महादेवी वर्मा द्वारा रचित 'भक्तिन' 'संस्मरणात्मक रेखाचित्र' विधा की रचना है। Show Key Points
Additional Information विधापरिभाषानिबंधनिबंध शब्द नि और बंध से बना है जिसका अर्थ है अच्छी तरह से बँधा हुआ। भाषा के अच्छे प्रयोग द्वारा ही भावों विचारों और अनुभावों को प्रभावशाली ढंग से व्यक्त करना निबंध हैं।कहानी कहानी वह विधा है जो लेखक के किसी उद्देश्य किसी एक मनोभाव जैसे उसके चरित्र , उसका कथा - विन्यास , सब कुछ उसी एक भाव में व्यक्त करना ही कहानी है।जीवनीकिसी व्यक्ति के जीवन का चरित्र चित्रण करना यानी की किसी व्यक्ति विशेष के सम्पूर्ण जीवन वृत्तांत को जीवनी कहते है।Important Pointsनिबंध को लेकर आचार्य रामचंंद्र शुक्ल का कथनः- 'यदि गद्य कवियों की कसौटी है , तो निबंध गद्य की कसौटी है।' Here we are providing Class 12 Hindi Important Extra Questions and Answers Aroh Chapter 11 भक्तिन . Important Questions for Class 12 Hindi are the best resource for students which helps in class 12 board exams. भक्तिन Class 12 Important Extra Questions Hindi Aroh Chapter 11प्रश्न 1. (ii) महान सेविका- भक्तिन एक महान सेविका है। वह अपना प्रत्येक कार्य पूर्ण श्रद्धा, मनोयोग, कर्मठता और कर्तव्य भावना से करती है। उसकी सेवा-भावना को देखकर ही महादेवी वर्मा जी ने उसे हनुमान जी से स्पर्धा करनेवाली बताया है। जैसे-सेवक-धर्म में हनुमान जी से स्पर्धा करनेवाली भक्तिन किसी अंजना की पुत्री न होकर एक अनामधन्या गोपालिका की कन्या है। इसका वास्तविक नाम लक्ष्मी था लेकिन इसकी सेवा-भावना व भक्तिभाव को देखकर ही लेखिका ने इसे भक्तिन नाम दिया था। सेवा-भावना के परिणामस्वरूप लेखिका इसके साथ सेवक-स्वामी का संबंध नहीं रखती बल्कि इसे अपने घर का सदस्य मानती हैं। भक्तिन लेखिका के कहीं बाहर जाने पर उनके कपड़े आदि धोने का, जाते समय सामान आदि बाँधकर देने का पूरा ध्यान रखती है। इसी सेवा-भावना से अभिभूत हो लेखिका कह उठती है, “मैं प्रायः सोचती हूँ कि जब ऐसा बुलावा आ पहुंचेगा, जिसमें न धोती साफ़ करने का अवकाश रहेगा, न सामान बाँधने का, न भक्तिन को रुकने का अधिकार होगा, न मुझे रोकने का तब चिर विदा के अंतिम क्षणों में यह देहातिन वृद्धा क्या करेगी और मैं क्या करूँगी?” (iii) बुद्धिमती- भक्तिन निरक्षर होते हुए भी एक समझदार महिला है। वह प्रत्येक कार्य को बड़ी समझ-बूझ और होशियारी से पूर्ण करती है। लेखिका के घर में उनके प्रत्येक परिचित और साहित्यकार को वह अच्छी तरह पहचानती है। वह उसी के साथ आदर व सम्मान से बात करती है जो उसकी स्वामिनी लेखिका का आदर और सम्मान करता है। अपने ससुराल में भी अपने पति की मृत्यु के बाद वह अपनी पूँजी से एक कौड़ी भी अपनी सास और जेठानियों को नहीं हड़पने देती है। (iv) परिश्रमी-भक्तिन एक कर्मठ महिला है। वह अपना प्रत्येक कार्य