जलोढ़ मिट्टी क्या है और यह कैसे बनती है? - jalodh mittee kya hai aur yah kaise banatee hai?

Jalodh Mitti Ki Visheshta

GkExams on 12-05-2019

जलोढ़, अथवा अलूवियम उस मृदा को कहा जाता है, जो बहते हुए जल द्वारा बहाकर लाया तथा कहीं अन्यत्र जमा किया गया हो। यह भुरभुरा अथवा ढीला होता है अर्थात् इसके कण आपस में सख्ती से बंधकर कोई ठोस शैल नहीं बनाते।

जलोढ़क से भरी मिट्टी को जलोढ़ मृदा या जलोढ़ मिट्टी कहा जाता है। जलोढ़ मिट्टी प्रायः विभिन्न प्रकार के पदार्थों से मिलकर बनी होती है जिसमें गाद (सिल्ट) तथा मृत्तिका के महीन कण तथा बालूतथा बजरी के अपेक्षाकृत बड़े कण भी होते हैं।

-नदियों द्वारा बहाकर लाई गई मिट्टी बाढ़ में उसकी बेसिन में बिछ जाती है

- समुद्री लहरें अपने तटों पर भी ऐसी ही मिट्टी की परतें जमा कर देती हैं।



Comments Rohan kumar on 23-11-2022

जलोढ मिटृटी में किन पोषण तत्व की कमी होती है

Bhupendra kumar on 09-05-2022

छत्तीसगढ़ की मिट्टी की महत्वव

Sinkush kumar on 08-04-2022

जलोढ़ मिट्टी के विशेषताएं बताओ

Anjali on 06-12-2021

Bhot ache language h mam ase hi or bi questions banate rahana

Abhishek on 26-10-2021

Jalod mrada

Ashutosh Kumar on 09-09-2021

Jalod mirdha ka vargikaran jhalod mirdha ka vargikaran

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Pooja on 15-07-2020

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Saniya on 26-05-2020

Jalod maidak kise kahate Hain iski mukhya visheshta ko likho

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Pravin on 24-05-2020

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Jalod mitti ki teen bisheshtye btaye

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Jalod mitti ke sirf do visistay h

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Jalodh mitti ju do vishestay

Raja Raja on 03-11-2019

Jalodh mitti Mai Kaun se phasal hotel hai

Shantanu Pandey on 26-07-2019

Bhumandleeya kya hair?

