सुलोचना (सुलोचना = सु+लोचना अर्थात् सुंदर नेत्रों वाली नागराज अनन्त की पुत्री तथा [[रावण पुत्र इंद्रजीत (मेघनाद) की पत्नी थी। जब मेघनाद का वध हुआ तो उसका सिर भगवान श्रीरामचंद्र के पास रह गया। सुलोचना ने रावण को शीश माँगने को कहा तो रावण नें उसे समझाया था कि राम पुरुषोत्तम हैं, उनसे सुलोचना को डरने की बात नहीं।
निहित कथा[संपादित करें]
सुलोचना, मेघनाद का कटा सिर, राम, लक्ष्मण और हनुमान
शूर्पणखा का नाक लक्ष्मण द्वारा काटा गया जिससे उसके भाई रावण ने भगवान राम की पत्नी सीता का हरण कर लिया। सीता माता को छुड़ाने के लिये प्रभु राम लंका पहुंचे और वहाँ युद्ध छिड़ गया। इसी दौरान लक्ष्मण द्वारा रावण पुत्र मेघनाद का वध हो गया। वध के पश्चात मेघनाद का हाथ सुलोचना के समक्ष आकर गिरा। सुलोचना ने सोचा कि पता नहीं यह उसके पति की भुजा है भी या नहीं अतः उसने कहा - "अगर तुम मेरे पति का भुजा हो तो लेखनी से युद्ध का सारा वृत्तांत लिखो।" हाथ ले लिखा "प्रिये! हाँ यह मेरा ही हाथ है। मेरी परम् गति प्रभु राम के अनुज महा तेजस्वी तथा दैवीय शक्तियों के धनी श्री लक्ष्मण के हाथों हो गई है, मेरा शीश श्रीराम के पास सुरक्षित है। मेरा शीश पवनपुत्र हनुमान जी ने रामचंद्र के चरणों पर रखकर मुझे सद्गति प्रदान कर दिया है।"[1] रावण की बातें सुनकर वह राम के पास गई और उनकी प्रार्थना करने लगी। श्रीराम जी उन्हें देखकर उनके समक्ष गए और कहा - "हे देवि! आपसे मैं प्रसन्न हूँ, आप बड़ी ही पतिव्रता हैं, जिसके कारण ही आपका पति पराक्रमवान् था। आप कृपया अपना उपलक्ष्य कहें।" सुलोचना ने कहा - "राघवेंद्र, आप तो हर बात से अवगत हैं। मैं अपने पति के साथ सती होना चाहती हूँ और आपने उनका शीश देने का आग्रह कर रही हूँ।" रामचंद्र जी ने मेघनाद का शीश उन्हें सौप दिया। सुलोचना ने लक्ष्मण को कहा "भ्राता, आप यह मत समझना कि आपने मेरे पति को मारा है। उनका वध करने का पराक्रम किसी में नहीं। यह तो आपकी पत्नी के सतित्व की शक्ति है। अंतर मात्र यह है कि मेरे स्वामी ने असत्य का साथ दिया।" वानरगणों ने पूछा कि आपको यह किसने बताया कि मेघनाद का शीश हमारे पास है? सुलोचना ने कहा - "मुझे स्वामी के हाथ ने बताया।" इस बात पर वानर हँसने लगे और कहा कि ऐसे में तो यह कटा सर भी बात करेगा। सुलोचना ने प्रार्थना की कि अगर उसका पतिव्रत धर्म बना हुआ हो तो वह सर हँसने लगे। और मेघनाद का सर हँसने लगा। ऐसे दृश्य को देख सबने सुलोचना के पतिव्रत का सम्मान किया। सुलोचना ने चंदन की शैया पर अपने पति के शीश को गोद में रखकर अपनी आहुति दे दी।[2]
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ नारी सुलोचना[मृत कड़ियाँ], कथाग्रंथ।
- ↑ अज्ञात नाम Archived 2016-03-05 at the Wayback Machine, आश्रम।
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
जोर-जोर से हंसने लगा था मेघनाथ का कटा हुआ सिर, जानें क्यों
महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित हिंदू धर्मग्रंथ ‘रामायण’ में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के जीवन पर आधारित है। रामायण में उनकी पत्नी माता सीता, भाई लक्ष्मण, पवनपुत्र हनुमान आदि जैसे कई बेहद महत्वपूर्ण चरित्रों का गुणगान है।
महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित हिंदू धर्मग्रंथ ‘रामायण’ में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के जीवन पर आधारित है। रामायण में उनकी पत्नी माता सीता, भाई लक्ष्मण, पवनपुत्र हनुमान आदि जैसे कई बेहद महत्वपूर्ण चरित्रों का गुणगान है। लेकिन इसके साथ ही आसुरी शक्तियों के सम्राट लंकापति रावण, जिसका वध करने के लिए ही स्वयं भगवान विष्णु ने धरती पर पहली बार मानव रूप में अवतार लिया था, के साथ-साथ अन्य भी बहुत सी दुष्ट ताकतों का उल्लेख मिलता है। ‘रामायण’ में उल्लेख मिलता है कि रावण के पुत्र का नाम मेघनाथ था। उसका एक नाम इंद्रजीत भी था। दोनों नाम उसकी बहादुरी के लिए दिए गए थे। इंद्र पर जीत हासिल करने के उपरांत मेघनाथ इंद्रजीत कहलाया और मेघनाथ का नाम मेघनाथ मेघों की आड़ में युद्ध करने के कारण पड़ा। रावण का पुत्र मेघनाथ एक एेसी दुष्ट शक्ति था, जिसका वध भगवान राम के भ्राता लक्ष्मण के हाथों हुआ था। लेकिन मृत्यु हो जाने के बाद अचानक कुछ ऐसा हुआ कि मेघनाथ का कटा सिर अचानक हंसने लगा।
आईए जानें आखिर क्यों श्री राम, लक्ष्मण, हनुमान जी और पूरी वानर सेना के सामने मेघनाद का कटा सिर जोर-जोर से हंसने लगा-
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रावण का पुत्र मेघनाथ एक दुष्ट शक्ति था। जब रावण द्वारा मेघनाथ को श्रीराम और लक्ष्मण को मारने भेजा तो युद्ध के दौरान उसके वह सारे प्रयत्न विफल रहे और इसी युद्ध में लक्ष्मण जी ने अपने घातक बाणों से मेघनाथ का धड़ उसके सिर से अलग कर उसे मार गिराया था।
उसका सिर श्रीराम के आगे रखा गया। उसे वानर और रीछ देखने लगे। तब श्रीराम ने कहा, ‘इसके सिर को संभाल कर रखो। दरअसल, श्रीराम मेघनाथ की मृत्यु की सूचना मेघनाथ की पत्नी सुलोचना को देना चाहते थे। उन्होंने मेघनाथ की एक भुजा को बाण के द्वारा मेघनाथ के महल में पहुंचा दिया। वह भुजा जब मेघनाथ की पत्नी सुलोचना ने देखी तो उसे विश्वास नहीं हुआ कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है। उसने भुजा से कहा अगर तुम वास्तव में नेरे स्वामी की भुजा हो तो मेरी दुविधा को लिखकर दूर करो।
सुलोचना के इतना कहते ही भुजा हरकत करने लगी, तब एक सेविका ने उस भुजा के हाथ में खड़िया लाकर रख दी। उस कटे हुए हाथ ने आंगन में
लक्ष्मण जी के प्रशंसा के शब्द लिख दिए। अब सुलोचना को विश्वास हो गया कि युद्ध में उसका पति मारा गया है। सुलोचना इस समाचार को सुनकर रोने लगी। फिर वह रथ में बैठकर रावण से मिलने चल पड़ी। रावण को सुलोचना ने मेघनाथ का कटा हुआ हाथ दिखा कर अपने पति का सिर मांगा। सुलोचना रावण से बोली कि अब मैं एक पल भी जीवित नहीं रहना चाहती मैं अपने पति के साथ ही सती होना चाहती हूं।
तब रावण ने कहा पुत्री चार घड़ी प्रतिक्षा करो मैं मेघनाथ का सिर शत्रु के सिर के साथ लेकर आता हूं। लेकिन सुलोचना को रावण की बात पर विश्वास नहीं हुआ। तब सुलोचना मंदोदरी के पास गई। तब मंदोदरी ने कहा तुम श्री राम के पास जाओ वह बहुत कृपालु और दयालु हैं।
सुलोचना जब श्री राम के पास पहुंची तो विभीषण ने उसका परिचय करवाया। सुलोचना ने श्री राम से कहा, ‘हे राम मैं आपकी शरण में आई हूं। मेरे पति का सिर मुझे लौटा दें ताकि मैं सती हो सकूं। श्री राम सुलोचना की दशा देखकर दुखी हो गए। उन्होंने कहा कि मैं तुम्हारे पति को अभी जीवित कर देता हूं।’ इस बीच उसने अपनी आप-बीती भी सुनाई।
सुलोचना ने कहा कि, ‘मैं नहीं चाहती कि
मेरे पति जीवित होकर संसार के कष्टों को भोगें। मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि मुझे आपके दर्शन हो गए। मेरा जन्म सार्थक हो गया। अब जीवित रहने की मेरी कोई इच्छा नहीं है।’
श्री राम के कहने पर सुग्रीव मेघनाद का सिर ले आए लेकिन उनके मन में यह आशंका थी कि मेघनाद के कटे हाथ ने लक्ष्मण का गुणगान कैसे किया। सुग्रीव से रहा नहीं गया और उन्होंने कहा मैं सुलोचना की बात को तभी सच मानूंगा जब यह नरमुंड हंसेगा।
सुलोचना के सतीत्व की यह बहुत बड़ी परीक्षा थी। उसने कटे हुए सिर से कहा, ‘हे
स्वामी! जल्दी हंसिए वरना आपके हाथ ने जो लिखा है उसे ये सब सत्य नहीं मानेंगे। इतना सुनते ही मेघनाद का कटा सिर जोर-जोर से हंसने लगा। इस तरह सुलोचना अपने पति का कटा हुए सिर लेकर चली गईं।’