महात्मा गांधी के पिता का उपनाम क्या है? - mahaatma gaandhee ke pita ka upanaam kya hai?

महात्मा गाँधी जी का जीवन परिचय ( Mahatma Gandhi Biography )

महात्मा गाँधी भारत के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे। महात्मा गाँधी का जन्मदिवस हर वर्ष 2 अक्टूबर को गाँधी जयन्ती के रूप में और पूरे विश्व में अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

संक्षिप्त जीवन परिचय ( Biography in Short )


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भाग लें


पूरा नाममोहनदास करमचन्द गाँधी
अन्य नाम राष्ट्रपिता, बापू, महात्मा, गाँधी जी
जन्म 2 अक्टूबर, 1869
जन्म स्थान पोरबन्दर ( गुजरात )
माता पुतलीबाई
पिता करमचन्द गाँधी
विवाह मई 1883
पत्नी कस्तूरबा माखनजी
शिक्षा बैरिस्टर 1891
बच्चे चार पुत्र ( हरीलाल, मणिलाल, रामदास, देवदास )
निधन 30 जनवरी 1948

महात्मा गाँधी भारत के सर्वाधिक महान व्यक्तित्वों में से एक जो किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। वह स्वयं में ही एक पुस्तकालय के भांति है जिनके बारे में जितना जाना या पढ़ा जाये कम है। भारतीय इतिहास और राजनीति के महानायक राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के योगदान को देश सदैव याद रखेगा। आजादी की लड़ाई में अंत तक डटे रहने और ब्रिटिश सत्ता को जड़ से उखाड फेंकने के उनके अदम्य साहस और दृढ़निश्चय और क्रियान्वयन से ये देश सदैव मार्गदर्शित होता रहेगा। भारत को आजाद कराने के युद्ध में एक प्रहरी और मार्गदर्शक के रूप में भूमिका निभाने वाले महापुरुष के बारे में जानते हैं संक्षेप में –

प्रारंभिक जीवन –

महात्मा गाँधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को ब्रिटिश भारत में गुजरात राज्य के काठियाड जिले के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था।  इनके पिता का नाम करमचंद गाँधी और माता का नाम पुतली बाई था। इनके पिता पोरबंदर के दीवान थे। पुतली बाई इनके पिता की चौथी पत्नी थी क्योकि इनसे पहले उनकी तीन पत्नियों की प्रसव के दौरान मृत्यु हो चुकी थी। इनके भाई का नाम लक्ष्मीदास और करसन दास और एक बहन थी जिनका नाम रालियातबेन था।

वैवाहिक जीवन –

14 वर्ष की भी आयु पूरी न कर पाने से पहले ही मई 1883 में इनका विवाह कस्तूरबाई माखनजी कपाड़िया (कस्तूरबा गाँधी) से कर दिया गया। 1885 ईo में इनकी पहली संतान का जन्म हुआ पर वह कुछ दिन ही जीवित रह सकी। बाद में 1888 में इनके पुत्र हरीलाल का जन्म हुआ 1892 में मणीलाल, 1897 में रामदास का और 1900 में देवदास का। यही इनके चार पुत्र थे। 1944 में पूना में कस्तूरबा गाँधी की मृत्यु हो गयी।

