सुशील जोशी Show पदार्थ की तीन अवस्थाओं के बीच हम बखूबी भेद कर बता देते हैं कि यह ठोस है, यह द्रव और यह गैस। कांच के बारे में आपका क्या ख्याल है? ठोस-द्रव-गैस में से किस समूह में इसे शामिल करेंगे आप? म प्रायः पदार्थ की अवस्थाओं ९ के बीच आसानी से भेद कर लेते हैं। कम-से-कम हम मानते तो यही हैं। इसके आधार पर हम पदार्थों को ठोस, द्रव व गैस इन तीन किस्मों में बांट देते हैं। किन्तु क्या हम भलीभांति इस वर्गीकरण को जानते हैं? मसलन आपने भी एल. सी.
डी. का नाम सुना होगा -लिक्विड क्रिस्टल डिस्प्ले केल्कुलेटर में हमें जो अंक नजर आते हैं वे वाकई ‘लिक्विड क्रिस्टल की बदौलत दिखाई देते हैं। यह एक साधारण-सा नाम है और हम इसे सुना-अनसुना कर देते हैं। परन्तु जरा पदार्थ की अवस्थाओं के बारे में ऐसी कई रोचक व हैरत अंगेज़ बातें हैं जो हमें इस सरल वर्गीकरण के बारे में सोचने पर विवश कर देती हैं। पता नहीं आपने यह बात कहीं पढ़ी सुनी है या नहीं मगर भौतिक-रसायन की मानक पुस्तकों में यह जानकारी दी जाती है कि कांच वास्तव में ठोस नहीं तरल है। आप कहेंगे कांच, और तरल? तरल पदार्थों से भी बर्तन बनते हैं क्या? ठोस-द्रव-गैस के गुण अलबत्ता इस उदाहरण से एक बात स्पष्ट है कि जो परिभाषा हमने पढ़ी थी वह अपर्याप्त है। कई बार वह परिभाषा रोजमर्रा के अनुभवों पर भी ठीक से लागू नहीं की जा सकती। दरअसल ठोस-द्रव-गैस का वर्गीकरण हम जितना कठोर मानने हैं (यानी इन्हें हम जितने स्पष्टतः विभाजित समूह मानते हैं) यह उतना कठोर है नहीं। इसमें विभाजन रेखाएं उतनी कठोरता से परिभाषित नहीं की जा सकतीं। इन अवस्थाओं को लेकर कठोर विभाजन रेखाएं खींचने से बेहतर होगा कि इनके बारे में एक समझ निर्मित की जाए - खास तौर से इनके बीच संक्रमण (Transition)
ठोस में कण काफी पास-पास होते हैं और उनमें एक पैटर्न बन जाता है। द्रव में कण आपस में टकराते हैं, दूर जाते हैं लेकिन फिर भी थोड़ा बेतरतीब पैटर्न दिखाई देता है। गैस में कण गति तो करते हैं लेकिन कोई पैटर्न नहीं दिखता।
को समझने का प्रयास किया जाए। समझ की दृष्टि से बेहतर यही होगा कि इन अवस्थाओं को मात्र लाक्षणिक स्तर पर देखने की बजाए आण्विक स्तर पर देखा जाए। दरअसल आण्विक व्यवस्था के नजरिए से देखने पर स्पष्ट होता है कि ये तीन अवस्थाएं आण्विक व्यवस्था के अलग-अलग स्तर की द्योतक हैं। मैं यह मानकर चलूंगा कि आप पदार्थ की कण प्रकृति से परिचित हैं। ये कण अणु, परमाणु या आयन हो सकते हैं। आण्विक अवस्थाएं यदि हम प्रत्येक वेग पर कणों की संख्या का ग्राफ बनाएं तो लगभग बनाए गए चित्र जैसी आकृति प्राप्त होगी। बहुत कम रफ्तार वाले कणों की संख्या भी बहुत कम है और बहुत ज्यादा रफ्तार वाले कण भी थोड़े से हैं। अधिकांश कण एक औसत रफ्तार के आसपास हैं। इस चित्र को हम सामान्य वितरण चित्र कहते हैं - घंटी के आकार का। जरा देखते हैं कि जब ये कण टकराते हैं तो क्या होता है। प्रत्येक कण की कुछ निश्चित गतिज ऊर्जा यानी ‘काइनेटिक एनर्जी' है। जब