यदि आप भूविज्ञान से सम्बन्धित कल्प के बारे में जानकारी ढूंढ रहे हैं तो भूवैज्ञानिक कल्प का लेख देखें Show
कल्प हिन्दू समय चक्र की बहुत लम्बी मापन इकाई है। मानव वर्ष गणित के अनुसार ३६० दिन का एक दिव्य अहोरात्र होता है। इसी हिसाब से दिव्य १२००० वर्ष का एक चतुर्युगी होता है। ७१ चतुर्युगी का एक मन्वन्तर होता है और १४ मन्वन्तर/ १०००चतुरयुगी का एक कल्प होता है। यह शब्द का अति प्राचीन वैदिक हिन्दू ग्रन्थों में उल्लेख मिलता है। यह बौद्ध ग्रन्थों में भी मिलता है, हालाँकि बहुत बाद के काल में, वह भी हिन्दू वैदिक धर्म ग्रन्थ से लिया हुआ ही है। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि बुद्ध एक हिन्दू परिवार में जन्में हिन्दू ही थे जिनके लगभग ५०० वर्ष पश्चात् उनके अनुयायी राजकुमार सिद्धार्थ जो बोध ग्यान के बाद गौतम बुद्ध नाम से प्रसिद्ध हुए। परिचय[संपादित करें]सृष्टिक्रम और विकास की गणना के लिए कल्प हिन्दुओं का एक परम प्रसिद्ध मापदंड है। जैसे मानव की साधारण आयु सौ वर्ष है, वैसे ही सृष्टिकर्ता ब्रह्मा की भी आयु सौ वर्ष मानी गई है, परंतु दोनों गणनाओं में बड़ा अन्तर है। ब्रह्मा का एक दिन 'कल्प' कहलाता है, उसके बाद प्रलय होता है। प्रलय ब्रह्मा की एक रात है जिसके पश्चात् फिर नई सृष्टि होती है। चारों युगों के एक चक्कर को चतुर्युगी अथवा पर्याय कहते हैं। १‚००० चतुर्युगी अथवा पर्यायों का एक कल्प होता है। ब्रह्मा के एक मास में तीस कल्प होते हैं जिनके अलग-अलग नाम हैं, जैसे श्वेतवाराह कल्प, नीललोहित कल्प आदि। प्रत्येक कल्प के १४ भाग होते हैं और इन भागों को 'मन्वंतर' कहते हैं। प्रत्येक मन्वंतर का एक मनु होता है, इस प्रकार स्वायंभुव, स्वारोचिष् आदि १४ मनु हैं। प्रत्येक मन्वंतर के अलग-अलग सप्तर्षि, इद्रं तथा इंद्राणी आदि भी हुआ करते हैं। इस प्रकार ब्रह्मा के आज तक ५० वर्ष व्यतीत हो चुके हैं, ५१वें वर्ष का प्रथम कल्प अर्थात् श्वेतवाराह कल्प प्रारंभ हुआ है। वर्तमान मनु का नाम 'वैवस्वत मनु' है और इनके २७ चतुर्युगी बीत चुके हैं, २८ वें चतुर्युगी के भी तीन युग समाप्त हो गए हैं, चौथे अर्थात् कलियुग का प्रथम चरण चल रहा है। युगों की अवधि इस प्रकार है - सत्युग १७,२८,००० वर्ष; त्रेता १२,९६,००० वर्ष; द्वापर ८,६४,००० वर्ष और कलियुग ४,३२,००० वर्ष। अतएव एक कल्प १००० चतुर्युगों के बराबर यानी चार अरब बत्तीस करोड़ (4,32,00,00,000) मानव वर्ष का हुआ। विभाजन[संपादित करें]प्राचीन हिन्दू ग्रन्थों में मानव इतिहास को पाँच कल्पों में बाँटा गया है।[1]
