गीतावली गोस्वामी तुलसीदास की काव्य कृति है। गीतावली तुलसीदास की प्रमाणित रचनाओं में मानी जाती है। यह ब्रजभाषा में रचित गीतों वाली रचना है जिसमें राम के चरित की अपेक्षा कुछ घटनाएँ, झाँकियाँ, मार्मिक भावबिन्दु, ललित रस स्थल, करुणदशा आदि को प्रगीतात्मक भाव के एकसूत्र में पिरोया गया है। ब्रजभाषा यहाँ काव्यभाषा के रूप में ही प्रयुक्त है बल्कि यह कहा जा सकता है कि गीतावली की भाषा सर्वनाम और क्रियापदों को छोड़कर प्रायः अवधी ही है।[1] Show 'गीतावली' नामकरण जयदेव के गीतगोविन्द, विद्यापति की पदावली की परम्परा में ही है जो नामकरण मात्र से अपने विषयवस्तु को प्रकट करती है। गीतावली में संस्कृतवत तत्सम पदावली का प्रयोग सूरदास की लोकोन्मुखी ब्रजभाषा की तुलना में न केवल अधिक है बल्कि तुलसी के भावावेगों के व्यक्त करने में वह सहायक सिद्ध हुई है। रामचन्द्र शुक्ल के अनुसार हृदय के त्रिविध भावों की व्यंजना गीतावाली के मधुर पदों में देखने में आती है। रामचन्द्र शुक्ल ने ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास’ में लिखा है ‘गीतावली’ की रचना गोस्वामी जी ने सूरदास के अनुकरण पर ही की है। बाललीला के कई पद ज्यों के त्यों सूरसागर में भी मिलते हैं, केवल ‘राम’ ‘श्याम’ का अन्तर है। लंकाकाण्ड तक तो मार्मिक स्थलों का जो चुनाव हुआ है वह तुलसी के सर्वथाअनुरूप है। पर उत्तरकाण्ड में जाकर सूरपद्धति के अतिशय अनुकरण के कारण उनका गंभीर व्यक्तित्व तिरोहित सा हो गया है, जिस रूप में राम को उन्होंने सर्वत्र लिया है, उनका भी ध्यान उन्हें नहीं रह गया। सूरदास में जिस प्रकार गोपियों के साथ श्रीकृष्ण हिंडोला झूलते हैं, होली खेलते हैं, वही करते राम भी दिखाये गये हैं। इतना अवश्य है कि सीता की सखियों और पुरनारियों का राम की ओर पूज्य भाव ही प्रकट होता है। राम की नखशिख शोभा का अलंकृत वर्णन भी सूर की शैली में बहुत से पदों में लगातार चला गया है। ‘गीतावली’ मूलतः कृष्ण काव्य परम्परा की गीत पद्धति पर लिखी गयी रामायण ही है। गीतावली का वस्तु-विभाजन सात काण्डों में हुआ है। किन्तु इसका उत्तरकाण्द अन्य ग्रन्थों के उत्तरकाण्ड से बहुत भिन्न है। उसमें रामरूपवर्णन, राम-हिण्डोला, अयोध्या की रमणीयता, दीपमालिका, वसन्त-बिहार, अयोध्या का आनन्द, रामराज्य आदि के वर्णन में माधुर्य एवं विलास की रमणीय झाँकियाँ प्रस्तुत की गयीं हैं। सन्दर्भ[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
गीतावली तुलसीदास की एक प्रमुख रचना है। इसमें गीतों में भगवान श्रीराम की कथा कही गयी है अथवा यों कहना चाहिए कि राम-कथा सम्बन्धी जो गीत गोस्वामी तुलसीदास ने समय-समय पर रचे, वे इस ग्रन्थ में संग्रहित हुए हैं। सम्पूर्ण रचना सात खण्डों में विभक्त है। काण्डों में कथा का विभाजन प्राय: उसी प्रकार हुआ है, जिस प्रकार 'रामचरितमानस' में हुआ है। किन्तु न इसमें कथा की कोई प्रस्तावना या भूमिका है और न ही 'मानस' की भाँति इसमें उत्तरकाण्ड में अध्यात्मविवेचन। बीच-बीच में भी 'मानस' की भाँति आध्यात्मिक विषयों का उपदेश करने का कोई प्रयास नहीं किया गया है। सम्पूर्ण पदावली राम-कथा तथा रामचरित से सम्बन्धित है। मुद्रित संग्रह में 328 पद हैं। पूर्ववर्ती रूप'गीतावली' का एक पूर्ववर्ती रूप भी प्राप्त हुआ है, जो इससे छोटा था। उसका नाम 'पदावली रामायण' था। इसकी केवल एक प्रति प्राप्त हुई है और वह भी अत्यन्त खण्डित है। इसमें सुन्दर और उत्तरकाण्डों के ही कुछ अंश बचे हैं और उत्तरकाण्ड का भी अन्तिम अंश न होने के कारण पुष्पिका नहीं रह गयी है। इसलिए प्रति की ठीक तिथि ज्ञात नहीं है। यह संग्रह वर्तमान से छोटा रहा होगा। यह इससे प्रकट है कि प्राप्त अंशो में वर्तमान संग्रह के अनेक पद बीच-बीच में नहीं है। यदि यह कहा जाय कि यह वर्तमान का कोई चयन होगा, तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि कभी-कभी छन्दों का क्रम भिन्न मिलता है। इसके अतिरिक्त इसके साथ की ही एक