Haryana State Board HBSE 9th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 12 कैदी और कोकिला Textbook Exercise Questions and Answers. कैदी और कोकिला प्रश्न उत्तर HBSE 9th
Class प्रश्न 1. कैदी और कोकिला व्याख्या HBSE 9th Class प्रश्न 2. Class 9 Hindi Chapter 12 Bhavarth HBSE प्रश्न 3. Class 9 Hindi Kaidi Aur Kokila Vyakhya HBSE
प्रश्न 4. कैदी और कोकिला HBSE 9th Class प्रश्न 5. कैदी और कोकिला
Question And Answer HBSE प्रश्न 6. Kaidi Aur Kokila Class 9 HBSE प्रश्न 7. कैदी और कोकिला प्रश्न उत्तर Class 9 HBSE प्रश्न 8. Kaidi Aur Kokila Summary HBSE 9th Class प्रश्न 9. Class 9 Hindi Chapter 12 Vyakhya HBSE प्रश्न 10. Kaidi Aur Kokila Vyakhya HBSE 9th Class प्रश्न 11. (ख) (1)
प्रस्तुत पंक्तियों में कोयल के प्रति कवि के मन के ईर्ष्या भाव को प्रस्तुत किया गया है। रचना और अभिव्यक्ति Kaidi Aur Kokila Prashn Uttar HBSE 9th Class प्रश्न 12. Kaidi Aur Kokila HBSE 9th Class प्रश्न 13. पाठेतर सक्रियता पराधीन भारत की कौन-कौन सी जेलें मशहूर थीं, उनमें स्वतंत्रता सेनानियों को किस-किस तरह की यातनाएँ दी जाती थीं? इस बारे में जानकारी प्राप्त कर जेलों की सूची एवं स्वतंत्रता सेनानियों के नामों को राष्ट्रीय पर्व पर भित्ति पत्रिका के रूप में प्रदर्शित करें। HBSE 9th Class Hindi कैदी और कोकिला Important Questions and AnswersClass 9 Hindi Kshitij Chapter 12 Vyakhya HBSE प्रश्न 1. Kaidi Aur
Kokila Ke Prashn Uttar HBSE 9th Class प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. वह फुदक-फुदक कर एक टहनी से दूसरी टहनी पर जा बैठती है। वह प्रसन्नतापूर्वक मधुर ध्वनि में कूक-कूक कर अपने मन की प्रसन्नता व्यक्त कर रही है। दूसरी ओर, कवि तंग कोठरी में पड़ा हुआ दुःखी हो रहा है। प्रश्न 5. बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. प्रश्न 21. प्रश्न 22. प्रश्न 23. प्रश्न 24. प्रश्न 25. प्रश्न 26. कैदी और कोकिला अर्थग्रहण एवं सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर 1. क्या गाती हो ? शब्दार्थ-घेरे में = बंधन में। बटमार = रास्ते में यात्रियों को लूटने वाला । तम = अंधकार । हिमकर = चंद्रमा। कालिमामयी = काले रंग वाली। आली = सखी। प्रश्न (2) प्रस्तुत काव्यांश श्री माखनलाल चतुर्वेदी की प्रमुख काव्य रचना ‘कैदी और कोकिला’ में से उद्धृत है। कवि को स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण कारागार में बंद कर दिया गया था। वहाँ एकाकी और यातनामय वातावरण के कारण उसके मन में निराशा भर गई है। रात को कोयल की ध्वनि सुनकर वह जाग जाता है और अपने मन के दुःख और ब्रिटिश शासन के प्रति अपने आक्रोश को व्यक्त करता हुआ कोयल से ये शब्द कहता है। (3) व्याख्या-कवि कोयल की ध्वनि सुनकर उससे पूछता है कि इस समय तुम रह-रहकर क्या गाती हो ? अपनी इस ध्वनि के माध्यम से तुम किसके लिए और क्या संदेश लाती हो। मुझे इसके विषय में बताओ।। कवि अपने विषय में उसे बताता है कि मैं यहाँ कारागार की ऊँची-ऊँची काली दीवारों के घेरे में