चित्रकूट में भरत (Page 26) Show Image from NCERT book प्रश्न / उत्तर प्रश्न-1 भरत के नाना कौन थे? उत्तर- भरत के नाना केकयराज थे । प्रश्न-2 जब राजा दशरथ की मृत्यु हुई तब भरत कहाँ थे? उत्तर- जब राजा दशरथ की मृत्यु हुई तब भरत अपने ननिहाल केकय राज्य में थे । प्रश्न-3 भरत ने सपने में क्या देखा? उत्तर - भरत ने सपने में देखा कि समुद्र सूख गया । चन्द्रमा धरती पर गिर पड़े । वृक्ष सूख गए । राजा दशरथ को एक राक्षसी खींचकर ले जा रही है । वे रथ पर बैठे हैं । रथ गधे खींच रहें हैं । प्रश्न-4 भरत को संदेश कब मिला? उत्तर - जिस समय भरत मित्रों को अपना सपना सुना रहे थे ठीक उसी समय अयोध्या से घुड़सवार दूत वहाँ पहुँचे । तभी भरत को संदेश मिला । प्रश्न-5 क्या भरत का मन ननिहाल में लग रहा था? उत्तर - भरत का मन ननिहाल में नहीं लग रहा था । उनका मन वहाँ से उचट गया था । वे अयोध्या पहुँचने को उतावले थे । प्रश्न- 6केकयराज ने भरत को कितने रथों और सेना के साथ विदा किया? उत्तर - केकयराज ने भरत को सौ रथों और सेना के साथ विदा किया । प्रश्न- 7भरत अयोध्या कितने दिनों में पहुँचे? उत्तर - भरत अयोध्या आठ दिनों में पहुँचे । प्रश्न- 8भरत को अयोध्या पहले जैसी क्यों नहीं लगी? उत्तर - भरत को अयोध्या पहले जैसी इसलिए नहीं लगी क्योंकि चारों तरफ शांति थी । प्रश्न- 9 किसने किससे कहा? i. “मैं नहीं जानता कि उसका अर्थ क्या है? पर सपने से मुझे डर लगने लगा है ।” भरत ने अपने संगी साथियों से कहा । ii. “पुत्र तुम्हारे पिता चले गए हैं । वहाँ जहाँ एक दिन हम सबको जाना है ।” कैकेयी ने भरत से कहा । These NCERT Solutions for Class 6 Hindi Vasant & Bal Ram Katha Class 6 Questions and Answers Summary Chapter 5 चित्रकूट में भरत are prepared by our highly skilled subject experts. Bal
Ram Katha Class 6 Question Answers Chapter 5 पाठाधारित प्रश्न अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न
3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. मूल्यपरक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. अभ्यास प्रश्न लघु उत्तरीय प्रश्न 1. भरत ने अपनी ननिहाल में क्या सपना
देखा? दीर्घ उत्तरीय प्रश्न 1. अयोध्या लौटकर भरत का माता कैकेयी के साथ क्या वार्तालाप हुआ? Bal Ram Katha Class 6 Chapter 5 Summary भरत अपने ननिहाल कैकेय राज्य में थे। वे अयोध्या की घटनाओं से बिलकुल अनिभिज्ञ थे, पर चिंतित थे। एक दिन उन्होंने विचित्र सपना देखा। समुद्र सूख गया है, चंद्रमा धरती पर गिर पड़ा, वृक्ष सूख गए। एक राक्षसी पिता को खींचकर ले जा रही है। वे रथ पर बैठे हैं। रथ गधे खींच रहे हैं। जिस समय भरत अपना सपना मित्रों, सगे संबंधियों को सुना रहे थे, ठीक उसी समय अयोध्या के घुड़सवार दूत वहाँ आ पहुँचे। भरत अपने नाना कैकयराज से विदा लेकर सौ रथों के साथ आयोध्या के लिए निकल पड़े। लंबा रास्ता होने के कारण वे आठ दिन बाद अयोध्या पहुँचे। अयोध्या नगर काफ़ी शांत और उदास था। अयोध्या के बदले रूप को देखकर उन्हें मन में अनिष्ट की आशंका होने लगी। वे सीधे राजभवन गए। वे पिता के महल की ओर गए, किंतु वहाँ उन्हें महाराज नहीं मिले। वे कैकेयी के महल की ओर गए। माता कैकेयी ने अपने पत्र भरत को गले लगा