अब तक वराह कल्प के स्वायम्भु मनु, स्वरोचिष मनु, उत्तम मनु, तमास मनु, रेवत-मनु चाक्षुष मनु तथा वैवस्वत मनु के मन्वन्तर बीत चुके हैं और अब वैवस्वत तथा सावर्णि मनु की अन्तर्दशा चल रही है। सावर्णि मनु का आविर्भाव विक्रमी सम्वत प्रारम्भ होने से ५,६३० वर्ष पूर्व हुआ था।[1] विविध[संपादित करें]गिनीज़ बुक आफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स ने कल्प को समय का सर्वाधिक लम्बा मापन घोषित किया है।[2][1] सन्दर्भ[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
मन्वन्तर [1], मनु [2], हिन्दू धर्म अनुसार, मानवता के प्रजनक, की आयु होती है। यह समय मापन की खगोलीय अवधि है। मन्वन्तर एक संस्कॄत शब्द है, जिसका संधि-विच्छेद करने पर = मनु+अन्तर मिलता है। इसका अर्थ है मनु की आयु[3]. प्रत्येक मन्वन्तर एक विशेष मनु द्वारा रचित एवं शासित होता है, जिन्हें ब्रह्मा द्वारा सॄजित किया जाता है। मनु विश्व की और सभी प्राणियों की उत्पत्ति करते हैं, जो कि उनकी आयु की अवधि तक बनती और चलती रहतीं हैं, (जातियां चलतीं हैं, ना कि उस जाति के प्राणियों की आयु मनु के बराबर होगी). उन मनु की मॄत्यु के उपरांत ब्रह्मा फ़िर एक नये मनु की सृष्टि करते हैं, जो कि फ़िर से सभी सृष्टि करते हैं। इसके साथ साथ विष्णु भी आवश्यकता अनुसार, समय समय पर अवतार लेकर इसकी संरचना और पालन करते हैं। इनके साथ ही एक नये इंद्र और सप्तर्षि भी नियुक्त होते हैं। चौदह मनु और उनके मन्वन्तर को मिलाकर एक कल्प बनता है। यह ब्रह्मा का एक दिवस होता है। यह हिन्दू समय चक्र और वैदिक समयरेखा के नौसार होता है। प्रत्येक कल्प के अन्त में प्रलय आती है[4], जिसमें ब्रह्माण्ड का संहार होता है और वह विराम की स्थिति में आ जाता है, जिस काल को ब्रह्मा की रात्रि कहते हैं। इसके उपरांत सृष्टिकर्ता ब्रह्मा फ़िर से सृष्टिरचना आरम्भ करते हैं, जिसके बाद फ़िर संहारकर्ता भगवान शिव इसका संहार करते हैं। और यह सब एक अंतहीन प्रक्रिया या चक्र में होता रहता है। [5]. सृष्टि कि कुल आयु : 4320000000वर्ष इसे कुल 14 मन्वन्तरों मे बाँटा गया है. वर्तमान मे 7वें मन्वन्तर अर्थात् वैवस्वत मनु चल रहा है. इस से पूर्व 6 मन्वन्तर जैसे स्वायम्भव, स्वारोचिष, औत्तमि, तामस, रैवत, चाक्षुष बीत चुके है और आगे सावर्णि आदि 7 मन्वन्तर भोगेंगे. 1 मन्वन्तर = 71 चतुर्युगी 1 चतुर्युगी = चार युग (सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलियुग) चारों युगों की आयु :-- सतयुग = 1728000 वर्ष त्रेतायुग = 1296000 वर्ष द्वापरयुग = 864000 वर्ष और कलियुग = 432000 वर्ष इस प्रकार 1 चतुर्युगी की कुल आयु = 1728000+1296000+864000+432000 = 4320000 वर्ष अत : 1 मन्वन्तर = 71 × 4320000(एक चतुर्युगी) = 306720000 वर्ष चूंकि एेसे - एेसे 6 मन्वन्तर बीत चुके है . इसलिए 6 मन्वन्तर की कुल आयु = 6 × 306720000 = 1840320000 वर्ष वर्तमान मे 7 वें मन्वन्तर के भोग मे यह 28वीं चतुर्युगी है. इस 28वीं चतुर्युगी मे 3 युग अर्थात् सतयुग , त्रेतायुग, द्वापर युग बीत चुके है और कलियुग का 5115 वां वर्ष चल रहा है . 