डाकुओं, चोरों तथा रास्ते में दूसरों को लूटने वाले बटमारों के बीच बंद हूँ। दूसरी ओर, अंग्रेज सरकार जीने के लिए भर पेट खाना भी नहीं देती। यहाँ ऐसी दशा बना दी गई है कि न हम मर सकते हैं और न ही भली-भाँति जी सकते हैं, बस तड़पते रहते हैं। यहाँ हमारे जीवन पर दिन-रात कठोर पहरा लगाया गया है। अंग्रेजी शासन का प्रभाव गहरे अंधकार के प्रभाव के समान है। कहने का भाव है कि जिस प्रकार अंधकार में कुछ नहीं सूझता; उसी प्रकार अंग्रेजी शासन में किसी के साथ सही न्याय नहीं होता। अब रात काफी बीत चुकी है। चंद्रमा भी मानो निराश होकर चला गया है और उसके जाने के पश्चात रात पूर्णतः अंधकारमयी हो गई है। इस कालिमामयी अर्थात् गहरे काले रंग वाली कोयल तू इस अंधेरी रात में क्यों जाग गई। तुझे क्या गम या चिंता है। भावार्थ-इन काव्य-पंक्तियों में जहाँ एक ओर कवि के मन की निराशा का वर्णन है तो दूसरी ओर अंग्रेज शासन के अत्याचारों को उजागर किया गया है। (4) प्रस्तुत पद में कवि ने जहाँ अपने मन के निराश भावों को अभिव्यक्त किया है वहीं अंग्रेज सरकार के द्वारा भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के साथ किए गए दुर्व्यवहारों एवं शोषण का यथार्थ चित्रण किया है। अंग्रेज सरकार द्वारा किए गए अन्याय एवं अत्याचारों को उजागर करना ही इस काव्यांश का मूल भाव है। (5) (क) भाषा सरल, सहज एवं भावानुकूल है। (6) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने बताया है कि अंग्रेज सरकार भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों पर झूठे मुकद्दमे चलाकर उन्हें कारागार में बंद कर देती थी। उन्हें भर पेट खाना भी नहीं देती थी। वे न तो जी सकते थे और न ही मर सकते थे। उन पर दिन-रात कठोर पहरा लगाया जाता था। 2. क्यों हूक पड़ी? शब्दार्थ-हूक = बोलना। वेदना = पीड़ा। मृदुल = कोमल, मधुर। वैभव = धन-संपत्ति, सुख। बावली = पागल। दावानल = जंगल की आग। ज्वालाएँ = लपटें। प्रश्न (2) व्याख्या कविवर माखनलाल चतुर्वेदी अर्द्धरात्रि के समय कोयल की पीड़ा भरी आवाज सुनकर उससे पूछते हैं, हे कोयल! तू इस प्रकार पीड़ा के बोझ से दबी हुई-सी आवाज में क्यों बोल उठी है ? बताओ तो सही तूने क्या किसी को लूटते हुए देखा है। तू सदा मधुर ध्वनि में बोलने के कारण मधुरता के ऐश्वर्य की रक्षक-सी लगती थी, किंतु आज ऐसी वेदनायुक्त आवाज में क्यों बोल रही हो ? हे कोयल ! क्या तुम पगला गई हो जो आधी रात के समय इस प्रकार कूकने लगी हो। क्या तुझे कहीं जंगल में लगी आग की लपटें दिखाई दी हैं जिन्हें देखकर तुम इस प्रकार कूक रही हो। (3) प्रस्तुत पद्यांश में कवि रात्रि के समय कोयल की कूकने की ध्वनि को सुनकर आशंकित हो उठता है और उससे इस प्रकार रात को कूकने का कारण जानना चाहता है, क्योंकि कवि को कोयल की ध्वनि में मृदुलता की अपेक्षा पीड़ा अनुभव होती है। (4) (क) प्रस्तुत पद प्रश्न शैली में रचित है। इससे जहाँ कवि के मन की जिज्ञासा का बोध होता है, वहीं काव्य-सौंदर्य में वृद्धि हुई है। 3. क्या?-देख न सकती जंजीरों का गहना? शब्दार्थ-गहना = आभूषण। चर्रक चूँ = कोल्हू के चलने पर निकलने वाली ध्वनि। मोट खींचना = पुर, चरसा (चमड़े का डोल जिससे कुएँ आदि से पानी निकाला जाता है।)