क्या मृत्यु के समय कष्ट होता है? - kya mrtyu ke samay kasht hota hai?

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Gitika dubey

| नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: Apr 23, 2022, 12:15 AM

मृत्‍यु जीवन का सबसे बड़ा सत्‍य है, जिसे संसार की कोई ताकत और कोई शक्ति झुठला नहीं सकती। व्‍यक्ति कितना भी शक्तिशाली क्‍यों न हो, इस सत्‍य को नहीं बदल सकता। लेकिन कुछ ऐसे उपाय हैं जिनको आजमाकर आप मृत्‍यु के समय होने वाले कष्‍ट को कुछ कम कर सकते हैं। घर में यदि कोई व्‍यक्ति लंबे समय से किसी बीमारी से जूझ रहा है और चिकित्‍सक भी हार मान चुके हैं तो उस वक्‍त रोगी का मन संसार से हटाकर भगवान में लगा देने से बेहतर कुछ भी नहीं हैं। इसके लिए आपको कुछ उपाय आजमाने चाहिए...

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    यह काम करने से कम होगा कष्‍ट

    ऐसे व्‍यक्ति के पास बैठकर जब तक उसके मन में चेतना रहे तब तक भगवान के स्‍वरूप की, उनकी लीलाओं की और उनके चमत्‍कार की बातें सुनाएं। इसके अलावा श्रीमद्भगवत गीता का सार सुनाएं। इनमें गीता के 7वें, 9वें, 12वें और 15वें अध्‍याय विशेष उपयोगी हैं। इनमें से रोगी की रुचि का ध्‍यान रखते हुए उसे सुनाएं। रोगी के समक्ष हल्‍की और मधुर ध्‍वनि में कीर्तन सुनाएं।

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    दिखाते रहें ऐसे चित्र

    यदि व्‍यक्ति भगवान के साकार रूप का प्रेमी हो तो उसको अपने इष्‍ट भगवान विष्‍णु, राम, कृष्‍ण, शिव, दुर्गा, गणेश किसी के भी चित्र का सतत दर्शन करवाते रहें। यदि व्‍यक्ति निराकार रूप का उपासक हो तो आत्‍मा, ब्रह्म के तत्‍वों के बारे में बता सकते हैं।

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    ऐसा रखें रोगी का स्‍थान

    रोगी के स्‍थान को आखिरी वक्‍त में पवित्र धूप, धुएं, कर्पूर से सुगंधित रखें। इसके साथ ही उसे सुबह शाम कर्पूर या घी के दीपक की ज्‍योति उसे दिखाएं। अगर आप समर्थ हों तो उसके द्वारा उसके इष्‍ट भगवत स्‍वरूप की मूर्ति का पूजन भी करवाएं।

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    पहनाएं यह माला

    रोगी के गले में रुचि के अनुसार तुलसी या फिर रुद्राक्ष की माला पहना दें। मस्‍तक पर रोजाना रुचि के अनुसार चंदन और गोपीचंदन का तिलक लगाएं। रोगी के निकट रामरक्षा या फिर महामृत्‍युंजय मंत्र का पाठ करें। एकदम अंत समय आ जाने पर पवित्र नारायण नामक की विपुल ध्‍वनि करें।

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    मृत्‍यु के वक्‍त करें ऐसा

    लगे जब कि आत्‍मा शरीर का साथ छोड़ने वाली है तब उसे गंगाजल से स्‍नान कराएं और मुंह में भी गंगाजल और तुलसी डालें। ऐसा करने से व्‍यक्ति को प्राण त्‍यागने में कम कष्‍ट होता है।

मृत्यु के समय कैसा अनुभव होता है यह सभी जानना चाहते हैं. महापुराण माने गए गरुड़ पुराण में बताया गया है कि मरते समय कैसा अनुभव होता है. उस समय व्‍यक्ति क्‍या सोचता है और कैसे शारीरिक कष्‍ट से गुजरता है. इसमें यह भी कहा गया है कि जिन लोगों के कर्म (Karma) अच्‍छे होते हैं, उन्‍हें मरते समय और मरने के बाद कष्‍ट नहीं होता है. वे आसान मौत (Easy Death) के भागीदार बनते हैं. वहीं इंसान के कुछ कर्म ऐसे होते हैं, जो उसे मृत्‍यु के समय बहुत कष्‍ट देते हैं.

