गुरु का एक अर्थ होता है शिक्षक और दूसरा क्या होता है? - guru ka ek arth hota hai shikshak aur doosara kya hota hai?

October 18, 2018

(A) शिक्षक, बड़ा, भारी, श्रेष्ठ, बृहस्पति
(B) लेना, सूर्य व चन्द ग्रहण।
(C) घड़ा, हृदय, कम, शरीर
(D) जल, प्राण, आजीविका, पुत्र, वायु

Answer : शिक्षक, बड़ा, भारी, श्रेष्ठ, बृहस्पति

गति Gati का अनेकार्थी शब्द होगा – चाल, हालत, मोक्ष, रफ्तार। भाषा में बहुत से ऐसे शब्द है जिसके एक से अधिक अर्थ (Words with Various Meanings) होते है, ऐसे सभी शब्दों को अनेकार्थी शब्द कहते हैं। अनेकार्थी का अर्थ है – एक से अधिक अर्थ देने वाला। दूसरे शब्दों में अलग-अलग अर्थ में अनेकार्थी शब्द का प्रयोग करने पर दूसरा अर्थ आ जाता है। जैसे- कनक शब्द सोना, धतूरा, गेंहू के अर्थ में प्रयोग होता है।....अगला सवाल पढ़े

Tags : अनेकार्थी शब्द सामान्य हिन्दी प्रश्नोत्तरी

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हिन्दी

१. सत्य मार्ग दिखाने वाला।

२. शिक्षक ।

३. पूज्य पुरुष।[१]

४. अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाने वाला ।

५. भगवान के समान ।

६. व्यक्तिगत आध्यात्मिक शिक्षक।

७. निर्देशक ।

८. जिन्होंने आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि प्राप्त कर ली हो।

९. गुरु' शब्द में 'गु' का अर्थ है 'अंधकार' और 'रु' का अर्थ है 'प्रकाश' अर्थात् गुरु का शाब्दिक अर्थ हुआ 'अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला मार्गदर्शक'। सही अर्थों में गुरु वही है जो अपने शिष्यों का मार्गदर्शन करे और जो उचित हो उस ओर शिष्य को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करे। गुरु उसको कहते हैं जो वेद-शास्त्रों का गृणन (उपदेश) करता है अथवा स्तुत होता है।

संज्ञा

पु.

  1. ग्रह

अनुवाद

  • अंग्रेज़ी : Jupiter en:Jupiter (1), guru (2)
  • फ्रांसीसी : Jupiter {{subst:}} fr:Jupiter (1), gourou (2)
  • गुजराती : ગુરુ gu:ગુરુ (1)

प्रकाशितकोशों से अर्थ

शब्दसागर

गुरु ^१ वि॰ [सं॰] [संज्ञा गुरुत्व, गुरुता]

१. लंबे चौडे़ आकारवाला । बडा़ ।

२. भारी । वजनी । जो तौल में अधिक हो ।

३. कठिनता से पकने या पचनेवाला (खाद्य पदार्थ) ।

४. चौडा़ (डिं॰) ।

५. पूजनीय (को) ।

६. महत्वशील (को॰) ।

७. कठिन (को॰) ।

८. दीर्घमाञावाला (वर्ण) (को॰) ।

९. प्रिय (को॰) ।

१०. तीव्रतापूर्ण (को॰) ।

११. संमान्य (को॰) । सर्वो त्तम । सुंदर (को॰) ।

१२. दर्पपूर्ण (बात) ।

१३. अदमनीय (को॰) ।

१४. शक्तिशाली । बलवान् (को॰) ।

१५. मूल्यवान् (को॰) ।

गुरु ^२ संज्ञा पु॰ [सं॰] [स्त्री॰ गुरुआनी]

१. देवताओं के आचार्य बृहस्पति ।

२. बृहस्पति नामक ग्रह । यौ॰—गुरुवार ।

३. पुष्य नक्षत्र । जिसके अधिष्ठाता बृहस्पति हैं ।

४. अपने अपने गृह्य के अनुसार यज्ञोपवीत आदि संस्कार करानेवाला, जो गायत्री मंत्र का उपदेष्टा होता है । आचार्य ।