। जूआ = बैल के कंधों पर रखी जाने वाली लकड़ी। गज़ब ढाना = जुल्म करना। प्रश्न (2) व्याख्या कवि ने कोयल से पूछा है कि क्या वह देख नहीं सकती कि अंग्रेज सरकार ने उन्हें जंजीरों के गहने पहनाए हुए हैं। ये हथकड़ियाँ जो हमने पहनी हुई हैं यही तो ब्रिटिश राज्य के गहने हैं जो वह भारतीयों को पहनाता है। कहने का भाव है ब्रिटिश शासक भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के पैरों में बेड़ियाँ और हाथों
में हथकड़ियाँ डाल देते थे। कवि पुनः कहता है कि कैदियों से कोल्हू चलवाया जाता था उससे जो चर्रक चूँ की ध्वनि निकलती है, वह मानो हमारे जीवन की तान हो। यहाँ कारागार में रहते हुए स्वतंत्रता सेनानी भी मिट्टी पर अपनी अँगुलियों से ही देश-भक्ति के गीत लिखते हैं। मैं अपने पेट पर जूआ लगाकर मोट खींचता हूँ अर्थात् कुएँ से पानी निकालता हूँ। मुझे उस समय ऐसा लगता है कि मैं कुएँ से पानी नहीं, अपितु ब्रिटिश शासन की अकड़ (अहंकार) के कुएँ को खाली कर रहा हूँ। कवि पुनः कोयल को संबोधित करता हुआ कहता है कि दिन में
रुलाने वाली करुणा क्यों जगे अर्थात् दिन में हम करुणा के भाव को चेहरे पर व्यक्त नहीं करते ताकि अंग्रेज शासक यह न समझ लें कि हम टूट चुके हैं। इसलिए तू भी रात को करुणा जगाने वाली ध्वनि करके गजब ढा रही है। (3) कवि के कहने का भाव है कि ब्रिटिश शासन भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति क्रूरता एवं अमानवीय व्यवहार करता था। वह उन्हें कड़ी-से-कड़ी सजा देता था। साधारण अपराधियों और स्वतंत्रता सेनानियों में उसे कोई अंतर महसूस नहीं होता था। कवि ने अंग्रेज शासन के दुर्व्यवहार को दर्शाकर भारतवासियों में राष्ट्रीय चेतना जगाने का सफल प्रयास किया है। (4) (क) प्रस्तुत काव्य-पंक्तियों में चित्रात्मक शैली में भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग एवं बलिदान की भावना को उद्घाटित किया गया है। (5) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने बताया है कि अंग्रेज सरकार भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों पर झूठे मुकद्दमे चलाकर उन्हें कारागार में बंद कर देती थी। उनके पैरों में जंजीरें और हाथों में हथकड़ियाँ पहना देती थी। इतना ही नहीं, उन्हें पशुवत कोल्हू और कुँओं में जोत दिया जाता था। अतः स्पष्ट है कि ब्रिटिश शासक उनके प्रति अमानवीय व्यवहार करते थे। (6) प्रस्तुत पंक्ति में कवि का स्वाभिमान अभिव्यक्त हुआ है। स्वतंत्रता सेनानी दिन में अपने चेहरे पर करुणा के भाव नहीं आने देते थे ताकि अंग्रेज अधिकारी यह न समझ लें कि वे टूट चुके हैं। इसलिए कवि कोयल से भी यही कहता है कि तू भी दिन में न कूक कर अब रात को ही कूकती है। 4. इस शांत समय में, शब्दार्थ-विद्रोह-बीज = विद्रोह की भावना। प्रश्न (2) व्याख्या कवि ने कोयल से पूछा है कि तुम रात के इस शांत समय में और गहन अंधकार को चीरती हुई क्यों रो रही
