मोची को अंग्रेजी में क्या बोले हैं? - mochee ko angrejee mein kya bole hain?

पटना से 40 किलोमीटर दूर मछरियावां बाजार है. दोपहर के दो बजे हम यहां पहुंचे थे. ट्रेन की पटरियों के किनारे सब्जियों की दुकानें लगने लगी थीं. अक्टूबर महीने में ठंड दस्तक देने लगती है, लेकिन इस बार गर्मियां लंबी खिंच रही हैं. बाजार में हमने झपसी मोची का पता पूछा पर कोई भी उन्हें जानने वाला नहीं मिला.

हमने सवाल बदल कर लोगों से पूछा कि इस साल 26 जनवरी को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कौन से गांव में तिरंगा फहराने आए थे? इस सवाल पर लोगों ने मछरियावां गांव की तरफ जाने वाला रास्ता बताया. रास्ते में एक बुजुर्ग से हमने दोबारा रास्ता पूछा तो उन्होंने जवाब दिया, ‘‘एक दिन के मुख्यमंत्री जी के यहां जाना है आपको.’’

मोची को अंग्रेजी में क्या बोले हैं? - mochee ko angrejee mein kya bole hain?

इनका नाम कृष्णा प्रसाद था. वो खुद को जयप्रकाश नारायण का शिष्य बताते हैं, पेशे से डॉक्टर हैं और इस बार विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं. ये हमारी गाड़ी में बैठकर झपसी मोची के घर तक पहुंचाते हैं. रास्ते में प्रसाद हमें संपूर्ण क्रांति के दिनों में लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के साथ बिताए पलों का जिक्र करते हैं.

कृष्णा प्रसाद नीतीश कुमार के इस सांकेतिक कदम पर कहते हैं, ‘‘सब ड्रामा है. दिखावा है. साल 2019 में बिहटा प्रखंड के रौनिया गांव के रहने वाले रामवृक्ष मांझी से नीतीश कुमार ने झंडा फहरवाया था. वो मेरा जानने वाला था, हम उससे पूछते थे कि झंडा फहराने के बाद कुछ बदला तो वो कहता, मिलने से पहले बहुत देखभाल किए अधिकारी लोग, लेकिन उसके बाद कोई पूछने तक नहीं आया. उसका कोई बाल-बच्चा नहीं था. देखभाल के अभाव में कुछ दिन पहले मर गया. किसी ने उसकी खोज-ख़बर तक नहीं ली.’’ यह सच्चाई है नीतीश कुमार की इस सांकेतिक राजनीतिक कदम की.

इस बीच हम झपसी मोची के गांव में पहुंच जाते हैं. यहां सड़क ठीक है. नीतीश कुमार के आने के बाद चौड़ी हुई है. गांव में थोड़ा आगे जाने पर एक सामुदायिक भवन पर कुछ लोग बैठे हैं. वहां कृष्णा प्रसाद उतरकर पूछते हैं कि एक दिन वाला मुख्यमंत्री कहां है? एक आदमी बताता है कि ये रहे. यहां मुझे पता चलता है कि सिर्फ कृष्णा प्रसाद ही नहीं आसपास के कई लोग भी झपसी मोची को एक दिन का मुख्यमंत्री कहकर बुलाते हैं.

आंख में चश्मा लगाए, बनियान और लुंगी पहने 85 वर्षीय झपसी मोची सीधे खड़ा होकर नहीं चल पाते हैं. हम उन्हें उनके घर चलने के लिए कहते हैं. इस पर वो कहते हैं कि मेरा कोई घर नहीं है, मैं बच्चों के घर में रहता हूं. कुछ गलियों से होते हुए हम उनके घर तक पहुंच जाते हैं. यह घर अभी अधूरा बना हुआ है. इनके बच्चों ने छत पर झपसी मोची के लिए एक कमरा बनवा दिया है. वहां एक लोहे का बक्सा रखा हुआ था, उस बक्से में वो कपड़े थे जो झपसी मोची ने 26 जनवरी को नीतीश कुमार की उपस्थिति में झंडा फहराते हुए पहने थे.

‘‘आपको सिर्फ तीन शब्द बोलना है’’

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीते कई सालों से 15 अगस्त और 26 जनवरी को प्रदेश के किसी गांव में पहुंचकर किसी महादलित से झंडोत्तोलन करवाते हैं.

