मगर क्या यह _____________ कुछ नहीं हैं? - magar kya yah _____________ kuchh nahin hain?

                
                                                                                 
                            यह हार एक विराम है
                                                                                                
                                                     
                            
जीवन महासंग्राम है
तिल-तिल मिटूँगा पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

स्‍मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खंडहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्‍व की संपत्ति चाहूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

क्‍या हार में क्‍या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संधर्ष पथ पर जो मिले यह भी सही वह भी सही।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

लघुता न अब मेरी छुओ
तुम हो महान बने रहो
अपने हृदय की वेदना मैं व्‍यर्थ त्‍यागूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशाप दो
कुछ भी करो कर्तव्‍य पथ से किंतु भागूँगा नहीं।
वरदान माँगूँगा नहीं।।

- शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

साभार - कविता कोश

5 years ago

शब्द जादू है मगर क्या यह समर्पण कुछ नहीं है?

जब जब मैं घास बाजरे की कलगी को इस देखता हूँ तो सचमुच सम्पूर्ण संसार विरान होते हुए दिखाई देता है। इस संस्कृति का समापन और भी सिमटा हुआ प्रतीत होने लगता है और सुमे स्वयं को अकेले ही समर्पित कर देता हूँ। कवि कहते है कि शब्द जादू है इस से अपनी भावनाओ को अभिव्यक्ति मिलती है। कवि प्रेयसी से प्रश्न करते है।

क्या हार में क्या जीत में किसकी कविता है?

शिवमंगल सिंह 'सुमन' : क्या हार में क्या जीत में किंचित नहीं भयभीत मैं

कलगी बाजरे की कविता किसकी हैं?

कलगी बाजरे की / अज्ञेय

ये उपमान मैले हो चुके हैं देवता इन प्रतीकों के कर गए हैं कूच किसकी काव्य पंक्ति है?

और अधिकअज्ञेय बल्कि केवल यही : ये उपमान मैले हो गए हैंदेवता इन प्रतीकों के कर गए हैं कूच। कभी बासन अधिक घिसने से मुलम्मा छूट जाता है। लहलहाती हवा में कलगी छरहरी बाजरे की?