कवि परिचय जीवन परिचय-रघुवीर सहाय समकालीन हिंदी कविता के संवेदनशील कवि हैं। इनका जन्म लखनऊ (उ०प्र०) में सन् 1929 में हुआ था। इनकी संपूर्ण शिक्षा लखनऊ में ही हुई। वहीं से इन्होंने अंग्रेजी साहित्य में एम०ए० किया। प्रारंभ में ये पेशे से पत्रकार थे। इन्होंने प्रतीक अखबार में सहायक संपादक के रूप में काम किया। फिर ये आकाशवाणी के समाचार विभाग में रहे। कुछ समय तक हैदराबाद से निकलने
वाली पत्रिका कल्पना और उसके बाद दैनिक नवभारत टाइम्स तथा दिनमान से संबद्ध रहे। साहित्य-सेवा के कारण इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इनका देहावसान सन 1990 में दिल्ली में हुआ। रचनाएँ-रघुवीर सहाय नई कविता के कवि हैं। इनकी कुछ आरंभिक कविताएँ अज्ञेय द्वारा संपादित दूसरा सप्तक (1935) में प्रकाशित हुई। इनके महत्वपूर्ण काव्य-संकलन हैं-सीढ़ियों पर धूप में, आत्महत्या के विरुद्ध, हँसो-हँसो जल्दी हँसी, लोग भूल गए हैं आदि। काव्यगत विशेषताएँ-रघुवीर सहाय ने अपने काव्य
में आम आदमी की पीड़ा व्यक्त की है। ये साठोत्तरी काव्य-लेखन के सशक्त, प्रगतिशील व चेतना-संपन्न रचनाकार हैं। इन्होंने सड़क, चौराहा, दफ़्तर, अखबार, संसद, बस, रेल और बाजार की बेलौस भाषा में कविता लिखी। घर-मोहल्ले के चरित्रों पर कविता लिखकर उन्हें हमारी चेतना का स्थायी नागरिक बनाया। हत्या-लूटपाट, राजनीतिक भ्रष्टाचार और छल-छद्म इनकी कविता में उतरकर खोजी पत्रकारिता की सनसनीखेज रपटें नहीं रह जाते, वे आत्मान्वेषण के माध्यम बन जाते हैं। इन्होंने कविता को एक कहानीपन और नाटकीय वैभव दिया। रघुवीर सहाय
ने बतौर पत्रकार और कवि घटनाओं में निहित विडंबना और त्रासदी को देखा। इन्होंने छोटे की महत्ता को स्वीकारा और उन लोगों व उनके अनुभवों को अपनी रचनाओं में स्थान दिया जिन्हें समाज में हाशिए पर रखा जाता है। इन्होंने भारतीय समाज में ताकतवरों की बढ़ती हैसियत व सत्ता के खिलाफ़ भी साहित्य और पत्रकारिता के पाठकों का ध्यान खींचा। भाषा-शैली-रघुवीर सहाय ने अधिकतर बातचीत की शैली में लिखा। ये अनावश्यक शब्दों के प्रयोग से बचते रहे हैं। भयाक्रांत अनुभव की आवेग रहित अभिव्यक्ति भी इनकी कविता की अन्यतम विशेषता
है। इन्होंने कविताओं में अत्यंत साधारण तथा अनायास-सी प्रतीत होने वाली शैली में समाज की दारुण विडंबनाओं को व्यक्त किया है। साथ ही अपने काव्य में सीधी, सरल और सधी भाषा का प्रयोग किया है। कविता का प्रतिपादय एवं सार प्रतिपादय-कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता को ‘लोग भूल गए हैं’ काव्य-संग्रह से लिया गया है। इस कविता में कवि ने शारीरिक चुनौती को झेल रहे व्यक्ति की पीड़ा के साथ-साथ दूर-संचार माध्यमों के चरित्र को भी रेखांकित किया है। किसी की पीड़ा को दर्शक
वर्ग तक पहुँचाने वाले व्यक्ति को उस पीड़ा के प्रति स्वयं संवेदनशील होने और दूसरों को संवेदनशील बनाने का दावेदार होना चाहिए। आज विडंबना यह है कि जब पीड़ा को परदे पर उभारने का प्रयास किया जाता है तो कारोबारी दबाव के तहत प्रस्तुतकर्ता का रवैया संवेदनहीन हो जाता है। यह कविता टेलीविजन स्टूडियो के भीतर की दुनिया को समाज के सामने प्रकट करती है। साथ ही उन सभी व्यक्तियों की तरफ इशारा करती है जो दुख-दर्द, यातना-वेदना आदि को बेचना चाहते हैं। सार-इस कविता में दूरदर्शन के संचालक स्वयं
