प्रत्येक जीव को जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। यही ऑक्सीजन कोशिकाओं तक पहुँच कर भोज्य पदार्थों का ऑक्सीकरण कर ऊर्जा पैदा करती है। ऑक्सीजन हम साँस के साथ अन्दर लेते हैं तथा कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालते हें। ऑक्सीजन द्वारा भोज्य पदार्थों के ऑक्सीकरण के फलस्वरूप जल व CO2 का निर्माण होता है तथा ऊर्जा मुक्त होती है यही श्वसन कहलाता है। चलिए जानते हैं Respiratory System in Hindi के बारे में। Show
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श्वसन क्या है?Source – Knowledgekahubश्वसन शब्द अंग्रेजी भाषा ‘Respiration’ का ही हिन्दी रूपान्तर है जो लैटिन भाषा के शब्द ‘respirate’ से बना है। respirate का अर्थ है ‘सांस लेना’। श्वसन (respiration) की क्रिया पौधों तथा जन्तुओं में अलग-अलग प्रकार से होती है। श्वसन के अन्तर्गत क्रमश: निःश्वसन तथा उच्छवसन दो क्रियाएं आती हैं। श्वसन क्रिया में जो अंग भाग लेते हैं उन अंगों को श्वसन अंग तथा इस तन्त्र को श्वसन तन्त्र (respiratory system) कहते हैं। ऊर्जा (ATP) = भोजन + O2 अंत:श्वसन व बहि श्वसन में अंतरमानव श्वसन तंत्र में अंतर नीचे दिया गया है-
जन्तुओं में श्वसनSource – Aliscienceजन्तुओं में श्वसन ऑक्सीजन को लेने एवं इसका प्रयोग करने तथा कार्बन डाइ ऑक्साइड के निष्कासन की प्रक्रिया है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा मनुष्य वातावरण से ऑक्सीजन को लेते हैं तथा कोशिकाओं में कुछ रासायनिक परिवर्तनों के परिणाम स्वरुप उत्पन्न हुई कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालते हैं। एक स्वस्थ वयस्क व्यक्ति प्रति मिनट 250एमएल ऑक्सीजनग्रहण करता है तथा 200एमएल कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ता है। श्वसन तन्त्रइस क्रिया में जो अंग भाग लेते हैं उन अंगों को श्वसन अंग तथा इस तन्त्र को श्वसन तन्त्र कहते हैं। यह क्रिया जीवनपर्यन्त चलती है इसके रुकने के परिणाम स्वरुप मनुष्य की मृत्यु हो जाती है। श्वसन क्रिया वास्तविक रूप से दोहरी क्रिया होती है। यह भी पढ़ें : विज्ञान के चमत्कार पर निबंध श्वसन तन्त्र के अंगSource – vigyanamमानव श्वसन तंत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित अंगों का समावेश होता है 1) नाक/ नासिकानाक पहला एवं सबसे महत्त्वपूर्ण श्वसन अंग है। इसमें एक बड़ी गुहा होती है जिसे नासिका गुहा कहा जाता है जो दो भागों में एक पट द्वारा विभाजित रहती है।
बाहरी कवच यह अस्थियों तथा कार्टिलेज का बना हुआ तिकोना फ्रेम होता है । त्वचा इसको ऊपर से ढंके हुए होती है। नाक के अन्दर की तरफ दो नथुने हौते हैं । आन्तरिक गुहिकाएँ ये दोनों गुहिकाएँ दो भागों में बँटी होती हैं । प्रत्येक गुहिका में छोटे-छोटे बहुत से बाल होते हैं जिन्हें हम कोर्स हेयर कहते हैं। ये बाल श्वास द्वारा हम जो ऑक्सीजन लेते हैं उसको छानकर आगे भेजते हैं जिससे धूल के कण अन्दर नहीं जा पाते हैं। 