इस साल 26 जनवरी को जब नीतीश कुमार मछरियावां झंडा फहराने पहुंचे तब उन्होंने कहा था, ‘‘राज्य में 26 जनवरी और 15 अगस्त को महादलित टोलों में समारोह का आयोजन किया जाता है. हम भी हर साल कहीं न कहीं झंडोत्तोलन में शामिल होते हैं. मेरा दनियावां इलाके से लगाव बहुत पुराना है. मुझे पांच बार इस इलाके का सांसद चुना गया. आपकी वजह से हमें देश के लोग जानने लगे.’’

जिस इलाके के कारण नीतीश कुमार ने अपनी देशभर में पहचान होने का दावा किया, वहां एक महादलित से तिरंगा फहरवा कर सरकार को आम आदमी के दरवाजे तक पहुंचाने का दावा किया, उस मछरियावां गांव और उस झपसी मोची के जीवन में उनके पहुंचने के बाद क्या बदला?

गणतंत्र दिवस के अगले दिन अख़बारों में तस्वीर छपने के अलावा क्या गांव और झपसी मोची की स्थिति में कुछ बदलाव आया? झपसी मोची कहते हैं, ‘‘कुछो नहीं बदला है. हम तो नीतीश कुमार जी से बोले थे कि मेरे दोनों पोतों को कोई नौकरी दे दीजिए. दोनों ग्रेजुएशन किए हुए हैं, तब तक बीडीओ साहब मुझे उनके पास से हटा दिए. आज तक हमें कुछ नहीं मिला.”

यह कह कर मोची अलमारी में रखा बक्सा उतारने लगते हैं. कहते हैं जो मिला है वो हम आपको दिखाते हैं. उस बक्से में जूता, बनियान और एक सफेद कुर्ता रखा हुआ है. वे उन्हें सावधानी के साथ एक-एक करके निकालते हुए हमें दिखाते हैं और कहते हैं, “बस यहीं मिला.” कुछ देर चुप रहने के बाद अपना चश्मा हटाते हुए वे कहते हैं, “आंख से कम दिखता था तो अधिकारियों ने ये चश्मा बनवा दिया था.”

अपने छोटे से कमरे में बैठे झपसी मोची के चेहरे पर उस दिन मुख्यमंत्री से मिलने की खुशी अब भी दिखती है, लेकिन वे उदास इस बात से हैं कि उनकी जिंदगी में कोई बदलाव नहीं आया है. वे बताते हैं, ‘‘मुख्यमंत्री से मिलने से पहले अधिकारियों ने मेरा काफी ख्याल रखा. उस दौरान मेरी एक बार तबीयत बिगड़ गई तो मुझे लेकर अस्पताल तक गए. हर दूसरे दिन वह मुझसे मिलने आते थे, लेकिन अब मैं उनसे मिलने की कोशिश करता हूं तो दूर से ही वापस कर दिया जाता है.मैं साहब (नीतीश कुमार से) से मिलने पटना जाने की सोच रहा हूं. लोग कह रहे हैं कि आजकल चुनाव हैं. वे व्यस्त होंगे इसलिए मैं नहीं जा पा रहा.’’

बिहार में पिछले 15 सालों से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं. इस दौरान बिहार में और आपके इलाके में कुछ बदला है? इस सवाल के जवाब में मोची कहते हैं, ‘‘कुछ खास नहीं बदला है. एक बात हुई है. मुख्यमंत्री से मिलने से पहले तक मुझे वृद्धा पेंशन भी नहीं मिला था, लेकिन उनसे मिलने के समय अधिकारियों ने मेरा वृद्धा पेंशन शुरू करा दिया ताकि मैं उनसे कोई शिकायत ना कर सकूं.”

26 जनवरी के दिन जब मुख्यमंत्री से मुलाकात हुई तब क्या माहौल था. यह सवाल हमने मोची से पूछा तो वह कहने लगे, “झंडा फहराने के लिए स्टेज पर जाने से पहले मुझे अधिकारियों ने कहा था कि आपको सिर्फ तीन बात बोलनी हैं. पहला नीतीश कुमार जिंदाबाद, दूसरा, पेड़ पौधा लगाएं और तीसरा भारत माता की जय. इसके अलावा मुझे वहां कुछ भी बोलने की इजाजत नहीं थी.’’

मोची को अंग्रेजी में क्या बोले हैं? - mochee ko angrejee mein kya bole hain?