को शक्तिशाली बताते हैं तथा दूसरे को कमजोर मानते हैं। वे विकलांग से पूछते हैं कि क्या आप अपाहिज हैं? आप अपाहिज क्यों हैं? आपको इससे क्या दुख होता है? ऊपर से वह दुख भी जल्दी बताइए क्योंकि समय नहीं है। प्रश्नकर्ता इन सभी प्रश्नों के उत्तर अपने हिसाब से चाहता है। इतने प्रश्नों से विकलांग घबरा जाता है। प्रश्नकर्ता अपने कार्यक्रम को रोचक बनाने के लिए उसे रुलाने की कोशिश करता है ताकि दर्शकों में करुणा का भाव जाग सके। इसी से उसका उद्देश्य पूरा होगा। वह इसे सामाजिक उद्देश्य कहता है, परंतु ‘परदे पर वक्त
की कीमत है’ वाक्य से उसके व्यापार की प्रोल खुल जाती है। व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न निम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर सप्रसंग व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- 1. हम दूरदर्शन पर बोलेंगे आपका अपाहिजपन तो दुख देता होगा शब्दार्थ-समर्थ-सक्षम। शक्तिवान-ताकतवर। दुबल-कमजोर। बंद कमरे में-टी.वी. स्टूडियो में। अपाहिज-अपंग, विकलांग। दुख-कष्ट। विशेष– प्रश्न (क) ‘हम दूरदर्शन पर बोलेंगे’ में आए ‘हम’ शब्द से क्या तात्पर्य हैं? उत्तर – (क) दूरदर्शन पर ‘हम’ बोलेगा कि हम शक्तिशाली हैं तथा अब हम किसी कमजोर का साक्षात्कार लेंगे। यहाँ’हम’ समाज का ताकतवर मीडिया है। 2. सोचिए थोड़ी कोशिश करिए शब्दार्थ-रोचक-दिलचस्प। वास्ते-के लिए। इंतज़ार-प्रतीक्षा। थोड़ा सोचकर और कोशिश करके बताइए। यदि आप इस समय नहीं बता पाएँगे तो सुनहरा अवसर खो देंगे। अपाहिज के पास इससे बढ़िया मौका नहीं हो सकता कि वह अपनी पीड़ा समाज के सामने रख सके। मीडिया वाले कहते हैं कि हमारा लक्ष्य अपने कार्यक्रम को रोचक बनाना है और इसके लिए हम ऐसे प्रश्न पूछेगे कि वह रोने लगेगा। वे समाज पर भी कटाक्ष करते हैं कि वे भी उसके रोने का इंतजार करते हैं। वह यह प्रश्न दर्शकों से नहीं पूछेगा। विशेष-
प्रश्न (क) कवि ने दूरदर्शन के कार्यक्रम-संचालकों की किस मानसिकता को उजागर किया हैं? उत्तर – (क) कवि ने दूरदर्शन के कार्यक्रम-संचालकों की व्यावसायिकता पर करारा व्यंग्य किया है। वे अपाहिज के कष्ट को कम करने की बजाय उसे बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं। वे क्रूरता की तमाम हदें पार कर जाते हैं। 3. फिर हम परदे पर दिखलाएंगे आप और वह दोनों शब्दार्थ – कसमसाहट-बेचैनी । अय-गता-अपाहिजपन । धीरज-धैर्य । परदे पर-टी.वी. पर । वक्त -समय । कसर-कमी । वे दर्शकों व अपाहिज दोनों को एक साथ रुलाने की कोशिश करते हैं। तभी वे निर्देश देते हैं कि अब कैमरा बंद कर दो। यदि अपाहिज अपना दर्द पूर्णत: व्यक्त न कर पाया तो कोई बात नहीं। परदे का समय बहुत महँगा है। इस कार्यक्रम के बंद होते ही दूरदर्शन में कार्यरत सभी लोग मुस्कराते हैं और यह घोषणा करते हैं कि आप सभी दर्शक सामाजिक उद्देश्य से भरपूर कार्यक्रम देख रहे थे। इसमें थोड़ी-सी कमी यह रह गई कि हम आप दोनों को एक साथ रुला नहीं पाए। फिर भी यह कार्यक्रम देखने के लिए आप सबका धन्यवाद! विशेष-
