Free Show HCS (Haryana) CT 1: Indian Polity 10 Questions 10 Marks 12 Mins Latest Haryana Civil Services Updates Last updated on Sep 21, 2022 Haryana Public Service Commission (HPSC) has released the final answer key for the HPSC Civil Services Prelims 2021. The Prelims exam was successfully conducted on 24th July 2022. Candidates can access the answer key by entering their applicant numbers and roll numbers. Candidates who will qualify for the Prelims exam will be selected for the Mains round. The Mains exam of the HPSC Civil Services is scheduled to be conducted from 29th October to 30th October 2022. Know the Haryana Civil Services answer key details here. भारत- म्यान्मार संबंध
1882 में कोलकाता में बर्मा के दूत भारत और म्यान्मार दोनों पड़ोसी हैं। इनके सम्बन्ध अत्यन्त प्राचीन और गहरे हैं और आधुनिक इतिहास के तो कई अध्याय बिना एक-दूसरे के उल्लेख के पूरे ही नहीं हो सकते। आधुनिक काल में 1937 तक बर्मा भी भारत का ही भाग था और ब्रिटिश राज के अधीन था। बर्मा के अधिकतर लोग बौद्ध हैं और इस नाते भी भारत का सांस्कृतिक सम्बन्ध बनता है। पड़ोसी देश होने के कारण भारत के लिए बर्मा का आर्थिक, राजनीतिक और रणनीतिक महत्व भी है। यह नहीं भूलना चाहिए कि यह वही बर्मा है जहाँ भारतीय स्वाधीनता की पहली संगठित लड़ाई का अगुवा बहादुरशाह ज़फर कैद कर रखा गया और वहीं उसे दफ़नाया गया। बरसों बाद बाल गंगाधर तिलक को उसी बर्मा की माण्डले जेल में कैद रखा गया। रंगून और माण्डले की जेलें अनगिनत स्वतन्त्रता सेनानियों के बलिदानों की साक्षी हैं। उस बर्मा में बड़ी संख्या में गिरमिटिया मजदूर ब्रिटिश शासन की गुलामी के लिए ले जाए गए और वे लौट कर नहीं आ सके। इनके आलावा रोज़गार और व्यापार के लिए गए भारतियों की भी बड़ी संख्या वहाँ निवास करती है। यह वही बर्मा है जो कभी भारत की पॉपुलर संस्कृति में ‘मेरे पिया गए रंगून, वहाँ से किया है टेलीफून’ जैसे गीतों में दर्ज हुआ करता था। भारत के लिए म्यान्मार का महत्व बहुत ही स्पष्ट है : भारत और म्यान्मार की सीमाएँ आपस में लगती हैं जिनकी लम्बाई 1600 किमी से भी अधिक है तथा बंगाल की खाड़ी में एक समुद्री सीमा से भी दोनों देश जुड़े हुए हैं। अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मणिपुर और नागालैंड की सीमा म्यान्मार से सटी हुई है। म्यान्मार के साथ चहुंमुखी सम्बन्धों को बढ़ावा देना भारत के पूर्वोत्तर राज्यों के आर्थिक परिवर्तन के लिए महत्वपूर्ण है। यह क्षेत्र दुर्गम पहाड़ और जंगल से घिरा हुआ है। इसके एक तरफ भारतीय सीमा में चीन की तत्परता भारत के लिए चिन्ता का विषय है तो दूसरी तरफ भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में अलगाववादी ताकतों की सक्रियता और घुसपैठ की संभावनाओं को देखते हुए बर्मा से अच्छे सम्बन्ध बनाये रखना भारत के लिए अत्यावश्यक है। भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी म्यान्मार बहुत महत्वपूर्ण है। दोनों देशों ने सीमा क्षेत्र से बाहर प्रचालन करने वाले भारतीय विद्रोहियों से लड़ने के लिए वास्तविक समयानुसार आसूचना को साझा करने के लिए सन्धि की है। इस सन्धि में सीमा एवं समुद्री सीमा के दोनों ओर समन्वित रूप से गस्त लगाने की परिकल्पना है तथा इसके लिए सूचना का आदान–प्रदान आवश्यक है ताकि विद्रोह, हथियारों की तस्करी तथा ड्रग, मानव एवं वन्य जीव के अवैध