कुपोषण से होने वाले रोगों के नाम - kuposhan se hone vaale rogon ke naam

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अगर बच्चों में देखा जाए तो दुबली कॉमन प्रॉब्लम्स है जैसे कि प्रोटीन की कमी को जैसे बच्चों में कौशल को बच्चों का सही सो जाता है फूल जाता है लेकिन बच्चा हष्ट पुष्ट इक्ता बच्चों प्रोटीन की कमी होती है उसका शरीर फुला फुला सोता है थोड़ा सा डे होता है कमजोर होता है सेकंड ग्रेड की कमी की वजह से मेरे समस्त चीज होती है छोटे बच्चे एक साल से कम उम्र के होते हुए समस्या देखने को मिलती हो वेस्टीज हमारे देश में भी कॉमन प्रॉब्लम है मोटापा मोटापा कोई मोटा है ज्यादा है तो निकली हुई है तेरी भी पोषण का ही है कि जब तक फिट नहीं है प्रॉपर्ली तब तक वह पोषण का ही प्रॉब्लम तो यह तीन दजीरे है जो बड़ी पॉपुलर है हमारे देश में कुपोषण की वजह से होती और बहुत सारी समस्याएं हैं क्योंकि पोषण की वजह से जैसे कमर दर्द करना कैल्शियम की वजह से होता है हर बड़ी कॉमन प्रॉब्लम है यह भी घोषणा करता है पर आप खानपान में कैसे हम नहीं ले रहे हैं तो आपकी कमर दर्द करेगी हड्डियां कमजोर हो जाएंगे कहो थोड़ी सी प्रॉब्लम की वजह से हड्डियां टूट जाए एक प्रॉब्लम कहानी मियां की है खून की कमी जो के आयरन की कमी से होते हैं आपके खाने में कम है तो यह समस्या बड़ी कॉमन हो जाती है आपकी खोज में एनिमल रखूंगा तत्व जिसको बोलते हैं खून की कमी हो जाएगी यह भी कुपोषण की वजह से होता है अतः इस तरह से है ना कुछ काम में समस्या है जो कि कुपोषण की वजह से

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एक कुपोषित बच्चे में सही समय पर कुपोषण की पहचान और सही निदान बहुत महत्त्वपूर्ण है, ताकि कुपोषण से बच्चे पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को रोका जा सके और समय रहते बेहतर इलाज किया जा सके। शरीर में पर्याप्त मात्रा में पोषक-तत्वों के स्तर को बनाए रखने के लिए संतुलित आहार लेना जरूरी है। 888 विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक बच्चों में कुपोषण की समस्या पूरी दुनिया के लिए चिंता का विषय बनी हुई है। विश्व भर में 15 करोड़ से अधिक बच्चे कुपोषण प्रभावित हैं। आंकड़ों के अनुसार पांच साल के कम उम्र के बच्चों की मौतों में से आधी कुपोषण के कारण ही होती हैं।

यूं तो कुपोषण सभी उम्र के लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है लेकिन गर्भवती महिला और शिशु के आरम्भिक वर्षों में बेहतर पोषण अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है। बच्चे के मस्तिष्क और शारीरिक विकास के लिए आवश्यक है कि वाटामिन, कैल्शियम, आयरन, वसा और कार्बोहाइड्रेट वाले पोषक तत्वों के साथ संतुलित आहार बच्चे और माँ को दिया जाए। जब बच्चे को आवश्यक पोषक तत्व, खनिज और कैलोरी प्राप्त नहीं होते, जो बच्चे के अंगो के विकास में मदद करते हैं तब बच्चे का शारीरिक विकास अवरुद्ध हो जाता है। कुपोषण के कारण बच्चे के शारीरिक व मानसिकता विकास में रुकावट ही नहीं बल्कि मानसिक विकलांगता, जी.आई. ट्रैक्ट संक्रमण, एनीमिया और यहां तक कि मृत्यु भी हो सकती है। शोधों के अनुसार कुपोषण न केवल पोषक तत्वों की कमी के कारण होता है, बल्कि अत्यधिक सेवन के कारण भी समस्या हो सकती है।

