जो बहुत मेहनत करे उसे क्या कहते हैं? - jo bahut mehanat kare use kya kahate hain?

जो मेहनत करता है उसे क्या कहते है? ...


जो बहुत मेहनत करे उसे क्या कहते हैं? - jo bahut mehanat kare use kya kahate hain?

जो बहुत मेहनत करे उसे क्या कहते हैं? - jo bahut mehanat kare use kya kahate hain?

3 जवाब

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अनेक शब्दों के लिए एक शब्द, Anek shabdo ke liye ek shabd

बहुत मेहनत करने वाला  (bahut mehanat karane vaala)= परिश्रमी

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जो बहुत मेहनत करे उसे क्या कहते हैं? - jo bahut mehanat kare use kya kahate hain?

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“दो अक्षरों का होता है “लक”,

ढाई अक्षरों का होता है “भाग्य”,

तीन अक्षरों का होता है “नसीब”,

साडे तीन अक्षरों की होती है “किस्मत”,

पर ये चारों के चार अक्षर,

चार अक्षरों की “मेहनत” से छोटे ही होते है

“कठोर परिश्रम से मनुष्य सब कुछ प्राप्त कर सकता है”

मैं जानता हूँ कि आप ये हज़ारों बार सुन चुके हैं, लेकिन ये सच है कि “परिश्रम ही सफलता की कुंजी है” और “अगर आप सफल होना चाहते है तो खूब अभ्यास कीजिये और उसके लिए खूब मेहनत कीजियेक्योंकि मैं अपने ४१ वर्षों के जीवन में ऐसे किसी व्यक्ति को नहीं जानता जो बिना कड़ी मेहनत के शीर्ष तक पंहुचा हो इसीलिए मेरा मानना है कि ये ही एकमात्र उपाय है जो हमेशा आपको आगे ले जाने में मदद करेगा। ये आपको हर बार सबसे ऊपर तक भले ही ना ले जा सके लेकिन विश्वास कीजिये ये आपको उसके काफी करीब जरूर पहुंचा देगा।

“हर कोई वहां बैठ कर शो देखता है और आइडल बनने की उम्मीद करता है, लेकिन हम उन्हें ये सिखाने जा रहे हैं कि इसमें कितनी मेहनत लगती है”

आज हम जानेंगे कि कड़ी मेहनत क्या होती है और ये जिंदगी में सफलता प्राप्त करने के लिए कितनी जरूरी है।

कड़ी मेहनत से यहाँ मेरा मतलब 24 घंटे काम करना या ज्यादा से ज्यादा पसीना बहाने से नहीं है, कड़ी मेहनत से मेरा तात्पर्य है कि कार्य को तब तक उस तरीके से किया जाए या उस दिशा में किया जाए कि परिणाम को हम अंपनी मर्जी मुताबिक़ और जल्द से जल्द प्राप्त कर सकें।

प्रत्येक व्यक्ति में कुछ विशेष गुण एवं कुछ विशेष प्रतिभाएं होती हैं और व्यक्ति को सफलता प्राप्त करने के लिए सबसे पहले अपने उन गुणों की पहचान करनी चाहिए फिर ज्यादा से ज्यादा अभ्यास द्वारा उनको और निखारना चाहिए और उसके बाद एक योजनाबद्ध तरीके से सब बातों को भुलाकर अपने पूरे आत्मविश्वास, काबलियत और ज्ञान द्वारा उस कार्य को तब तक करते रहना चाहिए जब तक कि उस में सफलता ना मिल जाए।

दुनिया में करोड़ो लोग मेहनतकरते हैं फिर भी सबको भिन्न भिन्न परिणाम प्राप्त होते है, इन सबके लिए मेहनत करने का तरीका जिम्मेदार है इसलिए “व्यक्ति को मेहनत करने के तरीकेमें सुधार करना चाहिए

जोन नाम का एक लकड़हारा पांच साल से एक कंपनी के लिए काम कर रहा था| इन सालो में उसकी तनखाह एक बार भी नहीं बड़ी थी| उधर एक नया लकड़हारा बिल जिस आये हुए अभी एक साल भी पूरा नहीं हुआ था, उसकी तरक्की हो गयी थी| यह बात सुन कर जोन को बहुत बुरा लगा और बात करने के लिए वह अपने मालिक के पास जा पहुंचा| मालिक ने जवाब दिया, “तुम आज भी उतने ही पेड़ काट रहे हो जितने तुम आज से पांच साल पहले काटा करते थे| हम अपनी कंपनी में अच्छे से अच्छा काम चाहते है| अगर तुमहारी उत्पादन क्षमता भी बड जाए तो हमें तुम्हारी तनखाह बढाने में भी खुशी होगी|”

