बच्चों को कितने समय मोबाइल-लैपटॉप चलाने देना चाहिए और अन्य किन चीजों का रखें ध्यान?बच्चों को कितने समय मोबाइल-लैपटॉप चलाने देना चाहिए और अन्य किन चीजों का रखें ध्यान? Show
Jun 27, 2022, 08:00 pm 1 मिनट में पढ़ें बच्चों को कितने समय मोबाइल-लैपटॉप चलाने देना चाहिए? आज के युग में मोबाइल और लैपटॉप जैसे डिजिटल उपकरणों का प्रयोग बढ़ता जा रहा। कोरोना वायरस महामारी के साथ ही दुनिया डिजिटल हो चली है और बड़ों के साथ-साथ छोटे बच्चों का स्क्रीन टाइम भी बढ़ गया है। कई अभिभावक अपने बच्चों के स्क्रीन टाइम को लेकर परेशान हैं, इसलिए सभी माता-पिता के लिए स्क्रीन एक्सपोजर को बेहतर तरीके से समझना जरूरी हो गया है। आइए हम आपको बच्चों के स्क्रीन एक्सपोजर से संबंधित महत्वपूर्ण बातें बताते हैं। बुद्धिमानी से स्क्रीन का उपयोग करने में नहीं है कोई बुराई अभिभावकों के लिए यह समझना जरूरी है कि किसी भी डिजिटल स्क्रीन का उपयोग बुद्धिमानी से करना चाहिए और इससे संबंधित सब कुछ बुरा नहीं होता है। कई लोग स्क्रीन एक्सपोजर को एक दानव के रूप में देखते हैं और इसे बच्चों के उपयोगी समय की बर्बादी मानते हैं। हालांकि, डिजिटल उपकरणों के माध्यम से दोतरफा संचार पर आधारित इंटरैक्टिव सत्र बच्चों के सीखने का एक बड़ा स्रोत हो सकते हैं। ऐसे ही अन्य उपयोगी लाभ भी हैं। किस उम्र के बच्चे के लिए कितने स्क्रीन टाइम का सुझाव दिया गया है? अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स (AAP) के दिशानिर्देशों के अनुसार, दो से छह साल की उम्र के बच्चे अपने माता-पिता की निगरानी में एक दिन में एक घंटे तक (ब्रेक के साथ) अपनी पढ़ाई के लिए स्क्रीन देख सकते हैं। वहीं ऐसे माता-पिता जिनके बच्चों की उम्र दो साल से कम है, उन्हें अपने बच्चों को स्क्रीन के सीधे संपर्क में नहीं आने देना चाहिए। यानि दो साल के बच्चों को मोबाइल जैसी डिजिटल डिवाइस देनी ही नहीं चाहिए। स्क्रीन टाइम को लेकर UNICEF की रिपोर्ट में इन बातों का जिक्र UNICEF की रिपोर्ट 'ग्रोईंग अप इन कनेक्टेड वर्ल्ड' में कहा गया है कि बच्चों के डिजिटल या तकनीकी अनुभवों पर विचार करते समय उनके माता-पिता को यह ध्यान देने की जरूरत है कि उनके बच्चे को ऑनलाइन क्या करना चाहिए और उनके सामने जो कंटेंट आता है, वो किस प्रकार का है। रिपोर्ट में बताया गया कि माता-पिता को केवल स्क्रीन एक्सपोजर की मात्रा पर विचार करने के बजाय सुरक्षित और ज्ञानवर्धक कंटेंट पर ध्यान देने की आवश्यकता है। माता-पिता बच्चों को गलत-सही डिजिटल कंटेंट की कराएं पहचान जिस तरह माता-पिता अपने बच्चों के साथ स्वस्थ भोजन की आदतों के बारे में बात करते हैं, उसी तरह उन्हें बच्चों को वर्चुअल दुनिया में छोड़ने से पहले, यानि मोबाइल जैसे डिजिटल उपकरण उनके हाथ में देने से पहले, कौन-सा कंटेंट गलत है और कौन-सा सही, इसकी जानकारी दे देनी चाहिए। जब माता-पिता अपने बच्चों को यह जानकारी डिजिटल उपकरण के प्रयोग के पहले ही दे देंगे तो उन्हें गलत-सही की समझ भी जल्द हो जाएगी। डिजिटल फूड पिरामिड का करें पालन बच्चों को कितनी देर कौन-सा कंटेंट देखना चाहिए, इसके लिए डिजिटल फूड पिरामिड एक अच्छा उदाहरण हो सकता है। उदाहरण के तौर पर, फिटनेस, जीमेल और शैक्षणिक सामग्रियों से जुड़ी वेबसाइटों को पिरामिड में सबसे निचले स्थान पर रखना चाहिए। इसके बाद एंटरटेनमेंट, सोशल मीडिया और गेमिंग जैसे प्लेटफॉर्म को सबसे ऊपर रखना चाहिए क्योंकि ऐसी वेबसाइटों पर बच्चे अधिक समय (एक घंटे से अधिक) देते हैं और बच्चे इनका उपयोग जितना कम करेंगे, उतना बेहतर होगा।
