यपि रात का समय था फिर भी दुर्घटना की खबर निकटवर्ती क्षेत्र में तेजी से फैल गई। ग्रामीण लोग अपने-अपने वाहन लेकर घटनास्थल पर आ गए।

सरकारी सहायता तो काफी विलंब से पहुंची, पर ग्रामीणों ने घायलों को निकाल-निकाल कर निकटवर्ती अस्पतालों तक पहुंचाया। उनके इस काम में उनका कोई लालच न था बल्कि उन्होंने मानवीय दृष्टिकोण से यह काम किया था। उनकी तत्परता से कई लोगों की जान बच सकी।

2. दूसरी घटना दिल्ली के महरौली रोड पर घटी। एक मोटर साइकिल सवार को एक कार ने जबर्दस्त टक्कर मारी और भाग गई। बाइक पर पति-पत्नी सवार थे। वे बेहोश, लहू-लुहान अवस्था में दूर जा गिरे थे। तभी एक जीप आकर रुकी। उसमें से दो-तीन व्यक्ति उतरे और घायलों को जीप में लिटाकर सफदरजंग अस्पताल तक ले गए। उन लोगों ने भी यह काम इंसानियत के वशीभूत होकर किया था। उन्हें किसी प्रकार का लालच न था।

प्रश्न 3.
लेखक ने अपने जीवन की दो घटनाओं में रेलवे टिकट बाबू और बस कंडक्टर की अच्छाई और ईमानदारी की बात बताई है। आप भी अपने या अपने किसी परिचित के साथ हुई किसी घटना के बारे में बताइए जिसमें किसी ने बिना किसी स्वार्थ के भलाई, ईमानदारी और अच्छाई के कार्य किए हों।
उत्तर:
लेखक ने अपने जीवन की दो घटनाओं में रेलवे के टिकट बाबू और बस कंडक्टर की अच्छाई और ईमानदारी की बात बताई है। हमारे जीवन में भी ऐसी घटनाएं घटित होती रहती हैं। पिछले सप्ताह की ही बात है। मैं डी.टी.सी. की बस में सफर कर रहा था कि एक व्यक्ति एक महिला के हाथ से पर्स छीन कर बस से उतर कर भाग निकला। वह महिला सहायता की गुहार लगाती रही, पर लोगों ने उस पर ध्यान नहीं दिया।

तभी बस के कंडक्टर ने बस रुकवाई और उत्तर कर उस ठग के पीछे भागने लगा। काफी दूर जाने के बाद कंडक्टर ने उस ठग को पकड़ लिया। तब तक बस भी उस तक पहुंच चुकी थी। उसने उसे धक्का देकर बस में चढ़ाया और बस को पास के थाने में ले गया। वहाँ उसे पुलिस के हवाले किया तथा पर्स उस महिला को दिलवा दिया। सभी सवारियों ने उसके साहस एवं ईमानदारी की भूरि-भूरि प्रशंसा की। उसने अपने कर्तव्य का पालन बिना किसी लालच के किया था।

माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

पर्दाफाश

प्रश्न 1.
दोषों का पर्दाफाश करना कब बुरा रूप ले सकता है?
उत्तर:
दोषों का पर्दाफाश करना तब बुरा रूप ले लेता है जब हम इसमें रस लेने लगते हैं। दूसरे के दोषों का उल्लेख चटखारे लेकर नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 2.
आजकल के बहुत से समाचार पत्र या समाचार चैनल ‘दोषों का पर्दाफ़ाश’ कर रहे हैं। इस प्रकार समाचारों और कार्यक्रमों की सार्थकता पर तर्क सहित विचार लिखिए।
उत्तर:
आजकल बहुत से समाचार पत्र या समाचार चैनल दोषों का पर्दाफाश कर रहे हैं। हमारे विचार से उनके इस काम का असली कारण अपनी TRP को बढ़ाना है। वे ज्यादा से ज्यादा दर्शकों तक पहुँचने के लिए कई बार पर्दाफाश के नाम पर बात का बतंगड़ बना डालते हैं। जैसे दिल्ली में एक शिक्षिका के बारे में किया गया।

कारण बताइए

निम्नलिखित के संभावित परिणाम क्या-क्या हो सकते हैं ? आपस में चर्चा कीजिए-
उत्तर:
जैसे:”ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है।” परिणाम-भ्रष्टाचार बढ़ेगा।

1. “सच्चाई केवल भीरू और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है।” ……………………
उत्तर:
परिणाम = झूठ का बोलबाला बढ़ेगा, वे ही फले-फूलेंगे। ……………………

2. “झूठ और फरेब का रोजगार करनेवाले फल-फूल रहे हैं।” ……………………
उत्तर:
परिणाम = ईमानदारी की प्रवृत्ति घटती चली जाएगी। ……………………

3. “हर आवमी दोषी अधिक दिख रहा है, गुणी कम।”? ……………………
उत्तर:
दोष ज्यादा दिखता है जैसे कालिमा ज्यादा फैलती है। गुणों की चर्चा हम कम करते हैं।

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दो लेखक और बस यात्रा

आपने इस लेख में एक बस की यात्रा के बारे में पड़ा। इससे पहले भी आप एक बस यात्रा के बारे में पड़ चुके हैं। यदि दोनों बस-यात्राओं के लेखक आपस में मिलते, तो एक-दूसरे को कौन-कौन सी बातें बताते ? अपनी कल्पना से उनकी बातचीत लिखिए।
उत्तर:
पहली बस-यात्रा का लेखक: अरे भाई, हमारी बस तो पहले से ही खटारा लग रही थी। तुम्हारी बस को क्या हो गया?

दूसरी बस-यात्रा का लेखक: हमारी बस भी रुक-रुक कर चल रही थी। अब सुनसान जगह पर आकर बिल्कुल ही रुक

पहली बस-यात्रा का लेखक: हमारी बस का ड्राइवर बड़ा होशियार है। उसने इंजन तक पेट्रोल पहुंचाने का अनोखा उपाय खोज निकाला।

दूसरी बस-यात्रा का लेखक: हमारी बस का कंडक्टर बहुत होशियार है। वह बस अड्डे जाकर नई बस ले आया। साथ ही बच्चों के लिए एक लाटे में दूध भी ले आया।

सार्थक शीर्षक

1. लेखक ने लेख का शीर्षक ‘क्या निराश हुआ जाए’ क्यों रखा होगा ? क्या आप इससे भी बेहतर शीर्षक सुझा सकते हैं?
उत्तर:
यह शीर्षक इसलिए रखा गया होगा क्योंकि लेखक लोगों के मन से निराशा की भावना को निकालना चाहता है।
अन्य शीर्षक-आशावादी दृष्टिकोण।

2. यदि ‘क्या निराश हुआ जाए’ के बाद कोई विराम चिह्न लगाने के लिए कहा जाए तो आप दिए गए चिह्नों में से कौन-सा चिह्न लगाएंगे ? अपने चुनाव का कारण भी बताइए। -, । .! ? . । = ।…. ।
उत्तर:
क्या निराश हुआ जाए ?
यहाँ प्रश्नवाचक चिह्न उपयुक्त है क्योंकि कवि ने प्रश्नात्मक लहजे में शीर्षक का नाम रखा है। इसका अप्रत्यक्ष अर्थ निकलता है-निराश होने की आवश्यकता नहीं है।

3. “आदर्शों की बातें करना तो बहुत आसान है पर उन पर चलना बहुत कठिन है।” क्या आप इस बात से सहमत । हैं? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
हाँ, यह बात सही है कि आदर्शों की बात करना तो आसान है। पर उन पर चलना बहुत कठिन है। आदशों पर चलना कष्टों और बाधाओं को आमंत्रण देना है। हम फिर भी यही कहेंगे कि आदर्शों पर चलकर ही हम अपने व्यक्तित्व को एक नया रूप दे पाएंगे। आदशों से हटकर जीना तो समझौतावादी हो जाएगा। कुछ अच्छा पाने के लिए कष्ट झेलने ही पड़ते हैं।

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सपनों का भारत

“हमारे महान मनीषियों के सपनों का भारत है और रहेगा।”
1. आपके विचार से हमारे महान विद्वानों ने किस तरह के भारत के सपने देखे थे? लिखिए।
2. आपके सपनों का भारत कैसा होना चाहिए है? लिखिए।
उत्तर:
1. हमारे विचार से हमारे महान विद्वानों ने एक ऐसे भारत के सपने देखे थे जिसमें ईमानदारी, मेहनत, सच्चाई आदि मानवीय आदर्शों की प्रतिष्ठा होगी। यहाँ ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय नहीं समझा जाएगा। लोगों की जीवन के महान मूल्यों में आस्था बनी रहेगी।

2. हमारे सपनों का भारत ऐसा है जिसमें श्रम, ईमानदारी एवं कर्तव्यनिष्ठा को सम्मान की दृष्टि से देखा जाता हो। मेरे भारत में हेरा-फेरी करने वालों की कोई जगह नहीं होगी। मेरे सपनों के भारत में कृषि, उद्योग, वाणिज्य, शिक्षा, स्वास्थ्य की उन्नत अवस्थाएं होंगी। सभी को सुख-सुविधाएँ पाने का अधिकार होगा।

भाषा की बात

1. दो शब्दों के मिलने से समास बनता है। समास का एक प्रकार है- द्वंद्व समास। इसमें दोनों शब्द प्रधान होते हैं। जब दोनों भाग प्रधान होंगे तो एक-दूसरे में द्वंद्व (स्पर्धा, होड़) की संभावना होती है। कोई किसी से पीछे रहना नहीं चाहता, जैसे-चरम और परम = चरम-परम, भीरू और बेबस = भीरू-बेबस। दिन और रात = दिन रात।

‘और’ के साथ आए शब्दों के जोड़े को ‘और’ हटाकर (-) योजक चिह्न भी लगाया जाता है। कभी-कभी एक साथ भी लिखा जाता है। द्वंद्व समास के बारह उदाहरण ढूँढकर लिखिए।
उत्तर:
द्वंद्व समास के उदाहरण:
1. भाई-बहन
2. दाल-रोटी
3. माँ-बाप
4. भीम-अर्जुन
5. सच्चा -झूठा
6. पाप-पुण्य
7. पी-शक्कर
8. पति-पत्नी
9. दाल-चावल
10. सुख-दुःख
11. नर-नारी
12 ऊंच-नीच

2. पाठ से तीनों प्रकार की संज्ञाओं के उदाहरण खोजकर लिखिए।
उत्तर:

  1. व्यक्तिवाचक संज्ञा: रवीन्द्रनाथ ठाकुर, तिलक, महात्मा गाँधी, भारतवर्ष।
  2. जातिवाचक संज्ञा: समाचारपत्र, समुद्र, कानून, बीमार, मनुष्य, ड्राइवर, कंडक्टर, नौजवानों, यात्री बस।
  3. भाववाचक संज्ञा: उगी, डकैती, तस्करी, चोरी, ईमानदारी, स्वास्थ्य, विनम्रता।

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HBSE 8th Class Hindi क्या निराश हुआ जाए Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार आज के समाज में कौन-कौन सी बुराइयाँ दिखाई देती हैं ?
उत्तर:
लेखक के अनुसार आज के समाज में निम्नलिखित बुराइयाँ दिखाई देती हैं:

  • ठगी, डकैती, चोरी, तस्करी और भ्रष्टाचार की बुराइयाँ।
  • लोग एक-दूसरे के दोष ढूँढते हैं और उन्हें बढ़ा-चढ़ाकर दर्शाते हैं।
  • सभी को संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगा है।

प्रश्न 2.
क्या कारण है कि आज हर आदमी में दोष अधिक दिखाई दे रहे हैं और गुण कम?
उत्तर:
आजकल कुछ माहौल ऐसा बन गया है कि ईमानदारी से जीविका चलाने वाले पिस रहे हैं और झूठ-फरेब का सहारा लेने वाले फल-फूल रहे हैं। जो आदमी कुछ करता है उसमें दोष खोजे जाते हैं जबकि कुछ न करने वाला सुखी रहता है। आजकल काम करने वाला हर आदमी दोषी दिखाई देता है। उसके गुणों को भुला दिया जाता है।

प्रश्न 3.
लेखक दोषों का पर्दाफाश करते समय किस बात से बचने के लिए कहता है ?
उत्तर:
लेखक दूसरे के दोषों का पर्दाफाश करते समय उसमें रस लेने की प्रवृत्ति से बचने के लिए कहता है। उसे दोष को सामान्य ढंग से ही कहना चाहिए, चटखारे लेकर नहीं।

प्रश्न 4.
कुछ यात्री बस-ड्राइवर को मारने के लिए क्यों उतारू थे ?
उत्तर:
कुछ यात्री बस-ड्राइवर को मारने को इसलिए उतारू थे, क्योंकि उनके विचार से ड्राइवर ने जान-बूझकर बस खराब कहकर रोक दी थी। जब कंडक्टर चुपचाप चला गया तो उन्होंने समझा कि ड्राइवर ने उसे डाकुओं को बुलाने के लिए भेजा है।

प्रश्न 5.
टिकट-चेकर के चेहरे पर विचित्र संतोष की गरिमा लेखक को चकित क्यों कर गई ?
उत्तर:
एक बार टिकट लेते समय लेखक ने भूल से बाबू को दस रुपए की जगह सौ का नोट दे दिया। टिकट लेकर वह निश्चिंत होकर रेल के डिब्बे में जा बैठा। बहुत देर बाद टिकट बाबू उसे ढूँढता हुआ आया। उसने लेखक को नब्बे रुपये लौटा दिए और कहा, ‘अच्छा हुआ आप मिल गए।’ उस समय उस बाबू के मुख पर विचित्र संतोष का भाव था। लेखक को इस ईमानदारी पर आश्चर्य हुआ।