शिक्षा व करियर –

गाँधी जी ने राजकोट से सन 1887 में हाईस्कूल किया और कानून की पढाई के लिए 1889  में बम्बई से इंग्लैण्ड गए और 1891 में बेरिएस्टर की डिग्री प्राप्त की। बापस लौटने के बाद राजकोट और बम्बई में वकालत शुरू की परन्तु कामयाब नहीं हुए। फिर दक्षिण अफ्रीका में एक भारतीय व्यापारी अब्दुल्ला ने उन्हें मुक़दमे की पैरवी के लिए आमंत्रित किया और तब गाँधी जी 1893 में दक्षिण अफ्रीका गए। वहां पद भारतीयों के सतह हो रहे भेद भाव से ये दुखी हुए और वहीँ रह कर उनके लिए कुछ करने की ठान ली। यहीं पर इनके साथ भी एक दुखद घटना हुयी जब ये दक्षिण अफ्रीका में डबरन से प्रिटोरिया एक रेल से रिजर्वेशन करा के जा रहे थे तो मैरिट्सबर्ग में एक अंग्रेज ट्रेन में चढ़ा उसे एक अश्वेत (गाँधी जी ) के साथ रेल में सफर करना श्रम की बात लगा और उसने स्थानीय पुलिस की मदद से गाँधी जी को ट्रेन से नीचे उतरवा दिया। बस इसी घटना ने गाँधी जी के ह्रदय में अंग्रेजो के प्रति क्रांति की भावना के बीज बो दिए और वही दिन था जब गाँधी जी ने मन में निश्चय कर लिया कि अंग्रेजो तुमने मुझे रेल ने निकला है एक दिन मैं तुम्हे अपने देश से निकाल फेकूंगा और उन्होंने 15 अगस्त 1947 को यह कर दिखाया। वहीं पर इन्होने 1894 में नटाल इंडियन कांग्रेस की स्थापना की। 1904 में फीनिक्स आश्रम की स्थापना की और 1910 में टॉलस्टाय फार्म की स्थापना की। सत्याग्रह/अवज्ञा आंदोलन का पहला प्रयोग गाँधी जी ने यहीं पर 1906 में किया।  दक्षिण अफ्रीका से इनकी बापसी 9 जनवरी 1915 को हुयी और ये मुंबई के अपोलो बंदरगाह पर उतरे इसी दिन भारत में प्रवासी भारतीय दिवस मनाया जाता है।

महात्मा गाँधी जी द्वारा गाया जाने वाला लोकप्रिय भजन –

रघुपति राघव राजाराम, पतित पावन सीताराम। 
सीताराम सीताराम, भज प्यारे, तू सीताराम। 
ईश्वर अल्लाह तेरो नाम, सब को सन्मति दे भगवान। 
राम रहीम करीम एक समान, हम सब है उनकी संतान। 
सब मिला मांगे यह वरदान, हमारा रहे मानव का ज्ञान। 

राजनीतिक जीवन :- 

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन का तृतीय चरण (1919 – 1947)

दक्षिण अफ्रीका से भारत बापसी के बाद ये गोपाल कृष्ण गोखले के संपर्क में आये और उन्हें अपना राजनीतिक गुरु बना लिया और उन्ही के जरिये ये भारतीय राजनीती में सक्रीय हुए। 1916 ईo में गाँधी जी ने अहमदाबाद के पास साबरमती आश्रम की स्थापना की। अखिल भारतीय राजनीती में इनका पहला साहसिक कदम चम्पारण सत्याग्रह था।

चम्पारण सत्याग्रह (1917)

इस सत्याग्रह के लिए चम्पारण के रामचंद्र शुक्ल ने गाँधी जी को चम्पारण आने के लिए आमंत्रित किया था। चम्पारण सत्याग्रह बिहार के चम्पारण जिले में किसानो पर हो रहे अत्याचारों के विरोध में किया गया था। यहाँ पर किसानो को अपनी जमीन के ३/20 हिस्से पर नील के खेती करना और उसे यूरोपीय मालिकों को एक निर्धारित दाम पर बेचना अनिवार्य कर दिया गया था।  इसे ही तिनकठिया पद्यति भी कहा जाता था। इस सत्याग्रह के बाद सरकार द्वारा एक आयोग गठित किया गया और किसानो की समस्या को सुलझा दिया गया इस तरह इनका पहला सत्याग्रह सफल रहा। एन जी रंगा ने गाँधी जी के इस सत्याग्रह का विरोध किया था। इसी सत्याग्रह के दौरान रवीन्द्रनाथ टैगोर ने इन्हे ‘माहात्मा’ की उपाधि दी।

अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन (1918) –

चम्पारण की सफलता के बाद इनका अगला कदम अहमदाबाद की एक कॉटन टेक्सटाइल मिल और उसके मजदूरों के बीच मजदूरी बढ़ाने को लेकर हुए विवाद में हस्तक्षेप करना था। विवाद का कारण प्लेग बोनस था जिसे मिल मालिक प्लेग के ख़त्म होने के बाद ख़त्म करना चाहते थे लेकिन मजदुर प्रथम विश्व युद्ध के कारण बढ़ी महंगाई के मद्देनजर इस बोनस को जारी रखने की मांग कर रहे थे। अंत में आंदोलन के बाद मजदूरों की माँगो को स्वीकार कर लिया गया और 35% बोनस देने की माँग मान ली।

