भारत में लौह और इस्पात उद्योग द्वारा सामना की जाने वाली 9 समस्याएं - 426 शब्दों मेंपिछले 50 वर्षों के दौरान हमारे देश में पिग आयरन और स्टील के कुल उत्पादन में तेजी से वृद्धि हुई है। पिछले पचास वर्षों के दौरान पिग आयरन के उत्पादन में 10 गुना, स्टील सिल्लियों में 15 गुना और तैयार स्टील में 22 गुना से अधिक की वृद्धि हुई है। भारत ने वर्ष 2008-2009 में लगभग 41 लाख टन पिग आयरन और लगभग 500 लाख टन तैयार स्टील का उत्पादन किया। Show
भारत में लौह और इस्पात उद्योग की समस्याएं:मैं। लोहा और इस्पात उद्योग को भारी पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है, जिसे भारत जैसा विकासशील देश वहन नहीं कर सकता। ii. सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकांश संयंत्र अक्षम रूप से कार्य कर रहे हैं और इस प्रकार भारी नुकसान उठा रहे हैं। iii. भारत में प्रति व्यक्ति श्रम उत्पादकता दुनिया में सबसे कम है। iv. क्षमता के कम उपयोग से उत्पादन की उच्च लागत होती है। इसका मुख्य कारण हड़ताल और तालाबंदी है। v. पुरानी तकनीक को अद्यतन करने की आवश्यकता है और इसके लिए बहुत भारी निवेश की आवश्यकता है। vi. सरकार द्वारा कीमतों पर नियंत्रण भविष्य के उन्नयन के लिए बहुत सीमित लाभ छोड़ता है। vii. उच्च श्रेणी के कोकिंग कोल के भंडार सीमित हैं और भारत को बाजार दरों पर कोकिंग कोयले का आयात करना पड़ता है। viii. गलाने और स्टील बनाने की हमारी पुरानी तकनीक महंगी है और इससे घटिया गुणवत्ता वाले उत्पाद मिलते हैं। ix. विश्व बाजार में हमारे उत्पादों की सीमित मांग है। भारत में लौह और इस्पात उद्योग द्वारा सामना की जाने वाली 9 समस्याएं - ज्ञान हिंदी में | - In Hindi"Be educated and let others be educated" लोहा एवं इस्पात उद्योग की समस्याओं एवं समस्या से मुक्त करने हेतु सुझावों का वर्णन कीजिए। लोहा एवं इस्पात उद्योग की समस्याएँलोहा एवं इस्पात उद्योग की कुछ प्रमुख समस्याएँ निम्नलिखित हैं- 1. कोकिंग कोयले का अभाव (Shortage of Cocking Coal)- लोहा एवं इस्पात संयन्त्रों में भारी मात्रा में कोकिंग कोयले का प्रयोग होता है, लेकिन भारत में उत्तम किस्म के कोकिंग कोयले का अभाव है और कोकिंग कोयले की पूर्ति भी अनियमित है। 2. परिवहन की समस्या (Problem of Transport) – भारत के लोहा एवं इस्पात उद्योग में परिवहन का प्रमुख साधन रेल परिवहन है। रेल परिवहन भी कभी-कभी इस उद्योग के लिये बाधा उत्पन्न कर देता है। 3. तकनीकी विशेषज्ञों का अभाव (Lack of Technical Experts) – भारत में इस उद्योग के लिये पर्याप्त मात्रा में कुशल तकनीकी विशेषज्ञों का अभाव है। इस कारण से भी उत्पादन कम तथा निम्न स्तर का होता है। 4. उत्पादन क्षमत का कम उपयोग (Under Utilisation of Production Capacity) – इस उद्योग में उत्पादन क्षमता का पूर्ण उपयोग नहीं हो रहा है। यह उद्योग स्थापित क्षमता का केवल 85 प्रतिशत ही उपयोग कर पा रहा है। इससे भी इस उद्योग में उत्पादन लागतें बहुत अधिक आती हैं। 5. मूल्य की समस्या (Problem of Price)- भारत में लोहा एवं इस्पात के मूल्य उसकी लागत की तुलना में लाभकारी नहीं है। इस कारण इस उद्योग को हानि उठानी पड़ रही है। इस सम्बन्ध में श्री टाटा ने स्पष्ट किया है, “भारत में लोहा एवं इस्पात की संरचनात्मक वस्तुओं के मूल्य ब्रिटेन व अमेरिका की तुलना में क्रमशः 65 प्रतिशत व 49 प्रतिशत कम है।” 