लोक सभा उपाध्यक्ष कौन है 2022 - lok sabha upaadhyaksh kaun hai 2022

'स्पीकर' की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष यानि 'डेप्यूटी स्पीकर' लोकसभा की अध्यक्षता करता है। उसका निर्वाचन भी उसी प्रकार होता है, जैसे सदन द्वारा अध्यक्ष का किया जाता है। उसे भी अध्यक्ष की भांति उसके पद से हटाया जा सकता है। जब वह 'स्पीकर' के स्थान पर कार्य करता है, तो उसके पास स्पीकर की समस्त शक्तियां होती हैं और वह 'स्पीकर' के समस्त कार्य करता है। लेकिन जब सदन की अध्यक्षता 'स्पीकर' द्वारा की जा रही होती है, तब उपाध्यक्ष एक सामान्य सदस्य की भांति होता है। वह किसी भी अन्य सदस्य की भांति बोल सकता है, अपनी पार्टी से संबंध बना सकता है और किसी भी अन्य साधारण सदस्य की भांति किसी प्रस्ताव पर मत दे सकता है। उपाध्यक्ष को भी नियमित वेतन प्राप्त होता है। लोकसभा उपाध्यक्ष को एक विशेषाधिकार यह भी प्राप्त है कि जब उसे किसी संसदीय समिति का सदस्य नियुक्त किया जाता है, तो वह स्वतः ही उसका अध्यक्ष बन जाता है। अपने पद के विशेषाधिकार के कारण यदि वह चाहे तो किसी भी समिति की किसी भी सभा में उपस्थित हो सकता है व अध्यक्षता कर सकता है। ....अगला सवाल पढ़े

Tags : राजव्यवस्था प्रश्नोत्तरी लोकसभा प्रश्नोत्तरी संसद प्रश्नोत्तरी

Useful for : UPSC, State PSC, IBPS, SSC, Railway, NDA, Police Exams

Web Title : Vartman Loksabha Upadhyaksh Kaun Hai

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आज के इस आर्टिकल में मै आपको “ भारत के वर्तमान लोकसभा उपाध्यक्ष कौन है | Bharat ke Vartman Lok sabha upadhyaksh kaun hai” की जानकारी उपलब्ध कराने जा रहा हूँ, जिन्हे आप अध्ययन कर अपने प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी के उपयोग में ला करेंगे, आशा करता हूँ मेरा यह प्रयास आपको जरुर पसंद आएगा। तो चलिए जानते हैं –

Bharat ke Vartman Lok sabha upadhyaksh kaun hai

 

Answer – भारत के वर्तमान लोकसभा उपाध्यक्ष का पद रिक्त है।

लोकसभा उपाध्यक्ष कौन होता है ?

अध्यक्ष के बाद उपाध्यक्ष लोकसभा का कार्य निर्वाहन करता है। लोकसभा के उपाध्यक्ष को विपक्ष से चुने जाने की परंपरा है। लोकसभा के सदस्य अपने में से किसी एक का उपाध्यक्ष के रूप में चुनाव करते हैं।

यदी संबंधित सदस्य का लोकसभा की सदस्यता खत्म हो जाती है तो उसका अध्यक्ष या उपाध्यक्ष पद भी खत्म हो जाता है। उपाध्यक्ष अपना त्याग पत्र अध्यक्ष को संबोधित करता है। लोकसभा के उपस्थित सदस्यों के बहुमत से संमत किये हुए प्रस्ताव के अनुसार अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को पदच्युत (पद से निकाला जाना) किया जा सकता है।

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लोक सभा उपाध्यक्ष का  पद भारत के प्रमुख संवैधानिक पदों में से एक है | संसद के निचले सदन ,अर्थात लोक सभा में अध्यक्ष के अनुपस्थित रहने पर सदन के कार्यवाही की जिम्मेदारी लोक सभा के उपाध्यक्ष पर ही होती है | इस पद के इतिहास  को 1919 के भारत सरकार अधिनियम (जिसे मोंटागु-चेम्सफोर्ड सुधार अधिनियम के नाम से भी जाना जाता है) में देखे जा सकते हैं जिसके आधार पर 1921 में इस पद का सृजन हुआ | 1921 से पहले भारत का गवर्नर जनरल केंद्रीय विधानपरिषद की बैठक का पीठासीन अधिकारी होता था । 1921 में  सच्चिदानंद सिन्हा को केंद्रीय विधानपरिषद का प्रथम  उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया । उस समय अध्यक्ष व उपाध्यक्ष क्रमश: “प्रेसीडेंट” व “डिप्टी प्रेसीडेंट” कहलाते थे | भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत प्रेसीडेंट व डिप्टी प्रेसीडेंट को क्रमशः अध्यक्ष व उपाध्यक्ष कहा गया। आज़ादी के बाद एम.ए.आयंगर लोक सभा के प्रथम उपाध्यक्ष बने |

इस लेख में लोक सभा उपाध्यक्ष के पद से जुड़े हर पहलु की जानकारी दी गई है | हिंदी माध्यम में UPSC से जुड़े मार्गदर्शन के लिए अवश्य देखें हमारा हिंदी पेज  आईएएस हिंदी |