हो ? इस विषय में कुछ तो बोलो। इस प्रकार अपनी मधुर भाषा के द्वारा तुम क्रांति के बीज बो रही हो। कहने का भाव है कि कोयल की ध्वनि में कवि को विद्रोह की भावना अनुभव हुई है। कवि भी अपनी मधुर भाषा में रचित कविता के द्वारा लोगों के मन में विद्रोह की भावना उत्पन्न करता है। (3) रात के गहन अंधकार एवं शांत वातावरण में जब संपूर्ण संसार सोया हुआ है तब कोयल अपनी ध्वनि द्वारा एक हलचल उत्पन्न करना चाहती है। इसी प्रकार कवि अंग्रेजों के शासन में व्याप्त अंधकार अर्थात् अन्याय के प्रति जनता को सचेत करने का संदेश देना चाहता है। (4) (क) संपूर्ण काव्यांश सरल, सहज एवं प्रवाहमयी भाषा में रचित है। (5) प्रस्तुत पंक्ति में कवि ने बताया है कि विद्रोह की भावना केवल ओजस्वी भाषा में ही नहीं, अपितु मधुर वाणी में भी उत्पन्न की जा सकती है। 5. काली तू, रजनी भी काली, शब्दार्थ-रजनी = रात। करनी काली = बुरे कर्म। लौह-शृंखला = लोहे की जंजीर । हुंकृति = हुँकार। व्याली = सर्पिणी। आली = सखी। मदमाती = मस्ती। प्रश्न (2) व्याख्या प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने अंग्रेजी शासन द्वारा भारतीयों पर किए गए अन्याय एवं अत्याचारों का उल्लेख किया है। कैदी रूपी कवि कोयल से कहता है कि तू काली है और रात भी काली है। इतना ही नहीं, ब्रिटिश शासन के कर्म भी काले हैं अर्थात् उसके द्वारा
किए गए सभी कार्य बुरे हैं। उसकी कल्पना भी काली है अर्थात् वे बुरा ही सोचते हैं। जिस कोठरी में मुझे बंद किया गया है, वह भी काली है। मेरी टोपी काली है। मुझे जो कंबल दिया गया है, वह भी काला है। जिन जंजीरों से मुझे बाँधा गया है, उनका रंग भी काला है। हे कोयल! उनके द्वारा बिठाए गए पहरे की हुंकार सर्पिणी की भाँति काली है। हे सखी! इतना कुछ होने पर भी वे गाली देकर बोलते हैं, किंतु इस काले संकट रूपी सागर के लहराने पर अर्थात् जीवन पर संकट मंडराते रहने पर भी हमें मरने की अर्थात् बलिदान देने की मस्ती छाई
रहती है। हे कोयल! तू बता कि अपने चमकीले गीतों को इस काले वातावरण पर किस प्रकार तैराती हो। मुझे इसका भेद बता दो। (3) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति किए गए दुर्व्यवहार एवं अन्याय को उद्घाटित किया है। वे (स्वतंत्रता सेनानी) संकटकाल की चिंता न करके अपने जीवन का बलिदान करने की मस्ती में झूमते रहते थे। कवि ने उनकी बलिदान की भावना के माध्यम से भारतीयों में देश-प्रेम व राष्ट्रीय चेतना जगाने का प्रयास किया है। (4) (क) संपूर्ण कवितांश में सरल, सहज एवं प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग किया गया है। (5) पहरेदारों की हुंकार कवि को सर्पिणी जैसी प्रतीत होती है। (6) कवि ने काली कोयल, रात्रि काली, ब्रिटिश शासन के कार्य काले, कल्पना काली, काल कोठरी काली, टोपी काली, कंबल काला और लोहे की काली जंजीरों की गणना की है। 6. तुझे मिली हरियाली डाली, शब्दार्थ-डाली = टहनी, शाखा। नसीब = भाग्य। संचार = घूमना-फिरना, उड़ना। दस फुट का संसार = दस फुट की लंबी कोठरी, जिसमें कवि बंद है। कहावें वाह = प्रशंसा प्राप्त करना। गुनाह = अपराध । विषमता = अंतर। रणभेरी = युद्ध का नगाड़ा। हुंकृति = हुँकार। कृति = रचना (काव्य)। मोहन = मोहनदास कर्मचंद गाँधी। आसव = अर्क (आनंद)। प्रश्न (2) व्याख्या-प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने कैदी और कोकिला के जीवन की स्थितियों के