पिऊ रिसर्च सेंटर की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार 45 पर्सेंट पेरेंट्स सोचते हैं कि 12 साल की उम्र से पहले बच्चों को फोन नहीं देना चाहिए जबकि 28 पर्सेंट माता-पिता का मानना है कि 15 साल के होने के बाद ही बच्चों को फोन मिलना चाहिए। वहीं 22 पर्सेंट पेरेंट्स 11 साल से भी छोटे बच्चों को फोन देने के लिए तैयार हैं। इस सबके बीच आप भी सोच रहे होंगे कि बच्चों को किस उम्र में फोन देना सही रहता है। तो चलिए जानते हैं कि बच्चों के लिए मोबाइल चलाने की सही उम्र क्या है। यह भी पढ़ें : इस उम्र के बाद ही बच्चों को मिलना चाहिए अलग कमरा कैसे जानें सही उम्रअमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स काउंसिल ऑन कम्यूनिकेशन एंड मीडिया के चेयरमैन डॉक्टर नुशीन अमीनुद्दीन का कहना है कि बच्चों को मोबाइल फोन देने की कोई एक उम्र नहीं है। ये आपके बच्चे के मैच्योरिटी लेवल और जीवनशैली की डिमांड पर निर्भर करता है। कुछ बच्चों के लिए फोन एक जरूरत हो सकता है। कब जल्दी देना चाहिए फोनअगर पेरेंट्स अलग हो गए हैं और बच्चे को अपने
दूसरे पेरेंट के पास भी जाना होता है, आपके ऑफिस जाने पर बच्चे की देखभाल कोई और करता है, स्पोर्ट्स या किसी और काम से बच्चे को बाहर ट्रैवल करना होता है या बच्चे को डायबिटीज जैसी कोई परेशानी है तो आपको उम्र देखे बिना ही बच्चे को मोबाइल फोन देना चाहिए। यह भी पढ़ें : इस उम्र से पहले बच्चों के कान बिंदवाना पड़ सकता है भारी, सही एज है बहुत जरूरी फोन देने से पहले क्या सोचेंअगर आप फोन बच्चे की जरूरत को पूरा करने के लिए ले रहे हैं जैसे कि उससे बात करने के लिए या उसे कुछ सिखाने या शेड्यूल करने वाली ऐप्स का इस्तेमाल करवाने के लिए तो आप उसे फोन खरीदकर दे सकते हैं। लेकिन अगर बच्चा ऐसी ऐप्स को यूज करने के लिए फोन मांग रहा है, जिसके लिए अभी वो छोटा है तो आपको अभी थोड़ा इंतजार करना चाहिए। बच्चे को फोन थमाने से पहले उससे बात करें कि वो क्या चाहता है और वो फोन का क्या करेगा। सेफ्टी का भी है सवालफोन की मदद से आप पूरी दुनिया को जान सकते हैं। अब ये अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी। बच्चे को फोन देने के बाद आपको उसे मॉनिटर भी करना होगा। बच्चे की फोन की ऐप्स को मॉनिटर करें और इस्तेमाल के समय को लिमिट करें। उसके फोन में गलत वेबसाइट या सर्च को हटा दें। बच्चे के लिए ऐप्स को लेकर कुछ नियम बनाकर रखें। डाउनलोड ऐप्स में सिक्योरिटी सेटिंग भी चेक करें। बच्चों को इंटरनेट और सोशल मीडिया से होने वाले नुकसान और खतरों के बारे में बताएं। अब आप समझ गए होंगे कि बच्चों के लिए मोबाइल देने की कोई सही या गलत उम्र नहीं होती है। ये बच्चे की समझदारी और जरूरत पर निर्भर करता है। यह भी पढ़ें : बच्चे ने अब तक नहीं किया चलना शुरू, इस तरह आप खुद कर सकते हैं उसकी मदद Navbharat Times News App: देश-दुनिया की खबरें, आपके शहर का हाल, एजुकेशन और बिज़नेस अपडेट्स, फिल्म और खेल की दुनिया की हलचल, वायरल न्यूज़ और धर्म-कर्म... पाएँ हिंदी की ताज़ा खबरें डाउनलोड करें NBT ऐप लेटेस्ट न्यूज़ से अपडेट रहने के लिए NBT फेसबुकपेज लाइक करें 1 दिन में कितने घंटे मोबाइल चलाना चाहिए?एक व्यक्ति को एक दिन में लगभग 1 से 2 घंटे फ़ोन का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि ज्यादा मोबाइल चलाने से हमारे आखों और मानशिक में काफी तनाव पड़ता है।
कितने साल के बच्चों को मोबाइल नहीं देखना चाहिए?5 साल से कम उम्र के बच्चों का निर्धारित समय से ज्यादा स्क्रीन टाइम उनके शारिरिक और मानसिक विकास पर सीधा असर डालता है. इस रिपोर्ट के जरिए WHO ने माता-पिता या अभिभावक को बच्चों को मोबाइल फोन, टीवी स्क्रीन, लैपटॉप और अन्य इलैक्ट्रोनिक उपकरणों से दूर रखने की हिदायत दी है.
बच्चे ज्यादा मोबाइल देखे तो क्या होता है?कम उम्र में स्मार्टफोन की लत की वजह बच्चे सामाजिक तौर पर विकसित नहीं हो पाते हैं। बाहर खेलने न जाने की वजह से उनके व्यक्तित्व का विकास नहीं हो पाता। 5. मनोविशेषज्ञों के पास ऐसे केस भी आते हैं कि बच्चे पसंदीदा कार्टून कैरेक्टर की तरह ही हरकतें करने लगते हैं।
मोबाइल देखने से बच्चों के दिमाग पर क्या असर पड़ता है?दिमाग की ग्रोथ रुक भी सकती है. इससे मस्तिष्क का ग्रे-मैटर का घनत्व भी कम हो सकता है. ग्रे-मैटर याददाश्त, ध्यान, जागरुकता, विचार, भाषा और चेतना को लेकर महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इसके अलावा स्मार्टफोन के ज्यादा प्रयोग से बच्चों की आंखों में भी सूखापन आ सकता है.
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