2) ग्रसनीRespiratory System in Hindi में वायु के लिए नासा गुहाओं के पीछे स्वरयन्त्र (larynx) तक तथा भोजन के लिए मुख से ग्रासनली तक का पेशी कलामय मार्ग ग्रसनी (Pharynx) कहलाता है। ग्रसनी का ऊपरी भाग स्फीनाइड अस्थि के मुख्य भाग द्वारा बनता है तथा नीचे का भाग एसोफेगस के साथ मिला रहता है। यह कपाल के आधार के समीप तथा नासिका गुहा, मुख-गुहा एवं स्वरयन्त्र के पीछे स्थित 12 से 14 सेमी लम्बी एक पेशीयनली होती है जिसका ऊपरी सिरा चौड़ा होता है। ग्रसनी के निम्नलिखित तीन भाग होते हैं: नासाग्रसनी यह ग्रसनी का वह भाग है जो तालु की रेखा के ऊपर नासिका के पीछे स्थित रहता है। इसकी पिछली दीवार पर लिम्फाइड ऊतक होते हैं। जिन्हें फैरिंजियल टॉन्सिल्स या एडिनॉइड्रस कहा जाता है। कभी-कभी यह ऊतक बढ़कर ग्रसनी में रूकावट पैदा कर देते हैं जिससे बच्चे मुंह से साँस लेने लगते हैं। श्रवण नलियों नासाग्रसनी की पार्श्विय दीवारों में खुलती हैं और इनमें से वायु मध्य कान तक पहुँचती है जो नाक के आन्तरिक के साथ मिली रहती है। मुखग्रसनी यह ग्रसनी का मुँह वाला भाग होता है जो कोमल तालु के स्तर के नीचे से आरम्भ होकर तीसरी ग्रीवा कशेरूका के कार्य के ऊपरी भाग के स्तर तक पहुंचता हैं। ग्रसनी की भित्तियां कोमल तालु में विलीन होकर प्रत्येक ओर दो भाग बना लेती हैं। मुखग्रसनी की पार्श्वीय कोमल तालु के साथ मिली रहती है। इन भित्तियों के बीच लसीक ऊतक के उभार रहते हैं जिन्हें पैलेटो-ग्लॉसल आर्चज कहते हैं। इन्हें पैलेटाइन टॉन्सिल कहा जाता है । स्वरयन्त्रज ग्रसनी यह ग्रसनी की स्वरयन्त्र के पीछे वाला भाग होता है जो हाइड अस्थि के स्तर से स्वरयन्त्र के पीछे तक रहता है । ग्रसनी के इसी भाग से श्वासनीय एवं पाचन संस्थान अलग-अलग हो जाता है। आगे की ओर से वायु स्वरयन्त्र में जाती है तथा भोजन पीछे की ओर से इसोफेगस में जाता है । 3) स्वरयन्त्रस्वरयन्त्र ग्रसनी के निचले भाग एवं श्वास-नली के बीच एक पेशी उपस्थिमय वायु मार्ग होता है। जिसमें स्वर रज्जु होते हैं यह स्वरयन्त्र ग्रसनी को श्वास-नली से जोड़ता है। यह जिह्वा (जीभ) के नीचे से श्वास-नली तक फैला होता है। वयस्क पुरूष में यह तीसरे, चौथे, पाँचवे एवं छठे सरवाइकल वटीबरा के सामने तथा बच्चों तथा वयस्क स्त्रियों में यह इससे ऊँचे स्थान पर स्थित होता है। यौवन का प्रारम्भ होने पर पुरूषों में स्त्रियों की अपेक्षा स्वरयन्त्र अधिक तेजी से बढ़ता है। 4) श्वास-नली/श्वासप्रणालइसे सांस की नली भी कहते हैं। यह एक बेलनाकार नली होती है। इसकी लम्बाई 10 सेमी होती है तथा इसका व्यास 2 से 2.5 सेमी होता है। इसका विस्तार लैरिंग्स से पंचम वक्ष कशेरूका तक होता है, जहाँ यह दो श्वसनियों में विभाजित हो जाता है। इसमें 16-20 उपास्थि के अपूर्ण रिंग होते हैं। ये रिंग वलय पीछे की ओर अधूरे होते हैं जहाँ तन्तु ऊतक द्वारा रिंग के दोनों छोर जुड़े होते हैं। इस स्थिति में थोड़ा पेशी ऊतक भी होता है। 5) वायु नलियाँदोनों वायु नलियों श्वास-नली से थोड़ा अलग होती है। दांई ओर की वायु नली बांई ओर की वायु नली की अपेक्षा थोड़ी छोटी, चौड़ी और सीधी होती है। ये दाएँ और बाएँ फेफड़े तक पहुँचती हैं। उसके बाद बहुत सी छोटी-छोटी शाखाओं में बंट जाती हैं जिन्हें हम ब्रोन्कियल ट्यूब और ब्रोन्कियस कहते हैं। 6) डायाफ्रामडायाफ्राम आन्तरिक धारीदार माँसपेशियों की एक चादर होती है जो कि पसलियों की तली तक फैली हुई होती है। डायफ्राम वक्षीय गुहा (Thoracic Cavity) अर्थात् हृदय, फेफड़ों तथा पसलियों को उदरीय या खोड़ से अलग करता है तथा श्वसन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब यह संकुचित होता है तो वक्षीय खोड़ का आयतन बढ़ जाता है तथा फेफड़ों में वायु खींची जाती है। 