अंतर को स्पष्ट करते हुए कैदी के जीवन के प्रति सहानुभूति अभिव्यक्त की है। कैदी कोयल से कहता है कि तुझे बैठने के लिए हरी-भरी टहनी मिली है और मुझे काल-कोठरी मिली हुई है अर्थात वह कारागार में बंद है। तेरे उड़ने के लिए सारा आकाश है, जबकि मेरे लिए केवल दस फुट की काल-कोठरी है अर्थात् कैदी को दस फुट की छोटी-सी कोठरी में बंद किया हुआ है। इतना ही नहीं, लोग तेरे गीतों को सुनकर वाह-वाह कर उठते हैं अर्थात् तेरे गीतों की सराहना की जाती है किंतु मेरा तो रोना भी अपराध माना जाता है अर्थात् मैं तो रो भी नहीं
सकता। हे कोयल! तेरे-मेरे जीवन में कितना बड़ा अंतर है। तू इस विषमता को देखते हुए भी युद्ध का नगाड़ा बजा रही है। कवि कोयल से पुनः प्रश्न पूछता है कि इस हुँकार पर मैं अपनी रचना में क्या कर सकता हूँ अर्थात् अपनी काव्य-रचनाओं के माध्यम से अंग्रेजी शासन के विरुद्ध भारतीय जनता में विद्रोह की भावना ही भर सकता हूँ। हे कोयल! तू ही बता कि महात्मा गाँधी (मोहनदास कर्मचंद गाँधी) के स्वतंत्रता-प्राप्ति के व्रत पर प्राणों का आनंद किस में भर दूं। (3) प्रस्तुत कवितांश में कवि ने कैदी और कोयल के जीवन की परिस्थितियों के अंतर को स्पष्ट करते हुए कैदी के जीवन के प्रति भारतीयों के मन में सहानुभूति उत्पन्न की है। साथ ही कवि ने महात्मा गाँधी के स्वतंत्रता प्राप्ति के दृढ़ निश्चय को भी उजागर किया है। (4) (क) तुलनात्मक शैली से विषय आकर्षक बन पड़ा है। (5) कवि ने कैदी और कोकिला के जीवन का अंतर स्पष्ट करते हुए बताया है कि कोयल हरी-भरी टहनी पर बैठी थी और कैदी के भाग्य में काल-कोठरी है। इसी प्रकार कोयल खुले आकाश में उड़ान भर सकती है, जबकि कैदी दस फुट लंबी कोठरी में बंद है। कोयल की ध्वनि को सुनकर लोग उसकी प्रशंसा करते हैं, जबकि कैदी अपने दुःख को भी व्यक्त नहीं कर सकता। इस प्रकार कैदी और कोयल के जीवन में अत्यधिक विषमता है। (6) कवि ने मोहन (महात्मा गाँधी) के देश को स्वतंत्र कराने के व्रत की ओर संकेत किया है। कैदी और कोकिला Summary in Hindiकैदी और कोकिला कवि-परिचय प्रश्न- चतुर्वेदी साहित्यिक-क्षेत्र में पत्रकारिता के माध्यम से आए। उनके द्वारा संपादित पत्रों में उनकी रचनाएँ बराबर प्रकाशित होती रहीं। संपादक की हैसियत से उन्हें अपने राष्ट्रीय विचारों को प्रचारित करने तथा देश-सेवा करने का पर्याप्त अवसर मिला। उन्होंने ‘प्रभा’, ‘प्रताप’ तथा ‘कर्मवीर’ नामक तीन पत्रों का संपादन किया। उनकी साहित्यिक-सेवाओं के कारण हिंदी साहित्य जगत ने उनका स्वागत भी प्रभूत मात्रा में किया। सन् 1958 में सागर विश्वविद्यालय
के खंडवा में विशेष दीक्षांत समारोह का आयोजन कर उन्हें डी० लिट् की मानद उपाधि प्रदान की गई। सन् 1963 में इन्हें भारत सरकार द्वारा ‘पद्मभूषण’ एवं ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वे अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रहे। सन् 1965 में मध्य प्रदेश शासन ने खंडवा में इनको विशेष रूप से सम्मानित किया। 2.