व्यापार से संयुक्त रूप से निपटा जा सके। स्पष्ट है कि भारत म्यान्मार के साथ अपने सम्बन्ध को बिगाड़ने के पक्ष में कभी नहीं रहा है। वहीं म्यान्मार की फौजी सरकार भी भारत के साथ सम्बन्ध बिगाड़ने के पक्ष में नहीं रही है क्योंकि पूर्वोत्तर के भारतीय राज्यों से सीमा के सटे होने के अलावा म्यान्मार का पूरा तटवर्तीय क्षेत्र बंगाल की खाड़ी के जरिए भारत से जुड़ा हुआ है। इसकी कुल लम्बाई लगभग 2,276 किलोमीटर है। अतः भारत के लिए म्यान्मार का बड़ा महत्त्व है। आसियान का सदस्य है, बल्कि तेजी से बढ़ते पूर्व और दक्षिणपूर्व एशिया की अर्थव्यवस्था का एक द्वार भी है। इसके अलावा पूर्वोत्तर भारत में बढ़ती अलगाववादी गतिविधियों के मद्देनजर भी म्यांमार से भारत के रिश्ते का महत्त्व है। 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद फौजी सरकार के सूचना मन्त्री ने असम के उल्फा, मणिपुर के पीएलए और नागालैण्ड के एनएससीएन पर कार्यवाही के लिए तत्पर होने का भरोसा जताया था। भारत, म्यान्मार के जरिए थाईलैंड और वियतनाम के साथ सम्बन्ध मजबूत कर सकता है। भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी और म्यांमार के राष्ट्रपति थेइन सेइन (सन २०१४ में० दक्षिण एशिया एवं दक्षिणपूर्व एशिया के बीच सेतु के रूप में म्यांमार ने भारत के राजनयिक क्षेत्र को बहुत ज्यादा आकर्षित किया है। व्यवसाय, संस्कृति एवं राजनय के मिश्रण की दृष्टि से दोनों देशों के बीच मजबूत संबंध है। बौद्ध धर्म, व्यवसाय, बॉलीवुड, भरतनाट्यम और बर्मा का टीक (साल) – ये 5 'बी' (B) हैं जो आम जनता की दृष्टि से भारत-म्यान्मार सम्बन्ध का निर्माण करते हैं। 1951 की मैत्री सन्धि पर आधारित द्विपक्षीय सम्बन्ध समय की कसौटी पर खरे उतरे हैं तथा एक दुर्लभ गतिशीलता एवं लोच का प्रदर्शन किया है। यह विडम्बना ही है कि पिछले कई वर्षों से बर्मा भारत की विदेश-नीति और राजनीतिक विमर्श में लगभग अनुपस्थित रहा है। 1987 में तत्कालीन प्रधान मन्त्री राजीव गांधी की यात्रा ने भारत और म्यान्मार के बीच मजबूत सम्बन्ध की नींव रखी। कुछ साल पहले म्यान्मार में राजनीतिक एवं आर्थिक सुधारों के बाद से पिछले चार वर्षों में भारत-म्यान्मार सम्बन्धों में महत्वपूर्ण उछाल आया है। राष्ट्रपति यू थिन सेन 12 से 15 अक्टूबर, 2011 के दौरान भारत यात्रा पर आए थे जो मार्च, 2011 में म्यान्मार की नई सरकार के शपथ लेने के बाद से म्यान्मार की ओर से भारत की पहली राजकीय यात्रा थी। इसके बाद भारत के तत्कालीन प्रधान मन्त्री डॉ॰ मनमोहन सिंह की 27 से 29 मई, 2012 के दौरान म्यांमार की यात्रा ने परिवर्तन का मार्ग प्रशस्त किया जो एक महत्वपूर्ण मील पत्थर साबित हुई जिसके दौरान दोनों पक्षों ने दर्जनों करारों पर हस्ताक्षर किए तथा भारत ने म्यान्मार को 50 करोड़ अमरीकी डालर के लिए एक नई लाइन ऑफ़ क्रेडिट (एल ओ सी) प्रदान की। राष्ट्रपति थिन सेन ने दिसम्बर, 2012 में नई दिल्ली में आयोजित भारत–आसियान संस्मारक शिखर बैठक में भाग लिया तथा मुम्बई एवं रत्नागिरी का भी दौरा किया। डॉ॰ मनमोहन सिंह ने बिम्सटेक शिखर बैठक के लिए मार्च, 2014 में फिर से म्यांमार का दौरा किया। मई 2014 में भारत में श्री नरेन्द्र मोदी सरकार की "पड़ोसी पहलें" की नीति फिर से द्विपक्षीय वार्ता के लिए और साथ ही आसियान, पूर्वी एशिया शिखर बैठक तथा आसियान क्षेत्रीय मंच से जुड़ी मन्त्री स्तरीय बैठकों में भाग लेने के लिए 8 से 11 अगस्त, 2014 तक भारत की विदेश मन्त्री श्रीमती सुषमा स्वराज की पहली म्यान्मार यात्रा ही। आर्थिक सम्बन्धों में वृद्धि[संपादित करें]ऊर्जा एवं संसाधन की दृष्टि से समृद्ध म्यान्मार 'अवसर की धरती' के रूप में उभरा है। 