7) फेफड़ेमानव शरीर में दो फेफड़े होते हैं। श्वास-प्रक्रिया में इन अंगों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। यह प्राणियों में एक जोड़े के रूप में उपस्थित होता है फेफड़े की दीवार असंख्य गुहिकाओं की उपस्थिति के कारण स्पन्जी होती है। यह वक्ष गुहा में स्थित होता है तथा इसमें रक्त का शुद्धीकरण होता है। रक्त में ऑक्सीजन का मिश्रण होता है और फेफड़ों का मुख्य कार्य वातावरण से ऑक्सीजन लेकर उसे रक्त परिसंचरण में प्रवाहित करना और रक्त से कार्बन डाई ऑक्साइड को अवशोषित कर उसे वातावरण में छोड़ना है। गैसों का यह विनियम असंख्य छोटी-छोटी पतली दीवारों वाली वायु पुटिकाओं जिन्हें ‘अल्वियोली ‘ कहा जाता है, में होता है। यह शुद्ध रक्त पल्मोनरी धमनी द्वारा ह्रदय में पहुँचता है, जहाँ से यह फिर से विभिन्न अवयवों में पहुँचाया जाता है। श्वसन तन्त्र का कार्यमानव श्वसन तंत्र में श्वसन तन्त्र के कार्य नीचे दिए गए हैं- Source – Indipedagogueश्वसन तन्त्र का महत्त्वपूर्ण कार्य शरीर की कोशिकाओं को निरन्तर रूप से ऑक्सीजन की आपूर्ति करना है। शरीर के सभी भागों में गैसों का आदान-प्रदान इस तन्त्र का मुख्य कार्य है। बिना ऑक्सीजन के मनुष्य जीवित नहीं रह सकता है क्योंकि यदि 4 मिनट से ज्यादा समय के लिए किसी मनुष्य में ऑक्सीजनकी पूर्ति रोक दी जाए तो प्राय: मनुष्य की मृत्यु हो जाएगी। अत: जीवित रहने हेतु ऑक्सीजन की निरन्तर आपूर्ति होना अत्यन्त आवश्यक है। श्वसन तंत्र का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य शरीर से कार्बन डाइऑक्साइड जलवाष्पों व अन्य व्यय पदार्थों को बाहर निकालना है। ये दोनों कार्य आन्तरिक तथा बाहरी श्वसन के माध्यम से किए जाते हैं। यह भी पढ़ें :पशु चिकित्सक कैसे बने श्वसन की प्रक्रियामानव श्वसन तंत्र में श्वसन की प्रक्रिया की कुछ इस प्रकार है: Source – Classnotesयह श्वसन की प्रक्रिया एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से फेफड़े ऑक्सीजन लेने हेतु फैलते हैं और उसके बाद वायु को बाहर की ओर निकालने हेतु सिकुड़ते हैं। श्वसन की इस पूरी प्रक्रिया में सिर, गर्दन, वक्ष, उदर आदि की सभी माँसपेशियाँ शामिल होती हैं। हालाँकि सामान्य श्वास में श्वसन की प्रमुख माँसपेशियों, पसलियों की माँसपेशियाँ व डायाफ्राम ही होते हैं। श्वसन की प्रक्रिया में श्वसन या श्वास लेना व श्वसन छोड़ना या नि:श्वसन शामिल होते हैं। जिनका वर्णन निम्नलिखित हैं। श्वास लेना जब हम श्वास लेते हैं तो पसलियों के मध्य की मासँपेशियाँ छाती की गुहिका (Cavity) को फैलाने हेतु सक्रिय रूप से संकुचन करती हैं। पसलियाँ व उरोस्थि (Sternum) ऊपर तथा बाहर की ओर गति करती हैं । डायाफ्राम भी संकुचित होता है तथा नीचे की ओर गति करता है एवं छाती की गहराई बढ़ती है। वक्ष की क्षमता भी बढ़ जाती है और फेफड़ों के मध्य दबाव कम हो जाता है। फेफड़े छाती की गुहिका को भरने हेतु फैलते हैं। वायुमण्डल के दबाव की अपेक्षा वायु कोशिकाओं में अब दबाव कम हो जाता है। अत: वायुमण्डल से वायु, वायु कोशिकाओं में खींच ली जाती है । निःश्वसन या श्वास छोड़ना जब हम