Publish Date: | Sun, 26 May 2019 05:13 AM (IST) Show बिलासपुर। नईदुनिया प्रतिनिधि ईश्वर प्राप्ति के केवल तीन मार्ग कर्म, ज्ञान और भक्ति या उपासना ही हैं। आज जब भौतिकवाद में अनेक उन्नतियां हो रही हैं तो ऐसे में ईश्वर प्राप्ति में अनादिकाल से अब तक ये तीन ही मार्ग बताए गए हैं। चौथे मार्ग की खोज आज तक किसी आध्यात्मिक या वैज्ञानिक ने नहीं की है। ये बातें महारानी लक्ष्मी बाई स्कूल मैदान में चल रहे 15 दिवसीय दिव्य दार्शनिक प्रवचन के 10वें दिन वृंदावन से पधारी कृपालु महाराज की प्रमुख प्रचारिका श्रीश्वरी देवी ने भक्ति मार्ग का विस्तार करते हुए शनिवार को कही। उन्होंने आगे कहा कि शायद आज यह नहीं जानते हैं कि प्रकृति के विपरीत विज्ञान नहीं हुआ करता है। आंखों से अनादिकाल से देखने का काम लिया जाता है। यह कार्य विज्ञान द्वारा कान नहीं कर सकता है। उसी प्रकार इन तीनों का स्वाभाविक विज्ञान है। इसे समझ लेने पर भ्रम समाप्त हो जाता है। वेदों, शास्त्रों, पुराणों समेत सभी ग्रंथों में ईश्वर प्राप्ति के तीन ही मार्गों का प्रतिपादन किया गया है। इसमें प्रथम कर्म, द्वितीय ज्ञान और तृतीय भक्ति व उपासना है। इसके अलावा चौथा कोई मार्ग नहीं है। कहीं पढ़न व सुनने को भी ये तीन ही मार्ग मिलते हैं। इसका विज्ञान यह है कि ब्रह्मा की तीन स्वरूप शक्तियां सतब्रह्म, चितब्रह्म और आनंदब्रह्म हैं। इनमें सतब्रह्म का स्वभाव कर्म, चिब्रह्म का स्वभाव ज्ञान वाला और आनंदब्रह्म का स्वभाव प्रेम है। चौथा स्वभाव ईश्वर का नहीं है। उसी का अनादि सनातन अंश होने के कारण प्रत्येक जीव का भी तीन ही प्रकार का स्वभाव हो सकता है। सभी को चाहिए कि एक-एक मार्ग पर विचार करें। Posted By: Nai Dunia News Network
ईश्वर प्राप्ति का प्रमुख आधार क्या है * 1 Point भक्ति ज्ञान धर्म धन?सही मायने में ईश्वर प्राप्ति का मार्ग वहीं से शुरू होता है जहां आप खड़े हो।''
कबीर के अनुसार ईश्वर प्राप्ति का आधार क्या है?कबीर ने ईश्वर-प्राप्ति के प्रचलित विश्वासों का खंडन किया है। उनके अनुसार ईश्वर न मंदिर में है, न मस्जिद में; न काबा में हैं, न कैलाश आदि तीर्थ यात्रा में; वह न कर्म करने में मिलता है, न योग साधना से, न वैरागी बनने से।
ईश्वर की प्राप्ति कैसे हो सकती है?ताकि एकाग्र मन को मंदिर बनाकर ईश्वर के दर्शन किए जाएं. वीडियो में समझिए ईश्वर प्राप्ति के लिए ध्यान का विज्ञान.
ईश्वर प्राप्ति का मार्ग क्या है?जिन्हें भक्ति करनी हो उनका लक्ष्य ईश्वर प्राप्ति हो, लेकिन संसार भी नहीं छोड़ना है। संसार में जो भी जरूरी है वह किया जाना चाहिए। संसार में रहकर अपना लक्ष्य ईश्वर याद रहे, यह काम सत्संग करता है। फिर जब ईश्वर को पाने निकले हैं, संसार का भी उपयोग कर रहे हैं, तो सेवा करनी चाहिए।
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