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प्रश्न 6.
जीवन के महान् मूल्यों के बारे में हमारी आस्था क्यों हिलने लगी है ?
उत्तर:
आज ऐसा वातावरण बन गया है कि ईमानदारी और मेहनत से काम करने वाले भोले लोग पिस रहे हैं और झूठ-फरेब से जीविका चलाने वाले चालाक लोग मौज-मजे उड़ा रहे हैं। सच्चाई सिर्फ बेबस और डरपोक लोगों का काम समझा जाता है। यही कारण है कि जीवन के महान् मूल्यों पर हमारी आस्था डगमगाने लगी है।

प्रश्न 7.
हमारे महापुरुषों के सपने के भारत का क्या स्वरूप था ?
उत्तर:
हमारे महापुरुषों के सपने के भारत का स्वरूप ऐसा था जिसमें धर्म को कानून से बड़ा माना गया था। उसके मूल्य थे-सेवा, ईमानदारी, सच्चाई, आध्यात्मिकता। इस स्वरूप में मनुष्य मात्र से प्रेम था, महिलाओं का सम्मान होता था तथा झूठ और चोरी को गलत समझा जाता था।

प्रश्न 8.
भ्रष्टाचार आदि के विरुद्ध आक्रोश करना किस बात को प्रमाणित करता है ?
उत्तर:
भ्रष्टाचार आदि के विरुद्ध आक्रोश प्रकट करना इस बात को प्रमाणित करता है कि हम ऐसी चीज को गलत समझते हैं और समाज में उन तत्त्वों की प्रतिष्ठा कम करना चाहते हैं, जो गलत तरीके से धन या मान संग्रह करते हैं।

प्रश्न 9.
जो आज ऊपर-ऊपर दिखाई दे रहा है वह कहाँ तक मनुष्य निर्मित नीतियों की त्रुटियों की देन है?
उत्तर:
आज समाज में जो कुछ ऊपर-ऊपर से खराब दिखाई दे रहा है वह मनुष्य द्वारा बनाई गई गलत नीतियों का ही दुष्परिणाम है। मनुष्य की बनाई नौतियाँ कई बार समय-सीमा पर खरी नहीं उतरती अतः उन्हें बदलने की आवश्यकता उपस्थित हो जाती है। कभी-कभी ये परीक्षित आदर्शों से टकराते हैं अत: निराश होने की आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न 10.
“वर्तमान परिस्थितियों में हताश हो जाना ठीक नहीं है।” इस कथन की पुष्टि में लेखक ने क्या उदाहरण दिए हैं ?
उत्तर:
पहला उदाहरण: एक बार लेखक टिकट लेते समय दस रुपए की जगह सौ रुपए का नोट दे बैठा। जब वह रेल के डिब्बे में बैठ गया तो बहुत देर बाद क्लर्क ढूँढता-ढूँढता वहाँ आया। उसने लेखक को नब्बे रुपए देते हुए कहा-‘अच्छा हुआ आप मिल गए।’

दूसरा उदाहरण: एक बार लेखक परिवार सहित बस में , कहीं जा रहा था। रात का समय था और रास्ता बहुत खराब था। अचानक एक सुनसान स्थान पर बस खराब हो गई। बस के कंडक्टर ने बस की छत से साइकिल उतारी और कहीं चला गया। यात्री बहुत घबराए। उन्होंने सोचा कि डाकुओं को बुलाने गया है।

सभी यात्रियों ने ड्राइवर को बस से नीचे उतार कर पौटने का निश्चय किया। उनका कहना था कि ड्राइवर ने जान-बूझकर बस रोकी है। वह डाकुओं से मिला हुआ है। लेखक ने ड्राइवर को पीटने से तो बचा लिया, पर मन-ही-मन वह भी डरा हुआ था। उसके बच्चे भूखे और प्यासे चिल्ला रहे थे। तभी सामने से एक खाली बस आई जिसमें उनकी बस का कंडक्टर भी था। कंडक्टर ने आते ही कहा: आप लोगों के लिए दूसरी बस ले आया हूँ। पहली बस तो चलने लायक नहीं थी। इस पर सभी ने कंडक्टर को धन्यवाद दिया और ड्राइवर से क्षमा मांगी। ऐसे अनेक उदाहरण जीवन में मिल जाते हैं, इसलिए निराश होने का कारण नहीं।

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प्रश्न 11.
रवींद्रनाथ ठाकुर ने भगवान से क्या प्रार्थना की और क्यों ?
उत्तर:
रवींद्रनाथ ठाकुर ने भगवान से यह प्रार्थना की कि “संसार में केवल नुकसान ही उठाना पड़े, धोखा ही खाना पड़े तो ऐसे अवसरों पर भी हे प्रभो! मुझे ऐसी शक्ति दो कि मैं तुम्हारे ऊपर संदेह न करूं।” उन्होंने ऐसी प्रार्थना इसलिए की क्योंकि वे धोखा तो खा सकते थे, पर किसी को धोखा देना नहीं चाहते थे।

प्रश्न 12.
‘महान भारत को पाने की संभावना बनी हुई है और बनी रहेगी।’ लेखक के इस कथन से हमें क्या संदेश मिलता है?
तर:
लेखक के इस कथन से हमें यह संदेश मिलता है कि भारतवर्ष महान था, अब भी महान है। हमें आशावादी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। वर्तमान परिस्थितियों में भी निराश होने की कोई आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न 13.
निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए:
(क) सामाजिक कायदे-कानून कभी-कभी बुग-युग से परीक्षित आवशों से टकराते हैं।
उत्तर:
मनुष्य-बुद्धि ने परिस्थितियों का सामना करने के लिए कुछ कायदे-कानून बनाए हैं। ये कायदे-कानून सबके लिए बनाए जाते हैं, पर सबके लिए एक ही प्रकार के नियम सुखकर नहीं होते। ये कायदे-कानून कभी-कभी युगों से चले आ रहे जींचे-परखे आदशों से मेल न खाने से टकराते हैं। ऐसा होता आया

(ख) व्यक्ति-चित्त सब समय आवर्शों द्वारा चालित नहीं होता।
उत्तर:
व्यक्ति का चित्त हर समय आदर्शों के अनुसार ही नही चलता। मनुष्य के मन में लोभ, मोह जैसे विकार भी होते हैं, वे उस पर कई बार हावी हो जाते हैं। उस स्थिति में आदर्श पीछे रह जाते हैं।

(ग) धर्म को धोखा नहीं दिया जा सकता है, कानून को बिया जा सकता है।
उत्तर:
भारतवर्ष कानून को धर्म के रूप में देखता आ रहा था, पर अब इस स्थिति में अंतर आ गया है। अब एसा माना जान लगा है कि धर्म तो पवित्र है अत: उसे धोखा नहीं दिया जा सकता। धर्मभीरु लोग भी कानून को धोखा दे देते हैं।

(घ) महान् भारतवर्ष को पाने की संभावना बनी हुई है, बनी रहेगी।
उत्तर:
इसका आशय यह है कि भारतवर्ष की महानता को फिर से स्थापित करना कठिन नहीं है। उसे महान बनाया जा सकता है। हमें वर्तमान परिस्थितियों में निराश नहीं होना चाहिए। वर्तमान कमियाँ क्षणिक हैं, इन पर काबू पाया जा सकता है।

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प्रश्न 14.
‘बुराई में रस लेना बुरी बात है, अच्छाई में उतना ही रस लेकर उजागर न करना और भी बुरी बात है।’ क्यों ?
उत्तर:
सामान्यतः लोग दूसरों की बुराई करने में रस लेते हैं। इसमें उन्हें एक खास प्रकार का मजा आता है। यह एक बुरी प्रवृत्ति है। हम दूसरों की अच्छी बातों को उतनी रुचि के साथ प्रकट नहीं करते, जबकि हमें ऐसा करना चाहिए। अच्छी बातों को प्रकट करना हमारा कर्तव्य है।

प्रश्न 15.
‘क्या निराश हुआ जाए’ पाठ के शीर्षक से आप कहाँ तक सहमत हैं ?
उत्तर:
इस पाठ के शीर्षक से हम पूरी तरह सहमत हैं। इसका कारण यह है कि लेखक वर्तमान निराशाजनक परिस्थितियों से लोगों को उबारना चाहता है। वह प्रश्न करके अपनी चिंता अभिव्यक्त करता है। इस शीर्षक का तात्पर्य है- निराश होने की आवश्यकता नहीं है। यह शीर्षक पूरी तरह उचित है।

प्रश्न 16.
किस प्रकार के आचरण को निकृष्ट (घटिया) कहा गया है?
उत्तर:
जो लोग गरीबों के कल्याण के लिए सरकार द्वारा बनाई गई योजनाओं के लिए मिले धन को बीच में ही हड़प लेते हैं.ऐसे नेताओं और अधिकारियों के जीवन को लेखक ने निकृष्ट (नीचतापूर्ण) कहा है।

प्रश्न 17.
‘उनके चेहरे पर विचित्र संतोष की गरिमा थी। मैं चकित रह गया।’ उपर्युक्त पंक्तियों में संकेतित घटना का संक्षेप में वर्णन करो।
उत्तर:
एक बार टिकट लेते समय लेखक ने भूल से बाबू को दस रुपये की जगह सौ का नोट दे दिया। टिकट लेकर वह निश्चिंत होकर रेल के डिब्बे में जा बैठा। बहुत देर बाद टिकट बाबू उसे ढूंढता हुआ आया। उसने लेखक को नब्बे रुपये लौटा दिए और कहा, ‘अच्छा हुआ आप मिल गए’। उस समय उस बाबू के मुख पर विचित्र संतोष का गौरव था। लेखक को इस ईमानदारी पर आश्चर्य हुआ।

प्रश्न 18.
समाज में पाई जाने वाली अच्छाइयों में से एक अच्छाई नीचे दी गई है। ऐसी ही तीन अच्छाइयाँ और बताइए समाज महिलाओं का सम्मान करता है।
उत्तर:
अन्य अच्छाइयाँ:
(क) दूसरों की सेवा करने को प्रशंसनीय गुण माना जाता है।
(ख) ईमानदारी की सर्वत्र प्रशंसा की जाती है।
(ग) आध्यात्मिकता को गुण माना जाता है।

प्रश्न 19.
जीवन के मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था क्यों हिलने लगी है ? सही उत्तर छाँटिए:
(क) मानवीय मूल्य के अर्थ बदल गए हैं।
(ख) गाँधी और तिलक का भारत अतीत में डूब गया है।
(ग) श्रमजीवी पिस रहे हैं और फरेब का रोजगार करने वाले फल-फूल रहे हैं।
(घ) आज मानवीय मूल्यों का कोई महत्त्व नहीं रह गया है।
उत्तर:
(ग) श्रमजीवी पिस रहे हैं और फरेब का रोजगार करने वाले फल-फूल रहे हैं।

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क्या निराश हुआ जाए गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. मेरा मन कभी-कभी बैठ जाता है। समाचार-पत्रों में ठगी, डकैती, चोरी, तस्करी और भ्रष्टाचार के समाचार भरे रहते हैं। आरोप-प्रत्यारोप का कुछ ऐसा वातावरण बन गया है कि लगता है, देश में कोई ईमानदार आदमी ही नहीं रह गया है। हर व्यक्ति संदेह की दृष्टि से देखा जा रहा है।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित निबंध ‘क्या निराश हुआ जाए’ से अवतरित है। इसमें लेखक ने यह समझाने का प्रयास किया है कि हमें जीवन में निराश नहीं होना चाहिए। जीवन के प्रति आशावान बने रहना चाहिए।

व्याख्या:
लेखक का कहना है कि समाचार-पत्रों में विभिन्न प्रकार की बुराइयों के समाचार पढ़कर मन में निराशा आ जाना स्वाभाविक है। चोरी-डकैती, ठगी, तस्करी और भ्रष्टाचार आदि के समाचारों से अखबार भरे रहते हैं। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाता है, बदले में दूसरा व्यक्ति भी वैसा ही करता है।

इस स्थिति को देखकर ऐसा लगता है कि कोई भी आदमी ईमानदार नहीं रह गया है। सभी बेईमान प्रतीत होते हैं। अब हर आदमी, संदेह के घेरे में है। किसी के प्रति आदर-सम्मान रह ही नहीं गया है।

2. यह सही है कि इन दिनों कुछ ऐसा माहौल बना है कि ईमानदारी से मेहनत करके जीविका चलाने वाले निरीह और भोले-भाले श्रमजीवी पिस रहे हैं और झूठ तथा फरेब का रोजगार करने वाले फल-फूल रहे हैं। ईमानदारी को मूर्खता का पर्याय समझा जाने लगा है, सच्चाई केवल भीरू और बेबस लोगों के हिस्से पड़ी है। ऐसी स्थिति में जीवन के महान मूल्यों के बारे में लोगों की आस्था ही हिलने लगी है।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक वसंत भाग-3 में संकलित निबंध ‘क्या निराश हुआ जाए’ से अवतरित हैं। इसके रचयिता हजारी प्रसाद द्विवेदी हैं।

व्याख्या:
लेखक का कहना है कि भारत का वर्तमान माहौल कुछ निराशाजनक दिखाई देता है। इस माहौल में ईमानदार और मेहनती लोगों को अधिक परेशानी का सामना करना पड़ा रहा है। मेहनतकश वर्ग पिस रहा है। इन्हें रोजी-रोटी कमाने में बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। झूठे एवं धोखेबाज फलते-फूलते नजर आ रहे हैं।

