भारत में राजतंत्र कब खत्म हुआ - bhaarat mein raajatantr kab khatm hua

नेपाल के पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र ने देश में सदियों पुराने राजतंत्र के एक बार फिर बहाल होने की उम्मीद जताई है.

नेपाल में राजशाही का अंत होने के बाद ज्ञानेंद्र को 2008 में अपदस्थ कर दिया गया था.

देश में गणतंत्र के लिए कई सालों से संघर्ष कर रहे माओवादियों ने 2008 में चुनाव जीतने के बाद राजा को अपदस्थ कर दिया था.

नेपाल में मौज़ूद बीबीसी संवाददाता जोआना जॉली का कहना है कि पूर्व राजा के इस बयान को गंभीरता से लिए जाने की उम्मीद कम है.

बीबीसी संवाददाता के मुताबिक ऐसी अटकलें हैं कि वो वापसी कर सकते हैं लेकिन मुख्यधारा की पार्टियों के नेताओं ने इसे अप्रासंगिक बताते हुए उनके बयान को खारिज कर दिया है.

नेपाल के एक टीवी चैनल को बुधवार को दिए साक्षात्कार में पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र ने कहा, ''मैं नहीं मानता कि राजशाही का अंत हो गया है.''

उन्होंने कहा, ''इतिहास दिखाता है कि राजशाही में उतार-चढ़ाव आता है. मैं वहीं करूंगा जो जनता चाहेगी.''

ज्ञानेंद्र उस समय सत्ता में आए थे जब उनके भतीजे दीपेंद्र ने अपने पूरे परिवार को गोली मारने के बाद ख़ुद को भी गोली मार ली थी.

ज्ञानेंद्र की लोकप्रियता में उस समय से कमी आने लगी जब उन्होंने 2005 में चुनी हुई सरकार को बर्खास्त कर अपना शासन स्थापित कर लिया.

उन्होंने कहा कि मुख्यधारा की पार्टियाँ माओवादी उग्रवाद से निपटने में असफल हो गई हैं.

लेकिन उनका यह प्रयास उल्टा तब पड़ गया जब लोगों ने संसद की बहाली के लिए बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन किया.

चुनावों में मिली जीत के बाद माओवादियों ने नेपाल को गणतंत्र घोषित कर दिया. इससे वहाँ 240 साल से चली आ रही राजशाही का मई 2008 में अंत हो गया.

ज्ञानेंद्र ने कहा, ''मैंने बिना किसी विरोध के सिंहासन छोड़ दिया जिससे यह देश शांति और समृद्धि देख सके. मेरे पूर्वजों ने इस देश को एकजुट किया और मुझे उम्मीद है कि यह टूटेगा नहीं.''

उनका यह बयान तब आया है जब देश का नया संविधान बनाने की कवायद चल रही है. संवाददाताओं का कहना है कि 28 मई की तय समय सीमा तक संविधान के बन जाने की संभावना बहुत कम है.

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। 28 मई की तारीख हर साल याद की जाती है। क्योंकि एक हिंदू राष्ट्र में चली आ रही राजशाही का 28 मई 2008 को ही अंत हो गया था। इस तरह से देखा जाए तो नेपाल में चली आ रही राजशाही का 240 साल के बाद अंत हो गया था। तत्कालीन नेपाल नरेश ज्ञानेंद्र को अपदस्थ कर देश को गणतंत्र घोषित किया गया। 28 मई 2008 को ही नेपाल के वामपंथी दल को चुनाव में जीत मिली थी, जिसके बाद नेपाल में संविधान बनाने और शांति के प्रयास शुरू किए गए।

भारतीय साम्राज्यों से प्रभावित हुआ पर यह दक्षिण एशिया का एकमात्र देश था जो ब्रिटिश उपनिवेशवाद से बचा रहा। हालांकि, अंग्रेजों से हुई लड़ाई (1814-16) और उसके परिणामस्वरूप हुई संधि में तत्कालीन नेपाली साम्राज्य के आधे से अधिक भूभाग ब्रिटिश इंडिया के तहत आ गया और आज भी ये भारतीय राज्य उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और पश्चिम बंगाल के अंश हैं। 1500 ईशा पूर्व के आसपास इन्डो-आर्यन जतियों ने काठमाडुं में प्रवेश किया। करीब 1000 ईसा पूर्व में छोटे-छोटे राज्य और राज्य संगठन बनें। सिद्धार्थ गौतम (ईसापूर्व 563–483) शाक्य वंश के राजकुमार थे, जिन्होंने अपना राजकाज त्याग कर तपस्वी का जीवन निर्वाह किया और वह बुद्ध बन गए।