निःश्वसन करते हैं अर्थात श्वास छोड़ते हैं तो पसलियों की माँसपेशियाँ शिथिल (Relax) हो जाती हैं। पसलियाँ व उरोस्थि (Sternum) नीचे तथा अन्दर की ओर जाती हैं। डायाफ्राम ऊपर की ओर आता है । छाती की गहराई कम हो जाती है। वक्ष की क्षमता कम हो जाती है और दबाव बढ़ता है जो फेफड़ों की वायु को बाहर निकालने हेतु जोर लगाता है। श्वसन तंत्र काम कैसे करता है?Source – WikipediaRespiratory System in Hindi में श्वसन तंत्र के मुख्य रूप से दो चरण होते हैं पहला जिसमें हम सांस लेते हैं और दूसरा जब हम सांस छोड़ते हैं जब हम सांस लेते हैं तब हमारी सांस में सिर्फ ऑक्सीजन ही नहीं आता बल्कि ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन जैसी अन्य गैसे भी आती हैं। परंतु हमारा शरीर सिर्फ और सिर्फ ऑक्सीजन गैस का उपयोग करता है और बाकी सारी गैसों को बाहर निकाल देता है। जैसे ही हम सांस लेते हैं तो हमारा डायाफ्राम नीचे की तरफ चला जाता है जिससे हमारे फेफड़ों को फैलने के लिए जगह मिल जाती है जैसे ही फेफड़े फैलते हैं तब हवा साइनस से होती हुई ग्रसनी तक जाती है। साइनस हमारे सर में हड्डियों के बीच में एक क्षेत्र होता है जब हम सांस लेते हैं तब साइनस हवा के तापमान को संतुलन में रखता है और हवा में उपस्थित धूल के कणों को हमारे शरीर के अंदर जाने से रोकता है। इसके बाद हवा विंड पाइप से होती हुई हमारे फेफड़ों तक पहुंचती है हर इंसान के दो फेफड़े होते हैं फेफड़े बाहरी हवा में से ऑक्सीजन सोखकर हमारे शरीर के रक्त में मिला देते हैं रक्त द्वारा यह ऑक्सीजन ऊतको तक पहुंचता और ऊतको द्वारा यह ऑक्सीजन कोशिकाओं तक पहुंचता है इसके बाद कोशिकाएं ऑक्सीजन का इस्तेमाल ऊर्जा बनाने के लिए करती हैं। सांस छोड़ने से पहले शरीर में ऑक्सीजन कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान होता है जब कोई व्यक्ति सांस छोड़ता है तो डायाफ्राम सिकुड़ता है और फेफड़ों पर दबाव पड़ता है जिससे हवा बाहर निकल जाती है। पौधों में श्वसनपौधों में श्वसन, कार्बन डाइऑक्साइड को लेने तथा इसका प्रयोग करने व ऑक्सीजन निष्कासन की प्रक्रिया है। पादपों में सांस हेतु ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है और तत्पश्चात वे कार्बन डाई ऑक्साइड को मुक्त करते हैं। इस कारण से पादपों में ऐसी व्यवस्था होती है, जिससे ऑक्सीजन की उपलब्धता सुनिश्चित होती है। पौधे कैसे श्वसन करते हैं?पौधे बिना श्वसन तंत्र के कैसे श्वसन करते हैं इसके कई कारण हो सकते हैं। 1) पादपों का प्रत्येक भाग अपनी गैसीय आदान-प्रदान की आवश्यकता का ध्यान रखता है। पादपों के एक भाग से दूसरे भाग में गैसों का परिवहन बहुत कम होता है । 2) पादपों में गैंसों के आदान-प्रदान की बहुत अधिक मांग नहीं होती। मूल’ तना व पत्ती में श्वसन, जन्तुओं की अपेक्षा बहुत ही धीमी दर से होता है। केवल प्रकाश संश्लेषण के दौरान गैसों का अत्यधिक आदान-प्रदान होता है तथा प्रत्येक पत्ती, पूर्णतयः इस प्रकार अनुकूलित होती है कि इस अवधि के दौरान अपनी आवश्यकता का ध्यान रखती है । जब कोशिका श्वसन करती है। ऑक्सीजन की उपलब्धता की कोई समस्या नहीं होती है, क्योंकि कोशिका में प्रकाश-संश्लेषण के दौरान ऑक्सीजन निकलती है। 