जोन वापस चला गया और पेडों की कटाई करने में खूब मेहनत से देर तक जुटा रहता| इसके बावजूद वह ज्यादा पेड़ नहीं काट पा रहा था| निराश होकर वह एक दिन फिर अपने मालिक के पास गया और उसे अपनी परेशानी बतायी| मालिक ने जोन को बिल के पास जाने की सलाह दी और कहा “हो सकता है, उसे कुछ ऐसा पता हो जो तुम्हे ना मालुम हो|”

जोन ने बिल से मिलना का फैसला लिया और वह जाकर बिल से मिला और उससे पूछा की आखिर वो उससे ज्यादा पेड़ कैसे काट लेता है? बिल ने जोन को बताया की “हर पेड़ को काटने के बाद मैं २ – ३ मिनट रुक कर अपनी कुल्हाड़ी की धार तेज कर लेता हूँ| तुम बताओ की तुमने अपनी कुल्हाड़ी की धार आख़िरी बार कब तेज की थी?” बिल के इस जवाब से जोन की आँखे खुल गयी और उसे असफलता का राज मिल गया|

“पेड़ काटने के पूर्व कुल्हाड़ी की धार देखने की आवश्यकता होती है इसलिए जब आठ घंटेमें पेड़ काटना हो तो छः घंटे कुल्हाड़ी की धार तेज करने में लगाने परसफलता प्राप्त होने के अवसर बढ़ जाते हैं” – रतन टाटा

“बिना काबिलियत और ज्ञान के, की गयी सारी मेहनत बेकार है”

प्रतीक और आकाश ने पढ़ाई के बाद एक साथ एक कंपनी में कार्यभार सम्भाला। दोनों ने बहुत मेहनत की और अपना काम संभाला।

कुछ साल बाद प्रतीक की पदोन्नति बिक्री कार्यपालक (Sales Executive) के पद पर हो गयी। पर आकाश अभी भी अपनी पुरानी बिक्री प्रतिनिधि (Sales Representative) के पद पर कार्यरत था। एक दिन आकाश से सहा नहीं गया। वो अपना इस्तीफा लेकर अपने मालिक के पास गया और शिकायत की कि मालिक अपने मेहनती स्टाफ की क़द्र नहीं करते और केवल उन लोगों की बढ़ोतरी करते है जो उनके नजदीकी है।

मालिक जानते थे की आकाश ने पिछले सालो में बहुत मेहनत की है पर वो उसे दर्शाना चाहते थे कि उसमे और प्रतीक के कामों में क्या फर्क है तो उन्होंने आकाश को पास के बाजार में जाकर पता करने को कहा अगर कोई तरबूज बेच रहा हो। आकाश गया, और पता लगाकर आया की ‘हाँ’ बेच रहा है। फिर मालिक ने पूछा, ”कितने रुपये kg?” आकाश फिर से पता करने गया और आकर कहा की 20 रुपये kg.

अब मालिक ने यही काम आकश के सामने, प्रतीक को करने को कहा। प्रतीक पास के बाजार गया और थोड़ी देर बाद आकर उसने मालिक को कहा, “हाँ मालिक एक व्यक्ति तरबूज बेच रहा है, उसके भाव 20 रुपये kg बता रहा है और 10 kg के 175 रुपये, वह पास ही का रहने वाला है और कल ही उसके गाँव से ताजे लाया है, तरबूज लाल भी है, और स्वाद में भी अच्छे है. आपके लिए भी नमूना लाया हूँ।” ये कहकर प्रतीक मालिक को और आकाश को तरबूज के टुकड़े देने लगा।

आकाश इसे देखकर बहुत प्रभावित हुआ. उसने निश्चय किया की वो नौकरी नहीं छोड़ेगा और प्रतीक से सीखेगा।

