माता सती के कितने जन्म हुए? - maata satee ke kitane janm hue?

Mata Sati ke Janm ki Kahani: हिन्दू पुराणों (Hindu Puran) में हर देवी देवता की अलग अलग कहानी का वर्णन मिलता है. माता सती (Mata Sati) के जन्म से जुड़ी एक रोचक कथा का वर्णन मिलता है. दक्ष प्रजापति (Daksh Prajapati) की कई पुत्रियां थीं और सभी रूपवान और गुणवान थीं. लेकिन राजा दक्ष को उनसे संतोष नहीं था. वे चाहते थे कि उनकी एक ऐसी पुत्री हो जो सर्व शक्ति संपन्न हो. इसके लिए राजा दक्ष घोर तप करने लगे. तप करते हुए कई दिन बीत गए. दक्ष के तप से प्रसन्न होकर मां भगवती ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि, “मैं तुम्हारे तप से प्रसन्न हूँ मैं स्वयं तुम्हारे यहां तुम्हारी पुत्री के रूप में जन्म लूंगी और मेरा नाम सती होगा”. आइए जानते हैं क्या है पूरी कहानी.

इसके बाद माता भगवती ने सती के रूप में राजा दक्ष के यहां जन्म लिया. माता सती दक्ष की सभी पुत्रियों में अलौकिक थीं. बाल्यावस्था से ही उन्होंने अपनी माया दिखानी शुरू कर दी थी. जिसे देखकर दक्ष भी विस्मय में पड़ जाते थे. धीरे धीरे माता सती विवाह योग्य हो गईं तो दक्ष को उनके लिए वर की चिंता होने लगी. उन्होंने ब्रह्माजी से परामर्श मांगा. परमपिता ब्रम्हा जी बोले,’सती भगवती देवी का अवतार हैं वे आदि शक्ति हैं और शिव आदिपुरुष, अतः शिव के अतिरिक्त सती से विवाह के लिए कोन उचित होगा”. परमपिता की बात मानकर दक्ष ने सती का विवाह भगवान शिव के साथ कर दिया और सती कैलाश में शिव के साथ रहने लगीं.

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राजा दक्ष और भगवान शिव में विवाद

राजा दक्ष भगवान शंकर से विरोधाभास रखते थे, और एक बार ब्रह्मा जी ने एक सभा का आयोजन किया उस सभा में भगवान शंकर भी ध्यान लगाए बैठे थे. जब राजा दक्ष वहां पहुंचे तो सभी ने खड़े होकर उनका अभिवादन किया, परन्तु शिव तो ध्यान में थे उन्होंने न दक्ष को देखा और न खड़े हुए. फलतः दक्ष ने अपमान का अनुभव किया. केवल यही नहीं, उनके हृदय में भगवान शिव के प्रति ईर्ष्या की आग जल उठी, और वे भगवान शंकर से बदला लेने के लिए समय और अवसर का इंतजार करने लगे.

भगवान शिव का अपमान 

समय बीतता गया और एक बार राजा दक्ष ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया. इस यज्ञ में सभी देवताओं और मुनियों को बुलाया. परन्तु शिव से बैर भाव के कारण उन्होंने भगवान शिव को उस यज्ञ में आमंत्रित नहीं किया. जब माता सती को यह बात पता चली तो वें क्रोधित हो गईं उस समय भगवान शंकर समाधि में थे. अतः वे शिवजी से अनुमति लिए बिना ही वीरभद्र को साथ लेकर अपने पिता के घर चलीं गईं. यज्ञ में सभी देवी देवता शामिल हुए थे लेकिन भगवान शिव को न देखकर वें क्रोधित हो उठीं तो उनके पिता दक्ष ने उनको अपमानित करते हुए कहा कि तुम्हारा पति श्मशानवासी और भूतों का नायक हैंं. वह तुम्हे बाघंबर छोड़कर और पहना ही क्या सकता है. दक्ष के कथन से सती के हृदय में पश्चाताप का सागर उमड़ पड़ा.