खेड़ा सत्याग्रह (1918) –

गुजरात के खेड़ा जिले में किसानो की फसल नष्ट हो जाने के बाबजूद भी किसानो से लगान बसूला जा रहा था जिससे किसानो की दशा बहुत ख़राब हो गयी थी अतः गाँधी जी और विट्ठल भाई पटेल ने यहाँ आंदोलन किया और सरकार ने यह घोषणा कर दी की जो किसान लगान दे सकते है उन्ही से लगान बसूला जाये और इस तरह यह आंदोलन समाप्त हो गया।

खिलाफत आंदोलन ( 1919-22) –

यह आंदोलन खलीफा की सत्ता की पुनर्स्थापना के लिए चलाया गया था। दरअसल हुआ ये था कि प्रथम विश्व युद्ध में भारतीय मुसलमानो ने अंग्रेजो की सहायता इस शर्त पर की थी कि वे इनके धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे और उनके धार्मिक स्थलों की रक्षा करेंगे परन्तु युद्ध समाप्ति के बाद ब्रिटिश सरकार अपने वाडे से मुकर गयी और ब्रिटेन व तुर्की के बीच हुयी ‘सेवर्स की संधि’ के तहत तुर्की के सुल्तान के सारे अधिकार छीन लिए गए।  उस समय इस्लाम जगत में तुर्की के सुल्तान का बहुत सम्मान था वे सब उन्हें अपना खलीफा मानते थे परन्तु ब्रिटिश सरकार के इस कारनामे के बाद वे सब सरकार से नफरत करने लगे। लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में हुए कलकत्ता अधिवेशन (सितंबर 1920) में खिलाफत आंदोलन के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया गया। इस आंदोलन का सर्वाधिक विरोध चितरंजन दास ने किया था। कुछ अन्य कांग्रेसी नेताओं जैसे – जिन्ना, एनी बेसेंट और बिपिन चंद्र पाल ने भी इसका विरोध किया और कांग्रेस छोड़ दी। 1924 में यह आंदोलन उस वक्त समाप्त हो गया जब तुर्की में कमाल पाशा के नेतृत्व में सरकार बनी और खलीफा के पद को समाप्त कर दिया गया।

असहयोग आंदोलन (1920-22) –

गाँधी जी ने यह आंदोलन 1 अगस्त 1920 को प्रारम्भ किया। दिसंबर 1920 के कांग्रेज के नागपुर अधिवेशन में असहयोग आंदोलन के प्रस्ताव को पारित कर दिया गया। इस आंदोलन के खर्च हेतु 1921 ईo में तिलक स्वराज फण्ड की स्थापना की गयी जिसमे ६ माह के भीतर ही 1 करोड़ रूपये जमा हो गए।  इस आंदोलन में एक नई चीज सामने आयी कि इस बार वैधानिक साधनो के अंतर्गत स्वराज्य प्राप्ति की विचारधारा को त्याग दिया गया और इसके स्थान पर सरकार के सक्रिय विरोध की बात सामने आयी।इस आंदोलन के तहत गांधीजी ने अपनी कैसर-ए-हिंद की उपाधि त्याग दी साथ ही जमनालाल बजाज ने ‘राय बहादुर’ की। इस आंदोलन के दौरान बहुत से वकीलों ने अपनी वकालत त्याग दी।  इस आंदोलन की सफलता के लिए गाँधी जी ने कुछ नियम अपनाने को कहा जो की निम्न है –

  • कर न देना
  • हाथ से बने खादी कपड़ो का अधिकाधिक प्रयोग
  • छुआछूत का परित्याग
  • सम्पूर्ण देश को कांग्रेस के झंडे के नीचे लाना
  • हिन्दू मुस्लिम एकता
  • स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग
  • अहिंसा पर बल
  • कानूनों की अवज्ञा करना
  • मद्य वहिष्कार