५. किसी मंत्र का उपदेष्टा ।

६. किसी विद्या या कला का शिक्षक । सिखाने , पढा़ने या बतलानेवाला । उस्ताद । यौ॰—गुरुकुल; गुरुगृह = गुरुकुल ।

७. दो मात्राओंवाला अक्षर । दीर्घ अक्षर जिसकी दो मात्राएँ या कलाएँ गिनी जाती हैं । जैसे—राम में रा ।—(पिंगल ) । विशेष—संयुक्त अक्षर के पहलेवाला अक्षर (लघु होने पर भी) गुरु माना जाता है । पिंगल में गुरु वर्ण का संकेत है । अनुस्वार और विसर्गयुक्त अक्षर भी गुरु ही माने जाते हैं ।

८. वह ताल जिसमें एक दीर्घ या दो साधारण मात्राएँ हों । विशेष—पिंगल के गुरु की भाँति ताल के गुरु का चिह्न भी ही है । —(संगीत ) ।

९. वह व्यक्ति जो विद्या, बुद्धि बल, वय या पद में सबसे बडा़ हो । यौं॰—गुरुजन । गुरुवर्य ।

१०. ब्रह्मा ।

११. विष्णु ।

१२. शिव ।

१३. कौँछ ।

१४. पिता (को॰) ।

१५. द्रोणाचार्य (को॰) ।

गुरु संज्ञा पुं॰ [सं॰ गुरु] गूरु । अध्यापक । आचार्य । यौ॰—गुरुघंटाल = (१) बड़ा भारी चालाक । अत्यंत चतुर । (२) धूर्त । चालबाज ।

यह भी देखिए

  • गुरु (विकिपीडिया)

  1. साँचा:cite book

गुरु का एक अर्थ होता है शिक्षक और दूसरा क्या होता है? - guru ka ek arth hota hai shikshak aur doosara kya hota hai?

गुरु हिंदू धर्म में एक व्यक्तिगत आध्यात्मिक शिक्षक या निर्देशक होते हैं, जिन्होंने आध्यात्मिक अंतर्दृष्टि प्राप्त कर ली हो। कम से कम उपनिषदों के समय से भारत में धार्मिक शिक्षा में गुरुकुल पद्धति पर ज़ोर दिया जाता रहा है। पारंपरिक रूप से पुरुष शिष्य गुरुओं के आश्रम में रहते थे और भक्ति तथा आज्ञाकारिता से उनकी सेवा करते थे। भक्ति आंदोलन के उत्थान के साथ, जो इष्ट देवता के प्रति भक्ति पर ज़ोर देता है, गुरु और भी अधिक महत्त्वपूर्ण चरित्र बन गए। किसी संप्रदाय के प्रमुख या संस्थापक के रूप में गुरु श्रद्धा के पात्र थे और उन्हें आध्यात्मिक सत्य का मूर्तिमान जीवित रूप माना जाता था। इस प्रकार उन्हें देवता के जैसा सम्मान प्राप्त था। गुरु के प्रति सेवा भाव और आज्ञाकारिता की परंपरा अब भी विद्यमान है।

गुरु की परिभाषा

'गुरु' शब्द में 'गु' का अर्थ है 'अंधकार' और 'रु' का अर्थ है 'प्रकाश' अर्थात् गुरु का शाब्दिक अर्थ हुआ 'अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला मार्गदर्शक'। सही अर्थों में गुरु वही है जो अपने शिष्यों का मार्गदर्शन करे और जो उचित हो उस ओर शिष्य को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करे। गुरु उसको कहते हैं जो वेद-शास्त्रों का गृणन (उपदेश) करता है अथवा स्तुत होता है। [1] मनुस्मृति [2] में गुरु की परिभाषा निम्नांकित है-

निषेकादीनि कार्माणि य: करोति यथाविधि।
सम्भावयति चान्नेन स विप्रो गुरुरुच्यते।

गुरु का एक अर्थ होता है शिक्षक और दूसरा क्या होता है? - guru ka ek arth hota hai shikshak aur doosara kya hota hai?

