भारत में पहली बार जातीय जनगणना कब हुई थी? - bhaarat mein pahalee baar jaateey janaganana kab huee thee?

नई दिल्ली : देश में जातीय जनगणना को लेकर सियासत गर्माने लगी है. सोमवार को बिहार के सीएम ओर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने पीएम मोदी से मुलाकात की. बिहार समेत कई राज्यों के क्षेत्रीय नेता इसकी मांग कर रहे हैं. हालांकि, केंद्र सरकार जातीय जनगणना से पहले ही मना कर चुकी है. दरअसल, जब देश में जनगणना होने वाली होती है तो इसकी जातीय जनगणना की मांग होती है. अब सवाल उठता है कि अखिर इसकी जरूरत क्या है?, क्यों इसकी मांग होती है. आखिरी बार जातीय जनगणना कब हुई थी?.

जातीय जनगणना की क्यों है आवश्यकता?
भारत में आजादी के बाद पहली बार 1951 में आबादी की जनगणना हुई थी. उसके बाद से अब तक 7 बार जनगणना हुई, जिसमें एसी और एसटी का जातिगत आकंड़े सार्वजनिक किए जाते है. बाकि जातियों का आकंड़ा सार्वजनिक नहीं किया जाता है. बताया जाता है कि जिसकी वजह से देश में ओबीसी की आबादी कितनी है, इसकी सही अनुमान नहीं लगाया जा सकता है. वीपी सिंह सरकार ने जिस मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू कर पिछड़ों को आरक्षण दिया, उसने भी 1931 की जनगणना को आधार मानकर देश में OBC की आबादी 52 प्रतिशत मानी थी. जातिगत जनगणना की मांग करने वालों का कहना है कि इससे पिछड़े-अति पिछड़े वर्ग के लोगों की शैक्षणिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक हालात का पता चलेगा और उनकी लिए नीति बनाई जा सकेगी.

कब हुई थी जातीय जनगणना?
साल 1881 में देश में पहली बार जनगणना कराई गई थी. इस जनगणना में भी जातिगत जनगणना के आंकड़े जारी किए गए थे. साल 1931 तक की जनगणना में जातिवार आंकड़े भी जारी किए जाते थे. साल 1941 की जनगणना में जातिवार आंकड़े जुटाए गए थे, लेकिन जारी नहीं किया गया था. बता दें कि साल 1881 के बाद से हर 10 साल पर जनगणना की जाती है.

सबसे पहले कब जातीय जनगणना की मांग उठी?
दरअसल, जब भी देश की आबादी की जनगणना होने वाली होती है उससे पहले इस तरह की मांग उठती है. खासतौर पर पिछड़ी जाति के नेताओं द्वारा इसकी मांग जोर शोर की जाती है. साथ ही अगड़ी जाति के नेता जातीय जनगणना का विरोध करते हुए दिखाई देते हैं. वहीं, इस बार भी जनगणना के पहले कई नेताओं ने जातीय जनगणना कराने की मांग की हैं.

केंद्र सरकार का क्या है रुख?
संसद के दोनों सदनों में गृह मंत्रालय ने बजट सत्र और मानसून सत्र में जातीय जनगणना से इनकार कर दिया है. गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने कहा है कि हर बार की तरह इस बार भी केवल SC और ST कैटेगरी की जातिगत जनगणना होगी. हालांकि, मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में सरकार का रुख ऐसा नहीं था.

जातियों के आंकड़े साल 2011 में जुटाए गए, लेकिन जारी नहीं हुए?
साल 2011 की जनगणना के दौरान यूपीए (UPA) सरकार ने सामाजिक आर्थिक जाति जनगणना (SECC) कराई थी. साल 2016 में मोदी सरकार ने जाति को छोड़कर SECC का बाकी डेटा जारी कर दिया था. जातियों का रॉ डेटा सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को सौंप दिया गया. जातियों के कैटेगराइजेशन और क्लासिफिकेशन के लिए मंत्रालय ने नीति आयोग के उपाध्यक्ष की अध्यक्षता में एक कमेटी बना दी। इस कमेटी ने क्या रिपोर्ट बनाई ये पब्लिश भी हुई या नहीं ये भी क्लियर नहीं है.

विषयसूची

  • 1 भारत में पहली बार जाति आधारित जनगणना कब हुई?
  • 2 वर्तमान में भारत के महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त कौन हैं?
  • 3 जाति जनगणना का मतलब क्या होता है?
  • 4 हिंदुस्तान में सबसे ज्यादा बिरादरी कौन सी है?

भारत में पहली बार जाति आधारित जनगणना कब हुई?

