इंसान इंसान से नफरत क्यों करता है? - insaan insaan se napharat kyon karata hai?

आज दुनिया में इतनी नफरत क्यों है? जवाब जानने के लिए आइए पहले देखें कि नफरत क्या होती है? लोग क्यों एक-दूसरे से नफरत करते हैं? और यह कैसे फैलती है?

नफरत क्या होती है?

जब कोई किसी को बिलकुल पसंद नहीं करता तो वह उससे नफरत करने लगता है और कई बार यह नफरत दुश्‍मनी में बदल जाती है। नफरत एक इंसान के मन से इतनी जल्दी नहीं निकलती।

लोग क्यों नफरत करने लगते हैं?

लोग कई कारणों से दूसरी जाति, भाषा या संस्कृति के लोगों से नफरत करते हैं। ज़रूरी नहीं कि उन्होंने कुछ बुरा किया हो। कई बार वे बस इसलिए नफरत करते हैं कि वे लोग दूसरी जाति या भाषा के हैं। उन्हें लगता है कि ये जो दूसरी जाति के लोग हैं, वे बुरे हैं, उनसे नुकसान हो सकता है और वे जैसे हैं वैसे ही रहेंगे, कभी नहीं सुधरेंगे। वे उन्हें नीचा देखते हैं और सोचते हैं कि वे ही सारी समस्याओं की जड़ हैं। या फिर हो सकता है, दूसरी जाति या भाषा के लोगों ने उनके साथ अन्याय किया हो या उन्हें मारा-पीटा हो, इसीलिए वे उनसे नफरत करने लगे हैं।

नफरत कैसे फैलती है?

यह भी हो सकता है कि एक इंसान किसी दूसरी जाति या भाषा के लोगों से कभी न मिला हो, फिर भी उनसे नफरत करता हो। शायद उसके दोस्त या परिवारवाले दूसरों से नफरत करते हों, इसलिए वह भी नफरत करने लगा हो। इस तरह धीरे-धीरे पूरे समाज में नफरत फैल जाती है।

यही वजह है कि दुनिया में इतने सारे लोग एक-दूसरे से नफरत करते हैं। पर नफरत का यह सिलसिला या चक्र तोड़ने के लिए हमें इसके असली कारण जानने होंगे। यह हम ईश्‍वर की किताब बाइबल से जान सकते हैं।

 पवित्र शास्त्र से जानें नफरत के असली कारण

इंसान इंसान से नफरत क्यों करता है? - insaan insaan se napharat kyon karata hai?

नफरत की शुरूआत इंसानों से नहीं, शैतान से हुई। हज़ारों साल पहले स्वर्ग में ईश्‍वर का एक दूत उसके खिलाफ हो गया। उसे शैतान कहा जाता है। शास्त्र में लिखा है कि “वह शुरू से ही हत्यारा है” और “झूठा” है। झूठ उसी से शुरू हुआ। (यूहन्‍ना 8:44 *) जब से दुनिया बनी, तब से वह लोगों को एक-दूसरे के खिलाफ भड़काता आया है। (1 यूहन्‍ना 3:11, 12) शैतान में नफरत, गुस्सा और बुराई कूट-कूटकर भरी है।​—अय्यूब 2:7; प्रकाशितवाक्य 12:9, 12, 17.

नफरत करना इंसान के स्वभाव में आ गया। दुनिया के पहले इंसान आदम ने भी शैतान की तरह ईश्‍वर की बात नहीं मानी। सभी इंसान आदम से निकले हैं, इसलिए उनका स्वभाव ही कुछ इस तरह बन गया कि वे सही करने के बजाय हमेशा गलत करने की सोचते हैं। (रोमियों 5:12) आदम का पहला बेटा कैन अपने भाई हाबिल से इतनी नफरत करता था कि उसने उसका खून कर दिया। (1 यूहन्‍ना 3:12) वैसे तो आज भी ऐसे कई लोग हैं जो दूसरों से प्यार करते हैं और उनकी मदद करते हैं। लेकिन ज़्यादातर लोग स्वार्थ, जलन और घमंड की वजह से दूसरों से नफरत करते हैं।​—2 तीमुथियुस 3:1-5.

