देश की अर्थव्यवस्था में सुधार की मौजूदा प्रक्रिया और मध्यम अवधि की वृद्धि संभावनाएं ऊर्जा क्षेत्र के प्रतिकूल परिदृश्य से प्रभावित हो सकती हैं। कोयला आपूर्ति में कमी कई राज्यों में बिजली की उपलब्धता को प्रभावित कर रही है और यह बात महत्त्वपूर्ण समय में औद्योगिक उत्पादन को प्रभावित कर सकती है। अब सरकार ने बिजली उत्पादकों से कहा है कि वे कमी दूर करने के लिए कोयला आयात करें। मौजूदा हालात बनने की कई वजह हैं। बिजली उत्पादन औद्योगिक मांग से तालमेल नहीं रख सका है जबकि देर तक बारिश होने से कोयले का उत्पादन प्रभावित हुआ है। हालांकि कोल इंडिया जो कोयले की मांग का 80 फीसदी पूरा करती है, वह उत्पादन बढ़ा रही है लेकिन मौजूदा संकट सरकारी एजेंसियों के बीच खराब तालमेल और योजना के कारण उपजा है। बिजली उत्पादक कंपनियों से अब कोयला आयात करने को कहने से ही अंदाजा लगता है कि क्षेत्र का प्रबंधन किस प्रकार हो रहा है। सरकार ने गत वर्ष कोयला आयात समाप्त करने के लिए तारीख तय की थी। इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले की कीमतें रिकॉर्ड ऊंचाई के करीब हैं और वे गत माह से 36 फीसदी अधिक हैं। लगता तो यही है कि घरेलू कोयला उत्पादन बढ़ाया जाएगा और आने वाले दिनों में हालात सुधरेंगे। लेकिन भारत की समस्या कोयले तक सीमित नहीं है। वैश्विक बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बीते एक वर्ष में दोगुनी हो चुकी हैं जबकि प्राकृतिक गैस के दाम भी बढ़े हैं। ढांचागत और चक्रीय कारणों से निकट भविष्य में भी कीमतें ऊंची बनी रह सकती हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार से मांग में तेजी आई है और आपूर्ति उससे तालमेल नहीं मिला पा रही है। इसके लिए आंशिक रूप से विभिन्न उथलपुथल भी उत्तरदायी हैं। मिसाल के तौर पर हरीकेन इडा ने मैक्सिको की खाड़ी में उत्पादन को काफी प्रभावित किया। लेकिन आपूर्ति में बुनियादी दिक्कतें भी हैं। बीते कुछ वर्षों से ऊर्जा कीमतों में कमी बनी हुई थी और नवीकरणीय ऊर्जा की ओर स्थानांतरण के कारण जीवाश्म ईंधन क्षमताओं में कमी आई है। बढ़ती आर्थिक गतिविधियों के कारण मांग में इजाफा हुआ है और मध्यम अवधि में कीमतें ऊंची बनी रह सकती हैं। स्वच्छ ऊर्जा पर ध्यान देने से जीवाश्म ईंधन में निवेश कम बना रहेगा। चूंकि समय के साथ जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होती जाएगी तो कीमतें ऊंची बनी रह सकती हैं। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के ताजा आर्थिक परिदृश्य में प्रस्तुत अध्ययन के मुताबिक लिथियम, निकल और कोबाल्ट की कीमतों में अहम तेजी आएगी क्योंकि ऊर्जा माध्यम में बदलाव में इनकी अहम भूमिका है। यदि बदलाव की गति धीमी रही तो जीवाश्म ईंधन की मांग बढ़ेगी। इन बातों का हमारे देश और नीतिगत प्रतिष्ठान पर असर होगा इसलिए बेहतर होगा कि भविष्य की तैयारी रखी जाए। अपनी ऊर्जा जरूरतों के अधिकतर हिस्से के लिए हम आयात पर निर्भर हैं इसलिए हमें लगातार ऊंची कीमतों के लिए तैयार रहना चाहिए। इसका मुद्रास्फीति, वृद्धि और चालू खाते के प्रबंधन पर सीधा असर होगा। भारत स्वच्छ ऊर्जा की दिशा में बदलाव के लिए भी आयात पर निर्भर रहेगा क्योंकि अधिकांश जरूरी चीजें चंद देशों में ही उत्पादित होती हैं। ऐसे में जीवाश्म ईंधन और नवीकरणीय की ओर बदलाव, दोनों के लिए तैयारी रखनी होगी। जलवायु परिवर्तन नवीकरणीय ऊर्जा की दिशा में बढ़ते कदमों को प्रभावित कर सकता है। मसलन यूरोप में हवा की गति में आ रहा धीमापन जैसी घटना पवन ऊर्जा क्षमता को प्रभावित कर सकती है। ऐसी बातों का भी ध्यान रखना होगा। हमें ऊर्जा कीमतों में भी सुधार करना होगा, खासतौर पर बिजली की कीमतों में। ऐसे हालात में कच्चे माल की बढ़ी लागत उपभोक्ताओं पर डाली जानी चाहिए। इससे आपूर्ति में निरंतरता आएगी। इसके लिए वितरण कंपनियों में भी सुधार करना होगा। कुल मिलाकर ऊर्जा नीति की तैयारी भारतीय अर्थव्यवस्था को वैश्विक बाजार की उथलपुथल के प्रभाव से बचाने में मदद करेगी। केन्द्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस तथा इस्पात मंत्री श्री धर्मेन्द्र प्रधान, केन्द्रीय कोयला, खान और संसदीय मामलों के मंत्री श्री प्रह्लाद जोशी, केन्द्रीय ऊर्जा और नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) राज कुमार सिंह, नीति आयोग के उपाध्यक्ष श्री राजीव कुमार, अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) के कार्यकारी निदेशक एवं राजदूत डॉ. फतेह बिरोल तथा नीति आयोग के सीईओ श्री अमिताभ कांत ने आज नई दिल्ली में संयुक्त रूप से भारत की ऊर्जा नीति रिपोर्ट की समीक्षा लॉन्च किया। यह समीक्षा रिपोर्ट अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) द्वारा तैयार की गई है। श्री धर्मेन्द्र प्रधान ने डॉ. फतेह बिरोल और उनकी आईईए की टीम को भारत के ऊर्जा क्षेत्र के संबंध में विस्तृत रिपोर्ट बनाने के लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि कि रिपोर्ट में कही गई बातें प्रधानमंत्री के ऊर्जा विजन को हासिल करने की दिशा में किए गए महत्वपूर्ण कार्यों की पुष्टि करती हैं। ऊर्जा विजन के महत्वपूर्ण घटक हैं – ऊर्जा तक पहुंच, ऊर्जा दक्षता, ऊर्जा का दीर्घावधि प्रयोग और ऊर्जा सुरक्षा। ऊर्जा न्याय, ऊर्जा विजन के केन्द्र में है। श्री प्रधान ने कहा कि भारत अब दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा ऊर्जा उपभोक्ता है। भारत अपने ऊर्जा क्षेत्र में एक बड़े बदलाव के दौर में है। सरकार की ऊर्जा नीतियां स्पष्ट रूप से दिखाती हैं कि हम जिम्मेदारी के साथ तथा दीर्घावधि उपयोग को ध्यान में रखते हुए इस ऊर्जा बदलाव को अपनाने के लिए प्रतिबद्ध है। श्री धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा कि 2015 से भारत सरकार द्वारा शुरू की गई कई पहलों ने भारत की स्थायी ऊर्जा के प्रति प्रतिबद्धता को स्पष्ट किया है। “एक विकासशील देश के रूप में हमारी प्रमुख चुनौती ऊर्जा की बढ़ती मांग को पूरा करना है। देश की प्रति व्यक्ति ऊर्जा खपत वैश्विक औसत से कम है। भारत ने हाल के वर्षों में आधुनिक ऊर्जा तक सार्वभौमिक पहुंच प्राप्त करने की दिशा में काफी प्रगति की है। इसमें शामिल है – लोगों के लिए खाना पकाने का स्वच्छ ईंधन, बिजली एवं किफायती, सुरक्षित और स्वच्छ ऊर्जा की उपलब्धता। सभी के लिए ऊर्जा संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य 7 (एसडीजी-7) है। इस दिशा में देश में हुई प्रगति को समीक्षा रिपोर्ट में उचित स्थान दिया गया है। रिपोर्ट में आने वाले दिनों की मुख्य चुनौतियों को भी स्पष्ट किया गया है। उज्ज्वला योजना के बारे में श्री प्रधान ने कहा कि देश के सुदूर क्षेत्रों में भी स्वच्छ ईंधन उपलब्धता सुनिश्चित की गई है। एलपीजी को प्रोत्साहन देने से संबंधित अपने अनुभव को हम अफ्रीका और एशिया के देशों के साथ साझा कर रहे हैं। हमें लंबी दूरी तय करनी है और हमें यह सुनिश्चित करना है कि योजनाओं का क्रियान्वयन देश के सभी हिस्सों तक