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वीरभद्र ने राजा दक्ष का मस्तक धड़ से अलग कर दिया

स्त्री के लिए उसका पति ही सब कुछ होता है अपने पति के लिए अपमानजनक शब्दों को सुनकर वें बोलीं, “इस सभा में मेरे सामने मेरे पति का अपमान हुआ है. अब मैं एक क्षण भी जीवित रहना नहीं चाहती” सती यह कहते हुए उसी यज्ञ के कुंड में कूद पड़ी. यज्ञ मंडप में हाहाकार मच गया. वीरभद्र ने क्रोधित होकर उस यज्ञ को छिन्न भिन्न कर डाला. सभी ऋषि मुनि भागने लगे. वीरभद्र ने देखते ही देखते राजा दक्ष का मस्तक धड़ से अलग कर दिया.

माता सती के 51 स्थानों पर अंग
माता सती की भक्ति और उनके प्रेम ने भगवान शंकर को व्याकुल कर दिया. वे प्रचंड आंधी की तरह यज्ञ स्थल पर जा पहुंचे. सती के जले हुए शरीर को देखकर वे अपने आपको भूल गए. वे सती के प्रेम में बेसुध हो गए उन्होंने सती के शरीर को अपने हाथों में उठा लिया और सभी दिशाओं में भ्रमण करने लगे. इस अलौकिक प्रेम को देखकर पृथ्वी, वायु, जल का प्रवाह रुक गया. इस भयानक स्थिति से सृष्टि को उबारने के लिए भगवान विष्णु को आगे आना पड़ा.
भगवान शंकर बेसुध होकर यहां वहां हर दिशा में घूम रहे थे इसी बेसुधी में विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के एक-एक अंग को काटने लगे. पृथ्वी पर जिन इक्क्यावन स्थानों पर माता सती के अंग कट-कट कर गिरे. वे स्थान आज शक्ति पीठ जाने जाते है. आज भी उन स्थानों में सती का पूजन होता हैं, उपासना होती है.

(Disclaimer: इस लेख में दी गई जानकारियां और सूचनाएं सामान्य मान्यताओं पर आधारित हैं. Hindi news18 इनकी पुष्टि नहीं करता है. इन पर अमल करने से पहले संबधित विशेषज्ञ से संपर्क करें)

इसे सुनेंरोकेंपरंतु वहाँ जाकर भगवान शिव का यज्ञ-भाग न देखकर सती ने घोर आपत्ति जतायी और दक्ष के द्वारा अपने (सती के) तथा उनके पति भगवान शिव के प्रति भी घोर अपमानजनक बातें कहने के कारण सती ने योगाग्नि से अपने शरीर को भस्म कर डाला।

माता पार्वती के कितने रूप है?

इसे सुनेंरोकेंये हैं माता पार्वती के नौ रूप शैलपुत्री, 2. ब्रह्मचारिणी, 3. चंद्रघंटा, 4. कूष्मांडा, 5.

मां दुर्गा के पति कौन है?

इसे सुनेंरोकेंदुर्गा असल में शिव की पत्नी आदिशक्ति का एक रूप हैं, शिव की उस पराशक्ति को प्रधान प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धितत्व की जननी तथा विकाररहित बताया गया है।

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इसे सुनेंरोकेंमान्यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए 107 जन्म लिए। उनके कठोर तप के कारण 108वें जन्म में भोले बाबा ने पार्वती जी को अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया। सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सुहाग को अखंड बनाए रखने के लिए यह व्रत रखती हैं।

शंकर भगवान के ससुर का क्या नाम था?

इसे सुनेंरोकेंभगवान शिव ने अपने ससुर राजा दक्ष को पुनर्जीवन देते हुए वचन दिया था कि वे श्रावण के महीने दक्ष की नगरी में दक्षेश्वर बनकर विराजेंगे।

भगवान शिव की पुत्री का क्या नाम था?

इसे सुनेंरोकेंपद्म पुराण में भी शिव की पुत्री अशोक सुंदरी का जिक्र किया गया है. माना जाता है कि देवी पार्वती अपने अकेलेपन और उदासी से मुक्ति पाने के लिए कल्प वृक्ष से पुत्री की कामना की जिससे एक सुंदर सी पुत्री का जन्म हुआ. इसलिए उसका नाम अशोक सुंदरी रखा गया.