पूरे परिश्रम से करती है। अपने ससुराल में भी वह घर, गाय-भैंस, खेत-खलिहान का सारा कार्य पूरी मेहनत से किया करती थी। लेखिका के घर में आने के बाद भी वह लेखिका के सारे कामकाज को पूरा करने के लिए कठोर परिश्रम करती है। वह लेखिका के प्रत्येक कार्य में उनकी सहायता करती। इधर-उधर बिखरी किताबों, अधूरे चित्रों आदि सामान को वह सँजोकर रख देती है। (v) साहसी-भक्तिन एक साहसी महिला थी। बचपन में ही उसकी माँ की मृत्यु हो गई थी। उसकी विमाता ने उसका पालन-पोषण किया लेकिन उसपर बहुत अत्याचार किए, फिर भी भक्तिन ने अपना साहस नहीं छोड़ा। छोटी-सी उम्र में ही उसकी शादी कर दी गई। ससुराल में भी उसे उपेक्षा का शिकार होना पड़ा। दो कन्याओं को जन्म देने पर उसकी सास और जेठानियों ने उसका खूब अपमान किया। उसको बात-बात पर ताने कसे, उससे घर, गाय-भैंस, खेत-खलिहान का खूब काम करवाया लेकिन भक्तिन ने कभी अपना साहस नहीं छोड़ा। उसने प्रत्येक परिस्थिति का डटकर सामना किया। यहाँ तक कि पिता और अपने पति की मृत्यु के बाद भी उसने धैर्य नहीं खोया और निरंतर संघर्ष करती हुई अपने साहस का परिचय देती रही। भक्तिन का संपूर्ण जीवन संघर्षपूर्ण रहा है। प्रश्न 2. ससुराल जाने के उपरांत भक्तिन के पिता का देहांत हो गया लेकिन इसकी विमाता ने इसको पिता की मृत्यु का दुखद समाचार इसलिए नहीं भेजा क्योंकि वह अपने पिता से अगाध प्रेम करती थी तथा विमाता को संपत्ति के चले जाने का भी डर था। पिता की मृत्यु के काफी दिनों बाद उसके ससुराल समाचार भिजवाया लेकिन वहाँ भी इसकी सास ने इसे नहीं बताया क्योंकि सास अपने घर में किसी का रोना अशुभ मानती थी। तत्पश्चात भक्तिन ने दो कन्याओं को जन्म दिया लेकिन जीवन के दूसरे परिच्छेद में भी भक्तिन को अनेक समस्याओं और दुखों का ही सामना करना पड़ा। इसकी सास और जेठानियों ने इसे अपनी उपेक्षा का शिकार बनाया। वे इससे घृणा करती थीं तथा अपने घर और खेत-खलिहान का सारा काम करवाती थी। जीवन के अगले दौर में इसका पति भी मृत्यु को प्राप्त हो गया। जैसे-तैसे उसने अपने आपको सँभाला। फिर इसने अपनी बेटियों की शादी की, लेकिन भाग्य ने यहाँ भी इसके जीवन को समस्याओं के बीच ला खड़ा किया, इसकी बड़ी लड़की. विधवा हो गई। इस प्रकार भक्तिन के जन्म से लेकर पूरे जीवन में समस्याएँ ही समस्याएँ दिखाई देती हैं। उसका संपूर्ण जीवन समस्याओं से ग्रस्त है लेकिन वह इनके सामने घुटने नहीं टेकती बल्कि इनका साहस के साथ मुकाबला करती है। प्रश्न 3. यदि इसी उम्र में उन्हें विवाह के बंधन में फँसा दिया जाए तो वे मृत्युपर्यंत अनेक दृष्टिकोणों से अधूरे ही बने रहते हैं। छोटी आयु में जिन लड़कियों का विवाह कर दिया जाता है वे अधिकतर अशिक्षित या अल्पशिक्षित ही रह जाती हैं जिस कारण वे परिवार, समाज और देश के लिए कार्य नहीं कर पातीं जो शिक्षा प्राप्ति के बाद कर सकती थीं। जीव विज्ञान की दृष्टि से भी छोटी आयु में विवाह-बंधन उचित नहीं होता। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यह हानिकारक होता है। परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ सँभालना अबोध अवस्था में नहीं आ पाता। छोटी आयु में बाल-बच्चों की ज़िम्मेदारी व्यक्तित्व को उभरने नहीं देती। कई बार वे मानसिक कुंठाओं और हीनभावना का शिकार बन जाती हैं। भक्तिन की सास ने उसे उसके पिता की मृत्यु की सूचना इसलिए नहीं दी थी कि वह अभी पूरी तरह परिपक्व नहीं थी। पिता के मृतक होने की खबर सुनकर वह रोना-पीटना करेगी जिससे अपशकुन होगा। निश्चित रूप से छोटी आयु में विवाह कर देना अच्छा नहीं होता। बाल-विवाह प्रथा का पालन किसी भी अवस्था में नहीं किया जाना चाहिए। प्रश्न 4. लेखिका को अच्छा लगता था कि वह उसके बारे में सोचती थी। रात को जब लेखिका अपना लेखन कार्य करती थी तब भी वह शांत भाव से उसके पास दरी के आसन पर बैठी रहती थी। अन्य लोग भी भक्तिन की भाँति दूसरों के सहायक बन सकते हैं लेकिन ऐसा करने के लिए अपने जीवन के अनेक सुखों को तिलांजलि देनी पड़ सकती है। अपनी भूख, प्यास, नौंद और अनेक इच्छाओं को त्यागना पड़ सकता है। यह कार्य संभव है पर बहुत कठिन है। ऐसा काम करने से केवल मानसिक संतोष ही प्राप्त होता है-भौतिक सुख नहीं। प्रश्न 5. वह मानती थी कि जहाँ मालिक वहाँ नौकर। नौकर को अकेले छोड़ देना तो अन्यायपूर्ण है। उसके मन में अपनी स्वामिनी के प्रति ऐसी निष्ठा थी कि यदि उसे कारागार में स्वामिनी के साथ न भेजा गया तो वह बड़े लाट तक लड़ाई लड़कर भी कारागार में जाएगी। सभी इनसानों में भक्तिन जैसे गुण संभव ही नहीं हैं। अधिकांश इनसानों में स्वार्थ, धोखा, लालच, अहं और सुखों की कामना अधिक होती है लेकिन भक्तिन में इनमें से एक भी कामना नहीं थी। भक्तिन अनूठी थी। लेखिका स्वयं उसके इन गुणों के कारण उसे कभी भी नहीं खोना चाहती थी। प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. तरकारियाँ अवश्य थीं परंतु जब दाल बनी है तो उनका क्या काम। वह शाम की तरकारी बना देगी। दूध-घी उसे अच्छा नहीं लगता अन्यथा सब ठीक हो जाता। अब न हो तो अमचूर और लाल मिर्च की चटनी पीस लें। यदि इससे भी काम न चले तो वह गाँव से लाया हुआ थोड़ा-सा गुड़ दे देगी। शहर के लोग ये क्या कलाबत्तू खाते हैं। फिर वह अनाड़िन या फूहड़ नहीं है। उसके ससुर, पितिया ससुर, अजिमा सास आदि ने उसकी पटक कुशलता के लिए असंख्या मौखिक प्रमाण-पत्र दिए हुए हैं। प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर 1. सेवक-धर्म में हनुमान जी से स्पर्धा करनेवाली भक्तिन किसी अंजना की पुत्री न होकर एक अनामधन्या गोपालिका की कन्या-नाम है लछमिन अर्थात लक्ष्मी। पर जैसे मेरे नाम की विशालता मेरे लिए दुर्वह है, वैसे ही लक्ष्मी की समृद्धि भक्तिन के कपाल की कुंचित रेखाओं में नहीं बंध सकी। वैसे तो जीवन में