3 वर्ष पहले जिन आर्थिक एवं राजनीतिक सुधारों को शुरू किया उससे दोनों देश अपने आर्थिक सम्बन्धों को सुदृढ़ करने के लिए प्रतिबद्ध दिखते हैं। जो द्विपक्षीय व्यापार 1980 के दशक के पूर्वार्ध में मात्र 1.2 करोड़ अमरीकी डॉलर था वह आज 2 बिलियन अमरीकी डालर के आसपास पहुँच गया है। अनेक भारतीय कम्पनियाँ पहले ही म्यान्मार में अपना डेरा जमा चुकी हैं तथा वहां काम कर रही हैं। इनमें अन्य कम्पनियों के अलावा सरकारी स्वामित्व वाली कम्पनी ओ एन जी सी विदेश लिमिटेड (ओ वी एल), जुबिलाण्ट आयल गैस, सेंचुरी प्लाई, टाटा मोटर्स, एस्सार एनर्जी, राइट्स, एस्कॉर्ट, रेन्बेक्सी, कैडिला हेल्थकेयर लिमिटेड, डा. रेड्डी लैब, सिपला एवं अपोलो जैसे नाम शामिल हैं। शीर्ष भारतीय कम्पनियाँ अनेक उद्योगों में 2.6 अरब अमरीकी डॉलर का निवेश करना चाहती हैं, जिसमें दूरसंचार, ऊर्जा एवं विमानन क्षेत्र शामिल हैं। जनता की शक्ति[संपादित करें]हालाँकि राजनय एवं व्यवसाय के अपने–अपने तर्क होते हैं परन्तु जन-दर-जन सम्पर्क भारत एवं म्यान्मार के बीच स्थायी मैत्री को एक विशेष महत्व प्रदान करता है। म्यान्मार में 25 लाख संख्या वाला एक मजबूत भारतीय समुदाय रहता है जो ज्यादातर यंगून एवं माण्डले में बसा हुआ है। म्यान्मार की प्रसिद्ध नेता आंग सान सू की का भारत से एक विशेष रिश्ता है। उन्होंने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज में उस समय पढ़ाई की थी जब उनकी माँ भारत में राजदूत के रूप में तैनात थी। भगवान बुद्ध का बोधस्थल बोध गया म्यान्मार के नेताओं के लिए ऐसा स्थल है जिसका वे दौरा अवश्य करते हैं और यह उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है। म्यान्मार के लोगों को भारत सरकार द्वारा भेंट स्वरूप दिया गया सारनाथ-शैली का बुद्ध स्तूप जिसे श्वेडागन पगोडा परिसर में स्थापित किया गया है, दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक एवं सभ्यतागत रिश्ते का एक ज्वलन्त उदाहरण है। शास्त्रीय एवं आधुनिक कला पर आधारित बॉलीवुड एवं भरतनाट्यम म्यान्मार में समान रूप से लोकप्रिय हैं और इस पड़ोसी देश के युवाओं एवं बुजुर्गों दोनों में योग को नए श्रद्धालु मिल रहे हैं। इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
भारत और म्यांमार के बीच कौन सी पर्वत श्रेणी है?अराकान योमा (Arakan Yoma), जिसे अराकान पर्वतमाला और रखाइन पर्वतमाला भी कहते हैं, पश्चिमी बर्मा की एक पर्वतमाला है जो उस देश की भारत से सीमा निर्धारित करती है।
कौन सी पहाड़ी भारत को म्यांमार से अलग करती है?सही उत्तर लुशाई पहाड़ियाँ है।
भारत और म्यांमार की सीमा का नाम क्या है?भारत और म्यांमार के बीच 1600 किमी से अधिक लंबी भूमि सीमा तथा बंगाल की खाड़ी में एक समुद्री सीमा है। चार उत्तर पूर्वी राज्यों अर्थात अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, मणिपुर और मिजोरम की अंतर्राष्ट्रीय सीमा म्यांमार के साथ लगती है। धर्म, भाषा एवं नृजाति की दृष्टि से दोनों देशों की विरासत साझी है।
म्यांमार सीमा पर कौन सी पहाड़ी है?1. उत्तरी तथा पश्चिमी पहाड़ी क्षेत्र - यह 6,000 से 20,000 फुट तक ऊँचा है। इसमें बंगाल की खाड़ी तथा आराकान योमा पर्वत के मध्य की आराकन पट्टी भी शामिल है। 2.
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