दो कण एक हद से ज्यादा पास आ जाते हैं तो इनके बीच परस्पर क्रिया सम्भव हो जाती है। निकटता की एक स्थिति ऐसी होती है जब इनके बीच आकर्षण उत्पन्न होता है। किन्तु यदि ये कण बहुत तेज रफ्तार से पास-पास आएं (और आकर्षण की वजह से यह रफ्तार और बढ़ जाए) तो ये बहुत पास पहुंच जाते हैं। एक हद से ज्यादा पास आने पर इनके बीच विकर्षण उत्पन्न हो जाता है। तो ये फिर दूर हट जाते हैं। कुल मिलाकर स्थिति यह होती है कि कोई व्यवस्था नहीं बन पाती, हर कण बेतरतीब ढंग से गतिशील रहता है। यह गैस है। अब मान लीजिए इन कणों की ऊर्जा को कम किया जाए। अर्थात तापमान को कम किया जाए। तापमान दरअसल कणों की गति का ही नाप है। ऊर्जा कम होगी तो इनकी गति भी मन्द पड़ेगी। तब इनकी आपसी टक्कर उतने वेग से नहीं होगी। अतः ये इतने निकट नहीं पहुंचेंगे कि विकर्षण उत्पन्न हो जाए। कहने का मतलब यह नहीं है कि अब हर टक्कर इस तरह की होगी। वेगों का सामान्य वितरण तो रहेगा ही किन्तु औसत कम हो जाएगा। अतः कणों के बीच विकर्षण की हद तक निकटता पैदा न हो, तब ये कण टकराने के बाद वापस दूर भागने की बजाए पास-पास ही रहेंगे। हां, यह युग्म पूरा-का-पूरा गति करता रहेगा और दोनों कण भी परस्पर एक औसत दूरी के इर्द-गिर्द कम्पन्न करते रहेंगे। अब हम कहते हैं कि द्रव बनने की क्रिया शुरू हो गई है। जब पूरे आयतन में ऐसे कई कण-पुंज बन जाएं तो गैस का द्रवीकरण हो गया। अभी भी ये कण-पुंज स्वतंत्र बेतरतीब गति कर रहे हैं, टकरा रहे हैं, कभी-कभी टूट रहे हैं वगैरह। मगर कुल मिलाकर टुकड़ों-टुकड़ों में एक व्यवस्था निर्मित हो गई है। यह व्यवस्था कितनी दूर दूर तक फैलेगी यह इस बात पर निर्भर है कि द्रव के कणों की फितरत क्या है। जब क्रिस्टल बनते हैं। जैसे-जैसे तापमान कम होता है द्रव के कण-पुंज या यदि कोई स्वतंत्र कण हों, तो उनकी गति मंद पड़ने लगती है। वे एक-दूसरे से टकराते हैं। और यदि उचित तरीके से टकराएं तो उनके बीच बंधन बन जाते हैं। प्रत्येक पदार्थ के लिए इन बंधनों के बनने का एक विशिष्ट पैटर्न होता है। लिहाज़ा उचित तरीके से टकराने का अर्थ है। किं वे आपस में ऐसे कोण, ऐसी दिशा व ऐसे फलक से टकराएं कि ये पैटर्न बन सके। धीरे-धीरे यह पैटर्न पूरे आयतन में बनने लगता है और द्रव ठोस (क्रिस्टल रूप) में तब्दील हो जाता है। कण-पुंज इस तरह से टकराएं, यह संयोग व सम्भाविता का खेल है। इस संयोग-सम्भाविता के खेल में कई अगर-मगर होते हैं। इसलिए इस क्रिया पर कई बातों का प्रभाव पड़ता हैः 1. ठण्डा करने की दर: आम तौर पर देखा गया है कि द्रव को तेजी से ठण्डा करें तो पर्फेक्ट क्रिस्टल नहीं बनते। 2. धूल के कणों या सूक्ष्म क्रिस्टलों की उपस्थितिः प्रायः क्रिस्टलीकरण की प्रक्रिया में सूक्ष्म धूल कणों या उसी पदार्थ के सूक्ष्म क्रिस्टल की उपस्थिति से मदद मिलती है। धूल कणों से क्यों मदद मिलती है हम नहीं जानते। मगर सूक्ष्म क्रिस्टल की उपस्थिति में द्रव के भटकते कणों को जमने की जगह मिल जाती है। इन कणों को केन्द्रक कहते हैं। जितने ज्यादा केन्द्रक बनेंगे उतने छोटे-छोटे क्रिस्टलों का निर्माण होगा। 