मृत्‍यु के समय किन कारणों से होता है कष्‍ट 
गरुड़ पुराण के मुताबिक कुछ कर्म ऐसे होते हैं जिनके कारण व्‍यक्ति को मृत्‍यु के समय बहुत कष्‍ट उठाना पड़ता है. जैसे- महिलाओं का अपमान करने वाले लोग, दूसरों का पैसा हड़पने वाले लोग, धोखा देने और झूठ बोलने वाले लोग, गरीब-असहाय लोगों को परेशान करने वाले लोग. इन लोगों को मृत्‍यु के समय बहुत कष्‍ट होता है. साथ ही मरने के बाद भी इनकी आत्‍मा की यात्रा बहुत मुश्किल होती है. लिहाजा ऐसे कामों से बचना ही बेहतर है. यहां तक कि खराब नीयत और धोखेबाजी से कमाया गया पैसा न केवल उस पापी व्‍यक्ति को, बल्कि उसकी संतान को भी कष्‍ट देती है.

कैसे अनुभव होता है मृत्यु से पहले
बुरे कर्म करने वाले लोगों की मृत्‍यु से पहले आवाज चली जाती है. उन्‍हें यमदूतों से बहुत डर लगता है. उन्‍हें आसपास खड़े परिजन भी दिखाई देना बंद हो जाते हैं. सूर्य की तेज रोशनी में भी उन्‍हें कुछ नजर नहीं आता है. उसके लिए खाना तो दूर पानी की कुछ बूंदे पीना भी मुश्किल हो जाता है. जिंदगी में किए गए सारे कर्म एक-एक करके उसकी आंखों के सामने आने लगते हैं.

सभी प्रमुख धर्मों में मौत की वेदना के बारे में कमोबेश जिक्र है. कुछ धर्मों में बताया जाता है कि मौत के वक्त इतना दर्द होता है कि जितना जिंदा व्यक्ति की खाल उतारने के वक्त होता होगा; मौत के समय यह तकलीफ खासकर पापी लोगों के साथ होता है. इसको कम करने के उपाय भी सुझाए गए हैं. लेकिन मौत की वेदना से डराने का शायद एक उद्देश्य यह होगा कि लोग डर के मारे ही सही अच्छे और नेक काम करें. हां, नेकी करने का फायदा भी बताया गया है, कि मरने के बाद मोक्ष मिल जाएगा, जन्नत मिल जाएगी. तब किसी तरह की तकलीफ और किल्लत नहीं होगी, आनंद ही आनंद होगा. 

इसके बरअक्स जो पापी होंगे वे नरक या जहन्नुम में जाएंगे, जहां उन्हें बेपनाह दर्द और तकलीफ झेलनी पड़ेगी या वे जन्म-मरण के चक्र में उलझे रहेंगे, दुख भोगते रहेंगे यानी मोक्ष नहीं मिलेगा.

अब सवाल उठता है कि अगर मरने के बाद कोई व्यक्ति जिंदा नहीं होता तो भला यह कौन बताएगा कि मरने के वक्त कितना दर्द होता है. पुनर्जन्म लेने वाला कोई ऐसा व्यक्ति भी नहीं है जिसने मरने के समय अपने दर्द के अनुभव के बारे में बताया हो. तो फिर यह मौत की वेदना हमारे जेहन में कहां से आ गई. शायद बचपन में ही यह धारण हमारे जेहन में समा गई. 

घर-समाज में अच्छे नागरिक बनने की शिक्षा के साथ यह निहित था. नेक इनसान बनाने के इरादे से इस तरह की कहानियां सुनाई जाती हैं. उन्हीं शिक्षाओं में यह भी होता है कि चूंकि एक रोज मरना ही है तो अच्छे कर्म करो ताकि मौत को आसानी से स्वीकार कर सको. इस तरह की शिक्षा पीढ़ी-दर-पीढ़ी दी जाती है. यह दीगर बात है कि मौत स्वीकार या इनकार का इंतजार नहीं करती.