27 चतुर्युगी की कुल आयु = 27 × 4320000(एक चतुर्युगी) = 116640000 वर्ष और 28वें चतुर्युगी के सतयुग , द्वापर , त्रेतायुग और कलियुग की 5115 वर्ष की कुल आयु = 1728000+1296000+864000+5115 = 3893115 वर्ष इस प्रकार वर्तमान मे 28 वें चतुर्युगी के कलियुग की 5115 वें वर्ष तक की कुल आयु = 27वे चतुर्युगी की कुल आयु + 3893115 = 116640000+3893115 = 120533115 वर्ष इस प्रकार कुल वर्ष जो बीत चुके है = 6 मन्वन्तर की कुल आयु + 7 वें मन्वन्तर के 28वीं चतुर्युगी के कलियुग की 5115 वें वर्ष तक की कुल आयु = 1840320000+120533115 = 1960853115 वर्ष . अब इसमें प्रत्येक चतुर्युग के संधि काल के समय जो षष्ठांश के बराबर होता है तथा कल्पों के प्रारम्भ और अन्त की सन्ध्या के काल समय जो एक संध्या काल एक त्रेता युग के बराबर होता है, को जोड़ लें। अत: वर्तमान मे 1972949120 वां वर्ष चल रहा है और बचे हुए 2347050880 वर्ष भोगने है जो इस प्रकार है ... सृष्टि की बची हुई आयु = सृष्टि की कुल आयु - 1972949119 = 2347050881 वर्ष | यह गणना लिंग और स्कंध इत्यादि पुराणों से, पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य श्री निश्चलानन्द सरस्वती द्वारा उत्तरोत्तरित है। श्वेतवाराह कल्प के मनु[संपादित करें]
References[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]"भारतीय मूलत: देव हैं=[[5 मार्च]] [[2008]]". ताप्तीलोक. मूल (पीएचपी) से 16 अक्तूबर 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 25 जून 2008. 1 कल्प में कितने महायुग होते हैं?1000 महायुग= 1 कल्प = चार अरब बत्तीस करोड़ मानव वर्ष; और यही सूर्य की खगोलीय वैज्ञानिक आयु भी है.
1 मनु के बराबर कितने युग होते हैं?71 महायुग मिलकर एक 'मन्वंतर' बनाता है। महायुग की अवधि 43 लाख 20 हज़ार वर्ष मानी गई है। 14 मन्वंतरों का एक 'कल्प' होता है। प्रत्येक मन्वंतर में सृष्टि का एक मनु होता है और उसी के नाम पर उस मन्वंतर का नाम पड़ता है।
मनु कितने होते है?हिंदू धर्म में स्वायंभुव मनु के ही कुल में आगे चलकर स्वायंभुव सहित कुल मिलाकर क्रमश: १४ मनु हुए। महाभारत में ८ मनुओं का उल्लेख मिलता है व श्वेतवराह कल्प में १४ मनुओं का उल्लेख है।
एक युग में कितने मन्वंतर होते हैं?सृष्टि कि कुल आयु : 4320000000वर्ष इसे कुल 14 मन्वन्तरों मे बाँटा गया है. वर्तमान मे 7वें मन्वन्तर अर्थात् वैवस्वत मनु चल रहा है. इस से पूर्व 6 मन्वन्तर जैसे स्वायम्भव, स्वारोचिष, औत्तमि, तामस, रैवत, चाक्षुष बीत चुके है और आगे सावर्णि आदि 7 मन्वन्तर भोगेंगे.
|