प्रश्न (क) कार्यक्रम-संचालक परदे पर फूली हुई आँख की तसवीर क्यों दिखाना चाहता हैं? उत्तर – (क) कार्यक्रम-संचालक परदे पर फूली हुई आँख की बड़ी तसवीर इसलिए दिखाना चाहता है ताकि वह लोगों को उसके कष्ट के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर बता सके। इससे जहाँ कार्यक्रम प्रभावी बनेगा, वहीं संचालक का वास्तविक उद्देश्य भी पूरा होगा। काव्य-सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए 1. उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहिज हैं? (कैमरा दिखाओ। इसे बड़ा-बड़ा) प्रश्न (क) काव्यांश का भाव–सौंदर्य स्पष्ट कीजिए। उत्तर – (क)
इस काव्यांश में कवि ने मीडिया की हृदयहीन कार्यशैली पर व्यंग्य किया है। संचालक अपने कार्यक्रम को प्रभावी बनाने के लिए अपाहिज से ऊट-पटांग सवाल करके उसकी भावनाओं से खेलते हैं। वे उसके दुख को कुरेदना चाहते हैं, परंतु अपाहिज चुप रहता है। वह अपना मजाक नहीं उड़वाना चाहता। 2. फिर हम परदे पर दिखलाएँरो एक और कोशिश प्रश्न (क) काव्यांश का भाव–सौंदर्य स्पष्ट कीजिए। उत्तर – (क) इस काव्यांश में मीडिया की संवेदनहीनता को दर्शाया गया है। वे अपने कार्यक्रम को प्रभावी बनाने के लिए दूसरे की पीड़ा को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं। उन्हें किसी के कष्ट से कोई मतलब नहीं होता। वे कोशिश
करते हैं कि दर्शकों में भी करुणा का भाव जाग्रत हो। यदि दोनों रोने लगेंगे तो उनके कार्यक्रम का व्यावसायिक उद्देश्य पूरा हो जाएगा।
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NCERT SolutionsHindiEnglishMathsHumanitiesCommerceScience कैमरे में बंद अपाहिज कौन से संग्रह से ली गई हैं?प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक 'आरोह, भाग-2' में संकलित 'कैमरे में बंद अपाहिज' शीर्षक कविता से लिया गया है। इस कविता के रचयिता रघुवीर सहाय हैं। इस कविता में कवि ने मीडिया की संवेदनहीनता का चित्रण किया है।
कैमरे में बंद अपाहिज कविता से क्या प्रेरणा मिलती है?उत्तर: यह कविता मानवीय करुणा तो प्रस्तुत करती ही है साथ ही इस कविता में उन लोगों की बनावटी करुणा का वर्णन भी मिलता है जो दुख दरिद्रता को बेचकर यश प्राप्त करना चाहते हैं। एक अपाहिज व्यक्ति के साथ झूठी सहानुभूति जताकर उसकी करुणा का सौदा करना चाहते हैं। एक अपाहिज की करुणा को पैसे के लिए टी.
कैमरे में बंद अपाहिज की मूल संवेदना क्या है?कैमरे में बंद अपाहिज कविता का मूलभाव -
इस कविता मे कवि ने शारीरिक चुनौती को झेल रहे व्यक्ति की पीड़ा के साथ – साथ दूर- संचार माध्यमों के चरित्र को भी रेखांकित किया गया है । किसी की पीड़ा को दर्शक वर्ग तक पहुंचाने वाले व्यक्ति को उस पीड़ा के प्रति स्वयं संवेदनशील होने और दूसरे को संवेदनशील बनाने का दावेदार होना चाहिए ।
आप कैसे कह सकते हैं कि कैमरे में बंद अपाहिज करुणा की मुखौटे में छिपी क्रूरता की कविता है?यह कथन बिल्कुल सच है कि यह कविता करुणा के मुखौटे में छिपी क्रूरता की कविता है। ऊपर से तो करुणा दिखाई देती है कि संचालक महोदय अपंग व्यक्ति के प्रति सहानुभूति दर्शा रहा है, पर उसका वास्तविक उद्देश्य कुछ और ही होता है।
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