वाशिंगटन, डी.सी. (29 जून, 2021) – Pew रिसर्च सेंटर के एक नए सर्वेक्षण के अनुसार भारत के औपनिवेशिक शासन से आज़ाद होने के 70 वर्षों से अधिक समय के बाद, भारतीयों को आम तौर पर लगता है कि उनके देश ने स्वतंत्रता के बाद के अपने आदर्शों में से एक का पूरा पालन किया है: एक ऐसा समाज जहां कई धर्मों के अनुयायी स्वतंत्र रूप से रहते हुए अपने धर्मों का पालन कर सकते हैं। Show भारत की विशाल जनसंख्या विविध होने के साथ-साथ धर्मनिष्ठ भी है। न केवल दुनिया के अधिकांश हिंदू, जैन और सिक्ख भारत में रहते हैं, बल्कि यह दुनिया की सबसे बड़ी मुस्लिम आबादी में से एक और लाखों ईसाइयों और बौद्धों का घर भी है। वर्ष 2019 के अंत और 2020 की शुरुआत (COVID-19 महामारी से पहले) के बीच 17 भाषाओं में किए गए लगभग 30,000 वयस्कों के रूबरू साक्षात्कार के आधार पर, भारत भर में धर्म के एक नए प्रमुख सर्वेक्षण में पाया गया कि इन सभी धार्मिक पृष्ठभूमि वाले भारतीयों का कहना है कि वे अपने धार्मिक विश्वासों का पालन करने के लिए बिल्कुल स्वतंत्र हैं। भारतीय धार्मिक सहिष्णुता को राष्ट्रीय स्तर पर अपने अस्तित्व के केन्द्रीय तत्व के रूप में देखते हैं। मुख्य धार्मिक समूहों में अधिकांश लोग कहते हैं कि “सच्चा भारतीय” होने के लिए सभी धर्मों का सम्मान करना बहुत जरूरी है। और सहिष्णुता धार्मिक होने के साथ नागरिक मूल्य है: भारतीय इस दृष्टिकोण पर एक हैं कि अन्य धर्मों का सम्मान करना उनके अपने धार्मिक समुदाय का सदस्य होने का एक बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा है। इन साझा मूल्यों के साथ कई मान्यताएं जुड़ी हैं जो धार्मिक सीमाओं से परे हैं। भारत में न केवल अधिकांश हिंदू (77%) कर्म में विश्वास करते हैं, बल्कि उतने ही प्रतिशत मुसलमान भी कर्म में विश्वास करते हैं। 81% हिंदुओं के साथ भारत में एक तिहाई ईसाई (32%) कहते हैं कि वे गंगा नदी की पवित्रता की शक्ति में विश्वास करते हैं, जो कि हिंदू धर्म का प्रमुख विश्वास है। उत्तरी भारत में, 37% मुसलमानों के साथ, 12% हिन्दू और 10% सिक्ख, सूफीवाद से जुड़ाव को स्वीकार करते हैं जो कि एक ऐसी आध्यात्मिक परंपरा है जो इस्लाम के सबसे करीब से जुड़ी हुई है। और सभी प्रमुख धार्मिक पृष्ठभूमि के भारतीयों का विशाल बहुमत कहता है कि बुजुर्गों का सम्मान करना उनके धार्मिक विश्वास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण है। फिर भी, कुछ मूल्यों और धार्मिक मान्यताओं को साझा करने के बावजूद – साथ ही एक ही संविधान के तहत एक ही देश में रहते हुए – भारत के प्रमुख धार्मिक समुदायों के सदस्यों को अक्सर यह महसूस नहीं होता है कि उनके बीच बहुत कुछ साझा है। बहुसंख्यक हिंदू (66%) ख़ुद को मुसलमानों से बहुत अलग देखते हैं, और अधिकांश मुसलमान यही भावना साझा करते हैं कि वे हिंदुओं (64%) से बहुत अलग हैं। कुछ अपवाद हैं: दो तिहाई जैन और लगभग आधे सिक्ख कहते हैं कि उनमें और हिंदुओं के बीच बहुत कुछ साझा है। लेकिन आम तौर पर, भारत के प्रमुख धार्मिक समुदायों में लोग ख़ुद को दूसरों से बहुत अलग देखते हैं। अंतर की यह धारणा उन परंपराओं और आदतों में परिलक्षित होती है जो भारत के धार्मिक समूहों के अलगाव को बनाए रखती हैं। धार्मिक