फिर ऐसे विचारक रहे हैं जिन्होंने मौत की वेदना पर तो कुछ नहीं कहा हो पर उन्होंने मौत को अच्छा बताया है. फ्रांसिस बेकन ने ‘ऐसे ऑन डेथ’ में लिखा है, ‘‘मौत शाश्वत जिंदा रहने का दरवाजा खोलने वाली सोने की चाबी है.’’ 

किसी ने कहा कि मौत सबसे बड़ा वरदान है, इसी वजह से इसे अंतिम समय के लिए बचाकर रखा जाता है. सैकड़ों बरस पहले एक इतालवी विचारक ने कहा, ‘‘मुझे मौत से डर नहीं लगता, क्योंकि जब तक मैं जिंदा हूं मौत नहीं है, और जब मौत आएगी तो मेरा वजूद नहीं होगा.’’

इन सबके बावजूद मौत से डर लगता है. कॉमेडियन वुडी ऐलन कहते हैं कि उन्हें मौत से कतई डर नहीं लगता. बस वे यह चाहते हैं कि जब उनकी मौत आए तो वह वहां न हों, यानी उससे कभी उनकी मुलाकात न हो. कई बार हम मौत के बारे में जो चुटकुले सुनते-सुनाते हैं, वह भी दरअसल, जाने-अनजाने उससे भय की वजह से ही बनते हैं.

लेकिन डॉक्टरों का मौत की वेदना के बारे में क्या कहना है? 

उनकी राय है कि मौत के समय दर्द नहीं होता लेकिन अप्राकृतिक मौत के मामले में ऐसा नहीं कहा जा सकता. आम तौर पर मौत के समय दांत दर्द से भी कम दर्द हो सकता है. इसकी वजह यह बताई जाती है कि जिंदगी के आखिरी लम्हों में सेंट्रल नर्वस सिस्टम पर दर्द महसूस न होने देने वाले विषैले पदार्थ जमा हो जाते हैं, दर्द के अभाव में इनसान बेहतर महसूस करने लगता है, गफलत, नीम बेहोशी या बेहोशी के आलम में चला जाता है और अंततः इस आलम से ही निकल जाता है.

आम तौर पर मौत से उतना डर नहीं लगता जितना मौत की बाद की अनिश्चितता डराती है. 

एक बहुत अमीर आदमी थे. उनको मरने से बड़ा डर लगता था. उन्होंने अपने सेक्रेटरी से अपने भय के बारे में बताया. सेक्रेटरी ने उन्हें समझाया कि जब कोई बच्चा मां के पेट में होता है तो उसे वह तंग और अंधकार भरी जगह इतनी अच्छी लगती है कि वह वहां से खुली दुनिया में नहीं आना चाहता. लेकिन तय समय पर उसे दुनिया में आना ही पड़ता है. बच्चा बड़ा होकर जवान और फिर बूढ़ा होता है तो उसे यह दुनिया छोड़ने का मन नहीं होता जबकि अगली दुनिया इससे भी बेहतर है. 

यह तो पता नहीं कि उन्हें अपने सेक्रेटरी बात कितनी तर्कसंगत लगी लेकिन उस अमीर आदमी की मौत की खबर पढ़कर समझ आया कि मौत निश्चित है, और कोई नहीं जानता कि कहां, कब और कैसे आएगी. वह अमीर आदमी समुद्र तट से कुछ किलोमीटर दूर अपनी लग्जरी नाव के पास औंधे मुंह पानी में मरा हुआ पाया गया. यह नहीं पता चला कि उसकी हत्या की गई या उसे मारकर फेंक दिया गया था. 

इसलिए कहा जाता है कि जब तक आप जिंदा हैं, जीवन का आनंद लीजिए. जीवन को उत्सव की तरह लें. कुछ इस तरह से कि हर रोज जी भर कर जिएं, और यह कह दें, ‘जी लिया बस आज मैं तो, कल जो करना है तू कर ले.’ इससे मौत का डर खत्म हो जाता है. 

दुख जीवन का हिस्सा है. टूटी हुई हड्डियों या टूटे हुए दिल को लेकर भी जीते ही हैं. इतना आश्वस्त हो जाएं कि कल को मौत आ जाए तो लगे कि आपने जी लिया है, किसी का प्यार मिला है, किसी को प्यार किया है.