मोची आगे कहते हैं, ‘‘झंडा फहराने के बाद मैं मुख्यमंत्री जी से कुछ कहना चाहता था. मुख्यमंत्री जी ने सिर्फ मेरा हाथ पकड़ा और नमस्कार कर दिया. नमस्कार का जवाब देते हुए मैंने भी नमस्कार किया और बोला कि सर मेरे दो पोते हैं. दोनों पढ़े लिखे हैं, लेकिन उनके पास रोजगार नहीं है. कृपया रोजगार दे दीजिए. मेरा इतना कहना ही था कि प्रखंड अधिकारी ने मुझे मुख्यमंत्री के पास से हटाते हुए कहा आपका काम हो गया. लेकिन आज नौ महीने गुजर गए मेरे पोते बेरोजगार ही हैं.’’

इस मौके पर बगल में ही बैठा उनका पोता बादल कुमार बोल पड़ता हैं, ‘‘रोजगार नहीं है. मज़दूरी करने रोजाना जाता हूं. लॉकडाउन में तो स्थिति एकदम खराब हो गई थी. कर्ज लेकर खाना पड़ा. बाबा मुख्यमंत्री जी से बोले भी थे. अधिकारियों ने वादा भी किया, लेकिन हमें नौकरी नहीं मिली. दूसरी तरफ मेरी पत्नी टोला सेवक के रूप में काम करती थी. वहां उसने डेढ़ साल काम किया, लेकिन सिर्फ 12 हज़ार रुपए मिले. बाकी बकाया है. अचानक से वहां के प्रखंड शिक्षा अधिकारी ने उसे भी नौकरी से हटा दिया. वो आमदनी भी बंद हो गई.’’

हमने पूछा कि और किस तरह की दिक्कतें हैं, तो बादल कहते हैं, ‘‘हम लोगों का राशन कार्ड भी नहीं बना है. हमें उज्ज्वला गैस योजना के तहत गैस सिलेंडर भी नहीं मिला.’’

लंबे समय तक बैंड बाजा कंपनी चलाने वाले झपसी मोची कहते हैं, ‘‘जब तक मेरा शरीर ठीक से काम किया मैं अपना बैंड चलाता रहा, लेकिन अब मेरी उमर नहीं बची है. मैं अपने बच्चों पर ही निर्भर हूं. जो भी दाल रोटी वो खाते हैं मुझे भी देते हैं. मेरे पास घर के सिवा कोई जमीन नहीं है.’’

सिर्फ झपसी मोची ही नहीं मछरियावां गांव के तमाम महादलितों की यही स्थिति है. उनके पास घर के अलावा कोई जमीन नहीं है. यहां कुछ ऐसे भी परिवार हैं जो सरकारी जमीन पर झोपड़ी बनाकर रह रहे हैं. उन्हें डर है कि किसी रोज सरकार उनके उनके घर को जमींदोज कर देगी. यहां मिले लोग कहते हैं कि नीतीश कुमार ने वादा किया था कि सबको तीन डिसमिल जमीन दिया जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

हमने पाया कि इस गांव में कुछ दलित परिवारों के घर पक्के बने हुए थे. उनके घरों में बिजली जल रही थी, नल-जल योजना भी पहुंची हुई है. भले ही नल से पानी बहुत धीमी गति से निकलता है. लेकिन यहां के लोगों की सबसे बड़ी समस्या बेरोजगारी है. गांव के ज्यादातर लोग स्थानीय खेतिहर लोगों के खेतों में मजदूरी करते हैं.

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यहां हमारी मुलाकात राजू मोची से हुई. राजू नौजवान है. वे कहते हैं, ‘‘मेरे पास कोई रोजगार का साधन नहीं है.’’ सिर्फ राजू ही नहीं है बाकी कई लोग इस तरह की बातें कहते मिले. गांव की लोगों की माने तो बिजली तो आ गई, लेकिन उसका बिल देने के लिए हमारे पास पैसे नहीं हैं.’’

यहां हमारी मुलाकात सुशीला देवी से हुई. उनके घर में अब तक शौचालय नहीं बना है. वो हमसे बात करते हुए कहती हैं, ‘‘हम यहां काफी दिनों से रह रहे हैं. हमनी को कुछो नहीं मिला. सबके घर में शौचालय बन गया है, लेकिन हमारे घर में शौचालय नहीं है. हम लोगों को बाहर जाना पड़ता है. नीतीश कुमार हमारे यहां नहीं आए वे टीशन से ही लौट गए.