लोक सभा के  उपाध्यक्ष का चुनाव एवं पदत्याग 

लोक सभा के  उपाध्यक्ष का चुनाव  लोक सभा के सदस्यों द्वारा ही किया  जाता है । सदन में  अध्यक्ष के चुने जाने के बाद अध्यक्ष  उपाध्यक्ष के चुनाव की एक तारीख  निर्धारित करता है। इस तारीख पर सदन के सदस्य आपस में से ही किसी एक सदस्य को उपाध्यक्ष चुनते हैं | जब उपाध्यक्ष का स्थान रिक्त होता है तो लोकसभा दूसरे सदस्य को इस स्थान के लिए चुनती है। चुनाव के बाद अध्यक्ष की ही तरह, उपाध्यक्ष भी सदन के कार्यकाल तक (अर्थात साधारणतः 5 साल तक ) अपना  पद धारण करता है।  वह निम्नलिखित 3  परीस्थितियों में लोक सभा का  उपाध्यक्ष नहीं रहता है:

  1. जब उसके सदन की सदस्यता चली जाए ,
  2. जब वह  अध्यक्ष को संबोधित कर  अपना  त्यागपत्र सौंप दे , अथवा 
  3. यदि उसे लोकसभा के  सदस्यों द्वारा  बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा हटा दिया जाए (किंतु ऐसा प्रस्ताव उपाध्यक्ष को 14 दिन की अग्रिम सूचना देने के बाद ही पेश किया जा सकता है ) 

कार्य एवं शक्तियां 

  • लोक सभा के अध्यक्ष का पद रिक्त होने पर उपाध्यक्ष के उपर ही उसके  कार्यों की जिम्मेदारी होती  है। सदन की बैठक में अध्यक्ष की अनुपस्थिति की स्थिति  में उपाध्यक्ष, अध्यक्ष के तौर पर काम करता है। दोनों ही स्थितियों में वह अध्यक्ष की शक्ति का निर्वहन करता है। संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में भी अध्यक्ष की अनुपस्थिति में उपाध्यक्ष पीठासीन अधिकारी के तौर पर कार्य करता  है।
  • यहाँ यह ध्यातव्य  है कि उपाध्यक्ष, अध्यक्ष का  अधीन नहीं होता । वह प्रत्यक्ष रूप से केवल  संसद के प्रति उत्तरदायी होता है।
  • जब  भी उपाध्यक्ष को किसी संसदीय समिति का सदस्य बनाया जाता है तो वह  उस समिति का पदेन  सभापति होता  है। यह भारतीय संविधान द्वारा लोक सभा उपाध्यक्ष  को  दिया गया  एक विशेषाधिकार है।
  • अध्यक्ष की ही तरह, उपाध्यक्ष भी जब पीठासीन होता है, तब वह सदन में  मतदान  नहीं कर  सकता। केवल 2 पक्षों के बीच  मत (वोट) बराबर होने की स्थिति  में ही उसे मतदान के प्रयोग का अधिकार  है।
  • जब उपाध्यक्ष को हटाने का प्रस्ताव सदन के विचाराधीन हो तब  वह पीठासीन नहीं हो सकता ( हालांकि उसे सदन की बैठक  में उपस्थित रहने का अधिकार है ) |
  • जब अध्यक्ष सदन में पीठासीन होता है तो उपाध्यक्ष सदन के अन्य दूसरे सदस्यों की तरह होता है । उसे सदन में बोलने, कार्यवाही में भाग लेने और किसी प्रश्न पर मत देने का अधिकार है।
  • उपाध्यक्ष संसद द्वारा निर्धारित किए गए वेतन व भत्ते का हकदार है जो भारत की संचित निधि (Consolidated fund)  द्वारा देय होता है ।
  • परम्परानुसार यह प्रथा थी की लोक सभा के  अध्यक्ष व उपाध्यक्ष  सत्ताधारी दल के ही होंगे | किंतु वर्तमान में  अध्यक्ष 

    उपाध्यक्ष कौन होता है?

    अध्यक्ष के बाद उपाध्यक्ष लोकसभा का कार्य निर्वाहन करता है। लोकसभा के उपाध्यक्ष को विपक्ष से चुने जाने की परंपरा है। लोकसभा के सदस्य अपने में से किसी एक का उपाध्यक्ष के रूप में चुनाव करते हैं। यदि संबंधित सदस्य का लोकसभा की सदस्यता खत्म हो जाती है तो उसका अध्यक्ष या उपाध्यक्ष पद भी खत्म हो जाता है।

    सभा के प्रथम उपाध्यक्ष कौन थे?

    सूची
    क्र॰
    उपाध्यक्ष
    कार्यकाल
    एस वी कृष्णमूर्ति राव
    ३१ मई १९५२
    वायलेट अल्वा
    १९ अप्रैल १९६२
    भाऊराव देवाजी खोब्रागडे
    १७ दिसम्बर १९६९
    गोदे मुरहारी
    ४ अप्रैल १९७२
    राज्य सभा के उपाध्यक्ष - विकिपीडियाhi.wikipedia.org › wiki › राज्य_सभा_के_उपाध्यक्षnull

    लोकसभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या कितनी होती है?

    संविधान में व्‍यवस्‍था है कि सदन की अधिकतम सदस्‍य संख्‍या 552 होगी – 530 सदस्‍य राज्‍यों का प्रतिनिधित्‍व करेंगे, 20 सदस्‍य संघशासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्‍व करेंगे तथा 2 सदस्‍यों को राष्‍ट्रपति द्वारा एंग्‍लो-इण्डियन समुदाय से नामित किया जाएगा।

    लोकसभा सीटों की संख्या कितनी है?

    वर्तमान में, सदन में 543 सीटें हैं जो अधिकतम 543 निर्वाचित सदस्यों के चुनाव से बनती हैं।