समूहों की श्रंखला में कई भारतीयों का कहना है कि अपने समुदाय के लोगों को दूसरे धर्म में शादी करने से रोकना अति आवश्यक है। मोटे तौर पर दो-तिहाई हिंदू भारत में हिंदू महिलाओं (67%) या हिंदू पुरुषों (65%) के अंतरजातीय विवाह को रोकना चाहते हैं। ज़्यादातर मुस्लिमों को भी ऐसा ही लगता है: 80% का कहना है कि मुस्लिम महिलाओं को अपने धर्म से बाहर शादी करने से रोकना बहुत जरूरी है और 76% का कहना है कि मुस्लिम पुरुषों को ऐसा करने से रोकना बहुत ज़रुरी है। ज़्यादातर भारतीय मैत्रीपूर्ण संबंध अपने धार्मिक समुदाय में ही बनाते हैं – यह न केवल हिंदुओं और मुसलमानों के बीच, बल्कि सिक्खों और जैन जैसे छोटे धार्मिक समूहों के बीच भी सच है। एक बड़ा बहुमत (86% भारतीय, कुल मिलाकर 86% हिंदू, 88% मुस्लिम, 80% सिख और 72% जैन) कहते हैं कि उनके करीबी दोस्त मुख्य रूप से या पूरी तरह से उनके अपने धार्मिक समुदाय के हैं। कई मायनों में, भारतीय समाज धार्मिक समुदायों के बीच अलगाव की स्पष्ट सीमाओं के साथ ताने-बाने वाले देश जैसा दिखता है। कम भारतीयों का यह कहना है कि उनके पड़ोस में केवल उनके ही धर्म से संबंधित लोग होने चाहिए। फिर भी, कई लोग कुछ धर्मों के लोगों को अपने निवास क्षेत्रों या गांवों से बाहर ही रखना चाहेंगे। उदाहरण के लिए, बहुत से हिन्दुओं (45%) को अन्य सभी धर्मों- चाहे वे मुस्लिम, ईसाई, सिक्ख, बौद्ध या जैन हों – के लोगों के पड़ोसी के रूप में साथ रहने में कोई समस्या नहीं हैं – किंतु इतना ही बड़े तबके (45%) का कहना है कि वे इनमें से कम से कम एक समूह के अनुयायियों को स्वीकार करने को तैयार नहीं होंगे, जिसमें तीन में से एक से ज्यादा हिंदू (36%) ऐसे हैं जो पड़ोसी के रूप में किसी मुस्लिम को नहीं चाहते हैं। जैनियों में, अधिकांश (61%) का ये कहना है कि वे इन समूहों में से कम से कम एक समूह के लोगों को अपने पड़ोस में नहीं चाहेंगे, जिसमें 54% ऐसे हैं जो किसी मुस्लिम को पड़ोसी के रूप में स्वीकार नहीं करेंगें। अतिरिक्त मुख्य निष्कर्षों में शामिल हैं:
यह 29,999 भारतीय वयस्कों के बीच राष्ट्रीय स्तर पर प्रत्यक्ष रूप से किए गए Pew रिसर्च सेंटर के सर्वेक्षण के प्रमुख निष्कर्षों में से कुछ हैं। 17 नवंबर, 2019 और 23 मार्च, 2020 के बीच स्थानीय साक्षात्कारकर्ताओं ने 17 भाषाओं में सर्वेक्षण किया। सर्वेक्षण में मणिपुर और सिक्किम के अपवादों के साथ भारत के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को शामिल किया गया, जहां तेजी से विकसित हो रही COVID-19 स्थिति ने वर्ष 2020 के वसंत मौसम में फील्डवर्क को शुरू करने से रोक दिया और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप के दूर-दराज के प्रदेश; ये क्षेत्र लगभग 1% भारतीय आबादी का घर हैं। जम्मू और कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश को सर्वेक्षण में शामिल किया गया, हालांकि सुरक्षा संबंधी कारणों से कश्मीर क्षेत्र में कोई फील्डवर्क नहीं किया गया। 