Jalod Mitti ki visheshta on 12-05-2019

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जलोढ़ मिट्टी
July 19, 2015
इंडियन कौंसिल ऑव ऐग्रीकल्चरल रिसर्च ने सर्वेक्षण और अध्ययन करके भारत की मिट्टीयों को आठ मुख्य वर्गों में विभक्त किया है -
1. जलोढ़ मिट्टी -
• भारत में यह मिट्टी विस्तृत रूप से फैली हुई है और उपजाऊ होने के कारण कृषि क्रियाकलापों के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।
• नदियों द्वारा बहाकर लाई गई मिट्टी बाढ़ में उसकी बेसिन में बिछ जाती है
• समुद्री लहरें अपने तटों पर भी ऐसी ही मिट्टी की परतें जमा कर देती हैं।
जलोढ़ मिट्टी के क्षेत्र निम्नलिखित हैं -
क. पंजाब से असम तक फैला भारत का वृहत मैदान
ख. मध्य प्रदेश में नर्मदा और ताप्ती की घाटियाँ
ग. मध्यप्रदेश और ओडिशा में महानदी की घाटियाँ
घ. तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में गोदावरी की घाटियाँ
ड. तमिलनाडु में कावेरी की घाटियाँ
च. केरल में सागरतट
छ. महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, गंगा-ब्रह्मपुत्र का। डेल्टा
• भारत में लगभग 6.4 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में जलोढ़ मिट्टी फैली हुई है।
• मिट्टी की आयु के आधार पर इसे बाँगर और खादर कहा जाता है।
• बाँगर मिट्टी में कंकड़ भी मिलते हैं।
• बाढ़ से प्रभावित क्षेत्रों में खादर मिट्टी में बाढ़ द्वारा नई-नई परतें जमती रहती हैं। इसमें कण बहुत बारीक होते है तथा इसकी उर्वराशक्ति बहुत अधिक होती है।
• बिहार मे बालू मिश्रित जलोढ मिट्टी को दियारा की मिट्टी कहते हैं।
• मक्का-उत्पादन के लिए यह सर्वोत्तम मिट्टी है
• जलोढ़ मिट्टी की परतें पानी द्वारा बहकर जमा होती हैं,
• अत: स्वाभाविक रूप से इसमें विभिन्न आकार के कण होते हैं। नदियों के तट पर बड़े टुकड़े और दूर जाने पर क्रमशः छोटे टुकड़े जमा होते हैं।
• पर्वतीय ढालों पर कणों के आकार के आधार पर इन्हें द्वार (duars), चो (chos) और तराई (terai) कहा जाता है।
• इसमें नाइट्रोजन और जीवाश्म कम मात्रा में विद्यमान हैं। कही-कहीं फॅास्फोरस की कमी रहती है। इसलिए, इसमें नाइट्रोजनयुक्त उर्वरक का प्रयोग अत्यावश्यक है।
• फॅास्फोरस की कमी की पूर्ति के लिए सुपरफॅास्फेट तथा नाइट्रोजन के लिए यूरिया, अमोनियम सल्फेट, अमोनियम फॅास्फेट अधिक मात्रा में प्रयोग करना पड़ता है।
• कम वर्षा होने पर मिट्टी की क्षारीयता बढ़ जाती है,
• अत: जिप्सम और सिंचाई द्वारा इसको कम किया जा सकता है।
• इस मिट्टी में सभी प्रकार के खाद्यान्न, तेलहन, कपास, गन्ना और सब्जियों उगाई जा सकती हैं। पूर्वी भारत में जूट का भी उत्पादन होता है।
2. काली मिट्टी - कुछ स्तनों पर इसे रेगड़ भी कहते हैं।
• इसका निर्माण दक्षिणी क्षेत्र के लावावाले (बेसाल्ट क्षेत्र) भागों में हुआ है जहाँ अर्द्धशुष्क भागों में इसका रंग काला पाया जाता है।
• कपास और गन्ने के उत्पादन के लिए यह मिट्टी सर्वोत्तम है।
• भारत में काली मिट्टीवाली भूमि का क्षेत्रफल लगभग 6.4 करोड़ हेक्टेयर है
• महाराष्ट्र का बड़ा भाग, गुजरात का सौराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में कृष्णा और गोदावरी घाटी, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश, राजस्थान के मालवा खंड में काली मिट्टी के क्षेत्र पाए जाते हैं।
• लोहा, ऐलुमिनियमयुक्त पदार्थ टाइटैनोमैग्नेटाइट के साथ जीवाश्म तथा ऐलुमिनियम के सिलिकेट मिलने के कारण इसका रंग काला होता है।
• इसमें पोटाश, चूना, ऐलुमिनियम, कैल्सियम और मैग्नीशियम के कार्बोनेट तो प्रचुर मात्रा में होते हैं, परंतु नाइट्रोजन, फॅास्फोरस और जैविक पदार्थों की कमी होती है।
• भीगने पर यह मिट्टी चिपचिपी हो जाती है, परंतु सुखने पर इसमें गहरी दरारें पड़ती है। इससे हवा का नाइट्रोजन इसे प्राप्त होता है।
• अत्यंत धूप होने पर भी इसके भीतर नमी विद्यमान रह सकती है।
• यह मिट्टी बहुत उर्वर होती है। इसमें सभी प्रकार के खाद्यान्न कपास, तेलहन, सूर्यमुखी, गन्ना एवं विभिन्न प्रकार की सब्जियाँ, खट्टे फल, तंबाकू का उत्पादन अच्छी तरह होता है
• अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में खेती के लिए यह अच्छी मिट्टी है सावधानी यही रखनी चाहिए कि वर्षा की पहली फुहार के बाद ही इसे जोत दिया जाए, अन्यथा पानी अधिक होने पर इसकी जुताई कठिन हो जाती है। इसी प्रकार, बहुत सूख जाने पर भी इसकी जुताई कठिन है।
3. लाल मिट्टी -इसका निर्माण लोहे और मैग्नीशियम के खनिजों से युक्त रवेदार और रूपांतरित आग्नेय चट्टानों के द्वारा होता है।
• इसका रंग लोहे की उपस्थिति के कारण लाल होता है, अधिन नम होने पर इसका रंग पीला भी हो जाता है।
• इसका pH मान 6.6 और 8.0 के बीच रहता है।
• भारत में लाल-पीला मिट्टी का क्षेत्रफल सर्वाधिक लगभग 7.2 हेक्टेयर है।
• इसकी बनावट हल्की, रंध्रमय और मुलायम है।
• यह मिट्टी दक्कन पठार, पूर्वी और दक्षिणी भागों के 100 सेंटीमीटर से कम वर्षा के क्षेत्रों में पाई जाती है।
• इसका विस्तार पूर्व में राजमहल का पहाड़ी क्षेत्र, उत्तर में झाँसी, पश्चिम में कच्छ तथा पश्चिमी घाट की पर्वतीय ढालों तक है।
• इसमें खनिजों की मात्रा कम है, कार्बोनेटों का अभाव है, साथ ही नाइट्रोजन और फॅास्फोरस भी नहीं होता ।
• जीवाश्म तथा चूना भी कम मात्रा में उपलब्ध है।
• तमिलनाडु के प्रायः दो-तिहाई भाग में लाल मिट्टी पाई जाती है। नम होने पर इसका रंग पीला दिखाई पड़ता है।
• इस मिट्टी में हवा मिली होती है। अत: बुआई के बाद सिंचाई करना आवश्यक है जिससे बीज अंकुरित हो सकें।
• वैसे तो इस मिट्टी में सभी फसलें उगाई जा सकती हैं,
• धान, रागी, तंबाकू, आलू, मूँगफली और सब्जियों का उत्पादन अधिक होता है।
• निचले भागों में गन्ने की खेती भी की जा सकती है।
जलोढ़ मिट्टी मिट्टी

