शिव और विष्णु का युद्ध क्यों हुआ? - shiv aur vishnu ka yuddh kyon hua?

शिव
और विष्णु का महाप्रलयंकारी युद्ध




भगवान विष्णु ही इस शृष्टि के पालनहार हैं और भगवान
शिव को शृष्टि के संहारक माना जाता है । ये दोनों ही सर्वशक्तिमान हैं और माना
जाता है की दोनों ही एक दूसरे के परम भक्त हैं । लेकिन क्या आपने कभी सुना है कि
भगवान विष्णु और भगवान शिव के बीच भी कभी भयंकर युद्ध हुआ था। बहुत ही कम लोगों को
ये पता है कि इन दोनों के बीच भी युद्ध हुआ था। तो फिर यह युद्ध कितने दिनो तक चला
? इस युद्ध का इस शृष्टि पर क्या प्रभाव पड़ा? इस
युद्ध मे कौन विजयी हुआ
?

ये काल चक्र है इस काल चक्र मे मै आप सब का अभिनंदन
करता हूँ। आज हम भगवान विष्णु और भगवान शिव के बीच होने वाले महाप्रलयंकारी युद्ध
की कथा सुनयेंगे ।

एक दिन माता लक्ष्मी अपने पिता समुद्र देव से मिलने
आयीं तब उन्होने देखा की उनके पिता काफी चिंतित प्रतीत हो रहे हैं । उन्होने ने
उनसे उनकी चिंता का कारण पूछा – तब समुद्र देव ने कहा हे ! पुत्री मै तुम्हारे लिए
अति प्रसन्न हूँ की तुम्हारा विवाह श्री हरी विष्णु के साथ हुआ है लेकिन तुम्हारी
पाँच बहने सुवेषा
, सुकेशी समिषी, सुमित्रा और वेधा भी मन ही मन विष्णु देव को अपना पति मन चुकीं हैं और
उनको पाने के लिए कठोर तप्श्या कर रहीं हैं । यह बात सुनकर माता लक्ष्मी भी अत्यंत
चिंतित हो गईं
, और वैकुंठ धाम वापिस आ गईं ।

वापिस आकर माता लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से कहा- हे
प्राणनाथ आज मुझे विश्वश दिला दीजिये की आपके सम्पूर्ण हृदय मे केवल मेरा स्थान है

भगवान विष्णु ने कहा – देवी आप इस सत्या से अनभिज्ञ
नहीं हैं की मेरे हृदय के आधे भाग मे केवल महादेव हैं
, मै ये कैसे कह दूँ की मेरे संपूर्ण हृदय मे आप हैं ।

इसपर देवी लक्ष्मी ने कहा – तो फिर शेष आधा भाग तो
मेरे लिए होना चाहिए ।

भगवान विष्णु ने कहा – देवी मै जगत का पालनहार हूँ
शेष आधे भाग मे मेरे अनेक भक्त जो मुझे प्रिए हैं
, ये संसार
जो मुझे प्रिए है ये सब भी मेरे हृदय के आधे भाग मे आपके साथ रहते हैं ।

देवी लक्ष्मी ने कहा – ये संसार मुझे भी प्रिए है
स्वामी किन्तु मेरे हृदय मे केवल आप हैं । मुझे आपका प्रेम सम्पूर्ण स्वरूप मे ही
चाहिए यदि ये संभव नहीं है तो आप मुझे अपने हृदय से निकाल दीजिये ।

यहाँ दूसरी तरफ देवी लक्ष्मी की पांचों बहने
तप्श्या मे सफल हुईं और भगवान विष्णु ने पटल लोक आ कर उन्हे दर्शन दिया और
मनवांछित वरदान मांगने को कहा। तब उन पांचों बहनों ने यह मांगा की भगवान आप हम
पांचों बहनों के पति बन जाएँ और अपनी सारी स्मृतियों को और इस संसार को भूलकर उनके
साथ ही पाताल लोक मे वाश करें। भगवान विष्णु ने उन्हे तथस्तु कहा और उनके साथ ही
पाताल लोक मे वाश करने लगे।

भगवान विष्णु के चले जाने से संसार का संतुलन
बिगड़ने लगा। माता लक्ष्मी भी बहुत व्याकुल हो गईं और भगवान शिव के पास गईं वह माता
पार्वती ने उनसे कहा – हे! देवी भगवान विष्णु तो जगत पालक हैं आप उनसे ये आशा कैसे
रख सकतीं हैं की उनके सम्पूर्ण हृदया मे केवल आप का ही स्थान हो । मेरे पति महादेव
के हृदया मे भी भगवान विष्णु हैं और उनके समस्त भक्तों के साथ मै भी हूँ और मै इस
बात से खुश हूँ की उनके हृदय मे मेरा एक विशेष स्थान है ।

