एक भाषा में निहित अर्थ को दूसरी भाषा में परिवर्तित करना अनुवाद के किस स्वरूप के अंतर्गत आता है? - ek bhaasha mein nihit arth ko doosaree bhaasha mein parivartit karana anuvaad ke kis svaroop ke antargat aata hai?

एक भाषा में निहित अर्थ को दूसरी भाषा में परिवर्तित करना अनुवाद के किस स्वरूप के अंतर्गत आता है? - ek bhaasha mein nihit arth ko doosaree bhaasha mein parivartit karana anuvaad ke kis svaroop ke antargat aata hai?
अनुवाद का स्वरूप | Format of Translation in Hindi

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अनुवाद का स्वरूप 

अनुवाद के स्वरूप : अनुवाद के स्वरूप के सन्दर्भ में विद्वानों में मतभेद है। कुछ विद्वान अनुवाद की प्रकृति को ही अनुवाद का स्वरूप मानते हैं, जबकि कुछ भाषाविज्ञानी अनुवाद के प्रकार को ही उसके स्वरूप के अन्तर्गत स्वीकारते हैं। इस सम्बन्ध में डॉ० रवीन्द्रनाथ श्रीवास्तव का मत ग्रहणीय है। उन्होंने अनुवाद के स्वरूप को सीमित और व्यापक के आधार पर दो वर्गों में बाँटा है। इसी आधार पर अनुवाद के सीमित स्वरूप और व्यापक स्वरूप की चर्चा की जा रही है।

अनुवाद का सीमित स्वरूप : अनुवाद के स्वरूप को दो संदर्भो में बाँटा जा सकता है-

1.अनुवाद का सीमित स्वरूप तथा
2.अनुवाद का व्यापक स्वरूप

अनुवाद की साधारण परिभाषा के अंतर्गत पूर्व में कहा गया है कि अनुवाद में एक भाषा के निहित अर्थ को दूसरी भाषा में परिवर्तित किया जाता है और यही अनुवाद का सीमित स्वरूप है। सीमित स्वरूप (भाषांतरण संदर्भ) में अनुवाद को दो भाषाओं के मध्य होने वाला ‘अर्थ’ का अंतरण माना जाता है। इस सीमित स्वरूप में अनुवाद के दो आयाम होते हैं-

1. पाठधर्मी आयाम तथा
2.प्रभावधर्मी आयाम

पाठधर्मी आयाम के अंतर्गत अनुवाद में स्रोत -भाषा पाठ केन्द्र में रहता है जो तकनीकी एवं सूचना प्रधान सामग्रियों पर लागू होता है। जबकि प्रभावधर्मी अनुवाद में स्रोत-भाषा पाठ की संरचना तथा बुनावट की अपेक्षा उस प्रभाव को पकड़ने की कोशिश की जाती है जो स्रोत- भाषा के पाठकों पर पड़ा है। इस प्रकार का अनुवाद सृजनात्मक साहित्य और विशेषकर कविता के अनुवाद में लागू होता है।

अनुवाद का व्यापक स्वरूप : अनुवाद के व्यापक स्वरूप (प्रतीकांतरण संदर्भ) में अनुवाद को दो भिन्न प्रतीक व्यवस्थाओं के मध्य होने वाला ‘अर्थ’ का अंतरण माना जाता है। ये प्रतीकांतरण तीन वर्गों में बाँटे गए हैं-

1.अंतः भाषिक अनुवाद (अन्वयांतर),
2. अंतर भाषिक (भाषांतर),
3. अंतर प्रतीकात्मक अनुवाद (प्रतीकांतर)

‘अंतः भाषिक’ का अर्थ है एक ही भाषा के अंतर्गत। अर्थात् अंतः भाषिक अनुवाद में हम एक भाषा के दो भिन्न प्रतीकों के मध्य अनुवाद करते हैं। उदाहरणार्थ, हिन्दी की किसी कविता का अनुवाद हिन्दी गद्य में करते हैं या हिन्दी की किसी कहानी को हिन्दी कविता में बदलते हैं तो उसे अंतःभाषिक अनुवाद कहा जाएगा। इसके विपरीत अंतर भाषिक अनुवाद में हम दो भिन्न- भिन्न भाषाओं के भिन्न-भिन्न प्रतीकों के बीच अनुवाद करते हैं।

अंतर भाषिक अनुवाद में अनुवाद को न केवल स्रोत-भाषा में लक्ष्य-भाषा की संरचनाओं, उनकी प्रकृतियों से परिचित होना होता है, वरन् उनकी सामाजिक -सांस्कृतिक परम्पराओं, धार्मिक विश्वासों, मान्यताओं आदि की सम्यक् जानकारी भी उसके लिए बहुत जरूरी है। अन्यथा वह अनुवाद के साथ न्याय नहीं कर पाएगा। अंतर प्रतीकात्मक अनुवाद में किसी भाषा की प्रतीक व्यवस्था से किसी अन्य भाषेत्तर प्रतीक व्यवस्था में अनुवाद किया जाता है।

अंतर प्रतीकात्मक अनुवाद में प्रतीक-1 का संबंध तो भाषा से ही होता है, जबकि प्रतीक-2 का संबंध किसी दृश्य माध्यम से होता है। उदाहरण के लिए अमृता प्रीतम के ‘पिंजर’ उपन्यास को हिन्दी फिल्म ‘पिंजर’ में बदला जाना अंतर-प्रतीकात्मक अनुवाद है।

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एक भाषा से दूसरी भाषा में अनुवाद को क्या कहते हैं?

अग्रंजी का ट्रांसलेशन शब्द भी लैटिन के दो शब्दों Trans तथा lation के संयोग से बना है जिसका अर्थ होता है-पार ले जाना। वस्तुतः अनुवाद में एक भाषा में कही गई बात को दूसरी भाषा में ले जाया जाता है। अत: एक भाषा के पार (दूसरी भाषा में) ले जाने की प्रक्रिया के लिए ही ट्रांसलेशन शब्द अंग्रेजी में प्रचलित हो गया।

अनुवाद क्या है परिभाषा देते हुए अनुवाद के स्वरूप को स्पष्ट कीजिए?

अनुवाद की परिभाषा (Definition of Translation) नाइडा : 'अनुवाद का तात्पर्य है स्रोत-भाषा में व्यक्त सन्देश के लिए लक्ष्य-भाषा में निकटतम सहज समतुल्य सन्देश को प्रस्तुत करना। यह समतुल्यता पहले तो अर्थ के स्तर पर होती है फिर शैली के स्तर पर। '

विचारों को एक भाषा से दूसरी भाषा में रूपांतरित करना अनुवाद है अनुवाद की यह परिभाषा निम्नलिखित में से किसकी है?

भोलानाथ तिवारी : 'किसी भाषा में प्राप्त सामग्री को दूसरी भाषा में भाषान्तरण करना अनुवाद है, दूसरे शब्दों में एक भाषा में व्यक्त विचारों को यथा सम्भव और सहज अभिव्यक्ति द्वारा दूसरी भाषा में व्यक्त करने का प्रयास ही अनुवाद है। सम्प्रेषित किया जाता है ।

अनुवाद का स्वरूप क्या है?

अनुवाद शब्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के 'वद्' धातु से हुई है। 'अनुवाद' का शाब्दिक अर्थ है 'पुन:कथन' अर्थात किसी कही गई बात को फिर से कहना। यह भी कहा जा सकता है कि एक भाषा में व्यक्त विचारों को दूसरी भाषा में ज्यों को त्यों प्रकट करना ही अनुवाद है।