इसी आंदोलन के दौरान काशी विद्यापीठ और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की स्थापना हुयी। 1021 में लॉर्ड रीडिंग वायसराय बनकर भारत आये और दमन चक्र प्रारम्भ हुआ नेताओं की गिरफ़्तारी होने लगी जिसमे सबसे पहले गिरफ्तार होने वाले प्रमुख नेता मुहम्मद अली थे। नवंबर 1921 में प्रिंस ऑफ़ वेल्स के भारत आगमन पर काले झंडे दिखाए गए जिससे सर्कार क्रुद्ध हो गयी और कठोर दमन चक्र प्रारम्भ कर दिया जिससे आंदोलन और गरमा गया। 5 फरवरी 1922 को संयुक्त प्रान्त के गोरखपुर जिले के चौरा-चौरी में किसानो के जुलुस पर प्रशासन ने गोली चलवा दी जिससे क्रुद्ध भीड़ ने तीन फूंक दिया जिसमे एक थानेदार सहित 21 सिपाहियों की मृत्यु हो गयी। इस घटना से क्षुब्ध होकर गाँधी जी ने 12 फरवरी को बारदोली में कांग्रेस समिति की बैठक बुलाई जिसमे असहयोग आंदोलन के स्थगन की घोषणा कर दी।

इसके बाद सरकार ने 22 मार्च को गाँधी जी को गिरफ्तार कर लिया और 6 साल की सजा सुनाई गयी परन्तु बाद में इन्हे आपरेश (आंतो के आपरेशन के लिए) कराने के लिए 2 साल बाद ही 5 फरवरी 1924 को रिहा कर दिया गया (इन दो सालो में ही कांग्रेस दो गुटों चितरंजन दास व मोतीलाल ग्रुप और चक्रवर्ती राजगोपालाचारी व पटेल ग्रुप में बँट गयी)।

मृत्यु –

राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी जी की हत्या 30 जनवरी 1948 को बिड़ला भवन में हिन्दू महासभा से सम्बंधित एक हिन्दू राष्ट्रवादी नाथूराम गोडसे नामक ने कर दी। इनकी शवयात्रा 8 किलो मीटर लम्बी थी। बाद में गोडसे को गिरफ्तार कर मुकदमा चलाया गया और 15 नवम्बर 1949 को फाँसी दे दी गयी। महात्मा गाँधी की समाधि राजघाट (नई दिल्ली) में स्थित है।

गाँधी जी के अन्य नाम –

महात्मा – रवीन्द्रनाथ टैगोर ने

राष्ट्रपिता – सुभाषचंद्र बोस ने

बापू – जवाहरलाल नेहरू ने

मलंग बाबा – खुदाई खिदमतगार ने

जादूगर – शेख मुजीब उर रहमान ने

अर्द्धनग्न फ़कीर – विंस्टन चर्चिल ने

सदी का पुरुष – अलबर्ट आइंस्टीन ने

महात्मा गाँधी जी द्वारा लिखित पुस्तकें –

1909 में ‘हिन्द स्वराज’ लिखी

सत्य के साथ प्रयोग ( My Experiment With Truth ) – आत्मकथा (प्रकाशन – 29 नवंबर 1925 से 3 फरवरी 1929 तक)

Satyagrah in South Africa

On Non Violence

The Words of Gandhi

Non Violent Resistance

सम्मान व पुरस्कार –

1930 ईo में टाइम पत्रिका द्वारा पर्सन ऑफ़ ईयर चुने गए।

इनका नाम 5 बार शांति के नोबेल पुरस्कार के लिए भेजा गया परन्तु इनका चुनाव नहीं हुआ।

महात्मा गाँधी के बारे में अन्य तथ्यात्मक जानकारी –

  • महात्मा गाँधी का सबसे पुराना आश्रम – फीनिक्स (डरबन)
  • इन्होंने अछूतों को हरिजन कहा।
  • 12 अप्रैल 1919 को रवीन्द्र नाथ टैगोर ने महात्मा गाँधी जी के नाम एक पत्र लिखकर भेजा जिसमें पहली बार इन्हें ‘माहात्मा‘ के नाम से सांबोधित किया।
  • 4 जून 1944 को सुभाष चंद्र बोस ने सिंगापुर से रेडियो पर महात्मा गाँधी को सम्बोधित एक सन्देश दिया जिसमे उन्होंने ही सबसे पहले इन्हें ‘राष्ट्रपिता’ कहा।