हाथ फैलाने वाले व्यक्ति को कवि ने ईमानदार क्यों कहा है? स्पष्ट कीजिए। Show हाथ फैलाने वाला व्यक्ति स्वयं को भ्रष्टाचार में लिप्त नहीं करता। इस कारण उसकी ऐसी दशा हो जाती है कि उसे दूसरों के आगे हाथ फैलाने पड़ते हैं। उसका परिवार दर-दर की ठोकरें खाने को विवश हो जाता है। यदि वह अन्य लोगों की भांति भ्रष्टाचार में लिप्त हो जाता, तो उसकी चाँदी हो जाती। उसके पास दुनिया की हर सुख-सुविधा विद्यमान होती। परन्तु वह स्वयं को इन सबसे दूर रखता है। वह गरीबी का जीवन तथा दूसरे के आगे हाथ फैलाना उचित समझता है लेकिन बेईमानी की एक दिन की रोटी कमाना उचित नहीं समझता। इसलिए कवि ने उसे ईमानदार कहा है। उसकी दशा उसकी ईमानदारी का प्रमाण है। 2 हाथ फैलाने वाले व्यक्ति को कवि ने ईमानदार क्यों कहा है स्पष्ट कीजिए?उसके पास दुनिया की हर सुख-सुविधा विद्यमान होती। परन्तु वह स्वयं को इन सबसे दूर रखता है। वह गरीबी का जीवन तथा दूसरे के आगे हाथ फैलाना उचित समझता है लेकिन बेईमानी की एक दिन की रोटी कमाना उचित नहीं समझता। इसलिए कवि ने उसे ईमानदार कहा है।
मैं तुम्हारा विरोधी प्रतिद्वंद्वी या हिस्सेदार नहीं से कवि का क्या अभिप्राय है?'मैं तुम्हारा विरोधी प्रतिद्वंद्वी या हिस्सेदार नहीं' से कवि का क्या अभिप्राय है? उत्तर: प्रस्तुत पंक्तियों में कवि उनको संबोधित करता है, जो भ्रष्टाचार तथा अनैतिकता में लिप्त हैं। कवि कहता है कि तुम्हें मुझसे डरने या प्रतिस्पर्धा करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि में तुम्हारा प्रतिद्वंद्वी नहीं हूँ।
सत्य का दिखना और ग़ायब हो जाना से कवि का क्या आशय है?सत्य स्वयं में एक प्रबल शक्ति है। उसे दिखने से कोई नहीं रोक सकते हैं परन्तु यदि परिस्थितियाँ इसके विरोध में आ जाएँ, तो वह शीघ्रता से ओझल हो जाता है। सत्य को हर समय अपने सम्मुख रखना संभव नहीं है क्योंकि यह कोई वस्तु नहीं है। यही कारण है कि यह स्थिर नहीं रह पाता और यही सबसे बड़े दुख की बात भी है।
|