29,999 उत्तरदाताओं के पूर्णन मूने के लिए नमूना त्रुटि का मार्जिन प्लस या माइनस 1.7 प्रतिशत अंक है। सर्वेक्षण कैसे किया गया, इस पर और अधिक जानकारी पद्धति में उपलब्ध है। नई रिपोर्ट के शेष भाग में सर्वेक्षण के निष्कर्षों को अधिक विस्तार से बताया गया है। अध्याय 1 में धार्मिक स्वतंत्रता और भेदभाव पर भारतीयों के विचारों का वर्णन किया गया है। अध्याय 2 भारत में धार्मिक विविधता और बहुलवाद की जांच करता है। अध्याय 3 अंतरजातीय विवाह और धार्मिक अलगाव के बारे में विचारों की पड़ताल करता है। अध्याय 4 जाति के बारे में भारतीय दृष्टिकोण पर रिपोर्ट करता है। अध्याय 5 भारत में धार्मिक पहचान के घटकों की जांच करता है। अध्याय 6 भारतीय राष्ट्रवाद और राजनीति में धर्म की भूमिका को अधिक बारीकी से दिखाता है। अध्याय 7 भारत में धार्मिक प्रथाओं का वर्णन करता है। अध्याय 8 विश्लेषण करता है कि बच्चों को धर्म के बारे में कैसे बताया जाता है। अध्याय 9 धार्मिक पोशाकों पर सर्वेक्षण के निष्कर्षों के बारे में विवरण देता है। अध्याय 10 भोजन और धर्म को करीब से देखता है। अध्याय 11 भारत में धार्मिक मान्यताओं की पड़ताल करता है। और अध्याय 12 में भगवान के बारे में भारतीयों के विश्वासों का वर्णन किया गया है। Pew चैरिटेबल ट्रस्ट और जॉन टेम्पलटन फाउंडेशन द्वारा वित्त पोषित यह अध्ययन धार्मिक बदलाव और दुनिया भर के समाजों पर इसके प्रभाव को समझने के लिए Pew रिसर्च सेंटर के एक बड़े प्रयास का हिस्सा है। Pew रिसर्च सेंटर एक अपक्षवादी तथ्य समूह है जो दुनिया को आकार देने वाले मुद्दों, दृष्टिकोणों और रुझानों के बारे में जनता को सूचित करता है। यह नीति गतस्थिति का पालन नहीं करता है। यह सेंटर, Pew चैरिटेबल ट्रस्ट, की सहायक कंपनी है, जो इसका प्राथमिक वित्त पोषक है। अंग्रेजी में पूरी रिपोर्ट पढ़ने के लिए, यहां जाएं: https://www.pewresearch.org/religion/2021/06/29/religion-in-india-tolerance-and-segregation हिंदी में रिपोर्ट के अवलोकन को पढ़ने के लिए, यहां जाएं: https://www.pewresearch.org/religion/wp-content/uploads/sites/7/2021/06/PF_06.29.21_India_overview_Hindi.pdf निष्कर्षों के इस सारांश को इसके मूल अंग्रेजी संस्करण सेहिंदीमें अनुवाद किया गया है। भारत के 4 मुख्य धर्म कौन से हैं?भारत विश्व की चार प्रमुख धार्मिक परम्पराओं का जन्मस्थान है - हिन्दू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध धर्म तथा सिख धर्म।
दुनिया में नंबर 1 धर्म कौन है?ईसाई धर्म – ईसाई धर्म को दुनिया का सबसे बड़ा धर्म माना जाता है क्योंकि पूरी दुनिया में 31 फ़ीसदी आंकड़ा ईसाई धर्म का पालन करने वाले लोगों का है. 2.2 अरब से भी अधिक लोग ईसाई धर्म का पालन करते हैं. इस्लाम धर्म – दुनिया के सबसे बड़े धर्मों में इस्लाम धर्म का नाम दूसरे नंबर पर आता है.
भारत का मुख्य धर्म कौन सा है?भारत की जनसंख्या के 79.8% लोग हिंदू धर्म का अनुसरण करते हैं। इस्लाम, बौद्ध धर्म, ईसाई धर्म और सिक्ख धर्म, भारतीयों द्वारा अनुसरण किये जाने वाले अन्य प्रमुख धर्म हैं।
5 धर्म कौन सा है?दुनिया में धर्मों की संख्या यूं तो लगभग 300 से ज्यादा होगी, लेकिन व्यापक रूप से पांच धर्म ही प्रचलित हैं हिन्दू, जैन, बौद्ध, ईसाई, इस्लाम और सिख। इसके अलावा भी कई और धर्म भी अपना अस्तित्व बनाए रखे हुए हैं तो कुछ अपना अस्तित्व खो चुके हैं। आओ जानते हैं कि वे कौन से धर्म हैं।
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