भगवान शिव की मृत्यु कैसे हुई?

इसे सुनेंरोकेंभगवान शिव का न कोई आदि है न कोई अंत हैं. भगवान शिव ने किसी के गर्भ में से जन्म नहीं लिया हैं. इसलिए भगवान शिव की मृत्यु भी नहीं हो सकती हैं.

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पार्वती जी का जन्म कब हुआ?

इसे सुनेंरोकें6/6श्रावण मास में यहां लगता है मेला मंदिर से 5 किलोमीटर की दूरी पर माता पार्वती की जन्म भूमि मानतलाई है। यहीं पर माता पार्वती का जन्म और शिव जी से उनका विवाह हुआ था।

माता सती के कितने जन्म हुए?

इसे सुनेंरोकेंसती माता : पुराणों के अनुसार भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक प्रजापति दक्ष कश्मीर घाटी के हिमालय क्षेत्र में रहते थे। प्रजापति दक्ष की दो पत्नियां थी- प्रसूति और वीरणी। प्रसूति से दक्ष की चौबीस कन्याएं जन्मी और वीरणी से साठ कन्याएं।

भगवान शिव की बहन कौन थी?

इसे सुनेंरोकेंइनका नाम असावरी देवी है. देवी पार्वती अपनी ननद को देखकर बड़ी खुश हुईं. असावरी देवी स्नान करके आईं और भोजन मांगने लगीं.

भगवान शंकर की कितनी पुत्रियां थी?

इसे सुनेंरोकें2/7शिव की पुत्रियां श‍िव की तीनों पुत्र‍ियों के नाम हैं – अशोक सुंदरी, ज्‍योति या मां ज्‍वालामुखी और देवी वासुकी या मनसा।

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शंकर जी के पिता का क्या नाम है?

इसे सुनेंरोकेंउपरोक्त शिव महापुराण के प्रकरण से सिद्ध हुआ कि श्री शकंर जी की माता श्री दुर्गा देवी (अष्टंगी देवी) है तथा पिता सदाशिव अर्थात् “काल ब्रह्म” है।

माता पार्वती का जन्म कहाँ हुआ था?

इसे सुनेंरोकेंदेवी सती ने देह त्यागते समय भगवान हरि से वर माँगा कि वो जन्म जन्म के लिए शिवजी के चरणों से जुडी रहें। इसी कारण उनका जन्म हिमाचल में पार्वती के रूप में हुआ। पहाड़ों के स्वामी यानी कि पर्वतराज के घर उनका जन्म हुआ इसलिए उनका नाम पार्वती रखा गया।

सती के कितने जन्म हुए?

आकूति, देवहूति और प्रसूती नामक तीन पुत्रियां थीं। प्रसूति का विवाह राजा दक्ष प्रजापति के साथ हुआ। राजा दक्ष के यहां ही देवी सती का जन्म हुआ। राजा दक्ष प्रजापति के यहां एक नहीं बल्कि 24 कन्याएं उत्पन्न हुईं।

सती पूर्व जन्म में कौन थी?

पार्वती कथा : दक्ष के बाद सती ने हिमालय के राजा हिमवान और रानी मैनावती के यहां जन्म लिया। मैनावती और हिमवान को कोई कन्या नहीं थी तो उन्होंने आदिशक्ति की प्रार्थना की। आदिशक्ति माता सती ने उन्हें उनके यहां कन्या के रूप में जन्म लेने का वरदान दिया।

माता पार्वती के कितने जन्म हुए?

मान्यता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए 107 जन्म लिए। उनके कठोर तप के कारण 108वें जन्म में भोले बाबा ने पार्वती जी को अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया।

माता सती के शरीर के कितने टुकड़े हुए थे?

देवी के 51 शक्ति पीठ बनने के पीछे की जो पौराणिक कथा है उसके अनुसार भगवान शिव की पहली पत्नी सती के पिता दक्ष प्रजापति ने कनखल जिसको वर्तमान में हरिद्वार के नाम से जाना जाता है में 'बृहस्पति सर्व' नाम का एक महा यज्ञ किया था.