वर्तमान समय में ईमानदारों को मूर्ख समझा जाने लगा है। जो लोग डरपोक और बेबस हैं वे ही सच्चाई के रास्ते पर चल रहे हैं। ऐसा वातावरण लोगों को जीवन मूल्यों से डिगाने में सहायक हो रहा है। अब उन मूल्यों से लोगों का विश्वास ही खत्म होता जा रहा है। यह स्थिति सुखद नहीं है।

माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

3. भारतवर्ष ने कभी भी भौतिक वस्तुओं के संग्रह को बहुत अधिक महत्त्व नहीं दिया है। उसकी दृष्टि से मनुष्य के भीतर जो महान् आंतरिक गुण स्थिर भाव से बैठा हुआ है, वही चरम और परम है। लोभ-मोह, काम-क्रोध आदि विचार मनुष्य में स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहते हैं, पर उन्हें प्रधान शक्ति मान लेना और अपने मन तथा बुद्धि को उन्हीं के इशारों पर छोड़ देना बहुत बुरा आचरण है।

प्रसंग:
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक वसंत भाग-3 में संकलित निबंध ‘क्या निराश हुआ जाए’ से अवतरित हैं। इसके रचयिता हैं-हजारी प्रसाद द्विवेदी। इसमें लेखक ने यह समझाने की कोशिश की है कि हमें वर्तमान परिस्थितियों में निराश नहीं होना चाहिए।

व्याख्या:
लेखक बताता है कि भारतवर्ष में सुख-सुविधाओं की वस्तुओं को जमा करने को कभी महत्त्वपूर्ण नहीं माना गया। यहाँ आध्यात्मिक ज्ञान को पाने का प्रयास किया गया है। मनुष्य के अंदर जो आत्मा के रूप में परम सत्ता विराजमान है उसी को पाने का लक्ष्य रखा गया है तथा उसी को महान माना गया है।

यह सत्य है कि व्यक्ति के अंदर काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि विकार (बुराइयाँ) विद्यमान रहते हैं. पर उन्हें मुख्य ताकत नहीं मान लेना चाहिए। यदि हम अपने मन और बुद्धि को उन्हीं के इशारों पर चलाने लगेंगे तो यह बहुत घटिया बात होगी। हमें तो इन विकारों पर अपना नियंत्रण रखना है। इन्हें अपने ऊपर हावी नहीं होने देना है।

4. दोषों का पर्दाफाश करना बुरी बात नहीं है। बुराई यह मालूम होती है कि किसी के आचरण के गलत पक्ष को उघाटित करके उसमें रस लिया जाता है और दोषोद्घाटन को एकमात्र कर्तव्य मान लिया जाता है। बुराई में रस लेना बुरी बात है, अच्छाई को उतना ही रस लेकर उजागर न करना और भी बुरी बात है।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘वसंत भाग-3’ में संकलित निबंध ‘क्या निराश हुआ जाए’ से अवतरित है। लेखक वर्तमान स्थिति की समीक्षा करते हुए कहता है:

व्याख्या:
दोषों अर्थात् बुराइयों को उजागर करने में कोई गल्लत बात नहीं है, पर ऐसा करते समय हमें उसमें रस नहीं लेना चाहिए। किसी के गलत व्यवहार को सबके सामने बताते समय उसे सामान्य ढंग से ही कहना चाहिए उसे चटखारे लेकर नहीं सुनाना चाहिए। केवल दोषों को उद्घाटित करना ही हमारा लक्ष्य नहीं होना चाहिए। यदि किसी की बुराई में तुम रस लेते हो तो उसकी अच्छी बात को भी उतना ही रस लेकर प्रकट करो। यदि तुम ऐसा नहीं करते तो यह एक बुरी प्रवृत्ति है। दूसरों की अच्छाई को भी प्रकट करना चाहिए।

5. कैसे कहूँ कि मनुष्यता एकदम समाप्त हो गई। कैसे कहूँ कि लोगों में दया-माया रह ही नहीं गई। जीवन में न जाने कितनी ऐसी घटनायें हुई हैं जिन्हें मैं भूल नहीं सकता।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘वसंत भाग-3’ में संकलित निबंध ‘क्या निराश हुआ जाए’ से अवतरित है। लेखक वर्तमान स्थिति की समीक्षा करते हुए हमसे निराश न होने के लिए कहता है:

व्याख्या:
लेखक के पास ऐसे पर्याप्त उदाहरण मौजूद हैं जो उसे जीवन के प्रति आस्थावान बनाते हैं। लेखक का मत है कि अभी ऐसी स्थिति नहीं आई है। कि हम मान बैठे कि मनुष्यता बिल्कुल ही समाप्त हो गई है। ऐसा भी कोई कारण दृष्टिगोचर नहीं होता कि हम यह मान बैठे कि लोगों में दया-माया शेष नहीं रह गई है। लेखक के मन-मस्तिष्क पर अनेक ऐसी घटनाएं उपस्थित हैं। जिन्हें वह कभी नहीं भुला सकता अर्थात् उन घटनाओं से वह इतना अधिक अभिभूत है कि उसे विश्वास होता है कि अभी तक समाज में अच्छे लोगों की कमी नही है।

माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

6. ठगा भी गया हूँ, धोखा भी खाया है, परंतु बहुत कम स्थलों पर विश्वासघात नाम की चीज मिलती है। केवल उन्हीं बातों का हिसाब रखो, जिनमें धोखा खाया है तो जीवन कष्टकर हो जाएगा, परंतु ऐसी घटनाएँ भी बहुत कम नहीं हैं जब लोगों ने अकारण सहायता की है, निराश मन को डाँढस दिया है और हिम्मत बंधाई है।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित निबंध ‘क्या निराश हुआ जाए’ से अवतरित है। इसमें लेखक ने वर्तमान परिस्थितियों का विश्लेषण करते हुए आशावादी दृष्टिकोण अपनाने का परामर्श दिया है।

व्याख्या:
लेखक बताता है कि उन्हें स्वयं भी अनेक बार दूसरों ने ठगा है। वे कई बार धोखा भी खा गए हैं। इसके बावजूद विश्वासघात जैसी बात बहुत कम मौकों पर देखने को मिली है। हमें केवल उन्हीं बातों को याद नहीं रखना जिनमें हमने धोखा खाया है। यदि ऐसा किया गया तो हमारा जीवन मुसीबतों से भर जाएगा। हमें अच्छी बातों को ही स्मरण रखना चाहिए। जीवन में ऐसे अवसर भी काफी आते हैं जब दूसरे लोग बिना किसी स्वार्थ के हमारी सहायता करते हैं और मुसीयत की घड़ी में हमारी हिम्मत बंधाते हैं।

भाव यह है कि हमें बुरी बातों को भुलाकर अच्छी बातों को याद रखना चाहिए। इसी से हमारा जीवन सुखमय बन सकेगा।

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क्या निराश हुआ जाए Summary in Hindi

क्या निराश हुआ जाए पाठ का सार

हर रोज हम समाचार-पत्रों में ठगी, डकैती, चोरी, तस्करी, भ्रष्टाचार आदि के समाचार पढ़ते हैं। लगता है, देश में कोई ईमानदार आदमी नहीं रहा। परंतु लेखक का मत है कि निराश होने की आवश्यकता नहीं। भारत महान था और रहेगा।

एक बड़े आदमी ने लेखक से कहा कि देश में फैली बुराइयों का सबसे बड़ा कारण यह है कि यहाँ जो खून-पसीना एक करके काम करता है, वह भूखों मरता है, धोखे से काम करने, और कुछ काम न करने वाले मौज उड़ाते हैं।

हमारे बनाए कानूनों में भी कुछ भूलें हैं। एक ओर शताब्दियों से चली आई भावनाएँ और मर्यादाएँ हैं, दूसरी ओर गरीबों की भलाई के लिए बनाए गए नये-नये कानून हैं। पुरानी मर्यादाओं और नए कानूनों में जब विरोध और टकराव होता है, तो स्थिति बिगड़ती है।

संसारी सुखों और बाहरी दिखावे को बहुत अधिक महत्त्व देने से भी भ्रष्टाचार बहुत बढ़ा है। भारत में धन को इतना महत्त्व कभी नहीं दिया गया और रिश्वत, लोभ, मोह आदि को कभी अच्छा नहीं माना गया।

यहाँ करोड़ों पिछड़े हुए और कंगाल लोगों की दशा सुधारने के लिए जो प्रयत्न कृषि, दस्तकारी और उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए किए जा रहे हैं, उनसे वास्तविक उद्देश्य पूर्ण नहीं हो रहा। सारा लाभ बीच के अधिकारी (अफसर) और चालाक धूर्त हड़प लेते हैं। . जितने कानून बनते हैं, उतने उनके छिद्र ढूँढकर, उनसे बचने के उपाय सोच लिए जाते हैं। कुछ लोग लोभ-मोह को ही सब कुछ मानने लगे हैं। पुराने अच्छे आदर्शों और संस्कारों को रूढ़िवादी और घिसा-पिटा मानकर उनकी खूब निंदा की गई। इससे भ्रष्टाचार बढ़ गया।

उपाय: लेखक का मत है कि केवल कानून बनाने और उसके भय से भ्रष्टाचार समाप्त नहीं हो सकता। भारत की परंपरा के अनुसार कानून से धर्म को अधिक मान दिया जाना चाहिए। लोग कानून से उतना नहीं डरते, जितना धर्म से डरते हैं। ईमानदारी, दया, सहानुभूति, सत्य, सेवा और भक्ति को अधिक महत्त्व दिया जाए। समाचार पत्रों में जो भ्रष्टाचार के समाचार छपते हैं, उनसे पता चलता है कि लोग तस्करी, रिश्वत, लूटमार आदि से दुःखी और परेशान हैं।

लेखक का कहना है कि बुरे कामों व अनुचित तरीकों का भंडाफोड़ करना अच्छी बात है, पर लोग इन बुरी बातों को पढ़ने में स्वाद (मजा) लेते हैं और यह बहुत बुरी बात है। देश में सैकड़ों अच्छी बातें, ईमानदारी और सच्चाई की घटनाएं होती हैं। पर उनकी तरफ कोई ध्यान नहीं देता। एक बार लेखक टिकट खरीदते हुए भूल से दस रुपये की जगह सौ का नोट दे आया। बहुत देर बाद टिकट क्लर्क ने ढूंढते हुए आकर उसके नब्बे रुपये लौटाए। एक बार वह परिवार सहित बस द्वारा कहीं जा रहा था। रात थी, जंगल था, डाकुओं का डर था। बस रुकी । कंडक्टर उसकी छत से साइकिल उतारकर कहीं चला गया। लोगों ने समझा, वह डाकुओं को बुलाने गया है।

लोग ड्राइवर को पीटने को उतारू हो गए। लेखक ने ड्राइवर को बचाया। बहुत देर बाद सामने से खाली बस आई। उसी में लेखक वाली बस का कंडक्टर भी था। कंडक्टर ने कहा-यह बस चलने लायक नहीं थी। वह शहर से दूसरी बस लाया है। लेखक ने जीवन में कई बार धोखा खाया, परंतु इसके विपरीत उसे ईमानदार, साहसी और सहारा देने वाले लोग अधिक मिले। इसलिए निराश नहीं होना चाहिए।

क्या निराश हुआ जाए शब्दार्थ

आरोप = दोष (allegation), गुण = विशेषता (quality), अतीत = पुराना बीता हुआ (past), गह्वर = गुफा, गहराई (cave, deep), आदर्श = अनुकरणीय (Ideal), मनीषियों = चिंतन करने वाले (thinker), माहौल = वातावरण (atmosphere), जीविका = गुजारा (livelihood), श्रमजीवी = मेहनत पर जीने वाले (labourer), मूर्खता = बेवकूफी (foolishness), पर्याय = उसी जैसा (synonym), भीरू = डरपोक (coward), आस्था = विश्वास (belief), त्रुटि = भूल (error), विधि = नियम (rule), निषेध = रोक (prohibited), परीक्षित = जाँचे हुए (tested), हताश = निराश (distress), संग्रह में जोड़ना (collection), आंतरिक = भीतरी (internal), विद्यमान = मौजूद (present), प्रधान शक्ति = मुख्य ताकत (main power), निकृष्ट = घटिया (below standard), आचरण , बर्ताव (behaviour), संयम = काबू से (control), प्रयत्न = कोशिश (effort), दरिद्र = गरीब (poor), अवस्था = हालत (condition), लक्ष्य = ध्येय (aim), विस्तृत = अधिक फैले हुए (wide), विकार = बुराई (bad element), मजाक = हँसी (mockery), उपयोगी = लाभदायक (useful), पर्याप्त = काफी (sufficient), प्रमाण = सबूत (evidence), नष्ट = समाप्त (destroy), पीड़ा = दु:ख (pain), आक्रोश = गुस्सा (anger), पर्दाफाश = कलई खोलना (exposed), उजागर = स्पष्ट (clear), चकित = हैरान (surprise), लुप्त = गायब (disappear),अवांछित = जो चाही न जाएँ (unwanted), निर्जन = जहाँ कोई आदमी न हो (lonely), भयभीत = डरा हुआ (terrorised), व्याकुल = बेचैन (restlessness), विश्वासघात = धोखा (treachery), अकारण = बिना वजह (without reason), ज्योति = रोशनी की लौ (light), संभावना = उम्मीद (possibility), निरीह = असहाय, बेचारा (helpless), मूल्य = जीवन मूल्य आदर्श (values of life), विधि-निषेध = करने न करने के नियम, आलोड़ित = उथल-पुथल, हिलोरें करता हुआ (waving), विकार = बुराई, दोष (demerit), दकियानूसी = पुराने विचारों का (orthodox), प्रतिष्ठा = सम्मान (regard), दोषोद्घाटन = बुराइयाँ उजागर करना, अवांछित = अनचाही (unwanted), कातरमुद्रा = डरा हुआ रूप (frightened), वंचना = धूर्तता, जवाब दे देना = खराब हो जाना, हिसाब बनाना = योजना बनाना (toplan), चेहरे पर हवाइयाँ उड़ना = डर जाना, घबरा जाना (purplexed).

Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 6 भगवान के डाकिये Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 6 भगवान के डाकिये

HBSE 8th Class Hindi भगवान के डाकिये Textbook Questions and Answers

कविता से

भगवान के डाकिए कविता की व्याख्या HBSE 8th Class प्रश्न 1.
कवि ने पक्षी और बावल को भगवान के डाकिए क्यों बताया है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
कवि ने पक्षी और बादल को भगवान के डाकिए इसलिए बताया है क्योंकि वे भगवान के संदेश को हम तक लाते हैं।

भगवान के डाकिए प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 2.
पक्षी और बादल द्वारा लाई गई चिट्ठियों को कौन-कौन पढ़ पाते हैं ? सोचकर लिखिए।
उत्तर :
पक्षी और बादल द्वारा लाई गई चिट्ठियों को पेड़-पौधे, पानी और पहाड पढ़ पाते हैं।

Bhagwan Ke Dakiye Class 8 HBSE प्रश्न 3.
किन पंक्तियों का भाव है:
(क) पक्षी और बादल प्रेम, सद्भाव और एकता का संदेश एक देश से दूसरे देश को भेजते हैं।
उत्तर :
पक्षी और बादल एक-दूसरे देश में जा-जाकर वहाँ प्रेम. सदभाव और एकता की भावना का प्रसार करते हैं।

(ख) प्रकृति देश-देश में भेदभाव नहीं करती। एक देश से उठा बादल दूसरे वेश में बरस जाता है।
उत्तर :
प्रकृति किसी भी देश से पक्षपात नहीं करती। एक देश में जब भाप उठकर बादल का रूप ले लेती है तब वह दूसरे देश में जाकर वर्षा रूप में बरस जाती है।

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Bhagwan Ke Dakiye Prashn Uttar HBSE 8th Class प्रश्न 4.
पक्षी और बादल की चिट्ठियों में पेड़-पौधे, पानी और पहाड़ क्या पढ़ पाते हैं ?
उत्तर :
पक्षी और बादल की चिट्ठियों में पेड़-पौधे, पानी और पहाड़ भगवान के भेजे संदेश को पढ़ पाते हैं।

Bhagwan Ke Dakiye Kavita Ka Saar HBSE 8th Class प्रश्न 5.
‘एक देश की धरती दूसरे देश को सुगंध भेजती है’-कथन का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस कथन का आशय है कि एक देश अपने प्रेम-प्यार के संदेश को पक्षियों के पंखों के माध्यम से दूसरे देश को भेजता है।

पाठ से आगे

भगवान के डाकिए Summary HBSE 8th Class प्रश्न 1.
पक्षियों और बादल की चिट्ठियों के आवान-प्रदान को आप किस दृष्टि से देख सकते हैं?
उत्तर :
पक्षियों और बादल की चिट्ठियों के आदान-प्रदान को हम प्रेम-प्यार और आपसी सद्भाव की दृष्टि से देख सकते हैं।

Bhagwan Ke Dakiye HBSE 8th Class प्रश्न 2.
आज विश्व में कहीं भी संवाद भेजने और पाने का एक बड़ा साधन इंटरनेट है। पक्षी और बावल की चिड्डियों की तुलना इंटरनेट से करते हुए दस पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर :
आज विश्व में कहीं भी संवाद भेजने और पाने का एक बड़ा साधन है-इंटरनेट।
पक्षी और बादल की चिट्ठियाँ हमें भली प्रकार समझ नहीं आती, पर पेड़. पौधे, पानी, पहाड़ उन्हें भली प्रकार समझ पाते हैं।
इंटरनेट सूचनाओं का एक विस्तृत जाल है। इसमें बहुत कुछ समाया हुआ है। इंटरनेट के माध्यम से संसार की किसी भी सूचना को तुरंत प्राप्त किया जा सकता है। इसे सभी समझ सकते हैं।

Bhagwan Ke Dakiye HBSE 8th Class प्रश्न 3.
हमारे जीवन में डाकिए की भूमिका पर दस बाक्य लिखिए।
उत्तर :
हमारे जीवन में डाकिए की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। आज भी डाकिया दूर-दराज बसे गाँवों तक हमारे पत्र एवं मनीआर्डर पहुंचाता है।

  • डाकिया ग्रामीण जन-जीवन का एक सम्मानित सदस्य माना जाता है।
  • डाकिया कम वेतन पाकर भी अपना काम अत्यंत परिश्रम एवं लगन के साथ संपन्न करता है।
  • डाकिया का महत्त्व अभी भी बना हुआ है, भले ही अब कंप्यूटर और ई-मेल का जमाना आ गया है।
  • डाकिया से हमारा व्यक्तिगत सम्पर्क होता है। (अन्य वाक्य विद्यार्थी स्वयं लिखें।)

अनुमान और कल्पना

डाकिया, इंटरनेट के वल्ड वाइड वेब (डब्ल्यू डब्ल्यू, डब्ल्यू. www) तथा पक्षी और बादल-इन तीनों संवाववाहकों के विषय में अपनी कल्पना से एक लेख तैयार कीजिए। “चिट्ठियों की अनूठी दुनिया ” पाठ का सहयोग ले सकते हैं।
उत्तर :
इस प्रकार का लेख विद्यार्थी अपनी कल्पना से स्वयं तैयार करें। इसके लिए पिछला पाठ भी पढ़ें।

  • इंटरनेट में विश्व भर की जानकारी भर दी गई है।

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भगवान के डाकिये काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. पक्षी और बादल,
ये भगवान के डाकिए हैं,
जो एक महादेश से
दूसरे महादेश को जाते हैं।
हम तो समझ नहीं पाते हैं
मगर उनकी लाई चिट्ठियों पेड़,
पौधे, पानी और पहाड़ बाँचते हैं।

शब्दार्थ : महावेश – विशाल देश, महाद्वीप (continents), बाँचते हैं – पढ़ते हैं (Reads)।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘वसंत भाग-3’ में संकलित कविता ‘भगवान के डाकिए’ से अवतरित हैं। इसके रचयिता राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ हैं। कवि पक्षी और बाटानों को भगवान के डाकिए बताता है।

व्याख्या :
कवि का कहना है कि पक्षी और बादल भगवान के संदेश को हम तक पहुंचाने वाले डाकिए हैं। ये किसी देश की सीमा से बँधकर नहीं रहते। ये तो एक बड़े देश (महाद्वीप) से दूसरे महादेश (महाद्वीप) तक चले जाते हैं। हम सामान्यजन तो उनकी लाई चिट्ठियों को नहीं समझ पाते हैं, पर उन्हें पेड़, पौधे, पानी और पहाड़ भली प्रकार पढ़ लेते हैं। प्रकृति के ये विविध उपादान पक्षी और बादल से प्रभावित होते हैं। इन्हें उनकी भाषा समझ आ जाती है।

विशेष :

  1. प्रकृति को संदेशवाहक के रूप में प्रस्तुत किया गया है।
  2. पेड़, पौधे, पानी, पहाड़ में ‘च’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है।

2. हम तो केवल यह आँकते हैं
कि एक देश की धरती
दूसरे देश को सुगंध भेजती है।
और वह सौरभ हवा में तैरते हुए
पक्षियों की पाँखों पर तिरता है।
और एक देश का भाप
दूसरे देश में पानी
बनकर गिरता है।

शब्दार्थ : आँकते हैं – अनुमान करते हैं (to guess), सौरभ – सुगंध, खुशबू (fragrant), पाँख – पंख (feathers), दूसरे देश को सुगंध भेजती है = प्रेम-प्यार का संदेश भेजती है (message of love)|

प्रसंग :
प्रस्तुत काव्यांश रामधारी सिंह दिनकर की कविता ‘भगवान के डाकिए’ से अवतरित है। इस कविता में कवि ने पक्षी और बादल को भगवान के डाकिए बताया है।

व्याख्या :
कवि कहता है कि हम पक्षी और बादल के संदेश को भले ही न पढ़ पाते हों, पर इतना अनुमान अवश्य लगा लेते हैं कि एक देश की धरती दूसरे देश के लोगों को प्रेम-प्यार का संदेश भेजती रहती है। पक्षी और बादल प्रेम, सद्भाव और एकता का संदेश एक देश से दूसरे देश को भेजते रहते हैं। ऐसा लगता है कि हवा में उड़ते हुए पक्षियों के पंखों पर प्रेम-प्यार की सुगंध तैरकर दूसरे देश तक पहुँच जाती है। प्रकृति भी किसी देश के साथ भेदभाव नहीं करती। वह भौगोलिक बंधनों को भी स्वीकार नहीं करती। यही कारण है कि एक देश में उठा बादल दूसरे देश में जाकर बरस जाता है। वर्षा देश-सीमा का बंधन नहीं मानती।।

विशेष :

  1. कवि प्रकृति के निष्पक्ष रूप का वर्णन करता
  2. ‘पक्षियों की पाँखों पर’ में अनुप्रास अलंकार की छटा

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भगवान के डाकिये Summary in Hindi

भगवान के डाकिये कवि-परिचय

जीवन-परिचय :
श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म सन् 1908 ई. में बिहार राज्य के मुंगेर जिले के सिमरिया घाट नामक ग्राम के एक साधारण किसान परिवार में हुआ। स्थानीय पाठशाला में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत पटना कॉलेज से सन् 1932 ई. में बी. ए. (इतिहास में प्रतिष्ठा, Hons, in History) की परीक्षा उत्तीर्ण की। कुछ दिन अध्यापन कार्य किया। सन् 1947 से 1950 ई. तक उन्होंने जन-संपर्क विभाग में निदेशक के पद पर कार्य किया।

3फिर कुछ समय तक लंगर सिंह कॉलेज में हिंदी विभाग के अध्यक्ष रहे। सन् 1952 में आपको राज्य सभा का सदस्य मनोनीत किया गया। सन् 1964 ई. में भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति नियुक्त हुए परन्तु सन् 1965 में त्यागपत्र देने पर आपको केंद्रीय सरकार का हिंदी सलाहकार नियुक्त किया गया। भारत सरकार ने दिनकर जी को उनकी उल्लेखनीय सेवाओं के लिए ‘पद्मभूषण’ उपाधि से सम्मानित किया। उन्हें ‘संस्कृति के चार अध्याय’ पर साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा ‘उर्वशी’ पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। 19 मई सन् 1974 ई. को दिनकर जी का देहांत हो गया।

रचनाएँ :
दिनकर जी की प्रमुख गद्य रचनाएँ हैं-संस्कृति के चार अध्याय, रेती के फूल, मिट्टी की ओर, अर्द्ध नारीश्वर, शुद्ध कविता की खोज, उजली आग, साहित्यमुखी काव्य की भूमिका, लोकदेव नेहरू, देश विदेश आदि।

काव्य-रचनाएँ : रेणुका, हुंकार, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, सामधेनी, उर्वशी, रसवंती, परशुराम की प्रतीक्षा, हारे को हरिनाम।

साहित्यिक विशेषताएँ :
यद्यपि दिनकर जी की ख्याति का आधार काव्य है तथापि गद्य पर भी उन्हें समान अधिकार प्राप्त था। वे आशावादी कवि थे। उनके काव्य में राष्ट्रीयता एवं भारतीय संस्कृति के स्वर मुखरित हुए हैं। उनकी प्रारंभिक कविताएँ छायावादी हैं। बाद में उन्होंने मनुष्य को समाज में अग्रसर होने की प्रेरणा देने वाले साहित्य की रचना की। दिनकर जी ने साहित्य, समाज, संस्कृति, राजनीति तथा अन्य समसामयिक विषयों पर मर्मस्पर्शी तथा विचारोत्तेजक लेख लिखे। उन निबंधों में राष्ट्रीयता की स्पष्ट झलक है। वे गाँधी विचारधारा तथा मानवतावादी दृष्टिकोण से भी अभिप्रेरित हैं।

भगवान के डाकिये कविता का सार

कवि पक्षी और बादल को भगवान के डाकिए बताता है। जिस प्रकार डाकिए संदेश लाने का काम करते हैं उसी प्रकार पक्षी और बादल भगवान का संदेश हम तक लाते हैं। उनकं लाए संदेश को हम भले ही न समझ पाएँ पर पेड़, पौधे, पानी और पहाड़ उसे भली प्रकार पढ़-समझ लेते हैं। हम तो उल इतना भर आँकते हैं कि एक देश की धरती दूसरे देश को खुशबू भेजती है। पक्षियों के पंखों पर संगध तैरती है। एक देश का भाप दूसरे देश में पानी बनकर गिरता है। प्रकृति के लिए सीमाओं का बंधन नहीं होता।

Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 5 चिट्ठियों की अनूठी दुनिया Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 5 चिट्ठियों की अनूठी दुनिया

HBSE 8th Class Hindi चिट्ठियों की अनूठी दुनिया Textbook Questions and Answers

पाठ से

चिट्ठियों की अनूठी दुनिया HBSE Class 8 प्रश्न 1.
पत्र जैसा संतोष फोन या एस एम एस का संदेश क्यों नहीं दे सकता?
उत्तर:
पत्र में हम अपने हृदय के भावों को स्पष्ट रूप में अभिव्यक्त कर सकते हैं जबकि फोन या एस एम एस में बात संक्षेप में ही कही जाती है। पत्र लिखकर ही पूरी संतुष्टि मिलती है। पत्र में आत्मीयता की भावना समाई रहती है जबकि फोन या एस एम एस केवल कामकाजी बात करते हैं। पत्रों को सहेजकर रखा जा सकता है जबकि फोन या एस एम एस को नहीं।