जो विप्र निषक [3]आदि संस्कारों को यथा विधि करता है और अन्न से पोषण करता है वह 'गुरु' कहलाता है। इस परिभाषा से पिता प्रथम गुरु है, तत्पश्चात् पुरोहित, शिक्षक आदि। मंत्रदाता को भी गुरु कहते हैं।

  • 'गुरुत्व' के लिए वर्जित पुरुषों की सूची 'कालिकापुराण' [4] में इस प्रकार दी हुई है-

अभिशप्तमपुत्रच्ञ सन्नद्धं कितवं तथा।
क्रियाहीनं कल्पाग्ड़ वामनं गुरुनिन्दकम्॥
सदा मत्सरसंयुक्तं गुरुंत्रेषु वर्जयेत।
गुरुर्मन्त्रस्य मूलं स्यात मूलशद्धौ सदा शुभम्॥

  • कूर्मपुराण [5] में गुरुवर्ग की एक लम्बी सूची मिलती है:

उपाध्याय: पिता ज्येष्ठभ्राता चैव महीपति:।
मातुल: श्वशुरस्त्राता मातामहपितामहौ॥
बंधुर्ज्येष्ठ: पितृव्यश्च पुंस्येते गुरव: स्मृता:॥
मातामही मातुलानी तथा मातुश्च सोदरा॥
श्वश्रू: पितामही ज्येष्ठा धात्री च गुरव: स्त्रीषु।
इत्युत्को गुरुवर्गोयं मातृत: पितृतो द्विजा:॥

गुरु का एक अर्थ होता है शिक्षक और दूसरा क्या होता है? - guru ka ek arth hota hai shikshak aur doosara kya hota hai?

इनका शिष्टाचार, आदर और सेवा करने का विधान है।

  • 'युत्किकल्पतरु' में अच्छे गुरु के लक्षण निम्नांकित कहे गये हैं-

सदाचार: कुशलधी: सर्वशास्त्रार्थापारग:।
नित्यनैमित्तिकानाञ्च कार्याणां कारक: शुचि:॥
अपर्वमैथुनपुर: पितृदेवार्चने रत:।
गुरुभक्तोजितक्रोधो विप्राणां हितकृत सदा॥
दयावान शीलसम्पन्न: सत्कुलीनो महामति:।
परदारेषु विमुखो दृढसंकल्पको द्विज:॥
अन्यैश्च वैदिकगुणैगुणैर्युक्त: कार्यो गुरुर्नृपै:।
एतैरेव गुणैर्युक्त: पुरोधा: स्यान्महीर्भुजाम्॥
मंत्रगुरु के विशेष लक्षण बतलाये गये हैं:
शांतो दांत: कुलीनश्च विनीत: शुद्धवेशवान्।
शुद्धाचार: सुप्रतिष्ठ: शुचिर्दक्ष: सुबुद्धिमान॥
आश्रामी ध्याननिष्ठश्च मंत्र-तंत्र-विशारद:।
निग्रहानुग्रहे शक्तो गुरुरित्यभिधीयते॥
उद्धर्तुच्ञै व संहतुँ समर्थो ब्राह्माणोत्तम:।
तपस्वी सत्यवादी च गृहस्थो गुरुच्यते॥

गुरु का एक अर्थ होता है शिक्षक और दूसरा क्या होता है? - guru ka ek arth hota hai shikshak aur doosara kya hota hai?