बच्चों में कुपोषण की एक बड़ी चुनौती स्टंटिंग और वेस्टिंग (सामान्य भाषा में नाटापन और दुबलापन) के रूप में सामने आई है। स्टंटिंग (नाटापन) से तात्पर्य है उम्र के अनुसार बच्चे की लम्बाई का विकास न होना और वेस्टिंग (दुबलापन) यानी बच्चे का लम्बाई के अनुपात में कम वजन होना। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2015-16 में, पांच साल से कम उम्र के 38.4 प्रतिशत बच्चे स्टंटिंग से ग्रसित थे और 35.8 प्रतिशत बच्चों में कम वजन की समस्या थी। ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2018 के अनुसार, भारत में दुनिया के सर्वाधिक ‘स्टंटेड’ बच्चे और ‘वेस्टेड’ बच्चे पाए गए हैं। भारत में विश्व के सर्वाधिक 4.66 करोड़ स्टंटेड बच्चे हैं (स्टंटेड बच्चों की कुल संख्या का लगभग एक तिहाई), इसके बाद नाइजीरिया (1.39 करोड़) और पाकिस्तान (1.07 करोड़) हैं।

देश के मध्य और उत्तरी जिलों में सबसे अधिक स्टंटेड बच्चों की संख्या पाई जाती है। उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले में 65.1 प्रतिशत बच्चे स्टंटेड हैं, जो देश में सबसे बड़ा आंकड़ा है। आस-पास के जिलों श्रावस्ती और बलरामपुर में दूसरे और तीसरे स्थान पर सबसे अधिक संख्या में स्टंटेड बच्चे हैं।

विश्व बैंक के अनुसार, ‘बचपन में स्टंटिंग के कारण वयस्क की औसत ऊंचाई में 1 प्रतिशत की कमी, आर्थिक उत्पादकता में 1.4 प्रतिशत के दर से नुकसान पहुंचा रही है। स्टंटिंग का भविष्य की पीढ़ियों पर भी प्रभाव पड़ता है। साल 2015-16 में 53.1 प्रतिशत महिलाएं रक्तहीनता या एनीमिया से पीड़ित थीं, इसलिए भविष्य में उनके गर्भधारण और बच्चों पर इसका स्थाई प्रभाव पड़ेगा। इसके अलावा, स्थिति तब और बिगड़ जाती है जब शिशुओं को अपर्याप्त आहार खिलाया जाता है।’

रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के आधे से अधिक बच्चे ‘वेस्टिंग’ से प्रभावित हैं, जो दक्षिण एशिया में रहते हैं। इन तीन देशों में, जो विश्व के स्टंटेड बच्चों के लगभग आधे (47.2 प्रतिशत) का घर हैं, दो देश एशिया में हैं, जिनमें भारत 4.66 करोड़ (31 फीसदी) और पाकिस्तान के पास 1.07 करोड़ बच्चे हैं। भारत उन देशों के समूह में भी शामिल है जहाँ 10 लाख से ज्यादा अधिक वजन वाले यानी मोटापे के शिकार बच्चे हैं। जहाँ अधिक वजन वाले बच्चे पाए जाते हैं, उन देशों में भारत सहति चीन, इंडोनेशिया, मिस्र, अमरिका, ब्राजील और पाकिस्तान भी शामिल हैं।

कुपोषण या दीर्घकालिक कुपोषण कहे जाने वाले ‘वेस्टिग’ और ‘स्टंटिंग’ के कारण बच्चा अपनी उम्र के अनुसार वजन/लम्बाई में नहीं बढ़ता है। यदि बच्चे के पोषण की जरूरतों में सुधार किया जाए, तो बच्चे में वजन सम्बन्धी कमियों को सुधारा जा सकता है, पर बच्चे की लम्बाई में आई कमियों को सही करना चुनौतीपूर्ण है। बच्चे में स्टंटिंग का सम्बन्ध जन्म से पहले, गर्भावस्था के दौरान माँ के खराब स्वास्थ्य से होता है। स्टंटिंग लम्बे समय तक चलती है और इसीलिए इसके दीर्घगामी परिणाम भी दिखाई देते हैं। स्टंटिंग के मुख्य कारण स्तनपान न कराना, पोषक तत्वों की अपर्याप्त आपूर्ति और निरंतर संक्रमण का शिकार होना है। स्टंटिंग बच्चे के लिए खतरनाक है, क्योंकि एक उम्र के बाद इसे ठीक नहीं किया जा सकता है। इसलिए गर्भवती महिलाओं के लिए गर्भावस्था के दौरान उचित स्वास्थ्य और जन्म के बाद बच्चे की व्यापक देखभाल सुनिश्चित करना बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