चिट्ठियों की अनूठी दुनिया पाठ का सारांश HBSE Class 8 प्रश्न 2.
पत्र को खत, कागद, उत्तरम, जाबू, लेख, काडिद, पाती, चिट्ठी इत्यादि कहा जाता है। इन शब्दों से संबंधित भाषाओं के नाम बताइए।
उत्तर:

शब्द संबंधित भाषा
खत उर्दू
कागद कन्नड़
उत्तरम, जाबू, लेख तेलुगु
काडिद तमिल
पाती, चिट्ठी हिंदो पत्र संस्कृत

Chitiyon Ki Anuthi Duniya HBSE Class 8 प्रश्न 3.
पत्र-लेखन की कला के विकास के लिए क्या-क्या प्रयास हुए? लिखिए।
उत्तर:
पत्र-लेखन की कला के विकास के लिए निम्नलिखित प्रयास हुए:

  • पत्र-संस्कृति विकसित करने के लिए स्कूली पाठ्यक्रमों
  • में पत्र-लेखन का विषय शामिल किया गया।
  • विश्व डाक संघ की ओर से 16 वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों के लिए पत्र-लेखन प्रतियोगिताओं का सिलसिला 1972 ई. से शुरू किया गया।

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Class 8th Vasant Chapter 5 HBSE  प्रश्न 4.
पत्र धरोहर हो सकते हैं, लेकिन एस एम एस क्यों नहीं? तर्क सहित अपना विचार लिखिए।
उत्तर:
पत्र प्रेरणा देते हैं अतः लोग उन्हें धरोहर की तरह सहेजकर रखते हैं। पत्र चूँकि लिखित रूप में होते हैं अत: सहेजकर रखे जा सकते हैं। पर एस एम एस को सहेजकर नहीं रखा जाता। इनमें केवल कामकाज की बात होती है। इसे लोग जल्दी ही भूल जाते हैं। भला आप कितने संदेशों को सहेजकर रख सकते हैं। तमाम महान हस्तियों की यादगार तो इनके लिखे पत्रों में होती है अत: उनके लिखे पत्र धरोहर हो सकते हैं।

पाठ 5 चिट्ठियों की अनूठी दुनिया Summary HBSE Class 8 प्रश्न 5.
क्या चिद्वियों की जगह कभी फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल ले सकते हैं?
उत्तर:
फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल कभी भी चिट्ठियों की जगह नहीं ले सकते। ये सब संचार के आधुनिक साधन अवश्य हैं। इनसे व्यावसायिक कामकाज तो चलाया जा सकता है, पर इनमें पत्रों के गुण नहीं आ सकते। पत्र से आत्मीयता का जो बोध होता है वह इनमें नहीं आ सकता। लोग पत्रों को संभालकर रखते हैं. पर फैक्स, ई-मेल या टेलीफोन और मोबाइल के संदेश अपनी सूचना देकर अर्थहीन हो जाते हैं। पत्रों के संकलन साहित्य का रूप भी ले लेते हैं।

पाठ से आगे

चिट्ठियों की अनूठी दुनिया प्रश्न उत्तर HBSE Class 8  प्रश्न 1.
किसी को बिना टिकट सादे लिफाफे पर सही पता लिखकर पत्र बैरंग भेजने पर कौन-सी कठिनाई आ सकती है? पता कीजिए।
उत्तर:
सही पता लिखने पर पत्र अपने ठिकाने पर तो पहुँच जाएगा पर संबंधित व्यक्ति को तभी मिलेगा जब वह डाक टिकट तथा जुर्माने का भुगतान करेगा। अतः लिफाफे पर उणि डाक टिकट अवश्य लगानी चाहिए।

चिट्ठियों की अनूठी दुनिया के शब्दार्थ HBSE Class 8 प्रश्न 2.
पिन कोड भी संख्याओं में लिखा गया एक पता है, कैसे?
उत्तर:
पिन कोड से उस क्षेत्र का पता चल जाता है जहाँ पत्र भेजा गया है।
पहले अंकों में शहर का संकेत है, फिर उस क्षेत्र, नगर या कॉलोनी का पता होता है। जैसे 110059 पिन कोड है।
1100 दिल्ली का संकेत है।
59 पश्चिमी दिल्ली के जनकपुरी- क्षेत्र का कोड है।
पिन कोड संख्याओं में लिखा पता भले ही हो, पर यह पूरा पता नहीं है। इससे किसी निश्चित मकान या व्यक्ति तक नहीं पहुँचाया जा सकता। पिन कोड से पत्र की छंटाई में सुविधा अवश्य
होती है। इससे पत्र जल्दी पहुँचता है।

चिट्ठियों की अनूठी दुनिया शब्दार्थ HBSE Class 8 प्रश्न 3.
ऐसा क्यों होता था कि महात्मा गाँधी को दुनिया भर से पत्र ‘महात्मा गाँधी-इंडिया’ पता लिखकर आते थे?
उत्तर:
ऐसा इसलिए होता था क्योंकि उन दिनों महात्मा गाँधी सर्वाधिक लोकप्रिय एवं चर्चित व्यक्ति थे। वे कहाँ होंगे,
इसका पता सभी को रहता था। अतः पत्र कहीं से आया हो, उन तक पहुंच जाता था। यह उनकी लोकप्रियता का पर्याय था।

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अनुमान और कल्पना

1. रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की कविता ‘भगवान के डाकिए’ आपकी पाठ्यपुस्तक में है। उसके आधार पर पक्षी और बादल को डाकिए की भाँति मानकर अपनी कल्पना से लेख लिखिए।
उत्तर:
पक्षी और बादल डाकिए का काम करते हैं। डाकिया वह होता है जो किसी का संदेश किसी तक पहुंचाए। पक्षी और बादल भी प्रकृति का संदेश दूसरों तक पहुँचाते हैं। इनके लाए पत्र भले ही आम आदमी की समझ में न आते हों पर उनके संदेश जिनके लिए होते हैं, वे उन्हें शीघ्र समझ लेते हैं। पक्षी और बादल प्रकृति के संदेश वाहक हैं।

2. संस्कृत साहित्य के महाकवि कालिदास ने बादल को संवादवाहक बनाकर ‘मेघदूत’ नाम का काव्य लिखा है। ‘मेघदूत’ के विषय में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
संस्कृत के महान कवि कलिदास ने बादल को संवादवाहक बनाकर ‘मेघदूत’ नामक काव्य रचा था।
उस काव्य में बताया गया है कि धनपति कुबेर ने यक्ष को निर्वासन को दंड दिया था। तब यक्ष ने अपनी प्रिया के पास बादल को संदेश वाहक बनाकर अपना संदेश भिजवाया था।

3. पक्षी को संदेशवाहक बनाकर अनेक कविताएँ एवं गीत लिखे गए हैं। एक गीत है-जा-जा रे कागा विदेशवा, मेरे पिया से कहियो संदेशवा। इस तरह के तीन गीतों का संग्रह कीजिए। प्रशिक्षित पक्षी के गले में पत्र बांधकर निर्धारित स्थान तक पत्र भेजने का उल्लेख मिलता है। मान लीजिए आपको एक पक्षी को संदेश वाहक बनाकर का भेजना हो तो आप वह पत्र किसे भेजना चाहेंगे और उसमें क्या लिखना चाहेंगे?
उत्तर:
पक्षियों को और विशेषकर कबूत को अपना संदेशवाहक । बनाकर भेजने की परंपरा प्राचीन काल में रही है। पत्र को उसके गले में बाँध दिया जाता था और वह निर्धारित स्थान तक पत्र पहुँचा देता था।

4. केवल पढ़ने के लिए दी गई रामदरश मिश्र की कविता ‘चिट्ठियाँ’ को ध्यानपूर्वक पढ़िए और विचार कीजिए क्या यह कविता केवल लेटर बॉक्स में पड़ी निर्धारित पते पर जाने के लिए तैयार चिट्ठियों के बारे में है? या रेल के डब्बे बैठी सवारी भी उन्हीं चिट्ठियों की तरह हैं जिनके पास उनके गंतव्य तक की टिकट है पत्र के पते की तरह? और क्या विद्यालय भी एक लेटर बाक्स की भाँति नहीं है जहाँ से उत्तीर्ण होकर विद्यार्थी अनेक क्षेत्रों में चले जाते हैं? अपनी कल्पना को पंख लगाइए और मुक्त मन से इस विषय में विचार-विमर्श कीजिए।
उत्तर:
रामदरथ मिश्र की कविता
चिट्ठियाँ
लेटरबक्स में पड़ी चिट्ठियाँ
अनंत सुख-दुख वाली अनंत चिट्ठियाँ
लेकिन कोई किसी से नहीं बोलती
सभी अकेले-अकेले
अपनी मंजिल पर पहुंचने का इंतजार करती हैं।
कैसा है यह एक साथ होना
दूसरे के साथ हँसना न रोना
क्या हम भी
लेटरबक्स की चिट्ठियाँ हो गए हैं।
(विद्यार्थी अपने मन के विचार लिखें।)

माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

भाषा की बात

1. किसी प्रयोजन विशेष से संबंधित शब्दों के साथ पत्र शब्द जोड़ने से कुछ शब्द बनते हैं जैसे-प्रशस्ति पत्र, समाचार पत्र। – आप ना पत्र के योग से बनने वाले दस शब्द लिखिए
उत्तर:
व्यापारिक पत्र – चेतावनी पत्र
साहित्यिक पत्र – प्रेरक पत्र
स्मरण पत्र – प्रेम पत्र
घरेलू पत्र – सरकारी पत्र
शोक पत्र – शिकायती पत्र

2. ‘व्यापारिक’ शब्द व्यापार शब्द के साथ ‘इक’ प्रत्यय के. योग से बना है। इक प्रत्यय के योग से बनने वाले शब्दों को अपनी पाठ्यपुस्तक से खोजकर लिखिए।
उत्तर:
पारिवारिक, सामाजिक, नैतिक, धार्मिक, राजनीतिक।

3. दो स्वरों के मेल से होने वाले परिवर्तन को स्वर संधि कहते हैं; जैसे-रवीन्द्र – रवि + इन्द्र। इस संधि में इ+ ई हुई है। इसे दीर्घ संधि कहते हैं। दीर्घ स्वर संधि के और उदाहरण खोजकर लिखिए। मुख्य रूप से स्वर संधियाँ चार प्रकार की मानी गई हैं-दीर्घ, गुण, वृद्धि और यण।
हस्व या दीर्घ अ, इ, उ के बाद हस्व या दीर्घ अ, इ, उ, आ आए तो ये आपस में मिलकर क्रमशः दीर्घ आ, ई, ऊ हो जाते हैं, इसी कारण इस संधि को दीर्ध संधि कहते हैं। जैसे-संग्रह + आलय – संग्रहालय, महा + आत्मा – महात्मा।
इस प्रकार के कम-से-कम दस उदाहरण खोजकर लिखिए और अपनी शिक्षिका/शिक्षक को दिखाइए।
उत्तर:
उदाहरण:
1. दीर्घ संधि:
ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ, से परे क्रमशः ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ आ जाएँ तो दोनों मिलकर क्रमशः आ, ई, ऊ हो जाते हैं
(क) अ + अ = आ
परम + अणु – परमाणु
वेद + अत – वेदांत।
मत + अनुसार = मतानुसार
धर्म + अर्थ – धर्मार्थ।

अ + आ = आ
हिम + आलय = हिमालय
रत्न + आकर = रत्नाकर।
धन + आदेश = धनादेश
परम +. आत्मा = परमात्मा।

आ + अ = आ
विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
दीक्षा + अंत = दीक्षांत।
परीक्षा + अर्थी = परीक्षार्थी
रेखा + अंकित – रेखांकित।

आ + आ + आ
विद्या + आलय = विद्यालय
कारा + आवास = कारावास।
मदिरा + आलय = मदिरालय
दया + आनंद = दयानन्द।

(ख) इ + इ = ई
रवि + इन्द्र – रवीन्द्र
अभि + इष्ट = अभीष्ट।
कपि + इन्द्र = कपींद्र
अति + इव = अतीव।

इ + ई = ई
गिरि + ईश = गिरीश
कपि + ईश्वर = कपीश्वर।
हरि + ईश = हरीश
फणि + ईश्वर = फणीश्वर।

ई + इ = ई
मही + इन्द्र = महीन्द्र
नदी + इन्द्र = नदीन्द्र।

ई + ई = ई
मही + ईश = महीश
रजनी + ईश – रजनीश।

(ग) उ + उ = ऊ
लघु + उत्तर = लघूत्तर
गुरु + उपदेश = गुरूपदेश।
सु + उक्ति = सूक्ति
अनु + उदित = अनूदित।

उ + ऊ = ऊ
लघु + ऊर्मि = लघुर्मि
सिन्धु + ऊर्मि = सिन्धूमि।

ऊ + उ = ऊ
वधू + उत्सव = वधूत्सव।

ऊ + ऊ = ऊ
वधू + ऊर्मि = वधूर्मि।

माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

2. गुण संधि: ‘अ’ और ‘आ’ से परे यदि हस्व या दीर्घ ‘इ’. ‘उ’ या ‘ऋ’ आएँ तो वे क्रमशः ‘ए’, ‘ओ’ और ‘अर्’ हो जाते हैं-
(क) अ + इ = ए
नर + इंद्र – नरेंद्र।
भारत + इंदु – भारतेंदु।