इसे सुनेंरोकेंइसका जवाब जानने से पहले ये जान लेना ज़रूरी है कि साल 1931 तक भारत में जातिगत जनगणना होती थी. साल 1941 में जनगणना के समय जाति आधारित डेटा जुटाया ज़रूर गया था, लेकिन प्रकाशित नहीं किया गया. साल 1951 से 2011 तक की जनगणना में हर बार अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का डेटा दिया गया, लेकिन ओबीसी और दूसरी जातियों का नहीं.

वर्तमान में भारत के महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त कौन हैं?

इसे सुनेंरोकेंभारत के महापंजीयक और जनगणना आयुक्‍त विवेक जोशी हैं. आजादी के बाद की सभी जनगणनाएं(1951 से अब तक) जनगणना अधिनियम 1948 के तहत कराई गई हैं.

भारत के महापंजीयक एवं जनगणना आयुक्त कौन है?

इसे सुनेंरोकेंविवेक जोशी है। Excerpt: Bharat Ka Mahapanjiyak evam Jangarana Aayukt (2021) Kaun Hai?

इसे सुनेंरोकेंCaste Based Census In India: स्‍वतंत्र भारत में 1951 से लेकर 2011 तक हुई हर जनगणना में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों का डेटा तो छपा है, मगर बाकी जातियों का नहीं। उससे पहले, 1931 तक होने वाली हर जनगणना में जाति पर डेटा रहता था।

जाति जनगणना क्यों जरूरी है?

इसे सुनेंरोकेंइससे नीति निर्माताओं को यह समझने में मदद मिलती है कि नीतियों को कैसे तय किया जाए ताकि लाभ बेहतर और समान रूप से बांटा जाए। यही कारण है कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग जो कि एक संवैधानिक निकाय है, ने जाति आधारित जनगणना की सिफारिश की है।

जाति जनगणना का मतलब क्या होता है?

इसे सुनेंरोकेंभारत की स्वतंत्रता के बाद 1951 से लेकर 2011 तक हर 10 साल में देश में जनगणना होती रही है। इस जनगणना में सिर्फ दलितों और आदिवासियों की ही आबादी की गिनती की जाती है, बाकी किसी जाति का अलग से रिकॉर्ड नहीं तैयार किया जाता है।

हिंदुस्तान में सबसे ज्यादा बिरादरी कौन सी है?

इसे सुनेंरोकेंभारत में ब्राह्मण जाति के लोग सबसे ज्यादा हैं, उसके बाद क्षत्रिय जाति के लोग आते है।

जातीय जनगणना से क्या फायदा है?

इसे सुनेंरोकेंयह आंकड़ा पता चलने से पिछड़ी जातियों को आरक्षण का लाभ देकर उन्हें सशक्त बनाया जा सकता है. इसके अलावा यह भी तर्क दिया जाता है कि जातीय जनगणना से किसी भी जाति की आर्थिक, सामाजिक और शिक्षा की वास्तविक का पता चल पाएगा. इससे उन जातियों के लिए विकास की योजनाएं बनाने में आसानी होगी.

भारत में प्रथम जातिगत जनगणना कब हुई थी?

वर्ष 1931 के बाद वर्ष 2011 में इसे पहली बार आयोजित किया गया था।

जातीय जनगणना कब होगा?

फरवरी 2023 तक पूरी होगी जातीय जनगणना तो वहीं जिला स्तर पर जिला प्रशासन इसके पदाधिकारी होंगे. इसके साथ ही पंचायत स्तर पर भी जिम्मेदारी तय होगी. जातीय जनगणना के लिए 500 करोड़ का प्रावधान बिहार आकस्मिक निधि से किया जाएगा. जातीय जनगणना के लिए 2023 फरवरी माह की डेडलाइन तय की गई है.

भारत में आखिरी बार जनगणना कब हुई थी?

अंतिम जनगणना 2011 में कराई गई थी, तथा आगामी जनगणना 2021 में कराई जाएगी। भारत की पहली आधिकारिक जनगणना किस वायसराय के शासनकाल में हुई थी? 1881 इस्वी में प्रथम नियमित दस वर्षीय जनगणना लॉर्ड रिपन के काल में शुरू हुई थी। तब से लेकर अब तक प्रत्येक 10 वर्ष के अंतराल पर जनगणना की जाती है।

जाति जनगणना क्या होता है?

कई नेताओं की मांग है कि जब देश में जनगणना की जाए तो इस दौरान लोगों से उनकी जाति भी पूछी जाए। इससे हमें देश की आबादी के बारे में तो पता चलेगा ही, साथ ही इस बात की जानकारी भी मिलेगी कि देश में कौन सी जाति के कितने लोग रहते है। सीधे शब्दों में कहे तो जाति के आधार पर लोगों की गणना करना ही जातीय जनगणना होता है।