कुपोषण का एक बड़ा कारण शरीर में विटामिन ए,बी,सी,और डी की कमी के साथ-साथ, फोलेट, कैल्शियम, आयोडीन, जिंक और सेलेनियम की कमी भी है। इन पोषक तत्वों में से प्रत्येक शरीर में महत्त्वपूर्ण अंगों के विकास और कार्य में सहायता करता है और इसकी कमी से अपर्याप्त विकास और एनीमिया, अपर्याप्त मस्तिष्क विकास, थाइरॉयड की समस्या, रिकेट्स, प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होना, तंत्रिका का अधपतनः नजर कमजोर होना और हड्डियों का अपर्याप्त विकास आदि जैसे रोग हो सकते हैं। विटामिन ए की कमी से खसरा और डायरिया जैसी बीमारियों का संक्रमण बढ़ जाता है। लगभग 40 प्रतिशत बच्चों को पूर्ण टीकाकरण और विटामिन ए की खुराक नहीं मिल पाती है।

‘वेस्टिंग’ तीव्र कुपोषण के चलते अचानक व बहुत अधिक वजन घटने की स्थिति है। वेस्टिंग क्वाशिरकोर, मरास्मस और मरास्मिक-क्वाशिरकोर के मिश्रण के रूप में दिखाई देती है। क्वाशिरकोर में, पैरों और पंजों में द्रव के अवरोध के कारण कम पोषण के बावजूद बच्चा मोटा दिखता है। मरास्मस प्रकार के कुपोषण में शरीर की वसा और ऊतक, शरीर में पोषक तत्वों की कमी की भरपाई नहीं कर पाते और आंतरिक प्रक्रियाओं की गतिविधि को धीमा कर देता है। मरास्मिक-क्वाशिरकोर में गम्भीर वेस्टिंग के साथ-साथ सूजन भी शामिल है।

एक कुपोषित बच्चे क सही निदान और सही समय पर कुपोषण की पहचान करना बहुत महत्त्वपूर्ण है, ताकि कुपोषम से बच्चे पर पड़ने वाले प्रतिकूल प्रभावों को रोका जा सके और समय रहते बेहतर इलाज किया जा सके। शरीर में पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्वों के स्तर को बनाए रखने के लिए संतुलित हार लेना जरूरी है। शिशुओं और बच्चों में कुपोषण के संकेत और लक्षण बच्चे की पोषण सम्बन्धी कमी पर निर्भर करते हैं। कुपोषण के कुछ संकेतों और लक्षणों में शामिल हैः थकान और कमजोरी, चिड़चिड़ापन, खराब प्रतिरक्षा प्रणाली के कारण संक्रमण के प्रति संवेदनशील बढ़ जाती है, सूखी और पपड़ीदार त्वचा, अवरुद्ध विकास, फूला हुआ पेट, घाव, संक्रमण और बीमारी से ठीक होने में लम्बा समय लगना, मांसपेशियों का कम होना, व्यावहारिक और बौद्धिक विकास का धीमा होना, मानसिक कार्यक्षमता में कमी और पाचन समस्याएं आदि।

राष्ट्रीय पोषण मिशन, जिसे ‘पोषण अभियान’ के नाम से भी जाना जाता है, की शुरुआत भारत सरकार द्वारा वर्ष 2018 में की गई। राष्ट्रीय पोषण मिशन की अभिकल्पना नीति आयोग द्वारा ‘राष्ट्रीय पोषण रणनीति’ के तहत की गई है। इस रणनीति का उद्देश्य वर्ष 2022 तक ‘कुपोषण-मुक्त भारत’ बनाना है। इसके तहत वर्ष 2022 तक प्रति वर्ष बच्चों में स्टंटिंग की समस्या को तीन प्रतिशत तक कम करना और माँ बनने की उम्र में पहुंची महिलाओं में एनीमिया की समस्या को एक तिहाई कम करना है। यह एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य है, क्योंकि अगर आंकड़ों पर गौर करे तो हम पाएंगे कि स्टंटिंग की समस्या में गिरावट पिछले 10 वर्षों में प्रति वर्ष केवल एक प्रतिशत की हुई है अर्थात यह 2006 में 48 प्रतिशत थी और 2016 में कुछ कम 38.4 प्रतिशत तक रही। आंकड़ों के अनुसार जन्म के एक घंटे के भीतर केवल 41.6 प्रतिशत बच्चों को स्तनपान कराया जाता है, 54.9 प्रतिशत को विशेष रूप से छह महीने के लिए स्तनपान कराया जाता है; 42.7 प्रतिशत को समय पर पूरक आहार प्रदान किया जाता है और दो साल से कम उम्र के केवल 9.6 प्रतिशत बच्चों को पर्याप्त आहार प्राप्त होता है।