अ + ई = ए
गण + ईश = गणेश।
परम + ईश्वर = परमेश्वर।

आ + इ = ए
महा + इंद्र – महेंद्र।
यथा + इष्ट = यथेष्ट।

आ + ई = ए
रमा + ईश = रमेश।
राका + ईश = राकेश।

(ख) अ + उ = ओ
सूर्य + उदय = सूर्योदय।
पर + उपकार – परोपकार।

अ + ऊ = ओ
नव + ऊढ़ा = नवोढ़ा।

आ + उ = ओ
महा + उत्सव = महोत्सव।

आ + ऊ = ओ
महा + मा = महोमि।

(ग) अ + ऋ = अर्
देव + ऋषि = देवर्षि।
सप्त + ऋषि = सप्तर्षि।

आ + ऋ = अर्
महा + ऋषि = महर्षि।

3. वृद्धि संधि: ‘अ’ या ‘आ’ से परे ‘ए’ या ‘ऐ’ हों तो दोनों को मिलाकर ‘ऐ’ तथा ‘औ’ या ‘औ’ हों तो उन्हें मिलाकर ‘औ’ हो जाता है।
अ + ए = ऐ → एक + एक = एकैक।
आ + ए = ऐ → सदा + एव = सदैव।
अ + ऐ = ऐ → मत + ऐक्य = मतैक्य।
आ + ऐ = ऐ → महा + ऐश्वर – महैश्वर्य।
अ + ओ = औ → जल + ओध = जलौध।
आ + ओ = औ → महा + औध = महौधा
अ + औ = औ → वन + औषध = वनौषध।
आ + औ = औ → महा + औषध = महौषधा

4. यण संधि: ह्रस्व या दीर्घ ‘इ’, ‘उ’, ‘ऋ’ से परे भिन्न जाति का कोई स्वर आ जाए तो इ-ई को ‘य’, उ-3 को ‘व’ और ‘ऋ’ को ‘र’ हो जाता है।
इ + अ = य
अति + अधिक = अत्यधिक।
अति + अंत – अत्यंत।

इ + आ = या
इति + आदि = इत्यादि।
अति + आचार – अत्याचार।

इ + उ = यु
प्रति + उत्तर = प्रत्युत्तर।
उपरि + उक्त = उपर्युक्त।

उ + अ = व → मनु + अंतर = मन्वन्तर।
उ + आ = वा → सु + आगत = स्वागत।
उ + ए = वे → अनु + एषण – अन्वेषण।
ऊ + आ = वा → वधू + आगमन = वध्वागमन।
ऋ + अ = र → पितृ + अनुमति = पित्रनुमति।
ऋ + आ = रा → पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा।

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HBSE 8th Class Hindi चिट्ठियों की अनूठी दुनिया Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
पत्रों की दुनिया कैसी है? साहित्य एवं मानव-सभ्यता के विकास में पत्रों’ की क्या। भूमिका है?
उत्तर:
पत्रों की दुनिया भी अजीबो-गरीब है और उसकी उपयोगिता हमेशा से बनी रही है। पत्र जो काम कर सकते हैं, वह संचार का आधुनिकतम साधन नहीं कर सकता है। पत्र जैसा संतोष फोन या एसएमएस का संदेश कहाँ दे सकता है। पत्र एक नया सिलसिला शुरू करते हैं और राजनीति, साहित्य तथा कला के क्षेत्रों में तमाम विवाद और नयी घटनाओं की जड़ भी पत्र ही – होते हैं। दुनिया का तमाम साहित्य पत्रों पर केंद्रित है और मानव सभ्यता के विकास में इन पत्रों ने अनूठी भूमिका निभाई है।

प्रश्न 2.
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने 1953 में क्या कहा था? पाठ के आधार पर बताइए।
उत्तर:
पंडित जवाहर लाल नेहरू ने सन् 1953 में सही ही कहा था कि-‘हजारों सालों तक संचार का साधन केवल हरकारे (रनर्स) या फिर तेज घोड़े रहे हैं। उसके बाद पहिए आए। पर रेलवे और तार से भारी बदलाव आया। तार ने रेलों से भी तेज गति से संवाद पहुँचाने का सिलसिला शुरू किया। अब टेलीफोन, वायरलस और आगे रेडार-दुनिया बदल रहा है।’

प्रश्न 3.
महात्मा गाँधी के पास पत्र कैसे पहुँचते थे? वे उन पत्रों का जवाब कैसे देते थे? लोग उनके लिखे पत्रों का क्या करते थे?
उत्तर:
महात्मा गाँधी के पास दुनिया भर से तमाम पत्र केवल महात्मा गाँधी-इंडिया लिखे आते थे और वे जहाँ भी रहते थे, वहाँ तक पहुँच जाते थे। आजादी के आंदोलन के कई अन्य दिग्गज हस्तियों के साथ भी ऐसा ही था। गाँधीजी के पास देश दुनिया से बड़ी संख्या में पत्र पहुँचते थे, पर पत्रों का जवाब देने के मामले में उनका कोई जोड़ नहीं था।

कहा जाता है कि जैसे ही उन्हें पत्र मिलता था, उसी समय वे उसका जवाब भी लिख देते थे। अपने हाथों से ही ज्यादातर पत्रों का जवाब देते थे। पत्र भेजने वाले लोग उन पत्रों को किसी प्रशस्तिपत्र से कम नहीं मानते हैं और कई लोगों ने तो पत्रों को फ्रेम करा कर रख लिया है। यह है पत्रों का जादू। यही नहीं, पत्रों के आधार पर ही कई भाषाओं में जाने कितनी किताबें लिखी जा चुकी हैं।

चिट्ठियों की अनूठी दुनिया गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1. पिछली शताब्दी में पत्र लेखन ने एक कला का रूप ले लिया। डाक व्यवस्था के सुधार के साथ पत्रों को सही दिशा देने के लिए विशेष प्रयास किए गए। पत्र संस्कृति विकसित करने के लिए स्कूली पाठ्यक्रमों में पत्र लेखन का विषय भी शामिल किया गया। भारत ही नहीं दुनिया के कई देशों में ये प्रयास चले और विश्व डाक संघ ने अपनी ओर से काफी प्रयास किए।

विश्व डाक संघ की ओर से 16 वर्ष से कम आयु वर्ग बच्चों के लिए पत्र लेखन प्रतियोगिताएँ आयोजित करने का सिलसिला सन् 1972 से शुरू किया गया। यह सही है कि खास तौर पर बड़े शहरों और महानगरों में संचार साधनों के तेज विकास तथा अन्य कारणों से पत्रों की आवाजाही प्रभावित हुई है, पर देहाती दुनिया आज भी चिड़ियों से ही चल रही है। फैक्स, ईमेल, टेलीफोन तथा मोबाइल ने चिनियाँ की तेजी को रोका है, पर व्यापारिक डाक की संख्या लगातार बढ़ रही है।
प्रश्न:
1. पत्र लिखने ने पिछली शताब्दी में क्या रूप ले लिया है?
2. पत्र-संस्कृति के विकास के लिए क्या प्रयास किया गया?
3. विश्व डाक संघ ने क्या प्रयास किया?
4. समाचार भेजने के लिए क्या-क्या साधन प्रयोग किए जा रहे हैं?
उत्तर:
1. पिछली शताब्दी में पत्र लिखने ने एक कला का रूप ले लिया है।
2. पत्र-संस्कृति के विकास के लिए स्कूली पाठ्यक्रमों में पत्र लेखन को एक विषय के रूप में शामिल किया गया है।
3. विश्व डाक संघ द्वारा 16 वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों के लिए पत्र-लेखन प्रतियोगिताओं का आयोजन 1972 से शुरू किया गया है।
4. समाचार भेजने के लिए फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल आदि माध्यमों का प्रयोग किया जा रहा है।

माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

2. पत्र व्यवहार की परंपरा भारत में बहुत पुरानी है। पर इसका असली विकास आजादी के बाद ही हुआ है। तमाम सरकारी विभागों की तुलना में सबसे ज्यादा गुडविल डाक विभाग की ही है। इसकी एक खास वजह यह भी है कि यह लोगों को जोड़ने का काम करता है। घर-घर तक इसकी पहुँच है।

संचार के तमाम उन्नत साधनों के बाद भी चिट्ठी-पत्री की हैसियत बरकरार है। शहरी इलाकों में आलीशान हवेलियाँ हों या फिर झोपड़पट्टियों में रह रहे लोग, दुर्गम जंगलों से घिरे गाँव हों या फिर बर्फबारी के बीच जी रहे पहाड़ों के लोग, समुद्र तट पर रह रहे मछुआरे हों या फिर रेगिस्तान की ढाँढियों में रह रहे लोग, आज भी खतों का ही सबसे बेसब्री से इंतजार होता है। एक दो नहीं, करोंड़ों लोग खतों और अन्य सेवाओं के लिए रोज भारतीय डाकघरों के दरवाजों तक पहुँचते हैं और इसकी बहु आयामी भूमिका नजर आ रही है। दूर देहात में लाखों गरीब घरों में चूल्हे मनीआर्डर अर्थव्यवस्था से ही जलते हैं। गाँवों या गरीब बस्तियों में चिट्ठी या मनीआर्डर लेकर पहुंचने वाला डांकिया देवदूत के रूप में देखा जाता है।
प्रश्न:
1. भारत में पत्र-यवहार की परंपरा कैसी है?
2. सबसे ज्यादा गुडविल किस सरकारी विभाग की है? इसका कारण क्या है?
3. कौन खतों का बेसब्री से इंतजार करते हैं?
4. गाँवों में डाकिया को किस रूप से देखा जाता है और क्यों? और क्यों?
उत्तर:
1. भारत में पत्र-व्यवहार की परंपरा बहुत पुरानी है। हाँ, इसका विकास आजादी के बाद ज्यादा हुआ है।
2. सारे सरकारी विभागों में डाक विभाग की गुडविल सबसे ज्यादा है। इसका कारण यह है कि यह पत्रों द्वारा लोगों को जोड़ने का काम करता है।
3. देश के सभी भागों में लोग खतों का बेसब्री से इंतजार. करते हैं, भले ही वह आलीशान हवेलियों में रहते हों अथवा पहाड़ों पर रहते हों या समुद्र तट के मछुआरे हों अथवा रेगिस्तानी या बर्फीले क्षेत्रों में रहने वाले लोग हों।
4. गाँवों में डाकिया को देवदूत के रूप में देखा जाता है क्योंकि उसके द्वारा लाए मनीआर्डर के रुपयों से ही उनके घरों के चूल्हे जलते हैं।

चिट्ठियों की अनूठी दुनिया Summary in Hindi

चिट्ठियों की अनूठी दुनिया पाठ का सार

पत्रों की दुनिया बड़ी ही अनोखी है। पत्र जो काम कर सकते हैं वह काम संचार का कोई भी साधन नहीं कर सकता। पत्र लिखने . और पढ़ने से बड़ा संतोष मिलता है। अनेक घटनाओं और विवादों की जड़ में पत्र ही होते हैं। मानव-सभ्यता के विकास में पत्रों ने अनूठी भूमिका निभाई है। पत्रों को विविध भाषाओं में अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है, जैसे उर्दू में खत, संस्कृत में पत्र, कन्नड में कागद, तेलगु मे उत्तरम, तमिल मे कब्दि कहा जाता है। पत्र लिखना भी एक कला है। दुनिया में रोजाना करोड़ों पत्र इधर से उधर जाते हैं।

पिछली शताब्दी में पत्र लिखने ने एक कला का रूप ले लिया। पत्र-लेखन को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया गया। विश्व डाकसंघ की ओर से 16 वर्ष से कम आयु वर्ग के बच्चों के लिए पत्र-लेखन प्रतियोगिताओं के आयोजन का सिलसिला 1972 में शुरू हुआ। आजकल फैक्स, ई-मेल, टेलीफोन तथा मोबाइल के प्रयोग ने चिट्ठियों की तेजी को भले ही रोका है, पर व्यापारिक डाक लगातार बढ़ रही है। अब भी लोग पत्रों का बेसब्री से इंतजार करते हैं।

आज देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो अपने पुरखों की चिट्ठियों को सहेज और सँजोकर रख रहे हैं। बड़े-बड़े लेखक, पत्रकार, उद्यमी, कवि, प्रशासक, संन्यासी या किसान की पत्र रचनाएँ अनुसंधान का विषय हैं। पंडित नेहरू ने अपनी पुत्री इंदिरा गाँधी को भी पत्र लिखे थे। हम पत्रों को तो सहेजकर रख लेते हैं, पर एस एम एस संदेशों को जल्दी ही भूल जाते हैं। महात्मा गाँधी द्वारा लिखे गए पत्र बहुत बड़ी धरोहर के रूप में सुरक्षित हैं। दुनिया के संग्रहालयों में जानी-मानी हस्तियों के पत्रों के अनूठे संकलन हैं। ये पत्र देश, काल और समाज को जानने-समझने का असली पैमाना हैं।

महात्मा गाँधी के पास दुनिया भर से पत्र आते थे। पते के रूप में उन पर केवल महात्मा गाँधी-इंडिया लिखा होता था और वे जहाँ भी होते वहीं पहुँच जाते थे। गाँधीजी के पास दुनिया भर से बड़ी संख्या में पत्र पहुँचते थे। वे उनका जवाब भी भिजवाते थे। वे अपने हाथों से ही अधिकांश पत्रों का जवाब लिखते थे। लिखते-लिखते जब उनका दाहिना हाथ दर्द करने लगता था तब वे बाएँ हाथ से लिखने में जुट जाते थे। पत्र पाने वाले लोग गाँधीजी के पत्रों को प्रशस्तिपत्र से कम नहीं मानते थे। कई लोगों ने तो उन पत्रों को फ्रेम करा लिया था। यह उनके पत्रों को जादू ही तो था। पत्र किसी दस्तावेज से कम नहीं होते। पत्रों से संबंधित कई पुस्तकें मिल जाती हैं। पत्रों के संकलन का काम डाक मंगलमूर्ति ने किया है। पत्रों में प्रेमचंद, नेहरू जी, गाँधी जी तथा रवीन्द्रनाथ टैगोर के पत्र बहत प्रेरक हैं। महात्मा गाँधी और रवीन्द्रनाथ टैगोर के मध्य 1915 से 1941 तक जो पत्राचार हुआ. उनसे नए-नए तथ्यों तथा उनकी मनोदशा का लेखा-जोखा मिलता है।