यह बात सुनकर देवी लक्ष्मी को अपनी भूल का एहसास
हुआ। भगवान शिव यह देख कर अत्यंत दुखी हुए
, शृष्टि के संतुलन
को पुनः स्थापित करने का और भगवान विष्णु को पाताल से वापिस लाने का निश्चय किया ।
उन्होने वृषभ अवतार लेकर पाताल लोक पर आक्रमण कर दिया। उन्हे देख कर भगवान विष्णु
अत्यंत क्रोधित हुए और महादेव के सामने आ गए और उन दोनों के बीच युद्ध प्रारम्भ हो
गया ।

भगवान विष्णु ने महादेव पर अनोकों अस्त्रों से
प्रहार करना आरंभ कर दिया महादेव भी अपने वृसभ स्वरूप मे उनके सभी प्रहारों को
विफल करते गए । दोनों ही सर्वशक्तिमान थे अतः युद्ध बिलकुल बराबरी का चल रहा था।
ये युद्ध अनेकों वर्षों तक चलता रहा किसी को भी इस युद्ध की समाप्ती का उपाय समझ नहीं
आरहा था। भगवान विष्णु का क्रोध इतना बढ़ गया की उन्होने ने अपने नारायण अश्त्र से
महादेव के ऊपर प्रहार कर दिया और महादेव ने उनपर पसूपतस्त से प्रहार कर दिया। इस
कारण दोनों ही एक दूसरे के अस्त्रों मे बांध गए।

यह सब देख कर गणेश जी माता लक्ष्मी की उन पांचों बहनों
के पास गए और बोले – भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों ही एक दूसरे के अस्त्रों मे
बंध गए हैं यदि भगवान विष्णु की स्मृति वापिस नहीं आई तो ये दोनों अनंत काल तक ऐसे
ही बंधे रहेंगे और इस समस्त शृष्टि का सर्वनाश हो जाएगा ।

यह सुनकर वो पंचो बहने युद्ध क्षेत्र मे आयीं और
भगवान शिव से बोलीं- भगवान विष्णु हम हमारे सारे वचनो से आपको मुक्त करते हैं।
उनके वचन से मुक्त होते हि भगवान विष्णु की सारी स्मृति वापिस आ जाती है और फिर
उन्होने भगवान शिव को अपने अस्त्रों के बंधन से मुक्त कर दिया भगवान शिव ने भी
उन्हे मुक्त कर अपने साकार रूप मे आ गए । और फिर भगवान शिव और भगवान विष्णु को
लेकर वैकुंठधाम आ गए ।    

देवाधिदेव महादेव शिव को भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) का आराध्य और श्री हरि विष्णु (Shri Hari Vishnu) को देवाधिदेव महादेव (Mahadev) का आराध्य बताया जाता रहा है। भगवान विष्णु अगर जगत का पालन करते हैं तो भगवान शिव (Bhagwan Shiv) इस संसार का संहार करते हैं। दोनों में कोई न बड़ा है और न ही छोटा है।

ब्रह्मा के साथ मिलकर भगवान श्री हरि विष्णु और भगवान शिव त्रिदेवों की संकल्पना और कार्यों को पूर्ण करते हैं। लेकिन फिर भी कभी-कभी ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हुई हैं जब भगवान श्री हरि विष्णु को भगवान शिव ने संकटों से उबारा है तो कभी भगवान शिव को श्री हरि विष्णु ने संकटों से उद्धार किया है। इन दोनों ही लीलाओं की गाथाएं हैं।

जब माता सती के वियोग में भगवान शिव के मोह को दूर करने के लिए भगवान श्री हरि विष्णु अपने सुदर्शन चक्र का प्रयोग करते हैं तो कभी भोलेनाथ को भस्मासुर से बचाने के लिए विष्णु मोहनी का रुप भी धारण करते हैं। लेकिन कई बार ऐसी परिस्थितियां भी बनी हैं जब भगवान श्री हरि विष्णु को नियंत्रित करने के लिए भगवान भोलेनाथ को आगे आना पड़ा है।

ऐसी ही एक कथा है कि भगवान श्री हरि विष्णु के महावतार नृसिंह भगवान के अवतरण की अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए श्री हरि विष्णु भयंकर रौद्ररुप में प्रगट होते हैं। इस अवतार में उनके शरीर का उपरी भाग शेर का और शरीर के नीचे का भाग मानव का है। नृसिंह भगवान अति क्रोध में प्रगट होते हैं और अपने रौद्र रुप में ही हिरण्यकश्यप को अपने नखो से चीर डालते हैं