6. पूँजी की लागत में वृद्धि (Increase in the Cost of Capital)- लोहा एवं इस्पात के कारखाने स्थापित करने एवं उनका विकास करने में पूँजी लागतों में बराबर वृद्धि हो रही है। अतः 5 मिलियन टन से कम क्षमता वाले कारखाने आर्थिक दृष्टि से उपयोगी सिद्ध नहीं हो पा रहे हैं। लोहा एवं इस्पात उद्योग को समस्या मुक्त करने के सुझावलोहा एवं इस्पात उद्योग को समस्या मुक्त करने के लिए निम्न सुझाव दिये जा सकते है- (1) चूंकि लोहा एवं इस्पात उद्योग एक आधारभूत उद्योग है जिसके विकसित होने पर राष्ट्र सुदृढ़ हो सकता है, अतः विदेशी पूँजी का निवेश किया जाना चाहिए। पूँजी को जुटाने के लिए घरेलू बचतों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। (2) कुकिंग कोयले की मात्रा में वृद्धि के उपायों में नवीन कोयला खदानों की खोज के लिये अनुसन्धान किया जाना चाहिए। इसके अलावा विद्युत भट्टियों से लोहा को पिघलाने की व्यवस्था की जानी चाहिए। (3) उत्पादन क्षमता का पूर्ण प्रयोग हो, इसके लिए सार्वजनिक क्षेत्र की समस्यायें समाप्त करने के लिए अनेक कदम उठाये जाने चाहिए। इन उपायों में श्रमिकों को विशेष सुविधायें, अधिकारियों एवं श्रमिकों के मध्य मधुर सम्बन्ध विकसित करने हेतु समझौता वार्ता एवं औद्योगिक शान्ति पर विशेष बल देते हुए उचित श्रम विभाजन किया जाना चाहिए। (4) उत्पादन लागतों को कम करने के लिए सस्ते परिवहन साधन, न्यून कर, खनिज लौह को लोहा एवं इस्पात में परिवर्तित करने के लिए मितव्ययिता आदि कार्य करने होंगे। (5) सार्वजनिक उपक्रमों को लाभ में संचालित करने के लिए विशेष छूटों के साथ-साथ प्रशिक्षित कर्मचारियों को भर्ती किया जाना चाहिए। (6) लघु इस्पात संयंत्रों के लिए लौह कतरन का आयात किया जाना चाहिए। सरकार को नवीन संयंत्र के प्रत्येक उद्योग में अनुसन्धान केन्द्र स्थापित करना चाहिए जो न्यूनतम उत्पादन लागतों के लिये अध्ययन करे। सरकारी प्रयत्न (Government Efforts) भारत सरकार ने लोहा एवं इस्पात उद्योग के लिए कुकिंग कोयले हेतु इस्पात टेक्नोलॉजी में विकास किया है, फलस्वरूप जहाँ 1 टन कोयले से 1 टन इस्पात तैयार किया जाता था अब 1- .टन इस्पात के लिए 68 टन कोयला बोकारों प्लाण्ट में लगता है। (2) छोटे इस्पात संयंत्रों को समस्या रहित करने के उद्देश्य से सरकार ने विगत वर्षों से लौह कतरन का आयात प्रारम्भ कर दिया है, जिससे बन्द पड़े इस्पात संयंत्र पुनः प्रारम्भ हो गये हैं। Important linkYou may also likeAbout the authorवर्तमान में लोहा और इस्पात उद्योग की मुख्य समस्या क्या है?1. कोकिंग कोयले का अभाव (Shortage of Cocking Coal)- लोहा एवं इस्पात संयन्त्रों में भारी मात्रा में कोकिंग कोयले का प्रयोग होता है, लेकिन भारत में उत्तम किस्म के कोकिंग कोयले का अभाव है और कोकिंग कोयले की पूर्ति भी अनियमित है।
इस्पात उद्योग की प्रमुख समस्याएं क्या है?भारत में लौह और इस्पात उद्योग की समस्याएं:
लोहा और इस्पात उद्योग को भारी पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है, जिसे भारत जैसा विकासशील देश वहन नहीं कर सकता। ii. सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकांश संयंत्र अक्षम रूप से कार्य कर रहे हैं और इस प्रकार भारी नुकसान उठा रहे हैं।
लौह और इस्पात उद्योग का क्या महत्व है?भारत में लौह और इस्पात उद्योग का महत्व
लौह और इस्पात उद्योग के कुल उत्पादन के 200 मीट्रिक टन में से लगभग 50 प्रतिशत निर्यात किया जाता है। इसके अलावा चीन से इसकी मांग के कारण लौह अयस्क का निर्यात 17 प्रतिशत बढ़ा है। इसके अलावा लौह अयस्क पर लगाए गए निर्यात शुल्क को कम कर दिया गया है।
लोहा इस्पात उद्योग में भारत का कौन सा स्थान है?लौह इस्पात कारखाना. भारतीय लौह इस्पात कारखाना –. मैसूर आयरन एण्ड स्टील वर्क्स –. स्टील कॉर्पोरेशन ऑफ़ बंगाल –. भिलाई इस्पात संयंत्र –. हिंदुस्तान स्टील लिमिटेड, राउलकेला –. हिंदुस्तान स्टील लिमिटेड, दुर्गापुर –. बोकारो स्टील प्लांट –. स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया (SAIL) –. |