जमानत कितने प्रकार के होते हैं - jamaanat kitane prakaar ke hote hain

आर्यन खान ड्रग मामले में आर्यन की तरफ से किए गए वकीलों ने कई बार उसकी बेल कराने की कोशि‍श की, करीब एक महीने की कवायद के बाद आर्यन को बेल यानी जमानत मिल सकी।

इस बीच लंबे समय तक जमानत को लेकर काफी चर्चा रही। ऐसे में जानना जरूरी है कि आखि‍र कितनी तरह की जमानत होती हैं और य‍ह किस आरोपी को किन हालातों में मिलती है और किन हालातों में नहीं।

मुंबई ड्रग्स मामले में आर्यन खान को बॉम्बे हाईकोर्ट ने सशर्त जमानत दे दी है। 1 लाख रुपए के पीआर बांड पर बेल दी गई है।

दरअसल, जिस तरह गिरफ्तारी कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा है, उसी तरह जमानत मिलना भी उसी कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा है। अपराध को कानून की धाराओं के आधार पर 2 श्रेणी में बांटा गया है। पहला जमानती धारा। दूसरा गैर जमानती धारा।

आइए जानते हैं कितनी तरह की होती हैं जमानत
जमानत का मतलब होता है किसी तय समय-सीमा के लिए आरोपी को जेल से राहत देना। यह कुछ शर्तों पर मिलती है। जमानत का यह मतलब नहीं कि उसे आरोपमुक्त कर दिया गया।

साधारण जमानत: गर किसी क्राइम में आरोपी को गिरफ्तार कर लिया जाता है तो वह साधारण बेल के लिए आवेदन करता है। सीआरपीसी की धारा 437 और 439 के तहत रेगुलर बेल दी जाती है।

अग्रिम जमानत:

यह एडवांस बेल है। यानी गिरफ्तारी से पहले ही बेल। जब व्यक्ति को किसी क्राइम के आरोप में गिरफ्तारी की आशंका हो तो वह सीआरपीसी की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत के लिए कोर्ट में आवेदन करता है।

अंतरिम जमानत: रेगुलर बेल या एंटिसिपेटरी बेल पर सुनवाई होने में जब कुछ दिन शेष हो तो यह इंटरिम बेल दी जाती है। बहुत कम समय के लिए यह बेल दी जाती है।

थाने से जमानत: जमानती धाराओं में दर्ज मामलों, जैसे- मारपीट, धमकी, गाली-गलौज, दुर्व्‍यवहार जैसे मामूली अपराधों में गिरफ्तारी हो भी जाए तो थाने से ही जमानत मिल जाती है।

कब नहीं मिलती जमानत
गैर-जमानती अपराध में अगर कोई केस मजिस्ट्रेट के पास जाता है और उन्हें लगता है कि मामला गंभीर है और बड़ी सजा हो सकती है तो वे जमानत नहीं देते।

फांसी या उम्रकैद से कम सजा की संभावना पर मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट की अदालत केस की स्थिति के हिसाब से जमानत दे सकती है।

वहीं सेशन कोर्ट किसी भी मामले में जमानत पिटिशन स्वीकार कर सकता है। सेशन कोर्ट गंभीर मामलों में भी बेल दे सकता है, लेकिन काफी कुछ केस के मेरिट पर निर्भर होगा।

चार्जशीट दाखिल होने के बाद केस की मेरिट पर ही बेल तय होगी। चार्जशीट का मतलब है कि पुलिस ने पर्याप्त पूछताछ कर ली है और अपनी तरफ से जांच पूरी कर दी है।

ट्रायल के दौरान अहम गवाहों ने आरोपी के खिलाफ बयान दिए हों तो भी जमानत नहीं मिलेगी। प्रकरण गंभीर हो और गवाहों को डराने या केस के प्रभावित होने का अंदेशा में जमानत नहीं मिलती।

जमानत क्या होती है। अग्रिम जमानत कैसे होती है? जमानत के बाद क्या होता है? जमानत कौन ले सकता है? जमानत के लिए डॉक्यूमेंट क्या चाहिए? जमानत कितने प्रकार के होते है? जमानत देने के मापदंड क्या हैं? बेल या जमानत क्या होती है कितने प्रकार की होती है क्या बिना कोर्ट जाये पुलिस स्टेशन से भी बेल ली जा सकती है तथा कोर्ट से जमानत कैसे ले? ये कुछ ऐसे प्रश्न हैं, जो अकसर पूछे जाते हैं। देशबन्धु अखबार में जुलाई 2018 के अन्तिम सप्ताह में प्रकाशित एक खबर में विस्तार से इन प्रश्नों पर प्रकाश डाला गया है। देशबन्धु अखबार में प्रकाशित खबर का संपादित रूप आभार सहित हस्तक्षेप के पाठकों के लिए जनहित में प्रकाशित –

जमानत किसी विशेष आपराधिक मामले (Special criminal case) के अंतिम निपटारा होने से पहले आरोपी को अस्थाई स्वतंत्रता प्रदान करने का एक कानूनी तरीका (A legal way of providing temporary freedom to the accused) है। गिरफ्तारी से बचने के लिए आरोपी न्यायालय से अग्रिम जमानत की माँग करता है तो कभी अंतरिम जमानत (Interim bail) की या फिर रेगुलर बेल के लिए अर्जी (Application for regular bell) दाखिल करता है। ऐसे में प्रश्न उठता है कि जमानत कितने प्रकार के होते हैं, जमानत दिए जाने का क्या प्रावधान है तथा कब और किन परिस्थितियों में जमानत मिलती है?

In which cases is bail granted?

जमानत के बारे में जानने से पहले यह जानना आवश्यक है कि किन-किन मामलों में जमानत मिलती है?

अपराध कितने प्रकार के होते हैं

अपराध दो तरह के होते हैं- Crimes are of two types-

1. जमानती अपराध (Bailable offense) 

2. गैर-जमानती अपराध (Non bailable offense)

जमानती अपराध में कौन से मामले आते हैं | असंज्ञेय अपराध का मतलब | Non-cognizable offense

जमानती अपराध में मारपीट, धमकी, लापरवाही से गाड़ी चलाना आदि मामले आते हैं। अर्थात वैसे मामले जिसमें तीन साल या उससे कम की सजा हो। सीआरपीसी की धारा 436 (Section 436 of CrPC) के अन्तर्गत जमानती अपराध में न्यायालय द्वारा जमानत दे दी जाती है।

कुछ परिस्थितियों में सीआरपीसी की धारा 169 (Section 169 of CRPC) के अन्तर्गत थाने से ही जमानत दिए जाने का प्रावधान है। आरोपी थाने में बेल बॉन्ड भरता है और फिर उसे जमानत दे दी जाती है।

गैर-जमानती अपराध |  Cognisable offence (संज्ञेय अपराध)

गैर-जमानती अपराध (Non bailable offense) में डकैती, लूट, हत्या, हत्या की कोशिश, गैर-इरादतन हत्या, रेप, अपहरण, फिरौती के लिए अपहरण आदि आते हैं। इस तरह के मामलों में न्यायालय के सामने तथ्य पेश किए जाते हैं और फिर न्यायालय द्वारा जमानत पर फैसला लिया जाता है।

अदालत जमानत देते समय आरोपी का पिछला आपराधिक रिकार्ड, लगाए गए आरोप में दिए जाने वाले सजा, आरोप के तथ्यों आदि की जाँच करती है उसके बाद जमानत देने या न देने का फैसला करती है।

जमानत के प्रकार | Bail type | जमानत के प्रावधान |How to get bail | Law Article

अग्रिम जमानत कैसे मिलती है | Anticipatory bail

अग्रिम जमानत से तात्पर्य यदि आरोपी को पहले से ज्ञान हो गई हो कि वह किसी मामले में गिरफ्तार हो सकता है तो वह गिरफ्तारी से बचने के लिए सीआरपीसी की धारा 438 (Section 438 of CrPC) के तहत अग्रिम जमानत की माँग कर सकता है। अर्थात् आरोपित व्यक्ति को इस मामले में गिरफ्तार नहीं किया जायेगा। अदालत जब किसी आरोपी को जमानत देती है तो आरोपी को जमानती के लिए तथा बेल बॉन्ड भरने का निर्देश दे सकती है।