स्टंटिंग की समस्या लगभग 12 या उससे अधिक वर्षों तक स्कूली शिक्षा प्राप्त करने वाली माताओं की तुलना में अशिक्षित माताओं से पैदा होने वाले बच्चों में अधिक पाई जाती है। अन्तरराष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान के एक अध्ययन (2015-16) के अनुसार स्टंटिंग की समस्या जिला-स्तर पर (12.4-65.1 प्रतिशत) अलग-अलग है और लगभग 40 प्रतिशत जिलों में स्टंटिंग का स्तर 40 प्रतिशत से ऊपर है। उत्तर प्रदेश सूची में सबसे ऊपर है जहाँ 10 में से छह जिलों में स्टंटिंग की उच्चतम दर है। इस रिपोर्ट में शोधकर्ताओं ने स्टंटिंग के वितरण में स्थानिक अंतर को समझने के लिए मैपिंग और वर्णनात्मक विश्लेषण का उपयोग किया। मैपिंग से पता चला कि स्टंटिंग की समस्या का प्रतिशत जिलेवार भिन्न होता है, जिसमें 12.4 प्रतिशत से 65.1 प्रतिशत तक का अंतर पाया जाता है। 604 जिलों में से 239 में स्टंटिंग का स्तर 40 प्रतिशत से अधिक पाया गया। अध्यन में ज्ञात हुआ कि महिलाओँ के कम बीएमआई (बॉडी मास इंडेक्स) जैसे कारकों में निम्न बनाम उच्च कुपोषण बोझ वाले जिलों के बीच का अंतर 19 प्रतिशत था। स्टंटिंग सम्बद्ध कुपोषण के अन्य कारणों में शामिल थे- मातृ शिक्षा (12 प्रतिशत), विवाह के समय आयु (7 प्रतिशत), प्रसव-पूर्व देखभाल (6 प्रतिशत), बच्चों का खानपान (9 फीसदी), सम्पत्ति (7 प्रतिशत), खुले में शौच (7 प्रतिशत), घरेलू आकार (5 प्रतिशत)। रिपोर्ट से जुड़े विशेषज्ञों के अनुसार ‘आंकड़े तत्काल कार्रवाई के लिए कहते हैं। कुपोषण किसी भी अन्य कारण से अधिक बीमार होने के लिए जिम्मेदार है। अधिक वजन और मोटापे के कारण वैश्विक-स्तर पर अनुमानित 40 लाख मौतें होती हैं।’

हाल ही में केन्द्रीय महिला और बाल विकास मंत्री ने विश्व बैंक की वैश्विक पोषण रिपोर्ट 2018 का हवाला दिया जिसमें कहा गया है कि भारत को कुपोषण के मामले में वार्षिक रूप से कम से कम 10 बिलियन डॉलर का नुकसान उठाना पड़ता है। यह नुकसान उत्पादकता, बीमारी और मृत्यु से जुड़ा है और गम्भीर रूप से मानव विकास तथा बाल मृत्युदर में कमी लाने में बाधक है। उन्होंने कहा कि पोषण सभी नागरिकों के जीवन के लिए एक अभ्यास है और इसे महिलाओं और बच्चों तक सीमित नहीं रखा जाना चाहिए। महिला और बाल विकास मंत्रालय बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन तथा दीनदयाल शोध संस्थान के साथ एक पोषण मानचित्र विकसित कर रहा है जिसमें देश के विभिन्न क्षेत्रों की फसलों और खाद्यान्नों को दिखाया जाएगा, क्योंकि कुपोषण संकट का समाधान कुछ हद तक क्षेत्रीय फसल को प्रोत्साहित करने और प्रोटीन समृद्ध स्थानीय खाद्य पदार्थ को अपनाने में है। महिला और बाल विकास मंत्रा ने सुझाव दिया कि पोषण अभियान के अनाम नायकों को मान्यता देने के लिए स्वास्थ्य और पोषण मानकों पर राज्यों की रैंकिंग की प्रणाली विकसित की जा सकती है और इसके लिए नीति आयोग राज्यों के लिए ढांचा विकसित कर सकता है ताकि जिलों की रैंकिंग की जा सके। उन्होंने कहा कि रैंकिंग प्रक्रिया में नागरिकों और सिविल सोसाइटी को शामिल किया जा सकता है।