छोटी सोच से नफरत बढ़ती है। आजकल कोई किसी के बारे में नहीं सोचता, कोई किसी पर दया नहीं करता, किसी को दूसरे की तकलीफ देखकर तकलीफ नहीं होती। शास्त्र में लिखा है कि “सारी दुनिया शैतान के कब्ज़े में पड़ी हुई है।” (1 यूहन्‍ना 5:19) इसलिए हर कहीं लोग भेदभाव करते हैं, छोटी सोच रखते हैं, गाली देते हैं और गुंडागर्दी करते हैं।

प्रेम और नफरत दुनिया की दो ऐसी भावनाएं है जिनकी जकड से इन्सान कभी मुक्त नहीं हो सकता। दोनों मन की ऐसी अवस्था है जिससे इन्सान को जीवन में अनेकों बार गुजरना पड़ता है। यदि हम प्रेम की बात करें इस विषय पर शायद संसार में सबसे ज्यादा लिखा गया और पढ़ा गया किन्तु इसके उलट भावना नफरत पर बहुत कम ध्यान दिया गया। आखिर नफरत क्या है, यह भावना मन में किस स्थिति में उपजती है? यह प्रश्न अवश्य ही जेहन में कई बार उठता और गिरता रहता है। वैसे देखा जाये तो यह मन की भावनाओं के एक पूरे परिवार का हिस्सा है। जहाँ एक तरफ प्रेम में स्नेह, ममता, समर्पण उपासना आदि भावनाएं है तो वही दूसरी ओर गुस्से के साथ ईर्ष्या, भय, खिन्नता आक्रमण और हिंसा के भाव है। एक किस्म से कहें तो यह भावनाओं का युद्ध है जिसके हम स्वयं साक्षी है। दूसरा हम अक्सर उन लोगों से नफरत करते हैं जो हमारे से अलग हैं।

इसमें भय का सिद्धांत भी काम करता हैं हालाँकि गोस्वामी तुलसीदास दास ने लिखा है कि भय बिना होय न प्रीति किन्तु हम जिन लोगों से डरते हैं अक्सर बाद में उन्ही लोगों से नफरत करने लगते है। व्यवहारिक शोधकर्ताओं की माने तो जो लोग दूसरों के प्रति नफरत करते हैं, वे खुद के भीतर डरते हैं यानि कुछ इस सिद्धांत के साथ कि मैं भयानक नहीं हूं पर आप हैं।

चित्र प्रतीकात्मक चित्र प्रतीकात्मक

असल में हम अपने जीवन को एक पद्धति के अनुसार विकसित कर लेते है अपनी सीमाओं में सोचते है, अपनी सीमाओं में देखते और समझते हैं इससे मन और मस्तिक्ष का यह दायरा मजबूत होता चला जाता है। यह एक धारणा बन जाती है। जब हमारे जैसी धारणा के लोग हमें मिलते है तब हम आत्ममुघ्ध होकर एक दूसरे की इस धारणा को बल प्रदान करते है। इस भाव को प्रेम भी कह सकते है और मित्रता और स्नेह भी। पर जब कोई पारिवारिक या बाहरी व्यक्ति हमारी इन धारणा पर चोट करता है तब मन विचलित होने लगता है क्योंकि हमने बड़ी मेहनत से एक धारणा को विकसित किया था और उस धारणा का विखंडन सहन कर नहीं कर पाते।

इसे इस तरह समझ सकते है कि जब हम स्वयं का अस्वीकार्य हिस्सा पाते हैं, तब हम खतरे से बचाव के लिए दूसरों पर हमला करते हैं। जब तक हमारे पास बदले में देने के लिए शब्द है शब्दों से हमला करते है जब शब्द समाप्त होते है तब हमला शारारिक हो जाता है। इतिहास ऐसे अनेकों उदहारण भी समेटे हुए है इसमें स्वामी दयानन्द सरस्वती और सुकरात को जहर दिए जाने की घटना के साथ महात्मा बुद्ध के ऊपर थूका जाना ईसा मसीह को सूली पर लटकाया जाना आदि है। इन सबने लोगों की धारणाओं पर हमला किया था बदले में लोगों ने अपनी धारणा बचाने के लिए इन पर हमला किया था।