पत्र-व्यवहार की परंपरा भारत में बहुत पुरानी है। पर इसका असली विकास आजादी के बाद ही हुआ। डाक विभाग की पहुंच घर-घर तक है। आज भी लोग खतों का बेसब्री से इंतजार करते हैं। दूर देहात में लाखों गरीब घरों में चूल्हे मनीआर्डर की अर्थव्यवस्था से ही जलते हैं। गाँवों में आज भी डाकिया देवदूत के रूप में देखा जाता है।

माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

चिट्ठियों की अनूठी दुनिया शब्दार्थ

उपयोगिता = लाभदायी (use), आधुनिकतम = नवीनतम (modern), केंद्रित = टिके होना (centred), तलाशना = ढूंढना (10 search), अहमियत = महत्त्व (importance), प्रयास – कोशिश (Efforts), विकसित = फली-फूली (Developed), व्यापारिक = व्यापार संबंधी (related to bursiness), बेसनी = सन के बिना (restless), मिसाल = उदाहरण (example), पुरखे = पूर्वज (ancestors), संकलन = संग्रह (collection), दिग्गज – बड़ी (Big. great), हस्ती = व्यक्तित्व (personalities), प्रशस्तिपत्र = गुणगान गाने वाला पत्र (letter of praive), दस्तावेज = जरूरी कागज (documents), तथ्यों = सच्चाइयों (facts), मनोदशा = मन की दशा (position of mind), गुडविल = नेकनामी (goodwill), हैसियत = दशा (status), बहुआयामी = अनेक रूपों वाला (malti dimensional), देवदूत = फरिश्ता (angel).

Haryana State Board HBSE 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 4 दीवानों की हस्ती Textbook Exercise Questions and Answers.

Haryana Board 8th Class Hindi Solutions Vasant Chapter 4 दीवानों की हस्ती

HBSE 8th Class Hindi दीवानों की हस्ती Textbook Questions and Answers

कविता से

दीवानों की हस्ती HBSE 8th Class प्रश्न 1.
कवि ने अपने आने को ‘उल्लास’ और जाने को ‘आँसू बनकर बह जाना’ क्यों कहा है?
उत्तर:
कवि अपने आने को उल्लास इसलिए कहता है क्योंकि किसी भी नए स्थान पर बड़े उत्साह के साथ जाता है। वहाँ जाकर उसे प्रसन्नता होती है। पर जब वह उस स्थान को छोड़कर आगे जाता है तब उसे दु:ख होता है। विदाई के क्षणों में उसकी आँखों से आँसू बह निकलते हैं।

दीवानों की हस्ती प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 2.
भिखमंगों की दुनिया में बेरोक प्यार लुटाने वाला कवि ऐसा क्यों कहता है कि वह अपने हृदय पर असफलता का एक निशान भार की तरह लेकर जा रहा है? क्या वह निराश है या प्रसन्न है?
उत्तर:
कवि इस दुनिया को भिखमंगों की दुनिया बताता है। यह दुनिया केवल लेना जानती है, देना नहीं। कवि दुनिया के लोगों को अपना समझकर उन पर अपना प्यार लुटाता है, पर उसे बदले में वैसा प्यार नहीं मिलता। अतः वह अपने हृदय पर असफलता का भार लेकर जा रहा है। कवि निराश है।

पाठ 4 दीवानों की हस्ती प्रश्न उत्तर HBSE 8th Class प्रश्न 3.
कविता में ऐसी कौन-सी बात है जो आपको सबसे अच्छी लगी?
उत्तर:
कविता में हमें कवि का जीवन के प्रति दृष्टिकोण अच्छा लगा। ऐसा दृष्टिकोण रखने वाला व्यक्ति ही सुखी रह सकता है।

कविता से आगे

Diwano Ki Hasti Class 8 Vyakhya प्रश्न 1.
जीवन में मस्ती होनी चाहिए, लेकिन कब मस्ती हानिकारक भी हो सकती है? सहपाठियों के बीच चर्चा कीजिए।
उत्तर:
‘जीवन में मस्ती’ विषय पर विद्यार्थी अपने सहपाठियों के मध्य चर्चा करें। दोनों पक्षों पर विचार करें।

माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

अनुमान और कल्पना

1. एक पंक्ति में कवि ने यह कहकर अपने अस्तित्व को नकारा है कि “हम दीवानों की क्या हस्ती है आज यहाँ, कल वहाँ चले।” दूसरी पंक्ति में उसने यह कहकर अपने अस्तित्व को महत्त्व दिया है कि “मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहाँ चले।” यह फाकामस्ती का उदाहरण है। अभाव में भी खुश रहना फाकामस्ती कही जाती है। कविता में इस प्रकार की अन्य पंक्तियाँ भी हैं, उन्हें ध्यानपूर्वक पढ़िए और अनुमान लगाइए कि कविता में परस्पर विरोधी बातें क्यों की गई हैं?
→ अन्य विरोधी बातों वाली काव्य-पंक्तियाँ
आए बनकर उल्लास अभी,
आँसू बनकर बह चले अभी।
(उल्लास भी आँसू भी)
हम भिखमंगों की दुनिया में,
स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले।
हम एक निसानी-सी उर पर
ले असफलता का भार चले।
(प्यार लुटाना-असफलता का भार)

भाषा की बात

संतुष्टि के लिए कवि ने ‘छककर’, “जी भरकर’ और ‘खुलकर’ जैसे शब्दों का प्रयोग किया है। इसी भाव को व्यक्त करने वाले कुछ और शब्द सोचकर लिखिए, जैसे-हँसकर, गाकर।

  • पढ़कर – खिलकर
  • सुनकर – तृप्त होकर

HBSE 8th Class Hindi दीवानों की हस्ती Important Questions and Answers

Deewano Ki Hasti Kavita Ki Vyakhya HBSE प्रश्न 1.
इस कविता में प्रयुक्त ‘दीवाना’ शब्द के निम्नलिखित अर्थों में सर्वोपयुक्तं अर्थ को चुनिए:
(क) पागल
(ख) लगनशील
(ग) आवारा
(घ) मनमौजी।
उत्तर:
मनमौजी।

दीवानों की हस्ती Question Answer HBSE 8th Class प्रश्न 2.
कवि ने इस कविता में दीवानों की क्या विशेषताएँ बताईं?
उत्तर:
कवि ने इस कविता में बताया है कि दीवाने मनमौजी स्वभाव के होते हैं। वे एक जगह टिककर नहीं बैठते। वे लोगों के सुख-दुख के साथी होते हैं। विशेषकर गरीबों के लिए अपना प्यार लुटाते हैं। दीवाने मान-अपमान, भलाई-बुराई, अपने-पराए की भावना से ऊपर उठे होते हैं। वे किसी दूसरे के बनाए बंधन में बंधकर रहना नहीं जानते। वे किसी को बद्दुआ नहीं देते। सब को समान दृष्टि से देखते हैं।

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दिवानो की हस्ती HBSE 8th Class प्रश्न 3.
इस कविता में जीवन के प्रति कौन-सा दृष्टिकोण झलकता है?
उत्तर:
इस कविता में जीवन को पूरी मस्ती के साथ जीने का दृष्टिकोण झलकता है। हमें स्वच्छंद जीवन जीना चाहिए। किसी के बंधन में बंधकर जीना ठीक नहीं है। गरीबों के प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए। किसी के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए।

Deewano Ki Hasti Class 8 HBSE प्रश्न 4.
निम्नलिखित भाव कविता की किन पंक्तियों में व्यक्त हुए हैं?
1. हम बंधनों में रहकर भी आजाद रहने लगे।
2. हमने संसार को कुछ दिया और संसार से कुछ लिया भी।
3. हम मन में असफलता के बोझ को वहन करते चले।
उत्तर:
कविता की निम्नलिखित पंक्तियों में ये भाव व्यक्त हुए हैं:
1. हम स्वयं बंधे थे, और स्वयं हम अपने बंधन तोड़ चले
2. जग से उसका कुछ लिए चले, – जग को अपना कुछ दिए चले।
3. ले एक निशानी सी उर पर, ले असफलता का भार चले।

Diwano Ki Hasti Class 8 HBSE प्रश्न 5.
इस कविता से आपको क्या प्रेरणा मिलती
उत्तर:
इस कविता में हमें यह प्रेरणा मिलती है कि हमें मनमौजी प्रवृत्ति का होना चाहिए। हमें बंधनों में बंधकर नहीं रहना चाहिए। स्वच्छंद जीवन जीना हमारा लक्ष्य होना चाहिए। लोगों के दीवानों की हस्ती [वसंत-भाग-3] सुख-दुःख में साझीदार होने की प्रेरणा भी हमें इस कविता से मिलती है।

Deewano Ki Hasti HBSE 8th Class प्रश्न 6.
सारी कविता पढ़कर कवि की किस मनःस्थिति का बोध होता है?
(क) वैराग्य की
(ख) संतोष की
(ग) जीवन से भागने की
(घ) सुख-दुख में समान भाव से मस्त रहने की।
उत्तर:
सारी कविता पढ़कर कवि की “सुख-दुःख में समान भाव से मस्त रहने की” पुनः स्थिति का बोध होता है।

Diwano Ki Hasti Class 8 Bhavarth HBSE प्रश्न 7.
दीवाने टिककर क्यों नहीं बैठते?
उत्तर:
दीवानों का जीवन स्वच्छंद होता है। वे जहाँ-तहाँ घूमते रहते हैं। एक जगह टिकने में वे बंधनों का अनुभव करते हैं। किसी के बंधन स्वीकार नहीं कर सकते। वे कभी यहाँ तो कभी वहाँ जा पहुँचते हैं।

प्रश्न 8.
इस कविता का प्रतिपाद्य लिखो।
उत्तर:
‘दीवानों की हस्ती’ शीर्षक कविता का प्रतिसाद्य है कि हमें सुख-दुःख में समान भाव, से मस्त बने रहना चाहिए। मनमौजी जीवन आनंद से परिपूर्ण होता , सी में जीवन का सच्चा रूप झलकता है। हमें सभी प्रकार के भदों से ऊपर उठकर जीवन बिताना चाहिए। सामाजिकता का बोध भी हमारे अंदर बमा रहना चाहिए। त्याग और परोपकार की भावना अपनानी चाहिए। आजादी और गतिशीलता जीवन में आवश्यक है। संसार की स्वार्थ भावना से हमें कभी दुःखी नहीं होना चाहिए। सभी को अपना प्यार बाँटना चाहिए। बंधनों में बंधकर नहीं रहना चाहिए।

दीवानों की हस्ती Summary in Hindi

दीवानों की हस्तीपाठ का सार

जीवन-परिचय : भगवतीचरण वर्मा का जन्म 30 अगस्त 1903 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के शफीपुर ग्राम में हुआ था। पाँच वर्ष की उम्र में ही पिता का देहान्त हो जाने के कारण छोटी उम्र में ही इनके कंधे पर परिवार का भार आ गया। जीवन संघर्ष में जूझते हुए इन्होंने बी.एल.एल.बी. की शिक्षा प्राप्त की और कानपुर में वकालत करने लगे। लेकिन वकालत में इनका दिल न लगा

और ये अधिकांश समय साहित्य-सृजन को देने लगे। आठवीं कक्षा में पढ़ते समय इनकी पहली कविता ‘प्रताप’ में छपी थी। वकालत करते समय तक ये कवि के रूप में विख्यात हो गए थे। कविता से प्रारंभ करके इन्होंने कहानी, उपन्यास, निबन्ध, नाटक आदि बहुत कुछ लिखा।

जीविका के लिए उन्होंने रेडियो स्टेशनों में नौकरी की, सिनेमा के लिए कहानियाँ और संवाद लिखे, पत्रों का संपादन एवं प्रकाशन किया। काफी समय तक ये संसद सदस्य भी रहे। इनका देहान्त 1980 में दिल्ली में हुआ।

रचनाएँ : भगवती जी के कहानी संग्रह इस प्रकार हैं : ‘दो बाँके’, ‘इन्स्टालमेंट’, ‘राख और चिनगारी’। ‘मोर्चा बन्दी’ नाम से चित्रलेखा, सामर्थ्य और सीमा, रेखा, सबहि बचावत राम गुसाईं, प्रश्न और मरीचिका, पतन, भूले बिसरे चित्र। ‘चित्रलेखा’ उपन्यास पर बनी फिल्म बड़ी प्रसिद्ध हुई थी। इन्हें साहित्य अकादमी का पुरस्कार भी मिल चुका है।

आपने कविताएँ, रेडियो रूपक तथा नाटक भी लिखे हैं। इनकी जिन काव्य-कृतियों ने ख्याति पाई है, इनमें प्रमुख हैं-‘मधुकण’, ‘मानव’, ‘प्रेम संगीत’।

माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

विशेषताएँ : वर्मा जी छायावादोत्तर काल के कवि हैं, अतः उनके काव्य पर छायावादी संस्कारों की स्पष्ट छाया है। परंतु वर्मा जी की विशिष्टता इस बात में है कि इन्होंने छायावाद के कल्पना अतिरेक और वायवीय सूक्ष्मता के विरुद्ध ऐसी कविताएँ दीं, जिनका संबंध पृथ्वी के ठोस जीवन से है और जो मर्म को छूती हैं, मात्र चमत्कृत नहीं करतीं। इन कविताओं में कोमलता है, कामना की मोहिनी है, सौन्दर्य की लालसा है। परन्तु इन अलबेले भावों को इस प्रकार व्यक्त किया गया है कि वे तत्काल चेतना को मुग्ध कर देते हैं।

आधुनिक कवि होने के कारण वर्मा जी समाजवादी विचारधारा से अछूते नहीं रहे, परंतु उनमें कम्युनिस्ट कट्टरता और भावावेश नहीं है, उनमें भी मानव और समाज के दलित वर्गों के प्रति सहानुभूति उपलब्ध होती है और इस भाव को. इन्होंने अपनी कई मार्मिक कविताओं में व्यक्त किया है। परंतु यह मनोदृष्टि उतनी समाजवाद की आभारी नहीं, जितनी गाँधीवाद की। उनकी कविताएँ ‘ भैसा गाड़ी’, ‘ट्राम’, ‘राजा साहिब का वायुयान’ अपने परिवेश पर यथार्थ-निष्ठ दृष्टि डालती हैं व वह मनोमुद्रा कई बार बेधक व्यंग्य से भरी कविताओं को भी जन्म देती है।

दीवानों की हस्ती कविता का सार

“दीवानों की हस्ती’ शीर्षक कविता में भगवतीचरण वर्मा ने बताया है कि दीवाने कभी किसी बंधन को स्वीकार नहीं करते। वे एक जगह टिककर नहीं रहते। वे कभी यहाँ तो कभी दूसरी जगह पहुंच जाते हैं। संसार के लोगों के मध्य सुख-दुख को बाँटते चलते हैं। गरीबों के मध्य अपना प्यार लुटाते चलते हैं। उनका जीवन मान-अपमान की भावना से परे होता है। वे तो हँस-हंस कर आगे बढ़ते चले जाते हैं। उन्हें अच्छे मतों की परवाह भी नहीं होती। सब लोग उनके अपने होते हैं। दीवाने अपने बनाए बंधनों में बंधे होते हैं, जिन्हें वे जब चाहे तोड़ देते हैं। उनका जीवन पूरी तरह अपना होता है।

दीवानों की हस्ती काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

1. हम दीवानों की क्या हस्ती,
हैं आज यहाँ कल वहाँ चले,
मस्ती का आलम साथ चला,
हम धूल उड़ाते जहाँ चले।
आए बनकर उल्लास अभी,
आँसू बनकर बह चले अभी,
सब कहते ही रह गए, अरे,
तुम कैसे आए, कहाँ चले?

शब्दार्थ : दीवानों = मस्त रहने वाला (Carefree), मस्ती का आलम = मस्ती से भरा संसार (World with joy), उल्लास = खुशी (Joy), आँसू बनकर बह गए – दुःख के आँसू बहने लगे।

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश भगवंतीचरण वर्मा द्वारा रचित कविता ‘दीवानों की हस्ती’ से उद्धत है। मनमौजी स्वभाव वाले, निश्चित रहने वाले व्यक्ति जहाँ भी जाते हैं, मस्तियाँ उनके साथ रहती हैं। इसी बात का वर्णन करते हुए कवि कहता है:

व्याख्या : हम मन-मौजी मनुष्यों की कोई हस्ती नहीं है। कोई खास विशेषता या योग्यता भी नहीं है। बस, अपनी मस्ती ही हमारा सब-कुछ है। जब मौज आयी, कहीं भी चल दिए। आज अगर यहाँ हैं, तो कल किसी दूसरे स्थान पर जा सकते हैं। हमारी विशेषता केवल इतनी ही है कि हम अपने पाँवों से धूल उड़ाते हुए जहाँ कहीं भी चले जाते हैं, मस्ती का एक संसार, अपने मनमौजीपन का एक निश्चिंत वातावरण हमारे साथ रहा करता है।

हम मस्तों के जीवन में अभी-अभी आनंद और खुशी का भाव है। अगले क्षण वही आनंद आँसू बनकर बहता हुआ भी दिखाई देता है, अर्थात् पल में आनन्द-में मुस्कराना, पल में किसी दुःख से रो देना, इस प्रकार कोई भी भाव स्थिर नही रह पाता। लोग पूछते रह जाते हैं कि तुम लोग कहाँ से आ रहे हो, किधर जा रहे हो, पर हमारे पास इसका कोई उत्तर नहीं होता।

भाव यह है कि निश्चिंत रहना, अपने मन की मौज के अनुसार कार्य करना ही सच्चे मस्तों का जीवन है, उनकी हस्ती का परिचय है।

काव्य-सौंदर्य:

  • धूल उड़ाता चलना’ एक मुहावरा है, जिसका अर्थ होता है धूम मचाते हुए जाना।
  • कवि के अनुसार जन्म-मृत्यु, आने-जाने, सुख-दुःख का अपना एक क्रम है।
  • मनमौजी लोगों की प्रकृति का सुदर परिचय मिलता है।

माता यशोदा कृष्ण को क्या लालच देकर दूध पिलाने का प्रयास करती है? - maata yashoda krshn ko kya laalach dekar doodh pilaane ka prayaas karatee hai?

2. किस ओर चले ? मत यह पूछो,
चलना है, बस इसलिए चले,
जग से उसका कुछ लिए चले,
जग को अपना कुछ दिए चले।
दो बात कही, दो बात सुनी,
कुछ हँसे और फिर कुछ रोए।
छककर सुख-दुख के घूटों को,
हम एक भाव से पिए चले।

शब्दार्थ : जग = संसार (World), छककर = तृप्त होकर (Satisfied)

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ भगवतीचरण वर्मा की कविता ‘दीवानों की हस्ती’ से अवतरित हैं। इनमें कवि बताता है कि मनमौजी और निश्चिंत रहने वालों का जीवन के प्रति अलग दृष्टिकोण रहता है। वे हर दशा का भोग जी भरकर करते हैं। इन भावों को स्पष्ट करते हुए कवि कहता है:

व्याख्या : हम लोग किस ओर जा रहे हैं, यह पता नहीं। बस इतना जानते हैं कि हमें चलते रहना है, हँसते-रोते चलतें जाने का नाम ही जीवन है, अतः हमेशा चलते रहते हैं। सारे संसार से ताने सुनते हैं। बदले में संसार को अपनी मस्ती का दान देते हैं। इस प्रकार हर हाल में चलना, यही हमारे जीवन का क्रम है। मन की मौज में आकर हम लोग दुनियावालों से दो बातें कह लेते हैं। बदले में उनकी बातें चुपचाप सुन भी लेते हैं। बात अच्छी लगी तो जी-भर हँस भी लेते हैं। बात बुरी लगी तो संसार के बुरे व्यवहार पर रो लेते हैं। इस प्रकार जीवन में चाहे सुख आए, चाहे दुःख आए, दोनों के घुट हम खूब जी भरकर एक ही भाव से पी लेते हैं। इसी में हमारी मस्ती है। भाव यह है कि सुख-दुःख, आशा-निराशा में एक सा रह पाना सरल काम नहीं है। कोई मनमौजी स्वभाव वाला व्यक्ति ही ऐसा कर सकता है। सुख-दुख को समान रूप से स्वीकार करते हैं।

विशेष:

  • दीवानों की सामाजिकता की भावना अभिव्यक्त
  • जीवन में सुख और दुख दोनों का महत्त्व स्वीकारा गया है।
  • सरल एवं प्रवाहपूर्ण भाषा का प्रयोग किया गया है।

3. हम भिखमंगों की दुनिया में,
स्वच्छंद लुटाकर प्यार चले,
हम एक निशानी-सी उर पर,
ले असफलता का भार चले।

शब्दार्थ : भिखमंगों = भिखारियों (Beggars), स्वच्छंद = मुक्त (Free), उर = हृदय (Heart), असफलता = हार (Defeat), मान = आदर (Respect), अपमान = बेइज्जती (Insult)।

प्रसंग : ‘दीवानों की हस्ती’ शीर्षक कविता की इन पंक्तियों में बताया गया है कि मनमौजी स्वभाव वालों की दुनिया अलग होती है। हार या जीत, प्रत्येक दशा में मनमौजी लोग प्रसन्न रहते हैं, इस भाव को प्रकट करते हुए कवि कह रहा है।

व्याख्या : यह दुनिया भिखारियों जैसी है। वह केवल लेना ही जानती है, देना नहीं। अतः हम इसको समझकर भी अपना प्यार सबके लिए स्वतंत्रतापूर्वक लुटाते हैं। बदले में कुछ भी न चाहकर अपने रास्ते पर चल देते हैं। हाँ, हम अपने जैसा मस्तमौला दुनिया को नहीं बना पाए, इस असफलता का भार हमारे मन पर अवश्य रह जाता है। फिर भी अपनी हार की चिंता न करके हम अपने रास्ते पर निश्चिंत बढ़ जाते हैं।  कवि का भाव यह है कि हर हाल में प्रसन्न रहना और अपने दिमाग पर बोझ न पड़ने देना चाहिए। यही मस्ती का वास्तविक जीवन है।

काव्य-सौन्दर्य : दुनिया स्वार्थी है। स्वार्थ ही ईर्ष्या-द्वेष तथा विषाद का कारण है। दीवाने स्वार्थ से ऊपर उठ चुके हैं। उनके अनुकरण करने पर जीवन प्रेममय बन जाएगा। मान-अपमान की विशेष चिंता नहीं करनी चाहिए। ‘एक निशानी-सी उर पर’ में उपमा अलंकार है। ‘प्राणों की बाजी हार चले’ मुहावरे का भी सुंदर प्रयोग हुआ है।

4. अब अपना और पराया क्या ?
आबाद रहें रुकने वाले।
हम स्वयं बँधे थे, और स्वयं
हम अपने बंधन तोड़ चले।

शब्दार्थ : नतमस्तक = सिर झुकाना (To blow head), अभिशाप = बुराई (Bad), वरदान = आशीर्वाद (Blessing), दृगों = आँखों (Eyes)।

प्रसंग : मस्त लोग अपने को दुःख देने वालों को भी शाप .. नहीं देते, इन भावों को प्रकट करते हुए कवि कह रहा है :

व्याख्या : दुनिया ने हमारे साथ भला व्यवहार किया या बुरा व्यवहार किया, हम लोग उनको याद नहीं रखते। सभी को समान मानकर एक ही भाव से भुला देते हैं। इस प्रकार अपना मस्ती-भरा जीवन बिताने के बाद, अब यहाँ. से (इस दुनिया से) जाने के समय हमारे लिए अपने-पराए का कोई भेद-भाव नहीं रह गया। हमारी तो यही शुभकामना है- हमारे … पीछे यहाँ रहने वाले हमेशा आबाद रहें, प्रसन्न रहें। हमने संसार के बंधनों में अपने-आपको खुद ही बाँधा था। आज खुद ही उन बंधनों को तोड़कर जा रहे हैं।

भाव यह है कि हम मनमौजी जीवों के लिए किसी बात का कोई बंधन नहीं। हम चाहते हैं कि दुनिया हमारी तरह ही मस्ती से जीवन काट ले।

विशेष:

  • दीवाने ‘भला-बुरा’ और ‘अपना-पराया’ के भेद-भाव से ऊपर उठ जाते हैं। संसार में . राग-विराग, ईर्ष्या-द्वेष की भावना सदा से रही है। इसे मिटाया नहीं जा सकता।
  • सरल एवं प्रवाहमयी भाषा-शैली का अनुसरण किया गया है।

माँ यशोदा ने कच्चा दूध पिलाने के लिए क्या क्या लालच दिया?

तब एक दिन माता यशोदा ने प्रलोभन दिया कि कान्हा ! तू नित्य कच्चा दूध पिया कर, इससे तेरी चोटी दाऊ (बलराम) जैसी मोटी व लंबी हो जाएगी। मैया के कहने पर कान्हा दूध पीने लगे। अधिक समय बीतने पर श्रीकृष्ण अपने बालपन के कारण माता से अनुनय-विनय करते हैं कि तुम्हारे कहने पर मैंने दूध पिया पर फिर भी मेरी चोटी नहीं बढ़ रही।

कृष्ण माता यशोदा से क्या इच्छा प्रकट करता है?

माता यशोदा ने बताई अपनी इच्छा तब उन्होंने कृष्ण से कहा कि लल्ला मुझे केवल एक चीज का पछतावा है, जिसको मैंने आजतक किसी को नहीं बताया। मैं तुम्हारे किसी भी विवाह में शामिल नहीं हो सकी। तब कृष्ण ने कहा मैय्या तुम्हारी यह इच्छा जरूर पूरी होगी। इसके बाद भगवान कृष्ण ने माता यशोदा को गोलोक भेज दिया।

माँ यशोदा कृष्ण को कौन सा दूध पिलाती हैं?

(घ) माता यशोदा बालक कृष्ण को किस तरह दूध पिलाती है ? उत्तर : माता यशोदा बालक कृष्ण को गोद में उठा लेकर और आँचलसे ढककर दूध पिलाती है।

श्री कृष्ण कच्चा दूध कैसे पीते थे *?

This is Expert Verified Answer बालक श्रीकृष्ण अपनी चोटी को बढ़ाने के लालच में दूध पीने को तैयार हुए थे। माता यशोदा बालक कृष्ण से यह कहती थी कि जितना अधिक तुम दूध पियोगे उतने ही तुम्हारी चोटी लंबी होगी। यह बांधते और निकालते समय अत्यंत घनी लगेगी एवं स्नान करते समय समय नागिन की भांति पृथ्वी पर लोटने लगेगी ।