नेपाल का प्राचीन काल सभ्यता, संस्कृति और र्शार्य की दृष्टि से बड़ा गौरवपूर्ण रहा है। प्राचीन काल में नेपाल राज्य की बागडोर क्रमश: गुप्तवंश, किरात वंशी, सोमवंशी, लिच्छवि, सूर्यवंशी राजाओं के हाथों में रही है। किरातवंशी राजा स्थुंको, सोमवंशी लिच्छवी, राजा मानदेव, राजा अंशुवर्मा के राज्यकाल बड़े गौरवपूर्ण रहे हैं। कला, शिक्षा, वैभव और राजनीति के दृष्टिकोण से लिच्छवि काल 'स्वर्णयुग' रहा है। जन साधारण संस्कृत भाषा में लिख पढ़ और बोल सकते थे। राजा स्वयं विद्वान्‌ और संस्कृत भाषा के मर्मज्ञ होते थे। 'पैगोडा' शैली की वास्तुकला बड़ी उन्नत दशा में थी और यह कला सुदूर चीन तक फैली हुई थी। मूर्तिकला भी समृद्ध अवस्था में थी।

धार्मिक सहिष्णुता के कारण् हिंदू धर्म और बौद्ध धर्म समान रूप से विकसित हो रहे थे। काफी वजनदार स्वर्ण मुद्राएं व्यवहार में प्रचलित थीं। विदेशों से व्यापार करने के लिए व्यापारियों का अपना संगठन था। वैदेशिक संबंध की सुदृढ़ता वैवाहिक संबंध के आधार पर कायम थी। ई. सन्‌ 880 में लिच्छवि राज्य की समाप्ति पर नुवाकोटे ठकुरी राजवंश का अभ्युदय हुआ। इस समय नेपाल राज्य की अवनति प्रारंभ हो गई थी। केंद्रीय शासन शिथिल पड़ गया था। फलत: नेपाल अनेक राजनीतिक इकाइयों में विभाजित हो गया। हिमालय के मध्य कछार में मल्लों का गणतंत्र राज्य कायम था। लिच्छवि शासन की समाप्ति पर मल्ल राजा सिर उठाने लगे थे।

सन्‌ 1350 ई. में बंगाल के शासक शमशुद्दीन इलियास ने नेपाल उपत्यका पर बड़ा जबरदस्त आक्रमण किया। धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक व्यवस्था अस्तव्यस्त हो गयी। सन्‌ 1480 ई. में अंतिम वैश राजा अर्जुन देव अथवा अर्जुन मल्ल देव को उनके मंत्रियों ने पदच्युत करके स्थितिमल्ल नामक राजपूत को राजसिंहासन पर बैठाया। इस समय तक केंद्रीय राज्य पूर्ण रूप से छिन्न-भिन्न होकर काठमाडों, गोरखा, तनहुँ, लमजुङ, मकबानपुर आदि लगभग तीस रियासतों में विभाजित हो गया था।

नेपाली राज परिवार व भारदारो के बीच गुटबन्दी की वजह से युद्ध के बाद अस्थायित्व कायम हुआ। सन 1846 में शासन कर रही रानी की सेनानायक जंगबहादुर राणा को पदच्युत करने षडयन्त्र की खुलासा होने से कोत पर्व नाम का नरसंहार हुआ। हथियारधारी सेना व रानी के प्रति वफादार भारदारो के बीच मार काट चलने से देश के सयां राजखलाक, भारदार लोग व दुसरे रजवाडो की हत्या हुई। जंगबहादुर की जीत के बाद राणा वंश उन्होने सुरुकिया व राणा शासन लागू किया। राजा को नाममात्र में सिमित किया व प्रधानमन्त्री पद को शक्तिशाली वंशानुगत किया गया। राणाशासक पूर्णनिष्ठा के साथ ब्रिटिस के पक्ष मे रहते थे व ब्रिटिश शासक को 1857 की सेपोई रेबेल्योन (प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम), व बादमे दोनों विश्व युद्ध सहयोग किया था।