प्रमुख रचनाएँ-चतुर्वेदी जी के काव्य संग्रह हैं-‘हिम किरीटनी’, ‘हिम तरंगिनी’, ‘माता’, ‘वेणु लो गूंजे धरा’, ‘युग चरण’, ‘समर्पण’, ‘भरण ज्वार’, ‘बीजुरी काजल आँज रही’ आदि। 3. काव्यगत विशेषताएँ-श्री माखनलाल चतुर्वेदी जी के काव्य में राष्ट्रीयता की भावना सर्वाधिक रूप में मुखरित हुई है। उन्हें अपने देश एवं संस्कृति पर गर्व था। उन्हें अपने देश की स्वतंत्रता और उसके विकास के लिए बड़े-से-बड़ा बलिदान देने में भी सुख अनुभव होता था। इस दृष्टि से उनकी ‘पुष्प की अभिलाषा’ शीर्षक कविता विचारणीय है। माखनलाल चतुर्वेदी जी की आरंभिक कविताओं में भक्ति-भावना भी देखी जा सकती है। उनकी भक्ति-भावना वैष्णव प्रभाव और राष्ट्रीय भावना का मिश्रण है। कहीं-कहीं रहस्यवादी कवियों की भाँति परम सत्ता के प्रति जिज्ञासा और कौतूहल का भाव प्रकट करते हैं। श्री माखनलाल चतुर्वेदी के काव्य में प्रेमानुभूति की भावना का भी चित्रण हुआ है, किंतु वह बहुत कम है। उनके प्रेम काव्य में वैयक्तिक चेतना के साथ-साथ समर्पण की भावना भी है। प्रकृति उनके काव्य का प्रमुख विषय रही है। उन्होंने अपने काव्य में प्रकृति-सौंदर्य के अनेक चित्र अंकित किए हैं “लाल फले हैं गुल बाँसों में मकई पर मोती के दाने 4. भाषा-शैली-चतुर्वेदी जी की काव्य-भाषा सरल, सहज एवं व्यावहारिक है। उन्होंने बोलचाल के शब्दों के साथ-साथ उर्दू-फारसी आदि के शब्दों का भी प्रयोग किया है। उनकी छंद-योजना में नवीनता है। चित्रात्मकता उनकी भाषा-शैली की प्रमुख विशेषता है। उनकी काव्य-भाषा में यदि हुँकार और ओज है तो कहीं करुणा की धारा भी प्रवाहित होती दिखाई देती है। अतः स्पष्ट है कि चतुर्वेदी जी के काव्य का कला-पक्ष अर्थात् भाषा-शैली अत्यंत समृद्ध है। कैदी और कोकिला कविता का सार काव्य-परिचय प्रश्न- कवि स्वयं महान् स्वतंत्रता सेनानी है। वह स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने के कारण जेल में बंद है। वह वहाँ के एकाकी एवं यातनामय जीवन से उदास एवं निराश है। कवि रात को कोयल की ध्वनि सुनकर जाग उठता है। वह कोयल को अपने मन का दुःख, असंतोष और आक्रोश सुनाता है। वह कोयल से पूछता है कि तुम रात्रि के समय किसका और क्या संदेश लाती हो। मैं यहाँ जेल की ऊँची और काली दीवारों में डाकुओं, चोरों और लुटेरों के बीच रहता हूँ। यहाँ कैदियों को भरपेट भोजन भी नहीं दिया जाता । यहाँ अंग्रेजों का कड़ा पहरा है। अंग्रेज शासन भी गहन अंधकार की भाँति काला लगता है। तुम बताओ कि रात के समय पीडामय स्वर में