जीवों के वर्गीकरण से क्या समझते हैं? - jeevon ke vargeekaran se kya samajhate hain?

अध्ययन की दृष्टि से जीवों को उनकी शारीरिक रचना,रूप व कार्य के आधार पर अलग-अलग वर्गों में बाँटा गया है | लीनियस को ‘आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली का पिता’ कहा जाता है क्योंकि उनके द्वारा की गयी वर्गीकरण प्रणाली के आधार पर ही आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली की नींव पड़ी है| जीवों का ये वर्गीकरण एक निश्चित पदानुक्रमिक दृष्टि से किया जाता है |

अध्ययन की दृष्टि से जीवों को उनकी शारीरिक रचना,रूप व कार्य के आधार पर अलग-अलग वर्गों में बाँटा गया है | जीवों का ये वर्गीकरण एक निश्चित पदानुक्रमिक दृष्टि अर्थात् जगत (Kingdom), उपजगत(Phylum), वर्ग (Class), उपवर्ग(Order), वंश(Genus) और जाति(Species) के पदानुक्रम में  किया जाता है | इसमें सबसे उच्च वर्ग ‘जगत’ और सबसे निम्न वर्ग ‘जाति’ होती है| अतः किसी भी जीव को इन छः वर्गों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है|

वर्गीकरण विज्ञान का विकास

सर्वप्रथम अरस्तू ने जीव जगत को दो समूहों अर्थात् वनस्पति व जंतु जगत में बाँटा था |उसके बाद लीनियस ने अपनी पुस्तक ‘Systema Naturae’ में सभी जीवधारियों को पादप व जंतु जगत में वर्गीकृत किया |लीनियस को ‘आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली का पिता’ कहा जाता है क्योंकि उनके द्वारा की गयी वर्गीकरण प्रणाली के आधार पर ही आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली की नींव पड़ी है|

1969 ई. में परंपरागत द्विजगत वर्गीकरण प्रणाली का स्थान व्हिटकर (Whittaker) द्वारा प्रस्तुत पाँच जगत प्रणाली ने ले लिया | व्हिटकर ने सभी जीवों को निम्नलिखित पाँच जगत (Kingdoms) में वर्गीकृत किया:  

1. मोनेरा जगत (KingdomMonera): इस जगत में प्रोकैरियोटिक जीव अर्थात् जीवाणु (Bacteria), सायनोबैक्टीरिया और आर्कीबैक्टीरिया शामिल हैं|

2. प्रोटिस्टा जगत (Kingdom Protista): इस जगत में एककोशिकीय यूकैरियोटिक जीव शामिल हैं | पादप व जंतु के बीच स्थित युग्लीना इसी जगत में शामिल है |

3. कवक जगत (Kingdom Fungi) : इसमें परजीवी तथा मृत पदार्थों पर भोजन के लिए निर्भर जीव शामिल है | इनकी कोशिका भित्ति काईटिन की बनी होती है |

4. पादप जगत (Kingdom Plantae): इस जगत में शैवाल व बहुकोशिकीय हरे पौधे शामिल हैं |

5. जंतु जगत (Kingdom Animal): इसमें सभी बहुकोशिकीय जंतु शामिल होते हैं | इसे ‘मेटाजोआ’ भी कहा जाता है |

1982 ई. में मार्ग्युलियस व स्वार्त्ज़ (Margulius and Schwartz) ने पाँच जगत वर्गीकरण का पुनरीक्षण (Revision) किया | इसमें एक प्रोकैरियोटिक और चार यूकैरियोटिक जगत अर्थात् प्रोटोसिस्टा (Protocista), कवक, पादप व जंतु को शामिल किया गया | वर्तमान में इस वर्गीकरण प्रणाली को ही सर्वाधिक मान्यता प्राप्त है |  

1. मोनेरा जगत (प्रोकैरियोटिक):

