झारखंड में प्रकृति से संबंधित कौन कौन से त्योहार मनाए जाते हैं? - jhaarakhand mein prakrti se sambandhit kaun kaun se tyohaar manae jaate hain?

जैसा की आप सभी जानते हैं झारखंड की पृष्ठभूमि प्रकृति से जुड़ी हुई है, उसी तरह वहाँ के सारे व्रत त्योहार भी प्रकृति से ही जुड़े हुए हैं। चाहे वो जानवर हो या पेड़ पौधे, खेत खलिहान सबकी पूजा के लिए वहाँ अलग अलग त्योहार ऋतुयों के हिसाब से मनाए जाते हैं और वहाँ के मनपसंद पेय हड़िया का सेवन करते हैं।

चलिए हम आपको लिए चलते हैं झारखंड की उसी प्राकृतिक भूमि में जहाँ आप एक बार, नीचे विस्तरित किए गये त्योहारों में ज़रूर जाएँ और रोमांच भरे इन त्योहारों का मज़ा लें।

झारखंड में प्रकृति से संबंधित कौन कौन से त्योहार मनाए जाते हैं? - jhaarakhand mein prakrti se sambandhit kaun kaun se tyohaar manae jaate hain?

सरहुल के पर्व में पूजा जाने वाला साल का पेड़
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Pankaj Oudhia

सरहुल पर्व:
यह पर्व वसंत ऋतु के आगमन पर साल के पेड़ में नये फूल के खिलने पर मनाया जाता है। अपने गाँव की देवी को पूजने के लिए आदिवासी जनजाति के लोग इस फूल का ही उपयोग करते हैं। पूरे दिन पेड़ के आस पास ही नाच गाने का समारोह होता है।

टूसू/ मकर पर्व:
पूरे भारत में मनाए जाने वाले पर्व मकर संक्रांति के समय ही यह पर्व टूसू के नाम से झारखंड में मनाया जाता है,जिसमें लोग फसल की पहली पैदावार की खुशी में जश्न मानते हैं। यह पर्व लगभग एक महीने तक अलग अलग जगह मेलों का आयोजन करके मनाया जाता है जिसमें बड़े बड़े टूसू देवी की प्रतिमाअों और चौड़ल की प्रतियोगिताएँ होती हैं।

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कर्मा पूजा करते लोग
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Pankaj076

कर्मा पर्व:
भद्रा महीने में मनाए जाने वाले इस पर्व में कर्म देवता(ताक़त के भगवान) की पूजा जंगलों से फल फूल लाकर नाच गाने के साथ की जाती है। इसे झारखंड के युवाओं का पर्व भी कहते हैं।

सेंदरा पर्व:
बैसाख पूर्णिमा मे मनाए जाने वाले इस पर्व में आदिवासी जनजाति के आदमी अपने हाथ से बने हुए तीर धनुष ले जंगलों में शिकार करने जाते हैं और शिकार हुए जानवरों के मीट को एक दूसरे से बाँट कर खाते हैं। इस पर्व में जानवरों के शिकार होने की वजह से सरकार द्वारा कई प्रतिबंध भी लगाए गये हैं।

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आदिवासी नृत्य करते आदिवासी जनजाति लोग
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Sudipti minz

भगता पर्व:
भगता पर्व वसंत और ग्रीष्म ऋतु के बीच के दिनों में मनाया जाता है जिसमें लोग बूढ़ा बाबा की पूजा करते हैं। लोग पूरे दिन व्रत रख वहाँ के धार्मिक पाहन(पंडित) को नदी में स्नान करवा कर उस नदी से ही लोगों द्वारा बनाई गयी मानव शृंखला के उपर से गुज़रते हुए उनके धार्मिक स्थल तक पहुँचाते हैं। फिर पूरे दिन बहादुरी के करतब दिखाए जाते हैं।

बँदना पर्व:
यह पर्व यहाँ के लोगों का जीव जंतुओं से अथाह प्रेम को दर्शाता है। इस दिन लोग अपने अपने जंतुओं को अच्छे से साफ़ और सज़ा कर उन्हे अच्छा खाना खिलाते हैं और उनके लिए गाने भी गाये जाते हैं।

झारखंड में प्रकृति से संबंधित कौन कौन से त्योहार मनाए जाते हैं? - jhaarakhand mein prakrti se sambandhit kaun kaun se tyohaar manae jaate hain?

मागे पोरोब का जश्न मनाते लोग

मागे पोरोब:
मागे पोरोब के त्योहार में लोग अपनी नयी फसल को काटकर उसे अपने घर में जमा कर उसकी पूजा करते हैं जो जन्वरी से फ़रवरी महीने के बीच में मनाई जाती है। शाम को लोग देसी संगीत वाद्य यंत्र जिसे सींग बाजा कहते हैं को बजा कर नाच गाने का जश्न मनाते हैं।

इन अनसुने त्योहारों को मनाने आप एक बार ज़रूर झारखंड की यात्रा करें और वहाँ की संस्कृति और परंपरा के साथ साथ वहाँ की रोचक आदिवासी जनजातियों को भी और करीब से जानें।

कृपया अपने सुझाव एवं टिप्पणियाँ नीचे व्यक्त करें।

झारखंड में कौन सा त्यौहार मनाया जाता है?

हालाकि झारखंड के मुख्य आकर्षण आदिवासी त्योहारों के उत्सव में होता है। यहाँ की सबसे प्रमुख, उल्लास के साथ मनाए जाने वाली त्योहारो में से एक है सरहुल।.
1 सरहुल.
3 जावा.
4 टुशु.
5 हल पुन्हिया.
6 भगता परब.
7 बन्दना.
8 जानी-शिकार.

झारखंड में कौन सा त्यौहार चार दिन तक मनाया जाता है?

झारखंड में सरहुल बड़े जोशो-खरोश के साथ मनाया जाता हैचार दिनों तक इसका जश्न चलता रहता है। अलग-अलग जनजातियाँ इसे अलग-अलग समय में मनाती हैं।

आदिवासियों का सबसे बड़ा त्यौहार कौन सा है?

सरहुल पर्व / Sarhul Festival : यह आदिवासियों का सबसे बड़ा पर्व है । यह पर्व कृषि कार्य शुरू करने से पहले मनाया जाता है। सरहुल पर्व चैत्र शुक्ल की तृतीया को मनाया जाता है।

आदिवासियों का प्रमुख त्यौहार कौन सा है?

सरहुल आदिवासियों का प्रमुख पर्व है। पतझड़ के बाद, जब पेड़ पौधे हरे-हरे होने लगते हैं, फूल वाले पौधों की डालियों पर कलियां निकलने लगती हैं। यानी जब पूरी धरती रंग-बिरंगी होकर उल्लास से नाच उठती है, तब त्यौहार मनाया जाना शुरू होता है और कई दिनों तक चलता है। चैत की तृतीया से शुरू होकर यह पर्व महीने भर चलता है।