विभिन्न राज्यों में वर्ष 1990 से 2017 के दौरान इंडिया स्टेट लेवल डिसीज बर्डन इनीशिएटिव द्वारा दिए गए अध्ययन में पता चला है कि कुपोषण के मामलों में दो-तिहाई गिरावट हुई है। हालांकि, पांच साल से कम उम्र के बच्चों की 68 प्रतिशत मौतों के लिए कुपोषण एक प्रमुख कारक बना हुआ है। बच्चों के अलावा, अलग-अलग उम्र के 17 प्रतिशत लोग भी कुपोषण-जनित बीमारियों का शिकार पाए गए हैं। राष्ट्रीय दर की तुलना में कुपोषण के मामले राज्य-स्तर पर सात गुना अधिक पाए गए हैं। सबसे अधिक कुपोषण राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, असम, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा, नागालैंड और त्रिपुरा में पाया गया है। यह अध्ययन भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद के निदेशक प्रोफेसर बलराम भार्गव का कहना है कि देश में कुपोषण की निगरानी बढ़ाने के लिए महत्त्वपूर्ण कदम उठाए जा रहे हैं। राष्ट्रीय पोषण संस्थान और दूसरी सहभागी संस्थाओं की कोशिश राज्यों से कुपोषण सम्बन्धी अधिक से अधिक आंकड़े जुटाने की है, ताकि कुपोषण की निगरानी के लिए प्रभावी रणनीति बनाई जा सके। इस अध्ययन से विभिन्न राज्यों में कुपोषण में विविधता का पता चला है। इसलिए यह महत्त्वपूर्ण है कि कुपोषण में कमी की योजना ऐसे तरीके से बनाई जाए जो प्रत्येक राज्य के लिए उपयुक्त हो।

कुपोषण से कौन कौन सी बीमारियां हो सकती है?

कुपोषण प्राय: पर्याप्त सन्तुलित अहार के आभाव में होता है। बच्चों और स्त्रियों के अधिकांश रोगों की जड़ में कुपोषण ही होता है। स्त्रियों में रक्ताल्पता या घेंघा रोग अथवा बच्चों में सूखा रोग या रतौंधी और यहाँ तक कि अंधत्व भी कुपोषण के ही दुष्परिणाम हैं।

कुपोषण कितने प्रकार के होते हैं और कौन कौन?

कुपोषण मुख्यत: 6 रूपों में नजर आता है जो क्रमश: - 1. जन्म के समय कम वजन, 2. बचपन में बाधित विकास, 3. अल्प रक्तता, 4.

कुपोषण का मुख्य कारण क्या है?

कुपोषण मुख्य रूप से आपके आहार में पोषक तत्वों की कमी के कारण होता है। यह या तो एक अपर्याप्त आहार या भोजन से पोषक तत्वों को अवशोषित करने में समस्याओं के कारण होता है।

बच्चे में कुपोषण के लक्षण क्या हैं?

मांसपेशियों का कमजोर होना.
हर समय थकान और कमजोरी महसूस होना.
बार-बार सर्दी जुकाम से परेशान होना.
भूख में कमी और खाने में अरुचि पैदा होना.
स्वभाव में चिड़चिड़ापन आना.
लंबाई और वजन कम बढ़ना.
बच्चे को पेट से जुड़ी समस्या रहना.
पेट और छाती निकलना.