प्रायः सभी को अपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है पर भक्तिन बहुत समझदार है, क्योंकि वह अपना समृद्धि-सूचक नाम किसी को बताती नहीं। केवल जब नौकरी की खोज में आई थी, तब ईमानदारी का परिचय देने के लिए उसने शेष इतिवृत्त के साथ यह भी बता दिया, पर इस प्रार्थना के साथ कि मैं कभी नाम का उपयोग न करूं। (C.B.S.E. Delhi 2008, Sample Paper, 2011 Set-I,C.B.S.E. Delhi 2013, Set-I, II, III) अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न 2. पिता का उस पर अगाध प्रेम होने के कारण स्वभावतः ईर्ष्यालु और संपत्ति की रक्षा में सतर्क विमाता ने उनके मरणांतक रोग का समाचार तब भेजा, जब वह मृत्यु की सूचना भी बन चुका था। रोने-पीटने के अपशकुन से बचने के लिए सास ने भी उसे कुछ न बताया। बहुत दिन से नैहर नहीं गई, सो जाकर देख आवे, यही कहकर और पहना-उढ़ाकर सास ने उसे विदा कर दिया। इस अप्रत्याशित अनुग्रह ने उसके पैरों में जो पंख लगा दिए थे, वे गाँव की सीमा में पहुँचते ही झड़ गए। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न 3. जीवन के दूसरे परिच्छेद में भी सुख की अपेक्षा दुख ही अधिक है। जब उसने गेहुएँ रंग और बटिया जैसे मुखवाली पहली कन्या के दो अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न 4. भोजन के समय जब मैंने अपनी निश्चित सीमा के भीतर निर्दिष्ट स्थान ग्रहण कर लिया, तब भक्तिन ने प्रसन्नता से लबालब दृष्टि और आत्मतुष्टि से आप्लावित मुसकराहट के साथ मेरी फूल की थाली में एक अंगुल मोटी और गहरी काली चित्तीदार चार रोटियाँ रखकर उसे टेढ़ी कर गाढ़ी दाल परोस दी। पर जब उसके उत्साह पर तुषारपात करते हुए मैंने रुआंसे भाव से कहा-‘यह क्या बनाया है’ तब वह हतबुद्धि हो गई। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर । प्रश्न 5. इसी से मेरी किसी पस्तक के प्रकाशित होने पर उसके मुख पर प्रसन्नता की आभा वैसे ही उदभासित हो उठती है. जैसे स्विच दबाने से बल्ब में छिपा आलोक। वह सूने में उसे बार-बार छूकर, आँखों के निकट ले जाकर और सब ओर घुमा-फिराकर मानो अपनी सहायता का अंश खोजती है और उसकी दृष्टि में व्यक्त आत्मघोष कहता है कि उसे निराश नहीं होना पड़ता। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न 6. जब गत वर्ष युद्ध के भूत ने वीरता के स्थान में पलायन-वृत्ति जगा दी थी, तब भक्तिन पहली ही बार सेवक की विनीत मुद्रा के साथ मुझसे गाँव चलने का अनुरोध करने आई। वह लकड़ी के मचान पर अपनी नई धोती बिछाकर मेरे कपड़े रख देगी, दीवाल में कीलें गाड़कर और उनपर तख्ने रखकर मेरी किताबें सजा देगी, धान के पुआल का गोंदरा बनवाकर और उसपर अपना कंबल बिछाकर वह मेरे सोने का प्रबंध करेगी। मेरे रंग, स्याही आदि को नई हँडियों में संजोकर रख देगी और कागज-पत्रों को छीके में यथाविधि एकत्र कर देगी। अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न