क्यों बोल उठी हो ? क्या तुझे कही जंगल की भयंकर आग दिखाई दी जिसे देखकर तुम कूक उठी हो ? क्या तुम नहीं देख सकती कि यहाँ कैदियों को जंजीरों से बाँधा हुआ है। मैं दिन भर कुएँ से पानी खींचता रहता हूँ किंतु फिर भी दिन में करुणा के भाव चेहरे पर नहीं आने देता। रात को ही करुणा गजब ढाती है। तुम बताओ कि तुम रात के अंधकार को अपनी ध्वनि से बेंधकर मधुर विद्रोह के बीज क्यों बोती हो? इस समय यहाँ हर वस्तु काली है-तू काली, रात काली, अंग्रेज शासन की करनी काली, यह काली कोठरी, टोपी, कंबल, जंजीर आदि सब काली हैं। तू काले संकट-सागर पर अपने मस्ती भरे गीतों को क्यों तैराती हो। तुझे तो हरी-भरी डाली मिली है और मुझे काली कोठरी। तू आकाश में स्वतंत्रतापूर्वक घूमती है और मैं दस फुट की काल कोठरी में बंद हूँ। मेरी और तेरी विषम स्थिति में बहुत अंतर है। अतः कवि को लगता है कि कोयल भी पूरे देश को कारागार के रूप में देखने लगी है। इसीलिए वह आधी रात को कूक उठी है। कवि को कोयल से ईर्ष्या क्यों हो रही है?कवि को कोयल से ईर्ष्या हो रही है इसका सबसे बड़ा कारण कोयल की स्वतंत्रता तथा कवि की पराधीनता है। कवि अंग्रेज़ी सरकार की काल-कोठरी में कैद है परन्तु कोयल हरियाली डाली पर रहती है। वह पूरे आकाश में स्वतंत्र उड़ सकती है परन्तु कवि की दुनिया काल-कोठरी के अंधकारमय जीवन में सिमटकर रह गई है।
कवि कोयल से क्या कहता है?कैदी रूप में कवि कोयल से कहता है कि इस समय सब तरह अंधकार की कालिम छायी हुई है, तुम काली हो, रात भी काली है और अंग्रेजों की कालिमा छायी हुई है, तुम काली हो, रात भी काली है ओर अंग्रेजों की करतूतें भी काली है। देश में निराशा रूपी काली लहर फैली हुई है और मन में काली (बुरी) कल्पनाएँ उठ रही है।
कवि के अनुसार कोयल क्यों गाने लगी है?किस शासन की तुलना तम के प्रभाव से की गई है और क्यों? कविता के आधार पर पराधीन भारत की जेलों में दी जाने वाली यंत्रणाओं का वर्णन कीजिए | 5. भाव स्पष्ट कीजिए- (क) मृदुल वैभव की रखवाली-सी, कोकिल बोलो तो! (ख) हूँ मोट खींचता लगा पेट पर जूआ, खाली करता हूँ ब्रिटिश अकड़ का कूँआ ।
अर्धरात्रि में कोयल की चीख से कवि का क्या संदेश है?आधी रात में कोकिला की चीख से कवि को यह आशंका होती है कि कोकिला को किसी प्रकार का कष्ट है। कवि को लगता है कि वह किसी डाकू की कैद में है जोकि उसे पेट भर खाने को नहीं देता, उसे तरह-तरह की मानसिक तथा शारीरिक यातनाओं को सहना पड़ता है।
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