कहानी का आशय यह है की“अगरआपको कामयाब होना है तो आपको दूरदर्शी होना होगाइस कहानी में निसंदेह प्रतीक की दृष्टि (vision) बहुत ही ज्यादा गहरी थी उसने केवल दिए गए काम पर ही अपना ध्यान केंद्रित नहीं किया बल्कि उससे सम्बंधित सारी जानकारी हासिल कर ली और एक कामयाब आदमी होने के लिए आपको एक बहुत अच्छा समीक्षक होना भी जरूरी है। आपको आस पास की चीजो से सीखना भी चाहिए, सीखने के लिए ये पूरी दुनिया ही एक स्कूल है, यकीनन हमें सबसे सीखना चाहिए कि आखिर वो किस ढ़ंग से काम कर रहे है और हम कैसे बेहतर काम कर सकते है और सीखते सीखते ही अपने नज़रिये को भी बेहतर बनाकर हम और आगे निकल सकते है।

“एक सपना जादू से हकीकत नहीं बन सकता, इसमें पसीना, दृढ संकल्प और कड़ी मेहनत लगती है”

“सम्पूर्ण जीवन संघर्ष की मांग करता है, जिन्हें सबकुछ बैठे-बैठे मिल जाता है वो आलसी, स्वार्थी और जीवन के वास्तविक मूल्यों के प्रति असंवेदनशील हो जाते हैं, अथक प्रयास और कठिन परिश्रम जिससे हम बचने की कोशिश करते हैं दरअसल वही हम आज जो व्यक्ति हैं उसका प्रमुख निर्माण खंड है

“मनुष्य शरीर का सबसे बड़ा शत्रु आलस्य ही है।“

एक बार दो राज्यों के बीच युद्ध की तैयारियां चल रही थीं। दोनों के शासक एक प्रसिद्ध संत के भक्त थे। वे अपनी अपनी विजय का आशीर्वाद लेने के लिए अलग अलग समय पर उनके पास पहुंचे। पहले शासक को आशीर्वाद देते हुए संत बोले “तुम्हारी जीत निश्चिन्त है।”
दूसरे शासक को उन्होंने कहा, ‘तुम्हारी विजय संदिग्ध है।’ दूसरा शासक संत की यह बात सुनकर चला आया किंतु उसने हार नहीं मानी और अपने सेनापति से कहा, ‘हमें मेहनत और पुरुषार्थ पर विश्वास करना चाहिए। इसलिए हमें जोर शोर से तैयारी करनी होगी। दिन-रात एक कर युद्ध की बारीकियां सीखनी होंगी। अपनी जान तक को झोंकने के लिए तैयार रहना होगा।’

इधर पहले शासक की प्रसन्नता का ठिकाना न था। उसने अपनी विजय निश्चित जान अपना सारा ध्यान आमोद-प्रमोद व नृत्य-संगीत में लगा दिया। सैनिक भी रंगरेलियां मनाने में लग गए। निश्चित दिन युद्ध आरंभ हो गया। जिस शासक को विजय का आशीर्वाद था, उसे कोई चिंता ही न थी। उसके सैनिकों ने भी युद्ध का अभ्यास नहीं किया था। दूसरी ओर जिस शासक की विजय संदिग्ध बताई गई थी, उसने व उसके सैनिकों ने दिन-रात एक कर युद्ध की अनेक बारीकियां जान ली थीं। उन्होंने युद्ध में इन्हीं बारीकियों का प्रयोग किया और कुछ ही देर बाद पहले शासक की सेना को परास्त कर दिया।

अपनी हार पर पहला शासक बौखला गया और संत के पास जाकर बोला, ‘महाराज, आपकी वाणी में कोई दम नहीं है। आप गलत भविष्यवाणी करते हैं।’ उसकी बात सुनकर संत मुस्कराते हुए बोले, ‘पुत्र, इतना बौखलाने की आवश्यकता नहीं है। तुम्हारी विजय निश्चित थी किंतु उसके लिए मेहनत और पुरुषार्थ भी तो जरूरी था। भाग्य भी हमेशा कर्मरत और पुरुषार्थी मनुष्यों का साथ देता है और उसने दिया भी है तभी तो वह शासक जीत गया जिसकी पराजय निश्चित थी।’ संत की बात सुनकर पराजित शासक लज्जित हो गया और संत से क्षमा मांगकर वापस चला आया।

“कर्म भूमि पर फल के लिए श्रम डबको करना पड़ता है,

रब सिर्फ लकीरें देता है रंग हमको भरना पड़ता है”

और इस भाग के अंत में मैं इतना ही कहना चाहता हूँ कि:

“हारता जो नहीं मुश्किलो से कभी,

जिसका मक़सद है मंजिल को पाना,

धूप में देखकर थोड़ी सी छाया,

जिसने सीखा नहीं बैठ जाना,

आग जिसमे “लगन” की जलती है,

“कामयाबी” उसी को मिलती है”