इसे पुनः आर्कीबैक्टीरिया (Archaebacteria) और यूबैक्टीरिया(Eubacteria ) में बाँटा जाता है, जिनमें से आर्कीबैक्टीरिया अधिक प्राचीन है |

a. आर्कीबैक्टीरिया: इनमें से अधिकांश स्वपोषी (Autotrophs) होते हैं और वे अपनी ऊर्जा चयापचय क्रिया (Metabolic Activities), रासायनिक ऊर्जा के स्रोतों (जैसे-अमोनिया,मीथेन,और हाइड्रोजन सल्फाइड  गैस) के आक्सीकरण से प्राप्त करते हैं | इन गैसों की उपस्थिति में ये अपना स्वयं का अमीनो अम्ल बना सकते हैं | इन्हें तीन वर्गों में बाँटा जाता है- मेथोनोजेंस (मीथेन का निर्माण करते है), थर्मोएसिडोफिल्स (अत्यधिक उष्ण और अम्लीय पर्यावरण के प्रति अनुकूलित) तथा हैलोफिल्स (अत्यधिक लवणीय पर्यावरण में बढ़ने वाले)|  

b. यूबैक्टीरिया:  इनमें प्रायः झिल्ली से घिरे हुए केन्द्रक आदि कोशिकांग(Organelles) नहीं पाए जाते हैं | न्युक्लियोएड (Nucleoid) एकमात्र गुणसूत्र की तरह कार्य करता है | प्रकाश संश्लेषण व इलेक्ट्रानों का हस्तांतरण (Transfer) प्लाज्मा झिल्ली पर होता है |

                                     यूबैक्टीरिया                                        

2. प्रोटिस्टा जगत (प्रोटोसिस्टा)

a. इसमें विभिन्न प्रकार के एककोशिकीय यूकैरियोटिक जीव, जैसे एककोशिकीय शैवाल, प्रोटोज़ाआ और एककोशिकीय कवक शामिल हैं|

b. ये स्वपोषी (जैसे- एककोशिकीय कवक,डायटम) या परपोषी (जैसे- प्रोटोज़ाआ) होते हैं| 

c. एककोशिकीय कवक, क्लोरेला, युग्लीना, ट्रिपैनोसोमा (नींद की बीमारी का कारण ), प्लाज्मोडियम, अमीबा, पैरामीशियम (Paramecium), क्लामिडोमोनास (Chlamydomonas) आदि इसके उदाहरण हैं|

                                 पैरामीशियम                           

3. कवक जगत

a. इसमें वे पौधे शामिल हैं जो प्रकाश संश्लेषण (photosynthetic) क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वयं तैयार नहीं कर पाते हैं |

b. ये परपोषी (Heterotrophic) और यूकैरियोटिक होते हैं |

c. कुछ कवक परजीवी(Parasites) होते हैं और जिस पौधे पर रहते हैं उसी   से अपने लिए पोषक पदार्थ प्राप्त करते हैं |

d. कुछ कवक, जैसे पेंसीलियम, अपघटक (Decomposer) होते हैं और मृत पदार्थों से पोषक तत्व प्राप्त करते हैं |

जीवों के वर्गीकरण से आप क्या समझते हैं?

जीवों का ये वर्गीकरण एक निश्चित पदानुक्रमिक दृष्टि अर्थात् जगत (Kingdom), उपजगत (Phylum), वर्ग (Class), उपवर्ग (Order), वंश (Genus) और जाति (Species) के पदानुक्रम में किया जाता है। इसमें सबसे उच्च वर्ग 'जगत' और सबसे निम्न वर्ग 'जाति' होती है। अतः किसी भी जीव को इन छः वर्गों के आधार पर वर्गीकृत किये जाते है।

वर्गीकरण से आप क्या समझते हैं?

वर्गीकरण की परिभाषा काॅनर के शब्दों में, " वर्गीकरण वह प्रक्रिया है, जिसके द्वारा तथ्यों को यथार्थ रूप मे या कल्पित रूप से उनकी समानता और सादृश्यता के आधार पर वर्गो या विभागों मे विभाजित किया जाता है और जो इकाई की विभिन्नता के मध्य गुणों की एकता को व्यक्त करती हैं।"

जीवों के वर्गीकरण का अध्ययन क्या कहलाता है?

जीव जगत के समुचित अध्ययन के लिये आवश्यक है कि विभिन्न गुणधर्म एवं विशेषताओं वाले जीव अलग-अलग श्रेणियों में रखे जाऐं। इस तरह से जन्तुओं एवं पादपों के वर्गीकरण को वर्गिकी या वर्गीकरण विज्ञान अंग्रेजी में वर्गिकी के लिये दो शब्द प्रयोग में लाये जाते हैं - टैक्सोनॉमी (Taxonomy) तथा सिस्टेमैटिक्स (Systematics)।

जीवों का वर्गीकरण आवश्यक है क्यों?

वर्गीकरण जीवों के अध्ययन को आसान करता है। हम सभी प्रकार के जीवन को एक बार में जान सकते हैं। इससे जीवों के पारस्परिक संबंधों का पता चलता है।

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