समान रूप से हो। श्री प्रधान ने कहा कि भारत का गैस आधारित अर्थव्यवस्था में बदलाव, स्वदेश में उत्पादित जैव ईंधन, नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा दक्षता उपायों से कार्बन उत्सर्जन की मात्रा में महत्वपूर्ण कमी आएगी। हमारा प्रयास है कि तेल और गैस आधारित अवसंरचना का निर्माण किया जाए और सभी नागरिकों को किफायती ऊर्जा की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए। रिपोर्ट में इस बात की तस्दीक की गई है कि भारत गैस आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ रहा है। श्री प्रधान ने कहा कि तेल और गैस ढांचागत संरचना के लिए 100 बिलियन डॉलर के निवेश की योजना तैयार की गई है। गैस पाइपलाइन नेटवर्क देश के एक कोने को दूसरे कोने - पश्चिमी भारत के कच्छ से पूर्वी भारत के कोहिमा तक और उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक - से जोड़ेगी। पूर्वोत्तर क्षेत्र के 8 देशों में 1656 किलोमीटर लंबी गैस पाइप लाइन बिछाई जाएगी। पूर्वोत्तर गैस ग्रिड परियोजना के तहत तैयार होने वाली इस गैस पाइप लाइन का अनुमानित लागत 9265 करोड़ रुपये है और सरकार ने पूंजीगत अनुदान/ संभावना अंतर कोष के रूप में लागत की 60 प्रतिशत धनराशि देने की मंजूरी दी है। श्री प्रधान ने कहा कि 400 से अधिक जिलों में सरकार सिटी गैस वितरण नेटवर्क का निर्माण करेगी। यह नेटवर्क भारत के 50 प्रतिशत भौगोलिक क्षेत्र को कवर करेगा और इस नेटवर्क से 72 प्रतिशत आबादी को स्वच्छ और किफायती गैस की उपलब्धता सुनिश्चित होगी। प्राकृतिक गैस पर एक कार्यशाला का आयोजन 23 जनवरी को नई दिल्ली में होगा। इस कार्यशाला में सभी हितधारक भाग लेंगे। श्री प्रधान ने कहा कि इन पहलों से मुझे विश्वास है कि भारत के गैस क्षेत्र का परिदृश्य बदल जाएगा। श्री प्रधान ने कहा कि रिपोर्ट में ऊर्जा सुरक्षा को महत्वपूर्ण नीति प्राथमिकता के रूप में सरकार द्वारा मान्यता देने की बात कही गई है। आईईए ने भारत की तेल आपात्त प्रतिक्रिया नीति को लागू करने के लिए अनुशंसाएं की है। वैश्विक तेल सुरक्षा के मामलों पर देश अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने के लिए निरंतर कार्य कर रहा है। ऊर्जा विभिन्न देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार संबंधों के केन्द्र में रही है। वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य में भारत एक महत्वपूर्ण रणनीतिक देश के रूप में स्थापित हुआ है। तेल स्रोतों की विभिन्नताओं और ऊर्जा के वैकल्पिक स्रोतों के विकास के बारे में श्री प्रधान ने कहा कि हम तेजी से इस रास्ते पर बढ़ रहे हैं। देश 2030 तक पेट्रोल में 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रित करने और डीजल में 5 प्रतिशत बायो-डीजल मिश्रित करने का लक्ष्य हासिल कर लेगा। राष्ट्रीय जैव ईंधन नीति में अपशिष्ट से संपत्ति निर्माण को विशेष महत्व दिया गया है। हमारा लक्ष्य कृषि अवशेषों एवं घरों से निकलने वाले अपशिष्टों से विभिन्न प्रकार के जैव ईंधन तैयार करना है। उन्होंने कहा कि हमने निवेश अनुकूल वातावरण सुनिश्चित करने के लिए कई उपाय किए हैं। आईईए ने उल्लेख किया है कि 2015 से 2018 के दौरान भारत के ऊर्जा क्षेत्र में किया गया निवेश दुनिया का दूसरा सबसे अधिक निवेश है। हमें इस बात की खुशी है कि विश्व की जानी-मानी तेल व गैस कंपनियों जैसे – साउदी अरामको, एडीएनओसी, बीपी, शेल, टोटल, रोजनैफ्ट, एक्जॉन मोबिल की भारत में महत्वपूर्ण उपस्थिति है। |