सामान्यत: द्विजाति का गुरु अग्नि, वर्णों का गुरु ब्राह्मण, स्त्रियों का गुरु पति और सबका गुरु अतिथि होता है-

गुरुग्निद्विजातीनां वर्णानां बाह्मणो गुरु:।
पतिरेको गुरु: स्त्रीणां सर्वेषामतिथिर्गुरु:॥[6]

  • उपनयनपूर्वक आचार सिखाने वाला तथा वेदाध्ययन कराने वाला आचार्य ही यथार्थत: गुरु है-

उपनीय गुरु: शिष्यं शिक्षयेच्छौचमादित:।
आचारमग्निकार्यञ्चसंध्योपासनमेब च॥
अल्पं वा बहु वा यस्त श्रुतस्योपकरोति य:।
तमपीह गुरुं विद्याच्छु तोपक्रिययातया॥
षटर्त्रिशदाब्दिकं चर्य्यं गुरौ त्रैवेदिकं व्रतम्।
तदर्द्धिकं पादिक वा ग्रहणांतिकमेव वा॥ [7]

गुरु का चुनाव

गुरु का एक अर्थ होता है शिक्षक और दूसरा क्या होता है? - guru ka ek arth hota hai shikshak aur doosara kya hota hai?

वीर शैवों में यह है कि प्रत्येक लिंगायत गाँव में एक मठ होता है जो प्रत्येक पाँच प्रारम्भिक मठों से सम्बंधित रहता है। प्रत्येक लिंगायत किसी न किसी मठ से सम्बंधित होता है। प्रत्येक का एक गुरु होता है। 'जंगम' इनकी एक जाति है जिसके सदस्य लिंगायतों के गुरु होते हैं।

जब लिंगायत अपने 'गुरु' का चुनाव करता है तब एक उत्सव होता है, जिसमें पाँच मठों के महंतों के प्रतिनिधि के रूप में, रखे जाते हैं। चार पात्र वर्गाकार आकृति में एवं एक केंद्र में रखा जाता है। यह केंद्र का पात्र उस लिंगायत के घर जाता है, उस अवसर पर 'पादोदक' संस्कार [8] होता है, जिसमें सारा परिवार तथा मित्रमण्डली उपस्थित रहती है। गृहस्वामी द्वारा गुरु की षोडशोपचार पूर्वक पूजा की जाती है।

गुरु का सम्मान

धार्मिक गुरु के प्रति भक्ति की परम्परा भारत में अति प्राचीन है। प्राचीन काल में गुरु की आज्ञा का पालन करना शिष्य का परम धर्म होता था। प्राचीन भारत की शिक्षा प्रणाली में वेदों का ज्ञान व्यक्तिगत रूप से गुरुओं द्वारा मौखिक शिक्षा के माध्यम से शिष्यों को दिया जाता था। गुरु शिष्य का दूसरा पिता माना जाता था एवं प्राकृतिक पिता से भी अधिक आदरणीय था। आधुनिक काल में गुरुसम्मान और भी अधिक बताया गया है। नानक, दादू, राधास्वामी आदि संतों के अनुयायी जिसे एक बार गुरु ग्रहण करते हैं, उसकी बातों को ईश्वरवचन मानते हैं।

बिना गुरु की आज्ञा के कोई हिंदु किसी सम्प्रदाय का सदस्य नहीं हो सकता। प्रथम वह एक जिज्ञासु बनता है। बाद में गुरु उसके कान में एक शुभ बेला में दीक्षा-मंज्ञ पढ़ता है और फिर वह सम्प्रदाय का सदस्य बन जाता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. गृणाति उपदिशति वेद- शास्त्राणि यद्वा गीर्यते स्तूयते शिष्यवर्गे:
  2. मनुस्मृति 2.142
  3. गर्भाधान
  4. कालिकापुराण अध्याय 54
  5. कूर्मपुराण उपविभाग, अध्याय 11
  6. चाणक्यनीति
  7. मनु. 2.69;2.149;3.1
  8. गुरु के चरण धोना

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गुरु' शब्द में 'गु' का अर्थ है 'अंधकार' और 'रु' का अर्थ है 'प्रकाश' अर्थात् गुरु का शाब्दिक अर्थ हुआ 'अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला मार्गदर्शक'। सही अर्थों में गुरु वही है जो अपने शिष्यों का मार्गदर्शन करे और जो उचित हो उस ओर शिष्य को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करे।