हाई बिलीरुबिन को कैसे कम करें? - haee bileerubin ko kaise kam karen?

इसलिए होता पीलिया -
रक्त में बिलुरुबिन की अधिकता पीलिया का कारण है। सामान्य प्रक्रिया है लाल रक्त कोशिकाएं मृत होना, लिवर का इन्हें छानना व इनकी जगह नई कोशिकाएं बनना। लेकिन जब यह प्रक्रिया नहीं हो पाती तो रक्त में बिलुरुबिन की मात्रा धीरे-धीरे बढ़कर आसपास के ऊतकों में जाकर बीमारी की वजह बनती है।

रोग के प्रमुख कारण -
हेपेटाइटिस -
ज्यादातर एक तरह के रोगाणु की वजह से ही यह संक्रमण होता है। लंबे समय तक इस बीमारी के रहने से लिवर पर असर पड़ने लगता है और पीलिया की समस्या सामने आने लगती है।

शराब -
लंबे समय से शराब पीने से लिवर पर बुरा असर होता है और लिवर संबंधी रोग जैसे अल्कोहॉलिक हेपेटाइटिस व अल्कोहॉलिक सिरोसिस होते हैं। इससे पीलिया की आशंका बढ़ने लगती है।

बंद पित्तवाहिका-
लिवर व गॉलब्लैडर से छोटी आंत तक पित्त को ले जाने का काम पित्तवाहिका करती हैं। कई बार गालस्टोन में पथरी, पित्त वाहिका में सूजन से यह बंद हो जाती है। इससे बिलुरुबिन बढ़ जाता है।

कोलेस्टोसिस-
लिवर का काम पाचन के लिए बाइल बनाना है। लेकिन ब्लॉकेज, स्टोन या ट्यूमर से जब बाइल के प्रवाह में बाधा आए तो बाइल नहीं बन पाता और बिलुरुबिन बढ़ता है। यह स्थिति कोलेस्टोसिस है।

गर्मी जैसे-जैसे बढ़ती जाती है,हम ज्यादा खाने-पीने लगते हैं। अधिक कैलोरी वाले खाद्य पदार्थ, वसायुक्त खाद्य पदार्थ, अतिरिक्त शराब और चीनी के सेवन से हमारा आहार स्वास्थ्यवर्धक नहीं रह जाता और इन्हें पचाने के लिए हमारे लिवर को बहुत अधिक काम करना पड़ता है।

आपका लिवर
लिवर हमारे शरीर का सबसे प्रमुख अंदरूनी अंग है, जो कम-से-कम 500 शारीरिक कार्यो में मदद करता है। हम जिन चीजों को खाते हैं, सांस लेते हैं, त्वचा के माध्यम से अवशोषित करते हैं, यह उन सभी चीजों को संसाधित करता है। यह शुगर, वसा और कोलेस्ट्रॉल के उत्पादन, भंडारण और उत्सर्जन को नियमित व नियंत्रित करके पाचन और चयापचय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। लिवर एंजाइम, हार्मोन, रक्त प्रोटीन, क्लॉटिंग पैदा करने वाले कारक और प्रतिरक्षा कारकों सहित विभिन्न प्रकार के महत्वपूर्ण प्रोटीन पैदा करता है। यह डिटॉक्सीफिकेशन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

लिवर की क्षति
लिवर द्वारा इतने सारे महत्वपूर्ण कार्य करने के कारण इसके क्षतिग्रस्त होने की अधिक आशंका होती है। इसकी क्षति शरीर की लगभग सभी प्रणालियों को प्रभावित कर सकती है। लिवर की जैसे-जैसे क्षति होती है, सामान्य ऊतक फाइबर्स (फाइब्रोसिस), फैटी (स्टिटोसिस) और स्केयर्ड (सिरोसिस) बन सकते हैं। लिवर की बीमारी के लक्षणों में थकान, भूख न लगना, मतली, उल्टी, पेट में दर्द और पीलिया (त्वचा और आंखों के सफेद भाग का पीला पड़ना) आदि शामिल हो सकते हैं। जब लिवर बहुत ज्यादा क्षतिग्रस्त हो जाता है, तब यह अपने सामान्य कार्यो को ठीक ढंग से पूरा नहीं कर पाता। यह स्थिति डिकम्पेनसेटेड सिरोसिस कहलाती है। इससे मस्तिक का कार्य भी बाधित हो सकता है और मरीज कोमा में भी जा सकता है।