हिरण्यकश्यप के वध के बावजूद नृसिंह भगवान का क्रोध शांत नहीं होता है। एक वक्त ऐसा आता है, जब उनके अंदर के करुणा का विष्णु तत्व भी समाप्त हो जाता है। ऐसा लगने लगता है कि नृसिंह भगवान अपने रौद्र रुप से तीनों लोकों को खत्म कर देंगे। भगवान विष्णु के करुणा रुपी तत्व के खत्म होने के बाद नृसिंह भगवान को नियंत्रित करना लगभग असंभव हो जाता है।

तत्पश्चात देवताओं के अनुरोध पर भगवान शिव अपने गण वीरभद्र को नियंत्रित करने के लिए भेजते हैं। वीरभद्र पहले तो नृसिंह भगवान की स्तुति करते हैं और उन्हें अपना क्रोध शांत करने के लिए कहते हैं। लेकिन नृसिंह भगवान वीरभद्र पर ही आक्रमण कर देते हैं। दोनों के बीच महान युद्ध शुरु होता है। इस युद्ध में वीरभद्र पराजित हो जाते हैं। नृसिंह भगवान का क्रोध और भी बढ़ने लगता है। तब भगवान भोलेनाथ एक ऐसे महान रौद्र रुप में प्रगट होते हैं जो आज तक किसी ने नहीं देखा था।

लिंग पुराण की कथा के अनुसार भगवान शिव के शरीर का आधा भाग मृग का था और शेष भाग शरभ पक्षी का। पौराणिक कथाओं में शरभ पक्षी का जिक्र आता है। महाभारत में भी शरभ नामक एक पक्षी का जिक्र है जिसके आठ पैर होते हैं और शेर की तरह एक लंबी पूंछ भी होती है। शरभ पक्षी के बारे में कहा गया है कि वो शेर को भी लेकर उड़ सकता था। भगवान शिव के इस अवतार को शरभ अवतार कहा गया।

लिंग पुराण के अनुसार भगवान शिव शरभावतार में भगवान विष्णु के नृसिंह अवतार से युद्ध शुरु करते हैं और जब युद्ध लंबा चलता है तो वो नृसिंह भगवान को अपने पूंछ में लेकर पाताल में चले जाते हैं। लंबे समय तक शरभावतार की पूंछ में जकड़े रहने के बाद जब नृसिंह भगवान की चेतना लौटती है और क्रोध समाप्त होता है तो वो भगवान शिव को पहचान जाते हैं। इसके बाद भगवान शिव की स्तुति नृसिंह भगवान करते हैं।

चूंकि भगवान नृसिंह में विष्णु तत्व समाप्त हो चुका था इसलिए फिर से भगवान शिव के आह्वान पर विष्णु नृसिंह भगवान के इस अवतार को समाप्त कर देते हैं। इन्ही नृसिंह भगवान के शरीर की त्वचा ( जो कि बाघ की थी ) को भगवान शिव अपना आसन बनाते हैं। इसके साथ ही नृसिंह भगवान के अवतरण का उद्धेश्य खत्म हो जाता है। इस कथा को न केवल लिंग पुराण में उल्लेख है बल्कि शिव महापुराण में भी इस कथा का विस्तार से वर्णन है।

महादेव और विष्णु का युद्ध क्यों हुआ?

देवताओं को विष्णु पुत्रों के आतंक से मुक्त करवाने के लिए भगवान शिव एक बैल यानि कि "वृषभ" के रूप में पाताल लोक पहुंचे और वहां जाकर भगवान विष्णु के सभी पुत्रों का संहार कर डाला। तभी श्री हरि विष्णु आए आपने वंश का नाश हुआ देख वह क्रूद्ध हो उठे और भगवान शिव रूपी वृषभ पर आक्रमण कर दिया लेकिन उनके सभी वार निष्फल हो गए।

भगवान शिव और विष्णु में क्या अंतर है?

शिव और विष्णु दोनों में एकता है त्रिदेवों में ब्रम्हा जी को सृष्टि का रचयिता माना जाता है, विष्णु को जगत का पालक माना जाता है तो वहीं शिव जी को सृष्टि का संहारकर्ता माना जाता है।

शिव और विष्णु में कौन बड़ा है?

भगवान शिव के भक्तों की दृष्टि में वे स्वयंभू हैं, वहीं वैष्णवों की दृष्टि में भगवान विष्णु स्वयंभू हैं। इस कहानी में भगवान विष्णु को शिव से अधिक महान दर्शाया गया है।

शिव विष्णु का पुत्र कौन था?

भगवान शिव और भगवान‌ विष्‍णु के पुत्र का नाम था अयप्पा। आप सोच रहे होंगे कि दोनों के पुत्र कैसे संभव है। दरअसल अयप्पा भगवान विष्‍णु अवतार मोहिनी और भगवान शिव जी के पुत्र थे।

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