7. भक्तिन और मेरे बीच में सेवक-स्वामी का संबंध है, यह कहना कठिन है, क्योंकि ऐसा कोई स्वामी नहीं हो सकता, जो इच्छा होने पर भी सेवक को अपनी सेवा से हटा न सके और ऐसा कोई सेवक भी नहीं सुना गया, जो स्वामी के चले जाने का आदेश पाकर अवज्ञा से हँस दे। भक्तिन को नौकर कहना उतना ही असंगत है, जितना अपने घर में बारी-बारी से आने-जानेवाले अंधेरे-उजाले और आँगन में फूलनेवाले गुलाब और आम को सेवक मानना। वे जिस प्रकार एक अस्तित्व रखते हैं, जिसे सार्थकता देने के लिए ही हमें सुख-दुख देते हैं, उसी प्रकार भक्तिन का स्वतंत्र व्यक्तित्व अपने विकास के परिचय के लिए ही मेरे जीवन को घेरे हुए है। (A.I.C.B.S.E. 2016, A.L.C.B.S.E. 2012, Set-1) अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न 2. भक्तिन लेखिका के घर में सेविका का कार्य करती थी लेकिन लेखिका के हृदय में उसके प्रति अपार श्रद्धा तथा प्रेमभाव था। वह उसे एक सेविका न मानकर अपने परिवार का सदस्य मानती थी। लेखिका उसके साथ कभी भी नौकर-मालिक जैसा व्यवहार नहीं करती थी। 3. लेखिका जब कभी परेशान होकर भक्तिन को नौकरी से हटकर चले जाने का आदेश दे देती थी तो उस आदेश को सुनकर भक्तिन हँस दिया करती थी। वह वहाँ से बिलकुल भी नहीं हिलती थी। 4. भक्तिन को नौकर कहना उतना ही असंगत है जितना अपने घर में बारी-बारी से आने-जाने वाले अंधेरै-उजाले और आँगन में फलने वाले गुलाब और आम को सेवक मानना। 5. भक्तिन और लेखिका के पारस्परिक संबंधों को सेवक-स्वामी संबंध इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि उन दोनों में आत्मीय संबंध थे। भक्तिन अपनी स्वामी की तन-मन से सेवा करती थी। वह उनके दिल से ही नहीं बल्कि घर की हर वस्तु से आत्मिक रूप से जुड़ी थी। 6. इस पंक्ति का भाव है कि जिस प्रकार प्रकाश और अंधकार की प्रति स्वतंत्र होती है। उन पर अधिकार पाना असंभव है उसी प्रकार भक्तिन पर अधिकार पाना कठिन था। उसका व्यक्तित्व स्वतंत्र था। 7. इस पंक्ति का आशय है कि भक्तिन का व्यक्तित्व स्वतंत्र था। उसने अपने व्यक्तित्व की छाप से लेखिका के व्यक्तित्व को घेरे हुए था। उसने लेखिका के मन पर अपने पद चिह्न की ऐसी छवि बनाई कि लेखिका अनायास ही उनके व्यक्तित्व का उद्घाटन करने पर मजबूर हो जाती हैं। 8. यह पूर्ण रूप से सत्य है कि भक्तिन का स्वतंत्र व्यक्तित्व अपने विकास के परिचय के लिए कवयित्री/लेखिका महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व को घेरे हुए है। महादेवी वर्मा का व्यक्तित्व ही उसके चरित्र का सबल आधार है। उसका अपने आप अकेले में कोई महत्वपूर्ण अस्तित्व नहीं रखता। लेखिका के जीवन में तरह-तरह की कमियाँ हैं; घोर गरीबी है; अशिक्षा है। उसे तो उचित भाषा का भी ज्ञान नहीं है लेकिन सारा नगर, कॉलेज की लड़कियाँ, लेखिका के सगे-संबंधी, लेखक-कवि आदि सब उसे जानते हैं; मान देते हैं-वह लेखिका के कारण। लेखिका का व्यक्तित्व ही उसके व्यक्तित्व को रचने वाला है। 