लिया। भरत ने माँ से पिता के बारे में पूछा तो कैकेयी ने उन्हें बताया कि उनके पिता स्वर्ग सिधार गए। यह सुनते ही भरत शोक में डूब गए और पछाड़ खाकर गिर पड़े। माता कैकेयी ने उन्हें उठाया। माँ ने भरत को ढाढस बंधाया। भरत तुरंत राम के पास जाना चाहते थे। कैकेयी ने बताया कि राम को पिता ने चौदह वर्षों के लिए वनवास दे दिया है। सीता और लक्ष्मण भी राम के साथ वन गए हैं। कैकेयी ने भरत को बताया कि अंतिम समय में महाराज के मुँह से केवल तीन शब्द निकले-हे राम! हे सीते! हे लक्ष्मण! तुम्हारे लिए कुछ नहीं कहा। भरत ने यह सुनकर आश्चर्यचकित होकर पूछा कि वनवास क्यों? क्या उनसे कोई अपराध हो गया था। तब कैकेयी ने उन्हें वरदान की पूरी कहानी सुनाते हुए राजगद्दी संभालने के लिए कहा। भरत अपना क्रोध नहीं रोक पाए। वे चीख पड़े-‘यह आपने क्या किया माते। आप अपराधिनी हो। नहीं चाहिए मुझे ऐसा राज्य।’ मेरे लिए यह राज बेकार है। पिता को खोकर, भाई से बिछड़कर मुझे ऐसा राज्य नहीं चाहिए। वे बार-बार अपनी माता को कोसते रहे।’ किसने तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट की। किसने तुम्हें उलटा पाठ पढ़ाया। मैं राजपद ग्रहण नहीं करूँगा। इस बीच मंत्रिगण और सभासद भी वहाँ आ गए। भरत ने साफ़ शब्दों में सभासदों से कह दिया-‘आप सुन लें। मेरी माँ ने जो किया है उसमें मेरा कोई हाथ नहीं है। मैं राम की सौगंध खाकर कहता हूँ। मैं राम के पास जाऊँगा। उन्हें मनाकर लाऊँगा। प्रार्थना करूँगा कि वे गद्दी सँभालें। मैं दास बनकर रहूँगा।’ वे सुध-बुध खो बैठे थे। होश में आने पर वे कौशल्या के महल की ओर चल दिए। कौशल्या भी आहत थी। वे कौशल्या के चरणों से लिपटकर खूब रोए। कौशल्या ने भरत को क्षमा किया और गले लगा लिया। भरत सारी रात रोते रहे। सुबह होते ही शत्रुघ्न को पता चल गया कि कैकेयी के कान किसने भरे हैं। मंथरा अयोध्या के घटनाक्रम से घबरा गई थी। शत्रुघ्न ने लपककर मंथरा के बाल पकड़ लिए। वे मंथरा को घसीटते हुए भरत के सामने लाए। भरत ने बीचबचावकर उसे छोड़ दिया। मुनि वशिष्ठ अयोध्या का राजसिंहासन खाली नहीं देखना चाहते थे। उन्होंने भरत से कहा-‘वत्स। तुम राजकाज संभाल लो। पिता के निधन और बड़े भाई के वन-गमन के बाद यही उचित है।’ भरत ने इस सलाह को नहीं माना और वन वापस जाकर राम को वापस लाने की इच्छा जताई। सभी वन जाने के लिए तैयार थे। अगली सुबह सभी मंत्रियों और सभासदों, गुरु वशिष्ठ तथा नगरवासियों के साथ वन की ओर चल दिए। तब तक राम गंगा पार कर चित्रकूट पहुँच गए थे। महर्षि भारद्वाज के आश्रम के निकट एक पहाड़ी पर एक पर्णकुटी बनाई गई। भरत को सूचना मिल गई थी। वे चित्रकूट ही आ रहे थे। वे पूरे दल बल के साथ थे। निषाद गुह को उन्हें देखकर कुछ संदेह हुआ। सही स्थिति का पता चलने पर उन्होंने भरत की अगवानी की। गंगा पार करने के लिए उन्होंने पाँच सौ नाव लाकर खड़ी कर दी। रास्ते में मुनि भारद्वाज का आश्रम पड़ता था। उन्होंने भरत को राम का समाचार दिया और मार्ग भी दिखा दिया जो राम की पर्णकुटी तक जाता था। अयोध्यावासियों ने रात आश्रम में बिताई। आगे जंगल घना था। सेना चली तो वन में खलबली मच गई। सभी जानवर पक्षी इधर-उधर भागने लगे। राम-सीता पर्णकुटी में थे। लक्ष्मण पहरा दे रहे थे। लक्ष्मण ने देखा कि एक विशाल सेना चली आ रही है। लक्ष्मण जोर से राम से बोले-‘भैया, भरत सेना के साथ इधर आ रहे हैं। लगता है वे हमें मार डालना चाह रहे हैं। राम कुटी से बाहर आ गए। वे बोले-भरत हम पर हमला कभी नहीं करेगा। वह हम लोगों से मिलने आ रहा होगा।’ लक्ष्मण आक्रमण करने के लिए व्यग्र थे किंतु राम ने उन्हें समझाया कि वीर पुरुष अपना धैर्य का साथ कभी नहीं छोड़ते। भरत सेना को पहाड़ी के नीचे छोड़कर शत्रुघ्न के साथ पहाड़ी के ऊपर गए। वे राम के चरणों पर गिर पड़े। राम ने भरत और शत्रुघ्न को उठाकर अपने गले से लगा लिया। उस समय सबकी आँखों में आँसू थे। भरत ने राम को पिता के निधन की बात बताई। वे सुनकर शोक में डूब गए। कुछ देर बाद राम पहाड़ी के नीचे उतरकर नगर वासियों तथा माता कौशल्या, कैकेयी और गुरु से मिलने गए। राम ने बड़े ही सहज भाव से माता कैकेयी को प्रणाम किया। कैकेयी मन ही मन पछता रही थी। अगले दिन भरत ने राम से राजग्रहण का आग्रह किया। राम इसके लिए तैयार नहीं हुए। उन्होंने भरत को समझाया कि अब तुम ही गद्दी सँभालो। यह पिता की आज्ञा है। मुनि वशिष्ठ ने भी राम को रघुकुल की परंपरा का वास्ता देकर राज-काज सँभालने का आग्रह किया। राम संयमित होकर बोले मैं पिता की आज्ञा से वन में आया हूँ। उन्हीं की आज्ञा से भरत को राजगद्दी संभालनी चाहिए। वे किसी भी हालत में तैयार नहीं हुए। उन्होंने कहा-चाहे चंद्रमा अपनी चमक छोड़ दे, सूर्य ठंडा पड़ जाए किंतु मैं पिता की आज्ञा को नहीं ठुकरा सकता। मैं उन्हीं की आज्ञा से वन आया हूँ और भरत को भी उन्हीं के आज्ञा से राजगद्दी संभालनी चाहिए। वे किसी भी हालत में लौटने को तैयार नहीं हुए। भरत ने राम से आग्रह किया वे अपनी खड़ाऊँ उन्हें दें। वह चौदह वर्ष उसी की आज्ञा से राजकाज चलाएँगे। भरत का यह आग्रह राम ने स्वीकार कर लिया और अपनी खड़ाऊँ दे दी। भरत ने खड़ाऊँ को माथे से लगाकर कहा, चौदह वर्ष तक अयोध्या पर इन चरण पादुकाओं का शासन होगा। ‘राम की इन चरण पादुकाओं को एक सुसज्जित हाथी पर रखकर अयोध्या लाया गया। भरत ने वहाँ उनका पूजन किया। भरत अयोध्या में कभी नहीं रुके। वे तपस्वी पोशाक पहनकर नंदी ग्राम चले गए और राम के लौटने की प्रतीक्षा करने लगे। शब्दार्थ: पृष्ठ संख्या 26 पृष्ठ संख्या 27 पृष्ठ संख्या 28 पृष्ठ संख्या 29 पृष्ठ संख्या 31 पृष्ठ संख्या 32 भरत जी का ननिहाल कौन से प्रदेश में था?भरत केकय राज्य में थे। अपनी ननिहाल में । अयोध्या की घटनाओं से सर्वथा अनभिज्ञ लेकिन वे चिंतित थे। उन्होंने एक सपना देखा था।
रामायण में भरत के नाना का नाम क्या था?उनके नाना अश्वपति (Ramayan Mein Bharat Ke Nana Ka Kya Naam Tha) कैकेय देश के राजा थे जिनका स्वास्थ्य ठीक नही चल रहा था इसलिये वे भरत से मिलना चाहते थे। यह सूचना पाकर भरत अपने छोटे भाई शत्रुघ्न को साथ लेकर कैकेय देश चले गए।
भरत किसका अवतार था?भरत रामायण के अनुसार, राजा दशरथ के दूसरे पुत्र थे, उनकी माता कैकेयी थी। वे राम जी के भाई और गरुड़ के अवतार थे।
भरत कहाँ थे?कैकेयी के गर्भ से उत्पन्न राजा दशरथ के पुत्र और रामचंद्र के छोटे भाई जिनका विवाह मांडवी के साथ हुआ था । विशेष—ये प्रायः अपने मामा के यहाँ रहते थे और दशरथ के देहांत के उपरांत अयोध्या आए थे ।
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