3) बड़े स्थूल पादपों में गैसें अधिक दूरी तक विसरित नहीं होती है। पादपों में प्रत्येक सजीव कोशिका पादपों की सतह के बिल्कुल पास स्थित होती है। श्वसन तंत्र को मजबूत कैसे बनाएं?Source – Hindi Website for quotesआजकल के समय में पोलूशन, बीमारियां और अस्वस्थ भोजन के कारण श्वसन तंत्र संबंधी विकार होना एक आम बात हो गई है आजकल के समय में ज्यादातर लोगों को श्वसन तंत्र संबंधी विकार होते हैं जैसे अस्थमा, फेफड़ों का कैंसर और निमोनिया आदि इन सभी बीमारियों से बचने के लिए हमें अपने श्वसन तंत्र को मजबूत रखना चाहिए श्वसन तंत्र को मजबूत करने के लिए हम निम्नलिखित उपाय कर सकते हैं।
श्वसन तंत्र संबंधी विकार क्या हैं?Source -Yashoda Hospitalहमारे श्वसन तंत्र में काफी सारे अंगो का उपयोग होता है अलग-अलग अंग का अलग-अलग कार्य है श्वसन तंत्र में छोटे-छोटे अंगों से लेकर बड़े-बड़े अंगों तक का उपयोग है इसलिए इसमें कई प्रकार की श्वसन तंत्र से जुड़ी बीमारियां हो सकती हैं।
श्वसन पथकिण्वन
अम्ल इत्यादि बनते हैं, किण्वन क्रिया में बनने वाले उत्पाद को निम्न प्रकारों में बांटा गया है। 1.एल्कोहलीय किण्वन, 2. लैक्टिक अम्ल किण्वन, 3. एसिटिक अम्ल किण्वन, 4. ब्यूटाइरिक अम्ल किण्वन। क्रेब्स चक्र
ग्लाइकोलिसिस
श्वास-गतिएक स्वस्थ मनुष्य आमतौर पर एक मिनट में 16 से 20 बार तक सांस लेता है। अलग-अलग आयु में सांस संख्या निम्नानुसार होती है-
FAQsरेस्पिरेटरी सिस्टम कैसे काम करता है? Respiratory System in Hindi में श्वसन तंत्र के मुख्य रूप से दो चरण होते हैं पहला जिसमें हम सांस लेते हैं और दूसरा जब हम सांस छोड़ते हैं जब हम सांस लेते हैं तब हमारी सांस में सिर्फ ऑक्सीजन ही नहीं आता बल्कि ऑक्सीजन, कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन जैसी अन्य गैसे भी आती हैं। मानव श्वसन तंत्र क्या है? कोशिकाओं में ऑक्सीजन की उपस्थिति में खाद्य पदार्थ का ऑक्सीकरण जिसमें ऊर्जा उत्पन्न होती है, श्वसन कहलाता है। ऊर्जा प्राप्त करने हेतु कोशिकाएँ पोषक तत्वों का O2 द्वारा ऑक्सीकरण करती हैं। इस क्रिया के फलस्वरूप ATP का निर्माण होता है तथा हानिकारक CO2 गैस उत्पन्न होती है। मानव में श्वसन वर्णक का कार्य कौन करता है? सही उत्तर विकल्प D हीमोग्लोबिन है। मनुष्य के रुधिर में पाया जाने वाला श्वसन वर्णक कौन सा है *? इसे कोशिकीय श्वसन कहते हैं। सभी जीवों की कोशिकाओं में कोशिकीय श्वसन होता है। कोशिका के अंदर, भोजन (ग्लूकोस) ऑक्सीजन का उपयोग करके कार्बन डाइऑक्साइड और जल में विखंडित हो जाता है। जब ग्लूकोस का विखंडन ऑक्सीजन के उपयोग द्वारा होता है, तो यह वायवीय श्वसन कहलाता है। इनमें से कौन सा श्वसन संक्रमण है? श्वसन पथ के संक्रमण (आरटीआई)- साइनस, गले, वायुमार्ग या फेफड़ों के संक्रमण हैं। वे आमतौर पर वायरस के कारण होते हैं, लेकिन यह कभी कभी बैक्टीरिया के कारण भी हो सकते हैं। श्वसन पथ के संक्रमण को मुख्य कारण माना जाता है जिसकी वजह से लोग अपने डॉक्टर या फार्मासिस्ट से मिलते हैं। सबसे व्यापक श्वसन पथ संक्रमण सर्दी ज़ुकाम है। आशा है कि इस ब्लॉग से आपको Respiratory System in Hindi के बारे में सम्पूर्ण जानकारी मिल गई होगी। यदि आप विदेश में पढ़ाई करना चाहते हैं तो आज ही 1800 572 000 पर कॉल करके हमारे Leverage Edu के विशेषज्ञों के साथ 30 मिनट का फ्री सेशन बुक करें। |