गुरु और केतु की युति से कौन सा योग बनता है? - guru aur ketu kee yuti se kaun sa yog banata hai?

सार

Astrology: ज्योतिष शास्त्र में कई प्रकार के शुभ और अशुभ योगों का वर्णन है, उन्हीं में से एक योग है गुरु चांडाल योग।  गुरु चांडाल योग गुरु, राहु और केतु के मिलने से बनता है। आइए जानते हैं गुरु चांडाल योग के क्या दुष्प्रभाव हैं और इसके दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए क्या उपाय करने चाहिए। 

विस्तार

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब भी किसी कुंडली का निर्माण किया जाता है तो उसमें योग बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। शुभ योग बहुत से काम में तरक्की दिलाते हैं और वहीं अशुभ योग बने बनाए काम बिगाड़ने की क्षमता रखते हैं। व्यक्ति की कुंडली में कई शुभ और अशुभ योग ग्रहों के संयोग से बनते हैं। ज्योतिष शास्त्र में कई प्रकार के शुभ और अशुभ योगों का वर्णन है, उन्हीं में से एक योग है गुरु चांडाल योग।  गुरु चांडाल योग गुरु, राहु और केतु के मिलने से बनता है। आइए जानते हैं गुरु चांडाल योग के क्या दुष्प्रभाव हैं और इसके दुष्प्रभाव को दूर करने के लिए क्या उपाय करने चाहिए।

गुरु चांडाल योग का प्रभाव
जब व्यक्ति की कुंडली में गुरु चंडाल का योग का निर्माण होता है तो व्यक्ति सफलताओं के लिए संघर्ष करता है। धन की कमी उत्पन्न हो जाती है। व्यक्ति निराशा और नकारात्मकता से घिर जाता है। ज्योतिष शास्त्र में  ‘गुरु चांडाल’ योग को अत्यंत अशुभ योग मना गया है। जिस व्यक्ति की कुंडली में ‘गुरु चांडाल’ योग होता है, उसे शिक्षा, जॉब, बिजनेस, शादी विवाह आदि में बाधाओं का सामना करना पड़ता है। इसलिए इस अशुभ योग का उपाय जरुरी हो जाता है।

गुरु चांडाल योग का उपाय 

  • ज्योतिष शास्त्र में गुरु चांडाल योग से बचाव के उपाय भी बताए गए हैं जिन्हें अपनाकर  इस अशुभ योग के दुष्प्रभाव दूर किए जा सकते हैं। आइए जानते हैं क्या है वो उपाय- 
  •  ‘गुरु चांडाल’ योग के प्रभाव को कम करने के लिए माथे पर रोजाना केसर, हल्दी का तिलक लगाना चाहिए। 
  • गुरुवार को पीले वस्त्र पहनकर पीली वस्तुओं का दान करना चाहिए। 
  • गुरुजनों का आर्शीवाद प्राप्त कर उनका आदर करना चाहिए। 
  • इसके अलावा राहु के मंत्रों का जाप करें। 
  • साथ ही बृहस्पतिवार को भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। 
  • संभव हो तो केले का पौधा लगाएं और उसकी नित्य पूजा करें।

हिंदी न्यूज़ धर्मजन्म कुंडली में केतु की स्थिति हो ऐसी तो मिलता है शुभ फल, जानिए क्रूर ग्रह का मनुष्य जीवन पर प्रभाव

जन्म कुंडली में केतु की स्थिति हो ऐसी तो मिलता है शुभ फल, जानिए क्रूर ग्रह का मनुष्य जीवन पर प्रभाव

 वैदिक ज्योतिष में राहु केतु की तुलना सर्प से की गई है। राहु को उसका सिर और केतु को उसका पूंछ माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, केतु ग्रह को अशुभ माना जाता है। हालांकि क्रूर ग्रह केतु...

Saumya Tiwariलाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीFri, 30 Oct 2020 08:28 AM

 वैदिक ज्योतिष में राहु केतु की तुलना सर्प से की गई है। राहु को उसका सिर और केतु को उसका पूंछ माना जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, केतु ग्रह को अशुभ माना जाता है। हालांकि क्रूर ग्रह केतु हमेशा अशुभ फल ही देता है, ऐसा भी नहीं है। केतु ग्रह व्यक्ति को शुभ फल भी देता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, केतु को अध्यात्म, वैराग्य, मोक्ष, तांत्रिक आदि का कारक माना गया है। राहु को किसी भी राशि का स्वामित्व नहीं मिला है, लेकिन धनु राशि में केतु की उच्च राशि है, जबकि मिथुन राशि में यह नीच भाव में होता है।