सन 1923 मे संयुक्त अधिराज्य व नेपाल विच आधिकारिक रुप मे मित्रता की सम्झौता मे हस्ताक्षर हुआ, जिसमे नेपाल की स्वतन्त्रता को संयुक्त अधिराज्य ने स्वीकार किया। दक्षिण एशियाई मुल्कों में पहला, नेपाली राजदुतावास ब्रिटेन की राजधानी लंदन में खुल गया। इक्कसवीं सदी की शुरुआत में नेपाल में माओवादियों का आन्दोलन तेज होता गया। मधेशियों के मुद्दे पर भी आन्दोलन हुए। अन्त में सन् 2008 में राजा ज्ञानेन्द्र ने प्रजातांत्रिक चुनाव करवाए जिसमें माओवादियों को बहुमत मिला और प्रचण्ड नेपाल के प्रधानमंत्री बने और मधेशी नेता रामबरन यादव ने राष्ट्रपति का कार्यभार संभाला।

माओवादिओं ने राजनीति के मूलाधार से पृथक भूमिगत रूप से राजतन्त्र तथा मूलाधार के राजनैतिक दलों के विरुद्ध में गुरिल्ला युद्ध संचालन कर दिया। उन्होंने नेपाल की सामन्ती व्यवस्था (उन के अनुसार इसमें राजतन्त्र भी शामिल है) फेंक कर एक माओवादी राष्ट्र स्थापना करने का प्रण किया। इसी कारण से नेपाली गृहयुद्ध शुरु हो गया जिसके कारण 13000 लोगों की जान गई। इसी विद्रोह को दमन करने की पृष्ठभूमि में राजा ज्ञानेन्द्र ने सन् 2002 में संसद को विघटन तथा निर्वाचित प्रधानमन्त्री को अपदस्थ करके प्रधानमन्त्री मनोनित प्रक्रिया से शासन चलाने लगे।

सन् 2005 में उन्होंने एकल रूप में संकटकाल की घोषणा करके सब कार्यकारी शक्ति ग्रहण किया। सन् 2006 के लोकतान्त्रिक आन्दोलन (जनाअन्दोलन-2) के पश्चात राजा ने देश की सार्वभौम सत्ता जनता को हस्तान्तरित की तथा 24 अप्रैल 2006 को संसद की पुनर्स्थापना हुई। 18 मई 2006 को अपनी पुनर्स्थापित सार्वभौमिकता का उपयोग करके नए प्रतिनिधि सभा ने राजा के अधिकार में कटौती कर दी तथा नेपाल को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित कर दिया। नवनिर्वाचित संविधान निर्माण करने वाली संविधान सभा की पहली बैठक द्वारा 28 मई 2008 में नेपाल को आधिकारिक रूप में एक सन्घीय गणतन्त्रात्मक राष्ट्र घोषित किया गया। 

भारत में राजतंत्र कब समाप्त हुआ?

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। 28 मई की तारीख हर साल याद की जाती है। क्योंकि एक हिंदू राष्ट्र में चली आ रही राजशाही का 28 मई 2008 को ही अंत हो गया था।

दुनिया में कितने देशों में राजशाही है?

दुनिया के 43 देशों में आज भी है राजशाही, सबसे अधिक 2600 साल पुराना जापान का राजतंत्र एक जमाना था जब पूरी दुनिया में राजशाही चलती थी लेकिन अब बहुत से देशों ने लोकतंत्र को अपनाया और चुनी गयी सरकार उस देश को चलाती है। हालांकि अब भी दुनिया में लगभग 43 ऐसे देश है जिनपर राजा-रानी या राजकुमार का शासन है।

नेपाल में राजतंत्र को कब समाप्त किया गया था?

यह राज्य 240 वर्षों तक अस्तित्व में रहा जब तक कि 2008 में नेपाली राजशाही की समाप्ति हो गई।

कौन कौन से देश में राजतंत्र चलता है?

ज्यादातर देशों में राजशाही संवैधानिक हैं लेकिन कुछ देशों में शासन तरह से निरंकुशता या राजतन्त्र है. ऐसे देशों के नाम हैं; स्वाज़ीलैंड, ओमान, दारुस्सलाम, सऊदी अरब, वेटिकन, कतर, यूएई और बहरीन ।