8. मेरे परिचितों और साहित्यिक बंधुओं से भी भक्तिन विशेष परिचित है, पर उनके प्रति भक्तिन के सम्मान की मात्रा, मेरे प्रति उनके अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न 9. मैं प्रायः सोचती हूँ कि जब ऐसा बुलावा आ पहुँचेगा, जिसमें न धोती साफ़ करने का अवकाश रहेगा, न सामान बाँधने का, न भक्तिन को रुकने का अधिकार होगा, न मुझे रोकने का, तब चिर विदा के अंतिम क्षणों में यह देहातिन वृद्धा क्या करेगी और मैं क्या करूँगी? अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न 10. भक्तिन के संस्कार ऐसे हैं कि वह कारागार से वैसे ही डरती है, जैसे यमलोक से। ऊंची दीवार देखते ही, वह आँख मूंदकर बेहोश हो जाना चाहती है। उसकी यह कमजोरी इतनी प्रसिद्धि पा चुकी है कि लोग मेरे जेल जाने की संभावना बता-बताकर उसे चिढ़ाते रहते हैं। वह डरती नहीं, यह कहना असत्य होगा; पर डर से भी अधिक महत्त्व मेरे साथ का ठहरता है। चुपचाप मुझसे पूछने लगती है कि वह अपनी कै धोती साबुन से साफ़ कर ले, जिससे मुझे वहाँ उसके लिए लज्जित न होना पड़े। क्या-क्या सामान बाँध ले, जिससे मुझे वहाँ किसी प्रकार की असुविधा न हो सके। ऐसी यात्रा में किसी को किसी के साथ जाने का अधिकार नहीं, यह आश्वासन भक्तिन के लिए कोई मूल्य नहीं रखता। वह मेरे न जाने की कल्पना से इतनी प्रसन्न नहीं होती, जितनी अपने साथ न जा सकने की संभावना से अपमानित। भला ऐसा अंधेर हो सकता है जहाँ मालिक वहाँ नौकर-मालिक को ले जाकर बंद कर देने में इतना अन्याय नहीं, पर नौकर को अकेले मुक्त छोड़ देने में पहाड़ के बराबर अन्याय है। ऐसा अन्याय होने पर भक्तिन को बड़े लाट तक लड़ना पड़ेगा। किसी की माई यदि बड़े लाट तक नहीं लड़ी, तो नहीं लड़ी, पर भक्तिन का तो बिना लड़े काम ही नहीं चल सकता। महादेवी वर्मा का संस्मरण कौन सा है?'पथ के साथी' में संस्मरण भी हैं और महादेवी द्वारा पढ़े गए कवियों के जीवन पृष्ठ भी। उन्होंने एक ओर साहित्यकारों की निकटता, आत्मीयता और प्रभाव का काव्यात्मक उल्लेख किया है और दूसरी ओर उनके समग्र जीवन दर्शन को परखने का प्रयत्न किया है।
महादेवी वर्मा के कौनसी रचना रेखाचित्र है?संबंधित लेख. महादेवी के प्रमुख रचनाकार क्या है?महादेवी के लेखन की प्रमुख विधा कविताएं हैं, महादेवी वर्मा के आठ कविता संग्रह हैं- नीहार (1930), रश्मि (1932), नीरजा (1934), सांध्यगीत (1936), दीपशिखा (1942), सप्तपर्णा (अनूदित 1959), प्रथम आयाम (1974), और अग्निरेखा (1990)।
महादेवी द्वारा लिखित निम्न से कौन सा संस्मरण उचित है?महादेवी वर्मा के संस्मरणात्मक रेखाचित्रों का दूसरा संग्रह है " स्मृति की रेखाएँ। इसका प्रथम प्रकाशन 1945 ई. में हुआ।
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