रेग्युलर बेल

जब किसी आरोपी के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में वाद लंबित होता है, तब आरोपी सीआरपीसी की धारा 439 (Section 439 of CrPC) के अंतर्गत उच्च न्यायालय में जमानत की अर्जी दाखिल कर सकता है। अर्थात जब निचली अदालत से सीआरपीसी की धारा 437 के अंतर्गत जमानत की अर्जी खारिज (Bail application rejected under section 437 of crpc) कर दी जाती है तब उच्च न्यायालय में सीआरपीसी की धारा 439 के अंतर्गत अर्जी दाखिल किया जाता है।

निचली अदालत/ विचारण न्यायालय (Trial court)या उच्च न्यायालय केस की स्थिति के आधार पर फैसला देता है। इसके तहत आरोपी को अंतरिम जमानत या रेगुलर बेल दी जाती है।

सीआरपीसी 436 (ए) | भारतीय दंड संहिता की धारा 436 (Section 436 of the Indian Penal Code)

यदि आरोपी किसी मामले में ट्रायल के दौरान (अंडर ट्रायल)  जेल में है तथा लगाए गए आरोप में जितने दिन की सजा हो सकती है उससे आधा या आधे से अधिक समय जेल में बीता चुका है तो सीआरपीसी की धारा 436 (ए) के तहत अदालत में जमानत के लिए अपील कर सकता है।

चार्जशीट न होने पर बेल का प्रावधान

यदि पुलिस द्वारा चार्जशीट दाखिल नहीं की जाती है तब भी आरोपी को जमानत दी जा सकती है, चाहे मामला बेहद गंभीर ही क्यों न हो।

वह मामला जिसमें 10 साल या उससे अधिक के सजा का प्रावधान है, उसमें गिरफ्तारी के 90 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल करना आवश्यक होता है। यदि इस दौरान चार्जशीट दाखिल नहीं की जाती है तो सीआरपीसी  की धारा 167(बी) के तहत जमानत दिए जाने का प्रावधान है। जबकि 10 साल से कम की सजा वाले मामलों में 60 दिनों के भीतर चार्जशीट दाखिल करना अनिवार्य होता है, नहीं करने पर जमानत का प्रावधान है।

नोट – यह समाचार किसी भी हालत में कानूनी परामर्श नहीं है। यह सिर्फ एक जानकारी है।कोई निर्णय लेने से पहले अपने विवेक का प्रयोग करें और किसी कानूनी विशेषज्ञ से सलाह लें।)

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बेल कितने प्रकार के होते हैं?

विशेष—साधारणतः बेल दो प्रकार की होती है । एक वह जो अपने उत्पन्न होने के स्थान से आस पास के पृथ्वीतल अथवा और किसी तल पर दूर तक फैलती हुई चली जाती है । जैसे, कुम्हड़े की बेल । दूसरी वह जो आस पास के वृक्षों अथवा इसी काम के लिये लगाए गए बाँसों आदि के सहारे उनके चारों ओर घूमती हुई ऊपर की ओर जाती है ।

जमानत देने वाले व्यक्ति को क्या कहते हैं?

अदालत में अभियुक्त को समय-समय पर पेश कराने एवं जब भी न्यायालय अभियुक्त को न्यायालय में प्रस्तुत होने के लिए आदेश करें, तब उसके प्रस्तुत होने की गारंटी लेने वाले व्यक्ति को जमानतदार अर्थात प्रतिभू (Surety) कहा जाता है।

क्या पत्नी जमानत दे सकती है?

चूंकि अब दोनों के बीच रिलेशनशिप नहीं है तो ऐसे में आईपीसी की धारा 376 (2) (एन) के तहत एफआईआर का आधार नहीं हो सकता है. राजस्थान हाई कोर्ट के आदेश को निरस्त करते हुए बेंच ने कहा कि गिरफ्तारी की स्थिति में जमानत की मांग करने वाले अपीलकर्ता को बेल दी जाएगी और वह लंबित जांच में सहयोग भी करेगा.

जमानत का क्या मतलब होता है?

जमानत का अर्थ है कि कोई व्यक्ति अदालत द्वारा इस आशय के साथ रिहा किया जाता है कि जब अदालत उसकी उपस्थिति के लिए बुलाएगी या निर्देश देगी तो वह अदालत में पेश होगा। संक्षेप में, यह कहा जा सकता है कि जमानत किसी अभियुक्त की सशर्त रिहाई है जिसमें आवश्यकता पड़ने पर अदालत में पेश होने का वादा किया जाता है।