लिवर की जांच
लिवर की क्षति का पता लिवर एंजाइम के उच्च स्तर से चल सकता है। अन्य प्रकार की लिवर जांच में बिलीरुबिन (सामान्य स्तर 0-1.3 मिलीग्राम), एल्बुमिन (सामान्य स्तर 3.2 - 5 ग्राम) और प्रोथ्रोम्बिन टाइम (रक्त के थक्के का पता लगाने का एक तरीका) शामिल हैं। लिवर में हुई क्षति की सीमा निर्धारित करने का सबसे बेहतर उपाय लिवर बायोप्सी है। यदि आपके हेपेटाइटिस बी या सी या एचआईवी का इलाज किया जा रहा है तो ब्लड काउंट की भी नियमित रूप से जांच की जानी चाहिए।

शराब है लिवर की दुश्मन
शराब के अधिक सेवन से आपके लिवर को नुकसान हो सकता है। हालांकि अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि शराब का कम या सामान्य सेवन लिवर के लिए हानिकारक है या नहीं। विशेषज्ञों की सलाह है कि यदि आपको हेपेटाइटिस है और विशेष रूप से सिरोसिस है तो आपको शराब का सेवन नहीं करना चाहिए।

(नोवा स्पेशियलिटी हॉस्पिटल के गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी सर्जन डॉ. आशीष भनोट और फरीदाबाद के एशियन इंस्टीटय़ूट ऑफ मेडिकल साइंसेस के गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट डॉ. राकेश कुमार से बातचीत पर आधारित)

आहार और व्यायाम
पौष्टिक और अच्छी तरह से संतुलित आहार हेपेटाइटिस से पीड़ित या मुक्त सभी लोगों के लिए महत्वपूर्ण है। हमें ऐसे आहार का सेवन करना चाहिए, जिसमें वसा, कोलेस्ट्रॉल और सोडियम कम हो, जटिल काबरेहाइड्रेट अधिक हो और पर्याप्त मात्र में प्रोटीन हो। पर्याप्त मात्र में तरल पदार्थ पीना भी जरूरी है। हमें प्रति दिन 8 गिलास पानी पीने की सलाह दी जाती है।

नियमित रूप से एरोबिक व्यायाम करने से हमारे पूरे स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है और इससे थकान, तनाव और अवसाद को कम करने में मदद मिल सकती है। लिवर की बीमारी से पीड़ित अधिकतर लोग सुरक्षित रूप से सामान्य व्यायाम कर सकते हैं, लेकिन अधिक शारीरिक परिश्रम वाले व्यायाम से उनके लक्षण और बढ़ सकते हैं। गंभीर सिरोसिस से पीड़ित लोगों को व्यायाम को लेकर सावधानी बरतनी चाहिए। यदि आपको हेपेटाइटिस या एचआईवी रोग है तो किसी भी प्रकार का व्यायाम शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर से संपर्क करें।

लिवर को स्वस्थ रखने के उपाय

भोजन को कम फ्राई करें
अपने भोजन में गर्मी को कम करने के लिए डीप फ्राई या बेक करने से बचें। हवा के तापमान में वृद्धि से निपटने के लिए पसीना निकलना एक स्वस्थ  प्रतिक्रिया है, जिससे हमारा शरीर ठंडा रहता है, लेकिन इससे पोषक तत्वों का नुकसान भी होता है। भोजन को कम समय तक पकाने से लिवर के स्वास्थ्य के लिए आवश्यक पोषक तत्वों को बनाए रखने में मदद मिलती है।

शरीर में पानी का स्तर बनाए रखें
अत्यधिक गर्मी के प्रभाव से बचने के लिए खूब पानी पीने में ही बुद्धिमानी है। यह निर्जलीकरण को रोकने और लिवर को अच्छी तरह से लचीला बनाये रखने में मदद करता है।

भारी खाद्य पदार्थो का सीमित मात्रा में सेवन

मांस, अंडे और वसायुक्त खाद्य पदार्थ पाचन को धीमा करते हैं और गर्मी के संचय में योगदान करते हैं।