एक स्थानीय युवक ने हमें बताया कि इन तीनों घरों को शौचालय इसलिए नहीं मिला क्योंकि ये लोग सरकारी जमीन पर रह रहे हैं. इनके पास अपनी कोई जमीन नहीं है.

मछरियावां के पास बांकेपुर में आठवीं तक का सरकारी स्कूल है. इस स्कूल में पढ़ाई लिखाई का स्तर यह है कि हमने यहां कम से कम 30 लोगों से उनके देश का नाम पूछा तो सिर्फ एक आदमी भारत बता सका. हमने जिनसे सवाल पूछा उसमें महिलाएं, बच्चे और नौजवान सभी शामिल थे. यहां के ज़्यादातर बच्चे सरकारी स्कूल में ही पढ़ते हैं. लोगों के पास आमदनी का कोई जरिया नहीं है जिस कारण अपने बच्चों को निजी स्कूल में नहीं पढ़ा सकते. हालांकि गांव के दूसरे टोले में जहां दूसरी जातियों के लोग रहते हैं वहां शिक्षा का स्तर काफी बेहतर है. लोगों के हाथ में आईफोन भी दिखे. ये तमाम लोग बिहार सरकार और नीतीश कुमार की तारीफ करते नजर आए.

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‘‘छह महीने से नहीं मिला वेतन’’

इस गांव में नीतीश कुमार के आने के बाद साफ सफाई रखने के लिए कूड़ा उठाने का इंतज़ाम किया गया था. इसके लिए छह लोगों को चुना गया और स्थानीय मुखिया के माध्यम से उन्हें एक ठेला दिया गया था, लेकिन अब वह बंद पड़ा हुआ है.

सफाई का ठेला चलाने वाले सुरेंद्र मोची बताते हैं, ‘‘छह महीने तक हम लोगों के घर-घर जाकर कूड़ा उठाते थे लेकिन हमें कोई मेहनताना नहीं मिला जिसके बाद हमने काम करना बंद कर दिया. हमारा मेहनताना तय नहीं हुआ था. मुखियाजी ने बोला कि जिलाधिकारी साहब से बात करेंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और हम आज फिर इधर-उधर काम करने को मज़बूर है.’’

गांव के मुखिया प्रभात कुमार से जब हमने इस बाबत सवाल किया तो वे कहते हैं, ‘‘गांव में काम तो हुआ है, लेकिन लोगों की चाहते खत्म नहीं होती हैं. जहां तक कूड़ा उठाने की व्यवस्था बंद होने की बात है तो इसके लिए हमारी जिलाधिकारी साहब से बात चल रही है. यह व्यवस्था जल्द ही शुरू हो जाएगी. इनका बकाया वेतन भी दे दिया जाएगा.’’

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बाकी गांवों की स्थिति में नहीं आया बदलाव

नीतीश कुमार हर साल अलग-अलग महादलित टोलो में किसी बुजुर्ग दलित के हाथों झंडा फहरवाते है. ऐसा ही एक गांव जाहिदपुर है जहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार 2018 में झंडा फहराने गए थे और फरीदपुर गांव में दैनिक भास्कर के रिपोर्टर विकास कुमार पहुंचे थे. भास्कर की रिपोर्ट में बताया गया है कि जब नीतीश कुमार इस गांव पहुंचे तो कई घोषणाएं हुई लेकिन उसमें से कुछ को ही अमलीजामा पहनाया जा सका. इन गांवों में खुले में नालियां बह रही हैं जो कई बीमारियों को जन्म देती हैं.

पटना के फुलवारी शरीफ़ की चिलबिली पंचायत में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार साल 2016 में झंडा फहराने आए थे. बीबीसी हिंदी पर छपी सीटू तिवारी की रिपोर्ट में बताया गया है कि इस पंचायत की तस्वीर नहीं बदल पाई है.

यहां भी नीतीश कुमार ने कई वादे जनता से किए थे. लोगों को लगा था कि उनके गांव की तस्वीर बदल जाएगी लेकिन ऐसा हुआ नहीं. अपनी रिपोर्ट में सीटू लिखती हैं, ‘‘चिलबिली के महादलित टोले की मुख्य सड़क से दूरी एक किलोमीटर से अधिक है. उबड़-खाबड़ सड़क, किसी अच्छे-भले स्वस्थ आदमी को भी बीमार बना सकती है. मुख्यमंत्री के 2016 में आने से पहले रोड को 'अस्थायी तौर पर' ठीक किया गया था लेकिन उसके बाद कभी रोड ठीक करने का काम नहीं हुआ. गांव वालों के लिए सबसे निकटस्थ प्राइमरी हेल्थ सेंटर, फुलवारी शरीफ़ है, जो यहां से आठ किलोमीटर दूर है.’’