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Sanju on 07-04-2019

Jalod Matti ki vishastya

Aman on 18-01-2019

Jalod mitti me konsi fasl hoti h

Kailash kirade on 08-01-2019

Dhasar mitti kise kahte hen



जलोढ़ मिट्टी का निर्माण कैसे होता है?

जलोढ़क, अथवा अलूवियम उस मृदा को कहा जाता है, जो बहते हुए जल द्वारा बहाकर लाया तथा कहीं अन्यत्र जमा किया गया हो। यह भुरभुरा अथवा ढीला होता है अर्थात् इसके कण आपस में सख्ती से बंधकर कोई 'ठोस' शैल नहीं बनाते।

जलोढ़ मिट्टी क्या है यह किसकी बनी होती है?

जलोढ़ मृदा उस मृदा को कहा जाता है जो भेजे हुए जल द्वारा बहाकर लाया तथा कहीं अन्यत्र जमा किया गया हो । जलोढ़क से भरी मिट्टी को जलोढ़ मिट्टी का जाता है । जलोढ़ मिट्टी का विभिन्न प्रकार के पदार्थों से मिलकर बनी होती है । जलोढ़ मिट्टी वह मिट्टी होती है जो बाढ़ या अधिक बारिश के कारण नदियों द्वारा बहा कर लाई जाती है ।

जलोढ़ मिट्टी क्या है और इसके प्रकार?

पुराने जलोढ़ को खादर कहते हैं जबक नदियों के आस पास के क्षेत्र में प्रति वर्ष बहा कर लाइ जाने वाली अधिक उपजाऊ मृदा को बांगर कहते हैं |

जलोढ़ मृदा की 3 मुख्य विशेषताएं क्या है?

Solution : पूर्वी तट के नदी डेल्टाओं में जलोढ़ मृदा पाई जाती है। विशेषताएँ(क) यह बहुत उपजाऊ होती है। (ख) यह बहाकर लाई गई मृदा होती है। (ग) इस मृदा में पोटाश, फॉस्फोरस तथा चूने का सही अनुपात होता है।