ठंडे खाद्य पदार्थो का सेवन करें
गर्मी में संतुलन बनाये रखने के लिए सलाद, स्प्राउट्स, फल और खीरे जैसे ठंडे गुणों वाले खाद्य पदार्थो का सेवन करने की कोशिश करें।

बर्फ का इस्तेमाल कम करें
बर्फयुक्त पेय पदार्थो को पीने या आइसक्रीम के अधिक सेवन से बचें। ये पेट में संकुचन पैदा कर पाचन में बाधा पैदा करते हैं।

नमक का सेवन कम करें
ओस्मोसिस के कारण नमक अत्यधिक सूखा होता है और हमारे शरीर को स्वस्थ हाइड्रेशन प्राप्त करने से रोकता है। यह शारीरिक तरल पदार्थो को सुखा कर शरीर के आंतरिक तापमान को बढ़ाने का कार्य करता है। किसी भी व्यक्ति के भोजन में नमक की अधिक मात्र होने पर सूजन, सुस्ती और थकान का अनुभव हो सकता है।

समय पर पहचानें लक्षण
’ भूख न लगना ’ वजन कम होना ’ आंखों और नाखुनों में पीलापन ’ बुखार ’ कमजोरी ’ उल्टी ’ पेशाब का रंग गहरा होना आदि।

सचेत हो जाएं
’ यदि बार-बार बुखार या संक्रमण घेर रहे हों ’ किसी बीमारी के दौरान दवाओं का अधिक सेवन किया हो ’ धूम्रपान या एल्कोहल अधिक लेते हो ’ पीलिया हो चुका हो ’ थकान या सुस्ती रहती हो।

रखें लिवर फिट  
’ आहार में रोज करीब 50 से  60 प्रतिशत काबरेहाइड्रेट लें। ’ नियमित रूप से ताजे फल और मौसमी सब्जियां अवश्य लें। ’ खाने में वासा की मात्र केवल 10 से 20 प्रतिशत ही होनी चहिए। ’ जंक फूड, तेज मिर्च-मसालेदार खाने, धूम्रपान और एल्कोहल से दूर रहें।
’ नियमित 30 मिनट व्यायाम करें।
डॉ. एस. के. ठाकुर, कंसलटेंट, (गैस्ट्रोएंटरोलॉजी) मूलचंद मेडसिटी

बिलीरुबिन को जल्दी कैसे कम करें?

इसके लिए छाछ में काला नमक मिलाकर सेवन करें। इससे पाचन तंत्र में सुधार होता है और पीलिया में आराम मिलता है। विशेषज्ञों की मानें तो मूली का रस पीने से रक्त में अतिरिक्त बिलुरुबिन बाहर निकल जाता है। पीलिया के मरीजों को रोजाना कम से कम एक गिलास मूली का रस का सेवन करना चाहिए।

बिलीरुबिन ज्यादा होने से क्या होता है?

पीलिया (Piliya) तब होता है, जब शरीर में बिलीरुबिन नामक पदार्थ बहुत अधिक हो जाता है। बिलीरुबिन की अत्यधिक मात्रा होने से लिवर पर बुरा प्रभाव पड़ता है, और इससे लिवर के काम करने की क्षमता कमजोर पड़ जाती हैं। बिलीरुबिन धीरे-धीरे पूरे शरीर में फैल जाता हैं जिससे व्यक्ति को पीलिया रोग हो जाता है।

वयस्कों में बिलीरुबिन का खतरनाक स्तर क्या है?

अन्य प्रकार की लिवर जांच में बिलीरुबिन (सामान्य स्तर 0-1.3 मिलीग्राम), एल्बुमिन (सामान्य स्तर 3.2 - 5 ग्राम) और प्रोथ्रोम्बिन टाइम (रक्त के थक्के का पता लगाने का एक तरीका) शामिल हैं। लिवर में हुई क्षति की सीमा निर्धारित करने का सबसे बेहतर उपाय लिवर बायोप्सी है।

पीलिया की नार्मल रेंज कितनी होती है?

सामान्यत: रक्तरस में पित्तरंजक का स्तर 1.0 प्रतिशत या इससे कम होता है, किंतु जब इसकी मात्रा 2.5 प्रतिशत से ऊपर हो जाती है तब कामला के लक्षण प्रकट होते हैं।