केतु की उच्च राशि धनु होने के कारण यह इस राशि के जातकों को शुभ फल देता है। वैदिक ज्योतिष में केतु को मंगल के समान माना जाता है, इसलिए मंगल की राशि (मेष और वृश्चिक) में होने पर भी बुरा फल नहीं देता है। अगर जन्म कुंडली में भावों में केतु के फल की बात करें तो केतु दूसरे और आठवें भाव का कारक है। इसलिए यह कुंडली के इन भावों में होने पर शुभ फल ही देता है। अन्य भावों में केतु अशुभ फल देते हैं।

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केतु ग्रह का मनुष्य जीवन पर प्रभाव-

1. ज्योतिष में केतु ग्रह की कोई निश्चित राशि नहीं है। ऐसे में केतु जिस राशि में गोचर करता है वह उसी के अनुरूप फल देता है। इसलिए केतु का प्रथम भाव अथवा लग्न में फल को वहां स्थित राशि प्रभावित करती है। इसके प्रभाव से जातक अकेले रहना पसंद करता है लेकिन यदि लग्न भाव में वृश्चिक राशि हो तो जातक को इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिलते हैं। 
2. अगर किसी जातक की कुंडली में केतु तृतीय, पंचम, षष्टम, नवम एवं द्वादश भाव में हो तो जातक को इसके बहुत हद तक अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। 
3.  अगर केतु गुरु ग्रह के साथ युति बनाता है तो व्यक्ति की कुंडली में इसके प्रभाव से राजयोग का निर्माण होता है। 
4.  अगर जातक की कुंडली में केतु बली हो तो यह जातक के पैरों को मजबूत बनाता है। जातक को पैरों से संबंधित कोई रोग नहीं होता है। शुभ मंगल के साथ केतु की युति जातक को साहस प्रदान करती है।
5. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, कुंडली में केतु के नीच का होने से जातक को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। व्यक्ति के सामने अचानक कोई न कोई बाधा आ जाती है। 
6. अगर व्यक्ति किसी कार्य के लिए जो निर्णय लेता है तो उसमें उसे असफलता का सामना करना पड़ता है। केतु के कमजोर होने पर जातकों के पैरों में कमजोरी आती है। 
7. पीड़ित केतु के कारण जातक को नाना और मामा जी का प्यार नहीं मिल पाता है। राहु-केतु की स्थिति कुंडली में कालसर्प दोष बनाती है।

(इस आलेख में दी गई जानकारियों पर हम यह दावा नहीं करते कि ये पूर्णतया सत्य एवं सटीक हैं। इन्हें अपनाने से पहले संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ की सलाह जरूर लें।)
 

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गुरु और केतु एक साथ हो तो क्या होता है?

अगर केतु गुरु ग्रह के साथ युति बनाता है तो व्यक्ति की कुंडली में इसके प्रभाव से राजयोग का निर्माण होता है। 4. अगर जातक की कुंडली में केतु बली हो तो यह जातक के पैरों को मजबूत बनाता है। जातक को पैरों से संबंधित कोई रोग नहीं होता है।

चांडाल योग की शांति कैसे करें?

गुरु चांडाल योग कुंडली में, आजमाएं ये उपाय.
माथे पर नित्य केसर, हल्दी का तिलक लगाएं।.
गुरुवार को पीले वस्त्र पहनकर पीली वस्तुओं का दान करें।.
माता- पिता और गुरुजनों का सम्मान करें।.
प्रत्येक मंगलवार को हनुमान चालीसा और सुंदरकांड का पाठ कीजिए।.
राहु ग्रह के मंत्र 'ओम रां राहवे नमः' का जप करें।.

केतु का गुरु कौन है?

इस ग्रह को अलगाव का ग्रह भी माना जाता है, क्योंकि इसके प्रभाव में जातक का सांसारिक सुखों से मोह भंग होने लगता है। केतु के मित्र देवगुरु बृहस्पति हैं और शत्रु ग्रह सूर्य व चंद्रमा हैं। सम ग्रह शनि, बुध व शुक्र हैं। केतु जिस ग्रह के साथ कुंडली विराजमान होते हैं, उसके प्रभाव से व्यक्ति की बुद्धि में कमी आ जाती है।

कुंडली में केतु कब शुभ होता है?

कुंडली के दूसरे और आठवें भाव में केतु शुभ फल प्रदान करने वाला माना गया है. इसके साथ ही शुभ ग्रहों के साथ यदि बैठ जाए तो केतु व्यक्ति को अपार सफलताएं दिलाता है. केतु को अध्यात्म, वैराग्य, मोक्ष, तांत्रिक आदि का कारक माना गया है.

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