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नीतीश कुमार महादलित टोला में क्यों फहरवाते हैं झंडा?

नीतीश कुमार जिन महादलित टोले में पहुंचे वहां के लोगों के जीवन में खास बदलाव नहीं आया तो आखिर नीतीश कुमार यहां क्यों जाते हैं? इस सवाल के जवाब में बिहार के रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार पुष्यमित्र कहते हैं, ‘‘नीतीश कुमार के लिए बिहार में दो नेता खतरा हैं, एक लालू प्रसाद यादव और दूसरे रामविलास पासवान. इन्हें कमजोर करने के लिए नीतीश कुमार ने सत्ता में आते ही दो काम किए. पहला, पिछड़ा में अतिपिछड़ा वर्ग बनाया और दूसरा दलितों में महादलित बनाया. लालू जी को पिछड़ों का नेता माना जाता है तो यादव से दूसरी पिछड़ी जातियों को अलग करने लिए उन्होंने अति पिछड़ा बना दिया. उनका कहना था कि पिछड़ा का सारा लाभ यादवों को मिल रहा है. दूसरा रामविलास पासवान को दलित नेता माना जाता था तो उन्हें कमज़ोर करने के लिए महादलित बनाया. और इन्हें अपना वोट बैंक बनाने के लिए वे यह झंडात्तोलन करते रहते हैं ताकि यह दिखा सकें कि हम आपके साथ हैं. लेकिन उन जगहों पर ठीक से काम नहीं हो पाया.’’

पुष्यमित्र कहते हैं, ‘‘इन्होने दशरथ माझी को भी सम्मानित करते हुए अपनी कुर्सी पर बैठाया, लेकिन आप उनके भी गांव जाएंगे तो वहां भी कोई बदलाव नहीं हुआ. पटना में योजना बन जाती है, लेकिन वह जमीन पर नहीं उतर पाती है. उनको राजनीति करनी है तो वे चले जाते हैं. इसलिए आप देखेंगे कि ज़्यादा कुपोषण का मामला महादलितों में हैं. उनके बच्चों की तस्करी होती है और वे बच्चे कम उम्र में ही मज़दूरी करने को मज़बूर हो जाते हैं.’’

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पुष्यमित्र आगे कहते हैं, ‘‘इसी मकसद से उन्होंने जीतनराम मांझी को भी मुख्यमंत्री बनाया. मांझी को उन्होंने तब मुख्यमंत्री बनाया जब नीतीश जी यह तय नहीं कर पा रहे थे कि वे नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी के साथ रहे या न रहे. तो उस वक़्त जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना दिया क्योंकि वे महादलित थे. लेकिन जब उन्हें लगा कि मांझी उनके यस मैन नहीं हैं तो उनको हटा भी दिया. लेकिन इन तमाम उल्टफेर के बाद भी महादलितों की जिंदगी में कोई बदलाव नहीं हुआ. वे आज भी अशिक्षित हैं और दोयम दर्जे की जिंदगी जी रहे हैं.’’

जब हम इस मछरियावां से निकलने लगे तो हमारी गाड़ी के पास आकर झपसी मोची कहते हैं, ‘‘मैं चाहता हूं कि सामुदायिक भवन की छत पर जाने के लिए सीढ़ी बन जाए ताकि हमारी बहन-बेटियों को सड़क किनारे बैठकर न रहना पड़े. वे छत पर जाकर बैठ जाए. साहब कुछों नहीं मिला लेकिन अगर ये काम हो जाएगा तो मुझे काफी ख़ुशी होगी. बहु-बेटियों को राहत मिलेगी.’’

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यह स्टोरी एनएल सेना सीरीज का हिस्सा है, जिसमें हमारे 34 पाठकों ने योगदान दिया. आप भी हमारे बिहार इलेक्शन 2020 सेना प्रोजेक्ट को सपोर्ट करें और गर्व से कहें 'मेरे खर्च पर आज़ाद हैं ख़बरें'.

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मोची को इंग्लिश में क्या बोलता है?

मोची MEANING IN ENGLISH - EXACT MATCHES Usage : The cobbler repaired my old shoes.

मोची शब्द क्या है?

वाक्य में प्रयोग - मैनें अपने जूते एक कुशल मोची से बनवाए ।