3. यांत्रिक हलचलः कई बार ऐसा देखा गया है कि जिस बीकर या परखनली में द्रव रखकर क्रिस्टली करण किया जा रहा है उसकी अंदरूनी दीवारों को खरोंचने वगैरह से क्रिस्टल बनने में मदद मिलती है। इसका कारण शायद यह है कि यदि हिमांक के आसपास द्रव की श्यानता (Viscosity) बहुत ज्यादा हो जाए तो उसके कण-पुंजों की गति बहुत मंद पड़ जाती है तथा इस बात की सम्भावना कम हो जाती है कि सही पैटर्न में एक दूसरे के पास आ सकें। तब यांत्रिक हलचल से मदद मिलती है। अब शक्कर, नमक पर गौर कीजिए। परिस्थिति ऐसी है कि इनको द्रव अवस्था से ठंडा किया जा रहा है। अब कई छोटे-छोटे केन्द्रक बन जाएं। तो छोटे-छोटे ढेरों क्रिस्टल बन जाएंगे। परन्तु पूरे आयतन में एक व्यवस्था नहीं बनेगी। यह ठोस-द्रव के बीच की ही अवस्था है। लिहाजा ये क्रिस्टल अभी स्थानांतरण गति कर सकते हैं। कांच का बनना कांच के द्रव होने के कई प्रमाण हैं। उन सब में न जाते हुए यहां इतना ही कहना मुनासिब है कि कांच बहता है। हां, यह जरूर है कि कांच की श्यानता इतनी ज्यादा है कि यह बहुत धीमे-धीमे बहता है। कहते हैं कि पुरानी इमारतों की खिड़कियों में लगे कांच ऊपर से पतले और नीचे से मोटे हो
गए हैं। इतने बरसों में कांच बह-बह कर नीचे आ गया है। यह भी कहते हैं कि यदि कांच की लगभग एक मीटर लंबी छड़ को दो सिरों से दो ईंटों पर टिका दिया जाए तो जल्दी ही वह छड़ बीच में से झुक जाएगी। कांच की श्यानता को यदि थोड़ा कम किया जा सके तो यह क्रिस्टलीकृत हो जाता है। थोड़ा गर्म करने पर यही क्रिया होती है - तब कांच हमारे लिए किसी काम का नहीं रह जाता क्योंकि आप इस क्रिस्टलीय कांच को मनचाहे आकार में ढाल नहीं सकते। दरअसल इस तरह के अतिशीतलित द्रवों को कई लोग पदार्थ की एक
चौथी अवस्था ‘विट्रियस' अवस्था कहना पसंद करते हैं। सुशील जोशीः एकलव्य के होशंगाबाद विज्ञान कार्यक्रम एवं स्रोत फीचर सेवा से जुड़े हैं। साथ ही विज्ञान लेखन भी करते हैं। गैस से ठोस बनाने की प्रक्रिया को क्या कहते हैं?द्रव अवस्था में परिवर्तित हुए बिना ठोस अवस्था से सीधे गैस में बदलने की प्रक्रिया को ऊर्ध्वपातन कहते हैं और गैस से सीधे ठोस बनने की प्रक्रिया को निक्षेपण कहते हैं।
गैस का ठोस में परिवर्तन को क्या कहते है?Detailed Solution
ऊध्र्वपातक एक रासायनिक प्रक्रिया है जहां एक ठोस तरल चरण के बिना एक गैस में बदल जाता है।
ठोस में गैस का उदाहरण कौन सा है?ठोस माध्यम में परिक्षिप्त गैस गैस परिक्षिप्त अवस्था है और ठोस परिक्षिप्त माध्यम है। इसलिए, दिए गए यौगिकों में से ठोस में परिक्षिप्त गैस का एक उदाहरण झांवा है।
गैस को ठंडा करने पर क्या प्रभाव पड़ता है?Solution : गैस को ठण्डा करने पर उसके कणों की ऊर्जा कम हो जाती है जिससे कणों का गमन धीमा हो जाता है और वे एक-दूसरे के अधिक निकट आ जाते हैं।
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