प्रति 'विनयपत्रिका' की प्राप्त हुई है, जिसका प्रति में ही 'राम गीतावली' नाम दिया हुआ है। वह भी 'विनयपत्रिका' का वर्तमान से छोटा पाठ देती है। इसलिए यह प्रकट है कि 'पदावली रामायण' का वह पाठ, जो प्रस्तुत एक मात्र प्रति में मिलता है, 'गीतावली' का ही कोई पूर्व रूप रहा होगा। आलोचक कथन'गीतावली' में कुछ पद[1] ऐसे भी हैं, जो 'सूरसागर' में मिलते हैं। प्राय: यह कहा जाता है कि ये पद उसमें 'सूरसागर' से गये होंगे। सूरदास, तुलसीदास से कुछ ज्येष्ठ थे, इसलिए कुछ आलोचक तो यह भी कहने में नहीं हिचकते कि इन्हें तुलसीदास ने ही 'गीतावली' में रख लिया होगा और जो इस सीमा तक नहीं जाना चाहते, वे कहते हैं कि तुलसीदास के भक्तों ने उनकी रचना को और पूर्ण बनाने के लिए यह किया होगा। किन्तु एक बात इस सम्बन्ध में विचारणीय है। 'गीतावली' की प्रतियाँ कई दर्जन संख्या में प्राप्त हुई है और वे सभी आकार-प्रकार में सर्वथा एक सी हैं और उन सबों में ये छन्द पाये जाते हैं। सूरसागर की प्रतियाँ'सूरसागर' की जितनी प्रतियाँ मिलती हैं, उनमें आकार-प्रकार भेद अधिक है। कुछ में केवल कुछ सौ पद हैं तो कुछ में कुछ हज़ार पद हैं। उनमें क्रम आदि में भी परस्पर काफ़ी वैभिन्न्य है और फिर 'सूरसागर' की सभी प्रतियों में ये पद पाये जाते हैं, या नहीं, यह अभी तक देखा नहीं गया है। 'सूरसागर' के मुद्रित पाठ में अन्य अनेक ज्ञात कवियों-भक्तों के पद भी सम्मिलित मिलते हैं। ऐसी दशा में वास्तविकता तो उलटे यह ज्ञान पड़ती है कि ये पद तुलसीदास की ही 'गीतावली' के थे, जो अन्य कवियों-भक्तों की पदावली की भाँति 'सूरसागर' में सूरदास के प्रेमियों के द्वारा सम्मिलित कर लिये गये। अंतरतुलसीदास ने कुल लगभग सात सौ पदों की रचना की है और गीति शिल्प में वे किसी से पीछे नहीं हैं। ऐसी दशा में वे तीन पद 'गीतावली' में और तीन-चार पद 'कृष्ण गीतावली' में सूरदास या किसी अन्य कवि से लेकर क्यों रखते? इसमें जो राम कथा आती है, वह प्राय: 'रामचरितमानस' के समान ही है, केवल कुछ विस्तारों में अन्तर है, जो 'रामचरितमानस 'के पूर्व रचे ग्रन्थों में ही मिलते हैं, और कुछ ऐसे हैं, जो कवि की किसी भी अन्य कृति में नहीं मिलते हैं।
विशिष्ट स्थान'गीतावली' का तुलसीदास की रचनाओं में एक विशिष्ट स्थान है, जिस पर अभी तक यथेष्ट ध्यान नहीं दिया गया है। अनेक बातों में यह 'रामचरितमानस' के समान होते हुए भी गीतों के साँचे उसी की राम-कथा को ढाल देने का प्रयास मात्र नहीं है। यह एक प्रकार से 'मानस' का पूरक है। 'मानस' में जीवन के कोमल और मधुर-पक्षों को जैसे जान-बूझकर दबाया गया हो; 'मानस' में कौशल्या राम को वन भेजकर केवल एक बार व्यथित दीख पड़ती है, वह है भरत के आगमन पर, किन्तु फिर पुत्र शोकातुरा कौसल्या के दर्शन नहीं होते। 'गीतावली' में तो अनेक बार वह राम विरह में धैर्य खोती चित्रित होती है; उसमें तो वह राम विरह में उन्माद-ग्रस्त हो चुकी हैं-
आदि पदों में कौसल्या का जो चित्र अंकित किया गया है, वह 'मानस' में नहीं किया गया है और कदाचित जान-बूझकर नहीं किया गया है।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख
गीतावली में कितने पद हैं?" गोस्वामी तुलसीदास 131 Page 6 भक्तिकाव्य 132 कृष्ण गीतावली : इसमें कृष्ण चरित से संबंधित 61 पद हैं।
कवितावली में कुल कितने पद होते हैं?इसमें ६१ पदों के माध्यम से कृष्ण चरित को काव्य का विषय बनाया गया है। यह ग्रन्थ ब्रजभाषा में है - .
गीतावली रचना के रचयिता कौन है?हनुमान बाहुकगीतावली / लेखकnull
गीतावली का मूल प्रतिपाद्य क्या है?'गीतावली' मूलतः कृष्ण काव्य परम्परा की गीत पद्धति पर लिखी गयी रामायन ही है। गीता परम्परा और गीत की प्रकृति के कारण कथा और वर्णन में लीलापरकता के कारण थोड़े बहुत परिवर्तन अवश्य हुए हैं और कुछ प्रसंगों को गीत के ही कारण छोड़ना पड़ा है। परंतु प्रसंगोद्भावना की शक्ति में ह्रास भी नहीं हुआ है।
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