नफरत का जो दिखावा असहायता, शक्तिहीनता, अन्याय और शर्म की भावना जैसी भावनाओं से खुद को विचलित करने का प्रयास है। दूसरा नफरत एक ऐसी भावना का हिस्सा है जो हमारे परिवार से लेकर इतिहास और हमारे सांस्कृतिक और राजनीतिक इतिहास का भी हिस्सा है। हम युद्ध संस्कृति में रहते हैं जो हिंसा को बढ़ावा देती है, जिसमें प्रतिस्पर्धा हैं इसे जीवन का एक तरीका भी समझा जाता है, हमें दुश्मन से नफरत करने के लिए सिखाया जाता है। जिसका मतलब है कि हमारे से अलग कोई भी है जो हमारी विचाधारा से अलग है, सीमाओं से अलग वह नफरत का पात्र है।

हम सभी आक्रामकता और करुणा की क्षमता से पैदा हुए हैं। हम कौन-सी प्रवृत्तियों को गले लगाते हैं यह हमारे ऊपर निर्भर करता है। नफरत पर काबू पाने की कुंजी है आत्मावलोकन मसलन जब भी किसी के प्रति नफरत का भाव पैदा हो हमें आत्मावलोकन करना चाहिए कि आखिर मेरे अन्दर इसके प्रति नफरत का भाव क्यों है? क्या किसी प्रकार का भय है या मेरी क्षमता इससे कम है, अपेक्षा का भाव है या कोई अन्य कारण यह चर्चा मन में हो और इसके बाद हो सके उक्त व्यक्ति से जरुर करें। दूसरा है शिक्षा घर में स्कूलों में, और समुदाय नफरत ईर्ष्या या भी हिंसा जैसे विषयों पर विद्यार्थियों सिखाया और पढाया जाना चाहिए।

हमें समझना होगा यह व्यवहारिक अभिव्यक्तियां हैं और जब हम इनके करीब होते हैं हम एक तनाव में भाग जरुर लेते हैं क्योंकि भावनाएं जीवन के हर एक पल को प्रभावित करती हैं। इससे ही व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र बनते बिगड़ते है आये है तो बेहतर होगा हमें गणित विज्ञान जैसे बिषयों के साथ भावनाओं को समझने ऐसे विषयों को समझना और समझाना पड़ेगा कि आखिर नफरत क्यों होती है और कैसे इसका अंत किया जा सकता है।..लेख राजीव चौधरी 

हमसे लोग नफरत क्यों करते हैं?

इस संदर्भ में मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि जब हम किसी व्यक्ति को नापसंद करते हैं या हमारे मन में किसी बात को लेकर असंतुष्टि होती है तो हमारे भीतर अपने आप नफरत की भावना पनपने लगती है। हर इंसान के मन में कहीं न कहीं यह भावना जरूर छिपी होती है।

जब कोई आपसे नफरत करता है तो हमें क्या करना चाहिए?

पहले सोचना चाहिए कि आपको नफरत से कितना फर्क पढ़ता है, अगर नहीं पढ़ता तो कुछ दिन शांत और दूर रहें गुस्सा शांत होने पर वो खुद आपसे मिलेंगे. अगर फर्क पढ़ता है तो ये जानने की कोशिश करें कि किसने आपके बारे में गलत बोला हो सकता है फिर नफरत वाले जनाब के पास जाएं और पूछे कि क्या उन्होंने कुछ कहा है?

लोग एक दूसरे से नफरत क्यों करते हैं?

1. लोग आप से नफरत करने लगते हैं जब सामने वाले व्यक्ति को आप उसकी कमियां दिखा देते हैं। 2. लोग आप से नफरत करते हैं जब आप किसी इंसान को गाली देते हो तो यह आमने सामने वाले सब व्यक्ति पर बुरा प्रभाव डालता है।

किसी से नफरत करने से क्या होता है?

किसी से नफरत करके भला क्या फायदा हो सकता है। नफ़रत से केवल रिश्ते टूटते हैं, दूरियां बढ़ जाती है, जो शायद कभी न मिट सके। जो किसी से प्रेम करके नुकसान होने के बाद बचता है। क्योंकि प्रेम के बाद ही नफ़रत होती है।