आखिर में, अगर दुनिया को बने हुए अभी 24 घंटे हुए हैं तो इनसान को धरती पर आए महज दो मिनट गुजरे हैं. इसी दौरान हमने बोलना, खेती करना, पढ़ना, लिखना इत्यादि सीखा है. इनसान दुनिया के जीवों में संभवतः सबसे नया है. चिकित्सा विज्ञान तो कुछ सेकंड पहले ही आया है और अभी इसके सहारे खुद को अमर बनाने की उम्मीद निकट भविष्य में नहीं पालनी चाहिए. 

हालांकि वैज्ञानिक मौत को मात देने हर संभव कोशिश कर रहे हैं. मौत अविश्वसनीय मशीन इनसान के हमेशा के लिए निष्क्रिय होने का नाम है. मौत की कोई न कोई वजह होती है. यानी मौत तकनीकी समस्या है और तकनीकी समस्या का हल भी तकनीक से ही निकलेगा. प्रयोगशालाओं में इससे पार पाने की कोशिश जारी है, जिसके अपने नुक्सानात हो सकते हैं और इस पर फिर कभी चर्चा होगी.

वैसे, मौत जिंदगी की हकीकत है. और शायरों ने इस विषय पर काफी कुछ लिखा है, जिसकी चर्चा फिर कभी करेंगे. बहरहाल, इस हकीकत को शायर पंडित ब्रिज नारायण चकबस्त ने बखूबी बयान किया हैः 

ज़िंदगी क्या है अनासिर में ज़ुहूर-ए-तरतीब

मौत क्या है इन्हीं अज्ज़ा का परेशां होना 

(अनासिर यानी एलीमेंट्स या तत्व;  ज़ुहूर-ए-तरतीब यानी करीने से एकत्रित होकर दिखना; अज्ज़ा यानी सामग्री या तत्व; परेशां होना यानी बिखर जाना)

(मोहम्मद वक़ास इंडिया टुडे के सीनियर एडिटर हैं)

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मृत्यु के समय कष्ट क्यों होता है?

ऐसी स्थिति में अंतिम क्षण में मन भटकने लगता है और मृत्यु के समय कष्ट की अनुभूति होती है। पुराणों के अनुसार अगर मृत्यु के समय मन शांत और इच्छाओं से मुक्त हो तो बिना कष्ट से प्राण शरीर त्याग देता है और ऐसे व्यक्ति की आत्मा को परलोक में सुख की अनुभूति होती है।

क्या मृत्यु का समय टल सकता है?

मृत्यु सत्य है, मृत्यु अटल है. मौत को कोई भी नहीं टाल सकता. धरती पर जन्म लेने वाले प्रत्येक मनुष्य की मौत निश्चित है. जिस तरह गर्भ में पलने वाला एक बच्चा कई स्टेज से गुजरते हुए जन्म लेता है, ठीक इसी तरह मृत्यु को प्राप्त होने से पहले भी एक मनुष्य को कई स्टेज से गुजरना होता है.

मृत्यु के समय क्या दिखाई देता है?

मृत्यु के समय शरीर में ये होता है सीमस कोयल के मुताबिक, मृत्यु के क्षणों को समझना मुश्किल है लेकिन अभी तक हुई रिसर्च के मुताबिक, जैसे-जैसे लोग मृत्यु के करीब आते हैं, शरीर के स्ट्रेस केमिकल्स में वृद्धि होती है. कैंसर वाले और शायद अन्य लोगों के शरीर में सूजन भी आने लगती है.

मृत्यु के 24 घंटे बाद आत्मा अपने घर वापस क्यों आती है एक मिनिट निकालकर जरूर पढ़ें?

बता दें कि गरुड़ पुराण में इस बारे में विस्तार से बताया गया है। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है तो यमराज के यमदूत उसे अपने साथ यमलोक ले जाते हैं। यहां उसके अच्छे और बुरे कर्मों का हिसाब होता है और फिर 24 घंटे के अंदर यमदूत उस प्राणी की आत्मा को वापिस घर छोड़ जाते हैं।